स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न आयोगों के सुझावों का वर्णन कीजिए । Describe the suggestions of various commissions in relation to women education.
प्रश्न – स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न आयोगों के सुझावों का वर्णन कीजिए ।
Describe the suggestions of various commissions in relation to women education.
उत्तर – भारत जब स्वतन्त्र हुआ उस समय भारत में स्त्री शिक्षा की स्थिति बहुत ही दयनीय थी । स्त्री – शिक्षा का क्षेत्र विकास से अछूता था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन उच्च शिक्षा के विषय में सोचने-समझने के लिए किया गया। इस आयोग ने उच्च शिक्षा के साथ-साथ स्त्री शिक्षा की व्यवस्था के सम्बन्ध में भी सुझाव दिए ।
सन्1950 में भारत का संविधान लागू हुआ। इस संविधान में भी बालकों तथा स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में कोई बाधा उत्पन्न न हो, ऐसी व्यवस्था करने के लिए कहा गया। सरकार ने संविधान लागू होने के बाद बालिकाओं की शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार सम्बन्धी कार्य करने शुरू कर दिए। इसमें सबसे पहले सन् 1958 में “राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति का गठन किया गया ।
इस समिति की अध्यक्ष श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख थीं। सरकार ने इस समिति से स्त्री-शिक्षा की समस्याओं तथा उन समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव देने के लिए कहा। समिति ने फरवरी, सन् 1959 में अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया, जिसमें स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिए गए थे जो इस प्रकार हैं
राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति, 1958 के सुझाव
- सरकार को एक निश्चित योजना के अनुसार निश्चित अवधि में स्त्री शिक्षा का विकास एवं विस्तार करना चाहिए।
- सरकार को स्त्री शिक्षा को कुछ समय के लिए एक समस्या के रूप में स्वीकार कर उसका भार अपने ऊपर लेना चाहिए।
- सरकार को राज्यों के लिए स्त्री शिक्षा की नीति निर्धारित करनी चाहिए और इस नीति को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराना चाहिए।
- ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा के लिए विशेष प्रयास किए जाने चाहिए।
- बालक एवं बालिकाओं की शिक्षा की विषमता को समाप्त कर समानता स्थापित की जाए।
- स्त्री शिक्षा की समस्याओं का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् संस्थान का गठन किया जाए।
- प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को अधिक सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
महिला शिक्षा के सुधार हेतु सरकार के प्रयास
“राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति के सुझावों को स्वीकार करके शिक्षा मन्त्रालय ने सन् 1959 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्” का गठन किया। सन् 1964 में इस परिषद् का पुनर्गठन किया गया। इस समिति को निम्न कार्य सौंपे गए।
राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्, 1959 के कार्य
- स्कूली स्तर पर बालिकाओं की और प्रौढ़ स्त्रियों की शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं पर सरकार को सुझाव देना।
- स्कूली स्तर पर बालिकाओं की शिक्षा के प्रसार एवं सुधार के लिए नीतियों व कार्यक्रमों के सम्बन्ध में सुझाव देना ।
- स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में व्यक्तिगत प्रयासों का प्रयोग करने के लिए सुझाव देना।
- स्त्री शिक्षा के पक्ष में जनमत का निर्माण करने के उपायों के सम्बन्ध में सुझाव देना।
- बालिकाओं की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में होने वाली प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन करना तथा भावी प्रगति पर दृष्टि रखना।
- बालिकाओं की उच्च शिक्षा के सम्बन्ध में समस्याओं पर विचार करने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण अनुसंधान एवं सेमिनारों का आयोजन कराए जाने के सम्बन्ध में सुझाव देना ।
“राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् का एक प्रमुख कार्य विद्यालय स्तर पर बालिकाओं की शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान कराना था। परिषद् ने इस समस्या पर विचार करने के लिए ” श्रीमती हंसा मेहता” की अध्यक्षता में सन् 1962 में एक समिति का गठन किया जिसे “हंसा मेहता समिति कहा जाता है। इस समिति ने स्त्री-शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिए
हंसा मेहता समिति, 1962 के सुझाव
- पहला सुझाव था कि विद्यालय स्तर पर बालकों और बालिकाओं के पाठ्यक्रम में अन्तर नहीं होना चाहिए।
- दूसरा सुझाव था कि ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जो पुरुषों एवं स्त्रियों के वर्तमान अन्तर को और स्थायी बना दे।
इसके बाद सन् 1964 में सरकार ने भारत की सभी स्तरों की शिक्षा के विषय में सुझाव देने के लिए भारतीय शिक्षा आयोग का गठन किया। इस आयोग ने सभी स्तरों की शिक्षा के सम्बन्ध में अपने सुझाव दिए । स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में भी आयोग ने ठोस सुझाव दिए । आयोग द्वारा दिए गए सुझाव निम्न हैं –
भारतीय शिक्षा आयोग के स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव
- प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं की अनिवार्य शिक्षा के लिए विशेष प्रयास किए जाएँ ।
- बालिकाओं को प्राथमिक विद्यालयों में भेजने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- उच्च प्राथमिक स्तर पर बालिकाओं के लिए अलग विद्यालयों की स्थापना की जाए।
- बालिकाओं को मुफ्त पुस्तकें, यूनिफॉर्म एवं अन्य शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जाए।
- माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं के लिए अलग विद्यालयों की स्थापना की जाए।
- बालिकाओं के लिए छात्रावासों की व्यवस्था की जाए ।
- बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाए ।
- बालिकाओं को कला, विज्ञान, वाणिज्य तकनीकी आदि विषयों को स्वयं चयन करने की स्वतन्त्रता दी जाए ।
- गृह विज्ञान एवं सामाजिक कार्य के पाठ्य-विषय को विकसित करके उनको बालिकाओं के लिए आकर्षक बनाया जाए।
- बालिकाओं को व्यावसायिक प्रबन्ध एवं प्रशासन की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दिए जाएँ।
- स्त्री शिक्षा के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने हेतु ठोस सुझाव दिए जाएँ।
- बालक एवं बालिकाओं की शिक्षा में जो अन्तर उत्पन्न हो गया है, उसे शीघ्र समाप्त किया जाए।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में घोषणाएँ
- महिलाओं को शैक्षिक अवसर प्रदान करने तथा स्त्री शिक्षा में समानता के लिए निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किए गंए-
- बालक तथा बालिकाओं की शिक्षा में कोई अन्तर नहीं किया जाएगा।
- स्त्री शिक्षा के विकास के लिए प्रयत्न किए जाएंगे।
- बालिकाओं को विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बालिकाओं को विशेष सुविधा दी जाएगी ।
आचार्य राममूर्ति समिति, 1990 का स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव
- शिशु देखभाल तथा शिक्षा केन्द्र प्राथमिक विद्यालयों के समीप स्थापित किए जाएँ।
- कक्षा 1 से 3 तक का पाठ्यक्रम शिशु शिक्षा केन्द्रों के अनुकूल बनाया जाए।
- आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं तथा विद्यालय शिक्षकों में समन्वय • स्थापित किया जाए।
- 300 छात्राओं पर प्राथमिक विद्यालय एवं 500 छात्राओं पर एक जूनियर हाईस्कूल स्थापित किए जाएँ।
- योग्य छात्राओं को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाएँ ।
- योग्य छात्राओं को यूनीफॉर्म एवं पाठ्य पुस्तकें निःशुल्क प्रदान की जाएँ ।
- महिला शिक्षिकाओं की संख्या बढ़ाई जाए।
- छात्राओं को आवासीय विद्यालयों की सुविधा प्रदान की जाए।
- उच्च शिक्षा में बालिकाओं को व्यावसायिक शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- छात्राओं के विद्यालय आने-जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था की जाए।