श्रवण कौशल से आपका क्या अभिप्राय है? श्रवण कौशल की आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए । What do you mean by Listening Skill? Describe the Need and Importance Listening Skill.
भाषा सीखने का एक स्वाभाविक क्रम है- सुनना, बोलना, पढ़ना एवं लिखना। भाषा सीखने का प्रथम चरण है ‘श्रवण । बालक प्रथमावस्था में श्रवण का ही आश्रय लेता है। उच्चारण-शिक्षण का हमारे मन मस्तिक पर विशेष प्रभाव पड़ता है और वाणी में उसका असर साफ दिखता है। बालक जैसी बोली परिवार में सुनता है उसी का अनुकरण करता है। अतः श्रवण-कौशल ही अन्य कौशलों को विकसित करने का प्रथम आधार है।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रयुक्त ध्वनियों, शब्दों एवं भावों को कानों के माध्यम से ग्रहण कर उसका अर्थ ग्रहण करने की क्रिया ‘श्रवण’ कही जाती है। वक्ता जिस अभिप्राय या उद्देश्य से अपने विचारों की मौखिक अभियोग्यता कर रहा है, उसकी बात को पूरी तरह से ध्यानपूर्वक सुनकर, उसी अभिप्राय को ग्रहण करने की योग्यता ही श्रवण – कौशल है।
योगेन्द्रजीत के अनुसार, “फेंफड़ों से निकली हुई वायु ध्वनि यंत्र के अंगों के आन्दोलन के कारण आन्दोलित होकर निकलती है और बाहर की वायु में अपने आन्दोलन के अनुसार एक विशिष्ट प्रकार के कंम्पन से लहरें पैदा कर देती है। ये लहरें ही सुनने वाले के कानों तक पहुँचती हैं और श्रवणेन्द्रिय में कम्पन्न पैदा कर देती हैं। यही सूचना मस्तिष्क तक पहुँचती है और हम सुनते हैं।”

- अन्तर बोध शक्ति-भाषा को दो एकांकी ध्वनियों तथा दो ध्वनि संयोजनों को सुनकर उनके बीच के अन्तर को स्पष्ट रूप से समझना अन्तर- बोध शक्ति के अन्तर्गत आता है। ध्वनि युग्मों (जैसे- क-क. फ- फ. त्-ट्, द्-ड् आदि) तथा शब्द युग्मों (जैसे- अनिल-अनल, सर – शर, वन-बन, दवात – दावत) में ध्वनि भेद समझने की शक्ति को अन्तर बोध शक्ति कहा जाता है।
- धारण – शक्ति – जिन ध्वनि-युग्मों तथा शब्द-युग्मों के बीच का अन्तर हम समझ चुके हैं उस अन्तर को स्थिर रखना धारण-शक्ति के अन्तर्गत आता है। ध्वनि-युग्मों ( आधात्, सुर, ध्वनि गुणयुक्त) का अन्तर जितना अधिक स्पष्ट होगा, धारण शक्ति उतनी ही बढ़ेगी।
- बोधन – शक्ति – ध्वनि-योग से निर्मित शब्दों (जैसे- ब् + उ+ र् + आ बुरा) के अर्थ को ग्रहण करते हुए समझना बोधन-शक्ति के अन्तर्गत आता है।
बोधन के दो पक्ष होते हैं –
- वाक्य सांचे में शब्दों / पदों तथा पदबन्द / वाक्यांश को अलग-अलग पहचानना ।
- वितरण के आधार पर शब्दों का अलग-अलग अर्थ जानते हुए वाक्य में उनका अर्थ जानना।
- भाषा सीखने की प्रथम सीढ़ी-बच्चा बोलने से पहले सुनना शुरू करता है। सुनने से पहले उसके मन मस्तिष्क में ध्वनियों की छाप अंकित हो जाती है। ध्यानपूर्वक आस-पड़ोस के लोगों को बोलते हुए सुनकर वह अनुकरण के द्वारा बोलने की कोशिश करता है। धीरे-धीरे अभ्यास से सही अर्थ समझना शुरू कर देता है। श्रवण कौशल, मौखिक अभिव्यक्ति के साथ-साथ पठन व लेखन कौशल के लिए भी सीखना आवश्यक है। इस कौशल के बिना दूसरे कौशल नहीं सीखे जा सकते हैं।
- वाचन कौशल व लेखन कौशल का विकास – वाचन कौशल के लिए अध्यापक स्वयं आदर्श वाचन प्रस्तुत करता है। यदि छात्र ध्यानपूर्वक नहीं सुनते हैं तो शुद्ध व उचित उच्चारण करने में कठिनाई होती है। वाचन को श्रवण कौशल के द्वारा ध्यानपूर्वक सुना जा सकता है व वाचन कौशल को विकसित किया जा सकता है। इसी प्रकार लेखन कौशल के लिए ध्वनियों को उच्चारित करके (संकेतों) वर्णों का ज्ञान कराया जाता है। फिर शब्दों को भी उच्चारण करके सिखाया जाता है। अध्यापक सार लेखन में उचित गति व विराम के साथ बोलता है जो छात्र उचित रूप से सुन नहीं पाते, वे लिखते-लिखते पिछड़ जाते हैं।
- प्रेरित करने के लिए – श्रवण कौशल के आधार से छात्र रचनात्मक कार्य करना शुरू करता है। अध्यापक मौखिक भाषा के प्रयोग से रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करता है। अध्यापक उत्साह बढ़ाता है, कुछ नए विचार देता हैं, स्वयं या दूसरों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस सब के द्वारा छात्रों की छिपी क्षमताओं को बाहर लाने का प्रयास करता है। लेकिन यदि छात्र में श्रवण कौशल का विकास न हो तो उस छात्र के लिए इस प्रकार का प्रेरणादायक भाषण कोई प्रभाव नहीं डालेगा।
- ज्ञानार्जन के लिए छात्रों को ज्ञान अर्जन के लिए अध्यापक व दूसरे व्यक्तियों की बातों को सुनना व उनके साथ विचार-विमर्श करना आवश्यक होता है। यदि छात्रों को ध्यानपूर्वक सुनने, सुनी हुई बातों को समझने का अभ्यास नहीं है तो वे ज्ञान प्राप्त करने में पिछड़ जाएंगे। छात्र अन्य छात्रों के साथ भी विचार-विमर्श करता है तथा काफी ज्ञान सुनकर ही प्राप्त करता है।
- सौन्दर्यात्मक अनुभूति के लिए – साहित्य की अनेक विधाएँ ऐसी है, जिनको सुनकर उनके सौन्दर्य पक्ष को अनुभव किया जाता है जैसे कविता का आनन्द पढ़कर नहीं बल्कि सुनकर आता है। भाषण में अभिव्यक्त विचारों को उनके भावों को सुनकर ही भाव विभोर हुआ सकता है। विभिन्न प्रतियोगिताएँ व सांस्कृतिक कार्यक्रमों-भाषण प्रतियोगिता, कवि सम्मेलन, कविता पाठ, नाटक, वाद-विवाद आदि में श्रवण कौशल के बिना न तो भाग लिया जा सकता है और न ही आनन्द प्राप्त किया जा सकता है।
- श्रुत सामग्री का अर्थ समझने की योग्यता विकसित करना एवं श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना ।
- छात्रों को साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने व सुनने के लिए प्रेरित करना ।
- भाषा एवं साहित्य के प्रति रुचि पैदा करना।
- वक्ता के मनोभावों को समझने की निपुणता विकसित करना।
- छात्रों का मानसिक एंव बौद्धिक विकास करना।
- मनोयोग पूर्वक सुनने में समर्थ बनाना।
- भावानुभूति करने में सक्षम बनाना।
- भावों-विचारों व तथ्यों का मूल्यांकन करना ।
- दूसरों के द्वारा किए गए उच्चारण को सुनकर शुद्ध उच्चारण का अनुकरण करने के योग्य बनाना।
छात्रों में सुनकर स्वराघात, बलाघात तथा उचित उतार-चढ़ाव के साथ बोलने व पढ़ने की योग्यता विकसित करना।
- श्रोता के बैठने की सही स्थिति-श्रोता को वक्ता की ओर मुख करके उसके सामने बैठना चाहिए जिससे श्रोता वक्ता के मुख व मुखाकृति को देखता रहे।
- श्रोता को वक्ता के पास या उसकी मेज की परिधि में ही बैठना चाहिए।
- सुनाते समय वार्तालाप न हो एवं सुनने में शीघ्रता अनुचित है।
- श्रवण कौशल यही है कि सुनने के साथ उसका अर्थ ग्रहण करता जाए।
- ध्यान केन्द्रित करके सुना जाए।
- श्रोता में सुनी हुई सामग्री का अर्थ समझने की योग्यता हो।
- श्रोता में मूल ध्वनियों एवं ध्वनि समूहों में अन्तर करने की योग्यता हो ।
- सुनते समय हाँ, हूँ या स्पष्ट समझने के लिए प्रश्न, आवृत्ति करने को कहना, शंका हो तो समाधान आदि करना चाहिए।
- बालक श्रवण में रुचि रखे? एवं बालक में धैर्यपूर्वक सुनने की क्षमता हो ।
- बालक में भाव ग्रहण करने की क्षमता हो एवं बालक को हिन्दी ध्वनि, ध्वनि के प्रकार व उनके वर्गीकरण का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
- बालक की श्रवणेन्द्रियाँ ठीक हों।
- शिक्षक का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए और आदर्श वाचन करने के बाद शिक्षक को बालकों से प्रश्न पूछने चाहिए।
