अधिगम में किस लिए भाषा के कार्यों का प्रयोग किया जाता है विवेचना कीजिए । For what purpose, the functions of languages are used for learning? Explain.
प्रश्न – अधिगम में किस लिए भाषा के कार्यों का प्रयोग किया जाता है विवेचना कीजिए । For what purpose, the functions of languages are used for learning? Explain.
या
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें-Write short notes on the following:
(1) भाषा के कार्य | Functions of Language.
(2) सूचनाप्रद कार्य / सम्प्रेषण कार्य । Informative Function/Communicative Function.
उत्तर- भाषा के कार्य (Functions of Language)
मनुष्य की वृद्धि व विकास के लिए भाषा मुख्य आवश्यकता है। भाषा बिना मानव समाज पूर्णता अवैचारिक है। भाषा ही है जो मानव व पशु में अन्तर करती है। भाषा के द्वारा मनुष्य दूसरे के मन को जीत सकता है और स्वयं का सम्मान भी खो सकता है। यह संस्कृति में रक्त का संचरण करती है। भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे विचारों, भावों, सूचनाओं व ज्ञान आदि को सम्प्रेषित किया जाता है। केवल भाषा ही है जो वर्तमान को सम्भालता है, भूतकाल में झाँकता है और भविष्य की ओर आगे बढ़ाता है।
- सूचनाप्रद कार्य / सम्प्रेषण कार्य (Informative Function/Communicative Function) – भाषा से अभिप्राय है सूचना देना। जो कोई भी सूचना हो वह केवल भाषा के माध्यम से ही भेजी जा सकती है। सभी की सभी सूचनाएँ लिखित या मौखिक रूप में भाषा से ही सम्प्रेषित की जाती हैं। भाषा का मुख्य कार्य, आदान व प्रदान है। एक व्यक्ति सूचना भेजता है, दूसरा भाषा को समझकर उसका उत्तर वापस भेजता है। भाषा के माध्यम से व्यक्ति समाज से जुड़ता है, अपने सुख-दुःख में दूसरों को हिस्सेदार बनाता है। अच्छी-बुरी सभी बातों को बाँटता है। समाज में भाईचारा बढ़ाता है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की भाषा को नहीं जानता हो तो वे आपस में जानकारी स्थापित नहीं कर सकते हैं।
भाषा जो दोनों पक्षों को बोलनी आती है तथा बोली हुई समझ में आती है, तभी सूचनाएँ साझा हो पाती हैं। देश के एक भाग में क्या हो रहा है? इसकी जानकारी भाषा के द्वारा देश के दूसरे व्यक्तियों को होती है ।
- अभिव्यक्ति कार्य (Expression Function) – भाषा का दूसरा मुख्य कार्य अभिव्यक्ति है। अभिव्यक्ति से अभिप्राय है ‘व्यक्त करना’ या ‘बताना’ या प्रकट करना’ । भाषा के माध्यम से व्यक्ति विचारों, भावों, सोच आदि को व्यक्त करता है। व्यक्तियों के अन्दर वांछित इच्छाएँ एवं रुचियाँ उत्पन्न होती रहती हैं। संवेगों का निर्माण होता है। इन इच्छाओं, रुचियों व संवेगों आदि को भाषा के माध्यम से बाँटा जाता है। बालक कुछ नया सीखता है अनुभव करता है तो भाषा के द्वारा परिवार के सदस्यों के सामने बताता है ।
बालक के व्यक्तित्व के विकास में भाषा का अहम स्थान है। जन्म के कुछ समय बाद रोना व चिल्लाना आदि से संवेग प्रकट करता है। बड़े होने पर भाषा के द्वारा अपनी आवश्यकताओं को रखता है।व्यक्ति क्रोध, तनाव, खुशी, दुःख, उत्साह, अर्थात् मन में उठने वाले भावों, संवेगों को अभिव्यक्त करके मन शान्त व सन्तुष्ट हो जाता है जिससे व्यक्तित्व सुदृढ़ बनता है, विश्वास जगता है तथा सफलता की तरफ बढ़ता है। एक छात्र को भी अपनी योग्यता को अभिव्यक्त करना होता है मौखिक या लिखित रूप में अध्यापक ज्ञान को समझाने के लिए भाषा के द्वारा विषय-वस्तु को अभिव्यक्त करता है। अतः भाषा ही है जिससे व्यक्ति, व्यक्तित्व को स्पष्ट कर सकता है।
- निर्देशात्मक कार्य (Directive Function) – भाषा का है । निर्देश से अभिप्राय एक और मुख्य कार्य निर्देश देना है। है कार्य को सम्पन्न करने का तरीका या रास्ता / भाषा के माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे को निर्देशित कर सकता है। उनके कार्य को पूरा करने में मदद कर सकता है।
बच्चे को आरम्भ से ही निर्देश दिए जाते है । भाषा भी निर्देशों के द्वारा सिखाई जाती है। बच्चे को बोला जाता है- ऐसे नहीं, वैसे बोलो। रिश्तों की समझ भी निर्देशों से ही दी जाती है। सभी कार्य जो बच्चा सीखना शुरू करता है, वे सभी कार्य निर्देश देकर सिखाये जाते हैं। जीवन के हर पल में निर्देशों की आवश्यकता होती है।सामाजिक जीवन की समझ क्या अच्छा है, क्या बुरा है ? आदि सभी के निर्देश दिए जाते हैं। एक व्यापारी अपने नौकरों को निर्देश देता है, अध्यापक छात्रों को माता अपने बच्चो को कोच खिलाड़ियों को आदि सभी क्षेत्रों में निर्देश दिए व लिए जाते हैं। इन सभी के लिए भाषा की आवश्यकता होती है।
भाषा के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य (Other Important Functions of Language)
- सम्प्रेषण- भाषा का सर्वोपरि काम सम्प्रेषण का है। सम्प्रेषण के कुछ सांकेतिक प्रतीक भी होते हैं लेकिन भाषा ही हमें सम्प्रेषण प्रदान करती है। भाषा के विकास के साथ ही सम्प्रेषण प्रणाली का भी विकास होता है।
- भावनाओं की अभिव्यक्ति-भाषा ही हमें संवेग तथा बार हम विचार की अभिव्यक्ति करना सिखाती है तथा कई भाषा के अभाव में अपनी अभिव्यक्ति नही कर पाते हैं।
- संग्रहण का कार्य-भाषा के माध्यम से ही हम अपनी विरासत को सहेज कर रखते हैं। हमारे पूर्वजों के अनुभव एवं ज्ञान आज हमें भाषा के कारण ही प्राप्त हैं। हम इस ज्ञान को संचित करते है और आने वाली पीढ़ी को प्रदान करते हैं।
- संस्कृति की संवाहक कोई भी संस्कृति स्वयं में पूर्ण नही होती है। जो संस्कृतियाँ सबको हृदयंगम कर लेती हैं, घे चलती रहती हैं इसलिए भारतीय संस्कृति अपने आप में अनूठी है। भाषा ही एक संस्कृति को दूसरी संस्कृति के साथ जोड़ती है। भाषा ही संस्कृति की रक्षा करती है और उसका संवर्धन करती है ।
- समाजीकरण में सहायक – भाषा समाज में जन्म लेती है और इसका विकास भी समाज में ही होता है। भाषा का जन्म ही समाज के व्यवहारों के लिए हुआ है। हमें कैसे बोलना है? कैसे रहना है? समाज में हम कैसे रहें? यह सारा कार्य भी भाषा सिखाती है। भाषा एवं समाज दोनों एक दूसरे पर अवलम्बित हैं। बिना भाषा के समाज मूक, पंगु और दुर्बल बन जाएगा और बिना समाज तो भाषा का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।
- भाषा सामाजिक परिवर्तन का आधार है- कोई भी समाज स्थायी नहीं रहता । संसार की प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है। कोई भी भाषा अपरिवर्तन का दावा नही कर सकती। भाषा भी समाज के साथ परिवर्तित होती रहती है। समाज में जो भी परिवर्तन आते हैं भाषा उन्हें आगे तक ले जाती है। समाज में जो भी नए शब्दों का प्रचलन होता है भाषा उन्हें समाज में स्थापित करती है।
- सम्प्रेषणात्मक प्रयोग का साधन- जब बालक छोटा होता है तो वह अपनी भावनाएं अलग प्रकार से व्यक्त करता है। जब वह भाषा नहीं बोलता है तो संकेतों से अपनी बात पहुँचाता है परन्तु जब वह भाषा का प्रयोग करना सीखता है तो वह अपना सम्प्रेषण आसानी से कर सकता है। भाषा उसे वह अवसर प्रदान करती है कि वह अपनी बात सही प्रकार से कह सके।
- सरलीकरण-भाषा में परिवर्तन का प्रवाह कठिनता से सरलता की ओर जाता है क्योकि प्रायः यह देखा जाता है. कि व्यक्ति अपने बोलचाल में संक्षिप्त व सरलतम शब्दों का प्रयोग करना चाहता है। उच्चारण काठिन्य की दृष्टि से भी शब्दों को सरलीकरण होता है।