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अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण

अमेरिका में उपनिवेश की स्थापना

क्रिस्टोफर कोलम्बस (1451-1506) के अभियानों तथा फ्लोरेंस के नाविक अमेरिगो वेस्पुस्सी (1451-1512) के प्रयासों से
अमेरिका अथवा नई दुनिया (New World) का पता लगा। अमेरिका का पता लगते ही यूरोप की प्रमुख शक्तियों- स्पेन,
पुर्तगाल, इंगलैंड और फ्रांस में अमेरिका में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित करने की होड़ लग गई। इसी क्रम में इंगलैंड
ने उत्तरी अमेरिका में अपने 13 उपनिवेश स्थापित किए। ये तेरह उपनिवेश थे. -न्यू हैंपशायर, मेसाचूसेट्स, रोड आइलैंड,
क्नेक्टिकट, न्यूयार्क, न्यूजर्सी, पेनसिलवेनिया, डेलावेयर, मेरीलैंड, वर्जीनिया, उत्तरी कैरोलीना, दक्षिणी कैरोलीना और जॉर्जिया। इनका प्रशासन इंगलैंड में प्रचलित प्रशासनिक-व्यवस्था के अनुरूप होता था। प्रशासन पर इंगलैंड का प्रत्यक्ष और परोक्ष
दोनों नियंत्रण रहता था। उपनिवेशवासी इंगलैंड द्वारा लागू किए गए कानूनों से क्षुब्ध थे। यह आक्रोश अन्य आर्थिक-सामाजिक
कारणों से बढ़ता ही गया। अंत में उपनिवेशवासी इंगलैंड के विरुद्ध विद्रोह पर उतारू हो गए। इस विद्रोह ने स्वतंत्रता संग्राम
का रूप ले लिया जिससे अंततः अमेरिकी उपनिवेश इंगलैंड के चंगुल से मुक्त हो सके।
अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण
◊ राजनीतिक कारण
(i) उपनिवेशों की प्रशासनिक-व्यवस्था
(ii) जॉर्ज तृतीय का निरंकुश शासन
(iii) सप्तवर्षीय युद्ध का प्रभाव
◊ सामाजिक-धार्मिक कारण
(i) सामाजिक संरचना में अंतर
(ii) मध्यम वर्ग का उदय
(iii) स्वतंत्रता एवं आत्मविश्वास की भावना
(iv) धार्मिक कारण
◊ भौगोलिक कारण
◊ बौद्धिक जागरण
◊ प्रतिगामी वाणिज्यिक (आर्थिक) कारण
उपनिवेशों की दयनीय आर्थिक स्थिति
◊ उपनिवेशों पर आर्थिक प्रतिबंध
(i) नेविगेशन ऐक्ट एवं अन्य ट्रेड ऐक्ट
(ii) आयात-निर्यात कानून
(iii) स्टांप ऐक्ट
(iv) इंपोर्ट ड्यूटीज ऐक्ट
(v) लॉर्ड नॉर्थ के दंडात्मक कानून
◊ तात्कालिक कारण

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के कारण

अमेरिका का स्वतंत्रता संग्राम विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक- धार्मिक, भौगोलिक, बौद्धिक और आर्थिक कारणों का
परिणाम था।

राजनीतिक कारण

(i) उपनिवेशों की प्रशासनिक-व्यवस्था-उपनिवेशों का प्रशासन इंगलैंड में प्रचलित शासन-व्यवस्था के अनुरूप था।
उपनिवेशवासियों को प्रशासनिक स्वायत्तता नहीं थी। इंगलैंड में प्रचलित कानून उपनिवेशों में भी लागू थे। न्याय-व्यवस्था सामान्य कानून एवं जूरी-व्यवस्था पर आधृत थी। अधिकांश महत्त्वपूर्ण पदों पर अंगरेजों को ही नियुक्त किया जाता था।
प्रत्येक उपनिवेश के प्रशासन का प्रधान इंगलैंड के राजा द्वारा नियुक्त गवर्नर होता था। उसे अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे, परंत
वह उपनिवेशवासियों के प्रति उत्तरदायी नहीं था। यद्यपि व्यवस्थापिका सभा का गठन उपनिवेशवासियों द्वारा निर्वाचित
सदस्यों से होता था, परंतु गवर्नर और व्यवस्थापिका सभा में सदैव संघर्ष होता रहता था। उपनिवेशों में रहनेवाले अधिकांश
अँगरेज थे जो इंगलैंड में प्रचलित संसदीय व्यवस्था और प्रजातांत्रिक व्यवस्था की आकांक्षा रखते थे। इंगलैंड के शासक
ऐसा नहीं करना चाहते थे। अतः, राजनीतिक और प्रशासनिक स्वायत्तता का प्रश्न संघर्ष का कारण बन गया।
(ii) जॉर्ज तृतीय का निरंकुश शासन-तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज तृतीय (1760-1820) के निरंकुश शासन ने भी विद्रोह को बढ़ावा दिया। मंत्रिमंडल की अनदेखी कर वह अपना व्यक्तिगत शासन चलाता था। उसने उपनिवेशों के प्रति अनुदार नीति
अपनाई। अनेक कानूनों द्वारा जॉर्ज तृतीय ने उपनिवेशों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया। सम्राट की इन नीतियों की तीखी
प्रतिक्रिया उपनिवेशों में हुई। इससे आक्रोश बढ़ा और विद्रोह की भावना बलवती हुई।
(iii) सप्तवर्षीय युद्ध का प्रभाव-यूरोप में होनेवाले सप्तवर्षीय युद्ध (1756-63) से अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरणा मिली।
यह युद्ध फ्रांस और इंगलैंड के बीच हुआ। इस युद्ध के पूर्व अमेरिकी उपनिवेश इंगलैंड से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए थे,
क्योंकि कनाडा में वे फ्रांसीसियों का अकेले मुकाबला नहीं कर सकते थे। सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस बुरी तरह पराजित होकर
अमेरिका से हट गया। अतः, अब इंगलैंड ही एकमात्र शक्ति था जिसका सामना उपनिवेशवासियों को करना था। साथ ही,
सप्तवर्षीय युद्ध के दौरान अमेरिक के दौरान अमेरिकी उपनिवेशों में उपनिवेशों में युद्ध के सामान तैयार होने से औद्योगिकीकरण बढ़ा तथा उपनिवेशवालों के पास पर्याप्त मात्रा में अस्त्र-शस्त्र उपलब्ध हो गए। फलतः, वे इंगलैंड के साथ संघर्ष करने को तैयार हो गए। इसीलिए, कहा जाता है कि सप्तवर्षीय युद्ध में इंगलैंड की विजय से ही अमेरिका का इतिहास आरंभ होता है।

सामाजिक-धार्मिक कारण

(1) सामाजिक संरचना में अंतर-इंगलैंड और उपनिवेशों की सामाजिक संरचना में मूलभूत अंतर था। इंगलैंड में सामंतवादी
व्यवस्था एवं कुलीनों का प्रभाव था। इसके विपरीत, अमेरिका में समानता की भावना एवं जनतांत्रिक मूल्यों को अधिक महत्त्व
दिया गया।
(ii) मध्यम वर्ग का उदय-क्रांति के आरंभ होने के पूर्व ही अमेरिका में एक सशक्त मध्यम वर्ग का उदय हो चुका था। इसके
अंतर्गत शिक्षित एवं धनी व्यक्ति थे। वे स्वतंत्र और प्रगतिशील विचारों के थे। उनमें सैनिक क्षमता एवं रणकुशलता भी थी। वे
उपनिवेशों के शोषण और राजनीतिक अधिकारों से वंचित किए जाने से उद्विग्न होकर स्वतंत्रता एवं समानता की भावना का
प्रचार कर रहे थे।
(iii) स्वतंत्रता एवं आत्मविश्वास की भावना-उपनिवेशवासी स्वतंत्र प्रवृत्ति के थे। उनमें अधिकांश इंगलैंड से आकर बसे थे।
उनलोगों ने इंगलैंड में नागरिक अधिकारों के लिए निरंकुश राजतंत्र को नियंत्रित करनेवाले संघर्ष को देखा था। उन्हें यह बात
अटपटी लगती थी कि इंगलैंडवालों को जो नागरिक अधिकार एवं स्वतंत्रता प्राप्त थी उनसे उपनिवेशवासियों को वंचित रखा
गया था। इससे उनमें असंतोष बढ़ा।
(iv) धार्मिक कारण-इंगलैंड में ऐंग्लिकन संप्रदाय एवं चर्च का व्यापक प्रभाव था। इसके विपरीत, उपनिवेशवासी प्यूरिटन मत
के पोषक थे और ऐंग्लिकनों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। धार्मिक अत्याचारों से क्षुब्ध होकर प्यूरिटनों और प्रोटेस्टेंटों ने
इंगलैंड से भागकर अमेरिका में शरण ली थी। इससे उनमें इंगलैंड के विरुद्ध विद्रोह की भावना बढ़ी। अतः, वे इंगलैंड से
स्वतंत्र होने को व्यग्र हो गए।
भौगोलिक कारण
अमेरिकी स्वातंत्र्य संग्राम को भौगोलिक दूरी ने भी प्रभावित किया। अमेरिका और इंगलैंड हजारों मील की दूरी पर अटलांटिक
महासागर के दो किनारों पर अवस्थित थे। आवागमन के पर्याप्त साधनों के अभाव में इंगलैंड का उपनिवेशों पर प्रभावी और
प्रत्यक्ष नियंत्रण बनाए रखना दुष्कर कार्य था। उपनिवेशवासी इंगलैंड की इस समस्या से परिचित थे। अतः, वे इंगलैंड के
साथ युद्ध करने को तैयार हो गए।

बौद्धिक जागरण

17वीं-18वीं शताब्दियों के बौद्धिक जागरण का प्रभाव अमेरिकी उपनिवेशवासियों पर भी पड़ा। अमेरिका का शिक्षित वर्ग
वाल्तेयर, लॉक, रूसो, मांटेस्क्यू के राजनीतिक दर्शन से गहरे रूप से प्रभावित हुआ। इनसे प्रेरणा लेकर टॉमस पेन जैसे अमेरिकी लेखक ने भी उपनिवेशों में नवजागरण लाने का प्रयास किया। टॉमस पेन ने कॉमनसेंसफैम्फलेट में लेख लिखकर
स्वतंत्रता की आवश्यकता पर बल दिया। ‘दि राइट्स ऑफ मैन’ (The Rights of Man) नामक पुस्तक में उसने मानव अधिकारों का उल्लेख किया। वह मानव अधिकारों की सुरक्षा का समर्थक था। उसने राजतंत्र की भी कटु आलोचना की। टॉमस जेफर्सन ने भी विद्रोह की भावना को बढ़ावा दिया। इससे भी स्वतंत्रता संग्राम की चाह बढ़ी।

प्रतिगामी वाणिज्यिक (आर्थिक) कारण

उपनिवेशों की दयनीय आर्थिक स्थिति सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति के पश्चात अमेरिका की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई।
उसपर कर्ज का बोझ बढ़ गया। मुद्रा का अवमूल्यन होने से अनाज की कीमत में कमी आई जिसका बुरा प्रभाव किसानों पर
पड़ा। कल-कारखाने बंद हो गए। इस स्थिति से निकलने के लिए नई आर्थिक नीति की आवश्यकता थी, परंतु औपनिवेशिक
सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। इससे असंतोष एवं विद्रोह की भावना बढ़ी।

उपनिवेशों पर आर्थिक प्रतिबंध

औपनिवेशिक आर्थिक नीति उपनिवेशों के आर्थिक दोहन पर आधृत थी। अतः, औपनिवेशिक सरकार ने अपने आर्थिक हितों
की सुरक्षा के लिए अनेक कानून बना रखे थे। दूसरी ओर उपनिवेशवासी उन्मुक्त व्यापार की धारणा से प्रभावित थे। इसकी
उपेक्षा कर इंगलैंड ने अनेक कानून बना रखे थे। इससे उपनिवेशवासी क्षुब्ध थे। ऐसे कानूनों में निम्नलिखित प्रमुख थे।
(i) नेविगेशन ऐक्ट एवं अन्य ट्रेड ऐक्ट- इस ऐक्ट के कारण अमेरिकी उपनिवेश अपनी अर्थव्यवस्था का विकास नहीं कर
सकते थे। गैर-ब्रिटिश जहाज माल लेकर अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकते थे। उपनिवेशवासी अपना सामान अधिक मूल्य पर भी इंगलैंड के अतिरिक्त अन्य किसी देश को नहीं बेच सकते थे। इससे अमेरिकी व्यापार का विकास अवरुद्ध हो गया।
(ii) आयात-निर्यात कानून- अमेरिकी उपनिवेशों के आयात- निर्यात पर इंगलैंड ने अनेक प्रतिबंध लगा रखे थे। उपनिवेश-
वासी कपास, चीनी एवं तंबाकू इंगलैंड के अतिरिक्त अन्य किसी देश को नहीं भेज सकते थे। उपनिवेशों में बाहर से आनेवाले
सामान पर भारी आयात कर लगाया जाता था।
(iii) स्टांप ऐक्ट- इंगलैंड का प्रधानमंत्री ग्रेनविले उपनिवेशों में प्रचलित चोरबाजारी को रोकना चाहता था। इसके लिए उसने
अमेरिका में स्थायी सेना रखने की योजना बनाई। सेना का खर्च पूरा करने के लिए उसने 1765 में स्टांप ऐक्ट पारित किया।
इसके अनुसार, सभी अदालती कागजों, बंधक की दस्तावेजों, समाचारपत्रों तथा इश्तहारों पर 20 शिलिंगका डाक-टिकट
(सरकारी टिकट अथवा स्टांप) लगाना अनिवार्य बना दिया गया। इससे वकील, व्यापारी, प्रकाशक सभी पर आर्थिक बोझ बढ़
गया। इस कानून का विरोध किया गया। सैमुअल एडम्स ने नारा दिया-प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नहीं (No taxation without
representation)। प्रतिरोध को देखते हुए इंगलैंड की सरकार ने स्टांप ऐक्ट को वापस तो ले लिया, परंतु उपनिवेशों पर कर
लगाने के अपने अधिकार को वैध ठहराया।
(iv) इंपोर्ट ड्यूटीज ऐक्ट-1767 में अँगरेजी सरकार ने अमेरिका में आयातित होनेवाले उपभोक्ता सामानों-शीशा, चाय, रंग और कागज आदि-पर आयात चुंगी लगा दी। उपनिवेशवासियों ने इसका कड़ा विरोध किया। सरकार का विरोध करने के लिए अनेक संगठन बनाए गए। इनमें प्रमुख थे-स्वाधीनता के पुत्र और स्वाधीनता की पुत्रियाँ। इस विरोध के कारण सरकार ने चाय के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं पर से चुंगी हटा ली।
(v) लॉर्ड नॉर्थ के दंडात्मक कानून-उपनिवेशों के लगातार विरोध से क्रुद्ध होकर सरकार ने उपनिवेशवासियों को दंडित करने का निर्णय लिया। ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ ने 1774 में चार असहनीय कानून (Four Intolerable Acts) बनाए। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण था बोस्टन बंदरगाह को बंद करना। इसी प्रकार, क्यूवेक ऐक्ट द्वारा भी उपनिवेशों पर अनेक प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए गए। उपनिवेशवासियों ने इनका कड़ा विरोध किया एवं संघर्ष के लिए तैयार हो गए।

तात्कालिक कारण

बोस्टन की चाय-पार्टी- अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का तात्कालिक कारण था बोस्टन की चाय-पार्टी। चाय कानून द्वारा
ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत से सीधा अमेरिका चाय भेजने का एकाधिकार दिया गया। इस कानून का उपनिवेशवालों ने कड़ा
विरोध किया। 1773 में कंपनी की चाय से लदे जहाज अमेरिका के बोस्टन बंदरगाह पर पहुँचे। उपनिवेशवासी सरकार द्वारा चाय पर कर लगाए जाने से क्रुद्ध थे। जहाजों के बंदरगाह में पहुँचने पर बोस्टन के नागरिकों ने आदिवासियों (रेड इंडियन) के वेष में चाय की पेटियाँ समुद्र में फेंक दी। यह घटना बोस्टन चाय-पार्टी के नाम से विख्यात हुई। प्रतिक्रिया में सरकार ने बोस्टन बंदरगाह को व्यापार के लिए बंद कर दिया और दमनकारी कानून लागू कर दिए। इस घटना ने स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजा दिया।

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