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प्रतिभाशाली, सृजनशील तथा विशिष्ट बालकों की पहचान

प्रतिभाशाली, सृजनशील तथा विशिष्ट बालकों की पहचान

प्रतिभाशाली, सृजनशील तथा विशिष्ट बालकों की पहचान

Addressing the Talented, Creative and Especially-abled Children
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 2 प्रश्न,
2012 में 2 प्रश्न 2013 में 2 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न 2015 में
2 प्रश्न, तथा वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं। अधिकतम पूछे
गए प्रश्न प्रतिभाशाली बालक की विशेषताओं पर आधारित थे।
वह बालक, जो मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और संवेगात्मक आदि
विशेषताओं में औसत से विशिष्ट हो और यह विशिष्टता इस स्तर की हो कि
उसे अपने विकास के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता हो, विशिष्ट
बालक कहलाता है।
विशिष्ट बालकों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है
1. प्रतिभाशाली बालक
2. सृजनशील बालक
3. पिछड़े बालक
4. मन्द-बुद्धि बालक
5. समस्यात्मक या संवेगात्मक दृष्टि से पिछड़े बालक
6. बाल अपराधी
15.1 प्रतिभाशाली बालक
ऐसे बालक, जो अपनी श्रेष्ठ क्षमता एवं क्रियात्मक योग्यता के बल पर
शैक्षिक उपलब्धियों में विद्यालय स्तर पर उच्च स्थान प्राप्त करते हैं या किसी
विशेष क्षेत्र; जैसे- गणित, कला, विज्ञान, सृजनात्मक लेखन इत्यादि में उच्च
स्तरीय प्रतिभा रखते हैं, प्रतिभाशाली बालको (Talented Children) की
श्रेणी में आते हैं।
प्रतिभाशाली छात्र मौलिक चिन्तन, समझने पर बल, शब्द ज्ञान पर बल,
सामान्य बुद्धि का प्रयोग, तीव्र स्मरण शक्ति इत्यादि के धनी होते हैं।
ऐसे बालकों की पहचान करने के बाद उनकी प्रतिभा में निखार लाने का
प्रयास किया जाता है। प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान उपलब्धि परीक्षण, बुद्धि
परीक्षण एवं अभिरुचि परीक्षण के माध्यम से अध्यापकों द्वारा की जाती है।
प्रतिभाशाली बालकों की निम्नलिखित विशेषताओं के आधार पर उनकी
पहचान आसानी से की जा सकती है
• कोई भी पाठ आसानी से सीखना
• बुद्धि एवं व्यावहारिक ज्ञान का उपयोग सामान्य बालकों से अधिक करना
• विशाल शब्दकोष
• मानसिक प्रक्रिया में तीव्रता
• अपने साथियों की तुलना में अधिक ज्ञान
• कठिन मानसिक कार्यों को भी आसानी से करने में सक्षम
• मौलिक चिन्तन की क्षमता
• सामान्य ज्ञान की श्रेष्ठता
• किसी प्रश्न का उत्तर शीघ्र देने की कोशिश करना
• सामान्य अध्ययन में रुचि
• अत्यन्त जिज्ञासु प्रवृत्ति
• आश्चर्यजनक अन्तर्दृष्टि का प्रमाण
• पाठ्यविषयों में अत्यधिक रुचि या अन्य
• उच्च बुद्धि-लब्धि (130 से 170 तक)
• रुचियों का क्षेत्र विस्तृत
• सकारात्मक आत्मविश्वास,
• अध्ययन की वैज्ञानिक विधि
• जोखिम (Risk) उठाने की क्षमता
• नेतृत्व कौशल का होना
• चरित्र एवं व्यक्तित्व अन्य बालकों से भिन्न होना
• उच्च प्रतिस्पर्धात्मक गुण
• विषय-वस्तु के अलावा सहायक पुस्तकों (कहानी, उपन्यास, पेपर,
पत्रिका) का अध्ययन करना
प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा
• प्रतिभाशाली बालकों के लिए विशेष शिक्षा की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे
बालकों को शिक्षित करने के लिए अध्यापकों का भी विशेष रूप से
प्रशिक्षित होना अनिवार्य है।
• शिक्षकों को चाहिए कि वे प्रतिभाशाली बालकों को उनकी योग्यताओं या
प्रतिभाओं को विकसित करने का पूरा-पूरा अवसर उपलब्ध कराएँ।
• प्रतिभाशाली बालक पाठ्यक्रम को समझने सामान्य बालकों से कम
समय लेते हैं। इस बचे हुए समय में उन्हें किसी और सृजनात्मक कार्य में
व्यस्त कर देना चाहिए।
• आवश्यकता पड़ने पर विशिष्ट बालकों के लिए विशेष स्कूल एवं कक्षाओं
की भी व्यवस्था करनी पड़ती है। उनके लिए पुस्तकालय में भी उनकी रुचि
के अनुकूल व्यवस्था की जानी चाहिए।
हैविगहस्ट्र के अनुसार, “प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षा का सफल कार्यक्रम
वही हो सकता है, जिसका उद्देश्य उनकी विभिन्न योग्यताओं का विकास
करना हो।”
इस कथन के अनुसार, प्रतिभाशाली बालकों की शिक्षा व्यवस्था निम्न प्रकार से
होनी चाहिए
• सामान्य रूप से कक्षोन्नति
• शिक्षक का व्यक्तिगत ध्यान
• सामान्य बालकों के साथ शिक्षा
• पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं का आयोजन
• नेतृत्व का प्रशिक्षण
• विशेष व विस्तृत पाठ्यक्रम
• संस्कृति की शिक्षा
• विशेष अध्ययन की सुविधाएँ
• सामाजिक अनुभवों के अवसर
• व्यक्तित्व का पूर्ण विकास
15.2 सृजनशील बालक
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का सृजन करना ही
सृजनात्मकता (Creativety) है।” मनोविश्लेषणात्मक, साहचर्यवाद,
अन्त:दृष्टिवाद एवं अस्तित्ववाद सिद्धान्तों का सम्बन्ध सृजनात्मकता से है।
रॉबर्ट फ्रास्ट के अनुसार, “मौलिकता क्या है? यह मुक्त साहचर्य है, जब
कविता की पंक्तियाँ या उसके विचार आपको उद्वेलित करते हैं,
साधारणीकरण के लिए बाध्य करते हैं। यह दो वस्तुओं का सम्बन्ध होता
है, परन्तु साहचर्य को देखने की कामना आप नहीं करते हैं, आप तो
उसका आनन्द उठाते हैं।”
गिलफोर्ड ने सृजनात्मकता के तत्त्व निम्न प्रकार के बताए हैं
• तात्कालिक स्थिति से परे जाने की योग्यता जो व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों
से हटकर, उससे आगे की सोचता है और अपने चिन्तन को मूर्त रूप देता है,
उसमें सृजनात्मक तत्व पाया जाता है।
• समस्या की पुनर्व्याख्या सृजनात्मकता का एक तत्त्व समस्या की
पुनर्व्याख्या है।
• सामंजस्य जो बालक तथा व्यक्ति असामान्य, किन्तु प्रासंगिक विचार तथा तथ्यों
के साथ समन्वय स्थापित करते हैं वे सृजनात्मक कहलाते हैं।
• अन्य के विचारों में परिवर्तन ऐसे व्यक्तियों में भी सृजनात्मकता विद्यमान
रहती है, जो तर्क, चिन्तन तथा प्रमाण द्वारा दूसरे व्यक्तियों के विचारों में
परिवर्तन कर देते हैं।
15.2.1 सृजनशील बालकों की पहचान
• सृजनशील बालकों में मौलिकता के तत्त्व पाए जाते हैं। सृजनशील बालकों का
दृष्टिकोण सामान्य व्यक्तियों से अलग होता है।
• स्वतन्त्र निर्णय क्षमता सृजनशीलता की पहचान है, जो व्यक्ति किसी समस्या के
प्रति निर्णय लेने में स्वतन्त्र होता है, तो ऐसा माना जाता है कि उस
बालक/व्यक्ति में सृजनात्मक गुणों का विकास हो रहा है।
• हंसमुख प्रवृत्ति भी सृजनात्मकता की पहचान है। सृजनात्मक बालकों में
हंसी-मजाक की प्रवृत्ति पाई जाती है। उत्सुकता भी सृजनात्मकता का एक
आवश्यक तत्त्व है।
• सृजनशील बालकों में संवेदनशीलता अधिक पाई जाती है।
• सृजनशील बालकों में स्वायत्तता (Autonomy) का भाव पाया जाता है।
15.2.2 सृजनात्मकता का परीक्षण
सृजनात्मकता की पहचान के लिए निरन्तरता, लोचनीयता (Flexibility),
मौलिकता तथा विस्तार का मापन एवं परीक्षण किया जाता है।
सृजनात्मकता से सम्बन्धित प्रमुख परीक्षण निम्न प्रकार है
पड़ता है।
1. चित्रपूर्ति परीक्षण इस परीक्षण में अपूर्ण चित्रों को पूरा करना
पड़ता है।
2. उत्पाद सुधार कार्य चूने के खिलौनों द्वारा विचारों को लेखबद्ध
करके सृजनात्मकता पर बल दिया जाता है।
3. वृत्त परीक्षण इस परीक्षण में वृत्त में चित्र बनाए जाते है।
4. टीन के डिब्बे खाली डिब्बों से नवीन वस्तुओं का सृजन कराया
जाता है।
15.2.3 सृजनात्मकता का विकास
शिक्षक को चाहिए कि बालकों में सृजनात्मकता का विकास
(Development of Creativity) करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें
1. तथ्यों का अधिगम (Learning of Facts) समस्या को हल करने
में कौन-कौन-से तथ्यों को सिखाया जाए, शिक्षक को इस बात का
ध्यान रखना चाहिए
2. मौलिकता (Fundamentality) शिक्षक को चाहिए कि वह तथ्यों
के आधार पर मौलिकता के दर्शन कराए।
3. मूल्यांकन (Evaluation) बालकों में अपना मूल्यांकन स्वयं करने
की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।
4. समस्या के स्तरों की पहचान (Indentifying the Stages of
Problem) समस्या के स्तरों को पहचानकर उसे दूर करना चाहिए।
5. जाँच (Testing) बालकों में जाँच करने की कुशलता का अर्जन
कराया जाए।
6. पाठ्य-सम्बन्धी क्रियाएँ (Teaching Related Activities)
विद्यालय में बुलेटिन बोर्ड, मैग्जीन, पुस्तकालय, वाद-विवाद,
खेल-कूद, स्काउटिंग, एनसीसी आदि क्रियाओं द्वारा नवीन
उद्भावनाओं का विकास करना चाहिए।
15.2.4 सृजनशील बालकों की शिक्षा
• अध्यापक को विद्यालय में सृजनशील बालकों की पहचान करनी
चाहिए ताकि उनकी योग्यता एवं क्षमता का सर्वांगीण विकास हो सके
तथा इसका लाभ समाज को मिल सके।
• अध्यापकों को स्वयं सृजनशील बालकों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य
करना चाहिए अर्थात् उच्च नैतिक स्तर, ईमानदारी, मानवता, समानता
इत्यादि का गुण प्रस्तुत करना चाहिए।
• अध्यापक को सृजनशील कार्य के माध्यम से बालकों के सामने
उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, इससे बालकों के अन्दर छिपे हुए
सृजनात्मक विचार उभरकर सामने आएँगे।
• अध्यापक छात्रों के समक्ष ऐसी समस्या उत्पन्न करे, जो बिल्कुल
नवीन हो, इससे छात्र समस्या के समाधान में सृजनात्मक सोच का
उपयोग करेंगे।
• अध्यापकों को छात्रों को सृजनशील बनाने के लिए विषयवस्तु के अलावा
निबन्ध प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता, नाटक प्रतियोगिता, खेल
प्रतियोगिता इत्यादि का समय-समय पर आयोजन करना चाहिए।
• विभिन्न क्षेत्रों के महान् अन्वेषकों/खोजकर्ता के जीवन परिचय के
साथ-साथ उनके व्यक्तिगत जीवन में घटित विशेष तथा सार्थक घटनाओं
के बारे में छात्रों को बताना चाहिए, जिससे कि उन्हें प्रेरणा मिले;
जैसे-थॉमस आल्वा एडीसन, न्यूटन, डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, जगदीश
चन्द्र बोस इत्यादि।
15.3 पिछड़े बालक एवं उनकी पहचान
ऐसे छात्र, जो अपनी आयु वर्ग के अन्य छात्रों की अपेक्षा बहुत कम शैक्षिक
उपलब्धि प्राप्त करते हैं, पिछड़े बालक की श्रेणी में आते हैं। बालकों के
पिछड़ेपन के कारण शारीरिक, मानसिक या परिवेशजनित हो सकते हैं। ऐसे
बालकों की शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था किए जाने की आवश्यकता
होती है।
बालक के पिछड़ेपन की रोकथाम करने से पहले इसके लिए उत्तरदायी
कारणों का पता लगाया जाना आवश्यक है। बुद्धि परीक्षणों, उपलब्धि
परीक्षणों, बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों, शारीरिक क्षमताओं और कुशलताओं,
बालक के शैक्षणिक इतिहास इत्यादि द्वारा बालक के पिछड़ेपन के कारणों का
पता लगाया जा सकता है।
• पिछड़े बालकों के लिए विशेष स्कूल एवं कक्षाओं की व्यवस्था करनी
चाहिए। पाठ्यक्रम के अतिरिक्त उनके लिए पाठ्यक्रम-सहगामी क्रियाओं
की भी व्यवस्था करनी चाहिए। पिछड़े बालकों के लिए कभी-कभी विशेष
प्रकार के पाठ्यक्रमों की भी आवश्यकता पड़ती है।
• मनोवैज्ञानिकों की सहायता से भी बालकों के पिछड़ेपन को दूर करने में
सहायता मिलती है।
• पिछड़े बालकों को हस्तशिल्प (Handicraft) जैसे कार्यों की शिक्षा देकर
उनका आत्मविश्वास बढ़ाया जाता है। इससे उन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर
बनने में सहायता मिलती है।
• पिछड़े बालकों की पहचान सामूहिक परीक्षण, उपलब्धि परीक्षण एवं
व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण के जरिए की जा सकती है।
15.3.1 पिछड़े बालकों की विशेषताएँ
पिछड़े बालकों की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics) निम्न हैं
• सीखने की धीमी गति
• जीवन में निराशा का अनुभव
• समाज-विरोधी कार्यों की प्रवृत्ति
• व्यवहार-सम्बन्धी समस्याओं की अभिव्यक्ति
• जन्मजात योग्यताओं की तुलना में कम शैक्षिक उपलब्धि
• सामान्य विद्यालय के पाठ्यक्रम से लाभ उठाने में असमर्थता
• सामान्य शिक्षण-विधियों द्वारा शिक्षा ग्रहण करने में विफलता
• मानसिक रूप से अस्वस्थ और असमायोजित व्यवहार
• अपनी और उससे नीचे की कक्षा का कार्य करने में असमर्थता
15.4 मन्द-बुद्धि बालक
मन्द-बुद्धि बालक (Mentally Retarted Child) वे होते है, जिनके मस्तिष्क
और बुद्धि इतने कम विकसित होते है कि उनमें मानसिक क्षमताएँ कम
विकसित हो पाती है और उन्हें पढ़ने-लिखने व समायोजन करने में कठिनाई
होती है। ऐसे बालकों की सीखने की गति भी मन्द होती है।
मन्द-बुद्धि अर्थात् मानसिक पिछड़ेपन के कई कारण हो सकते है। इसका
प्रमुख कारण सामान्यतः आनुवंशिक गुण हो सकता है। इसके अतिरिक्त
मस्तिष्क में कमियों के आ जाने से भी मानसिक दोष हो सकता है।
कभी-कभी पारिवारिक पिछड़ेपन एवं सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ भी
बालक के मानसिक रूप से पिछड़े होने का कारण होती है।
मन्द बुद्धि बालकों की शिक्षा के लिए अध्यापकों को विशेष ध्यान देने की
आवश्यकता होती है। इस कार्य में बालक के माता-पिता की भूमिका भी
अहम् होती है। सामान्य स्कूलों में इनकी देख-रेख सम्भव नहीं होती, इसलिए
ऐसे बालकों के लिए विशेष प्रकार के स्कूलों एवं अस्पतालों की भी व्यवस्था
होती है। सामान्य बालकों के पाठ्यक्रम इनकी मानसिक योग्यताओं के अनुकूल
नहीं होता। अत: इनके लिए विशेष प्रकार के पाठ्यक्रम की आवश्यकता होती है।
15.5 समस्यात्मक बालक
समस्यात्मक बालक (Problematic Child) उस बालक को कहते हैं, जिसके
व्यवहार में कोई ऐसी असामान्य बात होती है, जिसके कारण वह समस्या
उत्पन्न करता है; जैसे―चोरी करना, झूठ बोलना आदि।
वेलेन्टाइन के अनुसार, “समस्यात्मक बालक शब्द का प्रयोग साधारणत:
उन बालकों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिनका व्यवहार या
व्यक्तित्व किसी बात में गम्भीर रूप से असामान्य होता है।”
समस्यात्मक बालकों के प्रकार
समस्यात्मक बालकों के कई प्रकार होते हैं; जैसे-चोरी करने वाले, झूठ
बोलने वाले, क्रोध करने वाले, एकान्त पसन्द करने वाले, मित्र बनाना पसन्द
न करने वाले, आक्रमणकारी व्यवहार करने वाले, विद्यालय से भाग जाने
वाले, भयभीत रहने वाले, छोटे बालकों को तंग करने वाले, गृह-कार्य न
करने वाले, कक्षा में देर से आने वाले आदि।
1. चोरी करने वाले बालक
चोरी करने वाले बालकों (Picker Children) में इस आदत के विकास के
कई कारण हो सकते हैं; जैसे-अज्ञानता, वांछित वस्तु को अन्य विधि से
प्राप्त करने से अपरिचित, उच्च स्थिति की इच्छा, माता-पिता की अवहेलना,
साहस दिखाने की भावना, आत्म-नियन्त्रण का अभाव, चोरी की आदत,
आवश्यकताओं की पूर्ति न होना आदि। चोरी करने वाले बालकों के उपचार
हेतु आवश्यक कदम
(i) बालक पर चोरी का दोष कभी नहीं लगाना चाहिए।
(ii) बालक में आत्म-नियन्त्रण की भावना का विकास करना चाहिए।
(iii) बालक को उचित और अनुचित कार्यों में अन्तर बताना चाहिए।
(iv) बालक की उसके माता-पिता से द्वारा अवहेलना नहीं की जानी चाहिए।
(v) बालक की सभी उचित आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए।
(vi) बालक को विद्यालय में व्यय करने के लिए कुछ रुपये अवश्य देना
चाहिए।
(vii) बालक को खेल-कूद और अन्य कार्यों में अपने साहस की भावना को
व्यक्त करने का अवसर देना चाहिए।
(viii) बालक को यह शिक्षा देनी चाहिए कि, जो वस्तु जिसकी है, उस पर उसी
का अधिकार है। दूसरे शब्दों में, उसको अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का
सम्मान करने की शिक्षा देनी चाहिए।
2. झूठ बोलने वाले बालक
झूठ बोलने वाले बालकों में इसके कई कारण हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं
(i) मनोविनोद बालक कभी-कभी मनोविनोद या मजा लेने के लिए झूठ
बोलता है।
(ii) दुविधा बालक कभी-कभी किसी बात को स्पष्ट रूप से न समझ सकने
के कारण दुविधा में पड़ जाता है और अनायास झूठ बोल जाता है।
(iii) मिथ्याभिमान किसी बालक में मिथ्याभिमान की भावना बहुत अधिक
बलवती होती है। अत: वह उसे व्यक्त और सन्तुष्ट करने के लिए झूठ
बोलता है। वह अपने साथियों को अपने बारे में ऐसी-ऐसी बातें सुनाता है,
जो उसने कभी नहीं की है।
(iv) प्रतिशोध बालक अपने शत्रु से बदला लेने के लिए उसके बारे में झूठी
बातें फैलाकर उसको बदनाम करने की कोशिश करता है।
(v) स्वार्थ बालक कभी-कभी अपने स्वार्थों के कारण झूठ बोलता है। यदि
वह गृहकार्य करके नहीं लाया है, तो वह दण्ड से बचने के लिए कह देता
है कि मेरी तबीयत खराब हो गई थी।
(vi) वफादारी कोई बालक अपने मित्र, समूह आदि के प्रति इतना वफादार
होता है कि वह झूठ बोलने में तनिक भी संकोच नहीं करता है। यदि
उसके मित्र की तोड़-फोड़ करने की प्रधानाचार्य से शिकायत होती है, तो
वह इस बात की झूठी गवाही देता है कि उसका मित्र वहाँ मौजूद नहीं था।
(vii) भय कठोर दण्ड का भय, समूह में प्रतिष्ठा खोने का भय आदि के कारण
भी बालक झूठ बोलता है।
बालक की झूठ बोलने की आदत को छुड़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए
जा सकते हैं, जो इस प्रकार हैं
(i) बालकों को यह बताना चाहिए कि झूठ बोलने से कोई लाभ नहीं होता है।
(ii) बालकों में नैतिक साहस की भावना का अधिकतम विकास करने का
प्रयत्न करना चाहिए।
(iii) बालक में सोच-विचार कर बोलने की आदत का निर्माण करना चाहिए।
(iv) बालक से बात न करके, उसकी अवहेलना करके और उसके प्रति
उदासीन रहकर उसे अप्रत्यक्ष दण्ड दिया जा सकता है।
(v) बालक पर वातावरण एवं समाज का भी कुप्रभाव पड़ता है, इसलिए
उसकी पृष्ठभूमि को जानकर उसे सुधारने के उपाय किए जाने चाहिए।
(vi) सत्य बोलने वाले बालक की निर्भीकता (बिना भय के) और उसके
नैतिक साहस की प्रशंसा की जानी चाहिए।
3. क्रोध करने वाले बालक
क्रोध आक्रमणकारी व्यवहार द्वारा व्यक्त किया जाता है।
क्रुद्ध बालक के आक्रमणकारी व्यवहार के कुछ मुख्य स्वरूप है मारना,
पीटना, काटना, नोंचना, चिल्लाना, खरोचना, वस्तुओं को इधर-उधर फेंकना,
गाली देना, व्यंग्य करना, स्वयं अपने शरीर को नुकसान पहुँचाना आदि।
क्रोध आने के कई कारण हो सकते हैं
(i) उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा
(ii) खेल, कार्य या इच्छा में विघ्न पड़ना
(iii) किसी विशेष स्थान पर जाने से रोका जाना
(iv) किसी वस्तु का छीन लिया जाना
(v) किसी बात से निराश होना
(vi) अस्वस्थ या रोगग्रस्त होना
15.6 बाल अपराधी
कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता, परिस्थितियाँ उसे ऐसा करने
के लिए विवश कर देती हैं। कभी-कभी बालकों को यह पता भी नहीं होत
कि जो वह कर रहे हैं वह गैर-कानूनी कार्य है। ऐसे कार्यों को अपराधों के
श्रेणी में नहीं रखा जाता है। बाल-अपराध (Child Crime) की श्रेणी में
वैसे कार्य आते हैं, जो गैर-कानूनी तो होते ही हैं साथ में बच्चों द्वारा
जान-बूझकर किए जाते हैं।
धूम्रपान करना, लड़ना-झगड़ना, चोरी करना, माता-पिता की बात न मानना,
झूठ बोलना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना, बुरी संगति में रहना, दूसरों को
सताना, यौन सम्बन्धों को लेकर आक्रामक होना, विद्यालय के संसाधनों को
क्षति पहुंचाना, दीवारों पर अभद्र शब्दों को लिखना, विद्यालय से भागकर
कहीं घूमने या सिनेमा देखने जाना इत्यादि बाल-अपराध के उदाहरण हैं।
पारिवारिक, सामाजिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक इन पाँच
कारणों से सामान्यत: बच्चे आपराधिक प्रवृत्तियों वाले हो जाते हैं।
बाल-अपराध की रोकथाम एवं उपचार
बालकों में बढ़ते अपराध को रोकने के लिए माता-पिता, शिक्षकों एवं
मनोचिकित्सकों का सहयोग लिया जाता है। बाल-अपराध की रोकथाम के
लिए अन्य उपचार निम्न हैं
• माता-पिता की अपने बच्चे को सुधारने में मुख्य भूमिका होती है। उन्हें
अपने बच्चों को सुधारने के लिए उनके साथ सहानुभूतिपूर्ण एवं
सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए। कुछ माता-पिता अपने बच्चे को
कोसते रहते हैं। माता-पिता को ऐसे कार्यों से बचना चाहिए एवं बच्चे के
अनुकूल परिवार का वातावरण बनाए रखना चाहिए।
• बालकों के सुधार के लिए सरकार द्वारा भी प्रयास किए जाते हैं। बालको
के साथ मनोवैज्ञानिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए न्याय करने के
लिए किशोर न्यायालय की व्यवस्था है। बाल अपराधियों को कारागार में
नहीं भेजा जाता, बल्कि उन्हें सुधरने का मौका देने के लिए बाल-सुधार
गृह में भेजा जाता है।
• मनोचिकित्सकों द्वारा बाल-अपराधियों को सुधारने में अत्यधिक
सहायता मिलती है। इसमें बालकों के व्यवहार एवं उनकी मनोवृत्तियों
का अध्ययन कर, उनके द्वारा किए जाने वाले अपराधों के कारणों
का पता लगाया जाता है एवं इसके बाद उनका आवश्यक उपचार
किया जाता है।
                                          अभ्यास प्रश्न
1. विशिष्ट बालक वह होता है, जो
(1) शारीरिक रूप से औसत से विशिष्ट हो
12) मानसिक रूप से औसत से विशिष्ट हो
(3) सामाजिक रूप से औसत से विशिष्ट हो
(4) मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और
संवेगात्मक रूप से औसत से विशिष्ट हो।
2. प्रतिभाशाली बालक वह होता है, जो
(1) सामान्य बालकों से भिन्न हो
(2) सामान्य बालकों के जैसा हो
(3) मन्द बुद्धि का हो
(4) उपरोक्त सभी
3. विशिष्ट बालकों के अन्तर्गत निम्न में से
कौन-सा बालक आता है?
(1) पिछड़ा बालक
(2) प्रतिभाशाली बालक
(3) मन्द बुद्धि बालक
(4) ये सभी
4. प्रतिभाशाली छात्रों की पहचान की जा
सकती है
(1) केवल बुद्धि, परीक्षण के द्वारा
(2) केवल उपलब्धि परीक्षण के द्वारा
(3) केवल अभिरुचि परीक्षण के द्वारा
(4) उपरोक्त सभी के द्वारा
5. प्रतिभाशाली बालक की विशेषता है
(1) सामान्य अध्ययन में रुचि
(2) दैनिक कार्यों में समरूपता
(3) मन्द-बुद्धि बालकों में रुचि
(4) मूर्त विषयों में रुचि
6. प्रतिभाशाली बालकों में निम्न विशेषता
होती है
(1) अधिक महत्त्वाकांक्षा
(2) बुद्धि-लब्धि 110 से अधिक
(3) विस्तृत शब्दकोष
(4) उपरोक्त सभी
7. आपकी कक्षा के कुछ छात्र अति मेधावी हैं,
आप उन्हें किस तरह पढ़ाएंगे?
(1) कक्षा के साथ
(2) उच्च कक्षा के साथ
(3) समृद्धिकरण कार्यक्रमों के द्वारा
(4) जब वे चाहें
8. ‘प्रतिभाशाली बालकों के लिए शिक्षा का
सफल कार्यक्रम वही हो सकता है, जिसका
उद्देश्य उनकी विभिन्न योग्यताओं का
विकास करना हो।” प्रतिभाशाली बालकों के
शिक्षा के सन्दर्भ में यह कथन किसका है?
(1) क्रो एण्ड क्रो
(2) बी. एफ स्किनर
(3) वाइगोत्स्की
(4) हेविगहस्ट्र
9. “अनिवार्य रूप से किसी नई वस्तु का
सृजन करना ही सृजनात्मकता है।”
सृजनात्मकता के सन्दर्भ में यह कथन किस
मनोवैज्ञानिक का है?
(1) जेम्स ड्रेवर
(3) फ्रोबेल
(2) पियाजे
(4) वुडवर्थ
10. साहचर्यवाद, अन्तः दृष्टिवाद एवं
अस्तित्ववाद का सम्बन्ध निम्न में से
किससे है?
(1) सृजनात्मकता से
(2) परम्परा से
(3) समावेशी विकास से
(4) उपरोक्त में से किसी से नहीं
11. पिछड़ा बालक वह बालक होता है
(1) जो अपनी आयु वर्ग के अन्य छात्रों की अपेक्षा
बहुत कम शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त करता हो।
(2) जो अपनी आयु वर्ग के अन्य छात्रों की अपेक्षा
अधिक शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त करता हो।
(3) जो अपनी आयु वर्ग के अन्य छात्रों के समान
शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त करता हो।
(4) उपरोक्त सभी
12. पिछड़े बालकों की पहचान निम्न में से
किस परीक्षण के द्वारा की जा सकती है?
(1) सामूहिक परीक्षण
(2) उपलब्धि परीक्षण
(3) व्यक्तिगत बुद्धि-परीक्षण
(4) उपरोक्त सभी के द्वारा
13. जन्मजात योग्यताओं की तुलना में कम
शैक्षिक उपलब्धि होती है
(1) प्रतिभाशाली बालक की
(2) हाथ-पैर से विकलांग बालक की
(3) पिछड़े बालक की
(4) उपरोक्त सभी की
14. अपनी देखभाल के प्रशिक्षण की
आवश्यकता किस बालक को होती है?
(1) प्रतिभाशाली बालक
(2) मन्द-बुद्धि बालक
(3) पिछड़ा बालक
(4) इनमें से कोई नहीं
15. समस्यात्मक बालक है
(1) झूठ बोलने वाला
(2) चोरी करने वाला
(3) माता-पिता का कहना न मानने वाला
(4) उपरोक्त सभी
16. चोरी करने वाले बालकों के उपचार हेतु
निम्न में से क्या कदम उठाना चाहिए?
(1) बालकों में आत्म नियन्त्रण की भावना का
विकास हो
(2) बालकों को उचित तथा अनुचित के बीच
अन्तर बताना चाहिए
(3) बालकों को बताना चाहिए कि चोरी एक
सामाजिक बुराई है
(4) उपरोक्त सभी
17. सामान्यतया बालक जल्दी क्रोधित होते हैं
इसका कारण
A. लक्ष्य प्राप्ति में बाधा
B. किसी विशेष स्थान पर जाने से उन्हें
मना करना
C. किसी बात से निराश होना
D. अस्वस्थ होना
(1)A और B
(2) Bऔर D
(3) C और D
(4) ये सभी
18. अपराधी बालक कौन होते है?
(1) जो असामाजिक कार्य करते हैं
(2) जो शिक्षक के लिए सिरदर्द होते हैं
(3) जो कक्षा में अब्बल आते हैं
(4) जो समाज में रहना पसन्द नहीं करते हैं
19. बाल अपराध वर्तमान समय की प्रमुख समस्या
बनी हुई है। आज-कल दिन-प्रतिदिन बाल
अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं इसके पीछे
कौन-सा/से कारक जिम्मेदार हो सकता है/है?
A. पारिवारिक कारक
B. सामाजिक कारक
C. मनोवैज्ञानिक कारक
D. सामाजिक कारक
(1) A,Bऔर
(2) B,Cऔर D
(3) Cऔर D
(4) ये सभी
20. बाल अपराध को रोकने में निम्नलिखित में से
किसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी?
(1) केवल माता-पिता की
(2) केवल शिक्षक की
(3) केवल सरकार की
(4) इन सभी की
                  विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
21. ‘प्रतिभाशाली’ होने का संकेत नहीं है।
(1) सृजनात्मक विचार             [CTET June 2011]
(2) दूसरों के साथ झगड़ना
(3) अभिव्यक्ति में नवीनता
(4) जिज्ञासा
22. निम्न में से कौन-सा बुद्धिमान बच्चे का
लक्षण नहीं है?                      [CTET June 2011]
(1) वह, जो लम्बे निबन्धों को बहुत जल्दी रटने की
क्षमता रखता है
(2) वह, जो प्रवाहपूर्ण एवं उचित तरीके से सम्प्रेषण
करने की क्षमता रखता है
(3) वह, जो अमूर्त रूप से सोचता रहता है
(4) वह, जो नये परिवेश में स्वयं को समायोजित
कर सकता है
23. निम्न में से कौन-सा शिक्षार्थियों में
सृजनात्मकता का पोषण करता है?
                                                [CTET June 2012]
(1) अच्छी शिक्षा के व्यावहारिक मूल्यों के लिए
विद्यार्थियों का शिक्षण
(2) प्रत्येक शिक्षार्थी की अन्तर्जात प्रतिभाओं का
पोषण करने एवं प्रश्न करने के अवसर उपलब्ध
कराना
(3) विद्यालयी जीवन के प्रारम्भ से उपलब्धि के
लक्ष्यों पर बल देना
(4) परीक्षा में अच्छे अंकों के लिए विद्यार्थियों की
कोचिंग करना
24. प्रतिभाशाली विद्यार्थी         [CTET Nov 2012]
(1) स्वभाव के अन्तर्मुखी होते हैं
(2) अपनी आवश्यकताओं को दृढ़तापूर्वक नहीं कह
पाते
(3) अपने निर्णयों में आत्मनिर्भर होते हैं
(4) शिक्षकों से स्वतन्त्र होते हैं
25. प्रतिभाशाली शिक्षार्थी (को)
                                          [CTET July 2013]
(1) अधिगम-निर्योग्य नहीं कर सकते
(2) ऐसे सहयोग की आवश्यकता होती है, जो
सामान्यतः विद्यालयों द्वारा उपलब्ध नहीं कराए
जाते
(3) शिक्षक के बिना अपने अध्ययन को व्यवस्थित
कर लेते हैं
(4) अन्य शिक्षार्थियों के लिए अच्छे मॉडल बन
सकते हैं।
26. …………… के कारण प्रतिभाशालिता होती है।
(1) मनो-सामाजिक कारकों       [CTET July 2013]
(2) आनुवंशिक रचना
(3) वातावरणीय अभिप्रेरणा
(4) ‘2’ और ‘3’ का संयोजन
27. निम्नलिखित में से प्रतिभाशाली
अधिगमकर्ताओं के लिए क्या समुचित है?
                                                  [CTET Feb 2014]
(1) वे अन्यों को भी कुशल-प्रभावी बनाते हैं तथा
सहयोगी अधिगम के लिए आवश्यक हैं
(2) वे सदैव अन्यों का नेतृत्व करते हैं और कक्षा में
अतिरिक्त उत्तरदायित्व ग्रहण करते हैं
(3) अपनी उच्चस्तरीय संवेदनात्मकता के कारण वे
भी निम्न श्रेणी पा सकते हैं
(4) बुनियादी तौर पर उनकी मस्तिष्कीय शक्ति के
कारण ही उनका महत्व है
28. प्रवाहपूर्णता, व्याख्या, मौलिकता और
लचीलापन …………… के साथ सम्बन्धित तत्त्व हैं।
                                                       [CTET Sept 2014]
(1) प्रतिभा
(2) गुण
(3) अपसारी चिन्तन
(4) त्वरण
29. प्रतिभाशाली शिक्षार्थियों को से जुड़े प्रश्नों पर अधिक समय देने के
लिए कहा जा सकता है।             [CTET Sept 2014]
(1) स्मरण
(2) समझ
(3) सृजन
(4) विश्लेषण
30. अध्यापक के दृष्टिकोण से प्रतिभाशालिता किसका संयोजन है?
                                                            [CTET Feb 2015]
(1) उच्च योग्यता-उच्च सृजनात्मकता-उच्च
वचनबद्धता
(2) उच्च प्रेरणा-उच्च वचनबद्धता-उच्च क्षमता
(3) उच्च योग्यता-उच्च क्षमता-उच्च वचनबद्धता
(4) उच्च क्षमता- उच्च सृजनात्मकता-उच्च स्मरण
शक्ति
31. इनमें से कौन-सी विशेषता प्रतिभाशाली बच्चों की नहीं है?
                                                                  [CTET Sept 2015]
(1) उच्च आत्म क्षमता
(2) निम्न औसतीय मानसिक प्रक्रियाएँ
(3) अन्तर्दृष्टिपूर्वक समस्याओं का समाधान करना
(4) उच्चतर श्रेणी की मानसिक प्रक्रियाएँ
32. बच्चे तब सर्वाधिक सृजनशील होते हैं,
वे किसी गतिविधि में भाग लेते हैं
                                             [CTET Feb 2016]
(1) शिक्षक की डाँट से बचने के लिए
(2) दूसरों के सामने अच्छा करने के दबाव में
आकर
(3) अपनी रुचि से
(4) पुरस्कार के लिए
33. निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता प्रतिभावान शिक्षार्थी की है?
                                                         [CTET Sept 2016]
(1) यदि कक्षा की गतिविधियाँ अधिक चुनौतीपूर्ण
नहीं होती हैं, तो वह कम प्रेरित अनुभव करता
है और ऊब जाता है।
(2) वह बहुत ही तुनकमिजाज होता है
(3) वह रस्मी व्यवहार करता है; जैसे-हाथ
थपथपाना, डोलना आदि।
(4) वह आक्रामक और कुण्ठित हो जाता है।
                                             उत्तरमाला
1. (4) 2. (1) 3. (4) 4. (4) 5. (1) 6. (4) 7. (3) 8. (4) 9. (1) 10. (1)
11. (1) 12. (4) 13. (3) 14. (2) 15. (4) 16. (4) 17. (4) 18. (1) 19. (4)
20. (4) 21. (1) 22. (2) 23. (2) 24. (3) 25. (2) 26. (4) 27. (3) 28. (1)
29. (3) 30. (1) 31. (2) 32. (3) 33. (3)
                                                      ★★★

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