प्रदूषण
प्रदूषण
प्रदूषण
प्रदूषण
◆ वातावरण में प्राकृतिक रूप से विद्यमान प्रत्येक घटक एक संतुलित वातावरण (Balanced Environment) बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है, किन्तु आज विकास के युग में इन घटकों की मात्रा और अनुपात में काफी बदलाव आया है। वातावरण में अनावश्यक तत्त्वों की वृद्धि तथा आवश्यक तत्त्वों की कमी ही प्रदूषण (Pollution) कहलाता है। प्रदूषक (Pollutants) दो प्रकार के होते हैं –
(i) जैव-क्षयकारी प्रदूषक (Biodegradable Pollutants) : ये वे प्रदूषक हैं जिन्हें प्रकृति में कुछ समय बाद सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटित कर दिया जाता है। जैसे- वाहितमल (Sewage), जैवीय अवशिष्ट पदार्थ एवं कूड़ा-करकट (Squalor) आदि । ध्यान रहे कि इन पदार्थों की एक सीमित मात्रा ही सूक्ष्म जीवधारियों ( कवक एवं जीवाणु) द्वारा अपघटित हो पाती है। जब इनका आधिक्य हो जाता है तो इनका अपघटन सूक्ष्म जीवधारियों द्वारा नहीं हो पाता और ये पदार्थ हमारे वातावरण में प्रदूषण फैलाने लगते हैं।
(ii) जैव-अक्षयकारी प्रदूषक (Non- Biodegradable Pollutants) : वे प्रदूषक, जिनका जैविक विघटन नही होता जैव-अक्षयकारी प्रदूषक कहलाते हैं। ये प्रदूषक कई साल तक प्रकृति में पड़े रहते हैं। जैसे- प्लास्टिक, डी. डी. टी. ( D.D.T. – Dichloro-Diphenyl Trichloroethance) एवं पारा (Mercury) आदि ।
प्रदूषण के प्रकार
1. वायु प्रदूषण (Air pollution ) : वायु प्रदूषण मुख्यतः कारखानों, उद्योगों के धुएँ, वाहनों के धुएँ तथा जेट विमानों द्वारा छोड़ी गयी गैसों आदि कारणों से होता है।
प्रमुख वायु प्रदूषक: काबर्न मोनोऑक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), शीशा (Pb), हाइड्रोजन फ्लूओराइड (HF), नाइट्रोजन के ऑक्साइड (NO तथा NO2), हाइड्रोकार्बन, अमोनियम (NH3). तंबाकू का धुँआ, पलूओराइड्स, धूल तथा धुएँ के कण, एरोसोल्स आदि ।
सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), सल्फरट्राईऑक्साइड (SO3), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO) वातावरणीय जल के साथ क्रिया करके सल्फ्यूरिक अम्ल (Sulphuric Acid) या सल्फ्यूरस अम्ल (Sulphurus Acid) तथा नाइट्रिक अम्ल (Nitric Acid) का निर्माण करते हैं। वर्षा जल के साथ ये अम्ल पृथ्वी पर आ जाते हैं, इसे ही अम्ल वर्षा (Acid Rain) कहते हैं।
नोट : मध्यप्रदेश के भोपाल में स्थित उर्वरक निर्माता कंपनी यूनियन कार्बाइड फैक्टरी में दिसंबर, 1984 ई. में हुई दुर्घटना मिथाइल आइसोसायनाइट (MIC) के कारण हुई थी।
◆ वायु प्रदूषण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेड (Ph) से तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी रोग होता है।
◆ कैडमियम (Cd) रक्त दाब बढ़ा देता है जिससे हृदय सम्बन्धी रोग होता है।
◆ सिलिका के कण लौह अयस्क के कण से मिलकर लोहे की खानों में काम करने वाले मजदूरों में लौह-सकितमयता रोग पैदा करते हैं। एक चौथाई खान श्रमिक इस रोग से पीड़ित होते हैं।
◆ स्मॉग (Smog) में हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड पाये जाते हैं। स्मॉग से फसलों को नुकसान पहुँचता है।
◆ ओजोन (O3) गैस सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet-rays) को पृथ्वी पर आने से रोकती है। पराबैंगनी किरणें जीवों के लिए घातक होती हैं, किन्तु वैज्ञानिक खोजों से पता चला है कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन स्तर में छिद्र हो गया है। ओजोन छिद्र का मुख्य कारण क्लोरो फ्लोरोकार्बन या सीएफसी (Chlorofloro Carbons या CFCs) है जो रेफ्रीजरेटर, एयर कंडीशन आदि में प्रयोग की जाती है।
◆ मथुरा तेल- शोधक कारखाने से निकलने वाली सल्फ्यूरिक ऑक्साइड (SO2) गैस से आगरा का ताजमहल धूमिल पड़ता जा रहा है।
2. जल प्रदूषण (Water Pollution ) : जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं- वाहितमल (Sewage), औद्योगिक त्याज्य, घरेलू अपमार्जक (Domestic Detergents), हानिकारक वनस्पतियाँ, खाद, खरपतवारनाशी (Herbicides), कीटनाशी (Pesticides), रेडियोधर्मी पदार्थ (Radioactive Substance) इत्यादि ।
◆ उद्योगों से निकले प्रदूषकों में शीशा, पारा, ताँबा, जस्ता, सल्फाइड आदि होते हैं, जो जल को विषाक्त बनाते हैं। जापान में पारे (Mercury) के कारण ‘मिनामता’ (Minamata) नामक रोग होता है।
नोट : पृथ्वी पर उपलब्ध जल की मात्रा का केवल 2.5-3% ही स्वच्छ है।
3. मृदा प्रदूषण (Soil Pollution): खेतों में खरपतवार नष्ट करने वाले खरपतवारनाशी (Herbicides), कवकनाशी (Fungicides), कीटनाशी ( Insecticides), चूहामारक (Rodenticides ) तथा उर्वरक इत्यादि के अवशेष मृदा प्रदूषण बढ़ाते हैं।
4. ध्वनि प्रदूषण (Sound Pollution): सामान्य वार्तालाप का शोर-मूल्य 60 डेसीबल होता है। लेकिन अकसर गाड़ियों के तेज हार्न, हवाई जहाज का शोर इत्यादि ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
◆ अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार ध्वनि 45 डेसीबल होनी चाहिए।
5. नाभिकीय प्रदूषण (Nuclear Pollution) : यह प्रदूषण रेडियोएक्टिव किरणों से उत्पन्न होता है।
◆ रेडियोएक्टिव (Radio-active) प्रदूषण के स्रोत निम्नलिखित है-
(i) चिकित्सा के क्षेत्र में उपयोग होने वाली किरणों से प्राप्त प्रदूषण।
(ii) परमाणु भट्टियों में प्रयुक्त होने वाले ईंधन से उत्पन्न प्रदूषण ।
(iii) नाभिकीय शस्त्रों के उपयोग से उत्पन्न प्रदूषण।
(iv) परमाणु बिजलीघरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों से उत्पन्न प्रदूषण
(v) शोध कार्यों में प्रयुक्त रेडियोधर्मी पदार्थों से उत्पन्न प्रदूषण |
(vi) सूर्य की पराबैंगनी किरणों से उत्पन्न प्रदूषण।
प्रदूषण नियन्त्रण
◆ प्रदूषण रोकने के लिए गंदे जल को नदियों में प्रवाहित नहीं करना चाहिए।
◆ वाहितमल (Sewage) को सीवेज ट्रीटमेंट (Sewage Treatment ) से शुद्ध करना चाहिए।
◆ वाहनों का रखरखाव उचित ढंग से किया जाये जिससे वे अधिक धुँआ न दें।
◆ उद्योगों में जहाँ कोयला जलाया जाता है, धुएँ को फिल्टर करके निकालना चाहिए।
◆ कीटनाशी (Insecticides) के उपयोग पर नियन्त्रण करना चाहिए।
◆ अधिक वन लगाने चाहिए जिससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी नहीं हो और कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की अधिकता न हो।
◆ भारत सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा कानून (1986) में बनाया है, उसे सही ढंग से लागू किया जाये।
◆ संयुक्त राष्ट्र ने विश्व में पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nation Environment Programme UNEP) की स्थापना की है।
◆ पर्यावरण के प्रति जागरूकता हेतु प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।