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फ्रांस की पुरातन व्यवस्था

फ्रांस की पुरातन व्यवस्था
अमेरिकी स्वातंत्र्य संग्राम के अतिरिक्त 18वीं शताब्दी में फ्रांस की क्रांति भी हुई। इस क्रांति का भी व्यापक प्रभाव पड़ा। फ्रांस में राजशाही समाप्त कर दी गई, यद्यपि यह व्यवस्था थोड़े समय के लिए ही चली। अमेरिका जैसे स्थायी गणतंत्र की स्थापना फ्रांस में नहीं हो सकी। लेकिन, फ्रांसीसी क्रांति में स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व (Liberty, Equality and Fraternity) की जिस भावना का विकास हुआ उसने विश्व के अन्य राष्ट्रों को भी प्रभावित किया।

फ्रांस की पुरातन व्यवस्था

1789 के पूर्व फ्रांस में जो स्थिति व्याप्त थी उसे पुरातन व्यवस्था या प्राचीन शासन-व्यवस्था (Old Regime or Ancien Regime) के नाम से जाना जाता है। यद्यपि 18वीं शताब्दी में फ्रांस विशाल साम्राज्य का स्वामी और शक्तिशाली राज्य था तथा अन्य यूरोपीय राज्यों से इसकी स्थिति बेहतर थी, परंतु आंतरिक रूप से यह खोखला हो चुका था। इस समय सामंती व्यवस्था का बोलबाला था। समाज तीन वर्गों या इस्टेट्स में विभक्त था- (i) कुलीन वर्ग, (ii) पादरी वर्ग तथा (iii) साधारण वर्ग। इनमें
प्रथम दो वर्ग जनसंख्या में कम होने पर भी प्रभावशाली और विशेषाधिकार प्राप्त थे। वर्ग के अंदर भी वर्ग थे। फ्रांस में वूर्वो
(Bourbon) राजवंश का शासन था। राजा अनियंत्रित सत्ता का स्वामी और स्वेच्छाचारी था। फ्रांस में प्रतिनिधि संस्थाओं का
सर्वथा अभाव था। यद्यपि इस्टेट्स जेनरल (Estates General) नामक प्रतिनिधि सभा थी तथापि 1614 के बाद इसकी बैठक ही
नहीं हुई थी। राज्य में कानूनी एकरूपता का सर्वथा अभाव था।
राजा की इच्छा ही कानून थी, उसे चुनौती नहीं दी जा सकती थी। राजा और उसके कुलीन ऐश-आराम की जिंदगी व्यतीत करते थे। चर्च भी राज्य में अत्यंत प्रभावशाली संस्था थी। जनसंख्या का लगभग 90 प्रतिशत किसानों का था, परंतु 60 प्रतिशत भूमि पर कुलीन, चर्च और बड़े भूस्वामियों का ही अधिकार था। कुलीन और चर्च कर नहीं देते थे, करों का सारा बोझ साधारण जनता पर ही था। क्रांति के पूर्व फ्रांस की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई। जनसंख्या वृद्धि ने अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दी। अनाज के उत्पादन में कमी के कारण इसकी आपूर्ति कम हो गई। अतः अनाज, विशेषतः पावरोटी जो जनसाधारण का भोजन था, की कीमत में अप्रत्याशित उछाल आई। महँगाई से कारखानों में काम करनेवाले श्रमिकों की स्थिति और अधिक खराब हो गई। श्रमिकों को मिल-मालिक बढ़ी हुई महँगाई-दर से मजदूरी नहीं देते थे,
अतः उनकी स्थिति दयनीय होती गई। सूखे या ओले जैसे प्राकृतिक संकटों से फसल नष्ट होने पर और भी मुश्किलें बढ़ीं।
इससे लोगों के सामने “जीविका का संकट” उत्पन्न हो गया। व्यापारियों और सौदागरों पर भी अनेक पाबंदियाँ थीं। गिल्ड
(व्यापारिक संगठन) और प्रांतीय तथा स्थानीय कानून अबाध रूप से व्यापार की प्रगति नहीं होने देते थे। जिस प्रकार देश में कानून की एकरूपता का अभाव था तथा देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के कानून प्रचलित थे, उसी प्रकार स्थान-स्थान पर व्यापारिक नियम और चुंगी बदलते रहते थे। समाज में इस समय एक नए सामाजिक वर्ग-मध्यम वर्ग-का भी उदय हो रहा
था। यह वर्ग जन्मजात विशेषाधिकारों का विरोधी एवं समानता और स्वतंत्रता का हिमायती था। इनके विचारों से जनमानस
प्रभावित हो रहा था।
1774 में सम्राट लुई सोलहवाँ के सिंहासनारूढ़ होने के समय फ्रांस की आर्थिक स्थिति दयनीय थी। अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था
के कारण आर्थिक स्थिति लचर थी। राजकीय आय और राजा की व्यक्तिगत आय में कोई अंतर नहीं था। आय-व्यय का
लेखा-जोखा नहीं रखा जाता था। अधिकांश धन राजपरिवार के सदस्यों, कुलीनों तथा सामंतों के भोग-विलास पर खर्च होता था।
अमेरिकी स्वातंत्र्य संग्राम में अमेरिका की सैनिक सहायता करने के कारण फ्रांस पर करीब दस अरब लिने (फ्रांसीसी मुद्रा) का
कर्ज चढ़ गया था। इसपर उसे ब्याज भी बहुत अधिक देना पड़ रहा था। कुल मिलाकर प्राचीन शासन-व्यवस्था में स्थिति
भयावह रूप धारण कर विस्फोटक बन चुकी थी। इन्हीं परिस्थितियों में फ्रांस में क्रांति हुई जिसने पुरातन व्यवस्था को समाप्त कर एक नए युग का आरंभ किया।

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