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बच्चा : एक समस्या समाधक तथा वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में | CTET

बच्चा : एक समस्या समाधक तथा वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में | CTET

बच्चा: एक समस्या समाधक तथा वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में

→ समस्या समाधान का अभिप्राय है-कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करके लक्ष्य को प्राप्त करना। स्किनर के अनुसार, “समस्या समाधान किसी लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती प्रतीत होती कठिनाइयों पर विजय पाने की प्रक्रिया है। यह बाधाओं के बावजूद सामंजस्य करने की विधि है।”
बच्चा: एक समस्या-समाधक के रूप में
> बच्चे विद्यालय में अपने समक्ष अनेक समस्याओं का सामना करते हैं जैसे कक्षा से संबंधित, पाठ्यक्रम से संबंधित इत्यादि ।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, “शिक्षकों को समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि वे शुद्ध, स्पष्ट और निष्पक्ष चिन्तन का विकास करने के लिए छात्रों का पथ-प्रदर्शन कर सकेंगे।
> शिक्षा का यह दायित्व होता है कि वह बालक का उस स्तर तक विकास करने में सहायक हो जिससे बालक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों में अपने-आपको ढाल सके।
>बालक वैज्ञानिक पद्धति से समस्या का समाधान चरणबद्ध तरीके से करता है, जो इस प्रकार है-
★ बालक को सर्वप्रथम समस्या का चयन करना पड़ता है कि उसकी वास्तविक समस्या क्या है?
★ समस्या के चयन के बाद समस्या का कारण क्या है ? इसका पता लगाना होता है।
★ इसके बाद समस्या से संबंधित उपयुक्त समाधान खोजने का प्रयत्न करता है
★ जो समाधान खोजता है उसे सिद्ध करता है कि यह प्रमाणित और परिलक्षित तथ्यों पर आधारित है।
समस्या समाधान की वैज्ञानिक विधि
स्किनर (Skinner) के अनुसार, वैज्ञानिक विधि से समस्या समाधान में छह चरणों का अनुसरण किया जाता है। जो इस प्रकार हैं-
1. समस्या को समझना: बालक इस चरण में यह जानने का प्रयास करता है कि समस्या क्या है, उसके समाधान में क्या कठिनाइयाँ हैं या हो सकती हैं और उनका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है।
2. जानकारी का संग्रह: इस चरण में बालक समस्या से संबंधित जानकारी का संग्रह करता है।
3. संभावित समाधानों का निर्माण : बालक इस चरण में संग्रह की गयी जानकारी है। इस चरण में सृजनात्मक चिंतन प्रायः सक्रिय रहता है।
1.समस्या को समझना
2.जानकारी का संग्रह
3.संभावित समाधानों का निर्माण
4.संभावित समाधानों का मूल्यांकन
5.संभावित समाधानों का परीक्षण
6.निष्कर्षों का निर्णय/समाधान का प्रयोग
4. संभावित समाधानों का मूल्यांकन : इस चरण में बालक प्रत्येक विधि के प्रयोग के परिणामों पर विचार करता है। इस कार्य में उसकी सफलता आंशिक रूप से उसकी बुद्धि और संग्रह की गयी जानकारी के आधार पर निर्धारित की जाने वाली विधियों पर निर्भर करती है।
5. संभावित समाधानों का परीक्षण: इस चरण में बालक उक्त विधियों का प्रयोगशाला में या उसके बाहर परीक्षण करता है।
6. निष्कर्षों का निर्णय/समाधान का प्रयोग : इस चरण में बच्चे अपने द्वारा समायोजित की गई सर्वोतम विधि को समस्या का समाधान करने के लिए प्रयोग करता है।
बालक एक वैज्ञानिक अन्वेषक के रूप में
बालक जब अधिगम द्वारा सीखे हुए तथ्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अपने जीवन में प्रयोग करने की कोशिश करता है तो एक अन्वेषक के रूप में बालक अपनी समस्याओं की खोज निम्नलिखित रूप से करता है-
★ निरीक्षण : बालक सर्वप्रथम अपने विषय-वस्तु की परिस्थितियों का निरीक्षण करता है।
★ तुलना : विषय-वस्तु की तुलना परिस्थितियों के साथ करता है।
★ प्रयोग : निरीक्षण तुलना के आधार पर विचारों का प्रयोग करता है।
★ प्रदर्शन : निरीक्षण तुलना के आधार पर प्राप्त प्रयोग का प्रदर्शन करता है।
★ सामान्यीकरण : प्रयोग द्वारा उत्पन्न तथ्यों का परिणाम के रूप में सिद्धांत निर्मित करता है।
★ प्रमाणीकरण : प्रयोग द्वारा पुनः समस्या का प्रमाणीकरण करता है।
बालकों में अन्वेषणात्मक से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-
1. शोधकर्ता एवं वैज्ञानिकों के कार्य को गहनता से समझना तथा उनके प्रति सम्मान एवं प्रशंसा की भावना विकसित होती है।
2. शोध एवं खोज के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करना।
3.अधिगम अधिक स्पष्ण एवं स्थायी होता है।
4. बालक स्वाध्याय की ओर ध्यान केंद्रित करता है। इससे बालकों में उच्च अध्ययन के प्रति उत्साह और जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
बच्चों को समस्या समाधक बनाने हेतु आवश्यक उपाय: बच्चों को समस्या समाधक बनाने के लिए निम्नलिखित गुणों का विकास में होना आवश्यक है-
1. बालकों को स्वावलंबी बनाने के लिए प्रोत्साहित करके बालकों को स्वावलंबी बनाने के लिए उन्हें हमेशा प्रेत्साहित करते रहना चाहिए। उन्हें चुनौतीपूर्ण तथा उत्तरदायित्व वाला काम सौंपना चाहिए, जिससे कि वह समस्याओं के समाधान का सही हल निकाल सके । बालकों को समय समय पर कहानी सुनानी चाहिए, नाटक दिखाने चाहिए, इत्यादि ।
2. बालकों में आत्म-पहचान का गुण विकसित करना चाहिए बालकों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उसे ऐसे कार्य देने चाहिए जिसमें उसकी सफलता निश्चित हो। समय-समय पर बालकों के काम की प्रशंसा करनी चाहिए तथा उन्हें पुरस्कृत भी करना
चाहिए ताकि बच्चे का मनोबल उत्साह के साथ बना रहे।
3. बालकों को बार-बार प्रयास करना चाहिए : यदि बालकों को समस्याओं के समाधान को स्वयं हल करने के लिए बार-बार प्रेरित किया जाये तो एक दिन वह अपनी समस्याएँ स्वयं हल कर लेगा।
4. अपनी कमियों को स्वीकार करना तथा उन्हें दूर करना सिखाकर: बालकों में अपनी कमियों को स्वीकार करने की भावना उत्पन्न करनी चाहिए तथा उन्हें दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

परीक्षोपयोगी तथ्य

→ शिक्षा का दायित्व होता है कि वह बालक का उस स्तर तक विकास करने में सहायक हो जिससे बालक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके तथा सभी प्रकार की परिस्थितियों में अपने आपको ढाल सके।
→ स्किनर ने वैज्ञानिक विधि से समस्या समाधान में छह चरणों का अनुसरण किया।
→ बालक एक अन्वेषक के रूप में समस्याओं की खोज निम्नलिखित रूप से करता है, निरीक्षण, तुलना, प्रयोग, प्रदर्शन, सामान्यीकरण और प्रमाणीकरण ।
→ स्पीयरमैन (1909) के अनुसार तर्क करने की क्षमता और समस्या समाधान करणे की क्षमता ‘g’ कारक कहलाती है।

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