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विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान

विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान

विकलांग तथा अधिगम अशक्तता वाले बालकों की पहचान

 Identifying the Disabled and Learning Disability Children
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 3 प्रश्न,
2012 में 2 प्रश्न 2013 में 3 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न, 2015 में 3
प्रश्न, तथा वर्ष 2016 में 3 प्रश्न पूछे गए हैं। ये प्रश्न विकलांग
बालकों की पहचान, अधिगम अशक्तता, विकलांग बालकों को
होने वाली समस्याएँ आदि पर आधारित थे
14.1 विकलांग बालक
विकलांग बालकों (Disabled Children) से तात्पर्य उन बालकों से है, जो
मानसिक, शारीरिक या संवेगात्मक दृष्टि से दोषयुक्त होते हैं। इस प्रकार के
बालकों में सामान्य बालकों की तुलना में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक या
सामाजिक विकास में कमी या दोष होता है, जिसके कारण उन्हें अधिगम में
कठिनाई होती है एवं इसका प्रतिकूल प्रभाव उनकी उपलब्धियों पर पड़ता है।
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विकलांग बालकों की निम्न परिभाषाएऐं दी हैं
    क्रो एवं क्रो के अनुसार, “ऐसे बालक जिनमें ऐसा शारीरिक दोष होता है,
जो किसी भी रूप में उसे साधारण क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है
या उसे सीमित रखता है, ऐसे बालक को हम विकलांग बालक कह
सकते हैं।”
      ए एडलर के अनुसार, “एक बालक, जो शारीरिक दोषों से ग्रस्त है उसमें
हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार की भावना से बालक
को थोड़ी-सी सन्तुष्टि और प्रसन्नता मिलती है, वह इसकी क्षतिपूर्ति,
प्रतिष्टा श्रेष्ठता या प्रसिद्धि प्राप्त करके करना चाहता है, इन सबसे
उसको सन्तुष्टि प्राप्त होती है, जो उसके शारीरिक दोषों के कारण है।”
14.1.1 शारीरिक रूप से विकलांग बालक
• शिक्षा की दृष्टि से शारीरिक रूप से विकलांग बालक (Physically
Disabled Children) वे , जिनके शरीर का कोई अंग अथवा ज्ञानेन्द्री
इतनी असामान्य होती है कि उसके कारण उन्हें शिक्षा प्राप्त करने एवं
समायोजन करने में विशेष कठिनाई होती है। उदाहरणस्वरूप,
दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, मूक या हकलाने वाले बालक।
• बालकों के अधिगम एवं शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन का कारण शारीरिक
विकलांगता भी हो सकती है।
• बालक की शारीरिक विकलांगता के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की
जाती है।
14.1.2 शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान
शारीरिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान निम्न प्रकार की जा
सकती है।
अंग संचालन में दोषयुक्त छात्र
• अंग संचालन (Physical Movement) के दोषों का सम्बन्ध माँसपेशियों
(Muscles) और शरीर के जोड़ों (Joints) से है, जो अंगों अथवा
हाथ-पैरों को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की विषमताओं वाले छात्रों को,
शिक्षण की उन गतिविधियों में, जिनमें शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता
पड़ती है, सीखने में कठिनाई होती है।
• इस प्रकार का दोष सामान्यत: छात्रों की गर्दन, हाथ, अंगुलियों, कमर, पैर
आदि में हो सकता है।
• इस प्रकार के शारीरिक विकारों से युक्त छात्रों को सामान्यत: बैठने, खड़े
होने, चलने आदि में कठिनाई होती है।
• इस प्रकार के छात्र अंग विकृति के कारण प्रायः लिखने में कठिनाई
अनुभव करते हैं।
14.1.3 दृष्टि दोषयुक्त छात्र
• दृष्टि दोष युक्त छात्रों (Eyesight Defective Students) को भी
समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सभी सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी
जाती है।
• दृष्टि दोष युक्त छात्र सामान्य पाठ्य-पुस्तक पढ़ने में अक्षम होते है। इनके
लिए ब्रेल-लिपि में लिखी पुस्तकों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
• दृष्टि दोष युक्त छात्रों की भी कई श्रेणियाँ होती है। कुछ छात्र ऐसे होते हैं।
• जिनमें सामान्य दृष्टि दोष होता है, जिसके कारण वे पुस्तकों को झुककर
पढ़ते है एवं अपनी आँखों को बार-बार मलते है।
• आँखों में भैगेपन के कारण भी कुछ छात्रों को पढ़ने, लिखने में कठिनाई
हो सकती है।
• दृष्टि दोष युक्त छात्रों के स्वास्थ्य का समय-समय पर परीक्षण किया
जाना चाहिए।
   राष्ट्रीय दृष्टि बाधित संस्थान, देहरादून (उत्तराखण्ड) में है।
14.1.4 श्रवण दोषयुक्त छात्र
• शैक्षिक बात-चीत और सीखने में सुनने की क्रिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका
होती है, जो विद्यार्थी की श्रवण सम्बन्धी समस्याएँ, उसके अधिगम की
क्षमता को प्रभावित करती है।
• श्रवण समस्याओं के कारण वाणी दोष उत्पन्न हो सकता है। इसलिए यह
आवश्यक है कि ऐसे बालकों की पहचान करके उनमें सुधार करने की
दिशा में उचित कदम उठाए जाएँ, जिससे कि उनकी शैक्षिक
आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।
• श्रवण दोषयुक्त छात्रों (Students with Hearing Disorders) की
पहचान सरल है, इसके लिए उनके व्यवहारों का अवलोकन कर, उनके
स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
• श्रवण दोष के कई कारण हो सकते हैं, इनका अवलोकन इस प्रकार के
दोषयुक्त छात्रों की पहचान में सहायक साबित होता है।
इस प्रकार के दोष के कुछ प्रमुख कारण हैं
(i) कान की बनावट में दोष
(ii) कानों का अक्सर बहते रहना
(iii) कानों में बहुधा दर्द की शिकायत
(iv) कानों को बहुधा खुजलाते रहना
(v) अच्छी तरह सुनने के लिए सिर को एक ओर से दूसरी ओर घुमाना
(vi) अध्यापक से प्राय: निर्देशों और प्रश्नों को दोहराने के लिए निवेदन
करना
(vii) श्रुतिलेख (सुनकर लिखना) में बहुत अधिक त्रुटियाँ करना
(viii) सुनते समय अध्यापक के चेहरे को बहुत अधिक ध्यान से देखना
14.1.5 वाणी दोष युक्त छात्र
वाणी दोष (Speaking Disorders) एक प्रकार की बीमारी है, वाणी से
सम्बन्धित समस्या कुछ बच्चों में जन्म के बाद से दिखने लगती है, जो निम्न
प्रकार का होता है
• बोलते समय वाणी में कठिनाई महसूस करना।
• अस्पष्ट शब्दों का उच्चारण।
• बोलते समय रुक-रुक कर बोलना अर्थात् हकलाना।
• आवाज का आवश्यकता से अधिक मोटा एवं पतला होना।
• अपने विचारों को स्पष्ट रूप से नहीं रख पाना।
• बोलते समय वाणी में कठिनाई का परिलक्षित होना।
14.2 मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान
मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान यह है कि उनकी बुद्धि-लब्धि
बहुत कम होती है और वे पढ़ाई में बहुत अधिक कमजोर होते हैं।
मानसिक रूप से विकलांग बालकों की पहचान उनके निम्नलिखित व्यवहारों
से की जा सकती है
• शैक्षिक उपलब्धियों का स्तर निम्न होना। जल्दी भूलने की आदत/थोड़े
समय के बाद पढ़े हुए पाठ को भूल जाना
• ध्यान में एकाग्रता (Concentration) की कमी होना, विषय पर कम समय
तक ही ध्यान केन्द्रित कर पाना
• भौतिक, मूर्त सामग्री (जो दिखाई दे) के प्रस्तुतीकरण पर अधिक निर्भरता
• अभिव्यक्ति (Expression) क्षमता की कमी
• तत्काल परिणामों/ पुरस्कारों आदि की अपेक्षा करना
• असफल होने पर भयग्रस्त होना
• आत्म अवलोकन (Self evaluation) की शक्ति का अभाव
• आत्मविश्वास का अभाव तथा सीमित सम्प्रेषण (conversation) का होने
मांसपेशियों (muscles) के बीच समन्वय में कमी
• स्वयं के कार्यों को करने में कठिनाई का अनुभव करना; जैसे–खाना,
पहनना, नहाना आदि को लेकर स्वयं की उचित देखभाल न कर सकना।
                    मानसिक रूप से पिछड़े बालकों की शिक्षा
मानसिक रूप से पिछड़े छात्रों पर शिक्षकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना
चाहिए। इनके माता-पिता को भी इनकी समस्याओं से अवगत कराकर उनके
सहयोग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस प्रकार के बालकों के लिए
विशेष शिक्षा व्यवस्था भी की जा सकती है।
14.3 विकलांग बालकों की समस्याओं का निदान
विकलांग बालकों की समस्याओं का निदान निम्न प्रकार किया जा सकता है
• शारीरिक अथवा मानसिक रूप से विकलांग बालकों को विभिन्न प्रकार की
समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन बालकों के सर्वांगीण विकास के
लिए इनकी समस्याओं पर विशेष ध्यान देकर इनका निदान करने की
आवश्यकता पड़ती है।
• मानसिक रूप से विकलांग बालकों में संवेगात्मक परिपक्वता आने में
कठिनाई होती है। इन बालकों में हीन भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं और ये
अधिकतर क्रियाओं में भाग नहीं ले पाते। इन्हें अपनी इच्छाओं को दबाना
पड़ता है, लेकिन कई मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार के कुछ
बालक मानसिक रूप से तेज भी होते हैं।
• शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बालकों के समायोजन एवं उनकी
समस्याओं के समाधान के लिए शिक्षकों को सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाना
चाहिए।
• यदि कक्षा में कोई शारीरिक रूप से अपंग बालक हो, तो उसके कक्षा में
प्रवेश एवं उसके बैठने के लिए समुचित व्यवस्था किया जाना चाहिए क्या
ऐसे बालकों के लिए कक्षा में विशेष प्रकार की कुर्सी-मेज की व्यवस्था
करनी चाहिए।
• दृष्टि दोष युक्त छात्रों को भी बैठने की समस्या का सामना करना पड़ता
है। इसलिए इनकी समस्याओं को समझते हुए इन्हें कक्षा में उपयुक्त स्थान
पर बैठाया जाना चाहिए ताकि इन्हें कक्षा की कार्यवाही को समझने में
कठिनाई न हो।
• दोषपूर्ण वाणी वाले बच्चों को हीन भावना की समस्या का सामना करना
पड़ता है। अत: ऐसे बालकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना
चाहिए।
• उपरोक्त सभी समस्याओं की ओर अध्यापक और माता-पिता को ध्यान
देना अनिवार्य है ताकि ऐसे अपंग बालकों का घर, स्कूल तथा समाज में
उचित रूप से समायोजन हो सके और वे किसी पर बोझ न बनकर अपने
पैरों पर खड़े हो सके।
14.4 अधिगम अशक्तता
कुछ छात्र पढ़ने, लिखने, मौखिक अभिव्यक्ति, शब्दों की वर्तनी करने, गणित
एवं तर्कशक्ति को समझने आदि में अशक्त अथवा कमजोर होते हैं। इस प्रकार
को अशक्तता को ही अधिगम अशक्तता (Learning Disability) कहा जाता
है।
14.4.1 अधिगम अशक्तता के प्रकार
अधिगम अशक्तता के निम्न प्रकार है
1. मौखिक रूप से सीखने व भाषा सम्बन्धी अशक्तता अफेज्या,
डिस्फेजिया
2. पढ़ने की अशक्तता एलेक्सिया, डिस्लेक्सिया
3. लिखने की अशक्तता अग्रेफिया, अप्रेक्सिया, डिस्याफिया, ऑसिम्बोलिया,
डिस्पैक्सिया
4. शब्दों की वर्तनी सम्बन्धी अशक्तता वर्तनी में त्रुटियाँ जैसे–लड़की
के स्थान पर लकड़ी एवं सरल के स्थान पर सलर लिखना है।
5. गणित सम्बन्धी अशक्तता डस्कैल्कुलिया
14.4.2 कुछ प्रमुख अधिगम अशक्तता
1. अफेज्या (Aphasia) भाषा एवं सम्प्रेषण अधिगम अशक्तता को
अफेज्या कहा जाता है। इससे पीड़ित छात्र मौखिक रूप से सीखने एवं
अपने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करने में कठिनाई का अनुभव करते
हैं। सामान्यतया मस्तिष्क में किसी प्रकार की क्षति से यह विकार उत्पन्न
होता है। मस्तिष्क में क्षति के कारण बातचीत करने में आंशिक या
पूर्णतः अक्षमता को डिस्फेजिया (Dysphasia) कहा जाता है।
2. अलेक्सिया (Alexia) मस्तिष्क में किसी प्रकार की क्षति के कारण
पढ़ने में अक्षमता को अलेक्सिया कहा जाता है । इसे शब्द अन्धता या
पाठ्य अन्धता या विजुअल अफेज्या भी कहा जाता है। यह (अर्जित)
अक्वायर्ड डिस्लेक्सिया (Acquired Dyslexia) है। अलेक्सिया के
कारण अफेज्या एवं डिस्याफिया जैसी अधिगम अशक्तता होना भी
सम्भव है, किन्तु प्रत्येक स्थिति में यह आवश्यक नहीं।
3. डिस्लेक्सिया (Dyslexia) डिस्लेक्सिया एक व्यापक शब्द है, जिसका
सम्बन्ध पठन विकार से है। इस अधिगम अशक्तता में बालक को पढ़ने
में कठिनाई होती है, क्योंकि वह कई शब्दों के कुछ अक्षरों जैसे b
एवं d में विभेद नहीं कर पाते डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे ‘saw’ और
‘was’, ‘nuclear’ और ‘unclear’ में अन्तर नहीं कर पाते।
4. अप्रेक्सिया (Apraxia) अप्रेक्सिया ऐसा शारीरिक विकार है, जिसके
कारण व्यक्ति माँसपेशियों के संचालन से सम्बद्ध सूक्ष्म गतिक कौशल
जैसे- लिखने चलने, टहलने, बोलने में निपुण नहीं हो पाता। यह
मस्तिष्क के सेरेनम (मस्तिष्क का उपरी एवं अगला भाग) में क्षति के
कारण होता है। अप्रेक्सिया का ही एक प्रकार डिस्प्रेक्सिया
(Dyspraxia है, जिसमें व्यक्ति मस्तिष्क में क्षति के कारण सूक्ष्म
गतिक कौशलों (Micro Dynamic Skills) में निपुण नहीं हो पाता।
वह हाथ एवं आँखों के बीच समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित नहीं कर
पाता। डिस्प्रेक्सिया तन्त्रिका तन्त्र (Nerve) सम्बन्धी विकार है, जिसे
सेन्सरी इन्टग्रेशन डिस्ऑर्डर कहा जाता है।
5. डिस्ग्राफिया (Disgraphia) डिस्याफिया लिखने सम्बन्धी
अशक्तता को कहा जाता है। इसमें या तो बच्चा ठीक से लिख नहीं
पाता अथवा उसकी लिखावट ठीक नहीं हो पाती। सामान्यतः इसका
कारण हाथ, हथेली या अंगुलियों सम्बन्धी गड़बड़ियाँ होती है।
इसके अतिरिक्त मस्तिष्क सम्बन्धी कुछ गड़बड़ियों के कारण भी
यह अधिगम अशक्तता सम्भव है।
6. डिस्कैल्कुलिया (Discalculia) यह ऐसी अधिगम अशक्तता है,
जिसमें बच्चे गणित (अंकगणित) को समझने में कठिनाई का
अनुभव करते हैं। इसे न्यूमलेक्सिया (Numlexia) भी कहा जाता
है। डिस्कैल्कुलिया कई प्रकार के होते हैं―ग्राफिकल
डिस्कैल्कुलिया, लैक्सिकल डिस्कैल्कुलिया, वर्बल डिस्कैल्कुलिया,
प्रैक्टोग्नोस्टिक डिस्कैल्कुलिया, ऑडियोग्नॉटिक डिस्कैल्कुलिया।
7. डिस्थीमिया (Dysthymia) डिस्थीमिया गम्भीर तनाव की अवस्था
को कहा जाता है। इस मनोविकार का प्रतिकूल प्रभाव बालक के
अधिगम पर पड़ता है। डिस्थीमिया की अवस्था में व्यक्ति की
मन:स्थिति (चितवृत्ति) हमेशा निम्न रहती है।
8. डिस्मोरफिया (Dysmorphia) डिस्मोरफिया एक ऐसा मनोविकार
(Mental Disorder) है, जिसमें व्यक्ति को यह भ्रम हो जाता है
कि उसके शरीर के कुछ अंग बहुत छोटे या अपूर्ण है। वह अपने
शरीर के विभिन्न अंगों की तुलना दूसरे लोगों से करने लगता है,
इसका प्रतिकूल प्रभाव उसके अधिगम पर पड़ता है।
14.4.3 अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान
अधिगम अशक्तता वाले छात्रों की पहचान अत्यन्त सरल है।
इस प्रकार के छात्रों में निम्नलिखित प्रकार की समस्याएँ देखी जाती है
• छात्र उचित प्रकार से पढ़ नहीं पाता, यद्यपि उसके मौखिक उत्तर
बुद्धिमत्तापूर्ण होते हैं।
• छात्र उचित प्रकार से पढ़ तो पाता है, किन्तु मौखिक अभिव्यक्ति में वह
कठिनाई का अनुभव करता है।
• कुछ छात्र वर्तनी में त्रुटियाँ करते हैं। वे शब्दों के अक्षरों को सही क्रम में
नहीं लिखते या शब्दों के कई अक्षरों को लिखते समय छोड़ देते है। इस
प्रकार के छात्र संख्याओं को लिखने में भी गलतियाँ करते हैं; जैसे―12
को 21 एवं 89 को 98 लिखना आदि।
• मन व्याकुल रहना, समय-सारणी के अनुसार कार्य न कर पाना, आदि
इनकी समस्याएं होती हैं। सदैव उदास रहना, गृहकार्य को विलम्ब से
करना, कक्षा में देरी (Late) से आना।
• चतुर प्रतीत होने एवं कोई भी शारीरिक दोष न होने के बावजूद पढ़ाई में
कमजोर होना एवं परीक्षा का निष्पादन ठीक से नहीं कर पाना।
• कभी-कभी इतना अधिक उत्तेजित हो जाना कि वह किसी भी कार्य को
पूरा कर पाने में असमर्थ होता है।
• पढ़ते समय शब्दों या पंक्तियों को छोड़ देना तथा शब्दों में निहित अक्षरों
को अलग-अलग करके पढ़ना।
• शब्द एवं ध्वनि के बीच साम्य स्थापित करने में कठिनाई तथा शब्दों के
उच्चारण में कठिनाई आदि।
14.4.4 अधिगम अशक्तता वाले बालकों की शिक्षा
इन बालकों के परिवार के वातावरण को सुधारकर इनके प्रति सकारात्मक
व्यवहार अपनाने के लिए सभी को प्रेरित किए जाने की आवश्यकता होती है।
इनके सुधार के लिए विद्यालय के वातावरण एवं शिक्षकों का इनके प्रति
व्यवहार भी सुधारा जाना चाहिए।
इन बालकों का उपचार मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा किया जा सकता है।
1. सम्पूर्ण और अर्द्ध-अन्ध बालकों की शिक्षा
• यदि इनका अन्धापन ऐनक (लेंस युक्त चश्में) से ठीक न हो, तो इनके
लिए विशेष ऐनकों का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
• यदि इसके बाद भी इस समस्या का समाधान न हो, तो इसका तात्पर्य है
कि बालक पूर्णरूप से अन्धता का शिकार है।
• ऐसी स्थिति में उसके लिए विशेष प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की जानी
चाहिए।
• दृष्टि दोष से युक्त छात्रों की विशेष शिक्षा व्यवस्था का तात्पर्य है उनके
लिए ब्रेल लिपि की पाठ्य-पुस्तकों की व्यवस्था करना।
• इस दोष से युक्त छात्रों की शिक्षा की व्यवस्था भी सभी सामान्य बालकों
के साथ होनी चाहिए।
2. पूर्णरूप से बहरे और अपूर्ण बहरे बालकों की शिक्षा
• बहरे छात्रों के लिए विशेष प्रकार के स्कूलों की व्यवस्था की जानी
चाहिए। इन स्कूलों में विशेष प्रविधियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है।
• कम बहरे छात्रों के लिए अलग से स्कूलों की व्यवस्था अनिवार्य नहीं है
इन्हें अपने अध्यापकों के होठों को चलते हुए देखकर संवाद का अनुमान
करने में शिक्षित किया जा सकता है, जिसके बाद इन्हें सामान्य बच्चों के
साथ शिक्षा दी जा सकती है।
3. हकलाने वाले या दोषपूर्ण वाणी वाले बालकों की शिक्षा
• दोषपूर्ण वाणी में हकलाना, तुतलाना, बहुत धीर बोलना या बहुत मोटी
आवाज में बोलना या बिल्कुल ही न बोलना इत्यादि दोष शामिल होते हैं।
अस्पष्ट बोलना भी वाणी दोष है। इन दोषों के कारण छात्रों में हीन
भावना, आत्मविश्वास की कमी, संवेगात्मक अस्थिरता आदि का उत्पन्न
होना स्वाभाविक है। इनके साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना चाहिए।
• अध्ययन की गलत आदतों पर नियन्त्रण कर इनमें सुधार किया जा
सकता है। शल्य क्रिया (operation) के द्वारा भी इस प्रकार के कुछ
विकारों का इलाज सम्भव है।
• इनसे विशेष शब्दों का बार-बार उच्चारण करवाकर भी इनका निदान
सम्भव है। इस प्रकार के बालकों को अभिव्यक्ति कौशल में निपुण करने
के लिए विशेष प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की जा सकती है।
4. अपंग बालकों की शिक्षा
अपंग बालक वह बालक होता है जो शारीरिक दोष के कारण अपने शरीर के
विभिन्न अंगों का सामान्य रूप से प्रयोग नहीं कर सकता। अपंगता से
सम्बन्धित विकार बालकों की हड्डियों, ग्रन्थियों या जोड़ों Goints) में होता
है। ऐसे बालकों की शिक्षा के लिए निम्न कदम उठाए जाने चाहिए
• अपंग बालकों को सामान्य बालकों के साथ पढ़ने का अवसर मिलना
चाहिए। उनके शारीरिक विकार के अनुरूप विद्यालय में बैठने की
व्यवस्था हो।
• उन्हें विशेष व्यवसायों का प्रशिक्षण देना चाहिए, ताकि वे बोझ न बन सके
अपंग बालकों के लिए कृत्रिम अंगों (Artificial organs) की व्यवस्था हो।
• अपंग बालकों का संवेगात्मक (भावनात्मक) समायोजन अपरिहार्य हो,
ताकि उन्हें अनुभव न हो कि वे उपेक्षित हैं।
• उनके अन्दर उत्पन्न हीन भावना को दूर करने में शिक्षकों समाज एवं
परिवार का महत्त्वपूर्ण योगदान होना चाहिए।
                                         अभ्यास प्रश्न
1. विकलांग बालक ऐसे बालक होते हैं, जो
(1) केवल मानसिक रूप से दोषयुक्त हों
(2) केवल शारीरिक रूप से दोषयुक्त हों
(3) केवल संवेगात्मक रूप से दोषयुक्त हों
(4) मानसिक, शारीरिक व संवेगात्मक तीनों रूप
से दोषयुक्त हों।
2.”ऐसे बालक, जिनमें ऐसा शारीरिक दोष
होता है, जो किसी भी रूप में उसे साधारण
क्रियाओं में भाग लेने से रोकता है या
सीमित रखता है।” विकलांग बालकों के
सन्दर्भ में यह कथन किस मनोवैज्ञानिक
का है?
(1) डीजी फोर्स
(2) ए एडलर
(3) क्रो एवं क्रो
(4) किंबल यंग
3. अंग संचालन में दोषयुक्त छात्रों को किस
प्रकार की समस्या होती है?
(1) बैठने की समस्या
(2) सोने की समस्या
(3) लिखने की समस्या
(4) किसी भी प्रकार की समस्या नहीं
4. ‘राष्ट्रीय दृष्टि बाधितार्थ संस्थान’ (NIVH)
स्थित है
(1) शिमला में
(2) कोलकाता में
(3) देहरादून में
(4) दिल्ली में
5. दृष्टि दोष युक्त छात्रों को शिक्षा दी जानी
चाहिए
(1) उनके लिए शिक्षा की व्यवस्था अलग से हो।
(2) वे पढ़ने के योग्य नहीं हैं, इसलिए उनके लिए
किसी भी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था नहीं
हो।
(3) उन्हें समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सभी सामान्य
बच्चों के साथ शिक्षा दी जानी चाहिए।
(4) उन्हें केवल दृष्टि दोष वाले छात्रों के साथ
शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।
6. कक्षा पाँच के न्यून दृष्टि वाले बच्चे को
(1) निम्न स्तर के कार्य के लिए माप करना
उचित है
(2) उसके दैनिक कार्य में उसके माता-पिता तथा
मित्रों को सहायता करनी चाहिए
(3) कक्षा में सामान्य रूप से बर्ताव करना चाहिए
एवं ऑडियो सी डी के जरिए सहायता प्रदान
करनी चाहिए
(4) कक्षा में विशेष बर्ताव करना चाहिए
7. निम्न में कौन-सा कारण श्रवण दोष का
कारण है?
(1) कान की बनावट में दोष
(2) कानों का अक्सर बहते रहना
(3) कानों में दर्द की शिकायत
(4) उपरोक्त सभी सही हैं
8. मानसिक रूप से विकलांग बालकों की
पहचान होती है
(1) बुद्धि-लब्धि का तीव्र होना
(2) पढ़ाई में मजबूत होना
(3) उच्च स्मरण क्षमता
(4) बुद्धि-लब्धि का कम होना
9. प्रिया एक मानसिक रूप से विकलांग
बालिका है, उसकी क्या समस्याएँ हो सकती
है?
(1) आत्मविश्वास में कमी
(2) सीमित बात-चीत करना
(3) स्वयं के कार्यों में कठिनाई महसूस करना
(4) उपरोक्त सभी
10. शारीरिक/मानसिक रूप से विकलांग बालकों
की शिक्षा की व्यवस्था के बारे में दिए गए
कथनों में क्या सही है?
(1) विकलांगता दूर करने में केवल अध्यापक की
भूमिका हो।
(2) विकलांगता दूर करने में केवल माता-पिता की
भूमिका हो।
(3) विकलांगता समय के साथ ठीक हो जाएगी,
इसलिए किसी की आवश्यकता की जरूरत
नहीं।
(4) विकलांगता दूर करने में अध्यापक, माता-पिता
एवं अभिभावक की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए।
11. निम्नलिखित में से मौखिक रूप से सीखने
की अशक्तता कौन-सी है?
(1) डिस्माफिया
(2) डिस्कैल्कुलिया
(3) अफेज्या
(4) डिस्लेक्सिया
12. मस्तिष्क में क्षति के कारण बात-चीत करने
में आंशिक या पूर्णतः अक्षमता को कहते हैं
(1) अफेज्या
(2) डिस्लेक्सिया
(3) डिस्फेजिया
(4) डिस्कैल्कुलिया
13. ……………….. मस्तिष्क की संरचना तथा
कृत्यों में विभेद का परिणाम होता है।
(1) तनाव
(2) पिछड़ापन
(3) डिसलेक्सिया
(4) इनमें से कोई नहीं
14. यदि एक बच्चा 16 को 61 लिखता है तथा
6 और त के मध्य अन्तर नहीं कर पाता हो,
तो यह है
(1) दृष्टि दोष
(2) सीखने में अक्षम
(3) मानसिक दोष
(4) मानसिक क्षय
15. ‘डिस्याफिया’ मुख्य रूप से …………… की
समस्या से सम्बन्धित है।
(1) सुनने
(2) पढ़ने
(3) बोलने
(4) लिखने
16. डिस्प्रेक्सिया एक बीमारी है, जिसका
सम्बन्ध है
(1) हदय से
(2) तन्त्रिका तन्त्र से
(3) फेफड़े से
(4) श्वसन से
17. मस्तिष्क के सेरेब्रम में क्षति होने के कारण
कौन-सी बीमारी होती है?
(1) अपेक्सिया
(2) डिस्कैल्कुलिया
(3) एलेक्सिया
(4) डिस्थीमिया
18. गणित को समझने की अशक्तता है
(1) डिस्मोरफिया
(2) डिस्कैल्कुलिया
(3) डिस्माफिया
(4) डिस्लेक्सिया
19. ‘डिस्थीमिया’ है
(1) गम्भीर तनाव की अवस्था
(2) पठन विकार
(3) शब्द ‘जम्बलिंग’ विकार
(4) लेखन विकार
20. निम्न में किसका सम्बन्ध भ्रम से है?
(1) डिस्मोरफिया
(2) डिस्थीमिया
(3) डिस्कैल्कुलिया
(4) एपेक्सिया
21. ब्रेल-लिपि तकनीक का उपयोग निम्न में से
किसके लिए होता है?
(1) सम्पूर्ण रूप से अन्ध बालकों के लिए
(2) अर्ध-अन्ध बालकों के लिए
(3) सामान्य बालकों के लिए
(4) उपरोक्त में से किसी के लिए नहीं
22. आपकी कक्षा का एक छात्र मोहन बोलते
समय हकलाता है आप उसकी शिक्षा के
प्रबन्धन हेतु क्या आवश्यक कदम उठाएंगे?
(1) उसमें अध्ययन की गलत आदतों पर नियन्त्रण
कराएँगे
(2) प्रधानाचार्य से उसकी शिकायत करेंगे
(3) उसको कक्षा से बाहर जाकर पढ़ने को कहेंगे
(4) विशेष शब्दों के उच्चारण को उससे एक बार
में ही पढ़ने को कहेंगे।
         विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
23. विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों
की सीखने सम्बन्धी समस्याओं को
सम्बोधित करने का सबसे बेहतर तरीका है
                                                     [CTET June 2011]
(1) अक्षमता के अनुरूप विभिन्न शिक्षण-पद्धतियों
का प्रयोग करना
(2) महँगी और चमकदार सहायक सामग्री का
प्रयोग करना
(3) सरल और रोचक सहायक सामग्री का प्रयोग
करना
(4) कहानी-कथन पद्धति का प्रयोग करना
24. ‘डिस्लेक्सिया’ किससे सम्बन्धित है?
                                                  [CTET June 2011]
(1) मानसिक विकार
(2) गणितीय विकार
(3) पठन विकार
(4) व्यवहार-सम्बन्धी विकार
25. पाँचवीं कक्षा के ‘दृष्टि बाधित’ विद्यार्थी
                                        [CTET June 2011]
(1) को निचले स्तर के कार्य करने की छूट मिलनी
चाहिए
(2) के माता-पिता और मित्रों द्वारा उसे दैनिक
कार्यों को करने में सहायता की जानी चाहिए
(3) के साथ कक्षा में सामान्य रूप से व्यवहार
किया जाना चाहिए और अव्य सी डी के
माध्यम से सहायता उपलब्ध कराई जानी
चाहिए
(4) के साथ कक्षा में विशेष व्यवहार किया जाना
चाहिए
26. शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को
सामान्यतः ……………..होता है।
                                              [CTET Nov 2012]
(1) डिस्कैल्कुलिया
(2) डिस्लेक्सिया
(3) डिस्माफिया
(4) डिस्थीमिया
27. एक बच्चा, जो ………….. से ग्रस्त है, वह
‘saw’ और ‘was’, ‘nuclear’ और
‘unclear’ में अन्तर नहीं कर सकता।
                                             [CTET Nov 2012]
(1) शब्द ‘जम्बलिंग’ विकार
(2) डिस्लेक्सिमिया
(3) डिस्मोरफीमिया
(4) डिस्लेक्सिया
28. एक शिक्षिका की कक्षा में कुछ शारीरिक
विकलांगता वाले बच्चे हैं। निम्नलिखित में
से उसके लिए क्या कहना सबसे उचित
होगा?                                    [CTET July 2013]
(1) पोलियोग्रस्त बच्चे अब एक गाना प्रस्तुत करेंगे
(2) पहिया-कुर्सी वाले बच्चे हॉल में जाने के लिए
अपने समवयस्क साथी बच्चों से मदद ले
सकते हैं
(3) शारीरिक रूप से असुविधाग्रस्त बच्चे कक्षा में
ही कोई वैकल्पिक गतिविधि कर सकते हैं
(4) मोहन खेल के मैदान में जाने के लिए आप
अपनी बैसाखियों का प्रयोग क्यों नहीं करते?
29. गतिक कौशलों में अधिगम निर्योग्यता
………………. कहलाती है।    [CTET July 2013]
(1) डिसफ्रेजिया
(2) डिस्प्रेक्सिया
(3) डिस्कैल्कुलिया
(4) डिस्लेक्सिय
30. अधिगम नियोग्यता           [CTET July 2013]
(1) समुचित निवेश के साथ सुधार योग्य नहीं होती
(2) एक स्थिर अवस्था है
(3) एक चर अवस्था है
(4) जरूरी नहीं कि कार्य-पद्धति की हानि करे
31. भाषा अवबोधन से सम्बद्ध विकार है
                                        [CTET Feb 2014]
(1) चलाघात (apraxia)
(2) पठन-वैकल्य (dyslexia)
(3) वाक्-सम्बद्ध रोग (aspeechxia)
(4) भाषाघात (aphasia)
32. निम्नलिखित में से कौन-सा विकासात्मक
विकार का उदाहरण नहीं है?           [CTET Feb 2014]
(1) आत्मविमोह (Autism)
(2) प्रमस्तिष्क घात (Cerebral palsy)
(3) पर-अभिघातज तनाव (Post-traumatic
stress)
(4) न्यून अवधान सक्रिय विकार (Attention
deficit hyperactivity disorder)
33. शब्दों में अक्षरों के क्रम को पढ़ने में
कठिनाई का अनुभव करना और अकसर
चाक्षुष स्मृति का ह्रास …………….. से
सम्बन्धित है।              [CTET Sept 2014] ]
(1) डिस्लेक्सिया
(2) डिस्कैल्कुलिया
(3) डिस्त्राफिया
(4) डिस्पाक्सिया
34. एक बच्चे की कॉपी में लिखने में विपरीत
छवियाँ, दर्पण छवि आदि जैसी गलतियाँ
मिलती हैं। इस प्रकार का बच्चा लक्षण
प्रदर्शित कर रहा है                   [CTET Feb 2015]
(1) अधिगम में असुविधा के
(2) अधिगम में अशक्तता के
(3) अधिगम में कठिनाई के
(4) अधिगम में समस्या के
35. विकृत लिखावट से सम्बन्धित लिखने की
योग्यता में कमी किसका एक लक्षण है?
                                                   [CTET Feb 2015]
(1) डिस्ग्राफिया
(2) डिसप्रैक्सिया
(3) डिस्कैल्कुलिया
(4) डिस्लेक्सिया
36. एक औसत बुद्धि वाला बच्चा यदि भाषा
को पढ़ने एवं समझने में कठिनाई प्रदर्शित
करता है, तो यह संकेत देता है कि बच्चा
…………… का लक्षण प्रदर्शित कर रहा है।
                                                 [CTET Sept 2015]
(1) लेखन-अक्षमता (डिस्ग्राफिया)
(2) गणितीय-अक्षमता (डिस्कैल्कुलिया)
(3) गतिसमन्वय अक्षमता (डिस्प्रैक्सिया)
(4) पठन अक्षमता (डिस्लैक्सिया)
37. एक बच्चा, जो आंशिक रूप से देख
सकता है                     [CTET Feb 2016]
(1) बिना किसी विशेष प्रावधान के उसे ‘नियमित’
विद्यालय में डालना चाहिए
(2) उसे शिक्षा नहीं देनी चाहिए, क्योंकि वह उसके
किसी काम नहीं आएगी
(3) उसे अलग संस्थान में डालने की
आवश्यकता है
(4) विशेष प्रावधान करते हुए उसे ‘नियमित’
विद्यालय में रखना चाहिए
38. निम्नलिखित में से कौन-सा व्यवहार बच्चे
को अधिगम-नियोग्यता की पहचान करता है?
                                                     [CTET Feb 2016]
(1) मनोभाव का जल्दी-जल्दी बदलना (मूड
स्विंग्स)
(2) अपमानजनक व्यवहार
(3) ‘B’ को ‘d was को ‘saw,”21′ को ’12’
लिखना
(4) कम अवधान-विस्तार और उच्च शारीरिक
गतिविधि
39. सुनने में असमर्थ बच्चा            [CTET Sept 2016]
(1) केवल अकादमिक शिक्षा से लाभ नहीं उठा
पाएगा, उसे उसके स्थान पर व्यावसायिक
शिक्षा दी जानी चाहिए।
(2) नियमित विद्यालय में बहुत अच्छा कर सकता
है यदि उसे उपयुक्त सुविधा और साधन
उपलब्ध कराए जाएँ।
(3) नियमित विद्यालय में अपने सहपाठियों के
समान कभी प्रदर्शन नहीं कर सकेगा।
(4) श्रवण असमर्थता वाले बच्चों के विद्यालय में ही
भेजा जाना चाहिए, नियमित विद्यालय में नहीं।
                                          उत्तरमाला
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