विविध पृष्ठभूमि के बालकों की पहचान
विविध पृष्ठभूमि के बालकों की पहचान
विविध पृष्ठभूमि के बालकों की पहचान
Identifying the Children of Diverse Background
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न,
2012 में 4 प्रश्न 2013 में 1 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न, 2015 में 3
प्रश्न, तथा वर्ष 2016 में 5 प्रश्न पूछे गए हैं। पूछे जाने वाले
प्रश्न प्राय: समावेशी शिक्षा तथा वंचित वर्ग से सम्बन्धित बच्चों
की शिक्षण शैली पर आधारित ये
13.1 समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) का तात्पर्य है समाज के सभी वर्गों
के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा में समाविष्ट कर उन्हें शिक्षा के समान
अवसर उपलब्ध कराना। भारत विविधता से परिपूर्ण एक विशाल देश है।
जाति-सम्प्रदाय, रीति-रिवाज, आर्थिक-सामाजिक स्थिति आदि अनेक आधारों
पर यहाँ विविधता देखने को मिलती है। विविध पृष्ठभूमि के बालकों से यहाँ
तात्पर्य भारतीय समाज के विविध वर्गो; जैसे–निर्धन, वंचित, पिछड़े,
अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों से है। भारतीय समाज के निर्धन,
पिछड़े, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों में साक्षरता दर सामान्य
वर्ग से काफी कम है। इन वर्गों के उद्धार के लिए यह आवश्यक है कि इनके
बच्चों को सामान्य वर्गों की तरह शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ।
समावेशन (Inclusion) का तात्पर्य है, कि इसमें विकलांग बच्चों को सामान्य
बच्चों के साथ शिक्षा दी जाती है। यह समावेशन का एक संकुचित अर्थ है।
वास्तविकता में समावेशन केवल विकलांग लोगों तक ही सीमित नहीं है,
बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का वंचित न होना भी है।
13.1.1 समावेशी शिक्षा की विशेषताएँ
• समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधता को प्रोत्साहित करती है, जिससे सभी
संस्कृतियों को साथ मिलकर आगे बढ़ने का समुचित अवसर मिलता है।
• समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत सभी विशेष शैक्षिक आवश्यकता वाले
विद्यार्थियों को विद्यालय में प्रवेश को रोकने की कोई प्रक्रिया नहीं होनी
चाहिए।
• समावेशन की नीति को प्रत्येक स्कूल और सारी शिक्षा व्यवस्था में व्यापक
रूप से लागू किए जाने की आवश्यकता है।
• समावेशी शिक्षा उस विद्यालयी शिक्षा व्यवस्था की ओर संकेत करती है,
जो उनकी शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, भाषिक या अन्य विभिन्न योग्यता
स्थितियों को ध्यान में रखे बगैर सभी बच्चों को शामिल करती है।
• सफल समावेशन के लिए बच्चे के जीवन के हर क्षेत्र में वह चाहे स्कूल
में हो या बाहर, शिक्षा में सभी बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित किए जाने
की आवश्यकता है।
• समावेशी शिक्षा में शिक्षक के सामाजिक-आर्थिक स्तर का अधिक महत्त्व
नहीं है, इसमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
(i) बच्चों के प्रति उसकी संवेदनशीलता
(ii) विद्यार्थियों के लिए उसका लगाव और धैर्य
(iii) विद्यार्थियों की अक्षमताओं का ज्ञान
• पृथक्-पृथक् समजातीय समूहों के व्यक्तियों के प्रति बच्चों की अभिवृत्ति
साधारणतया उनके अभिभावक की चित्तवृत्ति पर आधारित होती है,
इसलिए इनके समावेशन हेतु यह आवश्यक है कि शिक्षकों में पर्याप्त
धैर्य-शक्ति हो, यह तभी होगा जब वे उनके प्रति लगाव महसूस करेंगे।
• सफल समावेशन में अभिभावकों की भागीदारी, उनके क्षमता-संवर्द्धन एवं
उन्हें संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता होती है ताकि वे अपने बच्चों
को स्कूल आने के अवसर उपलब्ध कराएँ, ताकि उसके हर प्रकार के
विकास में सहयोग करें।
• निर्धन, वंचित, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा असंगठित घर से आने
वाला बच्चा स्वतन्त्र अध्ययन में सबसे अधिक कठिनाई का अनुभव करता
है। इसलिए इनके सफल समावेशन के लिए इस प्रकार के विशेष रूप से
जरूरतमन्द बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध दूसरे सामान्य बच्चों के साथ होना
चाहिए।
13.1.2 समावेशी शिक्षा का उद्देश्य
मनोवैज्ञानिकों ने समावेशी शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य (Object) बताए हैं।
• असमर्थ बालकों को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से जोड़कर विकास की
मुख्य धारा में लाना।
• असमर्थ/अक्षम बालकों की समस्या का पता लगाकर उनके निवारण का
प्रयास करना, ताकि उनका समुचित विकास हो सके।
• बालकों में जागरूकता एवं उत्सुकता की भावना का विकास करना ताकि
वे प्रखर बन सकें। सभी बालकों को शिक्षा देकर देश की प्रगति में उनकी
मानव संसाधन क्षमता का उपयोग करना।
• शिक्षण के क्षेत्र में लोकतान्त्रिक मूल्यों को बढ़ाना। बालकों को
स्वावलम्बी/आत्मनिर्भर बनाना।
• अध्ययन के दौरान सभी बालकों की भ्रान्तियों को दूर करने का प्रयास
करना, ताकि उनके विकास में बाधा उत्पन्न न हो।
• बालकों में नैतिक मूल्यों का संचार करना।
13.2 निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के बच्चे एवं उनकी शिक्षा
• निर्धनता का तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत
आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम नहीं होता है।
• भोजन, वस्त्र एवं आवास के साथ-साथ शिक्षा भी मानव की मूलभूत
आवश्यकताओं में से एक है। निर्धन परिवार अपना पेट ही ठीक से नहीं
भर पाता, तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था कहाँ से करेगा?
निर्धनता का कुप्रभाव इस वर्ग के बच्चों पर पड़ता है।
• शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किए जाने के बाद से बच्चों को
निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा रही है, किन्तु निर्धनता के
कारण अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय काम पर भेज देते हैं,
जिससे उनके विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है।
• पिछड़े, वंचित एवं अनुसूचित जाति व जनजाति के बच्चों की सामान्य
पहचान यह है कि पारिवारिक निर्धनता एवं पिछड़ेपन के कारण सामान्यतः
वे अभावजन्य जीवन व्यतीत करने को बाध्य होते हैं।
• शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 सभी बच्चों को निःशुल्क एवं
अनिवार्य शिक्षा पर जोर देता है। समाज के पिछड़े एवं निर्धन वर्ग की
आवश्यकताओं को देखते हुए ही मध्याह्न भोजन स्कीम को लागू किया गया
है ताकि भूख को शिक्षा से दूर रहने का बहाना न बनाया जाए एवं
अभिभावक भी बच्चे को काम पर भेजने के बदले स्कूल में भेजें।
• पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए राज्य
सरकारों द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
जिनमें से कुछ प्रमुख कार्यक्रम निम्न प्रकार हैं
(i) विद्यालयी शिक्षा की सभी अवस्थाओं के लिए मुफ्त किताबें एवं सामग्री
(ii) आश्रम, विद्यालयों और सरकारी अनुमोदन प्राप्त छात्रावासों के बच्चों
को मुफ्त पोशाकें
(iii) सभी स्तरों पर निःशुल्क शिक्षा
वंचित बालकों के समूहों के प्रकार
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब किसी बालक को शिक्षण के दौरान उसकी
मूलभूत आवश्यकताओं (कॉपी, पुस्तक, विद्यालय) की पूर्ति न हो तो वह वंचित
बालक कहलाता है। मनोवैज्ञानिकों ने वंचित बालकों के निम्न प्रकार बताए हैं
• अनुसूचित जाति/जनजाति के बालक (SC/ST Children) सामाजिक भेदभाव
(छुआछूत) के कारण सामाजिक गतिशीलता व विकास से वंचित हो जाते हैं।
• आर्थिक दृष्टि से वंचित बालक (Economically Backward Children)
समाज में आर्थिक असमानता होने के कारण उन्हें गरीबी का सामना करना
पड़ता है, इसका बालकों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
• अधिगम अयोग्यता वाले बच्चे (Learning Disabled Children) अधिगम
अयोग्यता वाले वे बच्चे होते हैं, जो अधिगम सम्बन्धी गम्भीर समस्याओं से
ग्रसित होते हैं।
13.3 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चे एवं उनकी शिक्षा
• अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति दोनों ही ऐसे समुदाय है, जिन्हें
ऐतिहासिक कारणों से औपचारिक शिक्षा व्यवस्था से बाहर रखा गया।
पहले को जाति के आधार पर विभाजित समाज में सबसे निचले पायदान
पर होने के कारण एवं दूसरे को उनके भौगोलिक अलगाव, सांस्कृतिक
अन्तरों तथा मुख्यधारा कहे जाने वाले प्रबल समुदाय ने अपने हित के लिए
हाशिए पर रखा।
• अनुसूचित जाति एवं जनजाति के बच्चों की शिक्षा बेहतर न होने के प्रमुख
कारण निम्नलिखित हैं
– विद्यालयों में अनुसूचित जनजाति के बालकों की कम संख्या
– अध्यापकों में उनके शिक्षण के प्रति उदासीन रवैया
– पाठ्यपुस्तकों में उनकी स्थानीय बातों व उदाहरणों का न होना
– बौद्धिक क्षेत्र में उनका पिछड़ा होना
निर्धनता
– इन वर्गों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का अभाव
• भारत की स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा एवं अन्य अधिकारों से वंचित समुदायों
के उद्धार के लिए भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किए गए ताकि
इनका समुचित विकास हो सके।
• भारतीय संविधान की धाराओं 15(4), 45 और 46 में अनुसूचित जाति एवं
अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए शिक्षा मुहैया कराने हेतु राज्यों की
प्रतिबद्धता की बात कही गई है।
• अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को शिक्षा की मुख्य धारा में लाने के
लिए सुझाव
– निर्धन वर्ग के परिवारों को अपने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को स्कूल
भेजने के लिए प्रोत्साहन देना।
– जिला स्तर पर अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के बच्चों के लिए
छात्रावास की सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
– स्कूल भवन एवं प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र इत्यादि का स्थान चयन करते समय
एस. सी. एवं एस. टी. का विशेष ध्यान रखना।
– आदिवासी इलाकों में प्राथमिक विद्यालय खोलने को प्राथमिकता दी जाए।
– आदिवासियों (ST) की अपनी सांस्कृतिक एवं सामाजिक विशेषता होती
है, इनमें भाषा भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। पाठ्यक्रम निर्माण में
तथा शिक्षण विधि में इनका ध्यान रखना चाहिए।
– व्यापक पैमाने पर आदिवासी क्षेत्रों में आवासीय विद्यालय खोला जाए।
– उच्च शिक्षा में दी जाने वाली छात्रवृत्तियों में तकनीकी एवं व्यावसायिक
पढ़ाई को महत्त्व देना चाहिए।
– आँगनबाड़ियाँ, प्रौढशिक्षा केन्द्र तथा अनौपचारिक शिक्षा केन्द्र इत्यादि
आदिवासी बहुल इलाकों में खोला जाए, जिससे उनका शैक्षिक
विकास होगा।
– विभिन्न सरकारी योजनाओं के सन्दर्भ में उन्हें जागरूक करना;
जैसे–मिड-डे मील, सर्वशिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिक
अधिनियम, 2009 इत्यादि।
– शैक्षणिक आरक्षण के माध्यम से इन्हें विकास की मुख्य धारा में लाए
जाए, जिससे सामाजिक विषमता में कमी आएगी।
13.4 विविध पृष्ठभूमि के बच्चों के उचित समावेशन के लिए कुछ सुझाव
विविध पृष्ठभूमि के बच्चों के उचित समावेशन के लिए प्रमुख सुझाव निम्न है
13.4.1 संस्थानगत सुधार
• अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों की विद्यालयी
व्यवस्था का प्रबन्ध करना
• निरन्तर उपेक्षा एवं बहिष्कार झेल रहे अनुसूचित जाति एवं जनजाति समूहों
के भौगोलिक क्षेत्रों की पहचान कर उनके प्रति सकारात्मक व्यवहार
अपनाए जाने की आवश्यकता है।
• प्रायः देखा जाता है कि विद्यालय के कैलेण्डर, अवकाशों एवं समय में
स्थानीय सन्दर्भो का ध्यान नहीं रखा जाता। इससे बचना चाहिए एवं स्थानीय
सन्दर्भो को भी पर्याप्त स्थान दिया जाना चाहिए।
• समावेशी कक्षा में कोर्स को पूरा करने के लिए’ शिक्षकों द्वारा प्रयास किए
जाने से अधिक आवश्यक यह है कि वह अधिक सहकारी एवं
सहयोगात्मक गतिविधि अपनाएँ।
• समावेशी कक्षा में प्रतियोगिता और ग्रेडों पर कम बल दिया जाना चाहिए
तथा विद्यार्थियों के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए।
13.4.2 विद्यालयी पाठ्यचर्या में सुधार
• पाठ्यचर्या (Syllabus) का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए, जो भारतीय समाज
और संस्कृति की सराहना करे तथा विवेचनात्मक मूल्यांकन पर बल दे।
• सुविधाओं से वंचित बच्चों के संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास, मानसिक
विकास आदि के समान अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
• रचनात्मक प्रतिभा, उत्पादन कौशल और सामाजिक न्याय, प्रजातन्त्र,
धर्मनिरपेक्ष, समानता के मूल्यों सहित श्रम के आदर को प्रोत्साहन देना
पाठ्यचर्या का लक्ष्य होना चाहिए।
• पाठ्यचर्या का एक ऐसा उपागम हो, जोकि विवेचनात्मक सिद्धान्त पर
आधारित हो, विशेषकर उपदलित, दलित-महिलावादी और विवेचनात्मक
बहु-सांस्कृतिक दृष्टिकोणों का समावेशन और केन्द्रीकरण आवश्यक है।
यह विवेचनात्मक भारतीयकरण की प्रक्रिया अन्याय और नायक प्रधान
सामाजिक व्यवस्था पर प्रश्न उठाने, साथ-साथ विविध संस्कृतियों को
समाहित करने और मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहर का नुकसान होने से
बचाने में सहायक होगा।
13.4.3 शिक्षणशास्त्र में सुधार
• अधिगम सन्दर्भो को बढ़ावा और प्रजातान्त्रिक व समानतावादी कक्षा-कक्ष
व्यवहारों की रूपरेखा के विकास के लिए शिक्षणशास्त्र की विविध
पद्धतियों और व्यवहारों को समाहित करने की अत्यन्त आवश्यकता है
ताकि पाठ्यचर्या का प्रभावी क्रियान्वयन हो सके।
• शिक्षकों को रचनात्मक, समीक्षात्मक शिक्षणशास्त्र और बच्चों के प्रति
लिंग, जाति, वर्ग, जनजाति-आधारित और अन्य प्रकारों की पहचान
सम्बन्धी इत्यादि भेदभाव को दूर करने और समान आदर और सम्मान
को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण के साथ कक्षा-कक्ष व्यवहारों पर विशेष
दिशा-निर्देश विकसित करने की आवश्यकता है।
• विद्यालय के संवेगात्मक वातावरण में सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि
शिक्षक एवं बच्चे ज्ञान के निर्माण और अधिगम में खुलकर भाग ले सकें।
• शिक्षणशास्त्र (Pedagogy) के ऐसे व्यवहारों का विकास करने की
आवश्यकता है, जिसका लक्ष्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के
आत्म-सम्मान और पहचान में सुधार करना हो।
13.4.4 भाषा के सन्दर्भ में सुधार
• स्थानीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जाए। यदि यह सम्भव न हो,
तो कम-से-कम व्याख्या एवं संवाद के लिए स्थानीय भाषा को वरीयता
देना आवश्यक है।
• भारतीय समाज की बहुभाषिक विशेषता को विद्यालयी जीवन को समृद्ध
बनाने के संसाधन के रूप में देखा जाना चाहिए।
अभ्यास प्रश्न
1. समावेशी शिक्षा का तात्पर्य सबको………
से है।
(1) जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर पुरस्कृत
करने
(2 समाविष्ट करने
(3) निःशुल्क पाठ्य-पुस्तक उपलब्ध कराने
(4) पढ़ने के लिए बाध्य करने
2………. के अन्तर्गत सभी विशेष शैक्षिक
आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को विद्यालय
में प्रवेश को रोकने की कोई प्रक्रिया नहीं
होनी चाहिए।
(1) समावेशी शिक्षा
(2) बाल-केन्द्रित शिक्षा
(3) प्रगतिशील शिक्षा
(4) सर्वोदय शिक्षा
3. समावेशन का अर्थ होता है
(1) जरूरतमन्द बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध सामान्य
बच्चों के साथ होना चाहिए
(2) इनकी शिक्षा की व्यवस्था अलग होनी चाहिए
(3) सामान्य बच्चों के साथ इन्हें नहीं मिलाना चाहिए
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
4. निम्नलिखित में से कौन समावेशी शिक्षा का
उद्देश्य है?
(1) असमर्थ बालकों को सामाजिक व सांस्कृतिक रूप
से जोड़कर विकास की मुख्य धारा में लाना
(2) बालकों में जागरूकता एवं उत्सुकता का
विकास करना
(3) बालकों को आत्मनिर्भर बनाना
(4) उपरोक्त सभी
5. समावेशी शिक्षा में शिक्षक की सबसे कम
महत्त्वपूर्ण विशेषता कौन-सी है?
(1) बच्चों के प्रति संवेदनशील
(2) विद्यार्थियों के लिए लगाव और धैर्य
(3) विद्यार्थियों की अक्षमताओं का ज्ञान
(4) शिक्षक का सामाजिक-आर्थिक स्तर
6. किस अधिनियम के तहत सभी बच्चों को
निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था
की गई है?
(1) शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत
(2) शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत
(3) सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
7. पिछड़े वर्ग के बच्चों को शिक्षा की मुख्य
घारा से जोड़ने के लिए किनकी भूमिका है?
(1) केवल केन्द्र सरकार
(2) केवल राज्य सरकार
(3) केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
8. निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूचित
जनजाति के छात्रों की प्रमुख समस्या है?
A. अधिकतर परिवारों की निर्धनता
B. विद्यालय में सामान्य वर्ग के छात्रों द्वारा
उनको पर्याप्त सम्मान नहीं दिया जाना
C. इनके समाज में शिक्षा के पर्याप्त
प्रचार-प्रसार का अभाव
(1) केवल A
(2) केवल
(3) केवल B
(4) ये सभी
9. अनुसूचित जाति एवं जनजाति के शिक्षा के
क्षेत्र में पिछड़ने का क्या कारण है?
(1) अध्यापकों का उनके प्रति उदासीन रवैया
(2) निर्धनता
(3) शिक्षा के प्रसार-प्रसार का अभाव
(4) उपरोक्त सभी
10. अनुसूचित जातियों-जनजातियों को शिक्षा की
मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार को
कदम उठाना चाहिए
(1) छात्रावास की सुविधा
(2) व्यापक स्तर पर आदिवासियों के क्षेत्र में
आवासीय विद्यालय खोला जाए
(3) पाठ्यक्रम में आदिवासियों की सामाजिक व
सांस्कृतिक पहचान को सम्मिलित किया जाए
(4) उपरोक्त सभी
11. विविध पृष्ठभूमि के बच्चों के उचित समावेशन
के लिए इनमें से क्या महत्त्वपूर्ण है?
(1) संस्थागत सुधार
(2) विद्यालय आधारित पाठ्यचर्या में सुधार
(3) भाषाई सुधार
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. शिक्षा को सामाजिक …व … सामाजिक
….. के माध्यम के रूप में कार्य करना
चाहिए।
(1) परिवर्तन; समतावादी; व्यवस्था
(2) विकास; प्रगति तथा परिवर्तन
(3) व्यवस्था; परिवर्तनशील; व्यवस्था
(4) परिवर्तन: आर्थिक व्यवस्था
13. पृथक्-पृथक् समजातीय समूहों के व्यक्तियों
के प्रति बच्चों की अभिवृत्ति साधारणतया
आधारित होती है
(1) उनके अभिभावक की चित्तवृत्ति पर
(2) उनके समकक्षियों की अभिवृत्ति पर
(3) दूरदर्शन के प्रभाव पर
(4) उनके सहोदरों की अभिवृत्ति पर
14. एक शिक्षक को अपने विद्यालय में किसे
अधिक महत्त्व देना चाहिए?
(1) उच्च वर्ग के बालकों को
(2) सभी को समान महत्त्व देना चाहिए
(3) अनुसूचित जाति एवं जनजाति के छात्रों को
(4) अत्यन्त पिछड़े वर्ग के छात्रों को
15. शिक्षकों को बच्चों में किस गुण का विकास
करना चाहिए?
(1) केवल रचनात्मक
(2) केवल समीक्षात्मक
(3) रचनात्मक एवं समीक्षात्मक दोनों
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
16. पाठ्यचर्या का उद्देश्य होना चाहिए
(1) यह भारतीय समाज की विशेषता पर
आधारित हो
(2) यह भारतीय संस्कृति पर आधारित हो
(3) यह भारतीय समाज एवं संस्कृति पर
आधारित हो
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
17. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा
उपलब्ध कराई जानी चाहिए [CTET June 2011]
(1) अन्य सामान्य बच्चों के साथ
(2) विशेष विद्यालयों में विशेष बच्चों के लिए
विकसित पद्धतियों द्वारा
(3) विशेष विद्यालयों में
(4) विशेष विद्यालयों में विशेष शिक्षकों द्वारा
18. समावेशी शिक्षा [CTET Jan 2012]
(1) हाशिए पर स्थित वर्गों से शिक्षकों को
सम्मिलित करने से सम्बन्धित है
(2) कक्षा में विविधता का उत्सव मनाती है
(3) दाखिले सम्बन्धी कठोर प्रक्रियाओं को बढ़ावा
देती है
(4) तथ्यों की शिक्षा (मतारोपण) से सम्बन्धित है
19. विद्यार्थियों के पोर्टफोलियो के लिए सामग्री
का चयन करते समय ………… का ……..
जरूर होना चाहिए। [CTET Jan 2012]
(1) विद्यार्थियो; समावेशन
(2) अभिभावकों, समावेशन
(3) विद्यार्थियों, बहिष्करण
(4) अन्य शिक्षकों, समावेशन
20. सफल समावेशन को निम्नलिखित की
आवश्यकता होती है, सिवाय [CTET Nov 2012]
(1) पृथक्करण
(2) अभिभावकों की भागीदारी
(3) क्षमता-सम्वर्द्धन
(4) संवेदनशील बनाना
21. विद्यालय में नियमित उपस्थिति के लिए
वंचित बच्चों को प्रोत्साहित करने का
निम्नलिखित में से कौन-सा तरीका
सर्वाधिक उपयुक्त होगा? [CTET Nov 2012]
(1) बच्चों को विद्यालय आने की अनुमति न देने
को कानूनन दण्डनीय अपराध बनाया जाए
(2) विद्यालय द्वारा बच्चों को एकत्रित करने वाले
एक व्यक्ति को नियुक्त किया जाए जो
प्रतिदिन घरों से बच्चों को लेकर आए
(3) बच्चों को आकर्षित करने के लिए प्रतिदिन
₹5 देना
(4) आवासीय विद्यालय खोलना
22. एक समावेशी विद्यालय [CTET July 2013]
(1) शिक्षार्थियों की निर्योग्यता के अनुसार उनकी
सीखने की आवश्यकताओं को निर्धारित
करता है
(2) शिक्षार्थियों की क्षमताओं की परवाह किए बिना
सभी के अधिगम-परिणामों को सुधारने के लिए
प्रतिबद्ध होता है
(3) शिक्षार्थियों के मध्य अन्तर करता है और
विशेष रूप से सक्षम बच्चों के लिए कम
चुनौतीपूर्ण उपलब्धि लक्ष्य निर्धारित करता है
(4) विशेष रूप से योग्य शिक्षार्थियों के
अधिगम-परिणामों को सुधारने के लिए विशिष्ट
रूप से प्रतिबद्ध होता है
23. निम्नलिखित में से कौन-सी सर्वाधिक
प्रभावकारी विधि हो सकती है, जो आपकी
इस अपेक्षा को पूरी कर सके कि वंचित
विद्यार्थी अपनी भागीदारिता द्वारा सफल हो
सकें? [CTET Feb 2014]
(1) आप उनकी सफलता हेतु उनकी क्षमता में
विश्वास को अभिव्यक्त करें
(2) पदाए जाने वाले विषय में आप अपनी रुचि
विकसित कर सकें
(3) अपने लक्ष्य को महसूस करने के लिए बच्चों
की अन्य बच्चों से प्रायः तुलना करते रहना
(4) इस बात पर बल देना कि आपकी उनसे उच्च
अपेक्षाएँ है
24. विद्यालयों में समावेशन मुख्यतः केन्द्रित होता
है [CTET Feb 2014]
(1) विशिष्ट श्रेणी वाले बच्चों के लिए सूक्ष्मातिसूक्ष्म
प्रावधानों के निर्माण पर
(2) केवल निर्योग्य छात्रों की आवश्यकताओं को
पूर्ण करने पर
(3) सम्पूर्ण कक्षा की कीमत पर निर्योग्य बच्चों की
आवश्यकताओं को पूरा करने पर
(4) विद्यालयों में निरक्षर अभिभावकों की शैक्षिक
आवश्यकताओं पर
25. ‘सभी के लिए विद्यालयों में सभी की शिक्षा’
निम्नलिखित में से किसके लिए प्रचार वाक्य
हो सकता है? [CTET Sept 2014]
(1) संसक्तिशील शिक्षा
(2) समावेशी शिक्षा
(3) सहयोगात्मक शिक्षा
(4) पृथक शिक्षा
26. शिक्षण में अध्यापकों के द्वारा विद्यार्थियों का
आकलन इस अन्तर्दृष्टि को विकसित करने
के लिए किया जा सकता है [CTET Feb 2015]
(1) उन विद्यार्थियों की पहचान करना जिन्हें
उच्चतर कक्षा में प्रोन्नत करना है
(2) उन विद्यार्थियों को प्रोन्नत न करना जो
विद्यालय के स्तर के अनुकूल नहीं हैं
(3) शिक्षार्थियों की आवश्यकता के अनुसार शिक्षण
उपागम में परिवर्तन करना
(4) कक्षा में प्रतिभाशाली’ तथा ‘कमजोर’
विद्यार्थियों के समूह बनाना
27. वंचित समूहों के विद्यार्थियों को सामान्य
विद्यार्थियों के साथ-साथ पढ़ाना चाहिए।
इसका अभिप्राय है [CTET Feb 2015]
(1) समावेशी शिक्षा
(2) विशेष शिक्षा
(3) एकीकृत शिक्षा
(4) अपवर्जक शिक्षा
28. समावेशी शिक्षा मानती है कि हमें
के अनुरूप बदलना है। [CTET Sept 2015]
(1) व्यवस्था/बच्चे
(2) परिवेश/बच्चे
(3) बच्चे/परिवेश
(4) बच्चे व्यवस्था
29. निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन
‘समावेशन’ का सबसे अच्छा वर्णन करता
है? [CTET Feb 2016]
(1) यह एक विश्वास है कि बच्चों को अपनी
योग्यताओं के अनुसार अलग किया जाना
चाहिए
(2) यह एक विश्वास है कि कुछ बच्चे कभी कुछ
सीख ही नहीं सकते
(3) यह एक दर्शन है कि सभी बच्चों को नियमित
विद्यालय प्रणाली में समान शिक्षा प्राप्त करने
का अधिकार है
(4) यह एक दर्शन है कि विशेष बच्चे ‘ईश्वर के
विशेष उपहार’ हैं
30. ‘वंचित वर्ग’ की पृष्ठभूमि के बच्चों को
शिक्षा प्रदान करने के लिए शिक्षक को
चाहिए कि [CTET Feb 2016]
(1) उन्हें बहुत-सा लिखित कार्य दें
(2) उनके बारे में अधिक जानकारी जुटाने का
प्रयास करें और उन्हें कक्षा में होने वाली चर्चा
में शामिल करें
(3) उन्हें कक्षा में अलग बिठाए
(4) उन पर ध्यान न दे क्योंकि वे दूसरे शिक्षार्थियों
के साथ अन्तः क्रिया नहीं कर सकते
31. ‘विविध प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और
सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बच्चों से युक्त
कक्षा सभी विद्यार्थियों के अधिगम अनुभवों
को बढ़ाती है।” यह कथन है [CTET Sept 2016]
(1) सही, क्योंकि बच्चे अपने साथियो से अनेक
कौशल सीखते हैं
(2) सही, क्योंकि इससे कक्षा अधिक श्रेणीबद्ध
दिखाई देती है
(3) गलत, क्योंकि यह अनावश्यक स्पर्धा की ओर
ले जाता है
(4) गलत, क्योंकि यह बच्चों के लिए दुविधा
उत्पन्न कर सकता है और वे स्वयं को
अलग-थलग महसूस कर सकते हैं
32. विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शामिल
करना। [CTET Sept 2016]
(1) जिनमें अक्षमता न हो उन बच्चों के लिए
हानिकारक है
(2) विद्यालयों पर भार बढ़ा देगा
(3) शिक्षण के प्रति दृष्टिकोण, विषयवस्तु और
धारणा परिवर्तन की अपेक्षा रखता है
(4) एक काल्पनिक लक्ष्य है
33. किसी प्रगतिशील कक्षा की व्यवस्था में
शिक्षक एक ऐसे वातावरण को उपलब्ध
कराकर अधिगम को सुगम बनाता है, जो :
[CTET Sept 2016]
(1) नियामक है
(2) समावेशन को हतोत्साहित करता है
(3) आवृत्ति को बढ़ावा देता है
(4) खोज को प्रोत्साहन देता है
उत्तरमाला
1. (2) 2. (1) 3. (1) 4. (4) 5. (4) 6. (1) 7. (3) 8. (4) 9. (4) 10. (4)
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★★★