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संज्ञान तथा संवेग | Cognition and Emotion

संज्ञान तथा संवेग | Cognition and Emotion

संज्ञान तथा संवेग
                           Cognition and Emotion
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
म यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 2, 2012
में 1, 2013 में 2, 2014 में 6, 2015 में 1 तथा वर्ष 2016 में
1 प्रश्न पूछा गया है।
20.1 संज्ञान
संज्ञान का अर्थ समझ या ज्ञान होता है। शैक्षणिक प्रक्रियाओं में अधिगम का
मुख्य केन्द्र संज्ञानात्मक क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में अधिगम उन मानसिक
क्रियाओं से जुड़ा होता है जिनमें पर्यावरण से सूचना प्राप्त की जाती है। इस
प्रकार इस क्षेत्र में अनेक क्रियाएँ होती हैं, जो सूचना प्राप्ति से प्रारम्भ होकर
शिक्षार्थी के मस्तिष्क तक चलती रहती है। ये सूचनाएँ सुनने या देखने के रूप
में होती है।
स्टॉट के अनुसार, “संज्ञानात्मक संरचना बाहा वातावरण में विचारपूर्वक,
      प्रभावपूर्ण ढंग से तथा सुविधा के अनुसार कार्य करने की क्षमता है।”
हिलगार्ड के अनुसार, “किसी व्यक्ति ने स्वयं अपने बारे में तथा अपने
पर्यावरण के बारे में विचार, ज्ञान, व्याख्या, समझ व धारणा अर्जित
की है वही संज्ञान है।”
संज्ञान में मुख्यत: ज्ञान, समप्रता, अनुप्रयोग विश्लेषण तथा मूल्यांकन पक्ष
सम्मिलित होते हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है
ज्ञान (Knowledge) इसका सम्बन्ध सूचना के उच्च चिन्तन से होता है।
किसी विषय क्षेत्र में विशिष्ट तत्त्वों का पुनर्मरण या पुनर्पहचान अर्थात् स्मरण
स्तर की क्रियाएँ इसके द्वारा होती है।
समग्रता (Total) सूचना तब तक महत्त्वपूर्ण नहीं होती, जब तक उसे
समझा नहीं जाता। इस स्तर पर तथ्यों, सम्प्रत्ययों, सिद्धान्तों एवं
सामान्यीकरण का बोध होता है।
अनुप्रयोग (Application) सूचना उस समय और महत्त्वपूर्ण हो जाती है,
जब इसे नई परिस्थिति में प्रयोग किया जाता है। इस स्तर पर मानसिक
क्रियाओं में सम्प्रत्यय, सिद्धान्तों, सत्य सिद्धान्त आदि का प्रयोग होता है।
आजकल छात्रों की अनुप्रयोग क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है।
सामान्यीकरण का प्रयोग समस्या को हल करने के लिए किया जाता है।
उत्तरों को जांचने के लिए पूर्व ज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है अर्थात्
छात्रों ने वास्तविक जीवन में जो कुछ सीखा है उसका ये प्रयोग करते हैं।
विश्लेषण (Analysis) सृजनात्मक चिन्तन एवं समस्या समाधान विश्लेषण
चिन्तन से आरम्भ होते है। जब सूचना प्राप्त होती है तो इनको विभिन्न
अवयव तत्वों में विभाजित किया जाता है, जिससे विभिन्न भागों का आपसी
सम्बन्ध किया जाता है। इस प्रक्रिया को सूचना का विश्लेषण कहते हैं।
अधिगम के इस स्तर पर छात्र, सम्प्रत्यय (conception) और सिद्धान्तों का
विश्लेषण कर सकता है।
संश्लेषण (Synthesis) इसके अन्तर्गत सम्प्रत्ययों, सिद्धान्तों या
सामान्यीकरण के अवयवों या भागों को एकसाथ मिलाया जाता है, जिससे यह
पूर्णरूप बन जाए।
मूल्यांकन (Evaluation) इस स्तर पर निर्णयों के लिए मानसिक क्रियाएँ
होती हैं, जो स्थायित्व या तर्क के क्षेत्र पर आधारित हो सकती है या मानक
या प्रमापों में तुलना हो सकती है। निर्णय करना अधिगम के स्तर का
सर्वाधिक जटिल कार्य है।
20.2 बालकों में संज्ञानात्मक विकास
• संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य बच्चों के सीखने और सूचनाएँ एकत्रित
करने के तरीके से है। इसमें अवधान (Attention) में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण,
भाषा, चिन्तन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल है।
• पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त के अनुसार हमारे विचार और
तर्क अनुकूलन के भाग है।
• संज्ञानात्मक विकास एक निश्चित अवस्थाओं के क्रम में होता है। पियाजे ने
संज्ञानात्मक विकास की चार अवस्थाओं का वर्णन किया है
1. संवेदी-गतिक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष)
2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (2 से 7 वर्ष)
3. प्रत्यक्ष संक्रियात्मक अवस्था (7 से 11 वर्ष)
4. औपचारिक-संक्रियात्मक अवस्था (11 + वर्ष)
20.2.1 प्रारम्भिक बाल्यकाल (2 से 6 वर्ष) में संज्ञानात्मक विकास
• इस काल में बच्चे, शब्द जैसे प्रतीकों, विभिन्न वस्तुओं, परिस्थितियों और
घटनाओं को दर्शाने वाली प्रतिमाओं के प्रयोग में अधिक प्रवीण हो जाते है।
• स्कूल जाने तक बच्चों की शब्दावली पर्याप्त अच्छी हो जाती है। वास्तव में
बच्चे विभिन्न सन्दर्भो में अन्य भाषाएँ सीखने में अधिक ग्रहणशील हो जाते
है। अनेक बार वे द्विभाषी या बहुभाषी के रूप में विकसित होते हैं। वे एक
भाषी बच्चों की अपेक्षा भाषा की अच्छी समझ वाले होते है।
• प्रारम्भिक बाल्यकाल में स्थायी अवधान में वृद्धि हो जाती है। एक 3 वर्ष
का बच्चा चित्रांकनी से रंग भरने, खिलौने से खेलने या 15-20 मिनट तक
टेलीविजन देखने की जिद कर सकता है। इसके विपरीत एक 6 वर्ष का
बच्चा किसी रोचक कार्य पर एक घण्टे से अधिक कार्य करता देखा जा
सकता है।
• बच्चे अपने अवधान में अधिक चयनात्मक (selective) हो जाते है।
परिणामस्वरूप उनके प्रत्यक्षात्मक कौशल भी उन्नत होते है।
• चिन्तन और अधिक तर्कपूर्ण हो जाता है और याद रखने की क्षमता और
जानकारी की प्रक्रिया भी उन्नत होती है। वातावरण से अन्त:क्रिया द्वारा
बच्चा सामाजिक व्यवहार के सही नियम सीखता है, जो उसे विद्यालय जाने
के लिए तैयार करते है।
• प्रारम्भिक बाल्यकाल, 2 से 6 वर्ष में बच्चा पूर्व क्रियात्मक अवस्था द्वारा
प्रगति करता है।
• पूर्व-क्रियात्मक अवस्था को 2 उप-अवस्थाएँ होती हैं
– प्रतीकात्मक क्रिया (2 से 4 वर्ष)
– अन्तःप्रज्ञा विचार (4 से 7 वर्ष)
– प्रायः बालक प्रतीकों एवं प्रतिमाओं (image) का उपयोग कर अपनी
दुनिया को प्रारम्भ करता है।
– बालकों की सोच स्वयं तक सीमित होती है।
• प्रतीकात्मक क्रिया, उप-अवस्था में, बच्चे वस्तुओं का मानसिक प्रतिबिम्ब
बना लेते है और उसे बाद में उपयोग करने के लिए सम्भाल कर रख लेते
है। उदाहरण के लिए, बच्चा एक छोटे कुत्ते की आकृति बनाए या उससे
खेलने का नाटक करे, जोकि वहाँ उपस्थित ही नहीं है। बालक उन लोगों
के विषय में बात कर सकते हैं, जो यात्रा कर रहे हैं या जो कहीं अन्य
स्थान पर रहते हों। वे उन स्थानों का भी रेखाचित्र बना सकते हैं, जो
उन्होंने देखे है, साथ ही साथ अपनी कल्पना से नए दृश्य और जीव भी
बना सकते हैं।
• बच्चे अपनी वस्तुओं के मानसिक प्रतिबिम्ब का भी खेल में भूमिका निभाने
के लिए उपयोग कर सकते है।
20.2.2 मध्य बाल्यकाल में संज्ञानात्मक विकास
• मध्य बाल्यकाल में बच्चे उत्सुकता से भरे होते हैं और बाहरी वस्तुओं को
ढूँढने में उनकी रुचि होती है। स्मरण और सम्प्रत्यय ज्ञान में हुई वृद्धि
तर्कपूर्ण चिन्तन को तात्कालिक स्थिति के अतिरिक्त सहज बनाती है।
बच्चे इस अवस्था में संवेदी क्रियाओं में भी व्यस्त हो जाते हैं। जैसे―
संगीत, कला और नृत्य एवं रुचियों की अभिवृत्ति की रुचियो का भी
विकास इस अवस्था में हो जाता है।
पियाजे के सिद्धान्त में, मध्य बाल्यकाल में इन्द्रियगोचर संक्रियात्मक
अवस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित है
– तार्किक नियमों को समझना। – स्थानिक (Spatia) तर्क में सुधार।
– तार्किक चिन्तन, यथार्थ और इन्द्रियगोचर स्थितियों तक सीमिता
• मध्य बाल्यकाल में भाषा विकास कई तरीको से प्रगति करता है। नए शब्द
सीखने से अधिक, बच्चे जिन शब्दों को जानते है, उनकी अधिक प्रौढ़
परिभाषा सीख लेते है। वे शब्दों के मध्य सम्बन्ध स्थापित कर लेते है।
समानार्थी (synonyms) और विपरीतार्थी (Antonyms) शब्दों को और
उपसर्ग एवं प्रत्यय जोड़ने पर शब्दों के अर्थ कैसे बदल जाते है, को भी
समझ लेते है।
20.3 संज्ञानात्मक विकास के उपागम
मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञानात्मक विकास के निम्नलिखित चरण बताए है
1. अवधान (Attention) संज्ञान का प्रयोग जब कोई बालक करता है
तो वह पहले सावधानी पूर्वक अपने चारो ओर देखता है कि क्या चल
रहा है। अगर वातावरण का स्वरूप सकारात्मक होगा तो उसका
संज्ञानात्मक विकास बेहतर होगा।
2 स्मृति Memory) वातावरण परिवेश में उपस्थित सूचनाओं का
मस्तिष्क में संग्रहण स्मृति कहलाती है।
3. मेटा संज्ञान (Brain Cognition) मेटा स्मृति एवं मेय बोध मिलकर
मेटा संज्ञान का निर्माण करते है। सूचनाओं का वर्गीकरण करके सही
समय पर सही सूचना प्रस्तुत करके प्रयोग करना मेटा संज्ञान
कहलाता है।
4. मस्तिष्क मानचित्रण (Brain Mapping) मन मानचित्र एक सामान्य
प्रक्रिया है, जिसके द्वारा हम सूचनाओं का अपने संज्ञान में चित्र निर्माण
करते हैं। मन मानचित्र के तहत हम अपने मन को क्रियाशील रखते हैं
तथा अन्वेषण (discover) करते रहते हैं। अत: इसे मन की
क्रियाशीलता का अनुसन्धान कहा जाता है।
20.4 संवेग
‘संवेग’ (Emotion) अंग्रेजी भाषा के शब्द इमोशन का हिन्दी रूपान्तरण है। इस
शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘इमोवेयर’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है
‘उत्तेजित होना’। इस प्रकार संवेग’ को व्यक्ति की उत्तेजित दशा’ कहते हैं। इस
प्रकार संवेग शरीर को उत्तेजित करने वाली एक प्रक्रिया है।
मनुष्य अपनी रोजाना की जिन्दगी में सुख, दुःख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा
आदि का अनुभव करता है। वह ऐसा व्यवहार किसी उत्तेजनावश करता है।
यह अवस्था संवेग कहलाती है।
वुडवर्थ के अनुसार, “संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है।”
ड्रेवर के अनुसार, “संवेग, प्राणी की एक जटिल दशा है, जिसमें शारीरिक
परिवर्तन प्रबल भावना के कारण उत्तेजित दशा और एक निश्चित
प्रकार का व्यवहार करने की प्रवृत्ति निहित रहती है।”
जे एस रॉस के अनुसार, “संवेग, चेतना की वह अवस्था है, जिसमें
रागात्मक तत्त्व की प्रधानता रहती है।”
जरसील्ड के अनुसार, “किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने
तथा उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं।”
20.4.1 संवेग से सम्बन्धित सिद्धान्त
1.जेम्स-लेंज का सिद्धान्त
जेम्स-लेज सिद्धान्त के प्रतिपादक विलियम जेम्स एवं कॉर्ल लेंज (Carl
Lange) हैं। यह सिद्धान्त स्वीकार करता है कि संवेग एवं शारीरिक अनुक्रिया
का सम्बन्ध कारण एवं प्रभाव (Cavse and Effect) से है। शारीरिक
अनुक्रियाएँ जैसा कि रक्त दाब का बढ़ना (Blood-pressure), पसीना आना
(sweating), चेहरे का सूखना, हृदय की धड़कन बढ़ना इत्यादि का सम्बन्ध
हमारे शरीर में होने वाले अचानक परिवर्तन से है, जो आन्तरिक एवं बाह्य
दोनों रूपों में होता है। इन्हें इस रूप में समझा जा सकता है।
घटना – कार्य करने के लिए उत्तेजना → व्याख्या→ संवेग।
2. कैनन-बार्ड सिद्धान्त
यह सिद्धान्त वाल्टर कैनन और फिलिप बार्ड द्वारा जेम्स लेंज सिद्धान्त के
विरोध में दिया गया है। कैनन एवं बार्ड के अनुसार, संवेग एवं शारीरिक
अनुक्रिया (Response) कारण और प्रभाव से कोई सम्बन्ध नहीं रखते, इसके
बावजूद यह किसी उत्तेजित भावनाओं में भी अनुक्रिया करता है।
घटना→ साथ-साथ कार्य करने की उत्तेजना और संवेग। यह सिद्धान्त
तन्त्रिका जीव विज्ञान के विषय में बात करता है।
3. स्कैचर-सिंगर सिद्धान्त
इस सिद्धान्त को संवेग के द्विकारक सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। यह
सिद्धान्त वर्ष 1950 में दिया गया। यह एक संज्ञानात्मक विधि है, जो संवेग के
चरणों को समझने की एक कला है, जोकि संज्ञानात्मक क्रिया के द्वारा सम्पन्न
होती है। स्टेनली स्कैचर और जिरोम सिंगर के अनुसार, संज्ञानात्मक कारक
संवेगों तथा मनोदशाओं के विभिन्न चरणों को प्रभावित करते हैं। यह सिद्धान्त
उत्तेजनात्मक घटनाएँ, अवधारणा तथा व्याख्या को प्रदर्शित करता है, जोकि
सूचना प्रसंस्करण (processing) का अनुसरण करती है, इस प्रकार हम कह
सकते हैं कि संज्ञान तथा संवेग बालकों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं, संवेग पुनः भाव एवं भावनात्मक व्यवहार को अभिव्यक्त करने में
मदद करता है।
20.4.2 संवेग के प्रकार
मैक्डूगल के अनुसार संवेगों का सम्बन्ध मूल प्रवृत्तियों से होता है, मैक्डूगल
ने संवेग के चौदह प्रकार बताए हैं, जो निम्न हैं
मूल प्रवृत्ति (Fundamental Trend)         संवेग (Emotion)
पलायन (Escape)                                  भय (Fear)
युयुत्सा (Corribat)                                  क्रोध (Anger)
निवृत्ति (Repulsion)                               घृणा (Disgust)
सन्तान की कामना (Parental)                 वात्सल्य (Tenderness)
शरणार्थी (Refugee)                               करुणा (Distrees)
काम-प्रवृत्ति (Sex)                                   कामुकता (Lust)
जिज्ञासा (Curiosity)                              आश्चर्य (Wonder)
दैन्य (Sub-mission)                      आत्महीनता (Negative-self-feeling)
आत्मगौरव (Self-pride)                       आत्माभिमान (Self-esteem)
सामूहिकता (Grouping)                         एकाकीपन (Lonliness)
भोजन की खोज (Food searching)      भूख (Hunger)
संग्रहण (Acqusition)                           अधिकार (Ownership)
रचनाधर्मिता (Construction)                 कृतिभाव (Creativeness)
हास (Laughter)                                   आमोद (Amusement) )
20.4.3 संवेग की प्रकृति
हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने अच्छे और बुरे अनुभवों के प्रति दृढ़ भावनाओं
का अनुभव करता है।
संवेग के उदाहरण हैं खुश होना, शर्मिन्दा होना, दुःखी होना, उदास होना
आदि। संवेग हमारे प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित करता है।
20.4.4 संवेगों की प्रमुख विशेषताएँ
संवेगों की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं―
• आन्तरिक व बाहरी शारीरिक बदलाव तथा संवेगों में व्यापकता होती है।
विभिन्न व्यक्ति एक भाव (संवेग) के प्रति अलग-अलग प्रतिक्रिया व्यक्त
करते हैं।
• संवेग में एक निश्चित दिशा में क्रिया की प्रवृत्ति होती है। मानसिक दशा में
बदलाव तथा संवेग परिवर्तनशील प्रवृत्ति के होते है।
• संवेग में दुःख, सुख, भय, क्रोध, प्रेम, ईर्ष्या, घृणा आदि की भावना निहित
होती है। संवेगों में तीव्रता का गुण पाया जाता है।
• संवेग मानव व्यवहार में परिवर्तन हेतु उत्तरदायी है। संवेग क्षणिक होते हैं।
संवेगों में अस्थाई प्रवृत्ति का गुण पाया जाता है। संवेग सार्वभौमिक है।
20.4.5 संवेगों के घटक
1. शारीरिक परिवर्तन (Physical Changes) जब एक व्यक्ति किसी
संवेग का अनुभव करता है तब उसके शरीर में कुछ परिवर्तन होते हैं
जैसे- हृदय गति और रक्त चाप बढ़ जाना, पुतली का बड़ा हो
जाना, साँस तेज होना, मुँह का रूखा हो जाना या पसीना निकलना
आदि।
2. व्यवहार में बदलाव और संवेगात्मक अभिव्यक्ति (Changes in
Behaviour and Emotional Expression) इसका तात्पर्य बाहरी
और ध्यान देने योग्य चिह्नों से है, जो एक व्यक्ति अनुभव कर रहा
है। इसमें चेहरे के हाव-भाव, शारीरिक स्थिति, हाथ के द्वारा संकेत
करना, भाग जाना, मुस्कुराना, क्रोध करना एवं कुर्सी पर अचानक
बैठना सम्मिलित है। चेहरे की अभिव्यक्ति के छ: मूल संवेग है भय,
क्रोध, दुःख, आश्चर्य, घृणा एवं प्रसन्नता। इसका तात्पर्य है कि यह
संवेग विश्वभर के लोगों में आसानी से पहचाने जा सकते हैं।
3. संवेगात्मक भावनाएँ (Emotional Feelings) संवेग उन भावनाओं
को भी सम्मिलित करता है जो व्यक्तिगत हों। हम संवेग को वर्गीकृत
कर सकते है; जैसे― प्रसन्न, दुःखी, क्रोध, घृणा आदि। हमारे पूर्व
अनुभव और संस्कृति जिससे हम जुड़े हुए है हमारी भावनाओं को
आकृति प्रदान करते हैं। जब हम किसी व्यक्ति के हाथ में छड़ी
देखते हैं, तो हम भाग सकते हैं या अपने आपको लड़ाई के लिए
तैयार कर लेते हैं, जब यदि एक प्रसिद्ध गायक आपके पड़ोस में
रहता है, तो आप उससे अपने प्रिय गीत सुनने के लिए
चले जाएँगे।
20.4.6 संवेगे का शिक्षा में महत्त्व
शिक्षा में संवेग के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए रॉस ने कहा है “शिक्षा के
आधुनिक मनोविज्ञान में संवेगों का प्रमुख स्थान है और शिक्षण विधि में जो
आज प्रगति हो रही है, उसका कारण सम्भवत: किसी अन्य तत्व की अपेक्षा
यह अधिक है। संवेग हमारे सभी कार्यों को गति प्रदान करते हैं, और शिक्षक
को उन पर ध्यान देना अति आवश्यक है।
शिक्षा के क्षेत्र में संवेग का महत्त्व निम्न प्रकार है
• शिक्षक, बालकों के संवेगों को जाग्रत करके, पाठ में उनकी रुचि उत्पन्न
कर सकता है। शिक्षक, बालकों के संवेगों का ज्ञान प्राप्त करके, उपयुक्त
पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सफलता प्राप्त कर सकता है।
• शिक्षक, बालकों में उपयुक्त संवेगों को जाग्रत करके, उनको महान् कार्यों
को करने की प्रेरणा दे सकता है।
• शिक्षक, बालकों की मानसिक शक्तियों के मार्ग को प्रशस्त करके, उन्हें
अपने अध्ययन में अधिक क्रियाशील बनने की प्रेरणा प्रदान कर सकता है।
• शिक्षक, बालकों के संवेगों को परिष्कृत करके उनको समाज के अनुकूल
व्यवहार करने की क्षमता प्रदान कर सकता है। शिक्षक, बालकों को अपने
संवेगों पर नियन्त्रण करने की विधियाँ बताकर, उनको शिष्ट और सभ्य
बना सकता है।
• शिक्षक, बालकों के संवेगों का विकास करके, उनमें उत्तम विचारों,
आदर्शों, गुणों और रुचियों का निर्माण कर सकता है।
                                             अभ्यास प्रश्न
1. संज्ञान में अनुप्रयोग का महत्व विशेष है,
क्योकि यह आवश्यक है
(1) बच्चों के पूर्व ज्ञान की जाँच करने में
(2) बच्चों का मूल्यांकन करने में
(3) बच्चों में भय की दशा उपस्थित करने में
(4) बच्चों में क्रोध की भावना जाग्रत करने में
2. संज्ञान के अन्तर्गत निम्नलिखित में से
कौन-सा अवयव सम्मिलित है?
A. भाषा
B.चिन्तन
C. स्मरण शक्ति
D.तर्क
(1) A और B
(2) A और C
(3) A,Bऔर
(4) ये सभी
3. “किसी व्यक्ति ने स्वयं अपने बारे में तथा
अपने पर्यावरण के बारे में विचार, ज्ञान,
व्याख्या, समझ व धारणा अर्जित की है।”
संज्ञान के सन्दर्भ में यह कथन किसका है?
(1) स्टॉट
(2) वाइगोत्स्की
(3) हिलगार्ड
(4) कोहर
4. संज्ञान का अर्थ होता है
(1) रामा/शान
(2) विकास
(3) मन्द
(4) सीत
5. निम्न में से कौन एक संज्ञानात्मक विकास
का उपागम नहीं है?
(1) अवधान
(2) स्मृति
(3) मस्तिष्क मानचित्रण
(4) समावेशी विकास
6. संवेग का एक प्रमुख तत्त्व नहीं है
(1) ज्ञान
(2) अनुप्रयोग
(3) समस्या
(4) विश्लेषण
7. किसी बालक में संवेग आवश्यक है, क्योकि
संवेग
(1) बालक की संवेगात्मक अनुक्रिया है
(2) बालक की उद्दीप्त अवस्था है, जो किसी
उद्दीपक के सन्दर्भ में अनुक्रिया द्वारा व्यक्त
की जाती है
(3) बालक द्वारा किसी विशेष दशा में दिया गया
प्रत्युत्तर है
(4) बालक के असंगठित व्यवहार को प्रदर्शित
करता है
8. ‘संवेग, व्यक्ति की उत्तेजित दशा है। यह
कथन किसका है?
(1) स्किनर
(2) पियाजे
(3) वुडवर्थ
(4) ड्रेवर
9. किसी बालक के संवेगात्मक अनुभवों के
विश्लेषण हेतु उपयुक्त तरीका है
(1) उसकी मुख मुद्रा
(2) अन्तर्निरीक्षण
(3) उद्दीपकों की प्रतिक्रिया
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
10. निम्न में से क्या संवेग नहीं है?
(1) भय
(2) क्रोध
(3) पलायन
(4) करुणा
11. संवेगों का शिक्षा में उपयोग के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में कौन-सा महत्वपूर्ण नहीं है?
(1) बालकों में अध्ययन के प्रति रुचि पैदा करना
(2) बालकों में समाज के अनुकूल व्यवहार करने
की क्षमता पैदा करना
(3) बालकों को असभ्य बनाना
(4) बालकों को शिष्ट बनाना
12. संवेग किसी बालक में पैदा कर सकता है
(1) सफलता की भावना
(2) प्रेरणा की भावना
(3) रुचि की भावना
(4) ये सभी
13. “किसी बालक में सबसे पहले भय तथा
प्रेम के संवेग विकसित होते हैं।” निम्न में
से यह कथन किसका है?
(1) जीन पियाजे का
(2) वाटसन का
(3) स्किनर का
(4) कोदर का
14. ………… विकास का तात्पर्य बच्चों के
……….. और …………… एकत्रित करने के
तरीके से है।
(1) शारीरिक, सीखने, सूचनाएँ
(2) संज्ञानात्मक, सीखने, सूचनाएँ
(3) संवेगात्मक, सीखने, सूचनाएँ
(4) सामाजिक, सीखने, सूचना
15. 12 वर्ष की आयु के एक सामान्य बच्चे में
यह अधिकतम सम्भव है कि
(1) उसमें समन मोटर समन्वय की दिक्कत होती
है
(2) उसमें वयस्कों को खुश करने के सम्बन्ध में
चिन्ता का भाव होता है,
(3) वह यहाँ-वहाँ अपनी रुचि परिसीमित करता है
(4) वह अभिजात अनुमोदन के लिए इच्छुक
होता है
16. यह सिद्धान्त कि “संवेग तथा उससे जुड़ी
हुई स्वत: चालित स्नायु मण्डल की
सहानुभूतिक क्रिया प्राणी को
आपातकालिताओं के लिए तैयार करती है”
किसके नाम के साथ जुड़ा हुआ है?
(1) कैनन
(2) पियाजे
(3) स्किनर
(4) लेजारस
17. “किसी बालक में सबसे पहले भय तथा प्रेम
के संवेग विकसित होते हैं।” निम्न में से यह
कथन किसका है?
(1) जीन पियाजे का
(2) दॉटसन का
(3) स्किनर का
(4) कोहलर का
18. ‘संवेग अभिप्रेरकों का भावात्मक पक्ष है।’
यह कथन है
(1) बरनी का
(2) गैरिट का
(3) बुडदर्थ का
(4) जरसील्ड का
19. ‘संवेग प्रकृति का हृदय है।’ यह कथन है
(1) मैक्डूगल का
(2) बरनी का
(3) को वको का
(4) गेट्स का
20. किसी मस्चे के विकास का निधारण करणे
वे एक महत्वपूर्ण आन्तरिक कारक
है। संवेग’ का शाब्दिक अर्थ है
(1) पोजिस वा
(2) जीव गति
(3) क्रोधावस्था
(4) भावना
21. ‘संवेदना ज्ञान की पहली सीढ़ी है।’ यह
(1) मानसिक विकास है
(2) शारीरिक विकास है
(3) केवल मानविकी से
(4) भाषा विकास है
22. जीन पियाजे के अनुसार किसने वर्ष की
आयु तक के बच्चों में संज्ञानात्मक
परिपक्वता का अभाव पाया जाता है?
(1) चार वर्ष
(2) छ: वर्ष
(3) आठ वर्ष
(4) बारह वर्ष
23. बच्चों के विकास से सम्बन्धित निर्माण एवं
खोज’ का सिमान्त निम्नलिखित में से
किसने दिया था?
(1) स्किनर
(2) रॉबर्ट
(3) जीन पियाजे
(4) वाइगोत्स्की
24. शैशवावस्था में बच्चों के क्रिया-कलाप
……… होते हैं।                        [UTET 2013]
(1) मूलप्रवृत्यात्मक
(2) संरक्षित
(3) संज्ञानात्मक
(4) संवेगात्मक
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
25. वह कौन-सा स्थान है, जहाँ बच्चे के
संज्ञानात्मक विकास को सबसे बेहतर तरीके
से परिभाषित किया जा सकता है?
                                            [CTET June 2011]
(1) खेल का मैदान
(2) विद्यालय एवं कक्षा का पर्यावरण
(3) सभागार
(4) घर
26. ‘मन का मानचित्रण’ सम्बन्धित है     [CTET June 2011]
(1) बोध (समझ) बदाने की तकनीक से
(2) साहसिक कार्यों की क्रिया योजना से
(3) मन का चित्र बनाने से
(4) मन की क्रियाशीलता पर अनुसन्धान से
27. जब बच्चे की दादी उसे उसकी माँ की गोद
से लेती है, तो बच्चा रोने लगता है। बच्चा
…………… के कारण रोता है।            [CTET Jan 2012]
(1) वियोग दुश्चिन्ता
(2) सामाजिक दुश्चिन्ता
(3) संवेगात्मक दुश्चिन्ता
(4) अजनबी दुश्चिन्ता
28. निम्नलिखित में कौन-सी संज्ञानात्मक क्रिया
दी गई सूचना के विश्लेषण के लिए प्रयोग
में लाई जाती है?      [CTET July 2013]
(1) वर्णन करना
(2) पहचान करना
(3) अन्तर करना
(4) वर्गीकृत करना
29. सीमा परीक्षा में (A⁺) ग्रेड प्राप्त करने के
लिए अति इच्छुक है। जब वह परीक्षा भवन
में दाखिल होती है तथा परीक्षा प्रारम्भ होती
है, वह अत्यधिक नर्वस हो जाती है। उसके
पाँव ठण्डे पड़ जाते हैं, उसके हृदय की
धड़कन बहुत तेज हो जाती है और वह
उचित तरीके से उत्तर नहीं दे पाती। इसका
मुख्य कारण हो सकता है [CTET Sept 2013]
(1) शायद वह अकस्मात् संवेगात्मक आवेग का
सामना नहीं कर सकती
(2) शायद वह अपनी तैयारी के बारे में बहुत
आत्मविश्वासी नहीं है
(3) शायद वह इस परीक्षा के परिणाम के बारे में
बहुत अधिक सोचती है
(4) निरीक्षक शिक्षिका जो ड्यूटी पर है. यह उसकी
क्क्षा अध्यापिका हो सकती है और वह स्वभाव
में बहुत कठोर है
30. 14 वर्षीय देविका अपने-आप से पृथक्
स्वनियन्त्रित व्यक्ति की भावना को विकसित
करने का प्रयास कर रही है। वह विकसित
कर रही है             [CTET Feb 2014]
(1) नियमों के प्रति घृणा
(2) स्वायत्तता
(3) किशोरावस्थात्मक अक्खड़पन
(4) परिपक्वता
31. बच्चों में सीखी गई निस्सहायता का
कारण है            [CTET Sept 2014]
(1) इस व्यवहार को अर्जित कर लेना कि वे सफल
नहीं हो सकते
(2) कक्षा गतिविधियों के प्रति कठोर निर्णय
(3) अपने अभिभावकों की अपेक्षाओं के साथ
तालमेल न बना पाना
(4) अध्ययन को गम्भीरतापूर्वक न लेने हेतु नैतिक
निर्णय
32. परीक्षा में तनाव-निष्पत्ति को प्रभावित करता
है। यह तथ्य निम्नलिखित में से किस प्रकार
के सम्बन्ध को स्पष्ट करता है?
                                     [CTET Feb 2014]
(1) संज्ञान-भावना
(2) तनाव-विलोपन
(3) निष्पत्ति-चिन्ता
(4) संज्ञान-प्रतियोगिता
33. परिपक्व विद्यार्थी         [CTET Feb 2014]
(1) इस बात में विश्वास करते हैं कि उनके
अध्ययन में भावनाओं का कोई स्थान नहीं है
(2) अपनी बौद्धिकता के साथ अपने सभी प्रकार के
द्वन्द्वों का शीघ्र समाधान कर लेते हैं
(3) अपने अध्ययन में कभी-कभी भावनाओं की
सहायता चाहते हैं
(4) कठिन परिस्थितियों में भी अध्ययन से विचलित
नहीं होते
34. निम्न में से कौन-सा कौशल संवेगात्मक
बुद्धि से सम्बन्धित है?       [CTET Sept 2014]
(1) याद करना
(2) गतिक प्रक्रमण
(3) विचार करना
(4) सहानुभूति देना
35. संज्ञानात्मक विकास निम्न में से किसके द्वारा
समर्थित होता है?      [CTET Sept 2014]
(1) जितना सम्भव हो उतनी आवृत्ति से संगत और
सुनियोजित परीक्षाओं का आयोजन करना
(2) उन गतिविधियों को प्रस्तुत करना जो
पारम्परिक पद्धतियों को सुदृढ बनाती हैं
(3) एक समृद्ध और विविधतापूर्ण वातावरण
उपलब्ध कराना
(4) सहयोगात्मक की अपेक्षा वैयक्तिक गतिविधियों
पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना
36. बच्चों में ज्ञान की रचना करने और अर्थ का
निर्माण करने की क्षमता होती है। इस
परिप्रेक्ष्य में एक शिक्षक की भूमिका है
                                          [CTET Sept 2015]
(1) सम्प्रेषक और व्याख्याता की
(2) सुगमकर्ता की
(3) निर्देशक की
(4) तालमेल बैठाने वाले की
37. सीखना            [CTET Feb 2016]
(1) सीखने वाले के संवेगों से प्रभावित नहीं होता है
(2) संवेगों से क्षीण सम्बन्ध रखता है
(3) सीखने वाले के संवेगों से स्वतन्त्र है
(4) सीखने वाले के संवेगों से प्रभावित होता है
                                         उत्तरमाला
1. (1) 2. (4) 3. (3) 4. (1) 5. (4) 6. (2) 7. (2) 8. (3) 9. (3) 10. (3)
11. (3) 12. (4) 13. (2) 14. (2) 15. (1) 16. (1) 17. (2) 18. (1)
19. (1) 20. (1) 21. (1) 22. (2) 23. (3) 24. (1) 25. (2) 26. (4)
27. (3) 28. (3) 29. (1) 30. (2) 31. (1) 32. (1) 33. (3) 34. (4)
35. (2) 36. (3) 37. (4)
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