Pedagogy of civics

B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र

B.ED Notes in Hindi | नागरिक शास्त्र का शिक्षण शास्त्र

Q. शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर नागरिक शास्त्र की पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण की विवेचना करें।
Ans. ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ शिक्षा के विभिन्न स्तरों का निम्नलिखित आदर्श करता है
1. प्राइमरी स्तर (6 से 11 वर्ष)- इस स्तर पर 5 कक्षाएँ रहती हैं।
2. जूनियर हाई स्कूल अथवा पूर्व माध्यमिक स्तर – (11 से 14 वर्ष)-इस स्तर में कक्षा 6,7 तथा 8 आती हैं।
3. उच्चतर माध्यमिक स्तर (14 से 17 वर्ष)- इस स्तर के अन्तर्गत 9 व 10 तथा 11वीं कक्षाएँ आती हैं।
4. विश्वविद्यालय स्तरीय शिक्षा— इसमें प्रथम डिग्री कोर्स, मास्टर डिग्री कोर्स तथा अनुसन्धान कार्य आते हैं।
शिक्षा आयोग (Education Commission) ने शिक्षा की नवीन संरचना (New structure) प्रस्तुत की है, जो इस प्रकार है-
1. 1 से 3 वर्ष की पूर्व विद्यालय शिक्षा (Pre-primary education) |
2. 10 वर्ष की सामान्य शिक्षा—इस शिक्षा को तीन स्तरों में विभक्त किया गया है-
(i) निम्न प्राथमिक स्तर (Lower primary stage),
(ii) उच्च प्राथमिक स्तर (Higher primary stage), तथा
(iii) निम्न माध्यमिक स्तर (Lower secondary stage) ।
3. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा-इस स्तर की शिक्षा अवधि दो वर्ष है।
4. प्रथम डिग्री कोर्स—इस कोर्स की अवधि 3 वर्ष है।
5. द्वितीय डिग्री कोर्स-इस कोर्स की अवधि 2 या 3 वर्ष रखी जाय ।
नागरिकशास्त्र का शिक्षण इण्टरमीडिएट स्तर तक किया जाता है। इसका प्रस्तुतीकरण करते समय निम्नलिखित सामान्य सिद्धान्तों को ध्यान में रखना चाहिए–
1. नागरिकशास्त्र के जो सिद्धान्त छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किये जाएँ वे सुनिश्चित तथा बोधगम्य होने चाहिए । अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए । इस स्तर पर प्रायोगिक कार्य भी जारी रहेगा जिससे छात्र आदशों की प्राप्ति स्वयं कर सकें।
इस स्तर पर सहायक सामग्री का भी उपयोग किया जाना चाहिए। श्यामपट का उपयोग प्राइमरी स्तर की अपेक्षा अधिक किया जायेगा। शिक्षक इसका उपयोग रेखाचित्र, मानचित्र, सारांश, प्रश्न, पाठ या प्रकरण की रूपरेखा, लाक्षणिक चित्र आदि के लिए कर सकता है । श्यामपट का उपयोग छात्रों के द्वारा भी करवाया जाए। इसके अतिरिक्त चित्र, मॉडल, मानचित्र तथा रेखाचित्र का भी उपयोग पाठ्य-सामग्री को बोधगम्य तथा स्पष्ट करने के लिए किया जाना चाहिए। इस स्तर के चित्रों में भी क्रियाशीलता होनी चाहिए। इस स्तर पर छात्रों के द्वारा चित्र, मानचित्र, मॉडल आदि बनवाये जाएँगे जिससे वे सक्रिय रहें तथा उनका कक्ष
भी सुसज्जित हो सके । जूनियर स्कूल के छात्रों के लिए रेडियो, फिल्म आदि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए।
इस स्तर के छात्रों को गृह-कार्य भी दिया जाना चाहिए, परन्तु यह उनकी रुचि तथा योग्यता के अनुसार दिया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जायेगा तो उसका प्रभाव हानिकारक होगा। अध्यापक उनके गृह-कार्य को जाँचें और त्रुटियों को सुधारने के लिए आदेश दें। श्यामपट सारांश को विकसित कराया जा सकता है। इससे उनकी अभिव्यंजना-शक्ति का विकास होगा तथा वे विचारों को क्रमबद्ध करना. सीख जाएँगे। इस स्तर पर विभिन्न प्रकार की सामाजिक क्रियाओं-निरीक्षणात्मक, संगठनात्मक आदि को स्थान दिया जाना चाहिए। इस स्तर के बालक अपने पड़ोस, मनुष्यों तथा उनके कार्यों एवं वस्तुओं में रुचि रखते हैं।
इसलिए इस स्तर पर निरीक्षणात्मक क्रियाओं-निकटवर्ती पड़ोस का निरीक्षण, मनुष्य तथा उनके व्यवसायों-कृषि, बढ़ईगिरी, लुहारगिरी, सिलाई आदि का निरीक्षण, सामाजिक उत्सवों, मेले, थियेटरों, बाजारों, ग्राम पंचायत, नगरपालिका, अस्पताल, डाकघर आदि के निरीक्षणों को स्थान मिलना चाहिए। इसके अतिरिक्त छात्रों से विभिन्न क्रियाओं एवं कार्यक्रमों का संगठन
करवाना चाहिए, अर्थात् इसके संगठन में उनको महत्त्वपूर्ण भाग लेने के लिए अवसर प्रदान किये जाएँ।
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर नागरिकशास्त्र का प्रतिपादन
इस स्तर पर बालक किशोरावस्था में पदार्पण करता है। उसमें समस्त दृष्टिकोण से पर्याप्त अन्तर आ जाता है। उसका मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, नैतिक, शब्द-ज्ञान आदि सभी का विकास हो जाता है
इस स्तर का बालक स्वयं क्रिया करके किसी निर्णय पर पहुँचना चाहता है। इस स्तर को ‘नियमीकरण की अवस्था’ भी कहते हैं। वह अपने व्यक्तित्व को प्रदर्शित करना चाहता है, इसके लिए वह समाज में अपने को अभिस्वीकार करवाना चाहता है। इन समस्त तथ्यों को ध्यान में रखकर हमें नागरिकशास्त्र की पाठ्य-सामग्री प्रस्तुत करनी चाहिए। इस स्तर पर शिक्षक को कथनात्मक प्रणाली, वाद-विवाद प्रणाली, समस्या विधि, प्रयोगशाला विधि तथा इकाई विधियों को अपनाना चाहिए । बालकों को प्रश्न पूछने तथा तर्क करने को भी उत्साहित करना चाहिए । इन विधियों को अपनाने से वह स्वक्रिया द्वारा विश्लेषण तथा स्वयं नियमीकरण कर सकेगा।
इस स्तर पर पाठ्य पुस्तकों का उपयोग अनिवार्य है जिससे छात्र अपनी इकाई की रूपरेखा बनाने तथा निर्धारित कार्य को पूर्ण करने में सहायता ले सकें। इसके अतिरिक्त उन्हें स्वाध्ययन की आदत का निर्माण करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए । यह कार्य शिक्षक के निरीक्षण में होना चाहिए। शिक्षक प्रयोगशाला या पुस्तकालय में उनका पथ-प्रदर्शन करें और वैयक्तिक कठिनाइयों को सुलझाएँ । गृह-कार्य भी ऐसा देना चाहिए जिससे उसको पूर्ण करने में छात्र अन्य पुस्तकों की सहायता लें।
व्यवस्थित तथा अव्यवस्थित वाद-विवाद समय-समय पर करवाये जाएँ जिससे उनकी अभिव्यंजना तथा निर्णय-शक्तियों का विकास हो सके। इस स्तर पर विभिन्न संगठनों की कार्य-विधियों के नकली अधिवेशन छात्रों द्वारा करवाये जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त इस स्तर पर विभिन्न प्रदर्शनात्मक उदाहरणों का प्रयोग किया जाए। इस स्तर पर शिक्षक निवृत्ति तथा शाब्दिक और लाक्षणिक उदाहरणों की सहायता से अपनी पाठ्य-वस्तु को बोधगम्य तथा स्पष्ट कर सकता है। इस स्तर पर साधारण चित्रों का प्रयोग किया जाए, परन्तु ये ऐसे होने चाहिए जिसमें बालक को अपनी विचार-प्रक्रिया का उपयोग करना पड़े। रेखाचित्र,
चार्ट, मॉडल आदि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके साथ ही इनका निर्माण छात्रों द्वारा करवाया जाए।
इस स्तर पर रेडियो, फिल्म, टेपरिकार्डर, समाचार-पत्र, कार्टून आदि का भी उपयोग पर्याप्त मात्रा में किया जाना चाहिए क्योंकि इस स्तर के शिक्षक का मुख्य कर्त्तव्य है कि वह अपने छात्रों को तात्कालिक घटनाओं से परिचित कराए। उनके ज्ञान के बिना छात्र अपने को आदर्श नागरिक बनाने में सफल नहीं हो सकेंगे तथा अपने समाज का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
इसके ज्ञान से शिक्षक छात्रों को समाज तथा विश्व के प्रति उनके क्या कर्त्तव्य हैं तथा उनको ऐसी परिस्थितयों में क्या करना चाहिए ? आदि तथ्यों से अवगत कराता है। इस स्तर पर श्यामपट का भी प्रयोग पर्याप्त रूप से दिया जाना चाहिए।
वर्धा योजना (Wardha Scheme) के अनुसार इस स्तर पर निम्नलिखित सामाजिक क्रियाओं को स्थान प्रदान किया जाना चाहिए-
1. लोगों की आर्थिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं के प्रकाश में प्रदेश का क्रमबद्ध अध्ययन।
2. सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा संक्रामक रोगों की रोकथाम के सम्बन्ध में विभिन्न भाषाओं का आयोजन।
3. पास-पड़ोस, ग्राम तथा नगर के पानी, सड़क तथा सफाई की उत्तम व्यवस्था के लिए व्यावहारिक कार्य।
4. रात्रि कक्षाओं में भजन कीर्तन आदि के माध्यम से प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था ।
5. अन्याय को दूर करने के लिए प्रचार करना ।
6. स्थानीय एवं राष्ट्रीय पत्रों का आयोजन करना।
7. वयस्कों को संगठित करके उनका संचालन करना ।

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