B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र
B.ED Notes in Hindi | विधालय विषय का शिक्षण शास्त्र
Q. नागरिकशास्त्र शिक्षण में प्रयुक्त होनेवाले विभिन्न उपकरणों का वर्णन करें।
(Discuss the various usable Aids in civics Teaching.)
अथवा, नागरिकशास्त्र शिक्षण में श्रव्य-दृश्य उपकरणों का वर्णन करें।
(Discuss Audio-Visual aids in Civics Teaching.)
Ans. नागरिकशास्त्र में शिक्षण-सामग्री अधिगम अनुभवों के प्रमुख महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
नागरिकशास्त्र के संतुलित पाठ्यक्रम के अध्यापन में निम्नांकित सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है-
(अ) सामुदायिक संसाधन (Community Resources)- क्षेत्रीय पर्यटन (Field trips) सामाजिक सर्वेक्षण, समुदाय के व्यक्तियों से साक्षात्कार आदि ।
(ब) श्रव्य-दृश्य सामग्री-प्रतिरूप, नमूने, वस्तुएँ, चित्र, फिल्म खण्ड, स्लाइड्स रिकार्डिंग, रेडियो, टेलीविजन, मानचित्र, चार्ट, ग्राफ, रेखाचित्र आदि ।
(स) रचनात्मक कार्य, अभिनय या नाटकीकरण।
(द) पठन-सामग्री (Reading Material)-पाठ्य-पुस्तके, विश्वकोश (Encyclopaedias), संदर्भ ग्रन्थ (References), मैगजीन तथा समाचार-पत्र आदि ।
चाक बोर्ड–शिक्षण में प्रदर्शन का सबसे सस्ता तथा सुलभ उपकरण चाकबोर्ड है । यह पहले काले रंग का होता था और श्यामपट (Blackboard) कहलाता था। अब यह हरे, पीले, लाल, गुलाबी रंग का होता है और चाकबोर्ड कहलाता है। रंग के आधार पर चाकबार्ड के निम्नलिखित भेद होते हैं-
(अ) हरा चाकबोर्ड (Green Chalkboard)- इस पर सफेद या पीली चाक का प्रयोग किया जा सकता
(ब) लाल चाकबोर्ड (Red Chalkboard)-इस पर हरी या पीली चाक का प्रयोग किया जा सकता है।
(स) पीला चाकबोर्ड (Yellow Chalkboard)-इस पर नीली चाक का प्रयोग किया जा सकता है।
(द) गुलाबी चाकबोर्ड (Red Chalkboard)-इस पर गहरे नीले रंग की चाक की प्रयोग किया जा सकता है।
(य) श्याम चाकबोर्ड (Black Chalkboard)-इस पर किसी भी रंग की चाक का प्रयोग किया जा सकता है
चाकबोर्ड का उपयोग निम्न बातों के लिए किया जाता है.
1. रेखांकन, मानचित्र एवं रेखाचित्र द्वारा किसी तथ्य एवं विचार को समझाने हेतु,
2. नये तथ्यों अथवा नियमों को प्रस्तुत करने के लिए,
3. छात्रों को प्रदर्शन और अभ्यास कराने की सुविधा हेतु,
4. अन्य शिक्षण सामग्री के प्रदर्शन के लिए,
5. कार्य (Assignments) देने के लिए,
6. पठन सामग्री को सूचीबद्ध करने हेतु,
7. सारांश देने के लिए,
8. योजना की रूपरेख लिखने के लिए,
9. किसी नाम, पद या अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए,
10. किसी वस्तु या तथ्य का सम्बन्ध स्पष्ट करने के लिए,
11. पुनरावलोकन के लिए,
12. महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछने के लिए,
13. विभिन्न तथ्यों या वस्तुओिं की तुलना के लिए,
14. वर्गीकरण करने के लिए,
15. विषय-सामग्री को सूचीब/ करने के लिए।
दुर्भाग्यवश भारत में यह सबसे अधिक उपेक्षित उपकरण है। विद्यालय भवनों का निर्माण करते समय कक्षाओं में चाकबोर्ड के लिए पर्याप्त स्थान रखने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। विद्यालयों में चाकबोर्ड न तो उपयुक्त स्थान पर रखे जाते हैं और न उनकी हालत ही ठीक रहती है । जहाँ ये उपकरण हैं वहाँ भी या तो वांछनीय ढंग के नहीं हैं, या हैं तो बहुत उपेक्षित हालत
में हैं । वस्तुत: यह भी खेदजनक स्थिति है कि आज भारत में चाकबोर्ड का उतना प्रयोग नहीं किया जाता जितना तीस-चालीस वर्ष पूर्व अध्यापक करते थे । जब तक हमारे देश के प्रशिक्षण महाविद्यालय इस सम्बन्ध में ध्यान नहीं देंगे तब तक इस महत्त्वपूर्ण साधन का ठीक-ठीक उपयोग नहीं हो सकेगा, साथ ही, श्रव्य-दृश्य शिक्षा के राष्ट्रीय संस्थान द्वारा चाकबोर्ड के
उपयोग के सम्बन्ध मूं समय-समय पर विशिष्ट अल्पावधि पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
श्यामपट के उपयोग से सम्बन्धित बातें-श्यामपट का उपयोग करते समय यदि निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाए तो इस उपकरण की उपयोगिता एवं प्रभावकारिता बहुत बढ़ सकती है-
1. चाकबोर्ड पर अपर के बाएँ कोने से लिखना प्रारम्भ करना चाहिए ।
2. चाकबोर्ड पर सीधी पंक्तियों में लिखना चाहिए ।
3. चाकबोर्ड कार्य को डस्टर या कपड़े से साफ करना चाहिए न कि हाथ से अँगुलियों से।
4. चाकबोर्ड पर केवल महत्त्वपूर्ण बातों को लिखा जाए। ध्यान रहे कि चाकबोर्ड विस्तारपूर्ण कार्य के लिए उपयुक्त नहीं होता ।
5. चाकबोर्ड पर बड़े अक्षरों में तथा साफ-साफ लिखना चाहिए जिससे पीछे बैठे हुए छात्र भी आसानी से पढ़ सकें।
6. चाकबोर्ड पर जो कुछ भी लिखें, उसकी पहले से योजना बना लेनी चाहिा ।
7. कक्षा का कार्य प्रारम्भ होने से पूर्व चाकबोर्ड कार्य के लिए आवश्यक सब छ तुओं को एकत्र कर लेना चाहिए। उदाहरणार्थ, डस्टर, चाक या खड़िया, पटरी, सरकार, फर्म, स्टेंसिल आदि।
8. चाकबोर्ड पर रेखाचित्र या मानचित्र बना लेने के बाद छात्रों का ध्यान केन्द्रित करने के लिए संकेतक (Pointer) का प्रयोग करना चाहिए ।
9. शिक्षक को चाकबोर्ड के एक ही ओर खड़ा होना चहिए।
10. शिक्षक को स्वयं में चाकबोर्ड पर मानचित्र या चार्ट या रेखाचित्र उपयुक्त रूप से बनाने की क्षमता का विकास करना चाहिए।
11. कभी-कभी छात्रों को भी चाकबोर्ड पर रेखाचित्र या चार्ट बनाने एवं लिखने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
12. जब चाकबोर्ड पर लिखा जाए तब शिक्षक को देख लेना चाहिए कि कक्षा सचेत है या नहीं।
13. चाकबोर्ड पर लिखी सामग्री को कार्य की समाप्ति पर मिटा देना चाहिए।
14. चाकबोर्ड पर अक्षर एक बड़े व सुडौल होने चाहिए।
15. चाकबोर्ड पर एक साथ बहुत-सी सामग्री प्रस्तुत नहीं करनी चाहिए ।
शाब्दिक साधन–प्रायः इस प्रकार के साधनों की श्रेणी में कहानी, उदाहरण आदि को रखा जाता है। बालक स्वभाव से कहानी एवं उदाहरणों के प्रति अधिक आकृष्ट होता है। नागरिकशास्त्र में बहुत-से पाठों को सरल एवं बोधगम्य बनाने के लिए इन साधनों का प्रयोग किया जा सकता है । उदाहरणार्थ, शिवाजी, राणा प्रताप आदि महापुरुषं की कहानियों द्वारा छात्रों में कर्तव्यपरायणता, राष्ट्र-प्रेम, सहानुभूति, दूसरों के प्रति आदर एवं सम्मान की भावना आदि को विकसित किया जा सकता है। महात्मा बुद्ध, महात्मा गाँधी आदि की जवीन-गाथाओं के उदाहरण देकर बालकों में त्याग, दया, अहिंसा, सत्य के लिए प्रेम आदि गुणों की नींव डाली जा सकती है। इसके अतिरिक्त नागरिक जीवन की बहुत-सी जटिल समस्याओं को सुलझाने के लिए शिक्षक बालकों के स्थानीय एवं राष्ट्रीय जीवन की परिस्थितियों से सम्बन्धित उदाहरण प्रयुक्त कर सकता है।
उदाहरणों का प्रयोग करते समय शिक्षक को अधोलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. उदाहरणों का चयन जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से किया जाए।
2. उदाहरणों का प्रयोग उपयुक्त स्थान पर ही किया जाना चाहिए ।
3. उदाहरणों की भाषा सरल एवं स्पष्ट हो, किन्तु इनका प्रयोग आवश्यकता से अधिक नहीं होना चाहिए।
प्रदर्शनात्मक साधन
(क) वास्तविक पदार्थ (Real Objects)-19वीं शताब्दी के अंत में वास्तविक पदार्थों के प्रयोग पर बहुत अधिक बल दिया गया, क्योंकि इनके द्वारा बालकों को भौतिक जगत का ज्ञान सरलता से दिया जा सकता है । इसके पक्ष में दूसरा तर्क यह दिया गया कि इनके द्वारा बालकों को ज्ञानेन्द्रिय शिक्षा (Sensory education) प्रदान की जाती है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के परीक्षणों के आधार पर हम कह सकते हैं कि इनके द्वारा दिया हुआ ज्ञान शीघ्रता के साथ ग्रहण कर लिया जाता है तथा वह स्थायी भी होता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षक को इन पदार्थों का प्रयोग बहुत उपयोगी है, क्योंकि ये उसके शिक्षण में रोचकता प्रदान करते है यदि नागरिकशास्त्र का शिक्षक संसद के विषय में शिक्षण प्रदान कर रहा है तो वह अपने छात्रों को संसद भवन का पर्यावलोकन कराकर सुगमता से ज्ञान दे सकता है। पंचायत, नगरपालिका, अन्तरिम जिला परिषद् आदि की कार्यवाहियों का निरीक्षण कराकर उसी स्थल पर उनका ज्ञान दे सकता है। वास्तविक वस्तुओं द्वारा प्रदान किया हुआ ज्ञान बहुत ही उपयोगी
सिद्ध होता है
(ख) मॉडल (Model)-शिक्षक को वास्तविक पदार्थों की उपलब्धि सदैव सम्भव नहीं होती। इस प्रकार इनकी प्रतिमूर्ति बनाकर या बनवाकर शिक्षक प्रयोग में ला सकता है। ये प्रतिमूर्ति या नमूने कहलाते हैं । इसमें तीन पहलू होते हैं, जो बातें चित्र द्वारा दृश्यनीय नहीं बनायी जा सकती, उनको मॉडल या नमूनों द्वारा दृश्यनीय बनाया जा सकता है। इसके द्वारा छात्रों को
किसी वस्तु का भीतरी तथा बाह्य दोनों आकारों का सूक्ष्म ज्ञान प्रदान किया जा सकता है। नागरिकशास्त्र का शिक्षक अपने शिक्षण में विभिन्न वास्तविक पदार्थों के मॉडल प्रयोग में ला सकता है, भारत में बने-बनाये प्रतिरूपों की बहुत कमी । परन्तु नागरिकशास्त्र के शिक्षक को अपना अतिरिक्त समय देकर छात्रों द्वारा विभिन्न प्रतिरूपों का निर्माण करवाना चाहिए। इससे
छात्रों की रचनात्मक प्रवृत्ति की सन्तुष्टि भी हो जायेगी और वे स्वक्रिया द्वारा ज्ञान भी प्राप्त कर सकेंगे। इससे एक लाभ यह भी होगा कि नागरिकशास्त्र की प्रयोगशाला भी सुसज्जित हो जायेगी और छात्र स्वनिर्मित वस्तुओं को देखकर गर्वान्वित ही होंगे। शिक्षक प्रतिरूप मिट्टी, गत्ता, प्लास्टिक आदि के बनवा सकता है।
(ग) चित्र (Picture)-वास्तविक पदार्थों के प्रतिरूप या नमूने बनाने में समय तथा धन दोनों बहुत लगते हैं। इनके अभाव को चित्रों द्वारा पूमर्ण किया जा सकता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षण के महत्त्वपूर्ण उपकरण चित्र हैं। नागरिकशास्त्र का शिक्षक चित्रों का प्रयोग बालकों को वास्तविकता का ज्ञान देने, रुचि तथा प्रयास को जागृत करने, कल्पना-शक्ति को उबुद्ध करने तथा ग्रहणधा-शक्ति को सहायता देने के लिए कर सकता है । इसका प्रयोग कक्षा में सभी छात्रों के लिए उपयोगी है; परन्तु मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि निम्न योग्यता वाले छात्रों के लिए तो ये बहुत ही लाभदायक हैं। इनके द्वारा छात्रों में विचार की शुद्धता, स्पष्टता तथा करने की शक्ति उत्पन्न की जाती है जो प्रतियोगिता द्वारा भली-भाँति नहीं की जा सकती। नागरिकशास्त्र के शिक्षक को चित्रों का उपयोग करने से पूर्व चित्र में निम्नलिखित गुणों को देख लेना चाहिए-
(i) महत्त्व-चित्र द्वारा किसी महत्त्वपूर्ण घटना, स्थल, स्मारक आदि को स्पष्ट किया जाए। सरलता से उपलब्ध तथ्यों के लिए चित्रों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
(ii) समानुपात-जिस किसी वस्तु या पदार्थ का चित्र प्रदर्शित करना है, तो वह उसी के अनुपात के अनुसार चित्रित किया जाना चाहिए। यदि अनुपात नहीं रखा जायेगा तो चित्र बेढंगा-सा प्रतीत होगा। दूसरे चित्र में कक्षा के आकार के अनुसार भी अनुपात स्थापित किया जाना चाहिए।
(iii) शुद्धता-चित्र द्वारा छात्रों को शुद्धता प्रदान की जाए तथा चित्र भी शुद्ध हो । उसमें यदि भद्दापन होगा तो उसका प्रभाव छात्रों पर विपरीत पड़ेगा इसलिए चित्र में शुद्धता का होना अनिवार्य है।
(iv) चित्र जिस कठिन बिन्दु या बात को स्पष्ट करें, वह छात्रों की अवस्था तथा कक्षा के स्तर के अनुसार होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जायेगा तो चित्र द्वारा मनोवांछित मनोरथ सफल नहीं हो सकेगा।
(v) स्पष्टता-चित्र द्वारा जिस वस्तु का प्रदर्शन किया जाता है, वह स्पष्ट रूप से होनी चाहिए।
(vi) सौन्दर्यपूर्णता—चित्र में छात्रों की अवस्था के अनुकूल रंग प्रयोग में लाने चाहिए। छोटी कक्षाओं के बालक चटकीले रंगों के चित्रों को अधिक पसन्द करते हैं और बड़ी कक्षाओं के छात्र साधारण तथा सरल चित्रों को अधिक पसन्द करते हैं। इसके अतिरिक्त चित्र का क्रम आकर्षण होना चाहिए, जो छात्रों की रुचि तथा ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करें तथा उन्हें उसी के अनुसार प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करें। इसके साथ ही चित्र में कलात्मक सौन्दर्य की झलक भी होनी चाहिए।
(vii) अर्थपूर्ण चित्र-चित्र स्वाभाविक रूप से व्याख्यात्मक तथा निर्वचनात्मक होना चाहिए, अर्थात् इसकी व्याख्या करने के लिए शिक्षक को कुछ नहीं करना पड़े, बल्कि छात्र प्रश्नों का उत्तर उसको देखकर ही देते रहें।
(viii) चित्र प्रमाणयुक्त (Authentic) होना चाहिए ।
(ix) चित्र द्वारा बालकों की विचार-प्रक्रिया, तर्क तथा निर्णय-शक्ति को प्रोत्साहित किय जाना चाहिए।
नागरिकशास्त्र का शिक्षक चित्रों का प्रयोग निम्नलिखित बातों के लिए कर सकता है-
1. अपने नये पाठ की प्रस्तावना को स्पष्ट करने के लिए कर सकता है । इसके अतिरिक्त किसी इकाई या प्रकरण को प्रारम्भ करने के लिए भी प्रयोग में ला सकता है।
2. किसी कठिन या मुख्य बिन्दु अथवा तथ्य को स्पष्ट करने के लिए उपयोग में ला सकता है।
3. अपने पाठ का विकास करने के लिए प्रयोग कर सकता है
4. अंत में, हम कह सकते हैं कि वह छात्रों की उपलब्धि की भी जाँच चित्रों द्वारा कर सकता है अर्थात् वह ऐसे चित्र उपयोग में ला सकता है जिनके द्वारा पठित ज्ञान की जाँच की जा सके।
नागरिकशास्त्र के शिक्षक को चित्रों का उपयोग करते समय निम्नलतखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. चित्र कक्षा में उपयुक्त स्थान पर ही टाँगे जाएँ जहाँ से प्रत्येक छात्र उनको भली प्रकार देख सके, अर्थात् छात्रों की आँखों पर उसे देखने में जोर न पड़े।
2. चित्र टाँगते समय खड़खड़ाने का शब्द न हो ।
3. चित्र जादूगर के समान प्रदर्शित नहीं किये जाएँ, बल्कि शिक्षक उन चित्रों पर प्रश्न करें और उन्हें देखने का अवसर प्रदान करें।
4. चित्रों का उपयोग उपयुक्त स्थान तथा समय पर ही होना चाहिए । चित्रों को प्रदर्शित करने के पश्चात् उनको उचित प्रकार से उतारकर उचित स्थान पर रख देना चाहिए। वह सदैव कक्षा में टंगे न रहें।
5. पुनरावृत्ति की अवस्था पर विकासात्मक चित्र नहीं रहने चाहिए।
(घ) चार्ट (Chart)–चार्ट वास्तविकता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, बल्कि तथ्यों को लाक्षणिक रूप में प्रस्तुत करते हैं। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा नियमों तथा सम्बन्धों को स्पष्ट किया जाता है। नागरिकशास्त्र के शिक्षण में चार्ट का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नागरिकशास्त्र का शिक्षक इनका उपयोग ‘क्रियात्मक सम्बन्धों’ को स्पष्ट करने के लिए कर सकता है। इनको स्पष्ट करने के लिए वह संगठन-चार्ट प्रयोग में ला सकता है। उदाहरणार्थ, केन्द्रीय सरकार का संगठन, कार्यपालिका का संगठन, संयुक्त राष्ट्र संघ का संगठन आदि को स्पष्ट करने के लिए संगठन-चार्ट प्रयोग में ला सकता है।
चार्ट के उद्देश्य (Purposes of Charts)-चार्ट निनिलखित के लिए उपयोगी होते है
1. चार्टी द्वारा तथ्यों, आँकड़ों आदि के माध्यम से स्पष्ट किये जाने वाले सम्बन्धों को प्रदर्शित किया जाता है
2. विषय-वस्तु को सांकेतिक रूप से प्रस्तुत करते हैं।
3. सूचनाओं का संक्षिप्तीकरण करते हैं।
4. प्रक्रिया की निरन्तरता को प्रदर्शित करते हैं।
5. अमूर्त विचारों को दृश्यात्मक बनाते हैं।
6. छात्रों को प्रेरित करते हैं। साथ ही उनके समक्ष समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं।
चार्ट का प्रभावी प्रयोग (Effective Use of Charts)-चार्ट के प्रभावी प्रयोग के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
1. चार्ट शिक्षक द्वारा निर्मित होने चाहिए । मुद्रित चार्टी का प्रयोग अधिक प्रभावी नहीं होगा।
2. ‘चार्ट में अधिक सामग्री नहीं होनी चाहिए।
3: चार्ट कक्षा के आकार के अनुसार होना चाहिए ।
4. चार्ट के विशेष बिन्दुओं को प्रदर्शित करने के लिए शिक्षक को संकेतक का प्रयोग करना चाहिए।
5. चार्ट आकर्षक होना चाहिए।
(ङ) रेखाकृति (Diagram)-रेखाकृति चार्ट से अधिकसरल होती है परन्तु इसको समझाने के लिए छात्रों को पहले से ही तैयार करना पड़ता है, क्योंकि रेखाकृति में रेखाओं तथा प्रतीकों द्वारा सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। रेखाकृति द्वारा किसी बात को संक्षिप्त रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है। नागरिकशास्त्र में उनके उपयोग के लिए बहुत अवसर हैं। उदाहरणार्थ, अधिकार तथा कर्तव्यों को रेखाकृति के द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है
(च) मानचित्र (Map)-मानचित्र का नागरिकशास्त्र के शिक्षण में महत्त्वपूर्ण स्थान है नागरिकों में इनके प्रयोग के लिए बहुत अवसर उपलब्ध हैं। मानचित्रों का मुख्य ध्येय राज्य सीमा का ज्ञान, स्थानों को स्थानापन्न करना, भौगोलिक सम्बन्धों को स्पष्ट करना आदि हैं । यदि नागरिकशास्त्र का शिक्षक इस साधन का उपयोग नहीं करेगा तो उसके तथ्य वायुमण्डल में ही रहेंगे जो बालक को ग्राह्य नहीं हो सकेंगे। यदि नागरिकशास्त्र का शिक्षक संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में पढ़ा रहा है तो उसे मानचित्र का उपयोग अवश्य करना चाहिए, जिससे वह छात्रों को उन स्थानों से अवगत करा सके, जहाँ उसके कार्यालय स्थित हैं। भारत के पुनर्संगठित राज्यों को समझाने के लिए मानचित्र का उपयोग अनिवार्य हो जाता है। जब तक वह मानचित्र का उपयोग नहीं करेगा तब तक वह अपने छात्रों को उनकी राज्य-सीमाओं तथा राजधानियों को नहीं बता सकेगा और ये ग्रहण भी नहीं किये जा सकेंगे। नागरिकशास्त्र का शिक्षक अपने छात्रों से मानचित्र बनवाये और उनको अपनी प्रयोगशाला में रखे, जिनका उपयोग शिक्षण में समय-समय पर किया जा सकता है।
(छ) फैल्ट या फ्लानेल बोर्ड (Felt or Flannel Board)-इसको फैल्ट या फ्लानेलोग्राफ (Felt or Flannelograph) भी कहते हैं। यह लकड़ी का बोर्ड है, जिस पर फैल्ट (नम्दा) या फ्लालेन चढ़ा रहता है। इस पर चित्रों को केवल थोड़ा-सा दबाकर चिपकाया जा सकता है। इसमें और चाकबोर्ड में अन्तर यह है कि श्यामपट्ट पर हमें चित्र, रेखाचित्र, मानचित्र आदि खींचने पड़ते हैं, शब्द लिखने पड़ते हैं जबकि फ्लानेल बोर्ड पर हम तैयार की हुई चीजें लगाकर दिखाते हैं और जरूरत पड़ने पर हटा लेते । चित्रों को एक क्रम में प्रदर्शित करने तथा उनमें विभिन्न व्यक्तियों या वस्तुओं की तुलना करने के लिए यह उपकरण बहुत उपयोगी है फ्लानेल बोर्ड का उपयोग प्रदर्शित सामग्री के विकासशील पक्षों को समझाने के लिए भी किया जा सकता है।
फ्लानेल बोर्ड पर दिखाये जाने वाले चित्र आकर्षक हो । साथ ही इतने बड़े हों कि सभी उपस्थित लोगों को साफ-साफ दिखायी दे सकें। यदि कमरे में प्रकाश कम हो तो फिल्मपट्टी के प्रक्षेपी से ‘पट पर प्रकाश की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(ज) विज्ञप्ति-पट (Bulletin Board) – इस उपकरण का बड़ा ही शैक्षणिक महत्त्व है। दुर्भाग्यवश हमारे देश में बहुत ही कम आधुनिक विद्यालय हैं जिनमें विज्ञप्ति-पट उपलब्ध हैं। जिन विद्यालयों में इनकी व्यवस्था है भी, उनमें आयोजित या व्यवस्थित ढंग से इनका उपयोग सामान्यत: नहीं किया जाता है। विज्ञप्ति-पट के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए अखिल भारतीय शिक्षक सम्मेलन ने जुलाई, 1956 में निम्नलिखित बातों का सुझाव दिया-
1. विज्ञप्ति-पट कक्षा अथवा विद्यालय की सर्वकालीन पत्रिका है। इसका उद्देश्य छात्रों को उनसे सम्बन्धित प्रत्यक्ष जानकारी देना है तथा ज्ञान के प्रति उनकी जिज्ञासा और इच्छा को प्रोत्साहित करना होना चाहिए।
2. विज्ञप्ति-पट की समस्त सामग्री छात्रों के रचनात्मक प्रयासों का परिणाम होनी चाहिए, भले ही ये प्रयास शिक्षक के सामान्य निर्देशन में किये गये हों, “यह काम समस्त छात्रों के लिए छात्रों द्वारा किया जाना चाहिए।”
नागरिकशास्त्र का शिक्षक इस उपकरण का उपयोग निम्नलिखित बातों के लिए कर सकता है-
(i) चित्रों, समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं की कतरनों को प्रदर्शित करने के लिए।
(ii) छात्रों के सभी प्रकार के रचनात्मक कार्य को प्रदर्शित करने के लिए।
(iii) सूचनाओं, नियत कार्यों व विशेष योग्यताओं आदि के नोटिस चिपकाने के लिए।
(iv) कार्टूनों को प्रदर्शित करने के लिए।
(v) विशिष्ट पाठों या इकाइयों या समस्याओं की रूपरेखाओं को प्रदर्शित करने के लिए।
(vi) विभिन्न उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के मलट (Title) प्रदर्शित करने के लिए। विज्ञप्ति-पट के उपयोग से सम्बन्धित बातें–(i) केवल विषय से सम्बन्धित उपयुक्त सामग्री प्रदर्शित की जानी चाहिए।
(ii) प्रदर्शित सामग्री का जमघट नहीं होना चाहिए, वरन् इसको सुव्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
(iii) प्रदर्शित सामग्री का आकार ऐसा अवश्य हो कि सामान्य दूरी से उसे साफ देखा जा सके।
(iv) सामग्री बदलने की अवधि बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए ।
(v) प्रत्येक सामग्री का उपर्युक्त शीर्षक होना चाहिए ।
(vi) विशिष्ट पाठों के सम्बन्ध में उपर्युक्त सामग्री के संकलन और प्रदर्शन का दायित्व प्रायः छात्रों को सौंपा जाना चाहिए ।
(झ) लेखाचित्र (Graphs)- यह एक दृश्य-उपादान है जिसके द्वारा हम उन संख्यात्मक स्थितियों को प्रदर्शित करते हैं जो शब्दों या मानचित्रों द्वारा भली-भाँति अभिव्यक्त नहीं हो पाते हैं। लेखाचित्र बहुधा तुलना करने, प्रवृत्तियों को दर्शाने, विकास अथवा सम्बन्ध प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं। यह स्पष्टीकरण की एक उत्तम विधि है। नागरिकशास्त्र में रेखीय, स्तम्भाकार तथा वृत्ताकार लेखाचित्रों का प्रयोग किया जा सकता है।
श्रव्य-दृश्य साधन
माइकेलिस का विचार है कि श्रव्य-दृश्य सामग्री के उपयोग से छात्रों से अवधारणाएँ (Concepts), अभिरुचियाँ, अनुभूतियाँ तथा रुचियाँ विकसित की जा सकती हैं। उन्होंने आगे कहा है कि इनके द्वारा छात्रों को वर्ग-योजना बनाने, स्वस्थ चिन्तन तथा विचार-प्रक्रिया, वाद-विवाद तथा तर्क-शक्ति के विकास के लिए स्थूल आधार प्रदान किये जाते हैं । अमेरिका की राष्ट्रीय सोसाइटी का विचार है कि श्रव्य-दृश्य सामग्री द्वारा सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित तथा छात्रों की रुचि को पाठ्य-विषय के प्रति जाग्रत किया जाता है । इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान स्थायी होता है। इनके द्वारा छात्रों की रुचि को विषय में स्थायी कर दिया जाता है जो स्वाध्ययन की आदत का निर्माण करने में बहुत ही सहायक है। श्रव्य-दृश्य सामग्री द्वारा छात्रों को नवीन अनुभव प्रदान किये जाते हैं। यह उनकी कल्पना शक्ति को भी प्रदर्शित करने में सहायक होती है। इसका सबसे प्रमुख लाभ यह है कि इसके द्वारा ऐसा प्रभावोत्पादक वातावरण उत्पन्न किया जाता है। जिससे छात्र ज्ञानेन्द्रिय अनुभव प्राप्त करता है और नवीन बातों को सीखता है । इसके अतिरिक्त यह प्रत्यक्ष अनुभव के लिए पूरक का कार्य करती है। इसके द्वारा छात्रों को सीखने के लिए उत्प्रेरित किया जाता है।
मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि श्रव्य-दृश्य सामग्रीप्रारम्भिक कक्षाओं के छात्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है क्योंकि इसके द्वारा उनकी ज्ञानेन्द्रियों को सक्रिय बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह मंद-बुद्धि के बालकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। मनोवैज्ञानिकों की ऐसी धारणा है कि जब इसका उपयोग किया जाता है, तब बालक बड़ी शीघ्रता और रुचि के साथ अपनी पाठ्य-वस्तु को ग्रहण करता है। दूसरे, इसके द्वारा अर्जित किये हुए तथ्य बालक से प्रस्तुत कर देते हैं और वे उसके मस्तिष्क में पर्याप्त समय तक स्थायी रहते हैं। श्रव्य-दृश्य सामग्री छात्रों के सम्मुख पदार्थों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करती है जिससे उन्हें बहुत लाभ प्राप्त होता है।
1. चलचित्र तथा फिल्म-खण्ड (Motion Picture and Film Strips) – विभिन्न विषयों के शिक्षण में चलचित्रों का प्रयोग प्रथम महायुद्ध के पश्चात् से होने लमा था, परन्तु इनका पर्याप्त मात्रा में उपयोग 1931 ई. के बाद से हुआ। पश्चिमी देशों में इनका उपयोग प्रत्येक विषय के शिक्षण के लिए होने लगा है। मनोवैज्ञानिकों के परीक्षणों ने इनके उपयोग को और भी प्रोत्साहन दिया है। इनके उपयोग ने शिक्षा तथा सीखने के उपयोग को बहुत योगदान सरलता दिया।
नागरिकशास्त्र के शिक्षण में इनका उपयोग बहुत ही लाभदायक है तथा इनके उपयोग के लिए नागरिकशास्त्र में बहुत-से अवसर लिमते हैं । उदाहरणार्थ-नागरिकशास्त्र की शिक्षा प्रदान करने के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपादान है। स्वदेश-प्रेम की भावना को उत्पन्न करने के लिए विभिन्न राजनैतिक नेताओं की फिल्में दिखायी जा सकती हैं जिससे छात्रों को स्वतन्त्रता-संग्राम के इतिहास का ज्ञान भी हो जायेगा तथा उनमें स्वदेश-प्रेम की भावना का विकास भी किया जा सकेगा। हमारे देश में भी शैक्षिक फिल्म बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। डॉक्यूमेण्ट्री फिल्म छात्रों के लिए शैक्षिक दृष्टि से परम उपयोगी है।
इन चलचित्रों तथा फिल्मों से निम्नलिखित लाभ हैं-
1. इनके द्वारा छात्रों को सीखने के लिए प्रेरणा दी जाती है
2. छात्रों को अनुभव करने के लिए स्थितियाँ प्रस्तुत की जाती हैं।
3. ये छात्रों की ग्राह्य शक्ति को विस्तृत तथा विकसित करती हैं
4. इसके द्वारा वाद-विवाद के लिए भी अवसर प्रदान किये जाते हैं।
5. छात्रों को स्वाध्ययन करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
6. नवीन पाठ के प्रारम्भ करने के लिए बहुत ही लाभदायक है।
7. इनके द्वारा छात्रों की समझने की शक्ति तथा विचार प्रक्रिया को विकसित किया जाता है।
8. यह मंद-बुद्धि बालकों की शिक्षा का एक महत्वपूर्ण उपादान है, अर्थात् इनके द्वारा उनको सरलता तथा सुगमता से शिक्षा प्रदान की जा सकती है जो उनको सुगमता से ग्राह्य होगी। उपर्युक्त उपलब्धियों को तभी प्राप्त किया जा सकता है जब शिक्षक छात्रों से चलचित्र देखने के पश्चात् तत्सम्बन्धी प्रश्न करें जिससे उसे यह मालूम हो जाए कि छात्रों ने क्या ग्रहण किया है। इसके अतिरिक्त वह अपने कथन द्वारा उनके ज्ञान को विकसित तथा रिक्त स्थानों की पूर्ति करके तारतम्य स्थापित कर दें। अध्यापक उस अर्जित ज्ञान पर एक छोटा-सा वाद-विवाद करवा दें जिससे छात्र अपने अर्जित ज्ञान को अभिव्यक्त कर सकें। इसके पश्चात्
वह उस पर एक दोटा-सा लेख लिखने के लिए छात्रों को आदेश दें। नागरिकशास्त्र के शिक्षक को अपने शिक्षण में फिल्म का प्रयोग करने से पूर्व एक अच्छी
फिल्म में निम्नलिखित गुण देखने चाहिए-
1. फिल्म पाठ के विकास में सहायक होनी चाहिए।
2. फिल्म की फोटोग्राफी स्पष्ट तथा कलात्मक होनी चाहिए ।
3. आवाज स्पष्ट तथा समझने योग्य होनी चाहिए।
4. फिल्म प्रामाणिक होनी चाहिए।
5. फिल्म छात्रों की अवस्था, रुचि तथा योग्यता के अनुकूल हो ।
6. फिल्म में प्रयुक्त भाषा छात्रों के स्तर के अनुसार हो ।
7. फिल्म की कथावस्तु मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद होनी चाहिए, उसमें किया गया अभिनय भी आकर्षक एवं सुन्दर होना चाहिए।
2. पार चित्रदर्शी (Epidiascope)-इसको अमेरिका में ओपेक प्रोजेक्टर भी कहा है । इसके समतल पर बिखरी सामग्री तेज प्रकाश द्वारा पर्दे पर प्रतिबिम्बित की जाती है। इसी कारण पुस्तक पर छपे चित्र भी प्रक्षेपित किये जा सकते हैं। इस यंत्र द्वारा छोटे चित्र, फोटो चित्रों, मानचित्रों, रेखाचित्रों, सिक्कों, मुद्रित सामग्री आदि को बड़ा करके पर्दे पर प्रदर्शित किया जाता है। इसके प्रयोग से कई लाभ हैं। इनकी कीमत कम होती है। प्रत्येक अध्यापक इनको काम में ला सकता है। साथ ही सभी छात्रों को इनके माध्यम से पढ़ाना भी सम्भव है।
3. टेलीविजन (Television)-टेलीविजन नवीनतम श्रव्य-दृश्य उपकरण है। शिक्षा देने के लिए इसका प्रयोग पाश्चात्य देशों में किया जा रहा है। भारत में इसका प्रयोग गत कुछ वर्षों से हो रहा है। भारत में विद्यालयी टेलीविजन का प्रारम्भ आकाशवाणी ने 1961 में फोर्ड फाउण्डेशन तथा दिल्ली के शिक्षा निदेशालय के सहयोग से किया। कक्षा-शिक्षण तथा टेलीविजन पाठों में उपयुक्त समन्वय स्थापित करने के लिए शिक्षकों तथा प्रधानाध्यापकों के लिए एक वर्कशॉप की व्यवस्था की गयी। इसकी सिफारिश पर 145 विद्यालयों में टेलीविजन सेट लगाये गये। नवीं कक्षा के छात्रों के लिए सप्ताह में तीन बार भौतिकशास्त्र तथा
रसायनशास्त्र के पाठ पढ़ाये जाने की व्यवस्था की गयी। इसके बाद 1966-67 से कक्षा 6 से 10 तक के लिए इस व्यवस्था को सुगठित किया गया और इसके क्षेत्र में अंग्रेजी तथा विज्ञान के विषयों को लिया गया ।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने फरवरी, 1980 में इन्सैट दूरदर्शन (Television) के उपयोग के लिए विस्तृत नीति तैयार करने के लिए कार्यदल गठित किया। कार्यदल ने विचार-विमर्श के दौरान इस बात पर बल दिया कि सुसंगत, अर्थपूर्ण तथा प्रभावी कार्यक्रम तैयार करने के उद्देश्य से विकेन्द्रित स्तर पर उत्पादन क्षमताओं का विकास करना आवश्यक है। अतः शिक्षा मंत्रालय ने यह निर्णय लिया कि शैक्षिक दूरदर्शन कार्यक्रम के उत्पादन की जिम्मेदारी दूरदर्शन से लेकर अब धीरे-धीरे शिक्षा-विशेषज्ञों के हाथ में दी जाय । इस निर्णय को ध्यान में रखकर शिक्षा मंत्रालय ने मई, 1980 में इन्सैट दूरदर्शन के शैक्षिक उपयोग की
योजना बनाने के लिए कार्यदल की स्थापना की। इस कार्यदल ने आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार तथा उत्तर प्रदेश आदि इन्सैट की सुविधाओं वाले राज्यों में उत्पादन केन्द्रों की स्थापना व्यवस्थित ढंग से करने का सुझाव दिया।
दिसम्बर, 1980 में शिक्षा मंत्रालय ने आकाशवाणी, दूरदर्शन, एन० सी. ई. आर. टी. तथा अन्य सम्बन्धित संगठनों के सहयोग से शैक्षिक प्रसारण पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की। इस कार्यशाला ने शैक्षिक प्रसारण के लिए मार्गदर्शक प्रारूप तैयार किया। इस मार्गदर्शक पर राज्यों तथा केन्द्र-शासित प्रदेशों की राय जानने के लिए उनके पास प्रारूप भेजे गये। टेलीविजन में बालक अपनी देखने और सुनने की-दोनों इन्द्रियों का प्रयोग करने के कारण किसी भी तथ्य को शीघ्रता से सीख जाता है। टेलीविजन का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि वह ‘जीवन्त’ होता है अर्थात् वह किसी बात या घटना की सदैव विकार मुक्त रूप में उसी क्षण पर्दे पर प्रस्तुत कर देता है जब वह घटित होती है। जीवन्त होने के कारण यह अत्यधिक वास्तविक होती है। छात्रों को इसके प्रतिबिम्बों की यथार्थता पर सहज विश्वास हो जाता है और यह विश्वास शिक्षण को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त यह उपकरण योग्यतम शिक्षकों को देश की शिक्षा-संस्थाओं तक पहुँचा देता है और शिक्षा के स्तर को उताने में सहायक होता है। इसका दूसरा महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इसमें मानचित्र, मॉडल, फोटोचित्र, फिल्म आदि विभिन्न प्रकार की श्रव्य-दृश्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है ताकि श्यामपट्ट, शिक्षण प्रभावशाली बन सके । टेलीविजन के महत्त्व का उल्लेख करते हुए थट व गेरबेरिच ने लिखा है, “यह सबसे अधिकाअशापूर्ण श्रव्य-दृश्य उपकरण है, क्योंकि सन्देशवाहन के इस
एक यंत्र में रेडियो तथा चलचित्र के सभ गुणों का सम्मिश्रण है।”
श्रव्य साधन
1. रेडियो (Radio)-‘रेडियो’ शिक्षा और मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण उपकरण है। आधुनिक शिक्षा-मनोविज्ञान में खेल द्वारा शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसलिए रेडियो की ओर शिक्षा-विशारदों तथा मनोवैज्ञानिकों का ध्यान गया और उन्होंने इस उपकरण की शैक्षिक महत्ता पर विचार किया। आजकल अखिल भारतीय रेडियो द्वारा भी छात्रों तथा बालकों की शिक्षा और मनोरंजन के लिए कार्यक्रम प्रसारित किये जाने लगे हैं। नागरिकशास्त्र के शिक्षण में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है । नागरिकता की शिक्षा, नागरिक के अधिकार तथा कर्त्तव्य, राज्य के उद्देश्य, नागरिकों के प्रति राज्य के कर्तव्य आदि ऐसे विषय हैं, जिनको रेडियो द्वारा बड़े रोचक ढंग से पढ़ाया जा सकता है। नागरिकशास्त्र के छात्र के लिए देश-विदेश के समाचारों का ज्ञान होना भी अत्यन्त आवश्यक है। आदर्श नागरिकता की प्राप्ति में इस उपकरण द्वारा बहुत सहायता प्रदान की जा सकती है।
रेडियो की उपादेयता के विषय में उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व वित्त मंत्री श्री सैयद अली जहीर ने कहा, “रेडियो ने शिक्षा तथा सीखने की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान की है और जैसे-जैसे हमारे साधन बढ़ते जाएँगे, वैसे ही हम प्रत्येक स्तर पर शिक्षकों के लिए इस सहायक सामग्री को उपलब्ध करा देंगे।” केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने ‘शिक्षा में रेडियो का उपयोग’ पर एक अध्ययन दल की स्थापना की। इसकी रिपोर्ट के आधार पर शैक्षिक प्रसारण के लिए एक विस्तृत परियोजना प्रतिपादित की गयी। शिक्षा के लिए रेडियो प्रसारण के उपयोग में तुरन्त लाने के लिए राज्य शिक्षा विभागों तथा आकाशवाणी को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) के अजमेर, भोपाल, भुवनेश्वर तथा मैसूर स्थित क्षेत्रीय शिक्षा महाविद्यालयों के साथ समन्वित करके शामिल किया गया। शिक्षा के लिए रेडियो प्रसारण के उपयोग के लिए क्षेत्रीय कॉलेजों के लिए मार्गदर्शन एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा तैयार किये गये। साथ ही इस परिषद् ने रेडियो पाठ्यक्रम भी तैयार किये । रेडियो प्रसारणों के उचित उपयोग और योजनाओं में राज्य शिक्षा विभागों को शामिल करने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। इस उपकरण के प्रयोग में शिक्षक का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका लाभ तभी उठाया जा सकता है, जब शिक्षक प्रोग्राम के पश्चात् छात्रों के अर्जित ज्ञान को प्रश्नों द्वारा जाँचें तथा उसके पश्चात् उनके ज्ञान को अपने कथन द्वारा समृद्ध बनाये । इसके पश्चात् उनसे उस विषय पर वाद-विवाद कराये तथा लेखबद्ध करने के लिए आदेश दे। ऐसा करने से छात्रों में तर्कसम्मत चिन्तन करने की वृत्ति काप विकास होगा तथा इस प्रकार काज्ञानार्जन स्थायी होगा। इससे छात्रों को बोलने की कला तथा अपने विचारों को क्रमबद्ध करना आ जायेगा।
2. टेप-रिकॉर्डर (Tape Recorder)–नागरिकशास्त्र-शिक्षण में टेप-रिकार्डर की बहुत उपादेयता है । इसके प्रयोग से रेडियो की सीमाओं को दूर किया जा सकता है । रेडियो के कार्यक्रम निश्चित समय पर आते हैं। यदि रात्रि के 9 बजे प्रधानमंत्री या अन्य किसी विद्वान् या राजनीतिज्ञ का भाषण आने वाला है तो हम उनका उपयोग नहीं कर सकते। इसके लिए विशिष्ट भावों तथा विचारों को टेप-रिकॉर्डर में भर लिया जाए तो हम उसका उपयोग विभिन्न और मनचाहे अवसरों पर कर सकते हैं। इसके द्वारा हम आधुनिक घटनाओं से छात्रों को परिचित करा सकते है