B.ED | नागरिकशास्त्र शिक्षण | Pedagogy of Civics Notes
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Q. मूल्यांकन की प्रविधियों का वर्णन करें।
(Discuss Techniques of Evaluation.)
Ans. मूल्यांकन प्रविधि का अभिप्राय उस रीति से है, जिसके द्वारा हम बालक के ज्ञान और व्यवहार में हुए परिवर्तनों तथा उसकी व्यक्तिगत विशेषताओं का मूल्यांकन करते हैं। डॉ. बी० एस० ब्लूम का मत है—“एक अच्छी मूल्यांकन प्रविधि या साधन या रीति वह है जो व्यवहार के वांछित परिवर्तन के वैध प्रमाणों को प्राप्त करने में समर्थ है।” हम समस्त व्यावहारिक परिवर्तनों को किसी एक प्रविधि द्वारा नहीं जाँच सकते हैं, वरन् विभिन्न व्यावहारिक परिवर्तनों को जाँचने के लिए विभिन्न प्रविधियों का प्रयोग करना आवश्यक है।
अतः मूल्यांकन में विविध प्रविधियों का समावेश है। इसकी पुष्टि राइटस्टोन के इस कथन से हो जाती है—“आधुनिक मूल्यांकन में जाँच करने की विविध विधियों—निष्पत्ति, अभिवृत्ति, व्यक्तित्व, चरित्र सम्बन्धी परीक्षणों, क्रम-निर्धारण मान, प्रश्नावली, प्रतिफलों के निर्णय मान, साक्षात्कार, नियन्त्रित-निरीक्षण प्रविधियाँ, समाजमितिक प्रविधियाँ तथा घटनावृत्तों का प्रयोग होता है।”
मूल्यांकन की प्रमुख प्रविधियों का विवेचन नीचे दिया जा रहा है-
1. निरीक्षण प्रविधि (Observation Technique)—इस प्रविधि द्वारा बालकों के व्यवहार, क्रियाओं, संवेगात्मक एवं बौद्धिक परिपक्वता तथ सामाजिक व्यवस्थापन के सम्बन्ध में प्रमाण प्रदान किये जाते हैं। यह प्रविधि आदतों तथा कुशलताओं के विकास को जाँचने के लिए भी उपयोगी है। सतर्कता एवं क्रमबद्ध रूप से किया गया निरीक्षण-छात्रै के सम्बन्ध में उपयुक्त निर्णय करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
2. साक्षात्कार (Interview)- विद्यालय में मूल्यांकन करने के लिए साक्षात्कार महत्त्वपूर्ण साधन है । इनको केवल सूचना संग्रह करने वाली प्रविधि के रूप में ही ग्रहण नहीं किया जाना चाहिए, वरन् इसके द्वारा छात्र के व्यवहार का निदान एवं व्यक्ति की निष्पत्ति का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसके द्वारा रुचियों के विकास और दृष्टिकोणों में हुए परिवर्तनों के सम्बन्ध में पर्याप्त सामग्री प्राप्त की जा सकती है। साक्षात्कार बालकों की विभिन्न व्यक्तिगत विशेषताओं की जाँच करने में सहायक है। साक्षात्कार प्रविधि दो प्रकार की होती है-
1. नियंत्रित तथा 2. अनियंत्रित ।
नियंत्रित साक्षात्कार में उद्देश्यों के अनुकूल प्रश्नावली बनाकर साक्षात्कार किया जाता है। अनियंत्रित में ऐसा नहीं होता है।
3. प्रश्नावली (Questionnaire)-छात्रों से उनकी स्वयं की रुचियों एवं अभिवृत्तियों के विकास से सम्बन्धित तथा अन्य प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए प्रश्नावली बहुत सरल एवं उपयोगी रीति है।
4. पड़ताल सूचियाँ (Check Lists)-राइटस्टोन ने लिखा है-“पड़ताल-सूची, जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, कुछ चुने हुए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों या अनुच्छेदों की एक सूची होती है, जिसके आगे निरीक्षक (6) इस प्रकार का चिह्न लगा देता है, जो निरीक्षण की उपस्थिति या अनुपस्थिति का सूचक होता है।” वस्तुतः यह प्रविधि प्रश्नावली की भाँति ही व्यक्तिगत सूचना एवं मत जानने का प्रमुख साधन है।
5. क्रम-निर्धारण मान (Rating Scale)-राइटस्टोन का मत है-“क्रम-निर्धारण मान में कुछ चुने शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों या अनुच्छेदों की सूची होती है, जिसके आगे निरीक्षक मूल्यों के किसी वस्तुनिष्ठ मान के आधार पर कोई मूल्य या क्रम अंकित करता है।”
इस प्रविधि का प्रयोग उन विभिन्न परिस्थितियों या विशेषताओं का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है जो विभिन्न मात्राओं में प्रस्तुत की जा सकती है। इसके द्वारा हम बालकों को किसी विशेष क्षेत्र की कुशलताओं की जाँच उस क्षेत्र में उसके व्यवहार की प्रगति को देखकर भी कर सकत हैं।
6. छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ (Pupil’s Products) छात्रों द्वारा निर्मित वस्तुएँ भी उनके व्यवहार एवं रुचि सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण साधन प्रदान करती हैं। उदाहरणार्थ-चित्रकला की कृतियाँ छात्रों की कुशलता तथा चित्रकला में उनकी रुचि के विषय में पर्याप्त प्रमाण प्रदान करती हैं।
7. अभिलेख (Records)-छात्रों की डायरियाँ, शिक्षकों द्वारा तैयार किये गये घटना-वृत्त (Anecdotal Records) तथा संचित अभिलेख-पत्र भी मूल्यांकन की महत्त्वपूर्ण प्रविधियाँ हैं, “जिमका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
(अ) छात्रों की डायरियाँ (Diaries of Pupils)-ये उनकी रुचियों, अभिवृत्तियों, व्यक्तिगत एवं सामाजिक समस्याओं आदि पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डालती हैं।
(ब) घटना-वृत्त (Anecdotal Records)-इसके द्वारा बालकों के उस व्यवहार पर प्रकाश डाला जात है, जो वे किसी घटनावश या भावावेश की स्थिति में करते हैं । घटना-वृत्तों द्वारा बालक के दूसरों के प्रति दृष्टिकोण तथा व्यक्तित्व के अन्य पक्षों के विषय में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है
(स) संचित अभिलेख-पत्र (Cummulative Records)-राइटस्टोन ने इसको परिभाषित करते हुए लिखा है-“संचित अभिलेख-पत्र छात्रों के निर्देशन के लिए आवश्यक सूचना को लेखबद्ध करने, फाइल बनाने तथा उसका उपयोग करने की एक विधि है। यह प्रत्येक छात्र के शैक्षिक, मानसिक, शारीरिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक संचित विकास की व्यक्तिगत सूची प्रदान करता है।” संचित अभिलेख-पत्र द्वारा छात्रों की विभिन्न दशाओं में हुई प्रगति एवं अवनति के विषय में ज्ञान प्रदान किया जाता है।
8. समाजमिति (Sociometry)—यह प्रविधि छात्रों के परस्पर अन्तःसम्बन्धों की स्थिति को जत करने के लिए उपयुक्त है। इसके द्वारा यह ज्ञात किया जाता है कि कक्षा में पूरे समूह द्वारा कोई छात्र किस सीमा तक स्वीकार या अस्वीकार करता है और कौन से छात्र एकाकी हैं? यह प्रविधि कक्षा की सामाजिक परिस्थिति (Social Climate) को जानने तथा उसमें सुधार लाने के लिए प्रयुक्त की जाती है।
9. परीक्षा प्रविधि (Examination Technique)-‘Examination’ शब्द का उद्गम ‘Examen’ नामक शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है—’तराजू का पलड़ा’ (Tongue of a Balance)। सामान्यत: इस प्रविधि का प्रयोग ज्ञन या कार्य की व्यवस्थित जाँच के लिए किया जाता है, चाहे वह परीक्षा किसी बाह्य शक्ति द्वारा ली जाए या स्वयं अध्यापकों द्वारा ली जाए।
परीक्षा प्रविधि के निम्नलिखित रूप हैं-
(i) मौखिक परीक्षा (Oral Examination)-इस प्रविधि का प्रयोग पढ़ने की योग्यता, उच्चारण एवं सूचनाओं की जाँच तथा लिखित परीक्षाओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है। यह प्रविधि या रीति चारित्रिक रूप से वैयक्तिक होती है । इसके द्वारा बालकों के व्यक्तिगत गुणों एवं अवगुणों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसमें छात्र परीक्षक के समक्ष उसके प्रश्नों का उत्तर देता है जिससे परीक्षक उसके आत्म-विश्वास, अभिव्यंजना-शक्ति आदि की जाँच कर लेता है।
(ii) प्रायोगिक परीक्षा (Practical Examination)-इसका प्रयोग प्रयोगात्मक विधियों-विज्ञान, हस्तकला, ड्राइंग, कृषि आदि में किया जाता है। इसमें बालक अपने कार्य का नमूना परीक्षक के समक्ष प्रस्तुत करता है।
(iii) लिखित परीक्षा (Written Examination)- सामान्यत: विद्यालयों में परीक्षा के इस रूप का प्रचलन है। इसके अन्तर्गत कार्य-समर्पण (Assignment) प्रतिवेदन लिखना, प्रश्नों के उत्तर लिखना एवं कागज-पेंसिल परीक्षाएँ (Paper and Pencil Test) आती हैं। कागज-पैसिल परीक्षाएं छात्रों की ज्ञान-प्राप्ति एवं पाठ्य-वस्तु को संगठित तथा व्याख्या करने की योग्यता आदि की जाँच करने में बहुत उपयोगी हैं। लिखित परीक्षाओं के दो रूप (क) निबन्धात्मक परीक्षा (Essay Type Examination), (ख) लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Question), (ग) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions) अधिक प्रचलित
(क) निबन्धात्मक परीक्षा (Essay Type Examination)- हमारे देश में इस परीक्षा का अधिक प्रचलन है। इसमें बालकों को कुछ प्रश्नों का उत्तर निश्चित समय के अन्दर निबन्ध के रूप में देना पड़ता है। इसमें बालकों की अभिव्यंजना शक्ति, सुलेख, लिखने की शैली, भाषा आदि का अधिक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त इसमें आत्मगत तत्व (Subjective element) की प्रधानता रहती है। इस प्रणाली की कटु आलोचना की गयी है परन्तु इस आलोचना के होते हुए भी इसको छोड़ा नहीं जा सकता क्योंकि इसके द्वारा बालक अपने विचारों को व्यवस्थित रूप में व्यक्त करना सीख जाते हैं। इसके अतिरिक्त यह बालकों को
आदान-प्रदान करने की नैसर्गिक रुचि को सन्तुष्ट करने में सहायता देती है।
(ख) लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Questions)-इन प्रश्नों के उत्तर संक्षिप्त रूप में दिये जाते हैं, उदाहरणार्थ-5 पंक्तियाँ या 50 शब्दों में। ये प्रश्न छात्रों की अभिव्यक्ति की जाँच के साथ वस्तुपरकता की दृष्टि से भी उपयुक्त रहते हैं। इन्हें प्रश्न-पत्र के एक खण्ड में दिया जाना चाहिए। प्रत्येक प्रश्न किसी निश्चित उद्देश्य पर आधारित होना चाहिए। ऐसे प्रश्न के कुछ नमूने निम्नांकित हैं-
1. लोकसभा का स्पीकर किस स्थिति में अपना मत दे सकता है?
2. राष्ट्रपति के वित्त सम्बन्धी दो अधिकार बताइए।
3. प्रधानमंत्री बनने के लिए किन-किन शर्तों को पूरा करना आवश्यक है?
4. भारत के उपराष्ट्रपति पद की निर्वाचन प्रक्रिया को 50 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
(ग) वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)-जे. एम. राइस ने, जो शिक्षा में वैज्ञानिक आन्दोलन के प्रवर्तकों में से एक था, वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का विकास किया । उसने वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की रचना, प्रयोग एवं उनके अंकन आदि के विषय में अध्ययन किया । परन्तु उसके द्वारा चलाए गए इस आन्दोलन को स्टार्च एवं इलियट के अध्ययनों से बहुत बल मिला। इनके अध्ययनों के परिणामस्वरूप वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अधिकाधिक प्रयोग किया जाने लगा।
वस्तुनिष्ठ परीक्षण—वह परीक्षण है जिसमें विभिन्न अंकन करने वाले स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करते एक ही निष्कर्ष पर पहुँचते हैं या किसी कार्य के लिए एक से अंक प्रदान करते हैं। सी. वी. गुड के अनुसार-“वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रायः एकान्तर, प्रत्युत्तर, बहुनिवर्चन, तुल्य या रिक्त स्थान पूर्ति रूप के प्रश्नों पर आधारित होती है और सही उत्तरों की कुंजी द्वारा जाँची जाती है। यदि कोई उत्तर कुंजी के विपरीत है तो उसे अशुद्ध माना जाता है-
वस्तुनिष्ठ जाँच निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
1. प्रमापीकृत वस्तुनिष्ठ जाँच (Standardized Objective Tests),
2. अध्यापक निर्मित-वस्तुनिष्ठ जाँच (Teacher-made Objective Tests)। प्रमापीकृत तथा अध्यापक निर्मित जाँचों या परीक्षणों में अन्तर केवल इतना है कि प्रथम को प्रमापीकृत करके दिया जाता है और इसका प्रयोग सामान्य रूप से किया जा सकता है।
साथ ही इनका निर्माण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। परन्तु अध्यापक निर्मित परीक्षणों का प्रयोग सामान्य रूप से नहीं किया जाता । इनका प्रयोग विशेष स्थानों पर विशेष परिस्थितियों में हो सकता है, क्योंकि इनका निर्माण विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही किया जाता है