Pedagogy of civics

B.ED NOTES IN HINDI | B.ED SYLLABUS IN HINDI

B.ED NOTES IN HINDI | B.ED SYLLABUS IN HINDI

Q. नागरिकशास्त्र का किस प्रकार अन्य विषयों से सम्बन्ध स्थापित किय जा सकता है? अपने उत्तर के पक्ष में उपयुक्त उदाहरण दें।
(How can civics be correlated with other subjects ? Give suitable eramples to support your answer.)
Ans.
नागरिशास्त्र तथा इतिहास
इतिहास को मानव सभ्यता का कोश कहा जाता है जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक उन्नति का विश्लेषण प्राप्त होता है। इतिहास भूतकाल का विश्लेषण करके वर्तमान को स्पष्ट करता है तथा इसके साथ ही भविष्य के लिए मार्ग प्रदर्शित करता है। नागरिकशास्त्र केवल वर्तमान की सामाजिक व राजनैतिक समस्याओं का विवेचन करता है। परन्तु इस शास्त्र को इनकी विवेचना करने के लिए इतिहास का सहारा लेना पड़ता है, क्योंकि वर्तमान अतीत की देन है। वर्तमान को समझने के लिए हमें इतिहास के पृष्ठों को टटोलना पड़ेगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जिन विषयों का वर्णन हमें इतिहास में मिलता है, उन्हीं के आधार पर नागरिकशास्त्र के विषय बनाये जाते हैं क्योंकि इतिहास राजनैतिक स्वतंत्रता का संग्राम है। इस संग्राम में हमें नागरिक की वीरता, उत्साह, तत्परता, त्याग, सेवा, उसकी विजय तथा पराजय का वर्णन मिलता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इतिहास नागरिक के कर्तव्यों की सूची है। इससे हमें ज्ञात होता है कि हम अपनी वर्तमान अवस्था में किस प्रकार और क्यों अवतरित हुए हैं?
नागरिकशास्त्र के शिक्षण का एक मुख्य उद्देश्य सामाजिक संघपों तथा कलह को दूर करके आदर्श समाज की स्थापना करना है। यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो आदर्श सामाजिक जीवन की स्थापना तभी की जा सकती है, जब हमें प्राचीन समाज तथा उसके आदशी का ज्ञान हो । इनका ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास का सहारा लेना पड़ेगा । पूर्वजों के आदशी, उदाहरणों, सफलताओं, असफलताओं तथा त्रुटियों से हमें आदर्श समाज की स्थापना करने में बहुत सहायता मिलेगी, क्योंकि मानव को उनकी गलतियों को नहीं दुहराना पड़ेगा। यदि यह इतिहास का सहारा नहीं लेगा तो उसे जन्म से अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ेगा। उन्हीं दशाओं और त्रुटियों को दुहराना पड़ेगा जो कि मानव अपनी आदिम अवस्था में अपना चुका है । इस पुनरावृत्ति से बचने तथा उदाहरणों से लाभ उठाने के लिए मानव को इतिहास का सहारा लेना पड़ेगा। इससे स्पष्ट होता है कि नागरिकशास्त्र का शिक्षक इतिहास की सहायता के बिना इस लक्ष्य की प्राप्ति नहीं कर सकेगा।
इतिहास को एक प्रयोगशाला के समान माना गया है जिसमें मानव ने भिन्न-भिन्न युगों में अपने प्रयोग किये और इन प्रयोगों द्वारा जो परिणाम निकले, उनका नागरिकशास्त्र द्वारा उपयोग किया जाता है। दोनों ही शास्त्र सामाजिक जीवन से सम्बन्धित हैं परन्तु इन दोनों में अन्तर केवल इस बात का है कि इतिहास अतीत की घटनाओं का वर्णन करता है। इस कारण उसे ‘वर्णनात्मक शास्त्र’ कहा जाता है। नागरिकशास्त्र समाज में नागरिक तथा उसकी समस्याओं की मुख्य रूप से विवेचना करता है। इस विवेचना को वह अदर्शात्मक रूप में ही प्रस्तुत करता है। इस आदर्शात्मक रूप को वह इतिहास से ग्रहण करता है। इस कारण इसे ‘आदर्शात्मक शास्त्र’ (Normative Science) कहा जाता है।
नागरिकशास्त्र का शिक्षक इतिहास का सहारा लेकर अपने छात्रों में आदर्श नागरिकता के गुणों को विकसित कर सकता है। उदाहरणार्थ, स्वदेश-प्रेम, त्याग, सेवा, सहयोग, न्यायप्रियता, सत्यता, विनम्रता, कर्तव्यपरायणता आदि गुणों को इतिहास के तथ्यों की सहायता से उत्पन्न कर सकता है। शिवाजी, राणा प्रताप आदि की कहानियाँ सुनकर वह उनमें स्वदेश-प्रेम तथा भक्ति
की भावना विकसित कर सकता है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि की जीवन-गाथाओं की कहानियाँ बताकर वह अपने छात्रों में त्याग तथा सेवा की भावना विकसित कर सकता है।
इतिहास तथा नागरिकशास्त्र का सम्बन्ध-
इतिहास नागरिकशास्त्र के जीवन स्रोत के रूप में निम्नांकित दंगों से सहायक होता है-
(अ) इतिहास नागरिकशास्त्र के छात्रों को समाज के वर्तमान स्वरूप और उससे सम्बन्धित संस्थाओं तथा समस्याओं को भली-भाँति जानने में सहायता प्रदान करता है।
(ब) इतिहास नागरिकशास्त्र के छात्रों को उच्च आदर्श तथा शुद्ध निष्कर्ष निकालने में सहायता देता है।
(स) इतिहास नागरिकों में देश-भक्ति का संचार करके उनके नागरिक चरित्र के निर्माण में सहायता प्रदान करता है।
नागरिकशास्त्र तथा इतिहास के घनिष्ठ सम्बन्ध को निम्न विचारकों ने इस प्रकार व्यक्त किया है।
सीले (Seeley) का मत है “नागरिकशास्त्र इतिहास का फल है और इतिहास इस शास्त्र की जड़ है।”
विल्सन का मत है-“प्रत्येक राष्ट्र को निरन्तर अपने अतीत से सम्बन्ध कायम रखना चाहिए।” दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि नागरिकशास्त्र के वर्तमान स्वरूप को जानने के लिए अतीत का सहारा लेना आवश्यक है।
इतिहास नागरिकशास्त्र की प्रयोगशाला है -इतिहास को एक प्रयोगशाला के समान माना गया है जिसमें मानव ने भिन्न-भिन्न युगों में अपने प्रयोग किये और इन प्रयोगों द्वारा जो परिणाम निकले उनका नागरिकशास्त्र द्वारा उपयोग किया जाता है।
इतिहास भी नागरिकशास्त्र पर निर्भर है- यदि इतिहास नागरिकशास्त्र की प्रयोगशाला है और इसे अध्ययन सामग्री प्रदान करता है तो नागरिकशास्त्र भी इतिहास के आधार के रूप में कार्य करता है । नागरिकशास्त्र का प्रमुख लक्ष्य आदर्श नागरिक का निर्माण करना है। आदर्श नागरिक देश के उज्जवल इतिहास का निर्माणकर्ता है। यदि नागरिकशास्त्र किसी देश के लोगों
को कर्त्तव्य पालन के प्रति प्रोत्साहित करने में सफल होता है तो अवश्य ही उस देश का इतिहास स्वर्णिम होगा। इस प्रकार नागरिकशास्त्र का अध्ययन उच्च कोटि के इतिहास के निर्माण का आधार होता है।
नागरिकशास्त्र तथा इतिहास में अन्तर-
इन दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध होते हुए भी कुछ अन्तर हैं जो इस प्रकार व्यक्त किये जा सकते हैं-(अ) इतिहास का क्षेत्र नागरिकशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है। इतिहास अतीतकालीन मानव जीवन के विभिन्न पक्षों की विवेचना करता है। जबकि नागरिकशास्त्र मानव के नागरिक तथा राजनैतिक जीवन की व्याख्या करता है।
(ब) इतिहास की विधि वर्णनात्मक है जबकि नागरिकशास्त्र की विधि मुख्यतः पर्यवेक्षणात्मक एवं विचारात्मक है।
(स) इतिहास घटनाओं का यथाक्रम वर्णन करता है । इसके विपरीत नागरिकशास्त्र अतीत तथा वर्तमान अवस्था के साथ-साथ भावी आदर्श की भी कल्पना करता है। इस प्रकार इतिहास एक यथार्थवादी विज्ञान तथा नागरिकशास्त्र एक आदर्शवादी विज्ञान (Normative Science) है।
(द) इन दोनों शास्त्रों के उद्देश्य एक से नहीं हैं। इतिहास राज्य की उत्पत्ति तथा विकास का विवेचन करता है । नागरिकशास्त्र में राज्य के उद्देश्य तथा उसकी प्रकृति क्या होनी चाहिये, का विवेचन किया जाता है।
(य) इतिहास का कार्यक्षेत्र समाजशास्त्र की भाँति विस्तृत है, परन्तु नागरिकशास्त्र का अध्ययन समाज की विभिन्न संस्थाओं के संगठित अध्ययन में सीमित है। अंत में हम इनके सम्बन्धों को स्पष्ट करने के लिए कुछ विचारकों के विचारों को प्रस्तुत कर रहे हैं-1. बर्गेस-“यदि नागरिकशास्त्र तथा इतिहास को एक-दूसरे से पृथक कर दिया जाए तो उनमें से एक मुर्दा नहीं तो कम से कम लैंगड़ा- लूला अवश्य हो जाएगा (बिना आधार के) आकाश में उड़ने वाले फूल की भाँति हो जाएगा।”
2. लीकॉक-“दोनों शास्त्र एक-दूसरे के सहायक और पूरक ज्ञान हैं।”
नागरिकशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र
‘नागरिकशास्त्र’ तथा ‘राजनीतिशास्त्र’ दोनों को अंग्रेजी में क्रमश: (Civics) तथा (Politics) कहते हैं। ‘सिविक्स’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के दो शब्दों सिंविस (Civis) तथा सिविटास (Civitas) से हुई जिनका अर्थ क्रमशः नागरिक तथा नगर है। इसी प्रकार ‘राजनीतिशास्त्र’ के अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द ‘Politics” की उत्पत्ति ‘पोलिस’ (Polis) तथा ‘पोलिटिकस’ (Politicus) शब्दों से मानी जाती है जिनके अर्थ क्रमश: नगर तथा नागरिक हैं
इस प्रकार दोनों ही विषय नागरिक तथा नगर का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार इन विषयों में बहुत घनिष्ठता है। इस कारण नागरिकशास्त्र को राजनीतिशास्त्र का वह भाग माना जाता है जिसका सम्बन्ध नागरिक के अधिकारों तथा कर्त्तव्यों से है।
नागरिकशास्त्र की राजनीतिशास्त्र पर निर्भरता – नागरिकशास्त्र का मुख्य लक्ष्य है आदर्श नागरिक जीवन की व्यवस्था । यह व्यवस्था राज्य की सहायता से सम्भव हो सकती है। राज्य व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षक है। यही जीवन के लिए मुख्य
आवश्यकताओं-शांति एवं व्यवस्था, श्रेष्ठ शिक्षा-व्यवस्था, अधिकतम सम्भव सीमा तक आर्थिक समानता आदि की पूर्ति करता है। इनके अभाव में आदर्श नागरिक जीवन की व्यवस्था सम्भव नहीं हो सकती। राजनीतिशास्त्र राज्य का अध्ययन करता है। इस कारण नागरिकशास्त्र उस पर निर्भर है। राजनीतिशास्त्र नागरिकशास्त्र की साधनाओं को सफल बनाने का साधन भी है। राज्य शिक्षा तथा रोजगार की व्यवस्था करके आदर्श नागरिकता के लिये आधार प्रस्तुत करता है।
नागरिकशास्त्र तथा नीतिशास्त्र
नीतिशास्त्र मनुष्य के आचरण, विचार, सत्-असत्, औचित्य-अनौचित्य आदि का ज्ञान है। नीतिशास्त्र से अभिप्राय उस ज्ञान से है जिसके द्वारा धर्म-अधर्म, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य, शुभ-अशुभ तथा पाप-पुण्य में भेद किया जाता है। यह शास्त्र हमारे उचित-अनुचित, अच्छे-बुरे आचरण का मापदण्ड निर्धारित करता है । यह शास्त्र मानव को अच्छे मार्ग पर चलने तथा बुरे मार्ग से बचने की शिक्षा भी प्रदान करता है।
मैकेंजी के शब्दों में –“नीतिशास्त्र मानव जीवन में निहित आदर्शों का अध्ययन है।”
डीवी के अनुसार-‘नीतिशास्त्र आचरण का वह विज्ञान है जिसमें आचरण के औचित्य-अनौचित्य तथा अच्छाई-बुराई पर विचार किया जाता है।”
सिजविक के शब्दों में – “नीतिशास्त्र इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्तियों के लिए कर्त्तव्य तथा अकर्त्तव्य क्या हैं।”
नीतिशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र ‘आदर्श व्यक्ति’ है । नागरिकशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र भी नागरिकता की दृष्टि से ‘आदर्श व्यक्ति’ है। अतः ये दोनों शास्त्र परस्पर सम्बन्धित हैं। इनकी सम्बद्धता को निम्न रूपों में स्पष्ट कया जा सकता है-
1. नागरिकशास्त्र आदर्श नागरिक के निर्माण से सम्बन्धित विज्ञान है। आदर्श नागरिक वही हो सकता है जो अपना जीवन
नीतिशास्त्र द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के अनुकूल व्यतीत करे । नीतिशास्त्र आदर्श मानव के निर्माण में सहायता प्रदान करके आदर्श नागरिक के निर्माण में सहायक होता है। नीतिशास्त्र के अभाव में नागरिकशास्त्र अपने उद्देश्य-आदर्श नागरिक का निर्माण की पूर्ति नहीं कर सकता ।
2. नागरिकशास्त्र राजनैतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में व्यावहारिक कदम उठाकर नीतिशास्त्र के लिए सहायक होता है।
3. प्रो. पुन्ताम्बेकर के शब्दों में – “यदि नीतिशास्त्र दर्शन है तो नागरिकशास्त्र आदर्श जीवन का आचरण है।”
यद्यपि ये दोनों शास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर हैं, फिर भी दोनों शास्त्र अलग-अलग हैं । इन दोनों के क्षेत्र भी अलग-अलग हैं। नीतिशास्त्र का क्षेत्र नागरिकशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है। नीतिशास्त्र समग्र मानवीय आचरण का अध्ययन करता है जबकि नागरिकशास्त्र नागरिक क्रिया-कलापों तथा आचरण का ही अध्ययन करता है
नीतिशास्त्र आदर्श प्रधान है और नागरिकशास्त्र उसकी अपेक्षा अधिक व्यावहारिक है।
नागरिकशास्त्र तथा मनोविज्ञान
अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति नागरिकशास्त्र तथा मनोविज्ञान में भी घनिष्ठ सम्बन्ध। गत कुछ वर्षों में राजनैतिक चिन्तन के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक राजनैतिक चिन्तकों के रूप में एक नया सम्प्रदाय उत्पन्न हुआ। बेजहॉट का नाम इस सम्प्रदाय में आता है जिस पर मैक्डूगल, दुर्थीम आदि मनोवैज्ञानिकों की रचनाओं का प्रभाव पड़ा । नागरिकशास्त्र सामाजिक व्यवहार का भी अध्ययन करता है। सामाजिक व्यवहार को समझने में मनोविज्ञान उसकी सहायता करता है। मनोविज्ञान के सिद्धान्तों से सामाजिक व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है। इस प्रकार मनोविज्ञान आदर्श नागरिकों के निर्माण में सकारात्मक रूप से सहायता प्रदान करता है। मनुष्य का प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार एक मनोवैज्ञानिक परिवेश की उपज होता है। हिटलर या मुसोलिनी के निरंकुश शासन का आधार उनकी मानसिक तथा उनके देशवासियों के मनोविज्ञान की उपज था। मनोविज्ञान सरकार को स्थिर तथा लोकप्रिय बनाने में भी सहायक होता है। साथ ही यह विशेष प्रकार की सरकार स्थापित करने तथा कानूनों को जनता के व्यवहारानुकूल बनाने की कुंजी है। यद्यपि नागरिकशास्त्र तथा मनोविज्ञान एक-दसूरे से सम्बन्ध रखते हैं, परन्तु ये दोनों शास्त्र एक-दूसरे से पृथक् भी हैं। नागरिकशास्त्र नागरिक जीवन के सभी पक्षों का अध्ययन करता है। इसके विपरीत मनोविज्ञान मानसिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। नागरिकशास्त्र का मुख्य विषय नागरिकता है जबकि मनोविज्ञान चेतन, अचेतन तथा अर्द्धचेतन मानवीय अवस्थाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। नागरिकशास्त्र में आदर्शवाद का पुट है जबकि मनोविज्ञान में व्यावहारिकता पर बल दिया जाता है।
नागरिकशास्त्र तथा भूगोल
भूगोल पृथ्वी का अध्ययन करता है; अर्थात् विश्व की प्राकृतिक दशाओं का विवेचन करता है। किसी राष्ट्र की आर्थिक स्थिति-उसकी भौगोलिक स्थितियों पर निर्भर होती है उदाहरणार्थ, इंग्लैण्ड को उसकी भौगोलिक स्थितियों ने एक व्यापारिक राष्ट्र बनाया। इसके अतिरिक्त कुछ विद्वानों का मत है कि प्राकृतिक वातावरण मनुष्य के रहन-सहन, रीति-रिवाज, भाषा, शारीरिक गठन आदि को निर्धारित करता है । इतिहास इस बात का साक्षी है कि शिवाजी की विजय का मुख्य कारण भौगोलिक स्थितियाँ थीं। आधुनिक काल के कुछ भूगोलशास्त्री इस बात से पूर्णतया सहमत नहीं हैं। उनका विचार है कि भूगोल मानव का अध्ययन करता है। यह सत्य है कि वह अपने प्राकृतिक वातावरण से भी कुछ-न-कुछ सीखता है। परन्तु यह उसके ऊपर पूर्णतया निर्भर नहीं है। आज के युग में मानव ने प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है। वह जो कुछ भी सीखता है—वह मानवीय, अर्थात् सामाजिक तथा प्राकृतिक वातावरण के परस्पर सहयोग से सीखता है। नागरिकशास्त्र भी मानव का अध्ययन करता है। इसका भूगोल से सम्बन्ध इसी बात में है कि मानव प्राकृतिक वातावरण के सहयोग से किस प्रकार सीखता है और यह प्राप्त किया हुआ अनुभव मानव-समाज के कल्याण में कहाँ तक सहायक है। भूगोल अप्रत्यक्ष रूप से मानव को प्रभावित करता है। जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, किसी देश की आर्थिक दशा का कार्य करती है। अर्थशास्त्र एक उन्नत राज्य के निर्माण में योग देकर
अप्रत्यक्ष रूप से आदर्श नागरिकता को सम्भव बनाता है।.
नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र
जब अर्थशास्त्र धन की उत्पत्ति, वितरण, विनिमय आदि का विवेचन करता है तो उसे नागरिकशास्त्र की आवश्यकता होती है। नागरिकशास्त्र ऐसी व्यवस्था के विषय में बताता है कि नागरिक पर कौन-कौन से कर लगाए जाएँ और उनको किस प्रकार वसूल किया जाए? यह शास्त्र इस बात को बताता है कि कर-प्रणाली जनता के हित में होनी चाहिये । इस प्रकार नागरिकशास्त्र जनहित का सिद्धान्त अर्थशास्त्र को प्रदान करता है। नागरिकशास्त्र अर्थशास्त्र की साधनाओं को पूर्ण करने में सहायता प्रदान करता है
नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक – ये दोनों शास्त्र एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। प्रो० मिहिर कुमार सेन के शब्दों में, “अर्थशास्त्र कला के रूप में नागरिकशास्त्र पर और नागरिकशास्त्र कला के रूप में अर्थशास्त्र पर निर्भर है। ये दोनों शास्त्र एक-दूसरे के परिपूरक तथा सहायक हैं।”
नागरिकशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अन्तर-
इन दोनों में निम्नांकित भेद हैं-
1. अर्थशास्त्र की मुख्य समस्या सम्पत्ति, उसका उचित वितरण तथा उपयोग है। इसके विपरीत नागरिकशास्त्र की मुख्य समस्या नागरिक तथा समाज के पारस्परिक सम्बन्धों का सुसंचालन है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि अर्थशास्त्र कीमतों का और नागरिकशास्त्र मूल्यों
का अध्ययन है।
2. अर्थशास्त्र नागरिकों के आर्थिक विकास पर बल देता है। इसके विपरीत नागरिकशास्त्र मनुष्य के सर्वांगीण विकास पर बल देता है।
3. नागरिकशास्त्र में आदर्शवाद का पुट पाया जाता है जबकि अर्थशास्त्र में यथार्थवादी दृष्टिकोण पर बल दिया जाता है।
4. नागरिकशास्त्र आदर्शात्मक तथा अर्थशास्त्र मुख्यतः व्याख्यात्मक (Descriptive) विज्ञान है।
नागरिकशास्त्र तथा समाजशास्त्र
समाजशास्त्र उन समस्त सामाजिक विज्ञानों का जन्मदाता है जिनका मानव के अध्ययन के साथ सम्बन्ध है और नागरिकशास्त्र भी इनमें से एक है। समाजशास्त्र समाज के प्रत्येक क्षेत्र का अध्ययन प्रत्येक दृश्टिकोण से करता है। समाज का किस प्रकार उद्गम हुआ, इसका किस प्रकार विकास हुआ? आदि बातों का विवेचन समाजशास्त्र द्वारा किया जाता है। समाजशास्त्र समाज के समस्त पहलुओं का अध्ययन करता है, जैसे-सामाजिक रीति-रिवाज, नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक, सभ्यता, संस्कृति, संघों की उत्पत्ति, उनका विकास आदि । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि यह शास्त्र सभ्यता तथा संस्कृति की उत्पत्ति तथा उसके विकास का वर्णन करता है।
रॉस के शब्दों में –‘सामाजक तथ्यों का विज्ञान समाजशास्त्र है।”
हिलर के शब्दों में –“मनुष्यों के आपसी सम्बन्धों का अध्ययन, एक दूसरे के प्रति उनका व्यवहार, उनके मापदण्ड, जिनसे कि वे अपने व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं, समाजशास्त्र का विषय है।”
डॉ. बेनीप्रसाद के शब्दों में – “समाजशास्त्र में सामाजिक विकास का उल्लेख होता है तथा सामाजिक जीवन के मूलभूत तथ्यों का अध्ययन किया जाता है।” इस प्रकार समाजशास्त्र, सामाजिक जीवन के विभिन्न अंगों की व्याख्या करता है। उसमें समाज का अविकसित, अर्द्धविकसित तथा पूर्ण विकसित सभी रूपों में वर्णन मिलता है। नागरिकशास्त्र में व्यक्ति के नागरिक जीवन का अध्ययन व्यक्ति की मूल सामाजिक प्रवृत्ति को आधार मानकर किया जाता है। नागरिकशास्त्र मनुष्य तथा समाज का अध्ययन नागरिकता के दृष्टिकोण से करता है।
समाजशास्त्र पर नागरिकशास्त्र की निर्भरता- समाजशास्त्र समग्र सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र से मानव जीवन के समस्त पक्षों का ज्ञान प्राप्त करके ही नागरिकशास्त्र अपने उद्देश्य आदर्श नागरिक के निर्माण की पूर्ति कर सकता है। आदर्श नागरिकों के निर्माण के लिए उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि को जनना आवश्यक है। यह सामाजिक पृष्ठभूमि नागरिकशास्त्र की आधारशिला के रूप में कार्य करती है।
रेट्जन हॉफर का मत है—“राज्य एक सामाजिक तथा राजनैतिक संगठन है, वह अपनी प्रारम्भिक स्थिति में राजनैतिक संस्था की अपेक्षा सामाजिक संस्था ही अधिक है। यह सही है कि राजनैतिक तथ्यों का आधार सामाजिक तथ्यों में है और यदि नागरिकशास्त्र समाजशास्त्र से भिन्न है तो वह इस कारण से कि उसके विस्तृत क्षेत्र के समुचित विवेचन के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, भिन्नता इस कारण नहीं है कि इन दोनों शास्त्रों के बीच कोई विभाजन रेखा है।”
नागरिकशास्त्र समाजशास्त्र के सहायक के रूप में –  नागरिकशास्त्र भी समाजशास्त्र का सहायक है। समाजशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य सम्पूर्ण समाज के प्रत्येक क्षेत्र की कुरीतियों को करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। ऐसे समाज का निर्माण तभी सम्भव है जब नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत हो । नागरिकशास्त्र नागरिकों को सचेत बनाने का कार्य करता है। ऐसा करके वह समाजशास्त्र का सहायक बनता है।
नागरिकशास्त्र तथा समाजशास्त्र में अन्तर—यद्यपि ये दोनों शास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर हैं, परन्तु ये दोनों अपने विषय-क्षेत्र में अलग-अलग हैं । समाजशास्त्र का क्षेत्र नागरिकशास्त्र के क्षेत्र से अधिक विस्तृत है। समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र (धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक आदि) का अध्ययन करता है। इसके विपरीत नागरिकशास्त्र केवल समाज के नागरिकता सम्बन्धी पक्ष का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन उसकी उत्पत्ति से करता है जबकि नागरिकशास्त्र उसके वर्तमान स्वरूप का अध्ययन करता है।
समाजशास्त्र केवल समाज के यथार्थ स्वरूप से सम्बन्ध रखता है जबकि नागरिकशास्त्र भावी आदर्श व्यवस्था का भी चित्रण करता है। उसकी भौगोलिक स्थिति पर निर्भर रहती है। यदि किसी राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति; अर्थात् भूमि, जलवायु, खनिज पदार्थ आदि साधन अच्छे हैं तो उस राष्ट्र की आर्थिक दशा अच्छी होगी। जब आर्थिक दशा अच्छी होगी तो नागरिकशास्त्र की सहायता से मनुष्यों को कर्तव्यपरायण नागरिक बनाया जा सकता है तथा आदर्श सामाजिक जीवन की स्थापना की जा सकती है। भौगोलिक स्थितियाँ मानव-समाज के कल्याण में भी सहायक होती हैं। इस प्रकार नागरिकशास्त्र का शिक्षक भूगोल का यथास्थान समन्वय स्थापित करके विश्व-बन्धुत्व की भावना अपने छात्रों में विकसित कर सकता है जिसको उत्पन्न करना उसका मुख्य लक्ष्य है।
नागरिकशास्त्र तथा सामान्य विज्ञान
शिक्षा में समन्वय की विचारधारा ने पाठ्यक्रम को हल्का बनाने में बहुत सहायता प्रदान की है। इस विचारधारा से पूर्व स्कूल में विभिन्न विषयों को पृथक्-पृथक् रूप से पढ़ाया जाता था और जिसके फलस्वरूप पाठ्यक्रम में बहुत-से विषयों का समावेश हो गया था। प्रत्येक विषय को पृथक्ता देने का मुख्य कारण सरकार से आर्थिक अनुदान प्राप्त करना था। परन्तु इस समन्वय की विचारधारा ने बहुत-से पृथक् विषयों का एकीकरण कर दिया। माध्यमिक शिक्षा आयोग’ ने इतिहास, भूगोल तथा नागरिकशास्त्र को समन्वित करके एक विषय ‘सामाजिक अध्ययन’ बना दिया। इससे पूर्व ये तीनों पृथक् विषय थे। दूसरे, भौतिकशास्त्र,
रसायनशास्त्र, जीव-विज्ञान तथा जन्तु-विज्ञान की पाठ्य-सामग्री को समवेत रूप से रखकर एक नवीन विषय का निर्माण किया, जो ‘साधारण विज्ञान’ के नाम से प्रख्यात हैं। जूनियर हाईस्कूल स्तर तक ये सभी विषय पृथक् रूप से पढ़ाये जाते थे, अब इनके समन्वित पाठ्यक्रम को पढ़ाया जाता है। साधारण विज्ञान से नागरिकशास्त्र का कोई भी प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। परन्तु फिर भी यह विज्ञान अप्रत्यक्ष रूप से नागरिकशास्त्र से सम्बन्धित है। नागरिकशास्त्र में हम छात्रों की सफाई का महत्ता पर बल देते हैं। इसमें हम नागरिक का यह कर्तव्य भी है कि हम अपने घर, मुहल्ले तथा ग्राम या नगर की सफाई पर ध्यान दे । साधारण विज्ञान की शाखा ‘जीव-विज्ञान’ शारीरिक अंगों, उनकी बनावट, क्रिया तथा उनकी सुरक्षा के विषय में ज्ञान देती जब तक बालकों को अपने शरीर के अंगों, उनकी बनावट तथा क्रियाओं का ज्ञान न होगा तब तक वे अपना स्वास्थ्य ठीक प्रकार से स्थिर नहीं रख सकेंगे । जीव-विज्ञान द्वारा सन्तुलित भोजन के विषय में भी ज्ञान दिया जाता है। जब नागरिक शरीर से स्वस्थ नहीं होगा तो वह
समाज के लिए भार बन जायेगा। शरीर को रोगों से बचाने के लिए साधारण विज्ञान हमें बहुत-से नियमों का ज्ञान देता है।
सामान्य विज्ञान वैज्ञानिक आविष्कारों के विषय में भी जानकारी प्रदान करता है। नागरिक का यह परम कर्तव्य है कि वह इन आविष्कारों का उपयोग मानव-समाज के कल्याण के लिए करें और इन आविष्कारों की सहायता से मानव-जीवन को सुखमय बनाएँ। सामान्य विज्ञान हमें यह भी बताता है कि सभी पेड़-पौधों में जीवात्मा होती है। नागरिकशास्त्र का शिक्षक सामान्य विज्ञान से समन्वय स्थापित करके अपने छात्रों में दया तथा सहानुभूति की भावना उत्पन्न कर सकता है? हमें सभी जीवों के साथ दया तथा प्रेम का व्यवहार करना चाहिए, न केवल मनुष्यों तथा जानवरों के साथ । इस प्रकार नागरिकशास्त्र का शिक्षक सामान्य विज्ञान से इस शास्त्र का समन्वय स्थापित कर सकता है।
नागरिकशास्त्र तथा साहित्य- नागरिकशास्त्र-शिक्षण के कुछ प्रकरणों में साहित्य से सह-सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। साहित्य की विविध विद्याओं-काव्य, नाटक, कहानी, उपन्यास, जीवनी आदि में ऐसे महापुरुषों का चित्रण प्राप्त होता है जो छात्रों में आदर्श नागरिकता के गुणों के किवास के लिए उत्प्रेरणा प्रदान करते हैं। उनके चारित्रिक गुणों से छात्रों में त्याग, वीरता, देशभक्ति, परोपकारिता, सेवाभाव आदि को विकसित किया जा सकता है साहित्य से सह-सम्बन्ध स्थापित करके नागरिकशास्त्र के अध्ययन को रोचक एवं उपयोगी भी बनाया जा सकता है। साथ ही छात्रों को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक स्थिति से अवगत कराया जा सकता है।
अंत में, हम कह सकते हैं कि यदि नागरिकशास्त्र के शिक्षक को इस शास्त्र के शिक्षण के लक्ष्यों की प्राप्ति करनी है, तो उसे नागरिकशास्त्र का शिक्षण अन्य विषयों से सम्बन्ध स्थापित करके करना चाहिए । दूसरे विषयों से सम्बन्ध स्थापित करना, उसके लिए इस लक्ष्यों की प्राप्ति के कारण ही आवश्यक नहीं है, बल्कि उसे शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति करनी है। शिक्षा का मुख्य लक्ष्य बालक के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना है। इसकी प्राप्ति तभी की जा सकती है, जब शिक्षक अपने विषय के शिक्षण का दूसरे के शिक्षण से सम्बन्ध स्थापित करेगा।

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