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अपठित गद्यांश
                                       Unseen Prose
हिन्दी भाषा-1 के प्रश्न-पत्र में गद्यांश एवं पद्यांश पर आधारित
15 प्रश्न पूछे जाते हैं। इसके अन्तर्गत 1 गद्यांश व 1 पद्यांश दिया
जाता है। गद्यांश पर आधारित अब तक 9 प्रश्न पूछे गये हैं।
गद्यांश के बारे में
अपठित गद्यांश का अर्थ है, गद्य का ऐसा अंश जिसे पहले पढ़ा न गया हो।
अपठित गद्यांश का मुख्य उद्देश्य किसी भी विषय को समझने, उसका सम्पूर्ण
अर्थों में विश्लेषण करने तथा उनके भाषा सम्बन्धी ज्ञान को परखना होता है।
इसके अतिरिक्त अभ्यर्थियों की समझ, बौद्धिक क्षमता, अभिरुचि एवं योग्यता
का परीक्षण करना भी इसका उद्देश्य है।
अपठित गद्यांशों का पाठ्यक्रम निश्चित न होने के कारण इन्हें पाठ्यक्रम की
पुस्तकों के अतिरिक्त किसी गद्य की पुस्तक, पत्रिका आदि से लिया जाता है
या यह भी सम्भव है कि प्रश्न-पत्र सेट करने वाले व्यक्ति ने स्वयं उसकी
रचना की हो। इसलिए यह सम्भव है कि अभ्यर्थी ने उद्धृत गद्यांश को कभी
नहीं पढ़ा हो, इन गद्यांशों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर अभ्यर्थियों को अपनी
बोधात्मक क्षमता के आधार पर ही देने होते हैं।
गद्यांश से सम्बन्धित प्रश्नों को हल करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
1. सर्वप्रथम दिए गए गद्यांश को भली-भाँति पढ़कर उसके मूल भाव को
अच्छी तरह समझ लेना चाहिए।
2. गद्यांश में वर्णित महत्त्वपूर्ण विचारों एवं विशिष्ट शब्दों को ढूंढने का
प्रयास करना चाहिए।
3. यह सदा याद रखना चाहिए कि अवबोध के अन्तर्गत पूछे गए सभी
प्रश्नों के उत्तर दिए गए गद्यांश में ही विद्यमान होते हैं। अत: एकाग्रचित्त
होकर प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए गद्यांश को बार-बार पढ़ना चाहिए।
4. प्रायः अवबोध के प्रश्नों में गद्यांश के शीर्षक सम्बन्धी प्रश्न भी पूछे जाते
हैं, इसलिए अभ्यर्थी को गद्यांश में निहित केन्द्रीय भाव को भली-भाँति
समझ लेना चाहिए।
5. सीटीईटी में अवबोधात्मक प्रश्नों के साथ-साथ दिए गए गद्यांश से
कुछ शब्दों के अर्थ भी पूछे जाते हैं। ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते समय
यह याद रखना चाहिए कि शब्दों के अर्थ दिए गए गद्यांश के अनुकूल
हो। एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं और यह आवश्यक नहीं कि
इसके सभी अर्थों का उपयोग दिए गए गद्यांश में हुआ हो, जिस विशेष
अर्थ का उपयोग उसमें हुआ हो, वही सही उत्तर होगा।
6. गद्यांश पढ़ते समय सदैव रेखांकित पंक्तियों या शब्दों को ध्यानपूर्वक
पढ़ना चाहिए।
7. प्रश्न-पत्र में पूछे जाने वाले व्याकरण सम्बन्धी प्रश्नों को हल करने
के लिए अभ्यर्थियों को व्याकरण का सामान्य ज्ञान होना चाहिए।
उदाहरण
निर्देश (गद्यांश 1-2) दिए गए गद्यांशों को ध्यान से पढ़िए और उसके
आधार पर पूछे गए प्रश्नों के यथोचित उत्तर दीजिए।
गद्यांश 1
इस युग के युवक के चित्त को जिस नई विद्या ने सबसे अधिक प्रभावित
किया है, वह है मनोविश्लेषण। मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण शास्त्र
निःसन्देह पठनीय शास्त्र है। इन्होंने हमारे मन के भीतर चलती रहने वाली
अलक्ष्य धाराओं का ज्ञान कराया है, परन्तु यह बात ध्यान में रखनी चाहिए
कि ‘साँच मिले तो साँच है, न मिले तो झूठ’ वाली बात सार्वदेशिक होती है।
मनोविश्लेषण शास्त्र मनुष्यों की उद्भासित विचार निधियों का एक अकिंचन
अंश मात्र है।
जीवन शास्त्र और पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में हमें जो नवीन तथ्य मालूम हुए
हैं, उसके साथ इस शास्त्र के अनुसन्धानों का सामंजस्य स्थापित नहीं किया
जा सकता। फिर भी इतना तो निश्चित है कि मानव विश्लेषण के आचार्यों
के प्रचारित तत्त्ववाद में से कुछ विचार इन दिनो वायुमण्डल में व्याप्त है।
नवीन साहित्यकार उन्हें अनायास पा जाता है, परन्तु इन विचारों को संयमित
और नियन्त्रित करने वाले प्रतिकूलगामी शास्त्रीय परिणाम उसे इतनी आसानी
से नहीं मिलते। इसका परिणाम यह हुआ है कि हमारा नवीन साहित्यकार इन
विचारों के मायाजाल को आसानी से काट नहीं पाता। वह कुछ इस प्रकार
सोचता है कि अब चेतन चित्त की शक्तिशाली सत्ता हमारे चेतन चित्त के
विचारों और कार्यों को रूप दे रही है। हम जो कुछ सोच समझ रहे हैं,
वस्तुतः वैसे ही सोचने और समझने का हेतु हमारे अंजाम में हमारे ही
अवचेतन चित्त में वर्तमान है और यह तो हम सोच रहे हैं, समझ रहे हैं और
सोच-समझकर कर रहे हैं। इन बातों का अभिमान करने वाला हमारा चेतन
चित्त कितना नगण्य है, अदृश्य में वर्तमान हमारी अवदमित वासनाओं को प्रसुप्त
कामनाओं के महासमुद्र में यह दृश्य चेतन चित्त बोतल के कॉर्क के समान उतर
रहा है, अदृश्य महासमुद्र की प्रत्येक तरंग इसे अभिभूत कर जाती है
1. हमारे चेतन चित्त के विचारों और कार्यों को
(1) हमारी चिन्तन पद्धति रूप दे रही है
(2) हमारी भावनाएँ रूप दे रही हैं
(3) हमारे अवचेतन चित्त की शक्तिशाली सत्ता ही रूप देती है
(4) हमारा चेतन चित्त रूप दे रहा है
उत्तर (3) गधांश में स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य किसी कार्य को करने अथवा
लक्ष्य तक पहुँचने में जो कुछ भी विचार-विमर्श करता है, वह केवल अवचेतन
चित्त द्वारा चेतन चित्त को दिए गए निर्देशों के द्वारा ही होता है। अतः विकल्प
(3) सही उत्तर है।
2. युवक चित्त को सबसे अधिक प्रभावित जिस शास्त्र ने किया है, वह है
(1) मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण शास्त्र
(2) तत्त्ववाद
(3) भौतिक विज्ञान
(4) विकासवाद
उत्तर (1) मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण शास्त्र मनुष्य के मस्तिष्क में चलने वाली
विभिन्न गतिविधियों से उसे अवगत कराता है, जिस कारण यह एक रोचक व
पठनीय विषय है। इसकी यही विशेषता युवक चित्त को सबसे अधिक प्रभावित
करती है। अतः विकल्प (1) सही उत्तर है।
3. जीवन शास्त्र और पदार्थ विज्ञान के नवीन तथ्यों के साथ किसका
सामंजस्य स्थापित नहीं किया जा सकता?
(1) मनोविज्ञान शास्त्र का
(2) तत्त्वदाद का
(3) नवीन साहित्य का
(4) अददमित वासनाओं का
उत्तर (1) जीवन शास्त्र और पदार्थ विज्ञान मनुष्य के भौतिक जीवन से सम्बन्धित
हैं, जबकि मनोविज्ञान मनुष्य के मस्तिष्क से जुड़ा विज्ञान है। अतः इनके साथ
मनोविज्ञान शास्त्र का सामंजस्य स्थापित नहीं किया जा सकता। इसलिए
विकल्प (1) सही उत्तर है।
4. मन के भीतर चलती रहने वाली अलक्ष्य धाराओं का ज्ञान कराया है
(1) साहित्यकारों ने
(2) वैज्ञानिकों ने
(3) मनोविश्लेषकों ने
(4) समाजशास्त्रियों ने
उत्तर (3) मनोविश्लेषक मन के भीतर चलने वाली विभिन्न गतिविधियों का
विश्लेषण करके उससे मनुष्य को अवगत कराते हैं। अतः विकल्प (3) सही
उत्तर है।
5. ‘अनायास’ में प्रयुक्त उपसर्ग है
(1) अना
(2) अन
(3) अ
(4) अन्
उत्तर (4) अन् + आयास = अनायास।
अन्’ उपसर्ग में ‘आयास’ शब्द जोड़ने से अनायास शब्द निर्मित हुआ है। अतः
विकल्प (4) सही उत्तर है।
6. मनोविज्ञान का सन्धि विच्छेद है
(1) मनो + विज्ञान
(2) मनः विज्ञान
(3) मन – विज्ञान
(4) मनोविज्ञान
उत्तर (2) मनः + विज्ञान – मनोविज्ञान।
‘मनः’ और विज्ञान शब्द में विसर्ग (:) और ‘इ’ स्वर में सन्धि हुई है, जिससे
‘ओ’ वर्ण निर्मित होने के कारण मनोविज्ञान शब्द बना है। अतः विकल्प (2) सही
उत्तर है।
7. ‘अंजाम’ शब्द है
(1) अरबी
(2) फारसी
(3) हिन्दी
(4) पुर्तगाली
उत्तर (1) अंजाम शब्द फारसी भाश का शब्द है।
8. ‘नगण्य’ शब्द का गद्यांश में भाव है
(1) अत्यन्त तुच्छ
(2 गिनने योग्य न होना
(3) सराहना के योग्य
(4) भावशून्य होना
उत्तर (1) मनुष्य द्वारा स्वयं पर अभिमान करने की प्रवृत्ति को अत्यन्त हेय दृष्टि
से देखा जाता है। इसी अभिमान करने की प्रवृत्ति को लेखक ने नगण्य कहा है।
अतः नगण्य शब्द का गोश में भाव अत्यन्त तुच्छ से है। अतः विकल्प (1) सही
उत्तर है।
9. उपरोक्त अवतरण का उपयुक्त शीर्षक चुनिए
(1) चेतन और अवचेतन चित्त का सम्बन्ध
(2) मनोविश्लेषण शास्त्र का महत्व
(3) मनोविश्लेषण और साहित्य का सम्बन्ध
(4) मनोविश्लेषण शास्त्र का मायाजाल
उत्तर (1) प्रस्तुत गद्यांश में मनुष्य के चेतन और अवचेतन मन के सम्बन्ध में
विदार-विमर्श किया गया है साथ ही अवचेतन मन को चेतन मन द्वारा किए गए
कार्यों के लिए उत्तरदायी माना है। अत: गधांश का शीर्षक विकल्प (1)’ चेतन
और अवचेतन चित्त का सम्बन्ध होना चाहिए।
गधांश 2
संस्कृतियों के निर्माण में एक सीमा तक देश व जाति का योगदान रहता है।
संस्कृति के मूल उपादान तो प्रायः सुसंस्कृत और सभ्य देशों में एक सीमा
तक समान रहते है, किन्तु बाह्य उपादानों में अन्तर अवश्य आता है, राष्ट्रीय
या जातीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यही है कि वह हमें अपने राष्ट्र
की परम्परा से संयुक्त बनाती है, रीति-नीति की सम्पदा को विच्छिन्न नहीं
होने देती। आज के युग में राष्ट्रीय एवं जातीय संस्कृतियों के मिले अवसर
अति सुलभ हो गए हैं। संस्कृतियों का पारस्परिक संघर्ष भी शुरू हो गया है।
कुछ ऐसे विदेशी प्रभाव देश पर पड़ रहे हैं, जिनके आतंक ने हमे स्वयं
अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु यना दिया है। हमारी आस्था डिगने लगी है।
यह हमारी वैचारिक दुर्बलता का फल है। अपनी संस्कृति को छोड़ विदेशी
संस्कृति के विवेकहीन अनुकरण से हमारे राष्ट्रीय गौरव को जो ठेस पहुँच
रही है। वह किसी राष्ट्रप्रेमी जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं भारतीय संस्कृति
में त्याग और प्रहण की अद्भुत क्षमता रही है। अत: आज के वैज्ञानिक युग
में हम किसी विदेशी संस्कृति के जीवन्त तत्त्वों को ग्रहण करने में पीछे नहीं
रहना चाहेगे, किन्तु अपनी सांस्कृतिक निधि की उपेक्षा करके नहीं। यह
परावलम्बन राष्ट्र की गरिमा के अनुरूप नहीं है। यह स्मरण रखना चाहिए कि
सूर्य की आलोक प्रदायिनी किरणों से पौधे को चाहे जितनी जीवन शक्ति
मिले, किन्तु अपनी जमीन और अपनी जड़ों के बिना पौधा जीवित नहीं रह
सकता। अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही पर्याय है।
1. हम अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु इसलिए हो गए हैं, क्योंकि
(1) हम तीव्रता से बदते विदेशी कुप्रभाव का प्रभावी रूप से सामना नहीं कर पा
रहे हैं
(2) हम चिन्तन के स्तर पर पूर्ण परिपक्वता की स्थिति पर नहीं पहुँच पाए है
(3) नई पीढ़ी ने विदेशी संस्कृति के कुछ तत्त्वों को स्वीकार करना प्रारम्भ कर
दिया है
(4) अपनी संस्कृति के प्रति हमारी आस्था कमजोर हो गई है
उत्तर (4) विदेशी संस्कृति से परिचित होने व उसको आत्मसात् करने की प्रवृत्ति
के कारण हमारी अपनी संस्कृति के प्रति आस्था डिगने लगी है, जिससे हम
अपनी संस्कृति के प्रति शंकालु हो गए हैं। अतः विकल्प (4) सही उत्तर है।
2. राष्ट्रीय अथवा जातीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन यह है
कि वह हमें
(1) अपने अतीत से जोड़े रखती है
(2) अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति का बोध कराती है
(3) अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति से जोड़े रखती है
(4) अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति की याद दिलाती है
उत्तर (3) राष्ट्रीय अथवा जातीय संस्कृति की हमारे प्रति सबसे बड़ी देन यह है
कि वह हमें अपने राष्ट्र की परम्परा और रीति-नीति की सम्पदा से विच्छिन्न
नहीं होने देती है। अतः विकल्प (3) सही उत्तर है।
3. हम अपनी सांस्कृतिक परम्परा की उपेक्षा इसलिए नहीं कर सकते,
क्योंकि
(1) ऐसा करना हमारे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप नहीं है
(2) अपने राष्ट्र को अपमानित करने के समान है
(3) ऐसा करने से हम जड़विहीन पौधे के सदृश हो जाएँगे
(4) अविवेकी अनुकरण अज्ञान का ही दूसरा नाम है और हम अज्ञानी नहीं हैं
उत्तर (3) परम्पराएँ, रीति-रिवाज, संस्कृति इत्यादि किसी राष्ट्र व वहाँ के
व्यक्तियों का मूल अर्थात् आधार होती है। अपनी सांस्कृतिक निधियों की उपेक्षा
करके मनुष्य जड़विहीन पौधे के सदृश हो जाएगा, इसलिए हम अपनी
सांस्कृतिक परम्परा की उपेक्षा नहीं कर सकते। अतः विकल्प (3)  सही उत्तर है।
4. हम विदेशी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण तत्त्वों को ग्रहण कर सकते हैं,
क्योंकि
(1) आज के वैज्ञानिक युग में ऐसा करना परमावश्यक है
(2) विदेशी संस्कृति के जीवन्त तत्त्व हमारी संस्कृति को समृद्ध ही करेंगे
(3) भारतीय संस्कृति में त्याग के साथ ग्रहण की अद्भुत क्षमता है
(4) भारतीय संस्कृति जड़ न होकर लेने-देने में विश्वास रखती है
उत्तर (3) भारतीय संस्कृति में नए व पुराने तत्त्वों, विचारों इत्यादि को ग्रहण करने
व त्यागने की अद्भुत क्षमता है, इसलिए हम विदेशी संस्कृति के महत्त्वपूर्ण
तत्त्वों को ग्रहण कर सकते हैं। अतः विकल्प (3) सही उत्तर है।
5. संस्कृतियों के निर्माण में योगदान रहता है
(1) देश का
(2) जाति का
(3) देश व जाति का
(4) विदेशी संस्कृति का
उत्तर (3) किसी देश में रहने वाले लोगों का रहन-सहन, आचार-विचार,
परम्पराएँ, मान्यताएँ इत्यादि मिलकर संस्कृति का निर्माण करती हैं। अतः
संस्कृति के निर्माण में देश व जाति का योगदान होता है। अतः विकल्प (3)
सही उत्तर है।
6. ‘रीति-नीति’ में प्रयुक्त समास है
(1) द्वन्द्व
(2) द्विगु
(3) बहुव्रीहि
(4) कर्मधारय
उत्तर (1) जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह करने पर ‘और’,
‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ लगता हो वहाँ द्वन्द्व समास होता है। “रीति-नीति’ शब्द में
दोनों पद प्रधान हैं साथ ही विग्रह करने पर ‘और’ शब्द लगता है। अतः
रीति-नीति में द्वन्द्व समास है। इसलिए विकल्प (1) सही उत्तर है।
7. ‘दुर्बलता’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) दुर् + बलता
(2) दुर् + बल + ता
(3) दुर + बल +ता
(4) दुर्बल + ता
उत्तर (2) दुर्बलता शब्द का सन्धि विच्छेद है दुर् + बल + ता। अतः विकल्प (2)
सही उत्तर है।
8. “परावलम्बन’ का पर्याय है
(1) स्वावलम्बन (2) आलम्बन (3) पराश्रित (4) हिंसा
उत्तर (2) परावलम्बन का अर्थ होता है-दूसरों पर आश्रिता स्वावलम्बन का अर्थ
है- स्वयं पर आश्रिता पराश्रित का अर्थ है- दूसरों पर आश्रित तथा हिंसा का अर्थ
है- अनिष्ट कार्य या किसी का शोषण करना। अत: परावलम्बन का पर्याय
‘पराश्रित होगा, इसलिए विकल्प (3) सही उत्तर है।
9. ‘वैचारिक’ में प्रयुक्त प्रत्यय है
(1) रिक (2) क (3) इक (4) ईक
उत्तर (3) वैचारिक शब्द विचार + इक शब्दों के मेल से बना है। अतः वैचारिक में
इक प्रत्यय है। इसलिए विकल्प (3) सही उत्तर है।
                                          अभ्यास प्रश्न
निर्देश (गोश 1-30) दिए गए गद्यांशों को ध्यान से पढ़िए और उसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के यथोचित उत्तर दीजिए।
गद्यांश1
प्राचीन भारत में शिक्षा, ज्ञान प्राप्ति का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता था।
व्यक्ति के जीवन को सन्तुलित और श्रेष्ठ बनाने तथा एक नई दिशा प्रदान
करने में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान था। सामाजिक बुराइयों को उसकी जड़ों
से निर्मूल करने और त्रुटिपूर्ण जीवन में सुधार करने के लिए शिक्षा की
नितान्त आवश्यकता थी। यह एक ऐसी व्यवस्था थी, जिसके द्वारा सम्पूर्ण
जीवन ही परिवर्तित किया जा सकता था। व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का
विकास करने, वास्तविक ज्ञान को प्राप्त करने और अपनी समस्याओं को दूर
करने के लिए शिक्षा पर निर्भर होना पड़ता था। आधुनिक युग की भाँति
प्राचीन भारत में भी मनुष्य के चरित्र का उत्थान शिक्षा से ही सम्भव था।
सामाजिक उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक वहन करना प्रत्येक मानव का परम
उद्देश्य माना जाता है। इसके लिए भी शिक्षित होना अनिवार्य है।
जीवन की वास्तविकता को समझने में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान रहता
है। भारतीय मनीषियों ने इस ओर अपना ध्यान केन्द्रित करके शिक्षा को
समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार किया। विद्या का स्थान किसी भी
वस्तु से बहुत ऊँचा बताया गया। प्रखर बुद्धि एवं सही विवेक के लिए शिक्षा
की उपयोगिता को स्वीकार किया गया। यह माना गया कि शिक्षा ही मनुष्य
की व्यावहारिक कर्तव्यों का पाठ पढ़ाने और सफल नागरिक बनाने में सक्षम
है। इसके माध्यम से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक अर्थात्
सर्वांगीण विकास सम्भव है। शिक्षा ने ही प्राचीन संस्कृति को संरक्षण दिया
और इसके प्रसार में मदद की।
विद्या का आरम्भ ‘उपनयन संस्कार’ द्वारा होता था। उपनयन संस्कार के
महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए मनुस्मृति में उल्लेख मिलता है कि गर्भाधान
संस्कार द्वारा तो व्यक्ति का शरीर उत्पन्न होता है पर उपनयन संस्कार द्वारा
उसका आध्यात्मिक जन्म होता है। प्राचीन काल में बच्चों को शिक्षा प्राप्त
करने के लिए आचार्य के पास भेजा जाता था। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार,
जो ब्रह्मचर्य ग्रहण करता है। वह लम्बी अवधि की यज्ञावधि ग्रहण करता है।
छान्दोग्योपनिषद् में उल्लेख मिलता है कि आरुणि ने अपने पुत्र श्वेतकेतु को
ब्रह्मचारी रूप से वेदाध्ययन के लिए गुरु के पास जाने को प्रेरित किया था।
आचार्य के पास रहते हुए ब्रह्मचारी को तप और साधना का जीवन बिताते
हुए विद्याध्ययन में तल्लीन रहना पड़ता था।
इस अवस्था में बालक जो ज्ञानार्जन करता था उसका लाभ उसको जीवन भर
मिलता था। गुरु गृह में निवास करते हुए विद्यार्थी समाज के निकट सम्पर्क में
आता था।
गुरु के लिए समिधा, जल का लाना तथा गृह-कार्य करना उसका कर्त्तव्य
माना जाता था। गृहस्थ धर्म की शिक्षा के साथ-साथ वह श्रम और सेवा का
पाठ पढ़ता था। शिक्षा केवल सैद्धान्तिक और पुस्तकीय न होकर जीवन की
वास्तविकताओं के निकट होती थी।
1. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से कौन-सा
हो सकता है?
(1) शिक्षा के लाभ
(2) प्राचीन भारत में शिक्षा का विकास
(3) प्राचीन भारत में शिक्षा
(4) भारतीय शिक्षा प्रणाली
2. प्राचीन काल में विद्यार्थियों के कर्त्तव्य निम्नलिखित में से कौन-से थे?
A. ब्रह्मचर्य का पालन करना     B. गुरु के साथ रहना
C. गुरु की सेवा करना             D. गृहस्थ जीवन व्यतीत करना
(1) A और B
(2) A,B और C
(3) C और D
(4) B,C और D
3. प्राचीन काल में विद्या का आरम्भ जिस संस्कार से होता था, उसके बारे
में वर्णन किस ग्रन्थ में मिलता है?
(1) घान्दोग्योपनिषद्
(2) कठोपनिषद्
(3) महाभारत
(4) मनुस्मृति
4. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) छन्दोग्योपनिषद् के अनुसार आरुणि का पुत्र श्वेतकेतु था।
(2) ब्रह्मचर्य के लाभ का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में है।
(3) भारतीय मनीषियों ने शिक्षा को समाज की आधारशिला के रूप में स्वीकार
किया।
(4) प्राचीन भारत में मनुष्य का उत्थान धर्म-कर्म में लीन रहकर ही सम्भव था।
5. प्राचीन भारत में शिक्षा होती थी
(1) केवल पुस्तकीय
(2) सैद्धान्तिक
(3) जीवन की वास्तविकताओं से परिपूर्ण
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
6. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है?
(1) शतपथ ब्राह्मण
(2) मनुस्मृति
(3) छान्दोग्योपनिषद्
(4) कठोपनिषद्
7. ‘उपनयन’ शब्द में कौन-सा समास है?
(1) बहुव्रीहि
(2) द्वन्द्व
(3) अव्ययीभाव
(4) कर्मधारय
8. ‘सैद्धान्तिक’ शब्द है
(1) संज्ञा
(2) क्रिया
(3) विशेषण
(4) क्रिया-विशेषण
9. ‘आध्यात्मिक’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) आध्य+ आत्मिक
(2) अधि + आत्मिक
(3) आध + यात्मिक
(4) आधि + यात्मिक
गद्यांश 2
प्राचीन भारत में शिक्षक को पिता से अधिक महान् बताया गया है। समाज में
उसका स्थान सर्वोच्च था। श्वेताश्वतरोपनिषद् में गुरु को ईश्वर के पद पर
रखकर उसे परम श्रद्धास्पद बताया गया है। शिक्षक अपने ज्ञान के प्रकाश से
अज्ञानता रूपी अन्धकार को दूर भगाता था और समाज को एक नई शिक्षा
देता था। आपस्तम्ब धर्मसूत्र में इसीलिए कहा गया है कि शिष्य को अपने गुरु
को भगवान की भाँति मानना चाहिए। गुरु के प्रति श्रद्धा की भावना का प्रमाण
एकलव्य की शिक्षा कथा से मिलता है।
गुरु की सेवा से शिष्य को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। मत्स्य पुराण में भी
उल्लेख मिलता है कि मनुष्य तपस्या, ब्रह्मचर्य, अग्नि और गुरु की सुश्रूषा से
स्वर्ग को प्राप्त करता है। अतः आचार्य एवं माता-पिता आदि का अपमान नहीं
करना चाहिए, क्योंकि आचार्य ब्रह्मा का, पिता प्रजापति का और माता पृथ्वी
की स्वरूप है। एक अन्य स्थान पर यह कहा गया है कि आचार्य की
यत्नपूर्वक पूजा करनी चाहिए, क्योकि जहाँ आचार्य की पूजा नहीं होती, वहाँ
सारी क्रियाएँ निष्फल हो जाती है। शिक्षक उत्त्व चरित्र वाला, अपने विषय में
पारंगत, वाक्-चतुर, तार्किक, रोचक कथाओं का ज्ञाता एवं सदाचारी होता
था। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि शिक्षक को विनयी, विनम्र, निष्पक्ष,
नैष्ठिक, ब्रह्मचारी, शान्त-चित्त, प्रखर बुद्धि वाला तथा व्याख्या करने में
कुशल होना चाहिए।
शिक्षक के लिए आचार्य, उपाध्याय, गुरु, अध्यापक आदि शब्द प्रयुक्त हुए है।
वैसे तो यह समानार्थक प्रतीत होते हैं, परन्तु उनमें भिन्नता है। आचार्य
उपनयन के पश्चात् अपने शिष्यों को आचार को भी शिक्षा देता था।
याज्ञवल्क्य उपनयन के पश्चात् वेद पढ़ाने वाले को आचार्य मानते है। मनु के
अनुसार, जो ब्राह्मण, शिष्य का यज्ञोपवीत करके उपनिषद् सहित सब वेद की
शाखा को पढ़ाता है उसे आचार्य कहा जाता है। अपने शिष्यों से जो धन
आदि लेकर परिवार का पालन-पोषण करता था उसे उपाध्याय की संज्ञा से
सम्बोधित किया गया है। मनु ने उपाध्याय की परिभाषा बताते हुए कहा है कि
जो वेद के एक देश अर्थात् मन्त्र एवं ब्राह्मण भाग को तथा वेद के अंग,
व्याकरण आदि को जीविका के लिए पढ़ाता है, वह उपाध्याय कहा जाता है,
जो गर्भाधान आदि संस्कारों को विधि-पूर्वक करता है और अन्नादि के द्धारा
अपने परिवार को बढ़ाता है अर्थात् पालन करता है वह ब्राह्मण, गुरु कहा
जाता है। वरण किया हुआ जो ब्राह्मण अग्न्याधेय, पाकयज्ञ और अग्निस्टोम
आदि यज्ञों को जिसकी ओर से करता था, वह उसका ऋत्विक कहलाता था
1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) यज्ञोपवीत धारण कर सभी वेद व उपनिषदों की शिक्षा देने वाला आचार्य
कहलाता है।
(2) वेद के अंग, व्याकरण आदि पढ़ाने वाला उपाध्याय कहलाता है।
(3) उपनयन आदि संस्कारों को सम्पन्न करने वाला ब्राह्मण, गुरु कहलाता है।
(4) उपनयन के पश्चात् वेद की शिक्षा देने वाला आचार्य कहलाता है।
2. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस ऋषि का उल्लेख नहीं है?
(1) याज्ञवल्क्य
(2) मनु
(3) विश्वामित्र
(4) ये सभी
3. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में किस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं है?
(1) मत्स्य पुराण
(2) याज्ञवल्क्य स्मृति
(3) महाभारत
(4) श्वेताश्वतरोपनिषद्
4. प्राचीन भारत में शिक्षक को किसके समतुल्य समझा जाता था?
(1) पिता
(2) पुजारी
(3) ब्रह्मा
(4) ईश्वर
5. किस ग्रन्थ में यह कहा गया है कि गुरु की सेवा से स्वर्ग की प्राप्ति
होती है?
(1) महाभारत
(2) आपस्तम्ब सूत्र
(3) मत्स्य पुराण
(4) रामायण
6. निम्नलिखित में से कौन-सा गुण शिक्षक में होना चाहिए?
(1) ब्रह्मचारी
(2) शान्त-चित्त
(3) निष्पक्ष
(4) ये सभी
7. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षक का समानार्थी नहीं है?
(1) गुरु
(2) उपाध्याय
(3) वेदज्ञ
(4) आचार्य
8. जिसका मन शान्त हो, उसे कहा जाता है
(1) शान्त
(2) सुशान्त
(3) निशान्त
(4) शान्त-चित्त
9. ‘ब्रह्मलोक में कौन-सा समास है?
(1) तत्पुरुष
(2) कर्मधारय
(3) द्वन्द्व
(4) अव्ययीभाव
गद्यांश 3
प्राचीन काल में शिक्षा का लक्ष्य चारों वेदों का पूर्ण ज्ञान तथा दर्शन, गणित
विद्या, इतिहास पुराण का ज्ञान था। वैदिक भारत के पाठय विषय व्यापक थे।
पूर्व वैदिक काल में वेदमन्त्र, इतिहास आदि पाठ्य विषय थे। उत्तर वैदिक
काल में वेदों की व्याख्याओं एवं ब्राह्मणग्रन्थों को पाठ्य-विषय में सम्मिलित
किया गया। उपनिषद् और सूत्रयुग में वेदांगों (व्याकरण, शिक्षा, कल्प
ज्योतिष, छन्द, निरुक्त) के अलावा अनेक विद्वानों की शिक्षा को प्राप्त करने
आए हुए सनत्कुमार से कहते हैं कि उन्होंने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,
अथर्ववेद, पांचवें वेद के रूप में इतिहास-पुराण, वेदों के अर्थ विधायक ग्रन्थ
पितृ-विद्या, राशि-विद्या, दैव-विद्या, ब्रह्म-विद्या, भूत-विद्या, धनुर्वेद-विद्या,
नक्षत्र-विद्या, सर्प-विद्या एवं देव जन विद्या का अध्ययन किया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आन्वीक्षिकी (तर्क शास्त्र), वेदत्रयी (ऋग्वेद,
यजुर्वेद, सामवेद), वार्ता (कृषि और पशुपालन), दण्डनीति (राजनीति
शास्त्र) का उल्लेख हुआ है। वायु पुराण में अट्ठारह विद्याओं का वर्णन हुआ
है। इनमें चार वेद, छ: वेदांग, पुराण न्याय, मीमांसा, धर्मशास्त्र, धनुर्वेद,
गन्धर्ववेद और अर्थशास्त्र को शामिल किया गया है। मत्स्य पुराण में भी
व्याकरणादि छः अगों सहित चारों वेद, पुराण, न्यायशास्त्र, मीमांसा और
धर्मशास्त्र का उल्लेख हुआ है। कालिदास ने भी रघुवंश में चौदह विद्याओं
चार वेद, छ: वेदांग, मीमांसा, न्याय पुराण और धर्मशास्त्र का वर्णन किया है।
गरुड़ पुराण में चार विद्याओं को और जोड़ा गया है। आयुर्वेद, धनुर्वेद,
गन्धर्ववेद एवं अर्थशास्त्र। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन भारत में
चार वेद, इतिहास, पुराण व्याकरण, गणित,ज्योतिष, छ: वेदांग, निरुक्त,
काव्यशास्त्र, शिल्प शिक्षा, राजशास्त्र आदि अध्ययन के प्रमुख विषय थे।
क्षत्रियों को हस्ति, अश्व, रथ, धनुष की शिक्षा में प्रवीण किया जाता था।
वैश्यों की शिक्षा के सम्बन्ध में मनु का कथन है कि इन्हें तीनों वेदों के
अध्ययन के अतिरिक्त व्यापार-पशु-पालन, कृषि, विभिन्न रत्नों, मूंगों,
मोतियों, धातुओं आदि के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। प्राचीन भारत
की राजतन्त्रात्मक शासन प्रणाली के अन्तर्गत राजा की स्थिति अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण होती थी। शासन की सफलता राजा की योग्यताओं पर निर्भर करती
है। यही कारण है कि प्राचीन मनीषियों ने राजा की योग्यताओं पर प्रकाश
डालते हुए उन विद्याओं का उल्लेख किया है जिनका अध्ययन उसके लिए
अनिवार्य था। साधारणतः राजकुमारों की शिक्षा हेतु शिक्षकों की अलग से
नियुक्ति की जाती थी। गौतम के अनुसार, राजा को तीनों वेदों, आन्वीक्षिकी
का ज्ञाता तथा अपने कर्तव्य पालन में वेदों, धर्मशास्त्रों, वेद के सहायक,
ग्रन्थों उपवेदों और पुराणों का आश्रय लेना चाहिए। मनु और याज्ञवल्क्य ने
राजा को तीनों वेदों का ज्ञाता, आन्वीक्षिका, दण्डनीति एवं वार्ता के सम्बन्ध में
जानकारी रखने का निर्देश दिया है।
1. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या हो
सकता है?
(1) प्राचीन काल में शिक्षा
(2) प्राचीन भारत में अध्ययन के विषय
(3) भारतीय शिक्षा प्रणाली
(4) भारतीय ज्ञान
2. वैदिक काल में निम्नलिखित में से किस विषय की शिक्षा दी जाती थी?
(1) व्याकरण
(2) निरुक्त
(3) ज्योतिष
(4) ये सभी
3. वेदत्रयी के अन्तर्गत निम्नलिखित में से किसे शामिल नहीं किया
जाता है?
(1) ऋग्वेद
(2) सामवेद
(3) अथर्ववेद
(4) यजुर्वेद
4. वायु पुराण में निम्नलिखित में से किस विषय को शामिल नहीं किया
गया है?
(1) न्याय
(2) वेद
(3) अर्थशास्त्र
(4) उपनिषद्
5. मनु के अनुसार वैश्यों को निम्नलिखित में से किस विषय की शिक्षा
ग्रहण करनी चाहिए?
(1) वेद
(2) व्यापार
(3) धातुओं का ज्ञान
(4) ये सभी
6. प्रस्तुत गद्यांश में निम्नलिखित में से किस विषय का उल्लेख नहीं किया
गया है?
(1) राजनीतिशास्त्र
(2) दण्डनीति
(3) धर्मशास्त्र
(4) रसायनशास्त्र
7. ‘काव्यशास्त्र’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्बन्द्ब
(4) कर्मधारय
8. ‘अध्ययन’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) अधि + अयन
(2) आध + अयन
(3) अध + अयन
(4) आध्य + अन
9. ‘अर्थशास्त्र’ शब्द है
(1) क्रिया
(2) संज्ञा
(3) विशेषण
(4) प्रविशेषण
गद्यांश 4
बौद्ध शिक्षण पद्धति का आरम्भ स्वयं बुद्ध ने सरल तथा जनमानस की भाषा
में जीवन के तत्त्वों के उपदेश तथा जगह-जगह चर्चा करके किया। लोगों को
शिक्षित करने के लिए महात्मा बुद्ध ने व्याख्यान, प्रश्नोत्तर प्रासंगिक उपमा,
दृष्टान्त एवं कथा को माध्यम बनाया। बुद्ध के बाद से बौद्ध शिक्षा पद्धति भी
एक निश्चित स्वरूप, संगठन के साथ हिन्दू शिक्षा पद्धति से अलग स्वतन्त्र
शिक्षा पद्धति के रूप में विकसित हुई। प्रारम्भ में हिन्दू तथा बौद्ध शिक्षा पद्धति
के मूल में कोई विशेष अन्तर नहीं था, किन्तु बाद में आकर दोनों शिक्षा
प्रणालियों के आदर्श एवं पद्धति में विशेष रूप से उस पाठ्यक्रम में जो विशेष
रूप से आम उपासक की बजाय बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए था, बहुत
कम समानता रह गई थी।
बौद्ध धर्म में शिक्षा प्रारम्भ संस्कार ब्राह्मणों के उपनयन संस्कार की भांति
होता था। बौद्ध संघ में सम्मिलित होने के लिए दो संस्कार आवश्यक थे प्रथम
था ‘पब्बज्जा’ तथा दूसरा ‘उपसम्पदा’। पब्बज्जा से उपासकत्व का प्रारम्भ
होता था। उपनयन की भांति इसे भी आध्यात्मिक जन्म कहा गया है। यह
8 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी व्यक्ति को दी जा सकती थी। संरक्षक
की अनुज्ञा इसके लिए आवश्यक थी। व्यक्ति को तीन प्रकार की शरण की
शपथ एवं दस धर्मादेश दिए जाते थे। ये शरण बुद्ध धर्म एवं संघ की होती
थी। दस धर्मादेशों में निम्न की मनाही थी
1. पारिवारिक जीवन
2. ऐसी वस्तु ग्रहण करना जो दी न हो
3. अशुद्ध आचरण
4. झूठ बोलना
5. मादक द्रव्यों का सेवन
6. असमय भोजन
7. नृत्य-गायन
8. पुष्प माला, इत्र, गहने आदि का प्रयोग
9. उच्च आसन का प्रयोग
10. सोना एवं चाँदी की प्राप्ति
1. बौद्ध शिक्षा पद्धति में शिक्षा देने हेतु निम्नलिखित में से किसे माध्यम
बनाया जाता था?
(1) प्रश्नोत्तर
(2) व्याख्यान
(3) कथा
(4) ये सभी
2. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या हो
सकता है?
(1) बौद्धिक शिक्षा पद्धति
(2) बौद्धकालीन शिक्षा के विषय
(3) बौद्धकालीन प्रगति
(4) बौद्ध शिक्षा पद्धति
3. बौद्ध शिक्षा पद्धति में किसे आध्यात्मिक जन्म माना जाता था?
(1) पबज्जा
(2) उपसम्पदा
(3) ब्रह्मचर्य
(4) इनमें से कोई नहीं
4. बौद्ध शिक्षा पद्धति के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
असत्य है?
(1) आठ वर्ष की आयु के पश्चात् ही विद्यारम्भ का संस्कार सम्पन्न किया
जाता था।
(2) व्यक्ति को तीन प्रकार की शरण की शपथ दिलवाई जाती थी।
(3) दस धर्मादेशों की मनाही थी।
(4) बौद्ध संघ में सम्मिलित होने के लिए दो संस्कार अनिवार्य थे।
5. संरक्षक की अनुमति किसके लिए आवश्यक थी?
(1) शिक्षा के आरम्भिक संस्कार हेतु
(2) व्यक्ति को वेद की शिक्षा देने के लिए
(3) उपरोक्त दोनों
(4) उपरोका में से कोई नहीं
6. ब्राह्मणों में शिक्षा का प्रारम्भ किस संस्कार से होता था?
(1) पब्बज्जा
(2) उपनयन
(3) उपसम्पदा
(4) उपासकत्व
7. ‘प्रासंगिक’ शब्द में कौन-सा प्रत्यय है?
(1) गिक
(2) प्र
(3) इक
(4) प्रा
8. ‘धर्मादेश’ शब्द है?
(1) संज्ञा
(2) विशेषण
(3) क्रिया
(4) सर्वनाम
9. “बौद्ध धर्म में शिक्षा प्रारम्भ संस्कार ब्राह्मणों के उपनयन संस्कार की
भाँति होता था।” इस कथन में रेखांकित पद में कौन-सा कारक है?
(1) करण कारक
(2) सम्प्रदान कारक
(3) सम्बन्ध कारक
(4) अपादान
गद्यांश 5
‘सेवासदन’ के उपरान्त सन् 1920 में प्रेमचन्द का उपन्यास ‘वरदान’ प्रकाशित
हुआ, किन्तु यह उपन्यास न तो सेवासदन की ‘भाव-भंगिमा’ को स्पर्श कर
सका, इसमें न वह उष्णता थी और न ही वैचारिक स्पष्टता। ऐसा लगता ही
नहीं कि ‘सेवासदन’ लिखने के बाद प्रेमचन्द ने इस उपन्यास का सृजन किया
है, जो वैचारिक प्रौढ़ता सेवासदन में है उसका अल्पांश भी वरदान में नहीं है।
उपन्यास की अधिकांश कथा में क्रमशः कृत्रिमता बढ़ती ही चली गई है और
कल्पना की अतिशयता ने मूल कथानक को ही अस्त-व्यस्त कर दिया है।
निःसन्देह ‘वरदान’ प्रेमचन्द की एक दुर्बल कृति है। वरदान के प्रकाशन के
ठीक एक वर्ष बाद सन् 1921 में प्रेमचन्द का ‘प्रेमाश्रम’ प्रकाश में आया।
‘प्रेमाश्रम’ में प्राय: उन सभी दोषों का अभाव है, जिनके कारण वरदान एक
अशक्त उपन्यास बनकर रह गया था। इस उपन्यास के माध्यम से जमींदार
और कृषकों का संघर्ष पहली बार भारतीय समाज के सामने इतना खुलकर
और उभर कर स्पष्ट रूप में आया तथा प्रेमचन्द की कला भी सम्भवतः
पहली बार प्रौढ़तर रूप में प्रकट हुई। श्री इलाचन्द्र की कला भी सम्भवतः
पहली बार प्रौढ़तर रूप में प्रकट हुई। श्री इलाचन्द्र जोशी एवं श्री अवध
उपाध्याय जैसे प्रेमचन्द के प्रारम्भिक आलोचकों ने इस उपन्यास की यद्यपि तीखी
आलोचना की है, किन्तु आलोचकों की आलोचना से तो कोई कृति अपनी
महानता खो नहीं देती, जो सामाजिक सच था, प्रेमचन्द ने उसकी अभिव्यक्ति दी
है और सच की आलोचना करने पर भी सच, सच ही रहता है।
इस उपन्यास का कथा क्षेत्र प्रेमचन्द्र के अब तक प्रकाशित उपन्यासों में
सर्वाधिक विस्तृत था। भिन्न-भिन्न जीवन पक्षों का अत्यधिक सूक्ष्म चित्रण
प्रेमचन्द ने इस उपन्यास में प्रस्तुत किया। इस रचना में उपन्यासकार ने शोषक
एवं शोषित के जिस संघर्ष को चित्रित किया है वह अत्यन्त सजीव एवं
रोमांचक है। लेखक ने इसमें कहीं-कहीं पर बड़े संयत दृष्टिकोण से ग्राम्य
जीवन की विडम्बनाओं का चित्रण किया है। भारतीय ग्रामीण समाज की
चिन्ताजनक स्थिति की पृष्ठभूमि में उपन्यास में लेखक ने विशेष रूप से ग्राम्य
जीवन की समस्याओं पर ही विचार किया है। किसानों की दयनीय स्थिति का
चित्रण और जमींदारों का वर्णन करते हुए लेखक ने ग्राम-सुधार के लिए
उपायों पर विचार किया है और यह कहना असंगत न होगा कि इसके लिए
लेखक को गाँधीवादी आदर्शवाद का आश्रय लेना पड़ा है। सभी शोषकों का
अन्ततः हृदय परिवर्तन कराया जाता है, किन्तु यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि
इस उपन्यास में प्रेमचन्द जी की आदर्शवादिता एक अपेक्षाकृत व्यावहारिक व
विश्वसनीय मोड़ लेती है। लेखक की सहानुभूति कृषकों के साथ होते हुए भी
व्यापक है, अत: वे अपराधी एवं अन्यायी को अधिकाधिक निन्दित,
उपहासित व दण्डित करके उसका सुधार एवं परिष्कार करते है।
प्रेमाश्रम में उद्देश्य ही उसका सर्वस्व है और यदि कथावस्तु संगठन पर
लेखक ने तनिक भी और ध्यान रखा होता, तो निःसन्देह यह कृति ‘गोदान’ से
कम महत्वपूर्ण नहीं होती। यद्यपि आज भी कल्पित आलोचक ‘प्रेमाश्रम’ को
गोदान से श्रेष्ठ मानते है।
1. ‘वरदान’ के बाद किस उपन्यास का प्रकाशन हुआ?
(1) गोदान
(2) प्रेमाश्रम
(3) गबन
(4) सेवासदन
2. प्रेमचन्द के किस उपन्यास में कल्पना एवं कृत्रिमता की अधिकता है?
(1) गोदान
(2) वरदान
(3) प्रेमाश्रम
(4) सेवासदन
3. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) कुछ लोग प्रेमाश्रम को गोदान से श्रेष्ठ मानते हैं।
(2) “प्रेमाश्रम’ में उद्देश्य ही सर्वस्व है।
(3) ‘वरदान’ उपन्यास में किसी प्रकार का कोई दोष नहीं है।
(4) ‘प्रेमाश्रम’ में गाँधीवाद एवं आदर्शवाद का सहारा लिया गया है।
4. प्रेमचन्द के किस उपन्यास का कथा-क्षेत्र सर्वाधिक विस्तृत है?
(1) गोदान
(2) प्रेमाश्रम
(3) सेवासदन
(4) वरदान
5. प्रस्तुत गद्यांश में अवध उपाध्याय का उल्लेख किस रूप में हुआ है?
(1) कथाकार
(2) आलोचक
(3) उपन्यासकार
(4) कवि
6. आदर्शवादिता शब्द है
(1) संज्ञा
(2) विशेषण
(3) प्रविशेषण
(4) सर्वनाम
7. ‘अभिव्यक्ति’ में उपसर्ग है
(1) क्ति
(2) यक्ति
(3) अभि
(4) अभिव
8. ‘चिन्ताजनक’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. ‘सेवासदन’ में कौन-सा समास है?
(1) कर्मधारय
(2) तत्पुरुष
(3) बहुव्रीहि
(4) अचानक
गद्यांश 6
‘गोदान’ प्रेमचन्द जी की उन अमर कृतियों में से एक है, जिसमें ग्रामीण
भारत की आत्मा का करुण चित्र साकार हो उठा है। इसी कारण कई मनीषी
आलोचक इसे ग्रामीण भारतीय परिवेशगत समस्याओं का महाकाव्य मानते हैं
तो कई विद्वान् इसे ग्रामीण-जीवन और कृषि-संस्कृति का शोक गीत
स्वीकारते हैं। कुछ विद्वान् तो ऐसे भी है कि जो इस उपन्यास को ग्रामीण
भारत की आधुनिक ‘गीता’ तक स्वीकार करते हैं, जो कुछ भी हो,
‘गोदान’ वास्तव में, मुंशी प्रेमचन्द का एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें
आचार-विचार, संस्कार और प्राकृतिक परिवेश, जो गहन करुणा से युक्त
है, प्रतिबिम्बित हो उठा है।
डॉ. गोपाल राय का कहना है कि गोदान’ ग्राम-जीवन और ग्राम संस्कृति को
उसकी सम्पूर्णता में प्रस्तुत करने वाला अद्वितीय उपन्यास है न केवल हिन्दी
के वरन् किसी भी भारतीय भाषा के किसी भी उपन्यास में ग्रामीण समाज का
ऐसा व्यापक यथार्थ और सहानुभूतिपूर्ण चित्रण नहीं हुआ है। ग्रामीण जीवन
और संस्कृति के अंकन की दृष्टि से इस उपन्यास का वही महत्त्व है, जो
आधुनिक युग में युग जीवन की अभिव्यक्ति की दृष्टि से महाकाव्यों का हुआ
करता था। इस प्रकार डॉ.राय गोदान को आधुनिक युग का महाकाव्य ही
नहीं स्वीकारते वरन सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य भी स्वीकारते हैं। उनके इस कथन का
यही आशय है कि प्रेमचन्द जी ने प्राम-जीवन से सम्बद्ध सभी पक्षों का न
केवल अत्यन्त विशदता से चित्रण किया है, वरन् उनकी गहराइयों में जाकर
उनके सच्चे चित्र प्रस्तुत कर दिए हैं। प्रेमचन्द जी ने जिस ग्राम-जीवन का
चित्र गोदान में प्रस्तुत किया है, उसका सम्बन्ध आज ग्राम परिवेश से न
होकर तत्कालीन प्राम-जीवन से है। ग्रामीण जीवन को वास्तविक आधार
प्रदान करने के लिए प्रेमचन्द जी ने चित्र के अनुरूप ही कुछ ऐसे खाँचे
अथवा चित्रफलक निर्मित किए हैं, जो चित्र को यथार्थ बनाने में सहयोगी
सिद्ध हुए हैं। ग्रामीण किसानों के घर-द्वार, खेत-खलिहान और प्राकृतिक
दृश्यों का ऐसा वास्तविक चित्रण अन्यत्र दुर्लभ है।
1. ‘गोदान’ है
(1) काव्यग्रन्थ
(2) उपन्यास
(3) कथाकृति
(4) महाकाव्य
2. ‘गोदान’ को किसने महाकाव्य माना है?
(1) डॉ. रामविलास शर्मा ने
(2) डॉ. गोपाल राय ने
(3) उपरोक्त दोनों
(4) इनमें से कोई नहीं
3. ‘गोदान’ के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) इसमें ग्रामीण परिवेश का चित्रण है।
(2) इसमें कृषकों की समस्याओं का चित्रण है।
(3) इसमें प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण नहीं है।
(4) इसमें ग्राम्य जीवन के सभी पहलुओं का चित्रण है।
4. प्रतिबिम्बित’ शब्द है
(1) विशेषण
(2) संज्ञा
(3) क्रिया
(4) प्रविशेषण
5. ‘गोदान’ को निम्नलिखित में से क्या नहीं कहा गया है?
(1) उपन्यास
(2) गीता
(3) महाकाव्य
(4) काव्य
6. ‘विशदता’ से तात्पर्य है।
(1) विस्तृत रूप से
(2) विशालता सहित
(3) परिपूर्णता
(4) इनमें से कोई नहीं
7. ‘सहानुभूति’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) सह + अनुभूति
(2) सहान + भूति
(3) सहा + अनुभूति
(4) सहा + नुभूति
8. ‘महाकाव्य’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. गोदान को ग्रामीण जीवन का महाकाव्य कहने का क्या तात्पर्य है?
(1) गोदान में ग्रामीण जीवन के सभी पहलुओं का विस्तृत चित्रण हुआ है
(2) गोदान ग्रामीण जीवन का काव्य-ग्रन्थ है
(3) गोदान ग्रामीण जीवन के सभी काव्य-ग्रन्थों में श्रेष्ठ है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
गद्यांश 7
‘गोदान’ प्रेमचन्द जी का एक ऐसा क्रान्तिकारी उपन्यास है, जिसमें तत्कालीन
युग अपनी समस्त विकृतियों, विडम्बनाओं एवं सच्चाइयों के साथ चित्रित हो
गया है। उसमें अपने समय का यथार्थ ही चित्रित नहीं हुआ है वरन् तत्कालीन
भारतीय कृषक वर्ग का इतिहास भी संरक्षित हुआ है। प्रेमचन्द जी अपने युग
और उसकी परिस्थितियों से पूर्णत: परिचित थे। इसी कारण छोटे-छोटे प्रसंग
भी उनकी दृष्टि से ओझल नहीं रहे हैं। अपने समाज की यह पहचान और
इसे औपन्यासिक परिस्थितियों से अनुस्यूत कर देने की क्षमता बिरले लोगों में
ही होती है। वे यह जानते थे कि एक निष्क्रिय समाज पतन के लिए किस
बिन्दु पर खड़ा है तथा वही समाज सामाजिक जागृति पाकर जब जागता है,
तो वह किस तरह अपने अतीत और वर्तमान के संकटों के बीच भविष्य के
प्रति आशावादी होता है। सामाजिक चेतना के महीन बिन्दुओं को, उन
सामाजिकों के बीच प्रेमचन्द ने पहचाना था, जिन्होंने उस चेतना को
स्वाभाविक रूप में प्राप्त किया।
ड. गंगा प्रसाद विमल इसी प्रसंग में लिखते है―उपन्यास कथा, होरी जैसे
साधारण किसान को केन्द्र बनाकर चलती है, किन्तु केन्द्रीय कथा में होरी
मात्र नायक के रूप में ही प्रस्तावित नहीं है, अपितु वह स्वयं एक कथा सत्य
के रूप में स्थापित होता है। होरी की कथा में नगर एवं गाँव दोनों के
अर्थतन्त्र का खुला हिसाब प्रतीत होता है, परन्तु इन आधारों पर गोदान केवल
एक विचारकथा या समस्याओं की कथा नहीं है, बस्कि वह मानवीय संघर्ष
की कथा है। ऐसी कथा जिसमें स्वाधीनता युग का स्वर क्रान्ति की लहरी का
ज्वार भी है, तो सारी लड़ाई का पराजय बोध भी। वस्तुत: पराजय बोध के
केन्द्र से यदि हम इस कथा कृति का अवलोकन करें, तो हम पाएँगे कि
गोदान में एक सच्ची प्रासदी की तस्वीर अवतरित हुई है।
उपन्यास का नायक होरी इतना दीन-हीन किसान है कि उसके माध्यम से
भारतीय कृषक वर्ग की करुणा और मार्मिक जीवन-यात्रा की सजीव झाँकी
प्रस्तुत हो गई है। भारतीय किसान ऋण में ही पैदा होता है, ऋण में ही
जीवित रहता है और अपने उत्तराधिकारी पर ऋण का भार छोड़कर मर जाता
है। मरते समय उसके पास एक गाय तक नहीं रहती। गोदान उपन्यास ऐसे ही
भारतीय किसान के जीवन की करुण त्रासदी है। गाय की आकांक्षा होरी के
जीवन का सबसे मधुर स्वप्न उसके जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा है।
अपनी यह आकांक्षा पूरी करने के लिए वह कोई भी जोखिम उठा सकता है
पर पूँजीवादी शोषणचक्र उसकी अभिलाषा को पीस डालता है। अन्त में इस
आकांक्षा की पूर्ति के लिए वह ऐसा जी-तोड़ परिश्रम करता है, जो उसकी
मृत्यु का कारण बनता है और वह गाय की अभिलाषा मन में ही लिए मृत्यु
का वरण कर लेता है।
1. ‘गोदान’ का नायक कौन है?
(1) प्रेमचन्द
(2) होरी
(3) गंगा प्रसाद
(4) धनिया
2. गोदान में निम्नलिखित में से किसका वर्णन नहीं है?
(1) ग्रामीण किसान
(2) ग्रामीण अर्थतन्त्र
(3) ग्रामीण समाज
(4) इनमें से कोई नहीं
3. होरी की कौन-सी इच्छा अधूरी रह जाती है?
(1) नेता बनने की इच्छा
(2) जमींदार बनने की इच्छा
(3) गाय दान करने की इच्छा
(4) इनमें से कोई नहीं
4. प्रेमचन्द के अनुसार
(1) भारतीय किसानों के लिए कर्ज कोई समस्या नहीं है।
(2) भारतीय किसान कर्ज में ही पैदा होता है और कर्ज में ही मर जाता है।
(3) भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
(4) प्रशासकों को अपने नेताओं की कोई चिन्ता नहीं।
5. गोदान में
(1) ग्राम्य जीवन की त्रासदी का चित्रण है
(2) किसानों के शोषण का वर्णन है
(3) ग्रामीण किसानों की विडम्बनाओं का चित्रण है
(4) उपरोक्त सभी
6. ‘क्रान्तिकारी’ शब्द है
(1) संज्ञा
(2) विशेषण
(3) प्रविशेषण
(4) क्रिया
7. ‘निष्क्रिय’ शब्द का प्रयोग प्रस्तुत गद्यांश में किसके लिए किया गया है?
(1) किसान
(2) समाज
(3) लेखक
(4) पतन
8. ‘गोदान’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. प्रस्तुत गद्यांश में ‘अभिलाषा’ शब्द के लिए किस पर्यायवाची शब्द का
प्रयोग किया गया है?
(1) इच्छा
(2) आकांक्षा
(3) स्पृहा
(4) मनोरथ
गद्यांश 8
भारतीय साहित्य भारतीय संस्कृति के आधार पर विकसित हुआ है। इस
संस्कृति में भारतीयता के बीज समाहित हैं। जब कभी-भी भारतीय अपनी
पहचान का व्याख्यान करने को उत्सुक होता है, उसे अपनी जड़ से जोड़कर
देखना चाहता है। यह केवल भारत व भारतीय के लिए ही आवश्यक नहीं है,
बल्कि किसी भी देश के प्रान्त से जुड़ा हुआ मसला है। अपने को अन्य से
जोड़कर तर्क दिए जाते है। उसे अपनी जड़ से जोड़कर ही देखते हैं। वर्तमान
में भारतीय संस्कृति व सभ्यता के बीच उपजी हुई विषय-वस्तु को ही आधार
बनाकर अपनी पहचान को जोड़ते हैं, जिसके कारण दक्षिण भारतीय या उत्तर
भारतीय सभी भारतीय संस्कृति की टूटी कड़ियों से जोड़कर अपने आपको
अलग स्थापित करते हैं। इसका परिणाम भारतीय स्तर पर विखण्डन के रूप
में भी देखने को मिलता है। इस परिणाम के तहत भाषा व संस्कृति के आधार
पर विभिन्न प्रान्तों का निर्माण भी सम्भव हो गया। यदि यही विखण्डित समाज
भारतीय संस्कृति के मूल से जोड़कर अपने को देखता होता तो भाषायी एकता
भी बनती और क्षेत्रवाद का काला धुआँ, जो भारतीय आकाश पर मण्डरा रहा
है, उसकी उत्पत्ति ही सम्भव नहीं हो पाती। इस सन्दर्भ में भारतीयता व उसके
समीप उपजे साहित्य को सीमाओं में जाँचना जरूरी है। इसकी प्रकृति की
खोज और इसके परिणामों की व्याख्या भारतीय साहित्य व भारतीयता के
सन्दर्भ में खोजनी होंगी।
भारतीयता के सन्दर्भ में साहित्य और समाज के सम्बन्धों को समझना
आवश्यक है। साहित्य का जन्म समाज में ही सम्भव हो सकता है, इसलिए
मानवीय संवेदनाओं को हम उनकी अभिव्यक्ति के माध्यम से समझ सकते हैं।
यह अभिव्यक्ति समाज और काल में अलग-अलग रूपों में प्रकट हुई है।
यदि हम पाषाण काल के खण्डों और उसके वन में ही रहने वालों की स्थिति
को देखें, तो उनके विचार शब्दों में नहीं, बल्कि रेखाचित्रों में देखने को
मिलते हैं। कई गुफाओं में इन समाजों की अभिव्यक्ति को पत्थर पर खुदे
निशानों में देख सकते हैं। ये निशान उनके जन-जीवन में घटने वाली घटनाओं
को प्रदर्शित करते नजर आते हैं। उनमें शिकार करते आदिमानव को देख
सकते हैं, जो जीवन-यापन के साधन है। उन चित्रों में हल चलाने वाले
किसानों की अभिव्यक्ति नहीं मिलती। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि
वह समाज वनाचरण व्यवस्था में ही सिमटी या उनका जीवन-यापन शिकार
पर ही केन्द्रित या सभ्यता के विकास की गाथा उसके जीवन में नहीं गाई जा
रही थी, लेकिन समय की पहली धारा में जो प्रभाव देखे जाते हैं, वह सभ्यता
के रूप में गिरे पड़े टूटे-फूटे प्राप्त ऐतिहासिक खोज में देख सकते हैं।
1. भारतीयता को समझने के लिए निम्नलिखित में से किसे समझना
आवश्यक है?
(1) भारतीय साहित्य को
(2) भारतीय साहित्य और समाज के सम्बन्धों को
(3) भारतीय समाज को
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
2. भारतीय साहित्य किसके आधार पर विकसित हुआ है?
(1) भारतीय समाज
(2) भारतीय राजनीति
(3) भारतीय संस्कृति
(4) भारतीय इतिहास
3. ‘संवेदना’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(1) सम् + वेदना
(2) स + वेदना
(3) सा + वेदना
(4) सम् + वेदन
4. यदि उत्तर भारतीय एवं दक्षिण भारतीय संस्कृति को अलग कर नहीं
देखा जाता, तो इसका क्या लाभ होता?
(1) नक्षेत्रवाद पनपता और न ही भाषावाद
(2) भारतीय साहित्य का विकास नहीं होता
(3) दक्षिण भारतीय साहित्य का विकास होता
(4) उपरोक्त सभी
5. साहित्य का जन्म किससे सम्भव है?
(1) विज्ञान
(2) व्यक्ति
(3) समाज
(4) इनमें से कोई नहीं
6. भारतीय अपनी पहचान के व्याख्यान के लिए क्या करता है?
(1) अपनी संस्कृति की अवहेलना करता है
(2) अपने समाज की अवहेलना करता है
(3) साहित्य को स्वयं से जोड़कर देखता है
(4) उपरोक्त सभी
7. ‘भारतीयता’ शब्द के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
सत्य है?
(1) यह संज्ञा से बनी संझा है
(2) यह विशेषण से बनी संज्ञा है
(3) यह क्रिया से बनी संज्ञा है
(4) यह संज्ञा से बना विशेषण है
8. रेखाचित्र’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्र
(4) कर्मधारय
9. ‘समीप’ का तात्पर्य है
(1) समान
(2) दूर
(3) निकट
(4) अचानक
गद्यांश 9
संसार के सभी देशों में शिक्षित व्यक्ति की सबसे पहली पहचान यह होती है
कि वह अपनी मातृभाषा में दक्षता से काम कर सकता है। केवल भारत ही
एक ऐसा देश है, जिसमें शिक्षित व्यक्ति वह समझा जाता है, जो अपनी
मातृभाषा में दक्ष हो या न हो, किन्तु अंग्रेज़ी में जिसकी दक्षता असंदिग्ध हो।
संसार के अन्य देशों में सुसंस्कृत व्यक्ति वह समझा जाता है, जिसके घर में
अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह हो और जिसे बराबर यह पता रहे कि
उसकी भाषा के अच्छे लेखक और कवि कौन हैं तथा समय-समय पर उनकी
कौन-सी कृतियाँ प्रकाशित हो रही है? भारत में स्थिति दूसरी है। यहाँ घर में
प्रायः साज-सज्जा के आधुनिक उपकरण तो होते हैं, किन्तु अपनी भाषा की
कोई पुस्तक नहीं होती है। यह दुर्वस्था भले ही किसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का
परिणाम है, किन्तु वह सुदशा नहीं है दुर्वस्था ही है।
इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लेखक केवल यूरोपीय और अमेरिकी
लेखकों से ही हीन नहीं है, बल्कि उनकी किस्मत चीन, जापान के लेखकों
की किस्मत से भी खराब है, क्योंकि इन सभी लेखकों की कृतियाँ वहाँ के
अत्यन्त सुशिक्षित लोग भी पढ़ते हैं। केवल हम ही नहीं है, जिनकी पुस्तकों
पर यहाँ के तथाकथित शिक्षित समुदाय की दृष्टि प्राय: नहीं पड़ती। हमारा
तथाकथित उच्च शिक्षित समुदाय जो कुछ पढ़ना चाहता है, उसे अंग्रेजी में ही
पढ़ लेता है यहाँ तक उसकी कविता और उपन्यास पढ़ने की तृष्णा भी
अंग्रेजी की कविता और उपन्यास पढ़कर ही समाप्त हो जाती है और उसे यह
जानने की इच्छा नहीं होती कि शरीर से वह जिस समाज का सदस्य है उसके
मनोभाव उपन्यास और काव्य में किस अदा से व्यक्त हो रहे हैं।
1. भारत में शिक्षित व्यक्ति की क्या पहचान है?
(1) पूर्णरूप से शिक्षित
(2) अंग्रेजी में निपुण
(3) अपनी मातृभाषा में दक्ष
(4) अनेक भाषाओं का ज्ञाता
2. भारतीय भाषाओं के साहित्य के प्रति समाज के किस वर्ग में अरुवि की
भावना है?
(1) अशिक्षित वर्ग
(3) अत्यन्त सुशिक्षित वर्ग
(2) कमजोर वर्ग
(4) धनी वर्ग
3. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या हो सकता है?
(1) शिक्षित मनुष्य का महत्व
(2) भाषा का ज्ञान
(3) मातृभाषा का महत्व
(4) शिक्षित समुदाय
4. ‘संसार’ शब्द का समानार्थी शब्द है
(1) राष्ट्र
(2) देश
(3) समाज
(4) जगत्
5. ‘भारतीय’ शब्द में प्रत्यय है
(1) भारत
(2) भार
(3) ईय
(4) तीय
6. प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार निम्नलिखित में से कौन-सा कथन
असत्य है?
(1) अन्य देशों में लोग अपने घरों में अपनी मातृभाषा के लेखकों की पुस्तकें
रखते है।
(2) भारत में उच्च शिक्षित लोग अपने घरों में हिन्दी भाषा की पुस्तकों को रखना
चाहते हैं।
(3) भारत के उच्च शिक्षित घरों में भौतिक सुविधाओं की हर प्रकार की सामग्री हो
सकती है।
(4) भारत के लोग अपनी मातृभाषा को अंग्रेजी से कम महत्त्व देते हैं।
7. भारतीय लेखकों की समस्या क्या है?
(1) उन्हें यहाँ के सामान्य लोग खूब पढ़ते हैं
(2) उच्च शिक्षा प्राप्त लोग प्रायः उन्हें नहीं पढ़ते
(3) उनकी कई रचनाएँ प्रकाशित होती है
(4) समाज में उनकी कोई पहचान नहीं होती
8. भारत का उच्च शिक्षित वर्ग किस भाषा में गद्य या पद्य पढ़ना पसन्द
करता है?
(1) लैटिन
(2) हिन्दी
(3) अंग्रेजी
(4) उर्दू
9. किसी समाज की वास्तविकता किस भाषा में सर्वाधिक सही ढंग से
अभिव्यक्त हो सकती है?
(1) विदेशी भाषा
(2) अंग्रेजी
(3) हिन्दी
(4) उस समाज की अपनी भाषा
गद्यांश 10
साहित्य को समाज का प्रतिबिम्ब माना गया है अर्थात् समाज का पूर्णरूप
साहित्य में प्रतिबिम्बित होता रहता है। अनादि काल से साहित्य अपने इसी
धर्म का पूर्ण निर्वाह करता चला आ रहा है। वह समाज के विभिन्न रूपों का
चित्रण कर एक ओर तो हमारे सामने समाज का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है
और दूसरी ओर अपनी प्रखर मेधा और स्वस्थ कल्पना द्वारा समाज के
विभिन्न पहलुओं का विवेचन करता हुआ यह भी बताता है कि मानव समाज
की सुख-समृद्धि, सुरक्षा और विकास के लिए कौन-सा मार्ग उपादेय है? एक
आलोचक के शब्दों में- “कवि वास्तव में समाज की व्यवस्था, वातावरण,
धर्म-कर्म, रीति-नीति तथा सामाजिक शिष्टाचार या लोक व्यवहार से ही
अपने काव्य के उपकरण चुनता है और उनका प्रतिपादन अपने आदर्शों के
अनुरूप करता है।”
साहित्यकार उसी समाज का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें वह जन्म लेता है।
वह अपनी समस्याओं का सुलझाव, अपने आदर्श की स्थापना अपने समाज
के आदर्शों के अनुरूप ही करता है। जिस सामाजिक वातावरण में उसका
जन्म होता है, उसी में उसका शारीरिक, बौद्धिक और मानसिक विकास भी
होता है। अत: यह कहना सर्वथा असम्भव और अविवेकपूर्ण है कि
साहित्यकार समाज से पूर्णतः निरपेक्ष या तटस्थ रह कर साहित्य सृजन करता
है। वाल्मीकि, तुलसी, सूर, भारतेन्दु, प्रेमचन्द आदि का साहित्य इस बात का
सर्वाधिक सशक्त प्रमाण है कि साहित्यकार समाज से घनिष्ठ रूप से सम्बन्ध
रखता हुआ ही साहित्य सृजन करता है। समाज की अवहेलना करने वाला
साहित्य क्षणजीवी होता है।
मानव का कला या साहित्य सृजन के प्रति उन्मुख होना उसके इन्द्रिय बोध
का परिणाम रहा है। रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि के इन्द्रियबोष मानव और
पशु दोनों में ही विद्यमान है, परन्तु मानव में पराकी अपेक्षा अधिक मात्रा में।
मानव में एक विशिष्ट गुण, विवेक है। विवेक के द्वारा उसने सामाजिक जीवन
का विकास और अपने इन्द्रियबोध का परिष्कार किया है। समाज व्यवस्था
बदलने के माय मनुष्य का इन्द्रियबोध, विचार और भावों की अपेक्षा स्थायी
रहता है। भाव और विचार दोनों ही साहित्य के मूलाधार है और इनका
उद्गम और परिष्कार सामाजिक परिवेश में ही सम्भव होता है, समाज से
कटकर निरपेक्ष रहने पर नहीं।
1. अनादिकाल से साहित्य अपने किस धर्म का निर्वहन करता आ रहा है?
(1) अपने प्रभुत्व बनाए रखने का
(2) समाज के पूर्णरूप को प्रतिविम्बित करने का
(3) यूएनडीपी से सहयोग लेना
(4) निर्धन लोगों की सहायता करना
2. साहित्य हमें क्या बताता है?
(1) सामाजिक वर्चस्व करने के लिए क्या करना चाहिए
(2) समाज-व्यवस्था को बदलते रहना चाहिए
(3) मानव समाज की सुख-समृद्धि, सुरक्षा और विकास के लिए कौन-सा मार्ग
उपादेय है
(4) उपरोक्त सभी
3. मानव के इन्द्रियबोध का परिणाम है
(1) कला सृजन
(2) साहित्य सृजन
(3) 1 और 2
(4) इनमें से कोई नहीं
4. साहित्यकार किस समाज का प्रतिनिधित्व करता है?
(1) जिस समाज में वह जन्म लेता है
(2) जिस समाज के बारे में वह लिखना चाहता है
(3) जिस समाज की वह अवहेलना करता है
(4) उपरोक्त सभी
5. कवि अपने काव्य के उपकरण कहाँ से चुनता है?
(1) धर्म-कर्म
(2) रीति-नीति
(3) लोक व्यवहार
(4) ये सभी
6. कवि का आदर्श होता है
(1) उसके समाज के आदर्श के अनुरूप
(2) उसके स्वयं के आदर्श के अनुरूप
(3) उसके परिवार के आदर्श के अनुरूप
(4) ये सभी
7. ‘उपादेय’ का तात्पर्य होता है
(1) ग्रहण करने योग्य
(2) श्रेष्ठ
(3) उत्तम
(4) ये सभी
8. ‘इन्द्रियबोध’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्र
(4) कर्मधारय
9. निम्नलिखित में से कौन-सा अव्यय है
(1) प्रति
(2) रूप
(3) समाज
(4) मानव
गद्यांश 11
सभ्यता के पुराने दस्तावेज के रूप में खण्डहरों व भूमिगत सामग्रियों को देखा
जाता है। जब व्यक्ति अपने आपको सामाजिक जीवन में ढालने लगा, तब से
वह समग्र एकता में प्रदर्शित होता है। इस प्रदर्शन की सीमा को हड़प्पा व
मोहनजोदड़ो से प्राप्त वस्तुओं से जान सकते हैं उनकी अभिव्यक्ति
रहन-सहन, मोहरों, सिक्कों एवं बने-बनाए पक्के व अधपके खिलौनों से
जान सकते हैं। उनकी धार्मिक भावना के रूप में कुण्ड की प्राप्ति हुई है,
जिससे उनकी धार्मिक संवेदनाओं को जान सकते है। लेकिन प्राकृतिक
आपदाओं में ढहती सभ्यताओं की कहानी, जमीन में फंसे समय के काल को
खोद कर देख सकते है। इससे इतिहास की टूटी कड़ियों का पता चलता है।
इससे यह भी पता चलता है कि कैसे नगरीय सभ्यता के स्थान पर ग्रामीण
सभ्यता का विकास होता है। यह वैदिक युग में हुआ और इसी सभ्यता में
भाषा की उपलब्धि हासिल हुई, जिसको संस्कृत के रूप में जाना जाता है।
वैदिक युग में मानव ने जंगल से निकल प्रामीण संस्कृति का निर्माण किया
तथा समाज ने प्राकृतिक रूपों को ही अपने इष्ट के रूप में स्वीकारा, जिसकी
अभिव्यक्ति ऋग्वेद के रूप में मिलती है। भाषा की यह वृत्ति केवल
भारतभूमि पर ही सम्भव नहीं हुई, बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी
देखने को मिलती है। संस्कृत भाषा की प्राथमिक जीवित रचना के रूप में
ऋग्वेद का शास्त्रीय संस्कृत भाषा का सम्बन्ध है। संस्कृत भाषा अपनी
समस्त स्थितियों में प्रयुक्त बहुल भाषा है, परन्तु वेदों में जो रूप प्रयुक्त
हुए है, उनमें बाद के दिनों से अन्तर है। यही कारण है कि वैदिक भाषा
का प्रभाव बाद के दिनों में अन्य भाषाओं में देखने को मिलता है, क्योंकि
संस्कृत ही इन भाषाओं की जननी है। वर्तमान में भारतीय संविधान में
संगृहीत सभी भाषाओं का प्रभाव देखा जाता है।
1. संस्कृत को किन भाषाओं की जननी बताया गया है?
(1) सभी भाषाओं की
(2) वैदिक भाषाओं की
(3) हड़प्पाकालीन भाषाओं की
(4) ये सभी
2. सभ्यता के पुराने दस्तावेज के तौर पर किसे देखा जाता है?
(1) पुराने खण्डहर
(2) भूमिगत सामग्री
(3) 1 और 2
(4) इनमें से कोई नहीं
3. किसी सभ्यता के सामाजिक जीवन के बारे में किससे पता
चलता है?
(1) अधपके खिलौनों से
(2) सिक्कों से
(3) मोहरों से
(4) इन सभी से
4. किस युग में मानव ने ग्रामीण संस्कृति का निर्माण किया?
(1) हड़प्पा युग
(2) मोहनजोदड़ो युग
(3) वैदिक युग
(4) इनमें से कोई नहीं
5. कौन-सी सभ्यता पहले विद्यमान थी?
(1) ग्रामीण सभ्यता
(2) नगरीय सभ्यता
(3) उपरोक्त दोनों एकसाथ विद्यमान थीं
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
6. निम्नलिखित में से कौन-सी विश्व की पहली साहित्यिक रचना मानी
जाती है?
(1) उपनिषद्
(2) ऋग्वेद
(3) सामवेद
(4) अथर्ववेद
7. ‘प्राथमिक’ शब्द है
(1) विशेषण
(2) क्रिया
(3) क्रिया-विशेषण
(4) संज्ञा
8. ‘अधपका’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्र
(4) कर्मधारय
9. प्रस्तुत गद्यांश में ‘इष्ट’ का तात्पर्य है
(1) इच्छित
(2) ईर्ष्या
(3) ईश्वर
(4) असुर
गद्यांश 12
वर्ष 1914 तक देश का औद्योगिक विकास बेहद धीमा रहा और
साम्राज्यवादी शोषण अत्यन्त तीव्र हो गया। गाँवों की अर्थव्यवस्था पंगु हो
गई। सबसे अधिक बुरा प्रभाव कारीगरों, हरिजनों और छोटे किसानों पर
पड़ा। ग्रामीण जन साम्राज्य और उनके भारतीय एजेण्ट जमींदारों के दोहरे
शोषण की चक्की में पिस रहे थे। ब्रिटिश काल में सूदखोर महाजनों का
एक ऐसा वर्ग पैदा हुआ, जिनसे एक बार कर्ज लेने पर गांव के किसान
जीवन-भर गुलामी का पट्टा पहनने पर मजबूर हो जाते थे। उनके हिसाब
के सूद का भुगतान करने में असमर्थ किसान महाजनों को खेत बेचने पर
मजबूर होकर अपनी जमीन पर ही मज़दूर होता गया। इस प्रकार देश में
एक ओर तो बड़े किसानों की संख्या बढ़ी, दूसरी ओर जमीन जोतने वाला
किसान भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होकर खेतिहर मजदूर होने
लगा। भुखमरी से बचने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीण बड़े पैमाने पर
रोजी-रोटी की तलाश में शहरों की ओर भागने लगे, परन्तु इन असहाय लोगों
का स्वागत करने के लिए वहाँ भी कठिनाइयाँ और समस्याएँ ही थीं। प्रेमचन्द
‘गोदान’ में होरी और गोयर के माध्यम से इस ऐतिहासिक प्रक्रिया को विस्तार से
हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं। यह अकेले होरी की ट्रेजिडी नहीं है, पूरे छोटे
किसानों के साथ साम्राज्यवादी पूंजीवादी व्यवस्था में शोषण रात्र का क्रूर
मजाक है, जो दूसरे ढंग से आज भी जारी है। 20वीं शताब्दी के आरम्भ में
ग्रामीण गरीबी का प्रेमचन्द जो यथार्थ चित्रण करते है, यह यूरोप में किसी
व्यक्ति के लिए अकल्पनीय है- “दूटे फूटे झोपड़े, मिट्टी की दीवारें, घरों के
सामने कूड़े-करकट के ढेर, कीचड़ में लिपटी पैसे, दुर्बल गायें, हड्डी निकले
किसान, जवानी में ही जिन पर बुढ़ापा आ गया है।”
1. ‘गोदान’ के पात्र है
(1) होरी
(2) गोबर
(3) प्रेमचन्द
(4) होरी एवं गोबर
2. 1914 तक देश के औद्योगिक विकास धीमा रहने का मुख्य कारण क्या हो
सकता है।
(1) साम्राज्यवादी शोषण
(2) गाँव की पंगु अर्थव्यवस्था
(3) सूदखोर महाजन
(4) गरीब किसान
3. ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर होने का कुप्रभाव किस पर पड़ा?
(1) कारीगर
(2) छोटे किसान
(3) दलित वर्ग
(4) ये सभी
4. प्रामीण लोग शहरों की ओर क्यों पलायन कर रहे थे?
(1) रोजी-रोटी की तलाश में
(2) भुखमरी से बचने के लिए
(3)1 और 2
(4) इनमें से कोई नहीं
5. गाँवों के लोगों का शोषण कौन कर रहा था?
(1) साम्राज्य
(2) साम्राज्य के एजेण्ट
(3) सूदखोर महाजन
(4) ये सभी
6. छोटे किसानों के खेतीहर मजदूर बनने का कारण क्या था?
(1) कर्ज चुकाने के लिए खेत बेचना
(2) स्वरोजगार की शुरुआत के लिए खेत बेचना
(3) खेती से लाभ न होना
(4) खेती में कोई रुचि न लेना
7. प्रस्तुत गद्यांश में आए शब्द ‘पगु’ का तात्पर्य क्या है?
(1) बिगड़ना
(2) पागुर करना
(3) सुधरना
(4) अच्छा न होना
8. जिसकी कल्पना न की जा सके, उसे कहते हैं
(1) अकल्पित
(2) अकल्य
(3) अकल्पनीय
(4) असम्भव
9. ‘बुढ़ापा’ शब्द है
(1) जातिवाचक संज्ञा
(2) भाववाचक संज्ञा
(3) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(4) द्रव्यवाचक संज्ञा
गद्यांश 13
जब से नव उदारवाद की बयार चली है तब से कहा जा रहा है कि सारा विश्व
अमेरिकी रंग में, देर-सबेर सराबोर हो जाएगा, यानी सब मुल्कों का
अमेरिकीकरण हो जाएगा। ऐसा दावा भूतपूर्व अमेरिकी विदेशमन्त्री डॉ. हेनरी
किसिंगर ने 12 अक्टूबर, 1999 को आयरलैण्ड की राजधानी डब्लिन के ट्रिनिटी
कॉलेज में अपने व्याख्यान के क्रम में किया: ‘बुनियादी चुनौती यह है कि जिसे
भूमण्डलीकरण कहा गया है, वह अमेरिका द्वारा वर्चस्व जमाए रखने सम्बन्धी
भूमिका का ही दूसरा नाम है। बीते दशक के दौरान अमेरिका ने अभूतपूर्व
समृद्धि हासिल की, पंजी की उपलव्यता को व्यापक और सघन किया, नई
प्रौद्योगिकियों की विविधता के निर्माण, उनके विकास और विस्तृत वितरण हेतु
धन की व्यवस्था की, अनगिनत सेवाओं और वस्तुओं के बाजार बनाए।
आर्थिक दृष्टि से इससे बेहतर कुछ और नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे
कहा कि इन सबको देखते हुए अमेरिकी विचारों, मूल्यों और जीवन शैली को
स्वीकारने के अलावा विश्व के पास कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स’ के स्तम्भकार टॉमस एल. फ्रिडमैन घोषणा करते दिखते हैं।
कि हम अमेरिकी एक गतिशील विश्व के समर्थक मुक्त बाजार के पैरोकार
और उच्च तकनीक के पुजारी हैं। हम चाहते हैं कि विश्व हमारे नेतृत्व में रहे
और लोकतान्त्रिक तथा पूँजीवादी बने। इतिहास के अन्त की घोषणा करने वाले
फ्रांसिस फुकुयामा का मानना है कि विश्व का अमेरिकीकरण होना ही चाहिए,
क्योंकि कई दृष्टियों से अमेरिका आज विश्व का सर्वाधिक उन्नत पूँजीवादी
समाज है। उसके संस्थान इसी कारण बाजार की शक्तियों के तर्क संगत
विकास के प्रतीक है। यदि बाजार की शक्तियों को वैश्वीकरण संचालित
करता है, तो भूमण्डलीकरण के साथ-साथ अमेरिकीकरण अनिवार्य रूप से
होगा। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ से जुड़े भारतीय मूल के टिप्पणीकार आकाश कपूर ने
उपरोक्त चर्चा को आगे बढ़ाया है। कपूर के पिता भारतीय और माँ अमेरिकी
है। वे पले-बढ़े है अमेरिका में, परन्तु अरसे से पुदुचेरी (पाण्डिचेरी) में रहते है।
उनके लेख ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ और उनके भूमण्डलीय संस्करण ‘इण्टरनेशनल
हेराल्ड ट्रिब्यून’ में नियमित रूप से प्रकाशित होते है।
1. नव उदारवाद का प्रभाव हो सकता है
(1) संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्व में वृद्धि
(2) भूमण्डलीकरण के महत्व में कमी
(3) पूँजी की उपलबता की व्यापकता
(4) अमेरिका के वर्चस्व में वृद्धि
2. लेखक प्रस्तुत गद्यांश के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
(1) उदारवाद कितना घातक है?
(2) उदारवाद और भूमण्डलीकरण के कारण अमेरिका के वर्षस्व में किस तरह
वृद्धि होगी?
(3) भूमण्डलीकरण दुनिया के लिए सही नहीं है
(4) उपरोक्त सभी
3. इतिहास के अन्त की घोषणा किसने की थी?
(1) डॉ. हेनरी किसिंगर
(2) टॉमस एल, फ्रिडमैन
(3) फ्रांसिस फुकुयामा
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
4. ट्रिनिटी कॉलेज कहाँ है?
(1) अमेरिका में
(2) लन्दन में
(3) न्यूयॉर्क में
(4) डब्लिन में
5. टॉमस एल. फ्रिडमैन किस समाचार-पत्र में स्तम्भ लिखते थे?
(1) न्यूयॉर्क टाइम्स
(2) लन्दन टाइम्स
(3) द टाइम्स ऑफ इण्डिया
(4) टोक्यो टाइम्स
6. आकाश कपूर कहाँ रहते है?
(1) नई दिल्ली में
(2) न्यूयॉर्क में
(3) पाण्डिचेरी में
(4) डब्लिन में
7. जिसका निवारण न किया जा सके, उसे कहते हैं
(1) अनिवारण
(2) अनिवारणीय
(3) अनिवार्य
(4) आवश्यक
8. वैश्वीकरण शब्द है
(1) संज्ञा से बनी संज्ञा
(2) विशेषण से बनी संज्ञा
(3) संज्ञा से बना विशेषण
(4) क्रिया से बना विशेषण
9. ‘बयार’ का तात्पर्य है
(1) बया पक्षी
(2) हवा
(3) मेल
(4) शुरुआत
गद्यांश 14
खबर के बिकने की खबर पुरानी होकर भी पुरानी नहीं हुई। यह पूछने के
बावजूद कि जब मीडिया मण्डी में है और मण्डी में धर्म, ईमान, पाखण्ड, ईश्वर,
सत्य, कला सभी कुछ बिक रहा है, तो खबर बिकने पर चौकना, परेशान होना
अथवा दुखी होना क्यो? परेशान होना जरूरी है। मीडिया का भ्रष्टाचार लोकतन्त्र
को भारी नुकसान पहुंचाने वाला है। पैसे लेकर समाचार छापने की खबर ने
हड़कम्प मचा दिया। धन का लोभ क्या-क्या नहीं करवाता? बताया गया कि
मुनाफाखोरी के दबाव में कुछ मीडिया संगठनों ने पत्रकारिता के ऊँचे आदर्शों की
हत्या कर दी। कुछ समय पहले तक रिपोर्टरों अथवा संवाददाताओं को नकद या
अन्य छोटे-छोटे उपहार दिए जाते थे, देश-विदेश में किसी कम्पनी या किसी
शख्स के बारे में अनुकूल खबर छापने पर अच्छे होटलों में लंच-डिनर के साथ
नकद भुगतान का लिफाफा दिया जाता था। ऐसी खबर हर सूरत में वस्तुनिष्ठ
होते हुए व्यक्ति, पद या संस्था की प्रशंसा कर रही होती थी, परन्तु फिर बड़ा
बदलाव आया। कामकाज की शैली और नियम बदल गए। मूल्यों को निश्चित
करने की गलाकाट प्रतियोगिता के अतिरिक्त बड़ा मुनाफा पाने के लिए एक नई
टर्म मार्केटिंग का सहारा लिया जाने लगा। उसूलों के उल्लंघन के जवाब तलाश
कर लिए गए। कहा गया कि एजेसियों जैसे बिचौलियों को खत्म करने में कुछ
भी बुरा नहीं। प्रेस-परिषद् ने कुछ दायित्व समझते हुए ‘पैसे के बदले समाचार’
पर एक कमेटी का गठन किया, जिससे चुनाव के दौरान नेताओं अथवा
राजनीतिक दलों से पैसा लेकर समाचार प्रकाशित करने वाले जिम्मेदार कारको
को कठघरे में खड़ा किया जा सके, परन्तु कॉपेरिट मीडिया की दृश्य-अदृश्य
शक्ति के सामने ऐसा हो न सका। सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी ने भी इस अनर्थ
को रोकने की कोशिश की, परन्तु मीडिया समूह और राजनीति के कार्यकर्ताओं के
बीच दलाली पैकेज में सभी कुछ चल रहा है।
1. किस मण्डी में धर्म और ईश्वर बिक रहा है?
(1) सब्जी मण्डी
(2) पत्रकारिता की मण्डी
(3) कपड़े की मण्डी
(4) इन सभी में
2. लोकतन्त्र को किससे नुकसान हो रहा है?
(1) पत्रकारिता के उत्थान से
(2) मीडिया के प्रभाव से
(3) मीडिया के बिक जाने से
(4) इन सभी से
3. लेखक के अनुसार
(1) मीडिया में पहले किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं था
(2) मीडिया में पहले भी भ्रष्टाचार था
(3) मीडिया के बिकने पर पाखण्ड का बिकना स्वाभाविक नहीं है
(4) धर्म और ईमान का मीडिया से कोई लेना-देना नहीं
4. पैसे के बदले समाचार पर कमेटी का गठन किसके द्वारा किया गया?
(1) प्रेस परिषद्
(2) न्यूज चैनल
(3) समाचार-पत्र संगठन
(4) ये सभी
5. पैसे लेकर समाचार को प्रकाशित करने की स्थिति को रोकने की
कोशिश किस पत्रकार ने की?
(1) दीपक चौरसिया
(2) प्रभु चावला
(3) प्रभाष जोशी
(4) राजदीप सरदेसाई
6. निम्नलिखित में से कौन-सा सामासिक पद नहीं है?
(1) कठघरा
(2) गलाकाट
(3) मुनाफाखोरी
(4) ईश्वर
7. ‘हड़कम्प’ का तात्पर्य है
(1) धूम मचाना
(2) हिलाना
(3) हाड़ मिलाना
(4) हराना
8. ‘पत्रकार’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. ‘उल्लंघन’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) उल + लंघन
(2) उल्ल + अंघन
(3) उत् + लंघन
(4) उल् +लंघन
गद्यांश 15
प्राचीन भारत में स्त्रियों की सामाजिक परिस्थिति से सम्बन्धित अधिकांश
अकादमिक अध्ययन ब्राह्मण साहित्य पर आधारित है। इस साहित्य में धार्मिक
और वैधानिक बिन्दुओं पर मुख्य रूप से चर्चा की गई है। धार्मिक कर्मकाण्ड
सम्पादित करने का अधिकार, कर्मकाण्ड-सम्पादन का उद्देश्य, विधवाओं के
अधिकार, पुनर्विवाह, नियोग संस्था की प्रासंगिकता, सम्पत्ति का अधिकार
आदि कुछ ऐसे उल्लेखनीय बिन्दु हैं, जिन पर विशद् चर्चा की गई है। स्त्रियों
की शिक्षा-दीक्षा, सार्वजनिक गतिविधियाँ सामाजिक समारोहों में उनकी
उपस्थिति या अनुपस्थिति स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के आकलन के
महत्त्वपूर्ण आधार रहे हैं।
स्त्रियों के अधिकार सम्बन्धी अधिकांश चर्चा परिवार को केन्द्र में रखकर,
परिवार के सदस्य के रूप में पारिवारिक भूमिकाओं के निर्वहन के सन्दर्भ में
की गई है। ज्यादातर उल्लेख पत्नी की भूमिका और पत्नी के रूप में दिए
जाने वाले अधिकार से सम्बन्धित हैं। ऐसे सन्दर्भ न के बराबर हैं, जिनमें
समाज के एक स्वतन्त्र सदस्य के रूप में स्त्री अधिकारों की चर्चा की गई हो
या उस पर विचार-विमर्श किया गया हो। गणिकाओं को इस सन्दर्भ में
अपवाद माना जा सकता है, किन्तु ब्राह्मण साहित्य पितृवंशीय समाज में स्त्री
अधिकारों को सन्दर्भित करता है। गणिकाओं को इस समाज का अंग नहीं
माना गया है। चूँकि स्त्रियों की सामाजिक-आर्थिक परिस्थिति का ये पूरा
प्रारम्भिक विवेचन ब्राह्मण ग्रन्थों पर आधारित था, इसलिए यह सिर्फ
ब्राह्मणवादी नजरिए को प्रस्तुत करता है। ब्राह्मणेत्तर (श्रमणिक) नजरिये से
हमें परिचित नहीं कराता, इसलिए ऐसी कोई अवधारणा बनाना कि समाज में
इन नियमों का शब्दशः पालन होता रहा होगा गलत होगा। वास्तविक समाज
निश्चय ही इन ग्रन्थों की अपेक्षाओं के आदर्श समाज से अलग रहा होगा।
1. प्राचीन भारत में स्त्रियों की क्या स्थिति थी, यह जानने का स्रोत है?
(1) ब्राह्मण ग्रन्थ
(2) संगम साहित्य
(3) अर्थशास्त्र
(4) इनमें से कोई नहीं
2. स्त्रियों की सामाजिक स्थिति के आकलन के महत्त्वपूर्ण आधार रहे है
(1) शिक्षा
(2) सार्वजनिक गतिविधियाँ
(3) सामाजिक समारोहों में उपस्थिति
(4) ये सभी
3. स्त्रियों के अधिकार सम्बन्धी अधिकांश चर्चा किसको केन्द्र में रखकर
की गई है?
(1) समाज
(2) देश
(3) परिवार
(4) ये सभी
4. निम्नलिखित में से किसे इस समाज का अंग नहीं माना गया था?
(1) स्त्री
(2) पुरुष
(3) ब्राह्मण
(4) गणिका
5. ब्राह्मण साहित्य में स्त्रियों के अधिकार सम्बन्धी उल्लेख किससे
सम्बन्धित है?
(1) माँ एवं उसकी भूमिका
(2) बहन एवं परिवार में उसकी भूमिका
(3) पत्नी एवं परिवार में उसकी भूमिका
(4) गणिका एवं समाज में उसकी भूमिका
6. ‘वास्तविक का विपरीतार्थक शब्द है
(1) सच
(2) झूठ
(3) अवास्तविक
(4) अनिश्चित
7. ‘निर्वहन’ में कौन-सा उपसर्ग है?
(1) निर
(2) निः
(3) निर्व
(4) नीरव
8. ‘नियोग’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्र
(4) कर्मधारय
9. पुनर्विवाह का सन्धि-विच्छेद है
(1) पुनर् + विवाह
(2) पुन: + विवाह
(2 पुन + विवाह
(4) पुनर्वि + वाह
गद्याश16
गाँधीजी ने माना कि अहिंसा ईश्वर की कल्पना की तरह अनिर्वचनीय एवं
अगोचर है, पर जीवन में इसके आभास होते रहते हैं। वर्ष 1940 में कलकत्ता के
समीप मलिकन्दा में अपने शीर्षस्थ साथियो की सभा में गाँधीजी ने कहा था,
“अहिंसा अगर व्यक्तिगत गुण है, तो यह मेरे लिए त्याज्य है। मेरी अहिंसा की
कल्पना व्यापक है मैं तो उसका सेवक हूँ, जो चीज करोड़ों की नहीं हो सकती,
वह मेरे लिए त्याज्य है और मेरे साथियो के लिए भी त्याज्य होनी चाहिए। हम
तो यह सिद्ध करने के लिए पैदा हुए हैं कि सत्य और अहिंसा केवल व्यक्तिगत
आधार के नियम नहीं हैं। यह समुदाय, जाति और राष्ट्र की नीति हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा, “मैंने इसी को अपना कर्त्तव्य माना है। चाहे सारा जगत् मुझे
छोड़ दे, तो भी मैं इसे नहीं छोडूंँगा। इसे सिद्ध करने के लिए ही मैं जीऊँगा और
उसी प्रयत्न में मैं मरूँगा।”
वास्तव में, महानायक बनने में उनके जिस विचार ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण
भूमिका निभाई वह उनका अहिंसा का ही विचार था। इसलिए देश की
आजादी को अति महत्त्वपूर्ण लक्ष्य मानते हुए भी वह उसे अहिंसा को
त्यागकर प्राप्त करना नहीं चाहते थे। अंग्रेजों से लड़ने के लिए हिंसा के बदले
अहिंसा को हथियार बनाने का कारण भी यही था।
महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ्रीका प्रयास पर यदि हम एक विहंगम दृष्टि डाले,
तो स्पष्ट होगा कि एक साधारण से व्यक्ति के रूप में पहुँचे गाँधीजी ने
22 वर्ष की लम्बी लड़ाई में अपमान, भूख, मानसिक सन्ताप व शारीरिक
यातनाएँ झेलते हुए न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक व नैतिक क्षेत्र में
जो उपलब्धियाँ प्राप्त की, उसकी मिसाल अन्यत्र मिलना असम्भव है। उनके
भारत लौटने पर गुरुदेव टैगोर ने कहा था-“भिखारी के लिबास में एक
महान् आत्मा लौटकर आई है।” सन् 1919 से लेकर 1948 में अपनी मृत्यु
तक भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के महान् ऐतिहासिक नाटक में गाँधीजी
की भूमिका मुख्य अभिनेता की रही। उनका जीवन उनके शब्दों से भी बड़ा
था। उनका आचरण विचारों से महान् था और उनकी जीवन प्रक्रिया तर्क से
अधिक सृजनात्मक थी।
1. महात्मा गाँधी ने किसे अगोचर माना है?
(1) ईश्वर को
(2) कल्पना को
(3) अहिंसा को
(4) ये सभी
2. महात्मा गाँधी ने स्वयं को किसका सेवक कहा है?
(1) देश का
(2) कलकत्ता के लोगों का
(3) अपने साथियो का
(4) अहिंसा का
3. प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक निम्नलिखित में से क्या हो
सकता है?
(1) अहिंसा
(2) गाँधीजी और अहिंसा का विचार
(3) गाँधीजी और गुरुदेव
(4) अहिंसा का महत्त्व
4. गुरुदेव ने किसे भिखारी जैसा माना है?
(1) महात्मा गाँधी को
(2) गाँधीजी के लिबास को
(3) अहिंसक विचारों को
(4) ये सभी
5. गाँधीजी ने किस क्षेत्र में विशेष उपलब्धियाँ अर्जित की?
(1) राजनीतिक क्षेत्र
(2) सामाजिक क्षेत्र
(3) नैतिक क्षेत्र
(4) ये सभी
6. ‘स्वतन्त्रता आन्दोलन’ यदि एक नाटक था, तो इसका नायक कौन था?
(1) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(2) स्वतन्त्रता सेनानी
(3) महात्मा गाँधी
(4) इनमें से कोई नहीं
7. ‘सृजनात्मक’ शब्द है
(1) क्रिया
(2) संज्ञा
(3) विशेषण
(4) क्रिया-विशेषण
8. ‘महानायक’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्बन्द्ब
(4) कर्मधारय
9. ‘जिसका वचन द्वारा वर्णन न किया जा सके’ उसे कहते हैं
(1) अवचन
(2) अनिर्वचनीय
(3) कुवचन
(4) निर्वचनीय
गद्यांश 17
पर्यावरण प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या है। वर्तमान एवं आने वाले दशकों
में पृथ्वी की सम्पदा पर अधिक दबाव होगा। इस समस्या का मूल कारण है
जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि, प्रदूषण एवं उपलब्ध साधनों का अधिकतम
प्रयोग। सहस्राब्दियों तक मनुष्य ने प्राकृतिक साधनों के साथ अपनी संगति
को कायम रखा है। मानवीय सभ्यता और प्राकृतिक वैभव की युगल-बन्दी
चलती रही। मनुष्य तो प्रकृति का आराधक था। प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य
का उसने सुख लिया, उसके छलछलाते स्नेह से अपने को आप्लावित किया
और उसके सुर से सुर मिलाकर जीवन के संगीत की रचना की, परन्तु
आश्चर्य है कि आज मनुष्य अपनी लालसा, गुणात्मक जीवन और भौतिक
सुख-सुविधा के लिए प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन व्यवस्थित रूप से नहीं
करते हुए संरक्षण करने के बदले प्रकृति का निजी स्वार्थ हेतु विध्वन्स करने
में लग गया है।
आज विनाश की जो पटकथा लिखी जा रही है, उसके पीछे लालच,
लूट-खसोट और लिप्सा की दृष्टि उत्तरदायी है। आज गुमराह इन्सान प्रकृति
के पाँचों तत्त्वों से छेड़खानी कर रहा है। प्रकृति न तो पाषाणी है और न
मूकदर्शिनी। उसे बदला लेना आता है। प्रकृति की त्यौरियाँ और तेवर बता
रहे हैं कि वह बदला लेने पर आमदा है। दोनों तरफ मोर्चे खुल चुके हैं जाने
कब क्या हो जाए। वन-विनाश, अन्धाधुन्ध प्रदूषण, संसाधनों का अनर्गल
शोषण, नाभिकीय अस्त्रों की मूर्खतापूर्ण अन्धी दौड़ और औद्योगिक या
प्रौद्योगिक उन्नति के नाम पर प्रकृति से अधिक छेड़छाड़ एवं हवा, पानी और
मिट्टी जैसे प्राकृतिक साधनों के दुरुपयोग ने मनुष्य जाति को ही नहीं, सम्पूर्ण
जीव-जड़ को विनाश के कगार पर खड़ा कर दिया है।
1. किस समस्या का मूल कारण जनसंख्या वृद्धि है?
(1) पृथ्वी की सम्पदा
(2) पृथ्वी की सम्पदा पर अधिक दबाव
(3) विश्वव्यापी समस्या
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
2. मानव सभ्यता ने अपनी प्रगति के लिए किसका सहारा लिया?
(1) अपने ज्ञान का
(2) प्राकृतिक सौन्दर्य का
(3) प्राकृतिक सम्पदा का
(4) ये सभी
3. आज के मानव के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
(1) उसे प्राकृतिक सम्पदा से कोई लेना-देना नहीं
(2) वह स्वार्थी नहीं बनना चाहता
(3) वह प्राकृतिक सम्पदाओं के दोहन में लगा है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
4. मानव अपने किस निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति के विध्वन्स में
लगा है?
(1) भौतिक सुख-सुविधा
(2) आध्यात्मिक स्वार्थ
(3) राजनीतिक स्वार्थ
(4) सामाजिक स्वार्थ
5. प्रस्तुत गद्यांश में प्रकृति के कितने तत्त्वों से छेड़खानी की बात की
गई है?
(1) दो
(2) तीन
(3) पाँच
(4) चार
6. ‘विध्वन्स’ का विपरीतार्थक शब्द है
(1) बनावट
(2) बुनाई
(3) निर्वाण
(4) निर्माण
7. प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग से किसका नुकसान सम्भव है?
(1) केवल मनुष्य
(2) मनुष्य को छोड़कर अन्य जीव-जन्तु
(3) न मनुष्य न जीव-जन्तु
(4) सम्पूर्ण जीव-जगत्
8. ‘उत्तरदायी’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. ‘मूकदर्शिनी’ शब्द का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
(1) पृथ्वी
(2) पाषाणी
(3) प्रकृति
(4) जीव-जन्तु
गद्यांश 18
आधुनिक शिक्षण संस्थाएँ ही नहीं, बल्कि परिवार एवं समाज के अन्य सदस्य
भी अपने कार्य एवं व्यवहार से मनुष्य के शिक्षण में सहायक होते हैं। किसी
भी क्षेत्र विशेष के लोगों पर उसके क्षेत्र का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा
सकता है। यह प्रभाव भाषा ही नहीं व्यवहार में भी दिखाई पड़ता है। इस तरह
की शिक्षा को अनौपचारिक शिक्षण के अन्तर्गत रखा जाता है। इस तरह
सामान्य रूप से शिक्षा की दो प्रणालियाँ होती हैं-औपचारिक शिक्षा एवं
अनौपचारिक शिक्षा। मुक्त विद्यालय एवं विश्वविद्यालय अनौपचारिक शिक्षा के
ही उदाहरण है। इनके अलावा परिवार के सदस्य भी बालकों की शिक्षा में
प्रत्यक्ष रूप से अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं। समुदाय के अन्य सदस्यों की
भी इसमें सहभागिता होती है। बालक अपनी परम्परा एवं अपने रीतिरिवाजों को
समाज के अन्य सदस्यों द्वारा ही सीखता है। बालकों पर उसके परिवेश उसके
साथियो का भी प्रभाव पड़ता है। गलत संगति में बालकों में गलत आदतों का
विकास अथवा आपराधिक प्रवृत्तियों में लिप्त हो जाना इसका उदाहरण है।
औपचारिक शिक्षा में शिक्षण का स्थान सुनिश्चित होता है, जबकि अनौपचारिक
में ऐसा नहीं होता। औपचारिक शिक्षा में प्रवेश के लिए आयु सीमा निर्धारित
होती है, जबकि अनौपचारिक शिक्षा में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती है।
अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा शिक्षा से वंचित समाज के पिछड़े लोगों एवं प्रौढ़ों
को शिक्षित करने में सहायता मिलती है। अनौपचारिक शिक्षा में औपचारिक
शिक्षा जैसे कठोर नियम नहीं होते ये अत्यधिक लचीले होते हैं। अनौपचारिक
शिक्षा के जरिए औपचारिक शिक्षा से वंचित समाज के पिछड़े लोगों को
शिक्षित करने में सहायता मिलती है। प्रौढ़ शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा इसी का
उदाहरण है।
औपचारिक शिक्षा समाजीय व्यवस्था की एक उपव्यवस्था के रूप में कार्य
करती है। इस पर परिवार, संस्कृति, राज्य, धर्म, अर्थव्यवस्था एवं समाज का
स्पष्ट प्रभाव होता है, क्योंकि यह इन सभी से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से
सम्बन्धित होता है। सिर्फ शिक्षा पर ही समाज का प्रभाव नहीं होता, बल्कि
शिक्षा भी समाज को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। शिक्षा के
परिणामस्वरूप ही भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है। शहरीकरण,
सामाजिक स्थितियों में बदलाव, संयुक्त परिवारों का एकल परिवारों के रूप में
विभाजन ये सभी शिक्षा का समाज पर प्रभाव स्पष्ट करते हैं।
1. मानव किसकी सहायता से शिक्षा, प्राप्त करता है?
(1) स्कूल
(2) समाज
(3) परिवार
(4) ये सभी
2. व्यक्ति की भाषा एवं व्यवहार में उसके क्षेत्र विशेष का प्रभाव स्पष्ट
दिखाई पड़ता है, इसे निम्नलिखित में से किसके अन्तर्गत रखा जा
सकता है?
(1) स्कूली शिक्षा
(2) व्यक्ति पर सामाजिक प्रभाव
(3) अनौपचारिक शिक्षा
(4) ये सभी
3. गलत संगति में बालकों में गलत आदतों का विकास किसका उदाहरण है?
(1) स्कूल का प्रभाव
(2) परिवेश का प्रभाव
(3) परिवार का प्रभाव
(4) इनमें से कोई नहीं
4. औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में प्रमुख अन्तर किससे
सम्बन्धित है?
(1) प्रवेश की आयु-सीमा
(2) शिक्षा की प्रकृति
(3) विषय वस्तु
(4) ये सभी
5. निम्नलिखित में से कौन-से, शिक्षा पर समाज के प्रभाव को स्पष्ट
करते हैं?
(1) सामाजिक स्थितियों में बदलाव
(2) शहरीकरण
(3) संयुक्त परिवारों का एकल परिवारों के रूप में विभाजन
(4) उपरोक्त सभी
6. निम्नलिखित में से किसके नियम कठोर होते हैं?
(1) अनौपचारिक शिक्षा
(2) औपचारिक शिक्षा
(3) सामाजिक शिक्षा
(4) ये सभी
7. निम्नलिखित में से किस शब्द का विपरीतार्थक शब्द प्रस्तुत गद्यांश में
नहीं दिया गया है?
(1) औपचारिक
(2) प्रत्यक्ष
(3) सामान्य
(4) लचीला
8. ‘उपव्यवस्था’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. ‘अप्रत्यक्ष’ में कौन-सा उपसर्ग है?
(1) अप
(2) अ
(3) अप्र
(4) यक्ष
गद्यांश 19
विद्यालय समाज की एक ऐसी संस्था है, जिसके कुछ सुनिश्चित एवं
सुनिर्धारित लक्ष्य होते हैं, जबकि समुदाय का तात्पर्य ऐसे समूह से है जिसमें
एक प्रकार के लोग होते हैं। यह एकत्व आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक या
नागरिक गुणों में हो सकता है। कई समुदाय अपने लिए अलग विद्यालय की
स्थापना भी कर लेते हैं। अपनी औपचारिक भूमिकाओं के अलावा अन्य
भूमिकाओं के निर्वहन में भी विद्यालय समुदाय की सहायता करता है। इसके
लिए आवश्यकता पड़ने पर समुदाय के क्रिया-कलापों में वह हस्तक्षेप भी
करता है। उदाहरणस्वरूप प्रौढ़ शिक्षा, स्त्री शिक्षा, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों
को अभिभावकों तक पहुँचाने में भी विद्यालय यथासम्भव समुदाय की सहायता
करता है एवं आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप भी करता है। अभिभावक एवं
विद्यालय एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं। अभिभावक समुदाय की
आवश्यकताओं से परिचित होते हैं तथा विद्यालय को भी इनसे अवगत कराने
में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाकर बीच की व्यवहार्य कड़ी का काम करते हैं।
उदाहरणस्वरूप समुदाय की आवश्यकताओं के अनुरूप अभिभावकगण प्रौढ़
शिक्षा, स्त्री शिक्षा इत्यादि में सहायता के लिए विद्यालय से अनुरोध करते हैं।
इस तरह वे विद्यालय एवं समुदाय के बीच की व्यवहार्य कड़ी हैं।
समुदाय के साथ निकट से जुड़ कर कार्य करने की स्थिति में विद्यालय अधिक
प्रभावशाली हो जाता है। समुदाय और विद्यालय को जोड़ने में समाज के लोगों
की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। समुदाय के क्रिया-कलापों में विद्यालय की
भागीदारी होती है। यही कारण है कि विद्यालयों के लिए पाठ्यवस्तु इतना
लचीला बनाया जाता है कि उसमें समाज के विभिन्न समुदायों की विशेषताएँ
स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं। पर्यावरण को स्वच्छ रखने की शिक्षा देने के
लिए आवश्यक है कि विद्यालय परिसर को स्वच्छ रखा जाए। जल-संरक्षण
की शिक्षा देने के लिए आवश्यक है कि विद्यालय परिसर में भी इनके संरक्षण
के नियमों का पालन होता हो। इस तरह समुदाय की वास्तविकताओं को
प्रायोगिक रूप से विद्यालय परिसर में प्रयोग कर उसे अधिगम अनुभवों में
रूपान्तरित किया जा सकता है।
1. विद्यालय किसके सम्पर्क में रहता है?
(1) नेता
(2) समाज
(3) अभिभावक
(4) ये सभी
2. समुदाय और विद्यालय को जोड़ने में किसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है?
(1) राजनीतिक लोग
(2) धार्मिक लोग
(3) सामाजिक लोग
(4) ये सभी
3. एक समुदाय में कितने प्रकार के लोग रहते हैं?
(1) एक
(2) तीन
(3) दो
(4) चार
4. प्रस्तुत गद्यांश में किसके द्वारा हस्तक्षेप की चर्चा की गई है?
(1) समुदाय
(2) विद्यालय
(3) व्यक्ति
(4) प्रशासक
5. विद्यालय को समुदाय की आवश्यकता से कौन अवगत कराता है।
(1) विद्यार्थी
(2) शिक्षक
(3) अभिभावक
(4) ये सभी
6. विद्यालय अधिक प्रभावशाली कैसे हो सकता है?
(1) अपने विद्यार्थियों से जुड़कर
(2) सामाजिक वर्चस्व प्राप्त कर
(3) समुदाय से जुड़कर
(4) राजनीतिक वर्चस्व प्राप्त कर
7. ‘यथासम्भव’ में कौन-सा समास है?
(1) कर्मधारय
(2) बहुव्रीहि
(3) अव्ययीभाव
(4) द्वन्द्व
8. “पाठ्यवस्तु’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. ‘रूपान्तरित’ का सन्धि-विच्छेद है
(1) रूप + अन्तरित
(2) रूप + आन्तरित
(3) रूपा + अन्तरित
(4) रूपा + आन्तरित
गद्यांश 20
भाषा, साहित्य, कला, दर्शन, जीवन और संस्कृति इन सबका अन्योन्याश्रित
सम्बन्ध है। इन्हीं से बनती है-हमारी पहचान, परिभाषित होती है हमारी
अस्मिता। किसी भी राष्ट्र की पहचान है-उसका साहित्यिक और सांस्कृतिक
संसार, जिसे जीवित रखने का कार्य करती है ‘भाषा’। साथ ही भाषा समाज
के भावनात्मक और सांस्कृतिक संघटन को दृढ़ बनाती है। यद्यपि भाषा का
सम्बन्ध किसी मजहब से नहीं होता, किन्तु यह भी सच है कि प्रत्येक भाषा
किसी-न-किसी जाति की होती है और यही वैज्ञानिक दृष्टि भी है, क्योंकि
भाषा को बोलने वालों का और उसे अपने धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक,
सामाजिक सांस्कृतिक व्यवहार में लाने वाले लोगों का सम्बन्ध धर्म से होता
है। इसलिए धीरे-धीरे अपनी धार्मिक छवि और रूढ़ विचारधाराओं के
कारण भाषा, ‘मजहब’ विशेष की बन जाती है।
दुनिया के विभिन्न धर्मों की अपनी-अपनी रूढ़ भाषाएँ इस बात का स्पष्ट
प्रमाण हैं। धार्मिक विचारों की अभिव्यक्ति के लिए प्रयुक्त धर्म विशेष की
भाषा उस पर अपना विशिष्ट ‘मजहबी’ ठप्पा लगा देती है और वह जन
सामान्य के लिए ‘पवित्र भाषा’ या ‘देववाणी’ का मिथक बन जाती है।
हिन्दुओं की मजहबी भाषा संस्कृत’, मुसलमानों की ‘अरबी’, जैनों की
‘प्राकृत’, सिखों की ‘पंजाबी’ भाषा इसी मजहबी ठप्पे का उदाहरण है।
यद्यपि भाषा बार-बार इस धर्म और जाति के दायरे को नकारती हुई
जन-मन के भावानुकूल अपना रूप बदलती है, विस्तारित होती है, किन्तु
धर्म के ठेकेदार सदा-सदा से उसे रूढिबद्ध करने का प्रयास करते रहे हैं।
यहाँ तक कि नदी, पर्वत, वन-प्रदेश, समुद्र, वनस्पति जो समूची धरती पर
विद्यमान हैं; धार्मिक आस्थाओं के, विश्वासों के चलते विशिष्ट धर्मस्थली बन
जाते हैं। सांस्कृतिक नैतिक व्यवहार की तरह धर्म जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है।
मानव की दुर्बलता भी और सबलता भी। रूढ़ अन्धविश्वासों के सहारे धर्म
के ठेकेदार पण्डे-पुजारी, मुल्ला-मौलवी, पोप-पादरी सभी अपने-अपने
लाभ-लोभ को भुनाते रहते हैं और उनकी इस ठगी का शिकार बनती है
अन्धविश्वासों से ग्रस्त भयाक्रान्त जनता। शासन तन्त्र इस स्थिति का भरपूर
लाभ उठाता है और भाषा के नाम पर समुदायों और जाति में जनता को बाँट
उसका दोहरा शोषण किया जाता है। यहीं से जुड़ाव होता है भाषायी जातीय
सम्बन्ध का। शासन-वर्ग का हस्तक्षेप राजसत्ता तक ही नहीं रहता। भाषा,
प्रशासन की भाषा के रूप में शासक के इंगित पर अपना स्वरूप रचती है।
तद्नुरूप उसकी सत्ता बनती एवं बिगड़ती है। शासन के धर्म और विचार के
अनुकूल भाषा का दायरा निर्धारित होता है। प्रायः भाषा दो रूपों में बँटी रहती
है एक प्रशासन की भाषा दूसरी जनसामान्य की।
1. हमारी पहचान किससे बनती है?
(1) साहित्य
(2) कला
(3) दर्शन
(4) ये सभी
2. भाषा किसे जीवित रखने का कार्य करती है?
(1) लेखन को
(2) प्रकाशन को
(3) राष्ट्र की पहचान को
(4) ये सभी
3. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है?
(1) भाषा का सम्बन्ध किसी धर्म से नहीं होता।
(2) भाषा पर धार्मिक प्रभाव पड़ सकता है।
(3) दुनिया के विभिन्न धर्मों की अपनी-अपनी रूद भाषाएँ हैं।
(4) भाषा को किसी धर्म विशेष का बनाने में राजनेताओं की भूमिका प्रमुख होती है।
4. जैन धर्म के विचारों की अभिव्यक्ति किस भाषा में हुई है?
(1) संस्कृत
(2) प्राकृत
(3) हिन्दी
(4) राजस्थानी
5. भाषा को धर्म के बन्धनों में बाँधने में सर्वाधिक भूमिका किसकी
होती है?
(1) नेता
(2) समाज
(3) धर्म के ठेकेदार
(4) इनमें से कोई नहीं
6. धर्म निम्नलिखित में से क्या नहीं है?
(1) मानव की सबलता
(2) मानव की दुर्बलता
(3) जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग
(4) भाषा का स्रोत
7. ‘तद्नुरूप’ शब्द का सन्धि-विच्छेद है
(1) तत् + अनुरूप
(2) तद + अनुरूप
(3) तद् + अनुरूप
(4) तदन + उरूप
8. ‘अन्धविश्वास’ में कौन-सा समास है?
(1) अव्ययीभाव
(2) तत्पुरुष
(3) द्वन्द्व
(4) कर्मधारय
9. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द विशेषण नहीं है?
(1) अनुकूल
(2) दुर्बलता
(3) सबल
(4) शासन

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