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CTET Notes in Hindi | समावेशी शिक्षा का सिद्धांत

CTET Notes in Hindi | समावेशी शिक्षा का सिद्धांत

समावेशी शिक्षा का सिद्धांत
Inclusive Education
समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालक जैसे मन्दबुद्धि, अन्धे बालक, बहरे बालक तथा प्रतिभाशाली बालकों को ज्ञान प्रदान किया जाता है।
> समावेशी शिक्षा का निर्धारण छात्रों की बुद्धिलब्धि, शैक्षिक स्तर व योग्यताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा के कई स्तर होते हैं। ये स्तर बालकों के अनुरूप निर्धारित किये जाते है
(i) शारीरिक रूप से भिन्न बालक (Physically Handicapped): वैसे बालक जो कि अन्य बालकों से शारीरिक रूप से भिन्न होते हैं, ये इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं-
★ सांवेदिक रूप से विकलांग बालक
★ गतीय रूप से विकलांग बालक
★ बहुत विकलांग बालक
(ii) मानसिक रूप से विचलित बालक (Mentally Retarded Children): वैसे बालक जो कि मानसिक रूप से विचलित होते हैं, वे इस श्रेणी में आते हैं-
★ प्रतिभाशाली बालक
★ मन्दबुद्धि बालक
★ सृजनशील बालक
इस श्रेणी की विशेषता यह है कि इस श्रेणी के अंतर्गत मानसिक रूप से कमजोर
बालक भी आते हैं तथा ऐसे बालक जो आवश्यकता से अधिक चतुर व समझदार होते
हैं वे भी इस श्रेणी में शामिल होते हैं।
(iii) सामाजिक रूप से विचलित बालक (Socially Deprived Children): वैसे बालक जो कि सामाजिक रूप से विचलित होते हैं, वे इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं-
★ सांवेगिक रूप से परेशान बालक
★ असमायोजित बालक
★ वंचित बालक
★ समस्यात्मक बालक
★ बाल अपराधी
★ माता-पिता द्वारा तिरस्कृत बालक
(iv) शैक्षिक रूप से भिन्न बालक (Educationally Differ Children):शैक्षिक रूप से भिन्न बालकों के अन्तर्गत निम्न बालक आते हैं-
★ शैक्षिक रूप से समृद्ध बालक
★ शैक्षिक रूप से पिछड़े बालक
★ किसी विषय विशेष को न सीख पाने वाला बालक
★ सम्प्रेषण बाधित बालक
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त
Principles of Inclusive Education
समावेशी शिक्षा को मुख्यतः निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित किया गया है.
(a) व्यक्तिगत रूप से भिन्नता (Individual Difference) : व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक व्यक्तियों में भिन्नता पायी जाती है। यह भिन्नता रंग-रूप तथा व्यक्तित्व इत्यादि में पायी जाती है। विशिष्ट बालकों को उनके व्यक्तित्व इत्यादि के अनुसार ही शिक्षित किया जाता है। प्रतिभावान छात्रों को अधिक विस्तारपूर्वक पढ़ाया जाता है तथा मन्दबुद्धि बालकों को प्रत्येक कार्य धीरे-धीरे सिखाया जाता है। कुछ ऐसे बालक होते हैं जो बिल्कुल रुचिपूर्ण तरीकों से पढ़ाई नहीं करते, उनको शिक्षा के प्रति जागृत करना समावेशी शिक्षा का मुख्य सिद्धान्त है। अतः व्यक्तिगत भिन्नताओं के अनुसार ही छात्रों को समावेशी शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
(b) माता-पिता द्वारा सहयोग प्रदान करना (Provide Cooperation by Parents): समावेशी शिक्षा के अन्तर्गत माता-पिता का सहयोग होना अति आवश्यक है। यदि माता-पिता पूर्णतः सहयोग देंगे तभी विशिष्ट छात्रों को उचित प्रकार से समावेशी शिक्षा
प्रदान की जा सकती है।
(c) भेदभाव रहित शिक्षा (Non-Discriminatory Education): भेदभाव रहित शिक्षा हेतु सर्वप्रथम छात्रों की पहचान की जानी अति आवश्यक है, क्योंकि इसके आधार पर ही छात्रों को वर्गीकृत किया जा सकता है तथा उन्हें शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
(d) विशिष्ट कार्यक्रमों द्वारा शिक्षा (Education Through Special Programme): विशिष्ट शिक्षा हेतु कई विशिष्ट कार्यक्रमों को लागू किया जाता है। शारीरिक रूप से बाधित छात्रों की शिक्षा हेतु उनके माता-पिता को विद्यालय का पूर्ण सर्वे करने का
अधिकार प्राप्त होता है।
» यदि माता पिता शिक्षण संस्था की कार्य प्रणाली से सन्तुष्ट नहीं होते हैं तो वे इच्छानुसार बालकों को शिक्षण संस्थाओं से निकालकर किसी अन्य शिक्षण संस्था में भेज सकते हैं। अतः विशिष्ट बालकों को विशिष्ट कार्यक्रमों के द्वारा ही उचित
शिक्षा प्रदान की जा सकती है।
(e) वातावरण नियन्त्रणपूर्ण होना (Restrictive Environment) : जहाँ तक उचित हो, प्रत्येक शारीरिक बाधित बालकों को निःशुल्क उपयुक्त शिक्षा मिलनी चाहिए। सामान्यतः शिक्षा संस्थाओं में किसी बालक को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने का विकल्प किसी विद्यालय की व्यवस्था में नहीं है।
समावेशी शिक्षा के मॉडल
Model of Inclusive Education
समावेशी शिक्षा के सिद्धान्त पर आधारित मॉडल निम्नलिखित है-
1. सांख्यिकीय मॉडल (Statistical Models) सांख्यिकीय मॉडल की उत्पति का कारण है, व्यक्तिगत विभिन्नता जिसके कारण व्यक्तियों में तथा बालकों में अन्तर पाये जाते हैं। यह अन्तर ही बालकों की विशिष्टता के विषय में बताते हैं। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कभी भी दो बालक एक समान नहीं होते हैं, उनमें प्रायः कुछ-न-कुछ अन्तर अवश्य पाये जाते हैं।।
2. मौखिक संचार मॉडल (Oral Communication Model): मौखिक संचार में भिन्न बालक मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। प्रथम कथन क्षतियुक्त बालक हैं। इस प्रकार के बालकों में किसी-न-किसी प्रकार के बोलने का दोष होता है जैसे-हकलाना,
स्वरदोष इत्यादि।
>भाषा विकलांग बालक ऐसे बालक हैं जो उस भाषा को नहीं जानते जो कि उनके वातावरण अर्थात् घर, स्कूल, बाजार में बोली जा रही है। ऐसे बालक मातृभाषा ठीक ढंग से नहीं बोल पाते हैं।
>भाषा विकलांग बालकों के मौखिक संचार में भिन्नता होती है। ऐसे बालकों की प्रमुख समस्या होती है अपने विचारों को दूसरों तक नहीं पहुँचा पाना । इसके कारण निम्नलिखित परिणाम सामने आते हैं-
★ संवेगात्मक रूप से अव्यवस्थित
★ सीखने में मन्द गति
★ व्यक्तित्व संबंधी दोष
★ पिछड़ापन
उपर्युक्त कारणों से बालक की शैक्षिक उपलब्धि नकारात्मक रूप से प्रभावित होती
है। इससे उसका व्यावसायिक जीवन भी प्रभावित होता है। अतः विद्यालयों में इस प्रकार
के विशिष्ट बालकों हेतु विशेष प्रोग्राम होने चाहिए।
3.चिकित्सीय अथवा जीव-विधा मॉडल (Medical or Biological Model): चिकित्सीय अथवा जीव-विधा से संबंधित मॉडल के अन्तर्गत वे बालक आते हैं जो कि शारीरिक रूप से अक्षम होते हैं। यह शारीरिक भिन्नता कई कारणों के फलस्वरूप होते हैं जो इस प्रकार है-
(a) कई बार आनुवंशिक कारणों की वजह से भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है।
(b) जन्मोपरान्त चोट (Postnatal Injury) के कारण भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है।
(c) जन्म के समय होने वाली क्षति के कारण भी शारीरिक अक्षमता आ जाती है।
(d) जन्म-पूर्व क्षति (Prenatal Damage) अर्थात् जन्म से पूर्व यदि गर्भवती महिला कोई दवा खा ले अथवा अन्य कोई ऐसे कार्य ले जिनमें गर्भ समस्या उत्पन्न हो जाए, तो यह जन्म-पूर्व क्षति कहलाती है।
> ऐसे बालकों के लिए विशेष शिक्षा का आयोजन बालकों में शारीरिक कमी को ध्यान
में रखकर करना चाहिए।
(e) सांस्कृतिक मॉडल (Cultural Model): सांस्कृतिक रूप से अलग बालकों में आते हैं। अधिगम असुविधायुक्त बालकों को वे सभी सुविधाएँ नहीं प्राप्त होती हैं जो प्रायः सामान्य बालकों को प्राप्त हो जाती हैं। अतः इनका अधिगम स्तर गिर जाता है
इससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि नकारात्मक ढंग से प्रभावित होती है। ऐसे वंचित बालक भी विशिष्ट बालकों की श्रेणी में आते हैं। इनके लिए सामान्य शिक्षा के साथ-साथ अतिरिक्त शैक्षिक प्रावधानों की भी आवश्यकता है।
(f) मनोसामाजिक मॉडल (Psychosocial Model): मनोसामाजिक रूप से अलग- अलग प्रवृति के बालक इस श्रेणी में आते हैं। एक संवेगात्मक रूप से परेशान बालक को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन में कठिनाई अनुभव होती है। ऐसे बालक भावनाओं को सही रूप से प्रबंधित नहीं कर पाते, अतः संवेगात्मक असंतुलन प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार ऐसे बालक अपने लिए और अन्य लोगों के लिए समस्या उत्पन्न करते हैं।
> मनोसामाजिक रूप से भिन्न बालक एक ऐसा विशिष्ट बालक है जिसे विशेष शिक्षा
की आवश्यकता है। मनोसामाजिक रूप से भिन्न बालकों में समस्यात्मक तथा अपराधी
बालक भी आते हैं। अतः संवेगात्मक व सामाजिक अस्थिरता इन्हें समस्यात्मक तथा
अपराधी बनाती है। इसके लिए विशेष शिक्षा का होना अनिवार्य है।
समावेशी शिक्षा के सन्दर्भ में शिक्षा नीति-2006
Education Policy 2006 with the Reference of Inclusive Education
समावेशी शिक्षा के संदर्भ में शिक्षा नीति-2006 के अन्तर्गत कुछ विशेष तथ्यों को रखा गया, जो इस प्रकार है-
(a) बाधित बालकों की प्रारम्भिक स्तर पर पहचान कर लेना तथा उनके लिए कार्यक्रम बनाना।
(b) शारीरिक तथा मानसिक दोषों से ग्रस्त बालक जो सामान्य शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा प्राप्त करने के अयोग्य हैं, यदि समन्वित शिक्षा में उन्हें सामान्य बालकों के साथ शिक्षा दी जाती है, तो वे अपमान, तिरस्कार तथा हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें
ऐसी परिस्थिति से सुरक्षा प्रदान करना ।
(c) सामान्य शिक्षा संस्थाओं में विशिष्ट शिक्षा के कार्यक्रमों को उपयोग करने के लिए संसाधन एजेन्सी के रूप में सेवाएँ उपलब्ध कराना।
(d) विकलांग बालकों के लाभ के लिए विभिन्न प्रविधियों का पर्याप्त विकास हो रहा है। विकलांग को विभिन्न सहायक प्रविधियाँ उपलब्ध कराना। भारतीय संविधान के खंड तीन तथा चार में शिक्षा संबंधी अनेक प्रावधान किये गये हैं। केंद्र तथा राज्यों के शैक्षिक उत्तरदायित्वों को भी विभाजित किया गया है। प्रारंभिक शिक्षा का मूल अधिकार अल्पसंख्यकों की शिक्षा, शिक्षा अधिकारों में समानता, अनुसूचित जाति व जनजाति के बालकों की शिक्षा, धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता, शिक्षा के माध्यम से हिन्दी भाषा के विकास इत्यादि के संबंध में संविधान में विशेष प्रावधान किये गये हैं।
शिक्षा का अधिकार एवं निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा
Right to Education and Free and Compulsory Education
> संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शिक्षा का अधिकार एक इच्छित (Desived) अधिकार माना जाता है। शिक्षा का यह अधिकार प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार से प्रवाहित होता है। अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को
उसके प्राण तथा दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकेगा।
> भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 भी शिक्षा के अधिकार की ओर संकेत करता है, जिसमें नागरिकों को वाक् तथा अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य एवं रोजगार करने के अधिकार दिये गये हैं।
> वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 21(क) को जोड़कर प्रारंभिक शिक्षा को नागरिकों का एक मूल अधिकार बना दिया गया है। अनुच्छेद 21(क) में कहा गया है कि राज्य 6 से 14 वर्ष के सभी बालकों के लिए
निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगा।
शैशवपूर्ण देखभाल एवं शिक्षा
Early Childhood Care & Education
> संविधान निर्माण के समय संविधान के अनुच्छेद 45 में निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का दायित्व राज्य सरकार को सौंपा गया था। इस धारा में कहा गया था कि संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अंदर राज्य अपने क्षेत्र के सभी बालकों
को 14 वर्ष की आयु होने तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।
> वर्ष 2002 में संविधान में किये गये 96वाँ संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 45 को बदलकर इसमें निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा को शैशवपूर्ण देखभाल एवं शिक्षा से प्रतिस्थापित करते हुए मात्र 6 वर्ष तक के बालकों तक सीमित कर दिया गया एवं 21(क) नामक अनुच्छेद जोड़कर प्रारंभिक शिक्षा को नागरिकों का मूल अधिकार बना दिया गया।
अल्पसंख्यकों की शिक्षा
Education of Minorities
> भारतीय संविधान में अल्पसंख्यकों की शैक्षिक तथा सांस्कृतिक उन्नति के लिए विशेष व्यवस्था की गयी है। अनुच्छेद 30 (1 व 2) के अनुसार धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय अपनी पसंद की शिक्षा संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं। राज्य सरकारें अनुदान देते समय इन संस्थाओं से भेदभाव नहीं करेंगी क्योंकि ये संस्थाएँ अल्पसंख्यकों के द्वारा विशेष नियमों के अंतर्गत चलायी जा रही हैं।
समान शैक्षिक अधिकार
Equal Educational Rights
प्रजातंत्र में जाति, धर्म या स्तर की परवाह किये बिना ही सबको अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने के लिए समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। प्रजातंत्र की इस मूलभूत मान्यता को ध्यान में रखते हुए संविधान के अनुच्छेद 29 में सभी शैक्षिक
अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है। अनुच्छेद 29 में प्रावधान यह है कि-
> भारत के राज्य क्षेत्र या उसके किसी हिस्से के निवासी या नागरिकों के समूह को अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार होगा।
> राज्य सरकार द्वारा संचालित या सहायता प्राप्त किसी भी शिक्षा संस्था में किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, रंग या भाषा के आधार पर प्रवेश के लिए मना नहीं किया जा सकता है।
अनुसूचित जाति, जनजाति व कमजोर वर्गों की शिक्षा
Education of Scheduled Castes, Tribes and Weaker Sections
समाज के सभी कमजोर वर्गों की शैक्षिक उन्नति के प्रोत्साहन का उत्तरदायित्व राज्य का है। संविधान के अनुच्छेद 46 के अंतर्गत कहा गया है कि राज्य कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जाति व जनजाति की शैक्षिक तथा आर्थिक उन्नति को विशेष रूप से प्रोत्साहित करेगा तथा उनको सामाजिक अन्याय व धोखे से बचायेगा। इस प्रकार, संविधान में समाज के सभी वर्गों की शिक्षा व उन्नति के अवसर सुनिश्चित हैं।
धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता
Freedom of Religious Education
भारतीय संविधान में सर्वधर्म-सम्मत शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 28 (1, 2 तथा 3) में प्रावधान है कि राज्य सरकार द्वारा संचालित शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है। परंतु यदि सरकार द्वारा प्रशासित या
सहायताप्राप्त किसी शिक्षा संस्था की स्थापना किसी ऐसे धरोहर के अधीन हुई है, जिसमें कुछ धार्मिक क्रियाएँ आवश्यक हैं तो उस संस्था में उन धार्मिक क्रियाओं की शिक्षा दी जा सकती है।
मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएँ
Facilities of Education in Mother Tongues
प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के महत्व को स्वीकार करते हुए संविधान के अनुच्छेद 350-A में कहा गया है कि भाषायी दृष्टि से अल्पसंख्यक समूहों के बालकों को उनकी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराने का दायित्व राज्य तथा स्थानीय निकाय का है।
हिन्दी भाषा का विकास
Development of Hindi Language
संविधान में राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास तथा प्रचार की व्यवस्था भी की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 351 के अनुसार राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रसार, संवर्धन तथा इसे सुनियोजित ढंग से विकसित करने का विशेष दायित्व केंद्र का है ताकि भारत मिली-जुली संस्कृति के सभी वर्गों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके ।
स्त्रियों, बच्चों तथा पिछड़े वर्गों की शिक्षा
Education of Women Childrens and Backward Classes
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3, 4 व 5) में महिलाओं तथा सामाजिक व शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान बनाने पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं लगाया है। अर्थात् राज्य महिलाओं, बालकों तथा पिछड़े वर्गों की शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था करने के लिए संविधान की दृष्टि से पूर्ण स्वतंत्र है। वर्ष 2005 में हुए 93वें संविधान संशोधन ने इस व्यवस्था को व्यक्तिक प्रबंधावली शिक्षा संस्थाओं (Privately Managed Education Institutions) के लिए भी विस्तारित कर दिया है।
केंद्र व राज्यों के शिक्षा संबंधी अधिकार
Right of Centre and States about Education
संविधान के अनुच्छेद 246 में केंद्र व राज्य सरकारों के शैक्षिक उत्तरदायित्वों तथा अधिकार क्षेत्र का विभाजन किया गया है। इसके लिए संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियाँ बनायी गयी हैं। प्रथम सूची, केंद्र सूची (Union List), इसमें दिये गये विषयों पर केंद्र सरकार या संसद कानून बना सकती है। द्वितीय सूची, राज्य सूची (State List), इसमें दिये गये विषयों पर राज्य सरकार या विधान सभा कानून बना सकती है। तृतीय सूची समवर्ती सूची (Concurrent List), इसमें दिये गये विषयों पर केंद्र तथा राज्य सरकार दोनों ही कानून बना सकते हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009
Right to Education Act, RTE, 2009
वर्ष 2009 में बालकों का निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 पास किया गया। इस अधिनियम के अनुसार 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक की निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का मूल अधिकार है। सरकार ने 1 अप्रैल, 2010 से इसे कानून के रूप में लागू कर दिया। इस अधिनियम में प्रस्तुत मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-
1. संक्षिप्त नाम : इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 है।
2. परिभाषाएँ : इस अधिनियम में प्रयुक्त विशेष शब्दों को परिभाषित किया गया है।
3. निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार : 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बालक को, प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी आस-पास के विद्यालय में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार होगा।
4. प्रवेश नहीं दिये गये बालकों या जिन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं की है, के लिए विशेष उपबंध: यदि कोई बच्चा 6 वर्ष की आयु पर किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाता है, तो वह बाद में अपनी उम्र के अनुरूप कक्षा में प्रवेश ले सकता है। यदि वह
निर्धारित 14 वर्ष की आयु तक प्रारंभिक शिक्षा पूरी नहीं कर पाता, तो उसके बाद भी पढ़ाई पूरी होने तक उसे निःशुल्क शिक्षा दी जाती रहेगी।
5. अन्य विद्यालय में स्थानांतरण का अधिकार : यदि किसी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने का प्रावधान नहीं है अथवा किसी भी कारण से कोई छात्र एक स्कूल से दूसरे स्कूल जाना चाहता है, तो उसे किसी दूसरे स्कूल में स्थानांतरण लेने का अधिकार होगा।
6. राज्य सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों को विद्यालय स्थापित करने का कर्तव्य इस अधिनियम के लागू होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकार और स्थानीय प्राधिकारियों को पड़ोस का स्कूल स्थापित करना होगा, जिस क्षेत्र में ऐसा स्कूल नहीं है।
7. वित्तीय तथा अन्य उत्तरदायित्वों में हिस्सा बाँटना : केंद्र सरकार इस अधिनियम को लागू करने में आनेवाले खर्चों का एस्टीमेट तैयार करेगी और राज्य सरकारों को आवश्यक तकनीकी सहायता और संसाधन उपलब्ध करायेगी।
8. राज्य सरकारों के कर्तव्य : राज्य सरकारें 6 से 14 वर्ष के प्रत्येक बच्चे का प्रवेश और उपस्थिति सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि कमजोर और वंचित वर्गों के बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं हो, और विद्यालय भवन, शिक्षक और शिक्षण सामग्री सहित आधारभूत संरचना की उपलब्धता सुनिश्चित करेगी।
9. स्थानीय प्राधिकारियों के कर्तव्य : स्थानीय प्राधिकारी धारा 8 में वर्णित राज्य सरकार के समस्त कर्तव्यों के साथ-साथ अपने क्षेत्र के बालकों का अभिलेख करेंगे, विद्यालयों के कामकाज की निगरानी सुनिश्चित करेंगे और शैक्षणिक कैलेंडर तैयार करेंगे।
10. माता-पिता और संरक्षक का कर्तव्य : प्रत्येक अभिभावक का यह दायित्व होगा कि वह 6 से 14 वर्ष तक के अपने बच्चों को विद्यालय में पढ़ने के लिए भर्ती कराये।
11. राज्य सरकार द्वारा विद्यालय-पूर्व शिक्षा के लिए व्यवस्था करना : 3 वर्ष की आयु से ऊपर के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा के लिए तैयार करने और जन्म से 6 वर्ष तक के बालकों के लिए आरंभिक बाल्यावस्था की देखभाल और शिक्षा के लिए राज्य सरकार एवं स्थानीय प्राधिकारी आवश्यक व्यवस्था कर सकते हैं।
12. निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के लिए विद्यालय के दायित्व की सीमा : सरकारी विद्यालय हो तो निःशुल्क शिक्षा प्रदान करेंगे ही, साथ ही निजी और विशेष श्रेणी वाले विद्यालयों को भी आर्थिक रूप से निर्बल समुदाय के बच्चों के लिए पहली कक्षा में 25% स्थान आरक्षित करने होंगे।
13. प्रवेश के लिए किसी प्रतिव्यक्ति फीस और अनुवीक्षण प्रक्रिया का न होनाः कोई भी विद्यालय न तो दान या चंदा लेगा और न ही अभिभावक या बच्चे के चयन के लिए कोई प्रणाली अपना सकेगा।
14. प्रवेश के लिए आयु का प्रमाण : जन्म प्रमाण पत्र के अभाव में किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इंकार नहीं किया जायेगा।
15. प्रवेश से इनकार न करना : स्कूल में प्रवेश तिथि के निकल जाने के बाद भी किसी भी बालक को प्रवेश देने से इनकार नहीं किया जायेगा।
16. रोकने और निष्कासन का प्रतिषेध : किसी भी बच्चे को किसी कक्षा में रोका नहीं जायेगा और न ही स्कूल से निष्कासित किया जायेगा।
17. बालकों को शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न का प्रतिषेध : किसी भी बच्चे को शारीरिक या मानसिक यातना नहीं दी जायेगी।
18. मान्यता प्रमाण-पत्र प्राप्त किये बिना किसी विद्यालय का स्थापित न किया जाना बिना मान्यता प्राप्त किये कोई भी स्कूल नहीं चलाया जायेगा और उन्हीं स्कूल को मान्यता दी जायेगी जो धारा 19 में वर्णित मानक पूरे करते हों।
19. विद्यालय के मान और मानक : ऐसे स्कूल जो अधिनियम लागू होने से पूर्व स्थापित हो चुके थे तथा निर्धारित मानक पूरे नहीं करते हैं, उन्हें अधिनियम लागू होने के तीन वर्ष के अंदर सभी मानक पूरे करने होंगे।
20. अनुसूची का संशोधन करने की शक्तिः केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा किसी मान या मानक की अनुसूची में परिवर्तन या उसका लोप करके उसका संशोधन कर सकेगी।
21. विद्यालय प्रबंधन समिति : अनुदान न पाने वाले निजी स्कूलों को छोड़कर सभी स्कूल एक स्कूल प्रबंधन समिति का गठन करेंगे जिसमें जन प्रतिनिधि अभिभावक और शिक्षक शामिल होंगे। यह समिति कामकाज का मॉनीटर करने जैसे कार्य करेगी।
22. विद्यालय विकास योजना : धारा 21 में वर्णित विद्यालय प्रबंध समिति स्कूल विकास की योजना बनाने और उसकी संस्तुति करने का कार्य करेगी।
23. शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अर्हताएँ और सेवा के निबंधन और शर्ते : शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता का निर्धारण केंद्र सरकार करेगी।
24. शिक्षकों के कर्तव्य और शिकायतों को दूर करना : शिक्षकों का कर्तव्य होगा कि वे नियमित समय से स्कूल में उपस्थित हों, पाठ्यक्रम पूरा करें, आवश्यकतानुसार अतिरिक्त शिक्षण करें तथा अभिभावक बैठकें आयोजित करें।
25. छात्र-शिक्षक अनुपात: इस अधनियम के लागू होने के 6 महीने के बाद राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षक छात्र अनुपात प्रधानाध्यापक को छोड़कर 1:40 से अधिक न हो।
26. शिक्षकों की रिक्तियों का भरा जाना : राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी स्कूल में शिक्षक के रिक्त पद कुल स्वीकृत पद संख्या के 10% से अधिक नहीं होंगे।
27. गैर-शैक्षिक प्रयोजनों के लिए शिक्षकों को अभिनियोजित किये जाने का प्रतिषेधः शिक्षकों से गैर-शैक्षणिक कार्य (सिर्फ जनगणना, चुनाव और आपदा राहत को छोड़कर) नहीं कराये जायेंगे।
28. शिक्षक द्वारा प्राइवेट ट्यूशन का प्रतिषेध : कोई शिक्षक/शिक्षिका प्राइवेट ट्यूशन या प्राइवेट शिक्षण क्रियाकलाप में स्वयं को नहीं लगायेगा/लगायेगी।
29. पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया : सरकार द्वारा निर्दिष्ट शिक्षा प्राधिकार संविधान में निहित मूल्यों के अनुरूप इसका निर्धारण करेगा और बच्चों के बहुमुखी विकास पर ध्यान देने के साथ-साथ उसे भय, कष्ट और चिंता से मुक्त कराने का भी काम करेगा। मूल्यांकन व्यापक और सतत होगा।
30. परीक्षा और समापन प्रामणपत्र: किसी भी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण होने से पहले बोर्ड की कोई भी परीक्षा नहीं देनी होगी। प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने वाले प्रत्येक बच्चे को प्रमाण-पत्र दिया जायेगा।
31. बालक के शिक्षा के अधिकार को मॉनीटर करना : बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम-2005 के प्रावधानों के अंतर्गत गठित राष्ट्रीय या राज्य बाल संरक्षण आयोग इस अधिनियम के तहत प्रदत्त अधिकारों का परीक्षण और देखभाल की समीक्षा करेंगे।
32, शिकायतों को दूर करना : धारा 31 में वर्णित बाल संरक्षण आयोग निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के बच्चे के अधिकार के संबंध में प्राप्त शिकायतों की जाँच करेंगे।
33. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का गठन : प्रस्तावित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का गठन केन्द्र सरकार करेंगी। इसका काम अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के बारे में राज्य सरकार को परामर्श देना होगा।
34. राज्य सलाहकार परिषद् का गठन : प्रस्तावित राज्य सलाहकार परिषद का गठन राज्य सरकार करेगी। इसका काम अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के बारे में राज्य सरकार को परामर्श देना होगा।
35. निदेश जारी करने की शक्ति: धारा 35 के अंतर्गत केंद्र सरकार राज्य सरकार को, राज्य सरकार स्थानीय अधिकारियों को तथा स्थानीय अधिकारी स्कूल प्रबंधन समिति को अधिनियम के कार्यान्वयन के संबंध में मार्गदर्शक सिद्धांत जारी कर सकेंगे
और निदेश दे सकेंगे।
36. अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी : अधिनियम का पालन नहीं करने पर धारा 13, 18 और 19 के अधीन दंडनीय अपराधों के लिए कोई भी अभियोजन सरकार अथवा अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना संस्थित नहीं जायेगा।
37. सद्भावपूर्वक की गयी कार्यवाही के लिए संरक्षण : इस अधिनियम अथवा इसके द्वारा बनाये गये नियमों और आदेशों के पालन में सरकार, आयोग, स्थानीय प्राधिकारी, स्कूल प्रबंधन समिति या अधिनियम से जुड़े किसी व्यक्ति द्वारा सच्चे विश्वास के साथ किये गये कार्य पर कोई मुकदमा या वैधिक प्रक्रिया नहीं चलायी जा सकेगी।
38. राज्य सरकारों को नियम बनाने की शक्ति : राज्य सरकारें अधिनियम के उपबन्धों के कार्यान्वयन के लिए नियम, अधिसूचना द्वारा बना सकेंगी।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, 2005
National Curriculum Framework (NCF), 2005
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF), 2005 के शीर्षक से दिसंबर, 2005 में प्रकाशित किया गया । इस पाठ्यचर्या में कक्षा 1 से ही मातृभाषा के साथ अंग्रेजी भाषा की वकालत की गयी है। इस संबंध में यह तर्क है कि-
> अंग्रेजी भारत के प्रबुद्ध एवं संपन्न वर्ग की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है।
> भारत में इसका प्रयोग सरकार, उद्योग एवं व्यापार सभी क्षेत्रों में होता है।
> इसे सीखे बिना लोग प्रबुद्ध, संपन्न एवं उच्च संस्कृति के लोग नहीं बन सकते और इस संदर्भ में अपने कार्यक्षेत्रों में सफलता की ऊँचाइयों को नहीं छू सकते।
> NCF फ्रेमवर्क में कक्षा 1 से 12 तक कब, क्या, क्यों और कैसे पढ़ाना सिखाना है,
विभिन्न स्तर पर प्रस्तावित शिक्षण विषयों को क्यों और कैसे पढ़ाया जाये इस संदर्भ में NCF का अपना तर्क है। जो इस प्रकार है-
भाषा (Language): भारतीय समाज की बहुभाषी विशेषता के कारण छात्र छात्राओं को एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान आवश्यक है। इस कारण NCF में तीन भाषाओं के शिक्षण की वकालत की गयी है। भाषा-कौशल के अंतर्गत बोलना, सुनना, पढ़ना, लिखना ये सभी बालक के ज्ञान के निर्माण के लिए प्राथमिक कक्षा से ही आवश्यक है। भाषा सीखने हेतु समृद्ध संप्रेषण वातावरण आवश्यक है। इसके लिए समृद्ध पाठ्य-पुस्तक, कक्षा पुस्तकालय, एक से अधिक भाषा में पुस्तकें उपलब्ध करायी जाएँ। इसके अलावा मीडिया सपोर्ट, जैसे पत्रिकाएँ, समाचारपत्र में कॉलम, रेडियो एवं ऑडियो कैसेट उपलब्ध कराने के साथ-साथ भाषा शिक्षक की भाषा में आधारभूत दक्षता अवश्य होनी चाहिए।
गणित : छात्र छात्राओं में उपयोगी गणितीय क्षमताओं के विकास एवं तार्किक ढंग से सोचने की क्षमता विकसित करने, अमूर्त चिंतन विकसित करने तथा समस्याओं को हल करने की योग्यता के विकास के लिए गणित शिक्षण आवश्यक है। अतः कक्षा 10 तक यह अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
» गणित शिक्षण हेतु कल्पना को तथा अमूर्त चिंतन को विभिन्न साधनों के माध्यम से दृश्य करके पढ़ाना चाहिए तथा गणना, आकार, स्वरूप जैसे तथ्यों को मॉडल की सहायता से समझाना चाहिए और गणित का अन्य विषयों से सहसंबंध भी छात्र-
छात्राओं को बताना चाहिए।
विज्ञान (Science): विज्ञान शिक्षा के द्वारा छात्र-छात्राएँ अवलोकन (Observation), परिकल्पना (Hypothesis), निर्माण, निष्कर्ष निकालने, निष्कर्ष के परीक्षण तथा संबंधित सिद्धांत के निर्माण को सीखते हैं। इस प्रकार उनमें एक क्रमबद्ध तरीके (Systematic way) से कार्य करने एवं अनुशासन का विकास होता है। विज्ञान के अध्ययन द्वारा गरीबी (Poverty), अंधविश्वास, अज्ञानता दूर होती है। अतः कक्षा 10 तक यह अनिवार्य विषय रखा गया है। विज्ञान शिक्षण हेतु अनुभव संबंधी वैधता, प्रक्रिया अथवा प्रणाली वैधता, ऐतिहासिक वैधता, पर्यावरण वैधता तथा नीतिपरक वैधता के आधार पर पाठ्य-वस्तु का चयन कर
शिक्षण कार्य करना चाहिए।
सामाजिक अध्ययन (Social Studies): छात्र-छात्राओं को समाज की वास्तविकता से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है। अतः सामाजिक अध्ययन का ज्ञान देना जरूरी है।
> सामाजिक अध्ययन शिक्षण के लिए ऐसी विधियों का चयन करना चाहिए जो सृजनात्मकता, सौन्दर्यपरक और विवेचनात्मक को बढ़ावा दें। इसके साथ ही छात्र- छात्राओं में पूर्व तथा वर्तमान में संबंध स्थापित करने की क्षमता का विकास करें।
कंप्यूटर (Computer): आधुनिक समय में कंप्यूटर की समाज में भूमिका एवं महत्व को देखते हुए इसका अध्ययन छात्र-छात्राओं के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
कार्य-शिक्षा (Work Education): प्रौढ़ एवं बालक दोनों का समाजीकरण एक ही प्रकार से होता है जो कार्य करने के दौरान आपसी सहयोग द्वारा होता है। अतः कार्य शिक्षा छात्र-छात्राओं को दी जानी आवश्यक है। कार्य शिक्षा के द्वारा आर्थिक
उन्नति भी होनी चाहिए। इसमें भी कार्य शिक्षा महत्वपूर्ण है।
शांति शिक्षा (Peace Education): समाज में शांति स्थापित करने में शिक्षा के महत्व को देखते हुए छात्र-छात्राओं को शांति शिक्षा दी जानी आवश्यक है।
> शांति शिक्षा इस प्रकार से दी जानी चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं में शांति के प्रति
अनुराग पैदा हो, सहनशक्ति, न्यायप्रियता, आपसी समझ बढ़े तथा सामाजिक
उत्तरदायित्व का विकास हो। इस हेतु महापुरुषों की जीवनी, कहानी आदि का श्रवण
तथा परिचर्या आयोजित की जा सकती है।
कला शिक्षा (Art Education): छात्र छात्राओं की कलात्मक क्षमता के विकास तथा सास्कृतिक और सौन्दर्यात्मक जागरुकता उत्पन्न करने हेतु कला शिक्षण का शिक्षण आवश्यक माना गया है।
> कला शिक्षा के शिक्षण के लिए इसके शिक्षकों हेतु अधिकाधिक साधन उपलब्ध कराने का सुझाव राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में दिया गया है।
स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा (Health and Physical Education) : बालक के शारीरिक विकास को जैविक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक कारक प्रभावित करते हैं। अतः स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा बालक के सर्वांगीण विकास के लिए सहायक है।
केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
Central Board of Secondary Education
> C.B.S.E.: यह बोर्ड पूरे भारत में माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक परीक्षाओं का संचालन करता है। संघीय गणराज्यों में भी उच्च माध्यमिक एवं माध्यमिक परीक्षाओं का संचालन इस बोर्ड द्वारा ही किया जाता है। सभी केन्द्रीय विद्यालय इसी बोर्ड के
अन्तर्गत आते हैं। परीक्षाओं को सम्पन्न करने के अतिरिक्त यह बोर्ड शिक्षक वर्ग के लिए अभिनवीकरण एवं पुनश्चर्या (Orientation and Refresher) कार्यक्रमों को भी आयोजित करता है। इस बोर्ड की स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य ऐसे
विद्यार्थियों की सहायता करना है जिनके माता-पिता का स्थानान्तरण भारत के एक राज्य से दूसरे राज्य में कहीं भी हो सकता है।
>  C.B.S.E एक स्वायत्त निकाय है जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संरक्षण में कार्य कर रहा है। यह 1929 में स्थापित देश के सबसे पुराने बोर्डों में दूसरा है।
> C.B.S.E का मुख्य उद्देश्य देश के अंदर एवं बाहर संस्थाओं को संबंध करना, कक्षा 10 एवं 12 की वार्षिक परीक्षाओं का संचालन करना, चिकित्सा एवं इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षाएँ आयोजित
करना, पाठ्यक्रम तैयार करना और उन्हें अद्यतन बनाना तथा शिक्षकों एवं संस्थाओं के प्रमुखों को अधिक जानकारी उपलब्ध कराना है।
> बोर्ड द्वारा कई परीक्षाएँ संचालित की जाती हैं जैसे वरिष्ठ स्कूल प्रमाणपत्र परीक्षा कक्षा 12, माध्यमिक स्कूल परीक्षा कक्षा 10, अखिल भारतीय प्री मेडिकल प्री डेंटल परीक्षा, अखिल भारतीय इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा, जवाहर नवोदय विद्यालय चयन परीक्षा।
> बोर्ड ने अक्तूबर, 2009 से कक्षा 9 में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन लागू की है जो कक्षा 10 के लिए वर्ष 2010 एवं इससे आगे जारी रहेगी।
> कक्षा में अनुभव आधारित अध्ययन के माध्यम से संकल्पनात्मक स्पष्टीकरण पर विशेष बल दिया जायेगा। यह जीवन कौशल, विशेष रूप से रचनात्मक एवं आलोचनात्मक चिंतन कौशल से छात्रों को परिपूर्ण करेगा।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) : राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार का शीर्षस्थ संसाधन संगठन है। भारत सरकार द्वारा 1961 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत
सरकार तथा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के शिक्षा विभागों को शिक्षा, विशेष रूप से स्कूली शिक्षा में गुणात्मक सुधार के क्षेत्र में अपनी नीतियाँ एवं प्रमुख कार्यक्रम तैयार करने तथा क्रियान्वित करने में सहायता देने एवं सलाह देने के लिए सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत स्वायत्त पंजीकृत संगठन के रूप में इसकी स्थापना की गई।
> अनुसंधान, विकास, प्रशिक्षण, विस्तार, प्रकाशन एवं प्रसार संबंधी गतिविधियों के अलावा, NCERT स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय सांस्कृतिक विनियम कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के लिए प्रमुख एजेंसी के रूप में काम करता है।
> NCERT अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, अतिथि विदेशी विशेषज्ञों एवं शिष्ट मंडलों के साथ ज्ञान का आदान-प्रदान एवं सहयोग भी करता है तथा विकासशील देशों के शिक्षाकर्मियों को विभिन्न प्रशिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराता है।
> NCERT के कुछ निरंतर चलने वाले प्रमुख कार्यक्रम हैं-
★ सेवा से पूर्व शिक्षकों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण और परामर्श कार्यक्रम ।
★ अखिल भारतीय स्कूल सर्वेक्षण
★ शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान का सर्वेक्षण
★ शिक्षा संबंधी वीडियो कार्यक्रमों का दूरदर्शन और आकाशवाणी के ‘ज्ञानदर्शन’ और ‘ज्ञानवाणी चैनलों पर प्रसारण’ और नई पाठ्य-पुस्तकों के बारे में शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए एडुसेट उपग्रह के माध्यम से टेली कांफ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध कराना।
परीक्षोपयोगी तथ्य
>  समेकित शिक्षा से तात्पर्य विभिन्न अक्षमताओं वाले बच्चों को नियमित कक्षाओं में अन्य बिना किसी अक्षमताओं वाले बच्चों के साथ शामिल करने से है। इसलिए समेकित शिक्षा में शिक्षण कार्य करने वाले शिक्षकों में विशेष आवश्यकता वाले
बालकों तथा उनके लक्षणों को पहचानने की क्षमता होना अनिवार्य है, जिसके लिए उन्हें प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है।
> राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF), 2005 के अनुसार, शिक्षक की भूमिका सुविधादाता की होती है। राष्ट्रीय पाठयचर्चा की रूपरेखा, 2005 के अन्तर्गत शिक्षा को बाल केंद्रित बनाने, परीक्षा में सुधार करने, जाति, धर्म आदि आधारों पर होने
वाले भेदभाव को समाप्त करने की बात की गई है।
> समावेशी शिक्षा वह शिक्षा होती है जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालकों को ज्ञान प्रदान किया जाता है।
> समन्वित शिक्षा की सफलता पाठ्य पुस्तकों की उत्कृष्टता पर निर्भर करती है।
> समावेशी शिक्षा के द्वारा निःशक्त बालकों में शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
> RTE 2009 के अनुसार 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक की निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का मूल अधिकार है।
> RTE 2009 के अंतर्गत विद्यालय में छात्र शिक्षक अनुपात 1 : 40 प्रधानाध्यापक को छोड़कर सुनिश्चित किया गया है।
> RTE 2009 देश में 1 अप्रैल, 2010 से लागू किया गया है।

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