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CTET Notes in HIndi | भाषा बोध (सुनना, बोलना, पढ़ना एवं लिखना) में प्रवीणता का मूल्यांकन

CTET Notes in HIndi | भाषा बोध (सुनना, बोलना, पढ़ना एवं लिखना) में प्रवीणता का मूल्यांकन

भाषा बोध (सुनना, बोलना, पढ़ना एवं लिखना) में प्रवीणता का मूल्यांकन
Proficiency in Language Comprehension (Listening, Speaking,
Reading and Writing)
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से
यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 1 प्रश्न, वर्ष
2012 में 6 प्रश्न, वर्ष 2013 में 2 प्रश्न, वर्ष 2014 में 4 प्रश्न, वर्ष
2015 में 4 प्रश्न तथा वर्ष 2016 में 2 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET
परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया मूल्यांकन का महत्त्व, उद्देश्य,
विधि इत्यादि से संबंधित हैं।
7.1 मूल्यांकन
मूल्यांकन (Evaluation) पठन-पाठन प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है। यह एक
सतत चलने वाली प्रक्रिया है और इसका उद्देश्य है सीखने वाले की भाषा की
संरचना और एकरूपता की समझ का आकलन साथ ही इसे विभिन्न सन्दर्भो में
उपयोग करने की क्षमता और सौन्दर्यपरक पहलू को परख सकने की क्षमता के
आकलन के रूप में भी देखा जा सकता है।
इससे हमें सीखने वाले की वास्तविक स्थिति का पता चलता है और उसकी स्थिति
या स्तर को बेहतर बनाने के लिए समय पर उचित निर्णय लेने के लिए आवश्यक
पहल करने के भी संकेत मिलते हैं।
सीखने वाले का मूल्यांकन भाषिक ज्ञान और सम्प्रेषणात्मक कौशलों दोनों के स्तरों
पर होना चाहिए। सीखने वाले का मूल्यांकन स्वयं उसके सन्दर्भ में और उसके
साथियो के साथ रखकर किया जाना चाहिए, जिसके लिए कई प्रकार के परीक्षण
किए जा सकते हैं। खुले या बन्द प्रश्न, बहुवैकल्पिक प्रश्न, समूह कार्य और
प्रोजेक्ट आदि के आधार पर भी विद्यार्थी की प्रगति के मूल्यांकन के नए तरीके
शुरू किए जा सकते हैं।
कई अध्ययनों (हारविट्ज, हारविट्ज और कोप 1986; स्टेनबर्ग और
हारविट्ज 1986, अब्दुल हमीद 2005) से भी यह बात खुलकर सामने
आई है कि परीक्षाओं के भय से उत्पन्न तनाव उनके प्रदर्शन को
नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसलिए आकलन विधियों को
ऊबाऊ व भय पैदा करने के स्थान पर अधिक-से-अधिक चुनौतीपूर्ण व
रोचक बनाने के लिए विशेष प्रयासों की जरूरत है।
7.1.1 भाषा शिक्षण में मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्त्व
• मूल्यांकन प्रक्रिया से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र द्वारा
ग्रहण किए गए ज्ञान का पता चलता है।
• अध्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया से स्वयं द्वारा विद्यार्थियों के लिए निर्धारित
किए गए लक्ष्यों के प्राप्त होने या न होने को जाँच सकता है।
• मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा शिक्षक विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए अपनाई
गई शिक्षण विधियों का मूल्यांकन कर सकता है।
• मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों की बुद्धि-लव्यि का
मूल्यांकन कर सकता है।
• सतत मूल्यांकन से विद्यार्थी की प्रगति की सीमा और स्तर के निर्धारण |
में नियमित सहायता मिलती है।
• सतत मूल्यांकन से विद्यार्थियों की कमजोरियों का निदान किया जा
सकता है इसकी सहायता से शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी की विशिष्टताओं,
कमजोरियों और उसकी आवश्यकताओं का पता लगा सकता है।
7.1.2 मूल्यांकन का उद्देश्य
• विद्यार्थियों के भाषायी कौशलों की प्रगति का आकलन करना।
• विद्यार्थियों का सतत मूल्यांकन करके भाषा शिक्षण में आने वाली
कठिनाइयों को दूर करना।
• विद्यार्थियों की रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता का विकास करना।
• छात्रों की योग्यताओं, कुशलताओं, रुचियों आदि का पता लगाना एव
उनके अनुसार शिक्षण विधि को अपनाना।
• अध्ययन-अध्यापन को प्रभावशाली बनाना। छात्रों को सीखने हेतु
उपचारात्मक व्यवस्था प्रदान करना।
• मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा अध्यापक विद्यार्थियों के भाषायी कौशलों में
दक्ष होने या न होने का आँकलन करना।
7.1.3 परीक्षण/मूल्यांकन के प्रकार
परीक्षण का अर्थ है ज्ञान, क्षमता व प्रदर्शन का किसी भी विधि से
मापन। भाषा-शिक्षण के मामले में जाँच को कक्षा-कार्य के ही विस्तार
के रूप में देखा जाना चाहिए, जो सीखने वाले व सिखाने वाले दोनों के
लिए उपयोगी सूचनाएं प्रदान करने में सहायक हों और जिनका उपयोग
पढ़ाने के तरीके और सामग्री को विकसित करने हेतु किया जा सके।
अभिरुचि परीक्षण
विद्यार्थी में द्वितीय/विदेशी भाषा सीखने की क्षमता है या नहीं अथवा इस
प्रकार की कोई सम्भावना है या नहीं, इसकी जाँच इस परीक्षण के द्वारा
की जाती है। इससे वे विद्यार्थी चुनकर सामने लाए जा सकते हैं, जो उक्त
भाषा सीखने के योग्य हो।
कसौटी-सन्दर्भित परीक्षण
इस परीक्षण का उद्देश्य निश्चित होता है अर्थात् खास विषय-वस्तु से
सम्बन्धित होता है। निदानात्मक और उपलब्धिपरक जाँच इस श्रेणी में आते
हैं। निदानात्मक जाँच से पता चलता है कि पाठ्यक्रम के किसी विशिष्ट पहलू
के ज्ञान में विद्यार्थी की क्या स्थिति है? उसने कितना सीखा है? यह कोर्स की
किसी इकाई की समाप्ति के उपरान्त लिया जाता है। उपलब्धिपरक जाँच में
विद्यार्थी की अन्य विद्यार्थियों की तुलना में जो स्थिति होती है उसकी जाँच की
जाती है। इस जाँच का उद्देश्य यह जानना होता है कि जो लक्ष्य घोषित किए
गए थे, उन्हें कहाँ तक प्राप्त किया जा सकता हैं।
मानक सन्दर्भित परीक्षण
यह परीक्षण वैश्विक भाषा योग्यता की जाँच से सम्बन्धित है। अधिकांश
रोजगार और दक्षता सम्बन्धी जाँच इसी तरह की होती है। इसका उद्देश्य है
विद्यार्थी ने जो कुछ सीखा उसे वह कहाँ तक वास्तविक स्थिति में कार्यान्वित
करने में सक्षम है और क्या वह विशिष्ट योग्यताओं के सन्दर्भ में एक मानक
स्तर तक पहुँच सका है। ये परीक्षण वस्तुनिष्ठ या वर्णनात्मक हो सकते हैं।
वस्तुनिष्ठ परीक्षण में अंकन यान्त्रिक ढंग से किया जा सकता है। उनमें
बहु-वैकल्पिक, रूपान्तरण पर आधारित, अधूरे वाक्यों को पूरा करने वाले,
सही/गलत जोड़े मिलाने वाले आदि प्रश्न आते हैं। वर्णनात्मक परीक्षण के
मामले में परीक्षक के निजी फैसले का महत्त्व होता है और अंकन ज्यादा
कठिन व समय लेने वाला होता है यदि परीक्षार्थियों की संख्या ज्यादा हो तो
इस तरह की जाँच सम्भव नहीं है।
7.1.4 परीक्षण तैयार करना
कोई भी परीक्षण तैयार करने (Preparation of Test) की प्रक्रिया, यहाँ तक
कि कक्षा के भीतर की भी, मुख्यत:तीन चरणों में सम्पादित होती है
1. अभिकल्प अभिकल्प तैयार करने की अवस्था में प्रश्नों का विवरण,
पहचान और चुनाव शामिल होता है।
2. संचालन संचालन (ऑपरेशन) की अवस्था में परीक्षण में प्रयुक्त
किए जाने वाले विविध कार्यों के विशेष विवरण तैयार किए जाते हैं,
साथ ही एक खाका भी तैयार किया जाता है, जो कि यह बताता है
कि वास्तविक परीक्षण का रूप देने के लिए जाँच कैसे की जाएगी।
इसमें वास्तविक परीक्षा सम्बन्धी कार्य, लिखित अनुदेश और अंकन
की कार्य-विधि भी शामिल होती है।
3. परीक्षण का प्रशासन कार्यान्वयन की अवस्था में परीक्षण लिया जाता
है, सूचनाएँ एकत्र की जाती हैं तथा अंकों का विश्लेषण किया जाता है।
परीक्षण का विकास शिक्षक को परीक्षण की उपयोगिता को ध्यान से
देखने/पड़ताल करने का अवसर प्रदान करता है। विकास की यह
प्रक्रिया अनुक्रियात्मक होनी चाहिए। यह जाँच बाद में प्रश्नों के
पुनर्विचार और उन्हें दोहराने में सहायक सिद्ध होती है। साथ ही अंकन
की पद्धति को भी निर्मित व विकसित करने में यह सहायक होती है।
इस परीक्षण के अन्तर्गत वस्तुनिष्ठ, मिलान करना, वर्णनात्मक प्रश्न,
वाक्य पूरे करना इत्यादि प्रकार के प्रश्न पूछे जाते है।
7.1.5 परीक्षण के लिए दिए जाने वाले कार्य
परीक्षण कार्य अनेक प्रकार के हो सकते हैं; जैसे-अनुत्पादक परीक्षण कार्य
(क्लोज परीक्षण करना, श्रुतलेखन, अनुवाद, नोट लेना, संयोजन आदि);
उत्पादन परीक्षण कार्य (जोड़ा मिलाना, बहु-वैकल्पिक, क्रमबद्ध करना
आदि) से लेकर पोर्टफोलियो-आकलन (एक खास अवधि में विद्यार्थी द्वारा
किए गए सृजनात्मक कार्य) तक।
भाषा का पार्टफोलियो प्रपत्रों का संगठित व क्रमबद्ध संग्रह हो सकता है
जिसे विद्यार्थी द्वारा विशेष समयावधि में किया गया हो, उसे व्यवस्थित रूप
से प्रदर्शित किया जा सकता है। इसे मानक परीक्षण-पद्धतियों के विकल्प
के रूप में देखा जाता है, जिससे विद्यार्थी में सीखने के प्रति दायित्वबोध
पनपता है।
भाषिक मूल्यांकन के आधुनिक तरीके यह सुझाते हैं कि विविक्त
(Particulate) बिन्दुओं और समाकलनात्मक (Integrative) परीक्षणों का
सन्तुलित समूह बनाना उपयोगी हो सकता है। समाकलनात्मक परीक्षण जैसी
बन्द प्रक्रिया (क्लोज्ड प्रोसिड्योर) जो गेस्टाल्ट (समग्राकृति) मनोविज्ञान पर
आधारित हो, उसे सभी स्तरों पर विविध रूपों में सृजनात्मकता से ढाला जा
सकता है। इसी प्रकार से, विशेषकर बहुभाषी कक्षा में, अनुवाद को विभिन्न
प्रकार से प्रयुक्त किया जा सकता है।
7.2 मूल्यांकन की विधियाँ
विद्यार्थियों के ज्ञान को जाँचने के लिए निम्न विधियों का प्रयोग किया
जाता है
7.2.1 परीक्षा
मूल्यांकन की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि परीक्षा (Test) है। कक्षा में पढ़ाए गए
विषय के आधार पर छात्रों के सम्मुख कुछ प्रश्न प्रस्तुत किए जाते हैं और
उनके उत्तरों के आधार पर छात्रों की विषयगत योग्यता की जाँच की जाती है।
इस प्रक्रिया को ही परीक्षा कहते हैं।
यह परीक्षा तीन प्रकार की होती है
1. लिखित परीक्षा 2. मौखिक परीक्षा 3. प्रायोगिक परीक्षा
लिखित परीक्षा
छात्रों की उपलब्धियों एवं व्यवहार परिवर्तन की जाँच जब लिखित रूप से
की जाती है तो उसे लिखित परीक्षा (Written Test) कहते हैं। आज के युग
में लिखित परीक्षा ही सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसमें एक समय में लाखों
छात्रों को विभिन्न केन्द्रों में प्रश्न-पत्र वितरित कर दिए जाते हैं।
इसके उपरांत वे उनको उत्तर-पुस्तिकाओं की जाँच कर उनकी योग्यता का
मापन कर सकते हैं। इससे सभी कार्य का लिखित रूप में अभिलेख सुरक्षित
रहता है। कभी भी आवश्यकता पड़ने पर उसका पुनर्मूल्यांकन किया जा
सकता है। छात्रों को पढ़कर अर्थ ग्रहण करने एवं लिखित रूप से विचारों को
अभिव्यक्त करने की योग्यता की जाँच करने की यह एक सर्वोत्तम विधि है।
लिखित परीक्षा के मुख्यतः तीन रूप है।
निबन्धात्मक परीक्षा (Essay Type Test) जिन प्रश्नों के उत्तर छात्रों को
विस्तृत निबन्ध के रूप में देने होते हैं, ऐसे प्रश्नों पर आधारित लिखित परीक्षा
को निबन्धात्मक परीक्षा कहा जाता है। इसमें बच्चों को विषय से सम्बन्धित
प्रश्नों पर आधारित प्रश्न-पत्र दिया जाता है। प्रश्न-पत्र में 10-12 प्रश्न होते
हैं, उनमें से छात्रों को 5-6 प्रश्नों का उत्तर एक निश्चित समयावधि में देना
होता है।
निबन्धात्मक परीक्षा के गुण (Characteristics of Essay Type Question)
इस परीक्षा के द्वारा छात्रों की लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच होती
है। पढ़कर अर्थ ग्रहण करना, विचारों का संग्रह करना, विचारों का विश्लेषण
करना, विचारों को व्यवस्थित करना एवं उचित भाषा, क्रम में अभिव्यक्ति
करना, तीव्र गति से लिखना आदि योग्यताओं का मूल्यांकन करने के लिए
निबन्धात्मक परीक्षाएँ सबसे अच्छा साधन है।
निबन्धात्मक परीक्षा के दोष (Demerit of essay type questions) उपरोक्त
गुणों के होने पर भी यह परीक्षा दोषमुक्त नहीं है। प्रश्न-पत्र के 10-12 प्रश्नों में
से केवल 5-6 प्रश्नों का उत्तर देने की परम्परा के कारण छात्र विषय का पूर्ण
ज्ञान प्राप्त नहीं करते हैं, बल्कि कुछ सम्भावित प्रश्नों को तैयार कर लेते हैं।
प्रश्न-प्रत्र में भी पाठ्यक्रम के कुछ अंश पर ही प्रश्न पूछे जाते हैं।
अत: छात्र पूरे पाठ्यक्रम का अध्ययन नहीं करते हैं। इनसे विषय की आंशिक
जाँच ही हो पाती है।
लघु उत्तरीय परीक्षा
• जिन प्रश्नों का उत्तर बहुत छोटा अर्थात् एक, दो, तीन या चार पंक्तियों में
देना होता हैं उन्हें लघु उत्तर परीक्षा (Short Answer Type Test) कहा
जाता है। यह निबन्धात्मक परीक्षा का ही परिष्कृत रूप है।
• इनमें निबन्धात्मक परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अत:
यह पाठ्यक्रम के अधिक अंश से सम्बन्धित ज्ञान की जाँच करते हैं।
इनके उत्तर भी अपेक्षाकृत अधिक निश्चित होते हैं। इनमें छात्रों की बोधशक्ति
तथा ज्ञान की जाँच भी होती है।
• ये छात्रों की वाक्य-रचना की योग्यता की जाँच करने में भी सहायक हैं,
परन्तु इनमें न तो छात्रों के तर्क, विचार आदि मानसिक शक्तियों की जाँच
कर सकते हैं और न ही यह पद्धति भाषाशैली एवं विचाराभिव्यक्ति की जाँच
पूरी तरह से करने में सक्षम होती है।’
वस्तुनिष्ठ परीक्षा
• जिन प्रश्नों के उत्तर किसी विशेष चिह्न या एक-दो शब्द के द्वारा दिए जाते
हैं, उन्हें वस्तुनिष्ठ परीक्षा (Objective Test) कहते हैं। निबन्धात्मक परीक्षा
के दोषों को दूर करने की दृष्टि से इस परीक्षा का विकास किया गया है।
• प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में होने के कारण इसमें कम समय में
अधिक-से-अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अत: प्रश्न पूरी पाठ्यचर्चा से
सम्बन्धित होते हैं। छात्रों को विषय पूरी तरह से तैयार करना पड़ता है, विषय
का कोई भी अंश छोड़ा नहीं जा सकता है।
• इसमें प्रश्नों के उत्तर निश्चित होने के कारण हर परिस्थिति में परीक्षक को
निश्चित अंक देने पड़ते हैं अर्थात् उत्तर सही है तो पूर्ण अंक और गलत है।
तो शून्य।
• प्रश्न के उत्तर की विषय-वस्तु निश्चित होने के कारण ही इसे वस्तुनिष्ठ कहा
जाता है। ये परीक्षाएँ विश्वसनीय एवं प्रामाणिक होती हैं। इनके द्वारा बच्चों के
ज्ञान की सही-सही जाँच होती है।
• उपरोक्त गुणों के होने पर भी वस्तुनिष्ठ परीक्षा दोषमुक्त नहीं है। इससे
बच्चों की विचार, तर्क आदि मानसिक शक्तियों तथा भाषा-शैली का
प्रयोग व विचारों को अभिव्यक्ति करने की क्षमता आदि की जाँच नहीं
हो पाती है।
• ये तो केवल बच्चों की स्मरण शक्ति की जाँच करती हैं एवं कभी-कभी
ये अनुमान-कार्य को प्रोत्साहन देती हैं।
• वस्तुनिष्ठ परीक्षा पर पूरी तरह से निर्भर रहने की अपेक्षा निबन्धात्मक
एवं लघु उत्तर परीक्षाओं के साथ समन्वित करके इसका प्रयोग करना
चाहिए। वस्तुगत प्रश्नों का निर्माण बड़ी सावधानी के साथ करना चाहिए।
परस्पर विचार-विमर्श एवं पर्याप्त अभ्यास के उपरान्त ही इनका निर्माण
किया जा सकता है।
मौखिक परीक्षा
• इस परीक्षा पद्धति में छात्रों से मौखिक रूप से प्रश्न पूछकर उनके उत्तर
भी मौखिक रूप से ही देने को कहा जाता है।
• हिन्दी भाषा के मूल्यांकन में मौखिक परीक्षा (Oral Test) का बहुत
महत्त्व है, क्योंकि हिन्दी भाषा-शिक्षण में पढ़ने-लिखने की योग्यता का
विकास करने से पहले छात्रों को सुनकर विचार ग्रहण करने और
बोलकर विचारों को अभिव्यक्त करने के योग्य बनाना भाषा की शिक्षा
का प्रमुख उद्देश्य है।
• हम दैनिक जीवन में पढ़ने-लिखने से अधिक कार्य सुनने और बोलने का
करते हैं। भाषा के दो रूपों मौखिक एवं लिखित में से व्यावहारिक जीवन
में मौखिक रूप का प्रयोग अधिक होता है।
• मौखिक रचना ही लिखित रचना का आधार अत: हिन्दी के मूल्यांकन
में मौखिक अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच करना भी उतना ही
आवश्यक है, जितना लिखित अभिव्यक्ति की योग्यता की जाँच करना।
प्रायोगिक परीक्षा
यह विधि गणित और विज्ञान जैसे तकनीकी विषयों तथा अन्य विषयों के
क्रियात्मक पक्षों का मूल्यांकन करने में सक्षम है। यह विधि करके सीखने
की अवधारणा को घोषित करती है।
निरीक्षण
निरीक्षण (Invigilation) विधि में अध्यापक विद्यार्थियों की गतिविधियों,
उनके व्यवहार का निरीक्षण करके उनके भाषायी कौशलों में उनकी प्रगति
का मूल्यांकन करता है। यह विधि प्राथमिक विद्यालयों में अति लाभदायक
सिद्ध होती है।
संचयी अभिलेख
इस विधि में अध्यापक विद्यार्थियों की गतिविधियों को जाँचने के लिए एक
आलेख तैयार करता है और उसके आधार पर उनकी प्रगति का मूल्यांकन
किया जाता है। इसमें विद्याथियों की रुचियों, अभिक्षमताओं और सामाजिक
समायोजनों के प्रगतिशील विकास का रिकार्ड रखा जाता है।
घटना-वृत्त
इस विधि में विद्यार्थी द्वारा विद्यालय में होने वाले कार्यक्रमों में की जाने
वाली भागीदारी के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि
में उसके योगदान का परीक्षण आलेख द्वारा किया जाता है।
रोटिंग स्केल
इस विधि में विद्यार्थियों के समक्ष कोई पंक्ति, कविता, आलेख आदि प्रस्तुत
किए जाते है, जिस पर उन्हें अपना निर्णय देना होता है। उनके द्वारा लिए गए
निर्णय के आधार पर उन्हें विभिन्न रेटिंग प्रदान किए जाते हैं
7.2.2 मूल्यांकन की विशेषताएँ
यधार्थता
जिन इकाइयों पर बल दिया गया है, उन्हीं का परीक्षण होना चाहिए अर्थात्
शिक्षण के माध्यम से विद्यार्थियों को जो सिखाया या पढ़ाया गया है मूल्यांकन
उसी पर आधारित होना चाहिए। मूल्यांकन यथार्थवादी (Accuracy) होना
आवश्यक है।
विश्वसनीयता
विभिन्न परंतु एक समान परिस्थितियों में किसी प्रश्न, परीक्षण, या परीक्षा का
उत्तर पूर्णत: एक ही प्रकार का होगा तो ऐसा मापन विश्वसनीयता
(Reliability) कहलाएगी। मूल्यांकन में विश्वसनीयता अत्यन्त आवश्यक है।
यदि किसी शिक्षक द्वारा थोड़े समय अन्तराल में उसी विद्यार्थी का पुन:
मूल्यांकन किया जाता है तो समान उत्तर देने पर विद्यार्थी का स्थान वही होना
चाहिए, जो पूर्व में मापन एवं मूल्यांकन द्वारा प्राप्त हुआ था। प्राप्तांकों में भी
असमानता न हो।
जाँच में सुगमता
मूल्यांकन पद्धति इतनी सुगम होनी चाहिए, जिससे विद्यार्थियों की क्षमताओं ,
योग्यताओं तथा शैक्षणिक कुशलताओं की जाँच सुगमता (Easiness in
Evaluation) से की जा सके तथा उनकी कमियों और योग्यता को बताया
जा सके।
वस्तुनिष्ता
प्रश्न ऐसा बनाना चाहिए, जिनका उत्तर एक ही हो। वस्तुनिष्ठता
(Objectivity) होने से मूल्यांकन में किसी प्रकार की मनमानी नहीं हो सकती
इससे मूल्यांकन उचित होता है।
व्यावहारिकता
मूल्यांकन व्यावहारिक होना चाहिए ताकि उसे व्यवहार में लाया जा सके
अर्थात् मूल्यांकन प्रक्रिया, लागत, समय और प्रयोग-सरलता की दृष्टि से
वास्तविक, व्यावहारिक और कुशल होनी चाहिए।
वैज्ञानिकता
मूल्यांकन सत्यता, यथार्थता, वैधता, व्यवहारिकता (Viability) और
वस्तुनिष्ठता के गुण और लक्षणों के अनुकूल होने पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
ओतप्रोत हो सकता है। प्रश्नों के निर्माण में भी वैज्ञानिकता (Scientific) होनी
चाहिए।
तार्किकता
पाठ्यक्रम की समस्त इकाइयों से प्रश्न पूछे जाते हैं, इससे विद्यार्थियों की
चयन प्रवृत्ति समाप्त हो जाती है और वह सम्पूर्ण अध्ययन हेतु तत्पर होता है।
प्रश्न तार्किक स्तर पर तैयार किए जाते हैं, जिससे वैज्ञानिकता की विशेषता के
साथ तार्किकता (Logical) का गुण भी आ जाता है।
भाषायी कौशलों का मूल्यांकन
भाषायी कौशलों का मूल्यांकन निम्न है।
श्रवण कौशल का मूल्यांकन
साहित्य की विभिन्न विधाओं का शिक्षण करते समय अध्यापक सम्बन्धित
विषय-वस्तु की चर्चा छात्रों के सामने करता है। छात्रों ने विषय-वस्तु को
ग्रहण किया या नहीं इसके लिए पाठ का सार पूछकर विषय-वस्तु से
सम्बन्धित प्रश्न पूछकर छात्रों के श्रवण कौशल की जाँच-परख कर इत्यादि
द्वारा श्रवण कौशल का मूल्यांकन किया जा सकता है।
मौखिक अभिव्यक्ति कौशल का मूल्यांकन
छात्र द्वारा अपने भावों, विचारों तथा अर्जित अनुभव का मौखिक रूप से
अभिव्यक्त करने की योग्यता का विकास करना, भाषा शिक्षण की विभिन्न
विधाओं के शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है।
मौखिक अभिव्यक्ति कौशल का विकास किस स्तर तक हुआ है, इसकी जाँच
मौखिक परीक्षा एवं प्रायोगिक परीक्षा के द्वारा की जा सकती है। विभिन्न
साहित्यिक कार्यक्रमों; जैसे-भाषण, कविता पाठ, वाद-विवाद प्रतियोगिता
करवाकर उनके मौखिक अभिव्यक्ति कौशल की जाँच की जा सकती है।
पठन कौशल का मूल्यांकन
पठन कौशल के मूल्यांकन (Evaluation of Reading Skill) के अन्तर्गत
विद्यार्थी की पढ़कर समझने अर्थात् अर्थ ग्रहण करने की क्षमता का मूल्यांकन
किया जाता है।
साथ ही विद्यार्थी द्वारा यति, गति, विराम चिह्नों इत्यादि को ध्यान में रखते हुए
धारा प्रवाह पढ़ने की क्षमता का मूल्यांकन भी किया जाता है। इस कौशल का
मूल्यांकन कविता-कहानी का पाठ करवाकर, गद्यांश पर आधारित प्रश्नों का
हल करवाकर इत्यादि द्वारा किया जा सकता है।
लेखन कौशल
लेखन कौशल (Evaluation of writing Skill) के मूल्यांकन में अध्यापक
विद्यार्थियों की लेखन क्षमता का आकलन करता है। इसके माध्यम से वह
आकलन करता है कि विद्यार्थी लिखकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करने
में सक्षम हुआ है अथवा नहीं। साथ ही वह उसके लेखन में वर्तनी,
विराम-चिह्नों इत्यादि से सम्बन्धित दोषों का भी मूल्यांकन करता है। निबन्ध
लेखन, अनुच्छेद लेखन, सुलेख इत्यादि के द्वारा लेखन कौशल का मूल्यांकन
किया जा सकता है।
                                                  अभ्यास प्रश्न
1. आकलन
(1) केवल यह बताता है कि बच्चे ने क्या नहीं सीखा
(2) भाषा सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न
अंग है
(3) पाठ-समाप्ति पर ही किया जाता है
(4) मूलतः शिक्षक केन्द्रित ही होता है
2. भाषा में आकलन सम्भव है
(1) सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान
अवलोकन द्वारा
(2) केवल परीक्षाओं द्वारा
(3) केवल परियोजना कार्य द्वारा
(4) केवल गतिविधियों द्वारा
3. सतत मूल्यांकन का एक निहितार्थ है
(1) बच्चों के परीक्षा-सम्बन्धी भय को समाप्त करना
(2) प्रतिदिन परीक्षाएँ लेना
(3) हर महीने परीक्षाएँ लेना
(4) बच्चों के भाषा-प्रयोग का निरन्तर अवलोकन
करना
4. भाषा के सतत और व्यापक मूल्यांकन का
उद्देश्य है
(1) बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को समझकर
उपयुक्त शिक्षण अधिगम प्रक्रिया अपनाना
(2) अगली कक्षा में प्रोन्नत करने हेतु साक्ष्य जुटाना
(3) बच्चों की त्रुटियों की पहचान करना
(4) मूल्यांकन की परम्परा का निर्वाह करना
5. भाषा में सतत और व्यापक मूल्यांकन का
उद्देश्य है
(1) केवल यह जानना कि बच्चों ने कितना सीखा
(2) बच्चों को उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण श्रेणी में रखना
(3) बच्चों द्वारा भाषा सीखने की प्रक्रिया को
जानना, समझना
(4) केवल बच्चों की कमियाँ जानना
6. मूल्यांकन का प्रयोजन है
(1) बच्चों को डर के दबाव में अध्ययन के लिए
प्रेरित करना
(2) बच्चों को धीमी गति से सीखने वाले,
होशियार, समस्यात्मक छात्र आदि वर्गों
विभाजित करना
(3) बालक के विकास के हर पक्ष का मूल्यांकन
करना
(4) उन बच्चों को पहचानना जिन्हें उपचारात्मक
शिक्षण की आवश्यकता है
7. सतत और व्यापक मूल्यांकन मुख्य रूप से
पर बल देता।
(1) बच्चे के सुधार के लिए लगातार परीक्षण करने
(2) बच्चे के व्यवहार का सतत अवलोकन करने
(3) मस्तिष्क, हृदय और हाथ की शिक्षा पर
(4) कमजोर अयोग्य विद्यार्थियों को उच्च स्तर
(अगली कक्षा) पर प्रोन्नत करने
8. सतत और व्यापक मूल्यांकन की शुरुआत में
मूल्यांकन व्यवस्था को
(1) बच्चे के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को ज्यादा प्रदर्शित
करने वाला बनाया है
(2) बहुत अधिक विवरण को शामिल करते हुए
जटिल बनाया है
(3) अस्पष्ट बनाया है क्योंकि विद्यार्थी के निश्चित
रैंक को जाना नहीं जा सकता
(4) केवल शैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पादन का विश्लेषण
करने के लिए ज्यादा व्यापक बनाया है
9. हिन्दी भाषा के सतत और व्यापक
मूल्यांकन के सन्दर्भ में कौन-सा कथन
उचित नहीं है?
(1) यह बच्चे के सन्दर्भ में ही मूल्यांकन करता है
(2) यह बच्चों को उत्तीर्ण-अनुत्तीर्ण श्रेणियों में
विभाजित करने में विश्वास रखता है
(3) सतत और व्यापक मूल्यांकन बच्चों की
सीखने की क्षमता और तरीके के बारे में
जानकारी देता है
(4) यह बताता है कि बच्चों को किस तरह की
सहायता की जरूरत है?
10. भाषा का आकलन की प्रक्रिया
(1) पाठ के अन्त में दिए अभ्यासों के माध्यम से
होती है
(2) सीखने-सिखाने के दौरान भी चलती है
(3) केवल बच्चों का निष्पादन जानने के लिए
होती है
(4) केवल शिक्षक का निष्पादन जानने के लिए
होती है
11. भाषा में आकलन करते समय आप किसे
सबसे कम महत्त्व देंगे?
(1) प्रश्नों का निर्माण करना
(2) परिचर्चा
(3) सृजनात्मक लेखन
(4) प्रश्नों के उत्तर लिखना
12. भाषा-आकलन में कौन-सा तत्त्व सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है?
(1) सुलेख
(2) भाषिक संरचनाओं पर आधारित प्रश्न
(3) विविध अर्थ वाले प्रश्न पूछना
(4) श्रुतलेख
13. हिन्दी भाषा में मूल्याकंन के
संचित अभिलेखों में होना चाहिए
(1) विद्यार्थियों की उपस्थिति और चिकित्सा
रिकॉर्ड
(2) विद्यार्थियों द्वारा प्रदर्शित अनुशासनहीनता की
घटनाओं का रिकॉर्ड
(3) विद्यार्थियों की रुचियों, अभिक्षमता और
सामाजिक समायोजनों के प्रगतिशील विकास
का रिकॉर्ड
(4) किसी भी विशिष्ट दिन विद्यार्थियों के व्यवहार
का रिकॉर्ड
14. मौखिक भाषा के आकलन का सर्वोत्तम
तरीका है
(1) अन्त्याक्षरी
(2) प्रश्नों के तयशुदा उत्तर देना
(3) अनुभव बाँटना व बातचीत
(4) किताब पढ़ना
15. हिन्दी भाषा में सतत और व्यापक मूल्यांकन
करते समय आप किस बात पर विशेष ध्यान
देंगे?
(1) शुद्ध वर्तनी
(2) परियोजना कार्य
(3) शुद्ध उच्चारण
(4) विभिन्न सन्दर्भो में भाषा-प्रयोग की कुशलता
16. बच्चों की भाषिक अभिव्यक्ति के आकलन
के लिए किस तरह के प्रश्न सहायक नहीं है?
(1) बहुविकल्पीय
(2) लघुउत्तरात्मक
(3) निबन्धात्मक
(4) सारांश प्रस्तुत करना
17. ‘पाठ्य-कुशलता’ का मूल्यांकन करने के
लिए आप क्या करेंगे?
(1) पदी गई सामग्री पर तथ्यात्मक प्रश्न पूछेगे
(2) पढ़ी गई सामग्री पर प्रश्न बनवाएँगे
(3) पुस्तक के किसी पाठ की पंक्तियों पदवाएँगे
(4) बच्चों से जोर-जोर से बोलकर पदने के लिए
कहेंगे, जिससे उच्चारण की जाँच हो सके
18. ‘नाटक शिक्षण’ में सतत और व्यापक
मूल्यांकन के लिए निम्नलिखित में से
कौन-सा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है?
(1) लिखित परीक्षा
(2) मुख्य संवादों को सुन्दर रूप से लिखना
(3) पढ़े गए नाटक का मंचन
(4) पात्रों का चरित्र-चित्रण लिखना
19. बच्चों के लिखित कार्य के आकलन में
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है
(1) अभिव्यक्ति विचार
(2) वर्तनी
(3) वाक्य विन्यास
(4) तत्सम शब्दों का प्रयोग
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
20. बच्चों के ‘लेखन’ कौशल का मूल्यांकन करने
के लिए कौन-सी विधि बेहतर हो सकती है?
                                  [CTET June 2011]
(1) सुन्दर लेख का अभ्यास
(2) अपने अनुभवों को लिखना
(3) श्रुतलेख
(4) पाठाधारित प्रश्नों के उत्तर लिखना
21. गृहकार्य का बारे में कौन-सा कथन उचित
है?                            [CTET Jan 2012)
(1) गृह-कार्य देना अति आवश्यक है
(2) गृह-कार्य अभिभावकों को व्यस्त रखने का उत्तम
साधन है
(3) बच्चों की क्षमताओं, स्तर के अनुसार गृहकार्य
दिया जाना चाहिए
(4) गृह-कार्य कक्षा में किए गए कार्य का
अभ्यास-मात्र है
22. हिन्दी भाषा का मूल्यांकन करते समय
आप सबसे ज्यादा किसे महत्त्व देंगे?
                                     [CTET Jan 2012]
(1) व्याकरणिक नियम
(2) सीखने की क्षमता का आकलन
(3) काव्य-सौन्दर्य
(4) निबन्ध लिखने की योग्यता
23. निम्नलिखित में से कौन-सा बच्चों की
भाषिक क्षमता के आकलन का सबसे
उचित तरीका है?              [CTET Jan 2012]
(1) संज्ञा शब्दों के दो उदाहरण दीजिए
(2) बादल’,’आसमान’,’चिड़िया’,’बच्चे‘ आदि
संज्ञा शब्दों का प्रयोग करते हुए एक कहानी
लिखना
(3) संज्ञा की परिभाषा को पूरा कीजिए
(4) संज्ञा को परिभाषित कीजिए
24. बच्चों की भाषा-सम्बन्धी क्रमिक प्रगति
का लेखा-जोखा रखना……….से सम्भव
है।                               [CTET Nov 2012]
(1) पोर्टफोलियो
(2) उत्तर-पुस्तिकाओं
(3) लिखित परीक्षा
(4) मौखिक परीक्षा
25. बच्चों की भाषा के आकलन का सर्वाधिक
प्रभावी तरीका है                 [CTET Nov 2012]
(1) प्रश्नों के उत्तर देना
(2) प्रश्न पूछना और पढ़ी गई सामग्री पर प्रतिक्रिया
व्यक्त करना
(3) श्रुतलेख
(4) लिखित परीक्षा
26. प्रश्न पूछना, प्रतिक्रिया व्यक्त करना,
परिचर्या में भाग लेना, वर्णन करना
                                     [CTET Nov 2012]
(1) भाषा आकलन के तरीके मात्र हैं
(2) भाषा सीखने-सिखाने तथा आकलन के
तरीके हैं
(3) केवल शिक्षण पद्धति है
(4) केवल साहित्यिक गतिविधियाँ हैं
27. बच्चों की मौखिक भाषा का सतत
आकलन करने का सबसे बेहतर तरीका है
                                     [CTET July 2013]
(1) शब्द पढ़वाना
(2) प्रश्नों के उत्तर पूछना
(3) विभिन्न सन्दर्भो में बातचीत
(4) सुने हुए को दोहराने के लिए कहना
28. भाषा में सतत और व्यापक आकलन का
उद्देश्य है                            [CTET July 2013]
(1) वर्तनी की अशुद्धि के बिना लिखने की क्षमता
का आकलन
(2) भाषा के व्याकरण का आकलन करना
(3) भाषा के मौखिक और लिखित रूपों के प्रयोग
की क्षमता का आकलन
(4) पढ़कर समझने की क्षमता का आकलन
29. इनमें से प्राथमिक स्तर पर भाषा-आकलन
का सर्वाधिक उचित तरीका है
                                    [CTET Feb 2014]
(1) किसी पाठ की पाँच पंक्तियाँ पदवाना
(2) बच्चों को चित्र-वर्णन और प्रश्न पूछने के
अवसर देना
(3) बच्चों से पत्र लिखवाना
(4) बच्चों से प्रश्नों के उत्तर लिखवाना
30. कौन-सा प्रश्न बच्चों की भाषा-क्षमता का
सही आकलन करेगा? [CTET Feb 2014)
(1) लड़की ने किसके दाम नहीं बताए।
(2) लड़की टोकरी में क्या बेच रही थी?
(3) यदि तुम आम बेचोगे तो उसके कितने दाम
लोगे और क्यों?
(4) आजकल आम का दाम कितना है?
31. भाषा में आकलन की प्रक्रिया
                                        [CTET Sept 2014]
(1) पाठ के अन्त में दिए अभ्यासों के माध्यम से
होती है
(2) सीखने-सिखाने के दौरान भी चलती है
(3) केवल बच्चों का निष्पादन जानने के लिए
होती है
(4) केवल शिक्षक का निष्पादन जानने के लिए
होती है
32. बच्चों की भाषा का आकलन करने के
लिए सबसे उचित तरीका क्या है?
                                      [CTET Sept 2014]
(1) बच्चों की लिखित परीक्षा लेना
(2) बच्चों के भाषा प्रयोग का अवलोकन करना
(3) बच्चों से किताब पढ़वाना
(4) बच्चों से परियोजना कार्य करवाना
33. एक प्राथमिक शिक्षक के रूप में आप
सतत और व्यापक आकलन करते समय
किसे सर्वोपरि मानते हैं?
                                 [CTET Feb 2015]
(1) कठिन शब्दों का श्रुतलेखन
(2) लिखित प्रश्न-पत्र
(3) पाठ से देखकर सुलेख लिखना
(4) बच्चों द्वारा विभिन्न सन्दर्भो में भाषा-प्रयोग
की क्षमता
34. प्राथमिक स्तर पर पढ़ने की क्षमता का
आकलन करने की दृष्टि से सबसे अधिक
महत्त्वपूर्ण है                 [CTET Sept 2016]
(1) विराम चिह्नों का ज्ञान
(2) पढ़ने में प्रवाह
(3) अर्थ का निर्माण
(4) वर्गों की पहचान
35. सुरभि अकसर ‘ड’ वाले शब्दों को गलत
तरीके से उच्चारित करती है। आप क्या
करेंगे?                         [CTET Sept 2015]
(1) उसे ‘ड’ वाले शब्दों की सूची पढ़ने एवं लिखकर
अभ्यास करने के लिए देंगे
(2) उसे ‘ड’ वाले शब्दों को अपने पीछे-पीछे दोहराने
के लिए कहेंगे
(3) उसे सहजता के साथ अपनी बात कहने के लिए
प्रोत्साहित करेंगे
(4) उसे ‘ड’ वाले शब्दों की सूचना पढ़ने एवं बोलकर
अभ्यास करने के लिए कहेंगे
36. प्राथमिक स्तर पर बच्चों का पठन क्षमता का
आकलन करने में किस प्रकार की सामग्री
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है?
                                 [CTET Feb 2015]
(1) आतंकवाद पर आधारित निबन्ध
(2) बाल साहित्य की कोई संवादात्मक कहानी
(3) पाठ्य-पुस्तक
(4) औपचारिक पत्र
37. विद्यार्थियों का भाषायी विकास समग्रता से हो
सके, इसके लिए सबसे उपयुक्त अनुशंसा
होगी                            [CTET Feb 2016]
(1) शब्दकोश एवं विश्वकोष के प्रयोग की
(2) भाषा प्रयोग के विविध अवसरों की
(3) सतत एवं व्यापक आकलन की
(4) सर्वोत्कृष्ट पाठ्य-पुस्तकों की
38. अपने विद्यार्थियों के भाषा सम्बन्धी क्रमिक
विकास का आकलन करने के लिए आपकी
निर्भरता मुख्य रूप से किस पर है?
                                       [CTET Feb 2016]
(1) पोर्टफोलियो के अवलोकन पर
(2) मौखिक कार्य करवाने पर
(3) गृहकार्य की उत्तर-पुस्तिकाओं के अवलोकन पर
(4) कक्षाकार्य के अवलोकन पर
                                     उत्तरमाला
1. (2) 2. (0) 3. (4) 4. (1) 5. (3) 6. (3) 7. (2) 8. (1) 9. (2) 10. (2)
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27. (3) 28. (3) 29. (2) 30. (3) 31. (2) 32. (2) 33. (4) 34. (4)
35. (3) 36. (2) 37. (3) 38. (1)
                                              ★★★

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