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CTET Notes in HIndi | भाषा कौशल | Language Skills

CTET Notes in HIndi | भाषा कौशल | Language Skills

भाषा कौशल
                                     Language Skills
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 3 प्रश्न,
2012 में 1 प्रश्न, 2013 में 1 प्रश्न, 2014 में 3 प्रश्न, 2015
में 4 प्रश्न, वर्ष 2016 में 3 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET परीक्षा
में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया भाषा कौशल के उद्देश्य, भाषा
कौशल के विकास में सहायक विधियाँ इत्यादि से सम्बन्धित हैं।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में अन्य व्यक्तियों से सम्प्रेषण
स्थापित करने के लिए वह बोलकर या लिखकर अपने भावों एवं विचारों
को अभिव्यक्त करता है तथा सुनकर या पढ़कर उनके विचारों को ग्रहण
करता है। भाषा से सम्बन्धित इन चारों क्रियाओं के प्रयोग करने की क्षमता
को भाषा-कौशल कहा जाता है। इनका विकास एवं इनमें दक्षता प्राप्त करना
ही भाषा शिक्षण का उद्देश्य है। भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक चारों
कौशल परस्पर एक-दूसरे से अन्तःसम्बन्धित होते हैं अर्थात् प्रत्येक कौशल
का विकास किसी न किसी रूप में एक-दूसरे पर निर्भर करता है।
भाषा कौशल को चार प्रकारों में विभाजित किया गया है
1. श्रवण कौशल (सुनकर अर्थ ग्रहण करने का कौशल)
2. वाचिक या मौखिक अभिव्यक्ति कौशल (विचारों को बोलकर व्यक्त
करने का कौशल)
3. पठन कौशल (पढ़कर अर्थ ग्रहण करने का कौशल)
4. लेखन कौशल (विचारों को लिखकर व्यक्त करने का कौशल)
भाषा-शिक्षण का सम्बन्ध केवल ज्ञान प्रदान करना या सूचनाएं प्रदान करना
मात्र नहीं है, बल्कि भाषा सीखने वालों को उपरोक्त चारों कौशलों में दक्ष
बनाना है। श्रवण एवं पठन कौशल ग्राह्यात्मक कौशल तथा अन्य दोनों
याचिक एवं लेखन कौशल अभिव्यंजनात्मक कौशल कहे जाते हैं।
5.1 श्रवण कौशल का अर्थ
• श्रवण कौशल (Listening Skill) का सम्बन्ध ‘कर्ण’ अर्थात् कानों से
है। श्रवण शब्द का अर्थ सामाजिक प्रसंग में सुनने से ग्रहण किया जाता
है। छात्र कविता, कहानी, भाषण, वाद-विवाद, वार्तालाप आदि का ज्ञान
सुनकर ही प्राप्त करता है और उसका अर्थ भी ग्रहण करता है।
• यदि छात्र की श्रवण-इन्द्रियों में दोष है, तो वह न भाषा के वाचिक कौशल
को सीख सकता है और न ही बोलकर अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कर
सकता है। अत: उसका भाषा ज्ञान शून्य के बराबर ही रहेगा। क्योंकि बालक
सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा ज्ञान अर्जित करता है।
5.1.1 श्रवण कौशल शिक्षण का महत्त्व
श्रवण कौशल शिक्षण का महत्त्व निम्न प्रकार वर्णित है
• बच्चा जन्मोपरान्त ही सुनने लग जाता है। ये ध्वनियाँ उसके मन-मस्तिष्क पर
अंकित हो जाती हैं और बच्चे के भाषा ज्ञान का आधार बनती हैं। अच्छी
प्रकार से सुनने के कारण ही बालक ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को समझ
पाता है।
• श्रवण-कौशल ही अन्य भाषायी कौशलों को विकसित करने का प्रमुख
आधार बनता है।
• इससे ध्वनियों के सूक्ष्म अन्तर को पहचानने की क्षमता विकसित होती है।
इसे अध्ययन की आधारशिला भी कहा जाता है। इससे वाचन कौशल का
विकास होता है।
• इससे लेखन कौशल के विकास में भी सहायता मिलती है। यह व्यक्तित्व के
विकास में भी सहायक है।
5.1.2 श्रवण कौशल शिक्षण के उद्देश्य
• श्रुत सामग्री को भली-भाँति समझकर/सुनकर अर्थ ग्रहण करने की योग्यता
का विकास करना।
• छात्रों में भाषा व साहित्य के प्रति रुचि पैदा करना।
• छात्रों को साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने व सुनने के लिए प्रेरित करना।
• श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की योग्यता विकसित करना।
• धैर्यपूर्वक सुनना, सुनने के शिष्टाचार का पालन करना।
• ग्रहणशीलता की मन:स्थिति बनाए रखना। शब्दों, मुहावरों व उक्तियों का
प्रसंगानुकूल भाव व अर्थ समझ सकना।
• किसी भी श्रुत सामग्री को मनोयोगपूर्वक सुनने की प्रेरणा प्रदान करना।
• श्रुत सामग्री के विषय में महत्त्वपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी विचारों भावों एवं तथ्यों का
चयन करने की क्षमता विकसित करना।
• छात्रों की मौलिकता में वृद्धि करना।
• छात्रों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास करना।
• स्वराघात, बलाघात व स्वर के उतार-चढ़ाव के अनुसार अर्थ ग्रहण करने की
योग्यता का विकास करना।
• भावानुभूति कर सकना, भावाभिव्यक्ति के ढंग को समझ सकना।
• भावों, विचारों व तथ्यों का मूल्यांकन कर सकना।
6.1.3 श्रवण कौशल की शिक्षण विधियाँ
1. सस्वर वाचन
छात्र अध्यापक द्वारा किए गए आदर्श वाचन और कक्षा में किसी अन्य छात्र
द्वारा किए जाने वाले अनुकरण वाचन को ध्यानपूर्वक सुनकर शुद्ध उच्चारण,
यति, गति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान प्राप्त करता है।
2. प्रश्नोत्तर विधि
कक्षा-कक्ष शिक्षण के दौरान अध्यापक पठित सामग्री को आधार बनाकर
छात्रों से प्रश्न पूछता है, छात्रों के उत्तर से इस तथ्य का मूल्यांकन हो जाता है
कि छात्रों ने सुनकर विषय-वस्तु को ग्रहण किया है या नहीं। पठित सामग्री
के आधार पर प्रश्न पूछने से छात्र सावधान भी हो जाएंगे और कक्षा में पढ़ाई
गई बातों को ध्यानपूर्वक सुनेंगे।
3. कहानी कहना व सुनना विधि
अध्यापक बच्चों को कहानी सुनाए और बाद में उसी कहानी को बच्चों से
सुने। इससे पता लग जाएगा कि छात्रों ने कहानी सुनी या नहीं। कहानी के
द्वारा बच्चों का ध्यान सुनने की तरफ आकर्षित किया जा सकता है।
4. श्रुतलेख विधि
वैसे तो श्रुतलेख (Dictation) लेखन कौशल को विकसित करने का साधन
है, परन्तु इसकी सहायता से श्रवण कौशल को भी विकसित किया जा सकता
है। श्रुतलेख सुनकर लिखना होता है, जो छात्र ध्यान से सुनेगा वह पूरी
सामग्री को लिख लेगा, जो छात्र ध्यान से नहीं सुनेगा उसके लेख के
बीच-बीच में शब्द या वाक्यांश छूट जाएँगे।
5. भाषण विधि
भाषण (Speech) श्रवण-कौशल का प्रशिक्षण देने में भी प्रयुक्त किया जाता
है। प्राय: यह मौखिक कौशल को विकसित करने का साधन है किन्तु छात्रों
को पहले यह बता दिया जाता है कि भाषण को ध्यान से सुनें। भाषण
समाप्ति के उपरान्त उनसे प्रश्न पूछे जाएंगे। प्रश्नों के उत्तरों से यह पता लग
जाता है कि छात्रों ने भाषण ध्यान से सुना है अथवा नहीं।
6.1.4 श्रवण कौशल के शिक्षण हेतु दृश्य-श्रवण सहायक सामग्री
श्रवण कौशल के शिक्षण हेतु दृश्य-श्रवण सहायक सामग्री निम्न प्रकार है
ग्रामोफोन एवं टेपरिकॉर्डर
ग्रामोफोन एवं टेपरिकॉर्डर सामान्यत: मनोरंजन के साधन के रूप में प्रयुक्त
होते हैं, लेकिन श्रवण-कौशल को विकसित करने के लिए टेपरिकॉर्डर का
प्रयोग रोचक साधन के रूप में किया जा सकता है। यह ज्यादा कीमती नहीं
है, इसलिए इसे विद्यालय में आसानी से खरीदा जा सकता है।
इसके द्वारा कविता, कहानी, महान् पुरुषों के भाषण, वार्ता आदि सुनाकर
बच्चों के श्रवण कौशल का विकास किया जा सकता है। टेपरिकॉर्डर के द्वारा
छात्रों को किसी भी समय एकत्रित किए गए भाषण, परिचर्चाएँ इत्यादि सुना
सकते हैं। तत्पश्चात् छात्रों से प्रश्न पूछ कर उनके श्रवण कौशल की भी जाँच
की जा सकती है।
रेडियो
रेडियो (Radio) के द्वारा आकाशवाणी से छात्रों के लिए तरह-तरह के
उपयोगी शैक्षिक एवं मनोरंजक कार्यक्रम समय-समय पर प्रसारित किए जाते
है। श्रवण कौशल को विकसित करने में रेडियो भी एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
चलचित्र
चलचित्र (Cinema) में आवाज सुनाई देने के साथ-साथ दृश्य भी दिखाई देते
है। बच्चे हर दृश्य को बहुत ध्यान से देखते हैं। अत: शैक्षिक चलचित्रों का
प्रयोग भाषा शिक्षण को रोचक बना देता है। इसके अतिरिक्त टेलीविजन पर
दिखाए जाने वाले कार्यक्रम भी श्रवण कौशल के विकास में सहायक होते हैं।
वीडियो
जैसे किसी भी वार्ता को टेप करके टेपरिकॉर्डर द्वारा भी सुनाया जाता है,
ठीक उसी तरह किसी कार्यक्रम को रिकॉर्ड कर वीडियो (Video) के द्वारा
टेलीविजन पर दिखाया जा सकता है। प्रतिष्ठित विद्वानों के भाषण, वार्ता एवं
विभिन्न शैक्षिक कार्यक्रमों के कैसेट लाकर दिखाए जा सकते हैं उससे श्रवण
कौशल के साथ मौखिक कौशल विकसित करने में सहायता मिलती है।
कम्प्यूटर
आधुनिक युग विज्ञान का युग है। प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन में क्रान्ति ला दी
है। कम्प्यूटर (Computer) की सहायता से भी छात्र के श्रवण कौशल को
विकसित किया जा सकता है। प्रतिष्ठित व्यक्तियों के भाषण, वार्ता आदि का
वीडियो व अन्य शैक्षिक कार्यक्रम भी कम्प्यूटर द्वारा दिखाए जा सकते हैं।
6.2 मौखिक अभिव्यक्ति कौशल
मानव प्रधानतः अपनी अनुभूतियों तथा मनोवेगों की अभिव्यक्ति मौखिक भाषा
में ही करता है। लिखित भाषा तो गौण तथा उसकी प्रतिनिधि मात्र है, क्योंकि
भावों की अभिव्यक्ति का साधन साधारणत: उच्चरित भाषा ही होती है।
आधुनिक जनतान्त्रिक युग में जीवन की सफलता के लिए मौखिक
भाव-प्रकाशन या वाणी उतना ही आवश्यक और अनिवार्य है, जितना कि
स्वयं हमारा जीवन। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को प्रतिपल मौखिक
आत्माभिव्यक्ति की शरण लेनी पड़ती है।
6.2.1 मौखिक अभिव्यक्ति का महत्त्व
• मौखिक भाषा ही अभिव्यक्ति का सहज व सरलतम माध्यम है तथा भाषा
की शिक्षा मौखिक भाषा से प्रारम्भ होती है।
• मौखिक अभिव्यक्ति में अनुकरण और अभ्यास के अवसर बराबर मिलते
रहते हैं। मौखिक भाषा के प्रयोग में कुशल व्यक्ति, अपनी वाणी से जादू
जगा सकता है, लोकप्रिय नेताओं के भाषण इसी बात का प्रमाण है।
• मौखिक भाषा के द्वारा विचारों के आदान-प्रदान से नई-नई जानकारियाँ
मिलती हैं। अशिक्षित व्यक्ति बोलचाल के द्वारा ही ज्ञान-अर्जित करता है।
रोजमर्रा के कार्य-कलापों में मौखिक भाषा प्रयुक्त होती है।
• सामाजिक सम्बन्धों के सुदृढ़ बनाने में एवं सामाजिक जीवन में सामंजस्य
स्थापित करने में मौखिक भाषा की प्रमुख भूमिका होती है।
6.2.2 मौखिक भाव प्रकाशन शिक्षण के उद्देश्य
• बालकों का उच्चारण शुद्ध एवं परिमार्जित हो।
• छात्रों को शुद्ध उच्चारण, उचित स्वर, उचित गति के साथ बोलना
सिखाना। छात्रों को निस्संकोच होकर अपने विचार व्यक्त करने के योग्य
बनाना। छात्रों को व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करना सिखाना।
• छात्र सरल एवं मुहावरेदार भाषा का प्रयोग करना सीखें तथा बोलने में
विराम चिह्नों का ध्यान रखना सिखाना।
• विषयानुकूल व प्रसंगानुकूल शैली का प्रयोग करना सिखाना।
• छात्र में स्वाभाविक ढंग से परस्पर वार्तालाप करने की आदत विकसित
करना। छात्रों को धाराप्रवाह, प्रभावोत्पादक वाणी में बोलना सिखाना।
6.2.3 मौखिक अभिव्यक्ति की विशेषताएँ
स्वाभाविकता बोलने में स्वाभाविकता हो, बनावटी बोली का प्रयोग हास्यास्पद
हो सकता है। अस्वाभाविक भाषा वक्ता को अविश्वसनीय बना देती है।
स्वाभाविक भाषा विश्वसनीय होती है।
पष्टता मौखिक अभिव्यक्ति का दूसरा गुण है– स्पष्टता। बोलने में स्पष्टता
होना अति आवश्यक है। जो बात कही जाए वह स्पष्ट व साफ होनी चाहिए।
शुद्धता बोलते समय शुद्ध उच्चारण होना चाहिए अशुद्ध उच्चारण से अर्थ
का अनर्थ हो जाता है।
बोधगम्य मौखिक अभिव्यक्ति में सरल व सुबोध भाषा का प्रयोग करना
चाहिए।
सर्वमान्य भाषा अप्रचलित शब्दों के प्रयोग से वार्तालाप नीरस हो जाता है।
शिष्टता वार्तालाप करते समय शिष्टाचार का ध्यान रखना चाहिए। अशिष्टता
सम्बन्धों को बिगाड़ देती है। शिष्टता मौखिक भाव-प्रकाशन का एक अन्य
गुण है।
मधुरता मौखिक भाव-प्रकाशन का अन्य गुण है– मधुरता। कहा भी गया
है–कोयल काको देत है कागा काको लेत, वाणी के कारणेन मन सबको हर
लेत!’ मीठी वाणी का प्रयोग कर मनुष्य किसी (दुश्मन) को भी अपना बना
सकता है।
प्रवाहमयता विराम चिह्नों के उचित प्रयोग से अभिव्यक्ति में सम्यक् गति आ
जाती है। अत: मौखिक भाव-प्रकाशन में उचित प्रवाहमयता होनी चाहिए।
अवसरानुकूल मौखिक भाव-प्रकाशन की अन्य विशेषता है अवसरानुकूल
भाषा का प्रयोग। हर्ष, उल्लास, सुख-दुःख, दया, करुणा, सहानुभूति प्यार
आदि भावों को अवसर के अनुकूल व्यक्त करते हैं।
श्रोताओं के अनुकूल भाषा मौखिक अभिव्यक्ति की अन्य महत्त्वपूर्ण
विशेषता यह है कि सुनने वाले कौन हैं? किस स्तर के हैं? उसके अनुकूल
ही भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
6.2.4 मौखिक अभिव्यक्ति कौशल की शिक्षण विधियाँ
मौखिक अभिव्यक्ति कौशल की शिक्षण विधियाँ निम्न प्रकार हैं
वार्तालाप
शिक्षण सामग्री या पाठ्य विषय पढ़ाते हुए या अन्य मौकों पर छात्रों के साथ
अध्यापक वार्तालाप करते हैं। अतः शिक्षक को चाहिए कि वह प्रत्येक छात्र
को वार्तालाप (Conversation) में भाग लेने के लिए प्रेरित करें। वार्तालाप
का विषय छात्रों के मानसिक, बौद्धिक स्तर के अनुसार ही होना चाहिए।
सस्वर वाचन
पाठ पढ़ाते समय पहले शिक्षक को स्वयं आदर्श वाचन करना चाहिए, बाद में
कक्षा के छात्रों से अनुकरण वाचन या सस्वर वाचन कराना चाहिए। सस्वर
वाचन से छात्रों की झिझक व संकोच खत्म होता है।
प्रश्नोत्तर
सामान्य विषयों पर या पाठ्य-पुस्तकों से सम्बन्धित पाठों पर प्रश्न पूछने
चाहिए। अगर छात्रों का उत्तर अपूर्ण या अशुद्ध है, तो सहानुभूति पूर्ण ढंग से
उत्तर को पूर्ण व शुद्ध कराया जाए।
कहानी सुनाना
मौखिक भाव-प्रकाशन विकसित करने की एक विधि कहानी सुनाना (Story
Telling) भी है। छोटे बच्चे कहानियाँ सुनना पसन्द करते हैं। अत: अध्यापक
को पहले स्वयं कहानी सुनानी चाहिए। बाद में छात्रों से कहानी सुननी चाहिए।
चित्र वर्णन
प्रायः छोटी कक्षाओं के बच्चे चित्र देखने में रुचि लेते हैं। उदाहरणार्थ ‘गाय’
का चित्र दिखा कर गायों के बारे में छात्रों से पूछा जा सकता है व छात्रों को
बताया जाता है। इसी प्रकार चित्र की सहायता से कहानी भी सुनाई जा
सकती है।
कविता सुनना व सुनाना
छोटे बच्चे कविता या बालोचित गीत सुनाने व सुनने में काफी रुचि लेते हैं
अतः कविताएँ कण्ठस्थ कराके उन्हें कविता पाठ के लिए प्रेरित करना
चाहिए। अत: कविता पाठ मौखिक भाव-प्रकाशन की शिक्षा देने का अन्य
उपयोगी साधन है।
वाद-विवाद
बालकों के मानसिक व बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर वाद-विवाद
करवाया जा सकता है। अपने विचारों का तर्कपूर्ण ढंग से प्रतिपादन करने का
प्रशिक्षण देने के लिए वाद-विवाद (Debate) एक उत्तम साधन है।
पाठ का सार
पाठ्य-पुस्तक के किसी पाठ या रचना को पढ़कर छात्र से उस पाठ का सार
(Summary of Chapter) सुनना मौखिक अभिव्यक्ति का अन्य उपयोगी
साधन है।
भाषण
‘भाषण’ (Lecture) भाव-प्रकाशन का एक सशक्त साधन है, परन्तु ‘भाषण’
छात्रों के मानसिक एवं बौद्धिक स्तर के अनुकूल होना चाहिए।
नाटक प्रयोग
नाटक (Drama) द्वारा भावाभिव्यक्ति का अच्छा अभ्यास हो जाता है।
रंगशाला में बालक को आंगिक, वाचिक एवं भावों के अभिनय की दीक्षा
सफलतापूर्वक मिल सकती है।
स्वतन्त्र आत्मप्रकाशन
बालकों को विभिन्न घटनाओं दृश्यों या व्यक्तिगत जीवन से जुड़े अनुभव
सुनाने का अवसर देकर अध्यापक मौखिक भाषा का अभ्यास करा सकता है।
6.2.5 मौखिक भाव प्रकाशन से सम्बन्धित शिक्षक की सावधानियाँ
• बच्चों की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए स्वर यन्त्रों को साधा जाए। यदि
प्राकृतिक कारणों से बालक शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाता है, तो उसके
माता-पिता को सूचित करना चाहिए एवं डॉक्टरों से उचित चिकित्सा
करवानी चाहिए।
• शिक्षक स्वयं बोलने का दृष्टान्त पेश करें, जिसमें तेजी, शीघ्रता व क्रोध
न हो।
• बालकों में किसी प्रकार का संकोच न आने पाए।
बोलने में कठिनाई अनुभव करने वाले छात्रों को अधिक-से-अधिक बोलने
व पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए। जिससे उनमें धीरे-धीरे साहस व
स्वावलम्बन का विकास हो।
• कई बार बच्चा मनोवैज्ञानिक कारणों से भी हकलाने लगता है और अशुद्ध
उच्चारण की आदत पड़ जाती है। अत: बच्चे के मन से भय, झिझक की
भावना निकाल कर अभ्यास द्वारा यह कठिनाई दूर की जा सकती है।
• भाषा क्षेत्रीयता प्रान्तीयता व व्याकरण दोषों से रहित हो। बोलते समय
सस्वरता व भावानुसार वाणी के उतार चढ़ाव पर भी ध्यान देना चाहिए।
6.3 पठन कौशल
सामान्यत: पठन कौशल का अर्थ भाषा की लिपि को पहचान कर उच्चरित
करना तथा अर्थ ग्रहण करना है। पठन कौशल (Reading Skill) के महत्त्व
को स्वीकार करते हुए भाषाविदों ने उसे जहाँ मनोवैज्ञानिक पक्ष से जोड़ने का
प्रयास किया है, वहीं इसे शारीरिक पक्ष से भी जोड़ा है।
पठन कौशल स्वयं में अर्थ ग्रहण का कौशल माना गया है। यही कारण है कि
भाषा शिक्षण के सन्दर्भ में पठन कौशल पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता
है, क्योकि सभी विषयों का ज्ञानार्जन इसी कौशल पर आधरित होता है।
भाषा शिक्षण की प्रक्रिया में छात्र इससे पूर्व श्रवण कौशल तथा मौखिक
अभिव्यक्ति से परिचित हो चुका होता है। इस कौशल के अन्तर्गत सुनी हुई
ध्वनि को छपे हुए लिपि प्रतीकों के साथ सम्बन्ध स्थापित कर सस्वर अथवा
मौन रूप से पढ़ते हुए उसमें निहित भावों एवं विचारों को ग्रहण करना
सीखता है। इस प्रकार पठन कौशल, श्रवण कौशल एवं मौखिक अभिव्यक्ति
कौशल पर आधारित है।
6.3.1 पठन के प्रकार
पठन के दो प्रकार हैं– सस्वर पठन एवं मौन पठन।
1. सस्वर पठन Recitation Reading
स्वर सहित पढ़ते हुए अर्थ ग्रहण करने को सस्वर पठन कहा जाता है। यह
पठन की प्रारम्भिक अवस्था होती है। वर्णमाला के लिपिबद्ध वर्गों की पहचान
सस्वर पठन के द्वारा ही कराई जाती है।
सस्वर पठन में निम्न गुण पाए जाते है
• सस्वर पठन भावानुकूल करना चाहिए।
• सस्वर पठन आदि करते समय विराम चिह्नों का ध्यान रखना चाहिए।
• सस्वर पठन करते समय शुद्धता एवं स्पष्टता का ध्यान रखना चाहिए।
• स्वर में यथा सम्भव स्थानीय बोलियों का पुट नहीं होना चाहिए।
• सस्वर पठन में आत्मविश्वास का होना आवश्यक है।
सस्वर पठन को पुन: दो भागों में विभाजित किया गया है-
(i) वैयक्तिक पठन (Individual Reading) एक व्यक्ति द्वारा किए जाने
वाले सस्वर पठन को व्यक्तिगत पठन कहते हैं। माध्यमिक कक्षाओं में
पठन प्राय: वैयक्तिक ढंग से होता है। शिक्षक सुनकर छात्रों की
उच्चारण सम्बन्धी त्रुटियों का निवारण करता है। इस विधि में पठन
दोषों का निदान सरलता से हो जाता है और उपचारात्मक शिक्षण के
लिए व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने में शिक्षक को सरलता होती है।
(ii) सामूहिक पठन (Group Reading) दो-या-दो से अधिक छात्रों द्वारा
किए जाने वाले पठन को सामूहिक पठन कहते है। इस पठन से बच्चों
(छात्रों) की झिझक दूर होती है। उनमें मौखिक अभिव्यक्ति के लिए
आत्मविश्वास का संचार पैदा होता है। सामूहिक पठन 13-14 वर्ष की
आयु तक के बालकों के लिए ही किया जाए। छात्रों की संख्या
अधिक न हो, ताकि पड़ोसी कक्षा की शान्ति भंग न हो।
2. मौन पठन
लिखित सामग्री को चुपचाप बिना आवाज निकाले पढ़ना मौन पठन (Silent
Reading) कहलाता है।
मौन पठन का महत्व निम्न प्रकार है
• मौन पठन में थकान कम होती है, क्योंकि इस में वाग्यन्त्रों पर जोर नहीं
पड़ता। मौन वाचन में नेत्र तथा मस्तिष्क सक्रिय रहते हैं।
• मौन पठन के समय पाठक एकाग्रचित्त होकर व ध्यान केन्द्रित करके
पढ़ता है।
• मौन पठन में समय की बचत होती है। श्रीमती ग्रे एवं रीस के एक
परीक्षण द्वारा यह पता चलता है कि कक्षा छह के बालक एक मिनट में
सस्वर पठन में 170 शब्द बोलते हैं और मौन पठन में इतने समय में
210 शब्द बोलते हैं।
• मौन पठन कक्षा में अनुशासन बनाए रखने में सहायक है। चिन्तन करने में
मौन पठन सहायक है।
• स्वाध्याय की रुचि जागृत करने में मौन पठन सहायक है। गहन अध्ययन
वही व्यक्ति कर सकता है, जिसे मौन पठन का अभ्यास हो।
मौन पठन के उद्देश्य
• पठित सामग्री के केन्द्रीय भाव को समझना
• अनावश्यक स्थलों को छोड़ते हुए, मूल तथ्यों का चयन करना।
• पठित सामग्री का निष्कर्ष निकालना।
• पठित सामग्री पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दे सकना।
• भाषा एवं भाव सम्बन्धी कठिनाइयाँ सामने रख सकना।
• शब्दों का लक्ष्यार्थ और व्यंग्यार्थ जान लेना।
• अनुक्रमणिका, परिशिष्ट, पुस्तक-सूची आदि के प्रयोग की योग्यता प्राप्त
कर लेना।
• उपसर्ग, प्रत्यय, सन्धि-विच्छेद द्वारा शब्द का अर्थ जान लेना।
मौन पठन के भेद
मौन पठन के दो भेद होते हैं
गम्भीर वाचन एवं द्रुत वाचन।
(i) गम्भीर पठन
• भाषा पर अधिकार करना
• विषय-वस्तु पर अधिकार करना
• नवीन सूचना एकत्र करना
• केन्द्रीय भाव की खोज करना
(ii) द्रुत पठन Rapid Reading
• सीखी हुई भाषा का अभ्यास करना
• साहित्य से परिचय प्राप्त करना
• आनन्द प्राप्त करना
• खाली समय का सदुपयोग
• द्रुत पठन के माध्यम से सूचनाएँ एकत्रित करना
6.3.2 पठन कौशल का महत्त्व
उन कौशल का महत्व निम्न प्रकार है
• पठन कौशल विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास में विशेष रूप से सहायक है।
विद्यार्थी पुस्तकों का अध्ययन करके अपने उच्चारण को शुद्ध कर
सकता है।
• पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें, समाचार-पत्र इत्यादि को पढ़कर विद्यार्थी अपने
शब्द भण्डार में वृद्धि कर सकता है।
• पठन कौशल द्वारा विद्यार्थी अपने व्याकरणिक ज्ञान में वृद्धि कर सकता है।
पठन कौशल विद्यार्थी के अन्य भाषायी कौशलों श्रवण, वाचन व लेखन में
निपुणता प्राप्त करने में सहायक है।
• पठन कौशल द्वारा विद्यार्थी पढ़ने के साथ चित्रों को भी देखता है, जिससे
उसके ज्ञान का सामान्यीकरण होता है।
• महान् व्यक्तियों की जीवनियाँ एवं आत्मकथाएँ पढ़कर व्यक्ति उनके आदर्श
गुणों का आत्मसात कर सकता है।
• आधुनिक युग ‘विशिष्टताओं’ का युग है, व्यक्ति जिस भी व्यवसाय में है
वह विशिष्टता प्राप्त करना चाहता है, नवीनतम जानकारी प्राप्त करना
चाहता है, यह जानकरी उसे पुस्तकों से मिलती है।
• ‘पठन’ मनोरंजन का महत्त्वपूर्ण साधन है। घर में, उपवन में, यात्रा में
व्यक्ति कहीं भी अपनी बोरियत को दूर करने के लिए, कहानी, पत्रिका
इत्यादि पढ़कर समय का सदुपयोग कर सकता है।
• सामाजिक, राजनीतिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए
आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकसित होना आवश्यक है। आलोचनात्मक
दृष्टिकोण के विकास के लिए अध्ययन अति आवश्यक है और ‘अध्ययन’
पठन का ही एक रूप है।
6.3.3 पठन कौशल के उद्देश्य
पठन कौशल के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं
• बालकों को स्वर के आरोह-अवरोह का ऐसा अभ्यास करा दिया जाए कि
वे यथाअवसर भावों के अनुकूल स्वर में लोच देकर पढ़ सकें।
• बालकों को पठन के माध्यम से शब्द-ध्वनियों का पूर्ण ज्ञान कराया जाए,
जिससे छात्र स्वरतंत्रियों का प्रयोग करके शुद्ध पठन कर सकें।
• पठन के माध्यम से शब्दों पर उचित बल दिया जाता है। छात्र पढ़कर
उसका भाव समझें तथा दूसरों को भी समझाएँ।
• पठन से अक्षर, उच्चारण, ध्वनि, बल, निर्गम, सस्वरता आदि का सम्यक्
संस्कार प्राप्त होता है। पठन के द्वारा छात्र विराम, अर्द्ध-विराम आदि चिह्नों
का प्रयोग समझ जाता है।
• पठन का उद्देश्य पठित अंश का भाव ग्रहण करना है।
• पठन का अन्य उद्देश्य त्रुटियों का निवारण भी है।
• पठन शब्द भण्डार में वृद्धि करता है।
• पठन से स्वाध्याय की प्रवृत्ति जागृत होती है।
6.3.4 पठन के आधार
• पठन के दो प्रमुख आधार हैं- पठन मुद्रा एवं पठन शैली। पठन मुद्रा का
अर्थ है बैठने, खड़े होने का ढंग, पठन सामग्री को हाथ में ग्रहण करने की
रीति तथा भावानुसार हाथ, पैर, नेत्र आदि अन्य अंगों का संचालन।
• भावानुसार स्वर के उचित आरोह-अवरोह के साथ पढ़ना वाचन शैली है।
पुस्तक के पाठ को पढ़ते समय बाएँ हाथ में पुस्तक को इस प्रकार बीच में
पकड़ना चाहिए कि ऊपर उसके बीच में मोड़ पर बाएँ हाथ का अँगूठा आ
जाए और दूसरा हाथ भावाभिव्यक्ति के लिए खुला छुटा रहे। बड़ी पुस्तक
को दोनों हाथों से पकड़ा जा सकता है। पढ़ते समय दृष्टि पुस्तक पर ही न
रहे, वरन छात्रों की ओर भी देख लेना चाहिए।
6.3.5 पठन की विशेषताएँ
पठन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं
• प्रत्येक अक्षर को शुद्ध तथा स्पष्ट उच्चारित करना। पठन में सुन्दरता के
साथ प्रवाह बनाए रखना।
• मधुरता, प्रभावोत्पादकता तथा चमत्कारपूर्ण ढंग से आरोह-अवरोह के साथ
पढ़ना। प्रत्येक शब्द को अन्य शब्दों से अलग करके उचित बल तथा
विराम के साथ पढ़ना।
6.3.6 पठन कौशल की शिक्षण विधियाँ
पठन कौशल की प्रमुख शिक्षण विधियाँ निम्न हैं
शब्द तत्त्व पर आधारित विधियाँ
1. वर्णबोध विधि (Alphabetic Method) इस विधि में पहले छात्रों
को वर्णों का ज्ञान कराया जाता है। वर्गों में भी स्वर पहले और
व्यंजन बाद में सिखाए जाएँ फिर मात्राओं का ज्ञान कराया जाए।
मात्राओं के उपरान्त संयुक्ताक्षरों की जानकारी दी जाए। यह विधि
मनोवैज्ञानिक नहीं है। इस का आधार यह है कि जब तक बालक को
अक्षर ज्ञान नहीं होगा, तब तक वह उच्चारण या पठन नहीं सीख
सकता है।
2. ध्वनि साम्य विधि (Sound Equity Method) यह विधि वर्णबोध
विधि का संशोधित रूप है, इसमें समान उच्चारण वाले शब्दों को
साथ-साथ सिखाया जाता है।
3. स्वरोच्चारण विधि (Intonation Method) इस विधि में अक्षरों
एवं शब्दों को उनकी स्वर ध्वनि के अनुसार पढ़ाया जाता है। इसमें
बारहखड़ी को आधार माना जाता है; जैसे–क, का , कि, की, कु,
कू, के, के, को, को, कं, कः। इसमें स्वर के बिना व्यंजन नहीं सिखा
सकते। यह विधि प्रगतिशील एवं मनोवैज्ञानिक नहीं है।
अर्थ ग्रहण पर आधारित विधियाँ
अर्थ ग्रहण पर आधारित विधियाँ निम्न प्रकार हैं
1. देखो और कहो विधि (Look and Say Method) इस विधि में
शब्द से सम्बन्धित वस्तु या चित्र दिखाकर पहले शब्द का ज्ञान
कराया जाता है। चित्र के नीचे वस्तु का नाम लिखा होता है। चित्र
परिचित होने के कारण बच्चे आसानी से शब्द से साहचर्य स्थापित
कर लेते हैं। अध्यापक का अनुकरण करते हुए बच्चे शब्द का
उच्चारण करते हैं। कई बार देखने-सुनने और बोलने से वर्णों के
चित्र मस्तिष्क पर अंकित हो जाते हैं। यह विधि मनोवैज्ञानिक है।
इसमें पूर्ण से अंश की ओर, ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा सरल से
जटिल की ओर आदि शिक्षण सूत्रों का पालन होता है।
इस विधि में सभी शब्दों के चित्र उपस्थित करना असम्भव है। बच्चे
चित्र से साहचर्य स्थापित कर लेते हैं। चित्र के अभाव में शब्द पढ़ना
कठिन हो जाता है।
2. वाक्य विधि (Sentence Method) इस मत के प्रतिपादकों का मत है
कि बालक वाक्य या वाक्यांशों में बोलता है। इसकी इकाई वाक्य है
शब्द नहीं, इसलिए प्रारम्भ से ही बालको को वाक्यों से ही पढ़ना शुरू
कराना चाहिए। यह विधि मनोवैज्ञानिक है। पहले वाक्य फिर शब्द, फिर
वर्ण- इस क्रम से बच्चों को वाचन का अभ्यास कराया जाता है।
3. कहानी विधि (Story Telling Method) इस विधि में छोटे-छोटे
वाक्यों से निर्मित कहानी चार्ट व चित्रों के माध्यम से बच्चों के समक्ष
प्रस्तुत की जाती है। शिक्षक इस कहानी को कक्षा में कहता है। इसके
बाद शिक्षक कहानी को श्यामपट्ट पर लिखता है व उसको पढ़ाता है।
विद्यार्थी शिक्षक का अनुकरण करते हैं। वाक्य के विश्लेषण के माध्यम
से छात्र शब्द एवं वर्णों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह वाक्य विधि का
परिष्कृत रूप है।
4. अनुकरण विधि (Imitation Method) यह विधि ‘देखो और कहो’
विधि का दूसरा स्वरूप है। इसमें अध्यापक एक-एक शब्द बालकों के
समक्ष कहता है और छात्र उसे दोहराते हुए अनुकरण करते हैं। इस
प्रकार छात्र शब्द-ध्वनि का उच्चारण एवं पढ़ना सीखते हैं।
5. सम्पर्क विधि (Interactive Method) इस विधि का प्रचार
शिक्षाविद् मारिया मॉण्टेसरी ने किया था। इसमें पहले बालकों को
चित्र, खिलौने, वस्तुओं आदि से परिचित कराते हैं। उनके आगे उन
वस्तुओं के कार्ड रखते हैं। फिर कार्डों को आपस में मिला देते हैं और
बच्चों को कहा जाता है, जो कार्ड जिस वस्तु से सम्पर्क रखते हैं,
उसके आगे पुनः रख दें। इस सम्पर्क प्रणाली के अभ्यास से धीरे-धीरे
छात्र शब्द व वर्ण से परिचित हो जाते हैं।
5.3.7 पठन सम्बन्धी त्रुटियाँ
पठन सम्बन्धी प्रमुख त्रुटियाँ निम्न प्रकार हैं
• अटक-अटक कर पढ़ना
• पढ़ते समय अनुचित मुद्रा, पुस्तक को आँखों के सन्निकट या दूर रखना
• अशुद्ध उच्चारण
• पढ़ने में गति का न होना
• दृष्टि दोष से अक्षरों का ठीक दिखाई न देना
पाठ्य सामग्री का कठिन होना
• अक्षर या संयुक्ताक्षरों सम्बन्धी त्रुटियाँ
• भावानुकूल आरोह-अवरोह का अभाव
• पठन सम्बन्धी मार्ग-दर्शन का अभाव
6.3.8 पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण
पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण निम्न प्रकार से किया जा सकता है
1. आवृत्ति-पुनरावृत्ति (Frequent Repetation) इसका अभिप्राय यह
है कि बार-बार आवृत्ति या पुनरावृत्ति के माध्यम से अभ्यास कराकर
पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण किया जा सकता है।
2. वातावरण परिवर्तन (Change in Environment) बच्चों को सिखाई
जाने वाली भाषा हेतु उपयुक्त वातावरण उपलब्ध करवाकर पठन
सम्बन्धी दोषों का निवारण किया जा सकता है।
3. चिकित्सा विधि (Healing Method) यदि किसी अंग में कोई
खराबी के कारण या भय, घबराहट आदि के कारण बच्चों में पढ़ने
सम्बन्धी कठिनाई हो, तो उसे चिकित्सकों की मदद से दूर किया जा
सकता है।
4. छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल पाठ्य-सामग्री का चयन
(Selection of Teaching Material According to Mental Lend
of Children) बच्चों के पठन सम्बन्धी दोषों का निवारण तभी
सम्भव है, जब छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल पाठ्य-सामग्री का
चयन किया जाए।
5. आदर्श पठन (Ideal Reading) जब अध्यापक कक्षा में छात्रों के
समक्ष स्वयं पुस्तक पढ़ते समय गति, यति, आरोह-अवरोह, स्वराघात
व बलाघात को ध्यान में रखकर कक्षा में प्रस्तुत करता है तो उसे
आदर्श पठन कहते हैं।
6. अनुकरण पठन (Imitation Method) अध्यापक का अनुकरण
करते हुए छात्रों द्वारा पुस्तक पढ़ना अनुकरण पठन कहलाता है।
अनुकरण पठन का उद्देश्य शिक्षक द्वारा किए गए आदर्श पठन का
अनुकरण करना है।
6.4 लेखन कौशल
मौखिक रूप के अन्तर्गत भाषा का ध्वन्यात्मक रूप एवं भावों की मौखिक
अभिव्यक्ति आती है। जब इन ध्वनियों को प्रतीकों के रूप में व्यक्त किया
जाता है और इन्हें लिपिबद्ध करके स्थायित्व प्रदान करते हैं, तो वह भाषा का
लिखित रूप कहलाता है। भाषा के इस प्रतीक रूप की शिक्षा, प्रतीकों को
पहचान कर उन्हें बनाने की क्रिया अथवा ध्वनि को लिपिबद्ध करना, लिखना
और इसमें दक्षता प्राप्त करना ही लेखन कौशल है।
6.4.1 लेखन शिक्षण के उद्देश्य
लेखन शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं
• छात्र सोचने एवं निरीक्षण करने के उपरान्त भावों को क्रमबद्ध रूप में
लिखकर व्यक्त कर सकेंगे।
• छात्र सुपाठ्य लेख लिख सकेंगे। शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिख सकेंगे।
• छात्र ध्वनि, ध्वनि-समूहों, शब्द, सूक्ति, मुहावरों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे।
विराम-चिह्नों का यथोचित प्रयोग कर सकेंगे। अनुलेख, सुलेख तथा
श्रुतलेख लिख सकेंगे। व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग करने में
सक्षम होंगे।
• वह वाक्यों में शब्दों, वाक्यांशों तथा उपवाक्यों का क्रम अर्थानुकूल रख
सकेंगे। विभिन्न रचना वाले वाक्यों का शुद्ध गठन करेंगे। विद्यार्थी लिखित
अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों की तकनीक का विधिवत् पालन करने में
समर्थ होगे। वह लिखित अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों के माध्यम से
अभिव्यक्ति कर पाने में सक्षम होंगे।
6.4.2 लेखन शिक्षण के गुण
लेखन शिक्षण के प्रमुख गुण निम्न हैं
• लेखन, सुन्दर, स्पष्ट एवं सुडौल हो
• उसमें प्रवाहशीलता एवं क्रमबद्धता हो
• विषय (शिक्षण) सामग्री उपयुक्त अनुच्छेदों में विभाजित हो
• भाषा एवं शैली में प्रभावोत्पादकता हो
• भाषा व्याकरण सम्मत हो
अभिव्यक्ति संक्षिप्त, स्पष्ट तथा प्रभावोत्पादक हो
16.4.3 लेखन शिक्षण की प्रविधियाँ
लेखन शिक्षण की प्रमुख प्रविधियाँ निम्न हैं
मॉण्टेसरी विधि (Montessori Method) मॉण्टेसरी ने लिखना
सिखाने में आँख, कान और हाथ तीनों के समुचित प्रयोग पर बल
दिया है। उनके मतानुसार, पहले बालक को लकड़ी अथवा गत्ते या
प्लास्टिक के बने अक्षरों पर अंगुली फेरने को कहा जाए, फिर उन्हें
पेन्सिल को उन्हीं अक्षरों पर घुमवाना चाहिए। पेन्सिल प्राय: रंगीन
होनी चाहिए। इसी प्रकार बालक अक्षरों के स्वरूप से परिचित होकर
उन्हें लिखना सीख जाता है।
2. रूपरेखानुकरण विधि (Line Simulation Method) इस विधि में
शिक्षक श्यामपट्ट या स्लेट पर चॉक या पेन्सिल से बिन्दु रखते हुए
शब्द या वाक्य लिख देता और छात्रों से उन निशानों पर पेन्सिल से
लिखने के लिए बोलता है, जिससे शब्द, वाक्य या वर्ण उभर आए।
इस प्रकार अभ्यास के माध्यम से वह वर्गों को लिखना सीख जाता
है।
3. स्वतन्त्र अनुकरण विधि (Independent Simulation Method)
शिक्षक इस प्रविधि में श्यामपट्ट, अभ्यास पुस्तिका या स्लेट पर
अक्षरों को लिख देता है। छात्रों को कहा जाता है कि उन अक्षरों को
देखकर उनके नीचे स्वयं उसी प्रकार के अक्षर बनाए। प्रारम्भ में
बच्चे इस विधि से लिखना सीखते हैं।
4. जेकटॉट विधि (Jektot Method) इस प्रणाली (विधि) में शिक्षक
बालकों द्वारा पढ़े हुए वाक्य को स्वयं लिखकर छात्रों को लिखने के
लिए दे देता है। छात्र एक-एक शब्द लिखकर अध्यापक द्वारा
लिखित शब्द से मिलाते हुए स्वयं संशोधन करते चलते हैं और पूरा
वाक्य लिखने के पश्चात् शिक्षक मूल वाक्य को बिना देखे हुए उन्हें
लिखने को कहता है।
5. लेखन अभ्यास (Writing Practice) लेखन अभ्यास को आगे तीन
श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-सुलेख, अनुलेख एवं श्रुतलेख।
6. सुलेख (Writing) सुन्दर लेख को सुलेख कहते हैं। लिखना सिखाते
वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए, छात्रों की लिखावट खराब न
होने पाए। सुलेख शिक्षित व्यक्ति का आवश्यक लक्षण है।
7. अनुलेख (Post Script) सुन्दर लिखावट के लिए प्रतिलेख और
अनुलेख का भी आश्रय लिया जाता है। अनुलेख का अर्थ है – किसी
लिखावट के पीछे या बाद में लिखना अनुलेख के लिए अभ्यास
पुस्तिका की प्रथम पंक्ति में मोटे और सुन्दर ढंग के अक्षर, शब्द या
वाक्य लिखे होते हैं, उनके नीचे की पंक्तियाँ रिक्त रहती हैं। इस
विधि में छात्र छपे हुए अक्षरों के नीचे देखकर स्वयं अक्षर बनाता है।
अनुलेख का प्रारम्भिक कक्षाओं में विशेष महत्त्व है। कक्षा तीन तक
अनुलेख का अभ्यास कराना चाहिए।
8. श्रुतलेख (Dictation) ‘श्रुतलेख’ का अर्थ है–सुना हुआ लेख इस
विधि में अध्यापक बोलता है और छात्र उसके कथन को सुनकर
अभ्यास-पुस्तिका या तख्ती पर लिखता जाता है। श्रुतलेख में सुन्दर
लिखावट का महत्त्व नहीं है। महत्त्व भाषा की शुद्धता का हो जाता है।
श्रुतलेख वर्तनी शिक्षण के लिए आवश्यक है। सुनकर लिखने में एक
निश्चित गति से लिखने का अभ्यास हो जाता है।
6.4.4 लेखन सिखाने में ध्यान देने योग्य बातें
लेखन सिखाते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए
1. बैठने का ढंग लिखते समय छात्रों की रीढ़ की हड्डी सीधी रहे।
झुककर लिखने की आदत न पड़ने पाए।
2. अभ्यास पुस्तिका की आँखों से दूरी छात्र अभ्यास पुस्तिका को
आँखों से लगभग 1 फुट की दूरी पर रखकर लिखें।
3. कलम पकड़ने की विधि पहली और दूसरी अंगुली के बीच में
कलम रखकर उसे अंगूठे से पकड़ना चाहिए, कलम की निब को
लगभग एक इंच से ऊपर पकड़ना चाहिए।
4. पढ़ना लिखने के साथ-साथ पढ़ना भी हो, नहीं तो लिखना निरर्थक
हो जाएगा।
5. उपयुक्त वातावरण समय, स्थान आदि की उपयुक्तता पर शिक्षक
को ध्यान रखना चाहिए।
6. सुडौल अक्षर छात्र अक्षरों को सुन्दर बनाने का प्रयत्न करें। अक्षर
पूरे लिखे जाएँ, तभी वह सुडौल होंगे।
7. शिरोरेखा शिरोरेखा अक्षर का आवश्यक अंग है। अत: इसका
प्रयोग किया जाना चाहिए।
8. बाएँ से दाएँ सभी वर्गों, वाक्यों के लिखने का क्रम बाएँ से दाएँ रहे।
9. सीधी लिखाई अध्यापक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि
वर्णो की खड़ी रेखाएँ तिरछी न होकर सीधी हों।
10. नमूना उपयुक्त हो अध्यापक द्वारा बनाए गए शब्द व अक्षर
(मॉडल) आदर्श हो, जिनके आधार पर छात्र लिख सके।
11. लिपि प्रतीक अनुस्वार, विसर्ग, हलन्त, मात्राओं के प्रयोग में
सावधानी रखनी चाहिए। छोटे-छोटे लिपि प्रतीकों की भूल से लेख
विकृत हो जाता है।
12. अभ्यास लिखना एक कला है, अत: छात्रों के बौद्धिक एवं मानसिक
स्तर को ध्यान में रखते हुए अभ्यास करवाएँ।
                                              अभ्यास प्रश्न
1. भाषा के आधारभूत कौशल
(1) हमेशा अर्जित किए जाते हैं
(2) सर्वथा पृथक् हैं
(3) अन्तः सम्बन्धित होते हैं
(4) क्रमबद्ध रूप से चलते हैं
2. स्वाभाविक अभिव्यक्ति, कल्पनाशीलता,
कौशल और सोच को विकसित करना
(1) भाषा शिक्षण का एकमात्र उद्देश्य है
(2) भाषा शिक्षण का उद्देश्य नहीं है
(3) भाषा शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है
(4) भाषा शिक्षण को किसी प्रकार की दिशा नहीं
देता
3. भाषा कौशलों के बारे में कौन-सा कथन
सही है?
(1) भाषा के कौशल केवल क्रमबद्ध रूप से ही
सीखे जाते हैं
(2) भाषा के कौशल परस्पर अन्तःसम्बन्धी हैं
(3) भाषा के कौशलों में से केवल पढ़ना-लिखना
महत्त्वपूर्ण है
(4) भाषा के कौशलों में से केवल सुनना, बोलना
ही महत्त्वपूर्ण है
4. ग्राह्यात्मक कौशलों में शामिल हैं
(1) सुनना, बोलना
(2) बोलना, लिखना
(3) सुनना, पढ़ना
(4) पढ़ना, लिखना
5. ‘सुनना’ कौशल के बारे में कौन-सा कथन
उचित नहीं है?
(1) सुनना कौशल सबसे कम महत्त्वपूर्ण है
(2) सुनना कौशल मौखिक कौशल के अन्तर्गत
आता है
(3) सुनना कौशल अन्य कौशलों के विकास में
सहायक है
(4) सुनना कौशल का विकास भाषा के नियमों को
पहचानने, उनका निर्माण करने में सहायक है
6. निम्नलिखित में से कौन-सा श्रवण कौशल
शिक्षण का उद्देश्य है?
(1) श्रुत सामग्री के विषय के महत्त्वपूर्ण एवं
मर्मस्पर्शी विचारों, भावों एवं तथ्यों का चयन
करने की क्षमता प्रदान करना
(2) विद्यार्थियों में ध्वनियों, शब्दों का शुद्ध उच्चारण
तथा स्वर, गति, लय और प्रवाह के साथ
पदने की योग्यता विकसित करना
(3) छात्रों को साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेने
व सुनने के लिए प्रेरित करना
(4) उपरोक्त सभी
7. यदि छात्र की ………. इन्द्रियों में दोष है, तो
वह न भाषा सीख सकता है और न अपने
मनोभावों को अभिव्यक्त कर सकता है।
(1) पठन
(2) श्रवण
(3) दृश्य
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
8. श्रवण कौशल के शिक्षण के द्वारा
निम्नलिखित में से किस उद्देश्य की पूर्ति
की जा सकती है?
(1) छात्रों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास करना
(2) छात्रों में भाषा व साहित्य के प्रति रुचि पैदा
करना
(3) श्रुत सामग्री का सारांश ग्रहण करने की
योग्यता विकसित करना
(4) उपरोक्त सभी
9. निम्नलिखित में से कौन-सा श्रवण कौशल
शिक्षण का उद्देश्य नहीं है?
(1) सुनकर अर्थ ग्रहण करने की योग्यता का
विकास करना
(2) पूरी बात को सुनना न कि वक्ता के कथन के
सारांश को समझना
(3) श्रुत सामग्री के विषय को भली-भाँति समझने
की योग्यता उत्पन्न करना
(4) किसी भी श्रुत सामग्री को मनोयोग पूर्वक सुनने
की प्रेरणा प्रदान करना
10. निम्नलिखित में से कौन-सी शिक्षण विधि
श्रवण कौशल के शिक्षण में सर्वाधिक
उपयोगी है?
(1) प्रश्नोत्तर
(2) सस्वर वाचन
(3) भाषण
(4) उपरोक्त सभी
11. बोलना कौशल के विकास के लिए सबसे
अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है
(1) श्रुतलेख
(2) कथा श्रवण
(3) परस्पर वार्तालाप
(4) सुनी गई सामग्री का ज्यों का त्यों प्रस्तुतीकरण
12. परस्पर बातचीत मुख्यत:
(1) सुनने और बोलने के कौशलों के विकास में
सहायक है
(2) पढ़ने-लिखने में सहायक है
(3) समय की बर्बादी है
(4) अनुशासनहीनता को उत्पन्न करती है
13. मौखिक अभिव्यक्ति में निम्नलिखित में से
कौन-सी विशेषता होनी चाहिए?
(1) स्वाभाविकता
(2) स्पष्टता
(3) बोधगम्यता
(4) ये सभी
14. निम्नलिखित में से कौन-सा मौखिक
अभिव्यक्ति का महत्त्व नहीं है?
(1) रोजमर्रा के कार्य-कलापों में मौखिक भाषा
प्रयुक्त होती है
(2) भाषा की शिक्षा मौखिक भाषा से प्रारम्भ
होती है
(3) मौखिक भाषा के द्वारा नई-नई जानकारियाँ
मिलती हैं भले ही वह विचारों के आदान-प्रदान
में सहायक नहीं हो
(4) अशिक्षित व्यक्ति बोलचाल के द्वारा ही ज्ञान
अर्जित करता है
15. बोलना कौशल में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है.
(1) बोलने की तेज गति
(2) शुद्ध उच्चारण
(3) समझकर बोलना
(4) आँखों देखा वर्णन करना
16. मौखिक अभिव्यक्ति में निम्नलिखित में से
कौन-सी विशेषता नहीं होनी चाहिए?
(1) शुद्धता
(2) प्रवाहमयता
(3) श्रोताओं से काफी उच्च स्तर की भाषा का प्रयोग
(4) अवसरानुकूल
17. निम्नलिखित में से कौन-सा मौखिक
भाव-प्रकाशन शिक्षण का उद्देश्य नहीं है?
(1) बालकों का उच्चारण शुद्ध एवं परिमार्जित हो
(2) विषय की अनुकूलता से अधिक भाषा-शैली को
महत्त्व देना
(3) छात्रों को व्याकरण सम्मत भाषा का प्रयोग
करना सिखाना
(4) बोलने में विराम चिह्नों का ध्यान रखना
सिखाना
18. बच्चों की पठन कुशलता का विकास करने
में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है
(1) भाषिक संरचनाओं का अभ्यास
(2) अर्थ की अपेक्षा उच्चारणगत शुद्धता पर विशेष
ध्यान देना
(3) विभिन्न सन्दर्भो से जुड़ी सामग्री
(4) पाठय-पुस्तक में दिए गए अभ्यास
19. पढ़ना कौशल में……….. सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण है।
(1) उच्चारण की शुद्धता
(2) अर्थ ग्रहण करना
(3) लिपि चिह्नों की जानकारी
(4) द्रुत गति से पढ़ना
20. पाठ्य-वस्तु का भावपूर्ण पठन
(1) पठन की पहली और अनिवार्य शर्त है
(2) अर्थ को समझने में मदद करता है
(3) केवल कविताओं पर ही लागू होता है
(4) पठन का एकमात्र आदर्श रूप है
21. पढ़ने की कुशलता का विकास करने के
लिए जरूरी है कि
(1) बच्चों को शब्दार्थ जानने के लिए बाध्य किया
जाए
(2) बच्चों को विविध प्रकार की विषय सामग्री
उपलब्ध कराई जाए
(अ बच्चों को द्रुत गति से पढ़ने के लिए बाध्य
किया जाए
(4) बच्चों को बोल-बोलकर पढ़ने के लिए निर्देश
दिए जाए
22. आप सस्वर पठन में अनिवार्यतः किस
साहित्यिक विधा का समर्थन करेंगे?
(1) एकांकी का
(2) यात्रा वृत्तान्त का
(3) जीवनी का
(4) आत्मकथा का
23. मौन पठन में मुख्यत:
(1) शब्द भण्डार विकसित किया जाता है
(2) मन-ही-मन बुदबुदाते हुए पढ़ा जाता है
(3) महन अर्थ को आत्मसात करने का प्रयास
किया जाता है
(4) तेज गति से पाठ को पढ़ा जाता है
24. एकांकी पढ़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
(1) बच्चों से अलग-अलग पात्रों के संवाद पढ़वाए
जाएँ और फिर एकांकी का मंचन हो
(2) एकांकी को बच्चे घर से पढ़कर आएँ और
कक्षा में शिक्षक सवाल पूछें
(3) शिक्षक स्वयं पढ़ते हुए सवाल पूछते जाएँ
(4) शिक्षक स्वयं पढ़ें और बच्चे सुनें
25. पढ़ना कौशल में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है
(1) शब्दों एवं वाक्यों को शुद्ध रूप से उच्चारित
करना
(2) केवल अक्षर पहचान
(3) तेज गति से पदना
(4) सन्दर्मानुसार अर्थ ग्रहण करना
26. एकांकी पाठ मुख्यतः किसमें सहायता
करते हैं?
(1) वाक्य संरचना की जानकारी
(2) अभिनय की कुशलता
(3) लेखन-कौशल का विकास
(4) सन्दर्भ के अनुसार उधित उतार-चढ़ाव के
साथ बोलना
27.निम्नलिखित में से कौन-सा मौन पठन का
महत्त्व नहीं है?
(1) मौन वाचन में नेत्र तथा मस्तिष्क अक्रिय रहते
हैं
(2) मौन वाचन में थकान कम होती है क्योंकि
इसमें दाग्यन्त्रों पर जोर नहीं पड़ता
(3) मौन वाचन अवकाश का सदुपयोग करता है
(4) मौन वादन के समय पाठक एकाग्रचित्त होकर
ध्यान केन्द्रित कर पढ़ता है
28. निम्नलिखित में से किस कौशल में निपुण,
होने के बाद स्वराघात, बलाघात व स्वर के
उतार-चढ़ाव के अनुसार छात्र किसी कथन
को समझ सकता है?
(1) श्रवण कौशल
(2) पठन कौशल
(3) भाषण कौशल
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
29. उच्च प्राथमिक स्तर पर लेखन कौशल के
विकास का कौन-सा उद्देश्य सबसे कम
महत्त्वपूर्ण है?
(1) सुनी, समझी, पदी हुई बातों को सहज और
स्वाभाविक लेखन द्वारा अभिव्यक्त करने की
क्षमता का विकास करना
(2) सन्दर्भानुसार मुहावरे, लोकोक्तियों का प्रयोग
करते हुए लिखित अभिव्यक्ति को प्रभावी
बनाना
(3) प्रसिद्ध लेखकों की लेखन शैली की समीक्षा
करना
(4) सृजनात्मक लेखन द्वारा निज शैली का विकास
करना
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
30. भाषा के अभिव्यक्तात्मक कौशल हैं
                                          [CTET June 2011]
(1) सुनना, पढ़ना
(2) सुनना, बोलना
(3) बोलना, लिखना
(4) पदना, लिखना
31. भाषा कौशलों के सन्दर्भ में कौन-सा कथन
उचित है?                           [CTET June 2011]
(1) भाषा कौशलों के विकास में अभ्यास की अपेक्षा
भाषिक नियमों का ज्ञान जरूरी है।
(2) विद्यालय में केवल पढ़ना, लिखना कौशलों पर
ही बल देना चाहिए।
(3) बच्चे केवल सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना
कौशल क्रम से ही सीखते हैं।
(4) भाषा के चारों कौशल परस्पर अन्तः
सम्बन्धित हैं।
32. भाषा के अभिव्यक्तात्मक कौशल हैं
                                               [CTET June 2011]
(1) बच्चों की कल्पना-शक्ति व चिंतन शक्ति का
विकास होता है
(2) बच्चे प्रसन्न होते हैं
(3) बच्चे कक्षा में एकाग्रचित्त होकर शांत बैठते हैं
(4) बच्चे अनुशासित रहते हैं
33. बच्चों की मौखिक अभिव्यक्ति का विकास
करने के लिए सबसे कम प्रभावी तरीका
कौन-सा है?                                [CTET Jan 2012]
(1) संवाद-अदायगी
(2) व्याकरण-आधारित संरचना अभ्यास
(3) अपने अनुभवों का वर्णन
(4) बातचीत करना
34. पढ़ने का प्रारम्भ                 [CTET July 2013]
(1) वर्णमाला से होना चाहिए
(2) कहानियों से होना चाहिए
(3) कविताओं से होना चाहिए
(4) अर्थपूर्ण सामग्री से होना चाहिए
35. लिखना                             [CTET Feb 2014]
(1) एक बेहद जटिल प्रक्रिया है
(2) एक अनिवार्य कुशलता है, जिसे जल्दी प्राप्त
किया जाना है
(3) एक तरह की बातचीत है
(4) यह अत्यन्त यान्त्रिक प्रक्रिया है
36. भाषा कौशलों के सम्बन्ध में कौन-सा कथन
सही है?                                [CTET Feb 2014]
(1) भाषा के कौशल अन्त:सम्बन्धित होते हैं
(2) भाषा के सभी कौशलों को नए सिरे से सिखाने
की आवश्यकता होती है
(3) भाषा-कौशल एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हैं।
(4) भाषा के चारों कौशल एक क्रम में सीखे
जाते हैं
37. पढ़ना सीखने की प्रक्रिया में किसकी भूमिका
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है?          [CTET Sept 2014]
(1) भाषा-प्रयोगशाला की
(2) बाल-साहित्य के सार्थक प्रयोग की
(3) पाठ्य-पुस्तक की
(4) भाषा-परीक्षाओं की
38. भाषा-शिक्षण में बालक में मौखिक कौशल
के विकास के लिए …… सबसे कम
महत्त्वपूर्ण है।                       [CTET Feb 2015]
(1) किसी विषय पर चर्चा करना
(2) बच्चों की बात को धैर्य से सुनना
(3) प्रश्नों के उत्तर पूछना
(4) अपनी बात कहने का पूरा मौका देना
39. भाषायी कौशलों के सन्दर्भ में कौन-सा
कथन सत्य है?                 [CTET Feb 2015]
(1) भाषायी कौशल एक-साथ सीखे जाते हैं, क्रम
से नहीं
(2) भाषायी कौशल एक-दूसरे से स्वतन्त्र होते हैं
(3) भाषायी कौशल एक क्रम से सीखे जाते हैं
(4) भाषायी कौशल एक-दूसरे को प्रभावित नहीं
करते
40. भाषा की कक्षा में कहानी सुनाने का मूल
उद्देश्य है                             [CTET Sept 2015]
(1) बच्चों की कल्पनाशक्ति का विकास
(2) बच्चों में ‘सुनकर दोहराने’ की आदत का
विकास
(3) बच्चों को अनुशासन में रखना
(4) बच्चों का मनोरंजन करना
41. पढ़ने की संस्कृति के विकास के क्रम में
……….पठन को प्रोत्साहित किए जाने की
आवश्यकता है।                   [CTET Sept 2015)
(1) वैयक्तिक
(2) सस्वर
(3) मौन
(4) सामूहिक
42. लिखित भाषा का प्रयोग।          [CTET Feb 2016]
(1) केवल प्रतिवेदन-लेखन के लिए किया जाता है
(2) कार्यालयी कार्यों के लिए किया जाता है
(3) अपनी अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है
(4) केवल साहित्य सृजन के लिए किया जाता है
43. कविता-कहानियों पर चर्चा करने एवं प्रश्न
पूछने का उद्देश्य                 [CTET Feb 2016]
(1) भाषा सीखने की प्रक्रिया में स्वाभाविकता लाता है
(2) आकलन का काम करता है
(3) रोचकता और जोश लाता है
(4) अध्यापक के काम को सरल बनाता है।
44. पढ़ना सीखने के लिए कौन-सा उपकौशल
अनिवार्य नहीं है?                        [CTET Sept 2016]
(1) भावनात्मक सम्बन्ध
(2) वर्णमाला याद करने का कौशल
(3) अनुमान लगाने का कौशल
(4) भाषा की संरचना की समझ
                                            उत्तरमाला
1. (3) 2. (3) 3. (2) 4. (3) 5. (1) 6. (1) 7. (2) 8. (4) 9. (2) 10. (4)
11. (3) 12. (1) 13. (4) 14. (3) 15. (3)16. (3) 17. (2) 18. (2)
19. (2) 20. (2) 21. (2) 22. (1) 23. (3) 24. (1) 25. (4) 26. (4)
27. (1) 28. (1) 29. (3) 30. (3) 31. (4) 32. (1) 33. (2) 34. (1)
35. (2) 36. (1) 37. (2) 38. (3) 39. (1) 40. (1) 41. (3) 42. (3)
43 (1) 44. (1)
                                              ★★★

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