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CTET Notes in Hindi | उपचारात्मक शिक्षण | Remedial Teaching

CTET Notes in Hindi | उपचारात्मक शिक्षण | Remedial Teaching

उपचारात्मक शिक्षण
                                     Remedial Teaching
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से यह
ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 3 प्रश्न, वर्ष 2012 एवं
2013 में 1 प्रश्न, वर्ष 2014 में 2 प्रश्न, वर्ष 2015 में 4 प्रश्न तथा वर्ष
2016 में 3 प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्न मुख्यतया भाषायी कौशलों से सम्बन्धित
विकारों, उनसे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली बाधा एवं
उपचारात्मक शिक्षण में अध्यापक की भूमिका इत्यादि से सम्बन्धित होते हैं।
9.1 हिन्दी में उपचारात्मक शिक्षण
शैक्षणिक निदान का प्रयोजन ही उपचारी शिक्षण है। शैक्षणिक निदान द्वारा बालकों
की कठिनाइयों का पता लगाकर उन कठिनाइयों को दूर करने के लिए शिक्षक, जो
शिक्षण विधियाँ अपनाता है उसे उपचारी शिक्षण कहते हैं।
उपचारी शिक्षण के भी अनेक रूप हो सकते हैं-बालकों की कठिनाइयों का सामूहिक
रूप से निवारण और उचित अभ्यास, वैयक्तिक भेदों के आधार पर व्यक्तिगत रूप
से बालक की अशुद्धियों का निवारण, उपचार गृहों अथवा भाषा प्रयोगशालाओं में
बालकों के उच्चारण एवं भाषा सम्बन्धी प्रशिक्षण और अभ्यास।
9.1.1 निदानात्मक एवं उपचारी शिक्षण का महत्त्व
आधुनिक शिक्षण में ‘निदानात्मक एवं उपचारी शिक्षण’ एक नवीन प्रयोग है और
इससे उन बालकों को विशेष लाभ होता है, जो किन्हीं कारणों से सीखने की क्रिया
में पिछड़ जाते हैं और अपेक्षित प्रगति नहीं कर पाते।
• निदानात्मक शिक्षण द्वारा बालकों की सीखने सम्बन्धी कठिनाइयों का पता चल
जाता है।
• शिक्षण संबंधी कठिनाइयाँ एवं कारणों को दूर करने में समुचित शिक्षण प्रक्रिया
अपनाई जाती है, जिससे बालकों को अपनी शक्ति एवं योग्यतानुसार शैक्षिक प्रगति
करने का अवसर मिलता है।
• उपचारी शिक्षण द्वारा छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयाँ दूर होती हैं और इस क्रिया
से अन्य छात्रों के समय आदि की भी क्षति नहीं होती।
• शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में पिछड़े बालकों की हीन भावना दूर हो जाती है और वे
असमायोजन से बच जाते हैं साथ ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और
उनके व्यक्तित्व को समुचित विकास करने में सहायता मिलती है।
9.1.2 उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य
उपचारात्मक शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्न है
• विद्यार्थी के भाषा सम्बन्धी विभिन्न दोषों का निवारण करके उसे
सामाजिक दृष्टि से अधिक कुशल एवं योग्य बनाना।
• विद्यार्थी की ज्ञानपरक अशुद्धियों को दूर करना।
भाषिक व्याघात सम्बन्धी दोषों को दूर करना अर्थात् अपना मातृभाषा
के कारण अल्पप्राण-महाप्राण, घोष-अघोष के उच्चारण और इस
कारण लेखन में होने वाली त्रुटियों को दूर करना।
• विद्यार्थी में इस प्रकार की भाषायी आदतों अथवा व्यवहार को
विकसित करना, जो उस समय तक विद्यार्थी ने नहीं सीखी है।
• अनुचित भाषायी आदतों को दूर करना साथ ही मानक भाषा को
विकसित करके व्यवहार में स्थायित्व प्रदान करना।
9.1.3 उच्चारण में उपचारी शिक्षण की आवश्यकताएँ
अशुद्ध उच्चारण से भाषा का स्वरूप बिगड़ता है। बिना शुद्ध उच्चारण
ज्ञान के भाषा के शुद्ध रूप का ज्ञान नहीं हो सकता है। उच्चारण
ध्वनियों के आधार पर किया जाता है। ध्वनियों के अशुद्ध उच्चारण से
न भाषा ठीक ढंग से समझी जा सकती है, न ही उसका सम्यक् ज्ञान
ही हो पाता है।
• बाल्यावस्था में ही बच्चों का उच्चारण शुद्ध या अशुद्ध रूप धारण
करने लगता है। इस कारण बालकों के उच्चारण पर विशेष बल
देना चाहिए। बचपन से ही अशुद्ध उच्चारण से बचाया जाना चाहिए।
• अशुद्ध उच्चारण पठन एवं लेखन कौशल को भी प्रभावित करता है
उन्हें दोषमुक्त बनाए रखने के लिए उपचारी शिक्षण आवश्यक है।
• अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के बालकों पर प्रान्तीय भाषाओं का प्रभाव पड़ता
है। वहाँ के बालकों को हिन्दी के उच्चारण में इन प्रान्तीय भाषाओं
के प्रभाव से बचाना चाहिए।
• हिन्दी भाषा में उच्चारण सम्बन्धी अनेक दोष एवं कठिनाइयाँ हैं।
सावधानीपूर्वक इनका निराकरण करना चाहिए। इसके लिए छात्रों को
उच्चारण दोष से मुक्त करना आवश्यक है।
9.2 भाषा दोष
यदि बालक अपने स्वर यन्त्रों पर नियन्त्रण नहीं रख पाता, तो उसमें
भाषा दोष (Language Disorder) उत्पन्न हो जाता है।
भाषा दोष से ग्रसित बालक समाज में असहज महसूस करते हैं। उनमें
हीनता की भावना का विकास हो जाता है और वे सामान्यत: अन्तर्मुखी
स्वभाव के हो जाते हैं।
भाषा दोष शैक्षिक विकास को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित
करता है।
मुख्यत: भाषा दोष निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
• ध्वनि परिवर्तन
• अस्पष्ट उच्चारण
• हकलाना
• तुतलाना
• तीव्र एवं अस्पष्ट वाणी
9.2.1 उच्चारण दोष के कारण
उच्चारण दोष के प्रमुख कारण निम्न हैं
1. शारीरिक कारण उच्चारण अंगों कण्ठ, तालु, होठ, दाँत आदि में
विकार के कारण उच्चारण सम्बन्धी दोष आ जाते हैं। इसलिए वे
सम्बद्ध ध्वनियों का सही उच्चारण नहीं कर पाते हैं।
2. वर्णों के उच्चारण का अज्ञान हिन्दी भाषा की एक विशेषता यह भी
है कि उसका जैसा अक्षर-विन्यास है, ठीक वैसे ही वह उच्चारित भी
की जाती है। इसके बावजूद अज्ञानवश वर्णों व शब्दों के सही रूप कुछ
लोग उच्चारित नहीं कर पाते हैं; जैसे― आमदनी को आम्दनी कहना,
खींचने को खेचना कहना, प्रताप को परताप कहना, वृक्ष को व्रक्ष
कहना, वीरेन्द्र को वीरेन्दर कहना आदि।
3. क्षेत्रीय बोलियों का प्रभाव भाषा का रूप विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तित
नजर आता है। इसका मूल कारण क्षेत्रीय भाषाओं का खड़ी बोली पर
प्रभाव है। भोजपुरी बोलने वाले लोग ‘ने’ का प्रयोग कम करते हैं, तो
पंजाबी क्षेत्र के लोग उसका अनावश्यक प्रयोग भी करते हैं, यथा, हमने
जाना है।’ इसी तरह ‘ने’ के बदले कहीं ‘ण’ का प्रयोग, कहीं ‘स’ के
बदले ‘ह’ का प्रयोग, तो कही ‘ए’, ‘औ’ और ‘न’ के बदले ‘ए’,
‘ओ’, ‘ण’ का प्रयोग आदि के कारण उच्चारण सम्बन्धी दोष उत्पन्न
होते है
4. अन्य भाषाओं का प्रयोग हिन्दी भाषा पर अन्य भाषाओं का प्रभाव
भी दिखाई पड़ता है, जिससे उसके उच्चारण पर प्रभाव पड़ता है। उर्दू
के कारण हिन्दी का क,ख,ग क़, ख, ग हो गया है। अंग्रेजी के
कारण कॉलेज, प्लेटफार्म आदि अनेक शब्द जुड़ गए हैं। अंग्रेजी के
कारण ही ‘आ’ का उच्चारण ‘ऑ होने लगा है।
5. भौगोलिक कारण विभिन्न प्रदेशों में रहने से स्वर-यन्त्र में भी
थोड़ी-बहुत भिन्नता आ जाती है, इससे उच्चारण प्रभावित होता है।
अरबवासी धूप आदि से बचने के लिए सिर पर कपड़ा बाँधते हैं,
जिससे गला कस-सा जाता है, इस कारण वहाँ क, ख, ग – क़, ख़
और ग़ हो जाता है। भारत में भी विभिन्न राज्यों में हिन्दी का उच्चारण
इससे किंचित प्रभावित हुआ है।
6. मनोवैज्ञानिक कारण उच्चारण पर मनोवैज्ञानिकता का प्रभाव पड़ता
है। भय, संकोच, शीघ्रता, विलम्ब आदि से उच्चारण में दोष आ जाते
है। इससे तुतलाना, लापरवाही आदि का विकास होता है और उच्चारण
प्रभावित होता है।
7. अध्यापक की अयोग्यता उच्चारण सुधार में अध्यापक का महत्त्वपूर्ण
योगदान है। अगर अध्यापक उच्चारण में सतर्कता नहीं रखता या शुद्ध
उच्चारण करने में असमर्थ है, तो छात्र उसका अनुकरण करके अशुद्ध
उच्चारण करना प्रारम्भ कर देते हैं
8. प्रयत्न-लाघव ध्वनियों व शब्दों के उच्चारण में पूर्ण सावधानी न
रखने पर दोष का आना स्वाभाविक है। शब्दों एवं ध्वनियों का
उच्चारण पूर्णरूप से किया जाना चाहिए। प्रयत्न-लाघव (short cut)
विधि को अपनाने से उच्चारण सम्बन्धी दोष आ जाते हैं, यथा
परमेश्वर को ‘प्रमेसर’, ‘मास्टर साहब’ को ‘म्मासाब’ आदि।
9. दोषपूर्ण आदतें वैयक्तिक दोषपूर्ण आदतें भी अशुद्ध उच्चारण का
कारण बन जाती हैं। अनुस्वारों का अधिक उच्चारण इसका प्रलचित
रूप है जैसे ‘कहा’ को ‘कहाँ’ कहना या अनुस्वारों का लोप जैसे ‘है’
को है’ कहना आदि। रुक-रुक कर बोलना, शीघ्रता से बोलना,
किसी की नकल करके बोलना भी उच्चारण दोष लाने के
कारण हैं।
10. शुद्ध भाषा के वातावरण का अभाव भाषा अनुकरण द्वारा सीखी
जाती है। अगर विद्यार्थी को भाषा के शुद्ध रूप को प्रयोग करने का
वातावरण नहीं मिला, तो अशुद्ध उच्चारण स्वाभाविक है। अशुद्ध
उच्चारण वाले वातावरण के बीच पलने वाला बालक शुद्ध
उच्चारण नहीं कर पाता है।
11. अक्षरों एवं मात्राओं का अस्पष्ट ज्ञान जिन छात्रों को अक्षरों एवं
मात्राओं का स्पष्ट ज्ञान नहीं दिया जाता, उनमें उच्चारण दोष होता
है। संयुक्ताक्षरों के सन्दर्भ में यह भूल अधिक होती है; जैसे― स्वर्ग
को सरग कहना, कर्म को करम कहना, धर्म को धरम कहना आदि।
12. नागरी ध्वनियों का अनिश्चित उच्चारण नागरी ध्वनियों में ‘ड़’,
‘ऋ’, ‘घ’ ‘क्ष’, ‘ज्ञ’ आदि का प्रयोग बहुत कम होता है। इस कारण
इनका उच्चारण अनिश्चित-सा हो गया है, जिससे इनके उच्चारण
में बहुधा भूल की सम्भावना रहती है।
9.2.2 उच्चारण दोष के विभिन्न प्रकार
उच्चारण दोष के विभिन्न प्रकार निम्न हैं
1. स्वर-लोप यथा ‘क्षत्रिय’ का ‘छत्री’, ‘परमात्मा’, का ‘प्रमात्मा
‘ईश्वर’ का ‘इस्सर’।
2. स्वर-भक्ति यथा ‘बृजेन्द्र’ को बढ़ाकर ‘बरजेन्दर’, ‘श्री’ को
‘सिरी’, ‘शक्ति’ को ‘सकती।
3. स्वरागम यथा ‘स्नान’ में ‘अ’ का आगम होकर ‘अस्नान’, ‘स्कूल’
में ‘इ’ का आगम होकर ‘इस्कूल’।
4. ऋका अशुद्ध उच्चारण यथा ‘अमृत’ का सामान्यतः ‘अम्रित’
होना तथा पंजाबी में ‘अम्रत’ और मराठी में ‘अम्रत’ होना।
5. इ, उ का ई, ऊ के साथ भ्रम यथा ‘कवि’ का ‘कवी’, ‘हिन्दू’, का
‘हिन्दु’, ‘ईश्वर का ईसवर’, ‘किन्तु’ का ‘किन्तू’।
6. न और ण का भ्रम यथा ‘रणभूमि’ का ‘रनभूमि’, ‘प्रणय’ का
‘प्रनय’, ‘कर्ण’ का ‘करन’ आदि।
7.क्ष और छ सम्बन्धी यथा लक्ष्मण को लछमन, अक्षर का अछर,
क्षत्रिय का छत्री।
8. श और ष का भ्रम यथा प्रकाश का प्रकाष, निष्काम का निश्काम।
9. व और ब का भ्रम यथा ‘वन’ (जंगल) का ‘बन’, वचन का
‘बचन’ वसन्त का ‘बसन्त’।
10. ड और ड़ का भ्रम जैसे गुड़ का गुड।
11. ढ और ढ़ का भ्रम यथा पढ़ाई का पढाई, कढ़ाई का कढाई।
12. चन्द्रबिन्दु और अनुस्वार का भ्रम यथा गंगा का गँगा और चाँद
का चांद कहना।
13. य और ज का भ्रम यथा यमराज को ‘जमराज’ और यज्ञ का ‘जज्ञ’
उच्चारित करना।
14. अनुनासिकता का भ्रम यथा सोचने को सोंचना और बच्चा को
बंच्चा लिखना।
15. अल्पप्राण और महाप्राण सम्बन्धी भ्रम यथा बुढ़ापा को बुडापा,
घूमना को गूमना, घर को गर।
16. शब्द विपर्यय यथा लिफाफा को लिलाफा कहना, आदमी को
आमदी कहना।
17. शब्दांश विपर्यय यथा ‘बाल की खाल निकालने’ को ‘खाल की
बाल निकालना।
18. हड़बड़ाहट या तुतलाहट यथा ‘ततत तुम्मामारा घघरर कहाँ है?
19. न्यूनाधिक गति शब्द या वाक्य या वाक्य खण्ड को शीघ्रता से
बोलना या देर तक खींचकर बोलने से भी उच्चारण सम्बन्धी दोष आ
जाते हैं।
20. ध्वन्यात्मक दोष यथा उलटा-पलटा को उल्टा-पल्टा लिखना। इसी
प्रकार हिन्दी भाषा में उच्चारण सम्बन्धी अन्य कई दोष विद्यमान है।
9.2.3 उच्चारण सम्बन्धी दोषों का निराकरण
उच्चारण सम्बन्धी दोषों का निराकरण निम्न प्रकार किया जा सकता है
1. उच्चारण अंगों की चिकित्सा अगर उच्चारण करने वाले अंगों में
कोई दोष हो, तो चिकित्सक से चिकित्सा करानी चाहिए। उच्चारण
करने में श्वास-नलिका, कण्ठ, जीभ, वर्क्स, नाक, ओष्ठ, तालु, मूर्धा,
दाँत आदि की सहायता ली जाती है। इन अंगों में दोष आने पर
उच्चारण के प्रभावित होने की सम्भावना रहती है। इसलिए इन अंगों
में दोष आने पर तत्काल चिकित्सा करानी चाहिए।
2. पुस्तकों के शुद्ध पाठ पर बल बालक में अनुकरण की अपूर्व क्षमता
होती है। वह अनुकरण के माध्यम से कठिन-से-कठिन तथ्य समझ
लेता है। अगर उसे शुद्ध उच्चारण करने वाले लोगों, विद्वानों आदि के
साथ रखा जाए, तो उसमें उच्चारण दोष का भय नहीं रहेगा। उसका
उच्चारण रेडियो, ग्रामोफोन, टेपरिकॉर्डर आदि के माध्यम से इसी
पद्धति पर सुधारा जा सकता है।
3. शुद्ध वाचन उच्चारण सम्बन्धी दोषों के निवारण के लिए पुस्तकों का
शुद्ध वाचन आवश्यक है। पहले अध्यापक आदर्श वाचन प्रस्तुत करे,
इसके उपरान्त वह छात्रों से शुद्ध वाचन कराए। वाचन में सावधानी
रखे तथा अशुद्धियों का सम्यक् निवारण कराए।
4. उच्चारण प्रतियोगिताएँ कक्षा शिक्षण में मुख्यतया भाषा के कालांश
में उच्चारण की प्रतियोगिताएँ करानी चाहिए। कठिन शब्द श्यामपट्ट
पर लिखकर उनका उच्चारण कराना चाहिए। सर्वथा शुद्ध उच्चारण
करने वाले छात्रों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
5. भाषण एवं संवाद प्रतियोगिताएँ भाषण एवं संवाद प्रतियोगिताओं से
उच्चारण शुद्ध होते हैं। निर्णायक मण्डल को पुरस्कार देते समय यह
ध्यान रखना चाहिए कि शुद्ध उच्चारण करने वाले छात्रों को ही
पुरस्कार या प्रोत्साहन मिले।
6. नागरी ध्वनि तत्त्व को समझाना अध्यापक को ध्वनि तत्त्वों का
विशेषज्ञ होना चाहिए। उसे बालकों को वर्णमाला के स्वर, व्यंजन से
लेकन कठिन शब्दों के उच्चारणों की शिक्षा विधिवत् देनी चाहिए
ताकि उनका उच्चारण सुधर जाए। उसे अर्द्ध-स्वरों एवं अर्द्ध-व्यंजनों,
संयुक्ताक्षरों, संयुक्त ध्वनियों आदि का विशेष ध्यान रखकर उच्चारण
सिखाना चाहिए।
7. ध्वनि यन्त्रों का सम्यक् ज्ञान कराना बालकों को यह बताना अनिवार्य
है कि ध्वनियाँ कैसे बनती है? ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा, ओष्ठ,
कण्ठ, काकली आदि का क्या योगदान है? अल्पप्राण एवं महाप्राण
ध्वनियों में क्या अन्तर है? तथा स्वर और व्यंजन में क्या अन्तर है?इन
तथ्यों की उसे उदाहरण देकर शिक्षा प्रदान करनी चाहिए।
8. हिन्दी ध्वनियों का वर्गीकरण सिखाना हिन्दी ध्वनियों के वर्गीकरण
की सच्ची शिक्षा दिए बिना छात्रों का उच्चारण दोष कदापि दूर नहीं
किया जा सकता है। बालकों को वही अध्यापक इनका स्पष्ट विवरण दे
सकता है, जिसे स्वयं इनके बारे में शत-प्रतिशत जानकारी हो। इनकी
शिक्षा बालकों 12-13 वर्ष की उम्र से 18 वर्ष की उम्र तक देनी
चाहिए। इसके उपरान्त उनमें उच्चारण सम्बन्धी दोष नहीं आ पाएगा।
9. हिन्दी की कतिपय विशेष ध्वनियों का अभ्यास प्राय: हिन्दी भाषा में
स, श एवं ष, न एवं ण, व तथा ब, ड तथा ड, क्ष तथा छ आदि का
उच्चारण दोष बालकों में पाया जाता है; जैसे- विकास का उच्चारण
‘विकाश’ महान का उच्चारण ‘महाण’, वन का उच्चारण ‘बन’ आदि।
अध्यापक को इस सन्दर्भ में विशेष जागरूक रहना चाहिए और इस
सन्दर्भ में भूल होते ही निराकरण कर देना चाहिए।
10. बल, विराम तथा सस्वर पाठ का अभ्यास अक्षरों या शब्दों का
उच्चारण ही पर्याप्त नहीं है, वरन पूरे वाक्य को उचित बल, विराम
तथा सस्वर वाचन के आधार पर पढ़ने का अभ्यास डालना भी
आवश्यक है। शब्दों पर उचित बल देकर पढ़ने से अर्थ भेद एवं भाव
भेद का ज्ञान होता है। विराम के माध्यम से लय, प्रवाह एवं गति का
पता लगता है, इसलिए इन पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इससे
उच्चारण सम्बन्धी दोषों का निवारण भी होता है।
11. विश्लेषण विधि का प्रयोग कठिन एवं बड़े-बड़े शब्दों व ध्वनियों के
उच्चारण में विश्लेषण विधि का प्रयोग किया जाए। इससे अशुद्ध
उच्चारण की सम्भावना कम हो जाती है। पूरे शब्दों को अक्षरों में
विभक्त करने से संयुक्ताक्षरों व कठिन शब्दों को सहज एवं सहजग्रह्य
बनाया जा सकता है, जैसे- सम्मिलित शब्द को सम्+मि+लि+त,
उत्तम शब्द को उत्+त+म आदि।
12. अनुकरण विधि का प्रयोग उच्चारण का सुधार अनुकरण विधि से
किया जा सकता है। अध्यापक कठिन शब्दों का उच्चारण पहले स्वयं
करें तथा पुन: कक्षा के बालकों को उसका अनुकरण करने को कहें।
अनुकरणशील छात्रों को हाव-भाव, जिह्वा संचालन, मुखावयव तथा
स्वरों के उतार-चढ़ाव का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए, ताकि उच्चारण में
प्रत्याशित सुधार लाया जा सके।
13. मानसिक सन्तुलन हेतु प्रयास जो छात्र भय व संकोच के कारण
अशुद्ध उच्चारण करने लगे, उन्हें पूर्ण प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि उनमें
आत्मविश्वास का भाव जगे और उनका मानसिक सन्तुलन बना रहे।
ऐसे छात्रों को प्रेरणा एवं सहानुभूति चाहिए। उनकी भूलों पर बिगड़ने
या डाँटने की आवश्यकता नहीं है। इस विधि से क्रमश: धीरे-धीरे
उनका उच्चारण सुधरने लगेगा।
14. सभी विषयों के शिक्षण में उच्चारण पर ध्यान उच्चारण पर ध्यान
देना केवल भाषा शिक्षक का ही कार्य नहीं है। सभी विषयों के शिक्षण
में उच्चारण पर अगर ध्यान दिया जाए, तो इस में सुधार शीघ्रता से
होगा। प्रायः यह कार्य भाषा के अध्यापक का ही माना जाता है, जो एक
भूल है। सभी विषयों के अध्यापकों को इस पहलू पर बल देना चाहिए।
15. वैयक्तिक एवं सामूहिक विधि का प्रयोग उच्चारण सुधार के
लिए दोनों ही विधियों प्रयुक्त की जाएँ। बालक के उच्चारण विशेष
सम्बन्धी दोष के परिष्कार के लिए वैयक्तिक विधि उपयोगी है। जब
कक्षा के अधिकतर छात्र कठिन शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाते
है, तो ऐसी स्थिति में सामूहिक विधि द्वारा निराकरण किया जाना
चाहिए, जैसे-स्कूल को ईस्कूल कहने की आदत का परिष्कार, स्त्री
को इस्त्री कहने की आदत का परिष्कार।
16. स्वराघात परबल कब किस शब्द पर बल देना है, इसका
उच्चारण में बड़ा महत्त्व है। यह भाव भेद एवं अर्थ भेद की
जानकारी कराता है, इसलिए उच्चारण में स्वराघात पर विशेष ध्यान
देना चाहिए। स्वराघात का अभ्यास वाचन के समय, संवाद, नाटक,
सस्वर वाचन व भावानुकूल वाचन के रूप में कराया जा सकता है।
स्वर के उतार-चढ़ाव पर ध्यान देने से स्वराघात का अभ्यास हो
जाता है।
उच्चारण सम्बन्धी दोषों के निराकरण में सहायक ध्वनि यन्त्र एवं
दृश्य-श्रव्य उपकरण निम्न हैं
• सिर एवं ग्रीवा का मॉडल, जिसमें उच्चारण स्थल दर्शाए गए हों।
• दर्पण (जिसमें उच्चारण करते समय बालक अपने उच्चारण-स्थल देख
सके)। ग्रामोफोन (शुद्ध उच्चारण के लिए)। लिंग्वाफोन (शुद्ध उच्चारण
की शिक्षा के लिए)। टेपरिकॉर्डर (कठिन उच्चारणों के आदर्श उच्चारण
के अभ्यास के लिए)।
• कायमोग्राफ अल्पप्राण-महाप्राण, घोष-अघोष, स्पर्श-संघर्षी वर्णों आदि
की शिक्षा के लिए यह उपकरण बड़ा ही उपादेय है।
• कृत्रिम तालु ध्वनियों के शुद्ध एवं सटीक उच्चारण के लिए यह उपकरण
जिह्वा के ऊपर तालु पर रखा जाता है।
• एक्स-रे के माध्यम से स्वरों एवं व्यंजनों के उच्चारण में जीभ की सही
स्थिति का पता से लगाया जा सकता है।
• लैरिंगोस्कोप स्वर तन्त्रियों की गतिविधियों के अध्ययन में इस यन्त्र की
उपयोगिता जगत् विख्यात है।
• अन्य उपयोगी यन्त्र इन्द्रीस्कोप, ऑटोफोनोस्कोप, नेमोग्राफ, फ्लास्क
स्टेथोग्राफ आदि उपकरण विदेशों में उच्चारण सम्बन्धी सुधार के लिए
प्रयुक्त किए जा रहे हैं।
सस्वर वाचन सम्बन्धी उपचारी शिक्षण में ध्यान रखने योग्य बातें निम्न हैं
• दोषपूर्ण सस्वर वाचन करने वाले छात्रों की योग्यता को ध्यान में रखते
हुए उनके अनुकूल विषय-सामग्री द्वारा उनका शिक्षण प्रारम्भ करना
चाहिए, भले ही कुछ समय के लिए कक्षा स्तर से नीचे उतरना पड़े।
पठन सामग्री उनके अनुकूल सरल और रोचक होनी चाहिए, जिससे
धीरे-धीरे पठन में उसकी रुचि बढ़े, गति बढ़े और अर्थ ग्रहण की शक्ति
भी बढ़े। वाचन को सोद्देश्य बनाकर ऐसे बालकों में पढ़ने के प्रति प्रेरणा
उत्पन्न करनी चाहिए।
• ऐसे अभ्यास दिए जाएँ जिनकी उपयोगिता का छात्र भी अनुभव करते चलें।
• बालकों को स्वयं अपनी प्रगति जानने का भी अवसर दिया जाए।
• रोचक एवं उपयोगी पुस्तकों की चर्चा,घटनाओं का वर्णन, साहसिक
कहानियाँ जिनमें कम प्रतिभा वाले बालक भी परिश्रम एवं अध्ययन द्वारा
महान् बन गए हों, सुनाई जाएँ और छात्रों से पढ़वाई जाएँ।
• बालक में छिपी हुई किसी विशिष्ट प्रतिभा, योग्यता, कुशलता का उसे
आभास कराना, जिससे उसकी हीन भावना दूर हो, संकोच और झिझक दूर
हो, आत्मसम्मान का भाव पैदा हो और वह निर्भीक बने। अभिनय,
वाद-विवाद आदि कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए उसे प्रेरित और प्रोत्साहित
किया जाए।
9.3 भाषायी कौशलों से सम्बन्धित विकार
बच्चों द्वारा भाषायी कौशलों में निपुणता प्राप्त करने में निम्नलिखित विकार
अवरोध की भूमिका निभाते हैं जिनका उपचार किया जाना अति आवश्यक है
अफेज्या
भाषा एवं सम्प्रेषण अधिगम अशक्तता को अफेज्या (Aphasia) कहा जाता है।
इससे पीड़ित छात्र मौखिक रूप से सीखने एवं अपने विचारों को अभिव्यक्ति
प्रदान करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। सामान्यतया मस्तिष्क में किसी
प्रकार की क्षति से यह विकार उत्पन्न होता है। मस्तिष्क में क्षति के कारण
बातचीत करने में आंशिक या पूर्णत: अक्षमता को डिस्फेजिया (Dysphasia)
कहा जाता है।
अलेक्सिया
मस्तिष्क में किसी प्रकार की क्षति के कारण पढ़ने में अक्षमता को अलेक्सिया
(Alexia) कहा जाता है। इसे शब्द अन्धता या पाठ्य अन्धता या विजुअल
अफेज्या भी कहा जाता है। यह (अर्जित) अक्वायर्ड डिस्लेक्सिया (Acquired
Dyslexia) है। अलेक्सिया के कारण अफेज्या एवं डिस्पाफिया जैसी अधिगम
अशक्तता होना भी सम्भव है, किन्तु प्रत्येक स्थिति में यह आवश्यक नहीं।
डिस्लेक्सिया
डिस्लेक्सिया (Dyslexia) एक व्यापक शब्द है, जिसका सम्बन्ध पठन विकार
से है। इस अधिगम अशक्तता में बालक को पढ़ने में कठिनाई होती है, क्योंकि
वह कई शब्दों के कुछ अक्षरों जैसे ड व ड में विभेद नहीं कर पाते
डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे ‘बड़ा’ और ‘बढ़ा’ जैसे शब्दों में अन्तर नहीं कर
पाते हैं।
अप्रेक्सिया
अप्रेक्सिया (Apraxia) ऐसा शारीरिक विकार है, जिसके कारण व्यक्ति
मांसपेशियों के संचालन से सम्बद्ध सूक्ष्म गतिक कौशल जैसे―लिखने, चलने,
टहलने, बोलने में निपुण नहीं हो पाता। यह मस्तिष्क के सेरेब्रम में क्षति के
कारण होता है। अप्रेक्सिया का ही एक प्रकार डिस्प्रेक्सिया (Dyspraxia) है,
जिसमें व्यक्ति मस्तिष्क में क्षति के कारण सूक्ष्म गतिक कौशलों में निपुण नहीं
हो पाता। वह हाथ एवं आँखों के बीच समन्वय एवं सन्तुलन स्थापित नहीं कर
पाता। डिस्प्रेक्सिया तन्त्रिका तन्त्र सम्बन्धी विकार है, जिसे सेन्सरी इन्टेग्रेशन
डिस्ऑर्डर कहा जाता है।
डिस्ग्राफिया
डिस्पाफिया (Disgraphia) लिखने सम्बन्धी अशक्तता को कहा जाता है। इसमें
या तो बच्चा ठीक से लिख नहीं पाता अथवा उसकी लिखावट ठीक नहीं हो
पाती। सामान्यतः इसका कारण हाथ, हथेली या अँगुलियों सम्बन्धी कमियाँ होती
हैं। इसके अतिरिक्त मस्तिष्क सम्बन्धी कुछ विकारों के कारण भी यह अधिगम
अशक्तता सम्भव है।
                                          अभ्यास प्रश्न
1. उपचारात्मक शिक्षण है
(1) शिक्षण में होने वाली कठिनाइयों को जानना
(2) विद्यार्थियों की कठिनाइयों को जानकर उनका
समाधान निकालना
(3) विद्यार्थियों के उच्चारण दोषों को दूर करना
(4) लेखन सम्बन्धी दोषों को दूर करना
2. उपचारात्मक शिक्षण की सफलता मुख्यतः
निर्भर करती है
(1) बच्चों की सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर
(2) बच्चों की भाषागत त्रुटियों की सूची बनाने पर
(3) समस्याओं की पहचान पर
(4) समस्याओं के कारणों की सही पहचान पर
3. प्रकाश ‘ईश्वर’ को ‘इस्सर’ उच्चारित करता
है। उसमें दोष है
(1) स्वर लोप
(2) स्वर भक्ति
(3) हड़बड़ाहट
(4) शीघ्रता
4. रोहिन राजेन्द्र’ को राजेन्दर उच्चारित करता
है। उसके उच्चारण में
(1) प्रयल लाघव दोष है
(2) अन्य भाषाओं का प्रभाव है
(3) क्षेत्रीयता का प्रभाव है
(4) वह नागरी ध्वनियों से अनभिज्ञ है
5. ‘शक्ति’ को ‘सकती’ कहना किस प्रकार के
उच्चारण दोष का उदाहरण है?
(1) स्वरागम
(2) स्वर भक्ति
(3) स्वर लोप
(4) इनमें से कोई नहीं
6. हिन्दी भाषा-शिक्षण में निदानात्मक परीक्षण
का उद्देश्य है
(1) कमजोरियों का पता लगाना
(2) कमजोरियों को दूर करना
(3) उपचारात्मक सुझाव देना
(4) उपरोक्त सभी
7. छात्रों को उपचारात्मक शिक्षण प्रदान करने
की सबसे सुगम विधि है
(1) छात्रों के अधिगम सम्बन्धी दोषों एवं
कमजोरियों का निदान करना
(2) छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार
पर उन्हें विभिन्न समूहों में विभाजित करके
उनके लिए शिक्षण की व्यवस्था करना
(3) प्रत्येक छात्र के अधिगम सम्बन्धी दोषों का
व्यक्तिगत रूप से अध्ययन कर उन्हें दूर करना
(4) उपरोक्त सभी
8. हिन्दी भाषा-शिक्षण में उपचारात्मक शिक्षण
की विधि निम्न में से कौन-सी नहीं है?
(1) अतिरिक्त कक्षाएँ
(2) व्यायाम
(3) गोष्ठियाँ
(4) विशिष्ट अभ्यास
9. हिन्दी भाषा शिक्षण में शैक्षिक उपचार का
प्रमुख उद्देश्य है
(1) बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करना
(2) शैक्षणिक कठिनाइयों एवं दोषों का निवारण
(3) बालकों की अशुद्धियों का निराकरण
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
10. उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य है।
(1) छात्रों की प्रारम्भिक त्रुटियों में सुधार करना
(2) छात्रों की ज्ञान सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना
(3) छात्रों में आत्मविश्वास जगाना
(4) उपरोक्त सभी
11. उपचारात्मक शिक्षण के लिए निम्नलिखित
में से कौन-सा कार्य नहीं किया जाना
चाहिए?
(1) सतत एवं व्यापक मूल्यांकन
(2) प्राथमिक स्तर के बच्चों के परीक्षा में फेल होने
पर उन्हें अगली कक्षा में प्रोन्नत करने से नहीं
रोकना
(3) उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में विज्ञान विषय को
अलग-अलग संकायों के रूप में पढ़ाना
(4) माध्यमिक कक्षाओं में विज्ञान विषय को संयुक्त
विषय के रूप में पढ़ाना
12. उपचारात्मक शिक्षण को सफल बनाने के
लिए निम्नलिखित में से किसका सहारा
लिया जाता है?
A. दृश्य-श्रव्य साधनों का
B.शिक्षण विधियों का
C.अभ्यास कार्य का
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) केवल
(4) ये सभी
13. उपाचारात्मक कार्य होना चाहिए
(1) प्रत्येक पाठ की समाप्ति पर
(2) प्रत्येक माह
(3) वर्ष में तीन बार
(4) वर्ष में चार बार
14. उपचारात्मक शिक्षण का आधार निम्नलिखित में
से कौन-सा है?
(1) स्व-परीक्षण
(2) पाठ्य पुस्तक परीक्षण
(3) निदानात्मक परीक्षण
(4) व्याख्यान परीक्षण
15. कक्षा में कुछ बच्चे गलत वर्तनी का प्रयोग
करते हुए लिखते हैं। आप क्या करेंगे?
(1) इसे एक सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया मानते
हुए कक्षा में ‘प्रिन्ट’-समृद्ध का निर्माण करेंगे
(2) शब्दों को दस-दस बार सही तरीके से लिखने
के लिए कहेंगे
(3) बच्चों को उनकी त्रुटियों का अहसास कराएँगे
(4) गलत वर्तनी वाले शब्दों पर लाल स्याही से
घेरा या क्रॉस लगाएँगे
16. बोलने में कठिनाई अनुभव करने वाले छात्रों
(1) को अधिक से अधिक बोलने व पढ़ने का
अवसर मिलना चाहिए
(2) के मन से भय एवं झिझक की भावना
निकालनी चाहिए
(3) को अभ्यास के समुचित अवसर उपलब्ध
करवाना चाहिए
(4) उपरोक्त सभी
17. मौखिक अभिव्यक्ति के समय होने वाली
त्रुटियों पर बार-बार टोकने से
(1) बच्चों की त्रुटियाँ खत्म हो जाती हैं
(2) बच्चे अपनी त्रुटियों के कारण को समझ जाते
हैं
(3) बच्चे धीरे-धीरे खामोश होने लगते हैं
(4) बच्चों के भीतर आत्मविश्वास बढ़ता है
18. रागिनी हमेशा ‘हैण्डपम्प’ को चापाकल
बोलती है। एक शिक्षिका के रूप में आप
क्या करेंगी?
(1) रागिनी को समझाएँगे कि यह चापाकल नहीं,
हैण्डपम्प है
(2) सम्पूर्ण क्क्षा को बताएँगे कि हैण्डपम्प को
चापाकल भी कहा जाता है।
(3) उसे डाटेंगे कि उसने गलत शब्द का प्रयोग
किया है
(4) उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देंगे
19. भाषा सीखने में जो त्रुटियाँ होती हैं
(1) उन्हें कठोरता से लेना चाहिए
(2) उन्हें जल्दी से दूर किया जाना चाहिए
(3) वे बच्चों की त्रुटियों की ओर संकेत करती हैं।
(4) वे सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा
होती हैं जो समय के साथ दूर होने लगती हैं
20. राहुल को जब भी कक्षा में उत्तर देने के
लिए कहा जाता है वह हकलाने लगता है।
इसका क्या कारण हो सकता है?
(1) राहुल जान-बूझकर ऐसा करता है ताकि उसे
जवाब न देना पड़े
(2) राहुल को सही उत्तर नहीं पता होता
(3) यह राहुल की आदत है
(4) राहुल बड़े समूह के सामने अपनी बात कहने
में मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता है
विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
21. उपचारात्मक शिक्षण की सफलता निर्भर
करती है                        [CTETJune 2011]
(1) उपचारात्मक शिक्षण की सामग्री पर
(2) भाषिक नियमों के ज्ञान पर
(3) समय व अवधि पर
(4) समस्याओं के कारणों की सही पहचान पर
22. पहली कक्षा में पढ़ने वाली अंकिता अक्सर
‘ड’ वाले शब्दों को गलत तरीके से बोलती
है। आप क्या करेंगे? [CTET June 2011)
(1) उसे ‘ड’ वाले शब्दों की सी.डी. सुनने के लिए
देंगे
(2) अंकिता को ‘ड’ वाले शब्दों की सूची देंगे
(3) अंकिता को ‘ड’ वाले शब्दों को अपने
पीछे-पीछे दोहराने के लिए कहेंगे
(4) स्वयं ‘ड’ वाले शब्दों को सहज भाव से उसके
समक्ष प्रस्तुत कर उससे पैर्यपूर्वक बोलने का
अभ्यास कराएँगे
23. राधिका अक्सर लड़का’ को ‘लका’,
‘कमाई होने लगी’ को ‘कमाई होगी’ लिखना
जैसी गलतियां कर बैठती है। यह इस ओर
संकेत करता है कि [CTET June 2011]
(1) राधिका ध्यान से नहीं लिखती
(2) उसके लेखन स्तर में सुधार की आवश्यकता है
(3) राधिका को मात्राओं का ज्ञान नहीं है
(4) राधिका के विचारों की तेज गति के साथ
उसकी लेखनी नहीं चल पाती
24. कलिका हिन्दी भाषा में बोलते समय कई
बार-अटकती है। आप क्या करेंगे?
                                        [CTET June 2012]
उसे प्रवाहपूर्ण अभिव्यक्ति के नमूने सुनाएँगे
और कहेंगे कि उसे भी हू-ब-हू ऐसे ही
बोलना है
(2) क्क्षा के बाकी बच्चों से कहेंगे कि कलिका के
समक्ष प्रवाहपूर्ण अभिव्यक्ति के नमूने प्रस्तुत
करें
(3) कक्षा में केवल कलिका को ही बार-बार बोलने
के लिए कहेंगे
(4) धैर्य रखते हुए उसे सहज अभिव्यक्ति के लिए
प्रोत्साहित करेंगे
25. कक्षा में कुछ बच्चे लिखते समय वर्तनी
सम्बन्धी त्रुटियाँ करते हैं। एक भाषा शिक्षक
के रूप में आप क्या करेंगे?
                                     [CTET July 2013]
(1) शब्दों का सही रूप लिखते हुए बच्चों को दोनों
तरह के शब्दों का अवलोकन करके अन्तर
पहचानने का अवसर देंगे
(2) उन्हें सख्त निर्देश देंगे कि वे आगे से गलती न
करें
(3) उनकी त्रुटियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं देंगे
(4) उनसे शब्दों को बीस बार लिखने के लिए
कहेंगे
26. नासिरा पढ़ते समय अनेक बार अटकती है।
उसे पढ़ने में कठिनाई होती है। उसकी
समस्या मुख्यतः ………… से सम्बन्धित है।
                                           [CTET Feb 2014]
(1) पठन-अरुचि
(2) बुद्धि-लब्धि
(3) डिस्लेक्सिया
(4) डिस्ग्राफिया
27. हिन्दी भाषा की कक्षा में मोना लिखते
समय कठिनाई का अनुभव करती है। यह
समस्या किससे सम्बन्धित है?
                                         [CTET Sept 2014]
(1) डिस्लेक्सिया
(2) डिस्माफिया
(3) डिस्कैल्कुलिया
(4) डिस्लेखिया
28. भाषा सीखने में होने वाली त्रुटियों के
सन्दर्भ में कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
                                      [CTET Feb 2015]
(1) त्रुटियाँ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का
अभिन्न अंग हैं
(2) त्रुटियाँ अस्थायी होती हैं
(3) भाषा सीखने में होने वाली त्रुटियाँ स्थायी
होती हैं
(4) भाषा सीखने में होने वाली त्रुटियाँ यह
समझने में मदद करती हैं कि बच्चे के
मस्तिष्क में क्या चल रहा है
29. तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली सुनयना
अकसर ‘स’ को ‘श’ कहती है। भाषा
शिक्षक होने के नाते आप क्या करेंगे?
                                     [CTET Feb 2015]
(1) वह जब भी ‘स’ को ‘श’ कहेगी, तो उसे
रोकेंगे ताकि उसमें सुधार हो सके
(2) उसके इस तरह के प्रयोग पर बिल्कुल ध्यान
नही देंगे
(3) यह क्षेत्रीय प्रभाव हो सकता है इसलिए उसे
स्वयं ही सुधार करने के लिए पर्याप्त समय
देंगे
(4) उसे ‘स’ और ‘श’ के उच्चारण स्थान की
पूर्ण जानकारी देंगे।
30. अमित पढ़ते समय कठिनाई का अनुभव
करता है। वह …………. से ग्रस्त है।
                                      [CTET Feb 2015]
(1) डिस्कैल्कुलिया
(2) अफेजिया
(3) डिस्लेक्सिया
(4) डिस्माफिया
31. आपकी कक्षा के कुछ विद्यार्थी ‘सड़क’
को ‘सरक’ बोलते हैं। इसका सबसे
सम्भावित कारण है।              [CTET Sept 2015]
(1) लापरवाही का होना
(2) उनकी मातृभाषा का प्रयोग
(3) उन्हें हिन्दी न आना
(4) सुनने में समस्या
32. निशिता अपने सहपाठियों से ठीक तरह से
बात करती है परन्तु कक्षा में उत्तर देते समय
हकलाती है। वह सम्भवतः।             [CTET Feb 2016]
(1) बड़े समूह में अपनी बात कहने में दबाव महसूस
करती है
(2) कक्षा में हँसी का माहौल पैदा करना चाहती है
(3) घर से पाठ याद करके नहीं आती है
(4) जानबूझकर ऐसा करती है जिससे उससे सवाल
न पूछे जाएँ
33. गोमती ‘श’ को ‘स’ बोलती है। आप उसे
टोकती नहीं हैं और सहज अभिव्यक्ति के
अवसर देती हैं परन्तु चिन्तित है कि किस
तरह से उसका उच्चारण ठीक करवाया जाए?
आप                        [CTET Feb 2016]
(1) ‘श’ और ‘स’ के प्रयोग वाली श्रवण सामग्री
सुनने के अनेक अवसर देंगी
(2) उसे चेतावनी देंगी कि एक निश्चित कक्षा तक ही
यह गलती सहन की जाएगी
(3) उसके अभिभावक से कहेंगी कि उसे ‘श’ और
‘स’ का पृथक्-पृथक् अभ्यास करवाएँ
(4) उसे ‘श’ और ‘स’ के अन्तर को लिखकर
समझाएगी
34. सुरभि किसी भी ऐसे शब्द विशेष को बोलने
में कठिनाई अनुभव करती है जिसमें दो से
अधिक बार ‘त’ की आवृत्ति हुई हो। आप
उससे/उसे                       [CTET Sept 2016]
(1) ऐसे शब्दों को बार-बार सुनने को कहेंगी
(2) बोलते समय इस ओर ध्यान न देने के लिए
कहेंगी
(3) ‘त’ वाले शब्दों का बार-बार उच्चारण करवाएँगी
(4) ऐसे शब्दों का विकल्प ढूँढकर देंगी
                                            उत्तरमाला
1. (2) 2. (4) 3. (1) 4. (3) 5. (2) 6. (4) 7. (1) 8. (2) 9. (2) 10. (4)
11. (2) 12. (4) 13. (1) 14. (3) 15. (1) 16. (4) 17. (3) 18. (2)
19. (2) 20. (4) 21. (4) 22. (4) 23. (4) 24. (4) 25. (1) 26. (3) 27. (2)
28. (3) 29. (1) 30. (3) 31. (2) 32. (1) 33. (4) 34. (3)
                                              ★★★

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