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CTET Notes In Hindi | गणित शिक्षण में त्रुटि विश्लेषण

CTET Notes In Hindi | गणित शिक्षण में त्रुटि विश्लेषण

गणित शिक्षण में त्रुटि विश्लेषण
             Error Analysis in Teaching of Mathematics
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में 4 प्रश्न,
2012 में 5 प्रश्न, 2013 में 1 प्रश्न, 2014 में 6 प्रश्न, 2015 में
1 प्रश्न पूछे गए हैं। इस अध्याय से CTET परीक्षा में पूछे गए
प्रश्न मुख्यतः शिक्षण की त्रुटि तथा शुद्धता पर आधारित हैं।
7.1 गणितीय शिक्षण में होने वाली त्रुटियों के कारण
गणित का अध्ययन करने के लिए शुद्धता का होना अनिवार्य है। शुद्धता के
अभाव में बालक गणित का ज्ञान यथार्थ रूप में ग्रहण नहीं कर सकते तथा
उनमें विभिन्न गणितीय योग्यताओं का विकास भी नहीं हो पाता है। गणित
शिक्षण में बच्चों में बहुत-सी त्रुटियाँ पाई जाती हैं जो निम्नवत् है
• गणित शिक्षण के अन्तर्गत कार्य का निर्धारण करते समय छात्रों को रुचियों,
आवश्यकताओं तथा मानसिक विकास पर ध्यान न देना। गणित शिक्षण में
बालकों में तत्परता तथा एकाग्रता का अभाव होना।
• बालकों का गणित के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का होना तथा शिक्षण
कार्यों के दौरान शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता का अभाव। बालकों में
कल्पना तथा स्मरण शक्ति का अभाव।
• बालकों में गणित शिक्षण की समस्या का विश्लेषण तथा संश्लेषण करने
की योग्यता की कमी। बालकों में गणित के प्रति जागरूकता का अभाव
तथा दिए गए कार्य को समय पर पूरा न करने की समस्या।
• बालकों में गणितीय गणना सम्बन्धी कुशलताओं का अभाव। गणित शिक्षण.ण
में बालकों में आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता का अभाव होना।
• भिन्न-भिन्न गणित के तथ्यों में समानता तथा अन्तर का प्रयोग गलत
करना।
• भाग देने में तथा गुणा करने में हासिल का गलत प्रयोग सही न कर पाना।
भिन्नों में हर तथा अंश का गलत प्रयोग करना तथा दो या अधिक प्रत्ययों
में अन्तर सही न निकाल पाना।
• समीकरण गलत बनाना, ज्ञात तथा अज्ञात राशियों का स्पष्ट ज्ञान न होना
तथा गणित में प्रयोग होने वाले चिह्नों का गलत प्रयोग करना। बालकों द्वारा
गणित शिक्षण के दौरान श्यामपट्ट अथवा अभ्यास पुस्तिकाओं में
सही-सही अंक तथा संख्याएँ न लिख पाना।
• अध्यापकों द्वारा छात्रों की गलतियों को सुधारने हेतु पर्याप्त अवसर न देना
अर्थात् उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था न करना।
• गणित में गणना कार्य करते समय अधिक काट-पीट तथा अशुद्ध लेखन
करना।
7.2 गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के उपाय
बालकों का गणित के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने तथा गणित
को रुचिकर बनाने के लिए गणित शिक्षण में शुद्धता का होना अत्यन्त
आवश्यक है। गणित शिक्षण के दौरान अध्यापक को बालकों में शुद्धता से
कार्य करने की आदत का विकास करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपायों को
ध्यान में रखना आवश्यक होता है।
गणित शिक्षण में शुद्धता विकसित करने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय
निम्नवत् है
• छात्रों को गणित में सही गणना कार्य करने पर प्रोत्साहित करना चाहिए।
• गलत गणना कार्य करने पर छात्रों को पुनः सही तरीके से गणना करने के
लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
• छात्रों में परिणामों या उत्तरों की जाँच करने की आदत का विकास करना
चाहिए।
• श्यामपट्ट अथवा पाठ्य-पुस्तक में से सही-सही अंक उतारने या लिखने
की योग्यता विकसित करनी चाहिए।
• गणित की समस्याओं को हल करने से पहले उस समस्या को समझने तथा
विश्लेषण करने की आदत का विकास करना चाहिए।
• छात्रों को सही वाक्य, अंक, शब्द तथा संख्याएँ लिखने के लिए प्रेरित
करना चाहिए।
• छात्रों की गलतियों का पता लगाने के लिए निदानात्मक परीक्षणों का प्रयोग
करना चाहिए।
• गलतियों का पता लगाने के पश्चात् अध्यापक को गलतियों का सुधार
करने हेतु उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए।
• बालकों में यान्त्रिक कुशलताएँ विकसित करने हेतु गणित की आधारभूत
संक्रियाओं, नियमों और सूत्रों को अच्छी तरह से याद करवाकर उनकी
उपयोगिता स्पष्ट कर देनी चाहिए।
• समस्या का हल करने से पूर्व अध्यापक को यह स्पष्ट करना चाहिए कि
प्रश्न में क्या दिया गया है, क्या ज्ञात करना है तथा उसे कैसे ज्ञात किया
जा सकता है?
• श्यामपट्ट अथवा अभ्यास पुस्तिकाओं में विभिन्न गणितीय आकृतियों,
चित्रों तथा रेखाचित्रों को यथार्थ रूप में तथा सही अनुपात में बनाने की
आदत विकसित करनी चाहिए।
• यदि कोई छात्र शीघ्रता से कार्य करने के कारण अधिक अशुद्धियाँ करता
है, तो उसे धीमी गति से कार्य करने की सलाह देनी चाहिए वह अपना
गणना कार्य शुद्धता से कर सके।
• गणित में शुद्धता से कार्य करने के लिए अभ्यास कार्य (Drill work) पर
विशेष बल देना चाहिए।
• अपने विचार तर्क-वितर्क, कल्पना शक्ति आदि के आधार पर किए गए
कार्य को लिखित रूप से व्यक्त करने को कहा जाए। लिखित कार्य द्वारा
बालक अपनी त्रुटियों को पहचानकर उनमें सुधार कर सकता है।
7.3 गणित शिक्षण की विधियाँ
गणित शिक्षण में सीखने और सीखने के कार्य को सुगम बनाने के लिए
शिक्षण विधियों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक होता है, क्योकि प्रभावी शिक्षण
विधियों के ही प्रयोग से बालक गणित के अध्ययन में रुचि लेते हैं तथा
उनको यह विषय जटिल तथा नीरस भी नहीं लगता है तथा उनका शिक्षण
कार्य त्रुटि रहित रहता है।
गणित शिक्षण से सम्बन्धित प्रमुख विधियाँ निम्नवत् हैं
7.3.1 आगमन विधि
आगमन विधि (Inductive Method) अनुप्रेरण पर आधारित है। इस विधि में
विशेष तथ्यों या उदाहरणों की सहायता से सामान्य नियमों का निष्कासन छात्रों
से करवाया जाता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि इसमें “विशेष से
सामान्य की ओर” सूत्र का पालन किया जाता है।
लेण्डल ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है “जब कभी हम
बालकों के समक्ष बहुत से तथ्य उदाहरण या वस्तुएँ प्रस्तुत करते है और
फिर उनसे अपने स्वयं के निष्कर्ष निकलवाने का प्रयास करते हैं, तब हम
शिक्षण की आगमन विधि का प्रयोग करते हैं।”
इस विधि में अध्यापक एक गणितीय समस्या को एक विशेष ढंग से हल कर
लेता है। दूसरी समस्या भी उसी ढंग से हल हो जाती है।
इसी प्रकार तीसरी भी। अब ढंग विशेष को ही नियम या सूत्र का रूप दे
दिया जाता है। यही आगमन है। यह आवश्यक नहीं कि प्रश्न का हल करने
का ढंग शिक्षक द्वारा ही बनाया जाए, छात्र स्वयं भी अभ्यास और अपनी
बुद्धि द्वारा ऐसा नियम निकाल सकते हैं।
यह विधि नितान्त मनोवैज्ञानिक है और छात्र के मस्तिष्क को अच्छा व्यायाम
करा देती है।
आगमन विधि के गुण
• गणित शिक्षण की आगमन प्रणाली छात्रों को अभ्यास एवं स्वयं प्रयास
करने का अवसर प्रदान करती है एवं उसके मस्तिष्क के विकास में
सहायक सिद्ध होती है।
• आगमन विधि के द्वारा प्राप्त किया गया गणित का ज्ञान बालक के मस्तिष्क
में सदैव के लिए बैठ जाता है।
• यह विधि प्रत्यक्ष तथ्यों पर आधारित है। इस कारण पूर्णतया वैज्ञानिक है।
• इस प्रणाली से प्रदान किया गया गणित शिक्षण छात्रों में आत्मविश्वास की
भावना उत्पन्न करता है।
आगमन विधि के दोष
• यह प्रणाली अत्यन्त धीमी है और यदि इस प्रणाली को अपनाकर गणित
का शिक्षण प्रदान किया जाए, तो कभी पाठ्यक्रम समाप्त नहीं होगा।
• यह विधि सभी बालकों के लिए उपयोगी नहीं है। सब बालकों में योग्यता
एक-सी नहीं होती कि वे गणित के सामान्य नियम निकाल सकें। कुछ
विशिष्ट बालक ही ऐसे होते हैं जो अध्यापक की सहायता से नियम
निकलवाने में समर्थ हो पाते हैं।
• इस विधि के फलस्वरूप कभी-कभी छात्र गलत निष्कर्ष पर पहुँच जाते है
और उनके मस्तिष्क पर विषय की गलत छाप अंकित हो जाती है।
• गणित शिक्षण में इस विधि का कक्षा में सदैव प्रयोग नहीं किया जा सकता।
7.3.2 निगमन विधि
यह विधि आगमन विधि के विपरीत है। इस विधि में पहले परिभाषा, सूत्र एवं
निर्देश आदि को बता दिया जाता है और फिर प्रयोग निरीक्षण आदि की
सहायता से उसे सत्य सिद्ध किया जाता है।
इस विधि में “सामान्य से विशेष की ओर” सूत्र का अनुसरण किया जाता
है। निगमन विधि में शिक्षक छात्रों को सामान्य नियम का सूत्र स्वयं बता देते
हैं और उस सूत्र के द्वारा नियम का प्रयोग विशेष समस्या को हल करने के
लिए करते हैं।
उदाहरण के लिए छात्रों को यह पहले ही बता दिया जाए कि समानुपात में
बाह्य राशियों का गुणनफल मध्य राशियों के गुणनफल के बराबर होता है
और इस नियम से सम्बन्धित प्रयोग किए जाएँ तो यह निगमन विधि
(Deductive Method) है,
यथा                                 (A+ B)² = A² + 2AB + B²
निगमन विधि के गुण
• यह विधि गणित शिक्षण कार्य को अत्यन्त सरल बना देती है एवं छात्रों से
नियम ज्ञात कराने से कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती।
• अंकगणित एवं बीजगणित शिक्षण में निगमन विधि विशेष रूप से सहायक
सिद्ध होती है। इस विधि द्वारा छात्र अत्यन्त शीघ्रता एवं सरलतापूर्वक ज्ञान
प्राप्त कर लेते हैं।
• यह विधि सामान्य नियम या सिद्धान्त या सूत्र की सत्यता की जाँच हेतु
अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होती है।
• निगमन तर्क अन्तिम एवं अकाट्य होता है। यह तर्क वास्तव में गणितीय
होता है एवं इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं किया जा सकता।
निगमन विधि के दोष
• निगमन विधि के अन्तर्गत छात्र सामान्य नियमों और सूत्रों की खोज स्वयं
नहीं करते बल्कि उनको स्मरण रखते है। कभी-कभी भूल जाने पर उन्हें
पुनः स्मरण करना होता है। अत: यह विधि अमनोवैज्ञानिक है।
• यह विधि छात्रों को रटने की आदत डालती है। छात्र सामान्य नियमों,
सिद्धान्तो या सूत्रों को बिना समझे हुये ही कण्ठस्थ करने का प्रयास करते
है जोकि गणित जैसे विषय के लिए अत्यन्त हानिकारक है।
• यह विधि छात्रों को जो ज्ञान देती है। वह अस्थायी और अस्पष्ट होता है
क्योंकि वह उस ज्ञान को स्वयं के प्रयास से प्राप्त नहीं करते।
7.3.3 संश्लेषण विधि
संश्लेषण विधि (Synthesis Method), विश्लेषण विधि के विपरीत है। इस
सा में ज्ञात से अज्ञात की तरफ जाते है। जब कभी हमको रेखागणित में
कोई साध्य सिद्ध करनी होती है तो हम परिकल्पना के आधार पर किसी
कर्ष पर पहुंचते हैं। रेखागणित की पुस्तकों में जिस रूप में साध्यो को हल
लिखा जाता है वह संश्लेषण का रूप है। इसे विश्लेषण विधि के पदों का
संक्षिप्त रूप कहते है।
संश्लेषण में एक तथ्य की सत्यता की जाँच होती है। परन्तु इससे पाठ का
सही तथा वास्तविक ढाँचा ज्ञात नहीं होता है। इस प्रकार संश्लेषण विधि
माध्य सिद्ध करती है लेकिन उसकी व्याख्या नहीं करती। इसके द्वारा
विश्लेषण विधि से प्राप्त तथ्य की जाँच की जा सकती है।
संश्लेषण विधि के गुण
• यह विधि विश्लेषण विधि से सरल है तथा हल या निष्कर्ष निकालने की
विधि से अधिक स्थान नहीं घेरती।
• विश्लेषण विधि के पश्चात् संश्लेषण विधि का उपयोग आवश्यक है।
• ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर करने का सिद्धान्त मनोवैज्ञानिक है तथा
विद्यार्थियों के लिए असुविधाजनक है। अध्यापक के कार्य को इस विधि ने
अत्यधिक सरल बना दिया है।
संश्लेषण विधि के दोष
• इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान विद्यार्थियों के द्वारा स्वयं ढूंढा हुआ नहीं होता
इसलिए वह स्थायी नहीं होता।
• यह विधि केवल सिद्ध कर सकती है, समझा नहीं सकती।
• किसी साध्य अथवा समस्या का हल इस विधि से ज्ञात नहीं किया जा
सकता।
• इस विधि से छात्रों की तर्कशक्ति, निर्णयशक्ति तथा सोचने की शक्ति का
विकास नहीं हो सकता।
• यह एक नीरस तथा निर्जीव विधि है। छात्र प्रत्येक बात को समझने के लिए
अध्यापक पर निर्भर रहते है।
7.3.4 विश्लेषण विधि
विश्लेषण (Analytical) से अभिप्राय है कि किसी समस्या को छोटे-छोटे
भागों में विभाजित करके उसका अध्ययन करना और किसी निष्कर्ष पर
पहुँचना। संश्लेषण से अभिप्राय है विश्लेषित तथ्यों को इकट्ठा करना और
अभीष्ट परिणाम प्राप्त करना।
रसायन शास्त्र में पानी (H₂O) को हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में विभाजित करना
विश्लेषण है। इसके विपरीत ऑक्सीजन को किसी विशेष ताप या दबाव पर
संयुक्त कर पानी बनाना संश्लेषण है। संश्लेषण और विश्लेषण एक-दूसरे के
पूरक है।
संश्लेषण में हमें कुछ तथ्य ज्ञात होते हैं और उनकी सहायता या उन्हें संयुक्त
करके हम एक निष्कर्ष पर पहुँच सकते है जो पहले अज्ञात था। इस प्रकार
संश्लेषण ज्ञात से क्या अज्ञात की ओर बढ़ता है। मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक
यह मानते हैं, कि मनुष्य की बौद्धिक क्रिया का अन्तिम सोपान संश्लेषण
विश्लेषण के उद्देश्य को पूरा करता है। गणित शिक्षण में विश्लेषण और
संश्लेषण दोनों ही उपयोगी है।
7.3.5 अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि
वैज्ञानिक विषयों को पढ़ाने के लिए 19वीं शताब्दी में आर्मस्ट्रांग ने इस विधि
की खोज की। Heuristic (हारिस्टिक) शब्द यूनानी भाषा के शब्द Heurisco
(रिस्को) से बना है जिसका तात्पर्य है “मैं स्वयं खोज करता हूँ।” इस
प्रकार स्पष्ट है कि रिस्टिक विधि स्वयं खोज करके या अपने आप सीखने
की विधि है। वास्तव में इसे विधि न कहकर शिक्षण की एक प्रवृत्ति कहना
अधिक उचित होगा।
इस विधि में अध्यापक विषय वस्तु की व्याख्या विधि की भांति ही सीधे-सीधे
ढंग से बतलाता नहीं है बल्कि प्रश्नों द्वारा छात्रों को स्वयं खोजने हेतु बाध्य
करता है। इस विधि में छात्र निष्क्रिय श्रोता मात्र न रहकर स्वयं अन्वेषक या
आविष्कारक बन जाते हैं। प्रयोगशाला विधि से भिन्न इस विधि में छात्रों को
स्वयं सोचने का अवसर प्रदान किया जाता है। छात्र गणित के विभिन्न प्रश्नों
के उत्तर बिना किसी की सहायता के स्वयं प्राप्त करते है।
बर्नार्ड ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “जहाँ तक सम्भव होता है
वहाँ तक यह प्रणाली छात्र को खोजने वाले की स्थिति में रखती है। उसे
अपनी आधार सामग्री स्वयं खोजनी पड़ती है और अपने प्रश्नों को स्वयं
पूछना पड़ता है। फिर आगमन की वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके उसे अपने
सिद्धान्तों का परीक्षण और अपने निष्कर्षों का निर्माण करना पड़ता है।
गणित शिक्षण में यूरिस्टिक विधि सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हो सकती है परन्तु
आवश्यकता इस बात की है, कि इसके लिए वांछित पर्यावरण उपयुक्त
सामग्री, योग्य शिक्षक और विशिष्ट विद्यालय संगठन की व्यवस्था की जाए
तथा छात्रों को आवश्यतानुसार खोज कार्य में सहायता प्रदान की जाए। छात्रों
से विचारोत्तेजक प्रश्न किये जाएँ जिससे कि उनको सोचने का अवसर प्राप्त
हो। छात्रों से “हाँ” या “नहीं” वाले प्रश्न न पूछे जाएँ उनसे उत्तरसूचक प्रश्न
भी न पूछे जाएँ। यहाँ हम कुछ उदाहरणों द्वारा अशुद्ध और शुद्ध ह्यूरिस्टिक
विधियों को संक्षेप में स्पष्ट करेंगे।
ह्यूरिस्टिक विधि के गुण
• गणित शिक्षण हेतु यह विधि इस कारण उपयोगी है, कि यह छात्रों में
मनोवैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण करती है।
• यह विधि तर्क, निर्णय, कल्पना, चिन्तन आदि का उपयुक्त अवसर प्रदान
करके बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र बनाती है।
• यह विधि छात्र को ज्ञान की खोज करने की स्थिति में रखती है।
• गणित शिक्षण में यह विधि इसलिए भी उपयोगी है, कि यह छात्र को पहले
से निश्चित रूप से तथ्यों को न बताकर उसे उनकी ओर अग्रसर करती है।
• यह विधि छात्रों को स्वयं गणित कार्य करने हेतु प्रेरित करती है और उसमें
स्वतन्त्र अध्ययन और स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।
ह्यूरिस्टिक विधि के दोष
• यह विधि केवल असाधारण बुद्धि वाले छात्रों के गणित शिक्षण के लिए
उपयोगी है, क्योंकि वे ही गणित के क्षेत्र में अन्वेषण करने में समर्थ होते
है, साधारण बुद्धि वाले छात्र स्वयं अन्वेषण नहीं कर पाते।
• गणित शिक्षण की यह विधि छात्रों को गलत नियम, निष्कर्ष अथवा
सिद्धान्तों पर पहुंचा सकती है, क्योकि उनका मस्तिष्क इतना परिपक्व और
विकसित नहीं होता कि वे अपनी गलती को समझ सके।
• निम्न कक्षाओं में गणित शिक्षण में इस विधि का उपयोग नहीं किया जा
सकता, क्योंकि निम्न कक्षाओं के छात्र स्वयं अन्वेषण करने में समर्थ
नहीं होते।
• इस विधि का एक दोष यह भी है, कि इसमें आगमन और वस्तुपरक शिक्षण
के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के शिक्षण का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
परिणाम यह होता है, कि इसमें शिक्षण के समस्त पहलुओं का समावेश नहीं
होता है।
7.3.6 प्रयोगशाला विधि
विज्ञान की सभी शाखाओं के अध्ययन में प्रयोगशाला विधि (Laboratory
Method) अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हुई है। गणित एक ऐसा विषय है जो
केवल पढ़कर ही नहीं सीखा जा सकता। गणित के अध्यापन को सुधारने एवं
अर्थपूर्ण बनाने के लिए विद्वानों ने प्रयोगशाला विधि को ही लाभप्रद माना
है। गणित एक ऐसा विषय है जो केवल पढ़कर ही नहीं सीखा जाता बल्कि
करने से सीखा जाता है। क्रियात्मक रूप में गणित का ज्ञान देने के लिए यह
विधि बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह विधि शिक्षा की प्रसिद्ध उक्ति ‘स्थूल से सूक्ष्म
की ओर’ पर आधारित है।
इस विधि में छात्र स्वयं गणित की प्रयोगशाला में उपलब्ध यन्त्रों, उपकरणों
तथा अन्य सामग्री की सहायता से गणित के तथ्यों, नियमों, सिद्धान्तों, सम्बन्धों
आदि की सत्यता की जाँच करते हैं और उनका उपयोग व्यावहारिक
समस्याओं के हल ज्ञात करने में करते हैं। इस विधि में ‘ज्ञात से अज्ञात’ तथा
‘करो और सीखो’ का सिद्धान्त काम में लाया जाता है। यह विधि विद्यार्थियों
को स्वयं अपने हाथों से काम करने की प्रेरणा देती है तथा उनमें गणित के
प्रति रुचि जाग्रत करती है।
प्रयोगशाला विधि के गुण
• प्रयोगशाला में सीखा हुआ ज्ञान स्थायी होता है तथा प्रायोगिक उपयोग की
सम्भावनाएँ भी अधिक होती हैं।
• इस विधि से जो ज्ञान प्राप्त होता है वह सक्रिय रहता है तथा स्थूल तथ्यों
पर आधारित होता है।
• इस विधि द्वारा छात्रों की प्रयोग करने की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।
• इससे गणित के सिद्धान्तों, संकल्पनाओं, सम्बन्धों, विधियों आदि का स्पष्ट
ज्ञान प्राप्त करना सम्भव है।
• विद्यार्थियों में निरीक्षण एवं तर्क करने की क्षमता का विकास होता है।
• छात्र प्रयोगशाला के उपकरणों आदि का कुशलता से उपयोग करना सीखते
हैं जो उनको विज्ञान, इन्जीनियरिंग आदि क्षेत्रों में लाभप्रद सिद्ध होता है।
प्रयोगशाला विधि के दोष
• इस विधि का मुख्य दोष यह है, कि गणित के सभी प्रकरण इस विधि
द्वारा नहीं पढ़ाए जा सकते।
• यह विधि अधिक खर्चीली है। गणित की एक अच्छी प्रयोगशाला संगठित
करने के लिए पर्याप्त धन की तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है।
साधारण विद्यालय इसके लिए धन खर्च करने की क्षमता नहीं रखता।
• यह विधि सभी विद्यार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी नहीं है, क्योंकि
प्रत्येक विद्यार्थी की कार्यक्षमता समान नहीं होती।
• यह एक बहुत ही धीमी विधि है तथा निर्धारित पाठ्यक्रम को इसकी
सहायता से समय पर पूरा नहीं किया जा सकता।
• प्रत्येक अध्यापक इस विधि का ठीक रूप से प्रयोग नहीं कर सकता।
                                               अभ्यास प्रश्न
1. गणित शिक्षण के दौरान बालकों को कोई
पाठ पढ़ाने से पूर्व एक शिक्षक को किसका
ज्ञान प्राप्त कर लेना आवश्यक होता है?
(1) सम्बन्धित पाठ के उद्देश्य
(2) सम्बन्धित पाठ की शिक्षण विधियों का
(3) सम्बन्धित पाठ के प्रश्न बैंक का
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
2. गणित शिक्षण में त्रुटियों के विश्लेषण हेतु
अपेक्षित अधिगम सफलता किसकी शिक्षण
दक्षता पर निर्भर करती है?
(1) शिक्षक
(2) छात्र
(3) अभिभावक
(4) प्रधानाचार्य
3. गणित पढ़ाने के एक उपागम के रूप में
समस्या समाधान के बारे में चर्चा करते हुए
शिक्षकों ने चार विचार बताएँ। निम्नलिखित
में से कौन-सा विचार इस उपागम के
वास्तविक अर्थ को उचित सिद्ध नहीं
करता?
(1) “मेरे विचार से गणित की पाठय-पुस्तक के
कई प्रश्न समस्या समाधान के लिए इस्तेमाल
किए जा सकते हैं”
(2) “मेरे विचार से समस्या समाधान को
सामान्य गणित की कक्षा से जोड़ना बेहतर
होता है”
(3) “मेरे विचार से समस्या समाधान और
गणितीय तर्कणा में कोई सह-सम्बन्ध
नहीं है”
(4) “मेरे विचार से समस्या समाधान के प्रश्न
वास्तविक जीवन की स्थितियों से बनाए जाने
चाहिए”
4. गणित में निम्न में से कौन-सा चरण
समस्या-समाधान विधि का नहीं है?
(1) शारीरिक सौष्ठव को अधिक महत्त्व देना
(2) आँकड़ों का संकलन तथा व्याख्या करना
(3) निष्कर्ष निकालना तथा सामान्यीकरण
करना
(4) समस्या को समझना तथा परिभाषित करना
5. “समस्या समाधान एक ऐसी प्रक्रिया है,
जिसकी ओर सीखने सम्बन्धी सभी क्रियाएँ
अग्रसर होती हैं तथा दी गई समस्या का
समाधान करती हैं।” उक्त परिभाषा दी है
(1) कीन्स
(2) हर्बर्ट
(3) योकम और सिम्पसन
(4) क्रो एवं क्रो
6. क्षेत्रमिति पढ़ाते समय शिक्षक आगे बढ़ने से
पहले बोर्ड पर सभी सूत्र लिख देता है। यह
तरीका दर्शाता है, कि वह का
अनुपालन कर रहा है।
(1) निगमन उपागम
(2) प्रायोगिक उपागम
(3) व्यावहारिक उपागम
(4) आगमन उपागम
7. गणित शिक्षण की मुख्य विधि है
(1) व्याख्यान विधि
(2) प्रदर्शन विधि
(3) आगमन-निगमन विधि
(4) उपरोक्त सभी
8. प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण में बच्चों
में त्रुटि की सम्भावना को कम करने के
लिए शिक्षक को चाहिए कि वह
(1) बालकों में गणितीय चिह्नों के प्रयोग का
बार-बार अभ्यास कराएँ
(2) बालकों में गणित के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
पैदा करें
(3) बालकों को हतोत्साहित न करें
(4) उपरोक्त सभी
9. उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का
सर्वाधिक महत्त्व किस रूप में है?
(1) भौतिक
(2) मानसिक
(3) व्यावहारिक
(4) आध्यात्मिक
10. बालकों में गणित सम्बन्धी त्रुटियों का पता
लगाने के लिए आवश्यक है।
(1) उपचारात्मक परीक्षण
(2) निदानात्मक परीक्षण
(3) मौखिक परीक्षण
(4) स्वभाव परीक्षण
11. गणित शिक्षण में शिक्षक द्वारा की जाने
वाली त्रुटि प्रमुख है
(1) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग न करना
(2) चित्रात्मक तरीके से बालकों को पढ़ाना
(3) शिक्षण कार्य के बीच बार-बार कक्षा में धूमकर
बालकों का निरीक्षण करना
(4) उपरोक्त सभी
12. बच्चों की अभ्यास पुस्तिका विश्लेषण करने
के लिए आप निम्न में से किसकी जाँच
करेंगे?
(1) काट-पीट की
(2) लिप्त लिखावट की
(3) शुद्धता की
(4) उपरोक्त सभी
13. रमन चार तीलियों को जोड़कर एक चक्र
+ तैयार करता है फिर वह अपनी
पुस्तिका में एक तालिका बना रहा है
चक्रों की संख्या          1   2    3  …
तीलियों की संख्या      4   8  12  …
उपरोक्त के आधार पर आप क्या कहेंगे?
(1) रमन खेल रहा है
(2) रमन गणित सीख रहा है
(3) रमन खेलने के साथ गणित सीख रहा है
(4) रमन समय पास कर रहा है
14. गणित विषय में छात्रों में गति एवं शुद्धता,
विकसित करने के लिए गणित अध्यापक
को शिक्षण करते समय ध्यान रखना चाहिए
(1) मौखिक कार्य
(2) निर्धारित तथा सीमित समय में दत्त कार्य
(3) गणना सम्बन्धी सहायक सामग्री का प्रयोग
(4) ‘1’ व ‘2’
                              विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
15. गणित करने की युक्ति के रूप में सवाल हल
करना’ में शामिल है।            [CTET June 2011]
(1) क्रिया-कलाप आधारित उपागम
(2) अनुमान लगाना
(3) व्यापक अभ्यास
(4) हल पर पहुँचने के लिए संकेतों का प्रयोग
16. भिन्नों की तुलना पढ़ाते समय जिसमें अंश
समान है,
जैसे-3/5 और 3/7 रोहित की प्रतिक्रिया थी।
“चूँकि अंश समान हैं और 7, 5 से बड़ा
है, अत: 3/7, 3/5 से बड़ा होगा।”
यह बताता है कि           [CTET June 2011]
(1) रोहित तुल्य मिन्नों की अवधारणा नहीं जानता
(2) रोहित ने अच्छी तरह अभ्यास नहीं किया है
(3) रोहित को भिन्नों के परिमाण की समझ नहीं है
(4) रोहित अंश और हर की अवधारणा नहीं
जानता
17. जब राजन के सामने शाब्दिक समस्याएँ
आती हैं, तो वह प्राय: पूछता है “मैं जमा
करूं या घटा?” “मैं गुणा करूँ या
भाग?”। इस तरह के प्रश्न बताते हैं कि
                                 [CTET June 2011]
(1) राजन संख्या-संक्रियाओं को नहीं समझता
(2) राजन जोड़ और गुणा नहीं कर सकता
(3) राजन कक्षा में बाधा डालने के लिए अवसर
खोजता है
(4) राजन को भाषा समझने में कठिनाई होती है
18. भिन्नों का योग पढ़ाते समय शिक्षक को
नीचे दी हुई एक त्रुटि ज्ञात हुई
1/2 + 1/3 = 2/5
इस स्थिति में शिक्षक को उपचारात्मक कार्य
के रूप में क्या करना चाहिए?
                                    [CTET June 2011]
(1) प्रत्येक मिन्न के परिमाण को समझने में बच्ची
की सहायता करे
(2) लघुत्तम समापवर्त्य (ल.स.) की अवधारणा को
समझने में बच्ची की सहायता करे
(3) बच्ची से कहें कि वह अधिक से अधिक अभ्यास
करे
(4) इसमें अधिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए,
क्योंकि बच्ची जैसे ही बड़ी होगी, वह समझ
जाएगी
19. रिजुल एक गतिसंवेदी (Kinesthetic)
शिक्षाथी है। उसकी शिक्षिका सुश्री नेहा
उसकी अधिगम-शैली को समझती है।
उसकी गुणन की संकल्पना को स्पष्ट करने
के लिए उन्हें निम्नलिखित में से किस
व्यूह-रचना का चयन करना चाहिए?
                                      [CTET Jan 2012]
(1) आड़ी-तिरछी रेखाओं पर प्रतिच्छेदन बिन्दुओं
को गिनना
ph
12×1=2
(2) सभी पहाड़ों को याद करने के लिए उस पर
बल देना
(3) 2, 3 आदि के गुणज प्राप्त करने के लिए दो
भिन्न रंग वाले मोती और धागे का प्रयोग
करना
ph
(4) कटवा गिनती
ph
20. कक्षा II में अबेकस का प्रयोग…….. में
विद्यार्थियों की सहायता नहीं करता है।
                              [CTET Jan 2012]
(1) स्थानीय मान की महत्ता को समझने
(2) बिना किसी त्रुटि के संख्याओं को पढ़ने
(3) शब्दों में दी गई संख्याओं के समान संख्यांक
लिखने
(4) गणना में परिशुद्धता प्राप्त करने
21. भिन्नों का योग पढ़ाते समय, श्री सिंह द्वारा
यह देखा गया कि निम्नलिखित प्रकार की
त्रुटि बहुत आम है
2/3 + 2/5 = 4/10
श्री सिंह को निम्नलिखित उपचारात्मक कार्य
करना चाहिए                     [CTET Jan 2012]
(1) समान प्रकार के सवालों का अधिक अभ्यास
कराना
(2) असमान भिन्नों के योग की संकल्पना को स्पष्ट
करने के लिए चित्रात्मक प्रतिरूप देना तथा
बाद में समान प्रकार के सवालों का अभ्यास
कराना
(3) विद्यार्थियों को मेहनत करने की सलाह देना
और मिन्नों के योग वाले सवालों का अभ्यास
कराना
(4) हर के लधुत्तम समापवर्त्य (ल.स.) की
संकल्पना को स्पष्ट करना
22. कक्षा III का बच्चा 482 को चार सौ
बयासी पढ़ता है लेकिन 40082 लिखता
है। यह शिक्षक के लिए किस ओर
संकेत करता है?             [CTET Nov 2012]
(1) बच्चा संख्या की अभिव्यक्ति के विस्तारित
रूप और लघु रूप से भमित है
(2) शिक्षक को स्थानीय मान विषय तब ही
पढाना चाहिए जब बच्चे संख्याओं को
भली प्रकार लिखना सीख जाएँ
(3) बच्चा क्या में एकाग्र नहीं है और ध्यान से
नही सुनता
(4) बच्या ध्यान से सुनता है लेकिन स्थानीय
मान की समझ स्थापित नहीं कर पाया है
23. प्रदीप को एक टूटा हुआ रूलर 234
5 6 दिखाया जाता है और पूछा जाता
है कि रूलर में 6 सेमी कहाँ है। वह
रूलर उठाता है और रूलर पर 5 सेमी
के निशान को चिह्नित करता है उसका
उत्तर
ph
                           [CTET Nov 2012]
(1) गलत है क्योंकि रूलर टूटा हुआ है और
उसे 2 से शुरू करना चाहिए था और 7
को चिहित करना था जोकि वांछनीय चिह्न
है
(2) यह बता रहा है कि उसकी संकल्पना
त्रुटिपूर्ण है कि 5 सेमी एक बिन्दु के रूप
में है न कि लम्बाई के रूप में
(3) सही है क्योंकि उसने रूलर पर 5 सेमी
के निशान को सही चिह्नित किया है
(4) गलत है क्योंकि वह केवल निशान को देख
रहा है न कि 0 और 5 के रूप में चिड़ित
दो बिन्दुओं के बीच की दूरी को
24. प्राय: शिक्षार्थी दशमलव संख्याओं की
तुलना में त्रुटि करते हैं। उदाहरण के
लिए 0.50,0.5 से बड़ा है। इस त्रुटि
का सर्वाधिक सम्भावित कारण हो
सकता है                  [CTET July 2013]
(1) क्रमिक दशमलय में शून्य की सार्थकता से
सम्बन्धित भ्रान्तिपूर्ण संकल्पना
(2) कक्षा में इस प्रकार के सवालों के अभ्यास
का अभाव
(3) संख्या रेखा पर दशमलव संख्या के
निरूपण के मूर्त अनुभवों का अभाव
(4) शिक्षार्थियों द्वारा लापरवाही बरतना
25. किसी अभ्यास में प्रश्न था, P•——-•Q
तथा R•———•s रेखाखण्डों की लम्बाई
मापिए।
बच्चे ने उत्तर दिया AB की लम्बाई = 5 सेमी,
AB की लम्बाई – 3 सेमी यह संकेत करता है
                                 [CTET Sept 2014]
(1) संकल्पनात्मक त्रुटि को
(2) कार्यविधिक त्रुटि को
(3) रेखाखण्ड का नाम AB लिखने की आदत के कारण
तुटि को
(4) पढ़ने की त्रुटि को
26. किसी छात्र ने नीचे दी गई संख्याओं को पढ़ने
के लिए कहा गया
306, 408, 4008, 4018
उसने इन्हें इस प्रकार पढ़ा तीस छ:, चालीस
आंठ, चार सौ आठ, चालीस दस पढ़ने में त्रुटि
का कारण है कि                  [CTET Sept 2014]
(1) छात्र को गणित की क्या अच्छी नहीं लगती और
कक्षा उबाऊ (कष्टदायक) लगती है
(2) छात्र ने स्थानीय मान की संकल्पना तो समझ ली है
परन्तु उसका उपयोग नहीं जानता
(3) छात्र गणित का आध्ययन करने के लिए उपयुक्त
नहीं है
(4) छात्र स्थानीय मान की संकल्पना को नहीं समझता है
और उसे केवल दो अंकीय संख्याओं को पदना आसान
लगता है
27. फरहान ने विद्यालय के पुस्तकालय में जाने पर
यह पाया कि कहानी अनुभाग में रखी 100
पुस्तके नष्ट हो गई है। 20 पुस्तकों का किसी
को पता नहीं है। 219 पुस्तके अलमारी मे रखी
है और 132 पुस्तको को बच्चों को पढ़ने के
लिए दिया गया है। पुस्तकालय में कुल कितनी
कहानी की पुस्तके थी। शिक्षक इस प्रश्न द्वारा
निम्नलिखित किस मूल्य को पढ़ा सकता है?
                                            [CTET Sept 2014]
(1) अन्य की सहायता करना
(2) अन्य के साथ पुस्तकों की साझेदारी करना
(3) पुस्तकों की अच्छी देखभाल करना
(4) सहयोग की संवदेनशीलता
28. प्राथमिक स्तर के बच्चे दी गई आकृतियों को
उनकी दिखावट के आधार पर वर्गीकृत करने के
योग्य है। वेन हाइल के अनुसार, वे ज्यामितीय
के……पर है                           [CTET Sept 2014]
(1) मानसिक चित्रण स्तर
(2) विश्लेषणात्मक स्तर
(3) अनौपचारिक निगमन स्तर
(4) औपचारिक निगमन स्तर
29. एक बच्चा मानसिक रूप से (27+36) को
65 के रूप में परिकलित करता है। जब
उसे योग करने के अपने तरीके के बारे में
व्याख्या करने के लिए कहा गया, तो उसने
प्रतिक्रिया के रूप में कहा कि 38, 40 के
नजदीक है इसलिए (27 + 40), 67 है, तो
मैंने 65 को प्राप्त करने के लिए 2 घण्टे
दिए। योग करने की यह युक्ति……….है।
                                      [CTET Sept 2014]
(1) प्रत्यक्ष प्रतिरूपण
(2) पुनर्समूहीकरण
(3) प्रतिकारी
(4) संवृद्धिकारक
30. कक्षा 3 में एक शिक्षक शिक्षार्थियों को
4562 और 728 का योग करने के लिए
कहता है। एक शिक्षार्थी प्रश्न के उत्तर में
निम्न प्रकार से प्रतिक्रिया करता है
यह प्रतिक्रिया यह दर्शाती है कि बच्चे
में……… कमी है।               [CTET Sept 2014]
                                    4562
                                   + 728
                                  ————
                                   11842
(1) योग के कौशल की
(2) स्थानीय मान की अवधारणा की
(3) पुनर्समूहीकरण के द्वारा योग के कौशल की
(4) योग के सही क्रम की अवधारणा की
31. यदि एक शिक्षार्थी को संख्याओं और
परिकलन में समस्या हो रही है, तो उसमें
असमर्थता हो सकती है, जिसका नाम है
                                      [CTET Sept 2015]
(1) लेखन-अक्षमता (डिस्त्राफिया)
(2) गणितीय-अक्षमता (डिस्कैल्कुलिया)
(3) दृश्य-स्थानिक संगठन में असमर्थता
(4) पठन-अक्षमता (डिस्लेक्सिया
                                                   उत्तरमाला
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