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CTET Notes In Hindi | पर्यावरणीय अध्ययन

CTET Notes In Hindi | पर्यावरणीय अध्ययन

पर्यावरणीय अध्ययन
                         Environmental Studies
विगत वर्षों के CTET के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने से यह
ज्ञात हुआ है कि यह अध्याय परीक्षा की दृष्टि से अत्यन्त
महत्त्वपूर्ण है। CTET परीक्षा 2011 में इस अध्याय से 4 प्रश्न,
2012 में 1 प्रश्न, वर्ष 2013 में 7 प्रश्न, वर्ष 2014 में 6 प्रश्न, वर्ष
2015 में 6 प्रश्न तथा 2016 में 4 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET
परीक्षा में अधिकांश प्रश्न मुख्यत: पर्यावरण अध्ययन की
संकल्पना, क्षेत्र एवं एकीकृत अध्ययन आदि प्रकरणों से
सम्बन्धित हैं।
1.1 अर्थ एवं परिभाषा
‘पर्यावरण’ शब्द ‘परि’ + ‘आवरण’ दो शब्दों के मिलने से बना है। ‘परि’
का तात्पर्य-‘चारों ओर’ और ‘आवरण’ का तात्पर्य-‘घेराव’; इस तरह
पर्यावरण (Environment) का तात्पर्य है ‘चारों ओर का आवरण या घेराव।’
ध्यान देने योग्य बात यह है कि चारों ओर के घेराव में इसे प्रभावित करने
वाले सभी भौतिक, जैविक एवं सांस्कृतिक कारकों को शामिल किया जाता है।
पर्यावरण उन सभी दशाओं, प्रणालियों तथा प्रभावों का योग माना जाता है,
जो जीवों व उनकी प्रजातियों के विकास, जीवन एवं मृत्यु को प्रभावित
करते हैं।
पर्यावरण को परिभाषित करने का कार्य कई विद्वानों ने किया है, जिनमें से
कुछ की परिभाषा निम्नलिखित है
हॉलैण्ड एवं डगलस के अनुसार, “जीव जगत् के प्राणियों के विकास,
परिपक्वता, प्रकृति, व्यवहार तथा जीवन शैली को प्रभावित करने वाली
समस्त बाह्य शक्तियों तथा घटनाओं को पर्यावरण में सम्मिलित किया
जाता है और उन्हीं की सहायता से पर्यावरण का वर्णन किया जाता है।”
सी.सी. पार्क के अनुसार, “मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर
जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा होता है। उसे पर्यावरण कहा जाता है।”
1.1.1 पर्यावरण अध्ययन की संकल्पना
यावरण शिक्षण का प्राथमिक स्तर से शिक्षण करना आवश्यक है। पर्यावरण
हक है जिसने पृथ्वी को जीवित जगत् का गौरव प्रदान किया है। मानव
समें जोश पोकरण को ही देन माने जाते हैं। इस दृष्टिकोण से
पर्यावरण अध्ययन की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। बालक अपने जीवन में
पर्यावरण के महत्त्व को आत्मसात कर सकें, इसके लिए आवश्यक है कि
इससे सम्बन्धित शिक्षा को प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम में ही शामिल किया
जाए।
• आज के परिवेश में पर्यावरण प्रदूषण एक बहुत गम्भीर समस्या है। इस
प्रदूषण के मूल में मानव और उसकी जीवन सम्बन्धी गतिविधियाँ शामिल
है, जिससे विवश होकर वह भौतिक सुखों के लिए पर्यावरण का दोहन
कर रहा है। यदि हम चाहते है कि बच्चों में अच्छी आदतें डालकर उन्हें
पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक बनाएँ, तो यह कार्य हमें प्राथमिक स्तर
पर ही प्रारम्भ करना चाहिए।
• शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में पर्यावरण को समझते हुए इसके अनुरूप
व्यवहार करने की शिक्षा प्रदान करना भी शामिल है। बालक अपने
पर्यावरण एवं उसमें होने वाली विभिन्न घटनाओं को समझते हुए उसके
अनुकूल एवं उपयुक्त व्यवहार करें इसके लिए आवश्यक है कि उसे
प्राथमिक स्तर से ही इसकी शिक्षा प्रदान की जाए।
• पर्यावरण संरक्षण क्यों आवश्यक है? प्रदूषण क्या है? एवं इसका समाधान
क्या हो सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर को समझाने के लिए बालकों की
सक्रिय भागीदारी अत्यन्त आवश्यक है। बालक को सैद्धान्तिक तरीके से
इनकी अवधारणाओं से अवगत नहीं करा सकते हैं और यदि इस समस्या
से बचने के लिए हमने प्राथमिक स्तर पर बच्चों को इसके सम्बन्ध में
शिक्षा नहीं दी, तो यह आवश्यक नहीं कि वे आगे चलकर पर्यावरण के
हितैषी साबित हों। यदि उन्हें भविष्य में पर्यावरण का हितैषी बनाना है, तो
उनकी सक्रिय भागीदारी वाले पाठ्यक्रम सहित पर्यावरण अध्ययन को
प्राथमिक स्तर से ही शामिल किया जाना आवश्यक है।
• पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत मुख्य रूप से जैवमण्डल का अध्ययन किया
जाता है, क्योकि जैवमण्डल में जितने भी जीव जन्तु निवास करते है, वे
सभी पर्यावरण द्वारा प्रभावित होते हैं। जैवमण्डल के सभी जैविक एवं
अजैविक घटकों की विशेषताओं एवं अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन पर्यावरण
अध्ययन की विशिष्टता है। अत: इसका अध्ययन आवश्यक है।
• पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से अनुशासन एवं नियमों का पालन करते हुए
इस बात का ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है कि हमारे कार्यकलापों से
पर्यावरण को किसी प्रकार की कोई हानि तो नहीं हो रही है। इसलिए इससे
सम्बन्धित अच्छी आदतों के विकास का प्रयास बाल्यकाल से ही प्रारम्भ कर
देना चाहिए।
• पर्यावरण समस्याओं की जटिलता को समझना तथा समस्या समाधान की
क्षमता एवं विश्लेषणात्मक चिन्तन के विकास के लिए भी यह आवश्यक है
कि इसकी शिक्षा प्राथमिक स्तर से ही प्रारम्भ होनी चाहिए।
1.1.2 पर्यावरण अध्ययन का विषय क्षेत्र
पर्यावरण सम्बन्धित विषय क्षेत्रों को निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं
पारिस्थितिकी में In Ecosystem
पारिस्थितिकी वह विज्ञान है, जिसमें जीव तथा उसके वातावरण के आपसी
सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। जनसंख्या तथा प्रदूषण पारिस्थितिकी के दो
महत्त्वपूर्ण विषय है। वर्तमान में सम्पूर्ण पर्यावरण परिवर्तन इन्हीं दो विषयों
से सम्बन्धित है। अत: पारिस्थितिकी पर्यावरण अध्ययन का महत्त्वपूर्ण
क्षेत्र है।
मानव स्वास्थ्य में
मानव स्वास्थ्य (Human Health) तथा पर्यावरण का प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता
है। मानव सम्बन्धित अनेक रोग पर्यावरण के माध्यम से ही फैलते हैं;
जैसे-वायु, जल तथा मिट्टी आदि। पर्यावरण में होने वाले कई परिवर्तन
सीधे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते है। इसलिए मानव स्वास्थ्य पर्यावरण
अध्ययन का आवश्यक क्षेत्र माना जाता है।
वानिकी के क्षेत्र में
प्राकृतिक रूप से वृक्षों के समूह को वन कहा जाता है। वर्तमान समय में वृक्षों
के महत्त्व को देखते हुए इन्हें हरा सोना भी कहा जाने लगा है। वनों के
प्रबन्धन सम्बन्धित कार्यों को वानिकी कहते हैं। इसके लिए विश्व के लगभग
सभी देशों की सरकारों ने अलग से वन विभाग बनाया है। पहले वनों को
संरक्षण देना केवल सरकार की ही जिम्मेदारी मानी जाती थी, लेकिन अब
यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि वन समाज की धरोहर है तथा सरकार के
साथ-साथ समाज के प्रत्येक व्यक्ति क़ा यह नैतिक कर्तव्य है कि वह वनों
के संरक्षण तथा संवर्द्धन में अपना नैतिक योगदान दें।
जैव-प्रौद्योगिकी में
वर्तमान युग को जैव-प्रौद्योगिकी (Biotechnology) का युग कहा जाता है।
पर्यावरण तथा जैव-प्रौद्योगिकी के मध्य गहरे सम्बन्ध है। जैव-प्रौद्योगिकी की
सहायता से ही पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण की गुणवत्ता को बनाए रखने
के लिए विविध प्रयास किए जाते हैं। पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में भी
जैव प्रौद्योगिकी सहायक है।
1.1.3 पर्यावरण अध्ययन का महत्त्व
पर्यावरण अध्ययन बुनियादी तौर पर एक प्रासंगिक विषय है, क्योकि यह स्वच्छ
एवं सुरक्षित पेयजल, स्वास्थ्यपूर्ण जीवनोपयोगी अवस्थाएँ, साफ एवं स्वच्छ वायु,
उपजाऊ भूमि, स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन तथा विकास आदि विषयों से सम्बन्धित है।
• पर्यावरणीय समस्याओं से निपटने के लिए प्रत्येक स्तर पर प्रशिक्षित मानव
संसाधन की आवश्यकता होती है।
• पर्यावरणीय नियम, व्यवसाय प्रबन्धन तथा पर्यावरणीय प्रौद्योगिकी इत्यादि
का तेजी से विकास हुआ है एवं पर्यावरण के बचाव तथा प्रबन्धन के क्षेत्र
में नवीन रोजगार के अवसर भी उभर कर सामने आए हैं।
• प्रदूषण नियन्त्रण के नियम कठोर होने के कारण औद्योगिक इकाइयों को
अपने अपशिष्टों के निस्तारण में काफी परेशानियों का सामना करना पड़
रहा है। उदाहरणस्वरूप-वायुमण्डल की कोई सीमा रेखा निर्धारित नहीं है
और किसी एक स्थान पर उत्पन्न होने वाले प्रदूषक तत्त्व आसानी से अन्य
स्थानों तक पहुँचाए जा सकते हैं। किसी स्थान पर शहरों अथवा कारखानों
के गन्दे पानी द्वारा दूषित की गई नदी के जल का प्रभाव इसके निचले
भागों में उपस्थित जल जीवन को अवश्य प्रभावित करता है। इसी प्रकार
पहाड़ों पर स्थित वनों की क्षति, केवल पहाड़ों को ही नहीं वरन् दूर-दूर
तक स्थित मैदानी भागों को भी समान रूप से प्रभावित करती है। ऐसा
इसलिए होता है, क्योकि पर्यावरण विभिन्न अवयवों तथा उनके
कार्यकलापों से बना एक जटिल तन्त्र है।
• खनन अथवा जल विद्युत परियोजनाओं का प्रभाव, ठोस कूड़े-करकट का
प्रबन्धन इत्यादि स्थानीय समस्याओं से निपटने के लिए हमें स्थानीय रूप से
सोचना पड़ता है और उसके निदान के लिए वही कार्य करने पड़ते हैं।
पर्यावरण के विभिन्न महत्त्वपूर्ण विषयों के बारे में लोगों को जागरूक
कराने के लिए सभी को पर्यावरणीय ज्ञान प्रदान करना अति आवश्यक है।
• बच्चों को पर्यावरण व पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना भी
पाठ्यचर्या का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। इसलिए अब यह पहले से कहीं
अधिक अनिवार्य हो गया है कि पर्यावरण का पोषण व संरक्षण किया
जाए। शिक्षा इसके लिए आवश्यक परिप्रेक्ष्य दे सकती है कि मानव जीवन
का पर्यावरण संकट के साथ किस प्रकार सामंजस्य बैठाया जाए ताकि
जीवन का विकास व संवर्द्धन सम्भव हो सके।
• राष्ट्रीय शिक्षा नीति, वर्ष 1986 ने इस आवश्यकता पर विशेष बल दिया कि
पर्यावरण को शिक्षा के सभी स्तरों पर व समाज के सभी वर्गों के लिए
अनिवार्य कर पर्यावरण सम्बन्धी सरोकार के प्रति जागरूकता पैदा की
जाए, अपने भीतर व अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण के साथ
सामंजस्य स्थापित करते रहना एक मूल मानवीय आवश्यकता है। एक
व्यक्ति के व्यक्तित्व का भली-भाँति विकास एक ऐसे माहौल में ही
सम्भव हो सकता है, जो शान्तिपूर्ण हो।
• एक अशान्त प्राकृतिक व सामाजिक वातावरण अक्सर मानवीय सम्बन्धों में
तनाव लाता है, जिससे असहिष्णुता व संघर्ष पैदा होती है। इस दृष्टिकोण
से भी पर्यावरण अध्ययन का शिक्षण अनिवार्य होना चाहिए।
1.2 एकीकृत पर्यावरण अध्ययन
एकीकृत उपागम का तात्पर्य-शिक्षक के उस दृष्टिकोण से है, जिसे अपनाकर
अलग-अलग विषयों के शिक्षण के स्थान पर सभी विषयों के सम्मिलित
स्वरूप के शिक्षण पर जोर दिया जाता है।
• पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण में एकीकृत उपागम का प्रयोग करने का
आधार यह है कि इस विषय के अन्य उप-विषय; जैसे-भूगोल, भौतिक
विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, पारिस्थितिकी आदि आपस में जुड़े
हुए हैं और शिक्षक इनकी पाठ्यचर्याओं के मध्य सम्बन्ध जोड़ सकते हैं।
• एकीकृत उपागम समवाय तथा समन्वय के सिद्धान्तों पर आधारित होते हैं।
इन सिद्धान्तों के अनुसार, ज्ञान सदैव एक इकाई के रूप में इकट्ठा अर्थात्
विद्यमान रहता है तथा ये एक-दूसरे से सम्बन्धित रहते हैं। यही कारण है
कि हम अपने दैनिक जिन्दगी में ज्ञान को सदैव एक इकाई के रूप में
इकट्ठा ही प्रयोग में लाते हैं। विज्ञान एवं पर्यावरण अध्ययन के विविध
विषयों के ज्ञान के विषय में यह बात पूर्णत: सही है।
• एकीकृत उपागम को एक उदाहरण से अच्छी तरह समझा जा सकता है। यदि
शिक्षक को पानी के विषय में पढ़ाना हो, तो वह हमारे पर्यावरण में इसकी
उपलब्धता एवं इससे प्राप्त ऊर्जा के विषय में बताएगा, जोकि भौतिक विज्ञान,
भूगोल एवं पर्यावरण की विषय-वस्तु होगी। यह उपागम छात्रों के लिए ही
नहीं, बल्कि शिक्षकों के लिए भी अधिक लाभप्रद होता है।
• एकीकृत उपागम व्यावहारिक ज्ञान पर भी विशेष बल देता है, क्योकि समग्र
विषयों को पढ़ाने के लिए इसके व्यावहारिक पहलुओं को अनदेखा नहीं
किया जा सकता।
• शिक्षण के एकीकृत उपागम के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही विज्ञान की
पाठ्यचर्या को एकीकृत रूप में पढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
एकीकृत पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण सम्बन्धी प्रयास
प्रो. डी. एस. कोठारी की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय शिक्षा आयोग भारत में
शिक्षा के प्रति अपने दर्शन की गहराई व व्यापकता में मील का पत्थर साबित
हुआ। इसी आयोग ने वर्ष 1975 में 10 + 2 + 3 पैटर्न को लागू करने के
लिए रास्ता तैयार किया। इस पैटर्न के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की पाठ्यक्रम
समिति ने एक नीति दस्तावेज बनाया, जिसका शीर्षक ‘द कैरिकुलम फॉर द
टेन ईयर स्कूलःए फ्रेमवर्क’ जिनका विज्ञान के पढ़ाए जाने और इसके
पाठ्यक्रम व पाठ्य-पुस्तकों पर सीधा प्रभाव पड़ा।
• प्राथमिक स्तर पर विज्ञान व सामाजिक विज्ञान को एक ही विषय पर्यावरण
अध्ययन के तहत पढ़ाया जाए।
• उच्च प्राथमिक स्तर पर उन दिनों प्रचलित अनुशासनिक उपागम अर्थात्
विभाजित पद्धति (डिसिप्लिनरी एप्रोच) के बजाय विज्ञान को समेकित
(इन्टीग्रेटेड) दृष्टिकोण से अपनाया जाए।
• उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर विज्ञान को एक संगठित विषय ही
माना जाए अर्थात् इन्हें अलग-अलग विषयों; जैसे- जीव, भौतिक और
रसायन विज्ञान में विभाजित नहीं किया जाए।
• कक्षा 1 और 2 के लिए शिक्षकों की मार्गदर्शिका के सिवाय और कोई
पाठ्य-पुस्तक नहीं होनी चाहिए। कक्षा 3 से 5 तक विज्ञान और सामाजिक
अध्ययन के लिए अलग-अलग पाठ्य-पुस्तके तैयार की गई। पर्यावरण
अध्ययन (विज्ञान) के लिए कुछ सामान्य विषय-वस्तु चुनी गई, जो कक्षा
1 से 5 तक श्रेणीवृत्त क्रम में पढ़ाई जानी थी।
• उच्च प्राथमिक स्तर पर जो पद्धति अपनाई गई थी, उसे माध्यमिक स्तर
तक जारी रहने देने का निर्णय लिया गया। हाँ, इस स्तर पर संकाय जनित
रुख अपनाने को जरूर कहा गया।
• वर्ष 1977 में ईश्वर भाई पटेल की अध्यक्षता में गठित रिव्यू समिति ने
सुझाव दिया कि माध्यमिक स्तर पर विज्ञान के दो बराबर कोर्स एकान्तर
(एक के बाद दूसरा) रूप में पढ़ाए जाएँ।
• समिति ने इन्हें नाम दिया कोर्स ‘ए’ और कोर्स ‘बी’। कोर्स ‘बी’ को विज्ञान
का ‘कम्पोजिट कोर्स’ कहा गया, जिसे एक ही पाठ्य-पुस्तक के माध्यम से
पढ़ाया जाता तथा कोर्स ‘ए’ को संकाय जनित किया जाता था। जिसमें
भौतिकी, रसायन और जीव विज्ञान को अलग-अलग पढ़ाया, लेकिन वर्ष
1984-85 से इस प्रस्ताव के ‘एकान्तर कोर्स’ वाले पक्ष को छोड़ दिया
गया, क्योकि इनमें से एक को दूसरे से अधिक बेहतर समझा गया और
उसे ही जारी रखने का विचार किया गया।
• राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एन. पी. ई. वर्ष 1986) जिसमें प्राथमिक और
माध्यमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या एक फ्रेमवर्क (एन. सी. एफ.
वर्ष 1988), के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया। पहले की तरह ही इसमें भी
प्राथमिक स्तर पर विज्ञान शिक्षण को ‘पर्यावरण अध्ययन’ के तहत ही
पढ़ाए जाने का सुझाव दिया गया। ‘पर्यावरण अध्ययन के लिए इसमें
निर्देश दिया था कि इसकी दो इकाइयाँ हो, विज्ञान और समाज विज्ञाम।
• एन. सी. एफ. 1988 द्वारा सुझाए गए निर्देशों को बाद में एक पुस्तिका
जिसका शीर्षक था, प्रथम 10 वर्षों तक की शिक्षा उच्च प्राथमिक व
माध्यमिक स्तर की कक्षाओं के लिए, में व्यापक रूप से समझाया गया।
इसमें समझाया गया कि माध्यमिक स्तर पर विज्ञान की पढ़ाई एक ही
विषय के रूप में होनी चाहिए न कि इसे विभिन्न विषयों में विभाजित कर
जैसा कि उस समय प्रचलन में था, इसे पहली बार ध्यानपूर्वक समझा गया।
इसे इस स्तर पर विज्ञान पाठ्यचर्या का विशिष्ट लक्षण कहा जा सकता है।
1.3 भारत में पर्यावरण शिक्षा
लगभग 40 वर्ष पहले शिक्षा आयोग (कोठारी आयोग) ने पर्यावरण शिक्षा को
औपचारिक धारा से जोड़ने की सिफारिश की थी। इसी का अनुसरण करते
हुए एन. सी. ई. आर. टी. से लेकर बहुत-से स्वयंसेवी संगठन, जैसे-
बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बी एन एच एस), सेन्टर फॉर साइन्स एण्ड
एनवायरनमेन्ट (सी. एस. ई.) और सेन्टर फॉर एनवायरनमेन्टल एजुकेशन
(सी.ई.ई.), इस सन्दर्भ में सक्रिय हो गए। इन्हीं एजेन्सियों के बल पर
हमारा राष्ट्रीय फोकस समूह इस दिशा में सशक्त प्रयास को जारी रखने की
संस्तुति करता है।
1.3.1 स्कूली शिक्षण में पर्यावरण अध्ययन की स्थिति
वर्ष 1937 में महात्मा गाँधी ने बेसिक शिक्षा के लिए आन्दोलन छेड़ा था, जो
बेसिक शिक्षा को स्थानीय पर्यावरण की आवश्यकताओं के संसर्ग में लाने का
पहला जोरदार प्रयास था। बेसिक शिक्षा के लिए नितान्त आवश्यक बातें
थी-शिक्षा में उपार्जनीय क्रियाशीलता, पाठ्यचर्या के साथ उपार्जनीय
क्रियाशीलता एवं सामाजिक पर्यावरण का सह-सम्बन्ध और साथ ही स्कूल
एवं स्थानीय समुदाय के बीच आत्मीय सम्पर्क आदि।
• वर्ष 1930 के आरम्भ से ही भारतीय शिक्षा प्रणाली में पर्यावरणीय शिक्षा
के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्कूली पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया।
पर्यावरण शिक्षा के वर्तमान स्तर की औपचारिक शिक्षा में जड़ें राष्ट्रीय
शिक्षा आयोग (1964-66) (कोठारी आयोग) को रिपोर्ट में खोजी जा
सकती है। रिपोर्ट में उन सर्वश्रेष्ठ बातों को सम्मिलित किया जाता है, जो
बेसिक शिक्षा के द्वारा प्रस्तुत की जा सकती है, ताकि इस शिक्षा को राष्ट्र
की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं एवं जीवन से जोड़ा जा सके।
• शुरूआती स्तर के लिए आयोग ने सिफारिश की है कि प्राथमिक स्कूलों में
विज्ञान पढ़ाने का मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि भौतिक और जैव
पर्यावरण में मुख्य तथ्यों, धारणाओं, सिद्धान्तों और प्रविधियों की सही
समझ का विकास हो सके। ये सिफारिशें वर्ष 1977 में ही क्रियान्वित हो
सकी जब एन.सी.ई.आर.टी. के द्वारा विद्यालयी शिक्षा 10+2+3 की
व्यवस्था के लिए पाठ्यचर्या बनाई गई और जो 10 वर्षीय पाठ्यक्रम-एक
रूपरेखा (1975) दस्तावेज के रूप में सामने आई।
• शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति (एन.पी.ई) (1986) और बाद में
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा पाठ्यचर्या की रूपरेखा वर्ष 1988 एवं 2000 ने
पर्यावरण शिक्षा के महत्त्व को विद्यालय शिक्षा में शामिल करने के लिए
फिर से दोहराया।
• इस प्रकार पर्यावरण शिक्षा सभी पाठ्यचर्या विकास योजनाओं में
प्राथमिकता का एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा।
• विज्ञान, सामाजिक विज्ञान एवं कुछ सीमा तक भाषाओं और गणित के
पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री में पर्याप्त विषय-वस्तु ऐसी रही है, जोकि
पर्यावरण और उसके लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नितान्त आवश्यक हो।
• जीव विज्ञान, भौतिकी विज्ञान, भूगोल, सामाजिक विज्ञान एवं गणित की
वरिष्ठ माध्यमिक स्तर की पाठ्य-पुस्तकों ने भी पर्यावरण के सम्बन्ध में
पर्याप्त विषय-वस्तु प्रदान की है, ताकि माध्यमिक स्तर तक इस सम्बन्ध में
ज्ञान, कौशल एवं समझ की जड़ मजबूत हो सके।
1.3.2 एन.सी.ई.आर.टी. के कुछ महत्त्वपूर्ण कदम
प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन को विज्ञान और सामाजिक अध्ययन के
रूप में पढ़ाने का अभ्यास जारी रखा गया।
• उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लिए सामान्य शिक्षा का पाठ्यक्रम,
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एन सी एफ) के दिशा निर्देशों के आधार
पर बनाया गया, जिसमें पर्यावरण शिक्षा के सभी पहलू शामिल थे।
पर्यावरण शिक्षा को एक अलग विषय के रूप में नहीं लिया गया।
• जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सेवापूर्व प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण मॉडयूल का विकास (देश के उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के क्षेत्रों के
लिए एक-एक) किया गया।
• मुख्य संसाधन व्यक्तियो और अध्यापकों को सेवारत प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गई। एन.सी.ई.आर.टी. की पत्रिकाओं; जैसे-‘स्कूल साइन्स’ द्वारा
पर्यावरण शिक्षा का प्रचार-प्रसार आदि।
• प्रतिवर्ष राज्य एवं राष्ट्रीय-स्तर पर विज्ञान प्रदर्शनियो का आयोजन का प्रावधान किया गया। अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियो; जैसे-(यूनेस्को, यूनिसेफ, यूनेप, विश्व
बैंक, राष्ट्रमण्डल सचिवालय) विभिन पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रमों के लिए सम्पर्क व सहयोग स्थापित किया गया।
                                                अभ्यास प्रश्न
1. पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत निम्नलिखित
में से किस विषय का अध्ययन किया जाना
चाहिए?
(1) भूगोल
(2) स्वास्थ्य एवं पोषण
(3) जीव विज्ञान
(4) ये सभी
2. पर्यावरण अध्ययन के सन्दर्भ में निम्नलिखित
में से कौन-सा कथन सत्य नहीं है?
(1) पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत मुख्य रूप से
जलमण्डल का अध्ययन किया जाता है
(2) पर्यावरण अध्ययन का सम्बन्ध मानव स्वास्थ्य
से भी है
(3) पर्यावरण अध्ययन की शिक्षा की शुरूआत
प्राथमिक कक्षा से ही होनी चाहिए
(4) पर्यावरण अध्ययन की शिक्षा वर्तमान
परिस्थितियों को देखते हुए अनिवार्य होनी
चाहिए
3. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण के सन्दर्भ में
निम्नलिखित में से क्या महत्त्वपूर्ण है?
(1) विषय-वस्तु का चयन सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
होना चाहिए
(2) भिन्न-भिन्न विषयों का एकीकरण होना चाहिए
(3) पाठ्यक्रम द्वारा छात्रों के सामाजिक,
भावनात्मक तथा आध्यात्मिक पक्षों के विकास
पर बल दिया जाना चाहिए
(4) उपरोक्त सभी
4. पर्यावरण अध्ययन का बालक के भविष्य से
क्या सम्बन्ध है?
(1) बालक भविष्य में एक व्यक्ति के रूप में अपने
पर्यावरण में ही जीवन-यापन करेगा
(2) पर्यावरण के ज्ञान के बाद बालक भविष्य में
इसका दोहन अच्छी तरह से कर पाएगा
(3) बालक भविष्य में इसी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त
करेगा
(4) बालक के भविष्य से पर्यावरण का कोई सम्बन्ध
नहीं है
5. किस आयु वर्ग का बालक पर्यावरण में होने
वाली घटनाओं में जिज्ञासा तो अधिक रखता है,
लेकिन उसकी अवधारणाओं को समझने में
असमर्थ होता है?
(1) 5 से 7 वर्ष
(2) 1 से 2 वर्ष
(3) 8 से 14 वर्ष
(4) इनमें से कोई नहीं
6. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक होने के नाते
आप निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य
करना पसन्द नहीं करेंगे?
(1) विद्यालय परिसर की स्वच्छता के लिए
यथासम्भव प्रयास करते हुए आवश्यकता पड़ने
पर स्वयं भी इसमें सहयोग करना
(2) विद्यालय में होने वाले समारोह के लिए खुली
जगह की आवश्यकता को देखते हुए विद्यालय
के उद्यान के पेड़-पौधों की कटाई करना
(3) पर्यावरण जागरूकता के लिए समय-समय पर
विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों में बच्चों को
संलिप्त करना
(4) बालकों की शारीरिक स्वच्छता पर ध्यान देते
रहना, जोकि उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी
आवश्यक है
7. तीसरी कक्षा के बच्चों को पर्यावरण की
स्वच्छता से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान करने
का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है?
(1) स्वच्छता पर एक व्याख्यान देना
(2) स्वच्छता के लाभ की शिक्षा देने वाली एक
कहानी सुनाना
(3) बच्चों के शरीर एवं उसके परिवेश को स्वच्छ
रखते हुए उनमें स्वच्छता सम्बन्धी आदतों का
विकास करने सम्बन्धी विभिन्न गतिविधियों में
संलिप्त करना
(4) स्वच्छता पर व्याख्यान देने के बाद, इसके
लाभ की शिक्षा देने वाली एक कहानी सुनाना
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. पर्यावरण मनुष्य के जीवन व उनकी
क्रियाओं पर प्रभाव डालता है।
B. पर्यावरण अध्ययन को प्राथमिक स्तर से
ही पढ़ाया जाना चाहिए।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
9. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सही है?
A. पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत मुख्य
रूप से जैवमण्डल का अध्ययन किया
जाता है।
B. पर्यावरण सम्बन्धित अच्छी आदतों के
विकास का प्रयास बाल्यकाल से ही
प्रारम्भ कर देना चाहिए।
C. पर्यावरण समस्याओं की जटिलता के
समस्या समाधान के लिए आवश्यक है।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
10. निम्नलिखित में से कौन वानिकी के
सम्बन्धित है
A. वानिकी वनों का प्रबन्धन है।
B. वानिकी वनों का संक्षरण है!
C. वानिकी एक वैश्विक क्रिया है।
(1)A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
11. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक होने के नाते
आपके लिए निम्नलिखित में से क्या
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है?
(1) बच्चों को पर्यावरण सम्बन्धी अवधारणाओं का
ज्ञान कराना
(2) बच्चों में पर्यावरण संरक्षण के लिए अच्छी
आदतों को विकास, ताकि भविष्य में पर्यावरण
को किसी प्रकार की हानि न पहुँचाए
(3) अपने विद्यालय की ख्याति के लिए
पर्यावरण-जागरूकता पर एक भव्य समारोह
का आयोजन करवाना
(4) स्वयं को पर्यावरण हितैषी साबित करने के
लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति
सम्बन्धी तस्वीरों का समाचार-पत्रों में प्रकाशन
12. निम्नलिखित में से कौन प्राथमिक स्तर पर
पर्यावरण अध्ययन की एक अवधारणा नहीं है?
(1) बालक अपने जीवन में पर्यावरण के महत्त्व को
आत्मसात् कर सके इसके लिए आवश्यक है
कि इससे सम्बन्धित शिक्षा को प्राथमिक स्तर
के पाठ्यक्रम में ही शामिल किया जाए
(2) पर्यावरण शिक्षा निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है
अतः प्राथमिक स्तर से ही इसका शिक्षण
आवश्यक है
(3) प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन को
पाठ्यक्रम में शामिल करने के फलस्वरूप ही
बालक भविष्य में पर्यावरण विशेषज्ञ बनकर इस
क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर सकेगा
(4) पर्यावरण शिक्षा औपचारिक एवं अनौपचारिक
दोनों ही प्रकार से चलनी चाहिए और इसकी
शुरूआत प्राथमिक स्तर पर ही हो जानी चाहिए
13. पर्यावरण अध्ययन को प्राथमिक स्तर के
पाठ्यक्रम में शामिल करना क्यों आवश्यक
है?
(1) बालक को पर्यावरण की अवधारणाओं को
समझाने के लिए प्राथमिक स्तर पर इसे
पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए
(2) बालक पर्यावरण से सम्बन्धित प्रश्नों के सही
उत्तर दे सकें, इसके लिए आवश्यक है कि इसे
प्राथमिक स्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए
(3) पर्यावरण की शिक्षा यदि प्राथमिक स्तर से ही
दी जाए तो वे आगे चलकर इस क्षेत्र में
रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
(4) बच्चों में अच्छी आदतें डालकर उन्हें पर्यावरण
संरक्षण के प्रति सजग बनाए रखने के लिए
प्राथमिक स्तर पर ही पर्यावरण की शिक्षा
प्रारम्भ करनी चाहिए
14. मिस पटेल, XYZ विद्यालय की प्राचार्या,
अलग-अलग विषयों के शिक्षण के स्थान
पर विज्ञान शिक्षण में एकीकृत उपागम का
प्रयोग करना चाहती हैं। इसका आधार है
(1) शिक्षकों को समय-सारणी में व्यवस्थित करने
में कठिनाई आती है
(2) शिक्षार्थी अलग-अलग शिक्षकों के साथ
समायोजन नहीं कर पाते
(3) सभी विषय आपस में जुड़े हुए हैं और शिक्षक
उनकी पाठ्यचर्याओं के मध्य सम्बन्ध जोड़
सकते हैं
(4) उनके विद्यालय में अलग-अलग विषय पढ़ाने के
लिए योग्य शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं
15. प्राथमिक स्तर पर विज्ञान व सामाजिक
विज्ञान को एक ही विषय पर्यावरण अध्ययन
के तहत पढ़ाया जाता है, यह है विज्ञान
शिक्षण का ………..।
(1) अध्यापक केन्द्रित उपागम
(2) अनुशासनिक उपागम
(3) एकीकृत उपागम
(4) सामान्य उपागम
16. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. पर्यावणीय समस्याओं से निपटने के
लिए प्रत्येक स्तर पर प्रशिक्षित शक्ति
की आवश्यकता होती है।
B. वर्तमान समय में यह अनिवार्य हो गया
है कि पर्यावरण को पोषण व संरक्षण
किया जाए।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
17. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के विषय में
कौन-सा कथन सही है?
A. पर्यावरण शिक्षा को सभी स्तरों पर
समाहित करना।
B पर्यावरण सम्बन्धी सरोकार के प्रति
जागरूकता पैदा करना।
C. मानवीय विकास के लिए शान्तिपूर्वक
महौल तैयार करना।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
18. एकीकृत पर्यावरण अध्ययन के विषय में
कौन-सा कथन सही है
A. इसमें अलग-अलग विषयों के शिक्षण
के स्थान पर सभी विषयों के सम्मिलित
स्वरूप के शिक्षण पर जोर दिया
जाता है।
B. एकीकृत उपागम व्यावहारिक ज्ञान पर
भी जोर देता है।
C. यह उपागम छात्रों के साथ-साथ शिक्षकों
के लिए भी उपयोगी होती है।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
19. एकीकृत उपागम के अन्तर्गत पाठ्यक्रम
निम्न में से किस सिद्धान्त पर आधारित
होना चाहिए?
A. जीवन केन्द्रित सिद्धान्त पर
B. व्यावहारिक पक्ष के सिद्धान्त पर
C. विषयों की समन्वित इकाई के सिद्धान्त
पर
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) केवल C
(4) उपरोक्त सभी
20. एकीकृत उपागम की व्यवस्था करते समय
ध्यान देना चाहिए
(1) विषय-वस्तु को सरल से कठिन की ओर
संगठित करने में
(2) पाठ्यक्रम की विभिन्न इकाइयों को क्रमबद्ध
रूप से व्यवस्थित करना
(3) मन्द बुद्धि एवं पिछड़े छात्रों की अधिगम गति
को बढ़ाना
(4) उपरोक्त सभी
21. छात्रों को पर्यावरण अध्ययन की सभी
शाखाओं को एक साथ पढ़ाने हेतु निम्न में
से कौन-सा उपागम श्रेष्ठ है?
(1) चक्राकार उपागम
(2) अध्यापक केन्द्रित उपागम
(3) एकीकृत उपागम
(4) स्व-अनुदेशन उपागम
22. प्राथमिक विद्यालय में विज्ञान संग्रहालय
बनाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य होता है
(1) पाटों को शीघ्रतापूर्वक दोहराने के अवसर देना
(2 व्यक्तिगत शिक्षा के अवसर प्रदान करना
(3) पत्रों अवलोकन तथा संडह करने की
आदत डालना
(4) विज्ञान-अध्यापन में धन की बचत करना
23. एक शिक्षक/शिक्षिका पर्यावरण अध्ययन के
शिक्षण के लिए एकीकृत उपागम का प्रयोग
करते/करती हैं, वे निम्नलिखित में से क्या
करेगे/करेंगी?
(1) भूगोल, जीव विज्ञान तथा स्वास्थ्य एवं पोषण
को अलग-अलग पदाएँगे/पदाएँगी
(2) भूगोल, जीव विज्ञान तथा स्वास्थ्य एवं पोषण
को अलग-अलग न पढ़ाकर समेकित रूप से
पदाएँगे/पदाएँगी
(3) एकीकृत उपागम के महत्त्व को समझते हुए
प्रयोगो पर अधिक ध्यान देगें/देंगी और भूगोल
पढ़ाते समय पढ़ाए जा रहे विषय-वस्तु को
जीव विज्ञान या स्वास्थ्य एवं पोषण से
यथासम्भव दूर रखने का प्रयास करेंगे/करेंगी
(4) भूगोल, जीव विज्ञान तथा स्वास्थ्य एवं पोषण
में से केवल उस विषय को पढाएँगे/पदाएँगी
जिनमें उनकी रुचि एवं छात्रों की रुचि
सर्वाधिक है
24. प्राथमिक कक्षा स्तर पर पर्यावरण अध्ययन
शिक्षण के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं
(1) ज्ञान-अवबोध अनुप्रयोग
(2) कौशल-रुधियाँ अभिवृत्तियों
(3) योग्यताएँ-प्रशसाएँ अवकाश काल का
सदुपयोग
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
25. निम्नलिखित में से किसका सम्बन्ध विज्ञान
शिक्षण व प्रकृति के निर्देशक तत्त्व से है?
A. पाठ्यचर्या में ऐसे प्रयास शामिल होने
चाहिए जिनका जुड़ाव दैनिक जीवन के
अनुभव से हो।
B. विज्ञान शिक्षण को कुछ खास मूल्यों के
विकास की ओर अग्रसर होना चाहिए।
C. विज्ञान पाठ्यचर्या को प्रक्रियाओं पर
ज्यादा जोर देना चाहिए।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, Bऔर C
26. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है?
A. वर्ष 1977 में ईश्वर भाई पटेल की
अध्यक्षता में एक रिव्यू समिति गठित
की गई थी।
B. राष्ट्रीय शिक्षा नीति वर्ष 1986 में आई।
C. एन. सी. एफ. वर्ष 1998 में आई।
(1) A और B
(2) A और C
(3) B और C
(4) A, B और C
27. निम्नलिखित में से क्या एक सामाजिक
अध्ययन की विशेषता नहीं है?
(1) सामाजिक अध्ययन मानव को प्रधानता देता है
(2) सामाजिक अध्ययन, इतिहास, भूगोल,
अर्थशास्त्र तथा नागरिक शास्त्र का एक संघ है
(3) सामाजिक अध्ययन, ज्ञान के नवीन दृष्टिकोण
पर बल नहीं देता है
(4) सामाजिक अध्ययन, व्यक्ति तथा समाज के
बीच सामंजस्य स्थापित करता है
28. पर्यावरण शिक्षा का मुख्य जोर विद्यार्थियों को
अपनी वास्तविक दुनिया, जिसमें वे रहते हैं जो
……. और …… है, से रू-ब-रू कराना है।
(1) प्राकृतिक; राजनीतिक
(2) आर्थिक प्राकृतिक
(3) प्राकृतिक, सामाजिक
(4) सामाजिक, आर्थिक
29. निम्नलिखित में से क्या पर्यावरण शिक्षा का
लक्ष्य है।
(1) बच्चों में वैज्ञानिक जानकारी का विस्तार करना
(2) बच्चों को उनके परिवेश का महत्व समझाना
(3) पर्यावरण संरक्षण के महत्त्व से बच्चों को
अवगत कराना
(4) उपरोक्त सभी
30. स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा का उद्देश्य
बच्चों को ज्ञान, दृष्टिकोण और कौशल
प्रदान करने का है, ताकि
(1) वे सही अर्थों में पर्यावरण को बेहतर बनाने में
सक्षम हो सकें और संधारणीय विकास के
उद्देश्य को प्राप्त करने में योगदान दे सकें
(2) वे पर्यावरण के विभिन्न वैज्ञानिक सिद्धान्तों को
समझकर अपने जीवन में आर्थिक प्रगति की
ओर अग्रसर हो सके
(3) वे पर्यावरण विषय पर डाक्यूमेन्ट्री का निर्माण
कर सकने के योग्य बनें
(4) वे इस विषय पर अच्छे निबन्ध की रचना करने
में सक्षम हो सकें
31. पर्यावरण शिक्षा से सम्बन्धित अवधारणाएँ
बहुतायत में ……. इन पाठ्य-पुस्तकों में पाई
जाती हैं।
(1) जीव विज्ञान एवं रसायन शास्त्र
(2) भौतिकी एवं भूगोल
(3) अर्थशास्त्र एवं सामाजिक शास्त्र
(4) उपरोक्त सभी
32. निम्नलिखित को सुमेलित कीजिए
A. कोठारी आयोग           (i) 1930
B. बेसिक शिक्षा              (ii) 1964
c. पर्यावरणीय शिक्षा       (iii) 1937
             A               B               C
(1)         i                ii               iii
(2)        iii               i                ii
(3)        iii               ii               i
(4)        ii               iii               ii
33. निम्नलिखित में से कौन-सी अन्तर्राष्ट्रीय
एजेन्सियाँ पर्यावरणीय शिक्षा के कार्यक्रमों
के लिए सहयोग देती है?
A. यूनेस्को
B. यूनिसेफ
C. विश्व बैंक
D. यूनेप
(1)A, B और C
(2) B, Cऔर D
(3) A, B और D
(4) A,B,C और D
34. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. पर्यावरण उन्मुखी योजना वर्ष 1988 में
मानव संसाधन विकास मन्त्रालय द्वारा
शुरू की गई थी।
B. राष्ट्रीय हरित कोर का उद्देश्य देश के
प्रत्येक जिले में इको क्लबों की स्थापना
करना है।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
35. पर्यावरण शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के
लिए पाठ्यचर्या किन बातों पर आधारित
होनी चाहिए
(1) पर्यावरण के विषय में अधिगम
(2) पर्यावरण के द्वारा अधिगत
(3) पर्यावरण के लिए अधिगम
(4) उपरोक्त सभी
                                  विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
36. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य-पुस्तक में
रेलवे टिकट का एक नमूना दिखाना
                                      [CTET June 2011]
(1) निष्कर्ष पर पहुँचने की बच्चों की कुशलता का
विकास करता है
(2) बच्चों को वास्तविक जानकारी से अन्तः क्रिया
करने का अवसर देता है, साथ ही अवलोकन
की कुशलता का विकास करता है
(3) बच्चों को रेल के किराए के बारे में बताता है
(4) टिकट में प्रयुक्त विभिन्न संक्षिप्ताक्षरों का ज्ञान
उपलब्ध कराता है
37. निम्नलिखित कथनों में से कौन- -सा प्राथमिक
स्तर पर पर्यावरण अध्ययन पढ़ाने का
उद्देश्य नहीं है?
                      [CTET June 2011]
(1) बच्चों पर आकलन के लिए शब्दावली और
परिभाषाओं का बोझ डालना
(2) जीवन और पर्यावरण से सरोकार रखने वाले
मूल्यों को आत्मसात् करना
(3) प्राकृतिक व सामाजिक वातावरण के विषय में
उत्सुकता जगाना
(4) बच्चों को खोजने की क्रियाओं में लगाना तथा
व्यावहारिक क्रियाएँ करवाना, जो संज्ञानात्मक
और मनश्वालक कौशलों के विकास में
सहायक होती हैं
38. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक
विद्यालय में पर्यावरण अध्ययन पढ़ाने का
उद्देश्य निरुपित है? [CTET June, 2011]
(1) आपने ज्ञान का विस्तार करने के लिए बच्चों को
सूचना देना कि उन्हें कौन-सी पुस्तकें पढ़नी चाहिए
(2) विद्यालय में बच्चों के अनुभवों को बाहरी
दुनिया से जोड़ना
(3) बच्चों को तकनीकी शब्दावली और परिभाषाओं
से परिचित कराना
(4) पर्यावरण अध्ययन से सम्बन्धित तकनीकी शब्दों
का आकलन
39. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य-पुस्तक में
पहेलियाँ शामिल करने का निम्नलिखित में
से कौन-सा उद्देश्य नहीं है?
                                    [CTET June 2011]
(1) बच्चों के मस्तिष्क को भ्रमित करना और उन्हें
इस भम का आनन्द उठाने देना
(2) सृजनात्मक चिन्तन की योग्यता और उत्सुकता
का विकास करना
(3) बच्चों में आलोचनात्मक चिन्तन शक्ति विकसित
(4) बच्चों में तर्कणा शक्ति का विकास करना
40. पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में संकल्पनाओं
को स्पष्ट करने के लिए कविताओं और
कहानियों के कथन का प्रयोग करना
सहायता करता है
                         [CTET Nov 2012]
(1) पाठ को आनन्ददायी और रोचक बनाने में
(2) स्थानीय एवं वैश्विक स्तर पर संसार की
प्रकृतिक को खोजने और कल्पना करने की
योग्यता को बढ़ावा देने में
(3) शिक्षार्थियों में निहित भाषा एवं सांस्कृतिक
विविधताओं को ध्यान रखने में
(4) सही दिशा में विद्यार्थियों की ऊर्जा का
सारणिकरण करने में
41. ‘पर्यावरण अध्ययन की एक अच्छी
पाठ्यचर्या को बच्चे के प्रति सही, जीवन के
प्रति सही और विषय के प्रति सही होना
चाहिए।’ पाठ्यचर्या की निम्नलिखित
विशेषताओं में से कौन-सी उपरोक्त
आवश्यकता को पूरा नहीं करती?
                                         [CTET July 2013]
(1) यह शब्दावली और परिभाषाओं पर अधिक बल
देती है
(2) यह भय एवं पूर्वाग्रहों से मुक्त होने के मूल्य को
बढ़ावा देती है
(3) यह विषय को एक सामाजिक प्रक्रम के रूप में
देखने के लिए शिक्षार्थियों हेतु आवश्यक है
(4) यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पर अधिक बल देती है
42. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005
प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन शिक्षण
का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए
                                       [CTET July 2013]
(1) स्वतन्त्र रूप से प्रयोग करने की कुशलता
अर्जित करना
(2) विषय की आधारभूत संकल्पनाओं की
आधारभूत समझ का विकास
(3) विषय के आधारभूत सिद्धान्तों को स्मरण
करना
(4) क्या-कक्षीय अधिगम को विद्यालय के बाहर के
जीवन से जोड़ना
43. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य-पुस्तकों में
कविताओं और कहानियों को शामिल करने
का निम्नलिखित में से कौन-सा उद्देश्य
नहीं है?                              [CTET July 2013]
(1) शिक्षार्थियों में कल्पनाशीलता और सृजनात्मक
योग्यता को बढ़ावा देना
(2) विषय में रुचि का विकास करना
(3) नित्य और एकरस विषय-वस्तु में बदलाव
करना
(4) शिक्षार्थियों को आनन्द और मजा उपलब्ध
कराना
44. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राथमिक स्तर
पर पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यचर्या की
आवश्यकता के अनुरूप नहीं है?
                                      [CTET July 2013]
(1) उसे शिक्षार्थियों के मानसिक स्तर के अनुकूल
होना चाहिए
(2) उसे काम की दुनिया में प्रवेश के लिए
शिक्षार्थियों को ज्ञान एवं कौशल से लैस करना
चाहिए
(3) उसे शिक्षार्थियों में पर्यावरण के सरोकार को
उत्पन्न करना चाहिए
(4) उसे शिक्षार्थियों को उन पद्धतियों और
प्रक्रियाओं को अर्जित करने में शामिल रखना
चाहिए जो नए ज्ञान को उत्पन्न करने आगे
ले जाएँगे
45. एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ्य-पुस्तकों में
पर्यावरण अध्ययन को उच्च प्राथमिकता
और स्थान दिया गया है [CTET July 2013]
(1) अधिक संख्या में अभ्यास प्रश्नों को शामिल
करने के लिए
(2) विषय की आधारभूत संकल्पनाओं की व्याख्या
करने के लिए
(3) चिन्तन और विस्मय के लिए शिक्षार्थियों को
अवसर उपलब्ध कराने के लिए
(4) तकनीकी शब्दावली की सटीक परिभाषाएँ
उपलब्ध कराने के लिए
46. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य-पुस्तक में
विभिन्न प्रकरणों में एक खण्ड ‘करके देखो’
को शामिल किया गया है, जिसका
उद्देश्य है                        [CTET July 2013]
(1) घर में शिक्षार्थियों को व्यस्त रखना
(2) प्रत्यक्ष हस्तपरक अनुभव उपलब्ध कराना
(3) परीक्षा में निष्पादन को सुधारना
(4) वैज्ञानिक शब्दावली की परिभाषाएँ सीखना
47. कक्षा V की एन.सी.ई.आर.टी. की पर्यावरण
अध्ययन की पाठ्य-पुस्तक में प्रत्येक पाठ
के अन्त में एक खण्ड को शामिल किया
गया है ‘हम क्या समझे यह सुझाव दिया
गया है कि इस खण्ड में शामिल प्रश्नों के
उत्तर का सही या गलत के रूप में आकलन
नहीं किया जाएगा। यह परिवर्तन इसलिए
किया गया है, क्योंकि         [CTET July 2013]
(1) यह आकलन में विषय निष्ठता को कम करता
है
(2) इस स्तर पर बच्चे सही उत्तर नहीं लिख
सकते
(3) यह आकलन में शिक्षकों की सुविधा बढ़ाता है
(4) यह जानने में शिक्षक की सहायता करता है
कि बच्चे कैसे सीख रहे हैं?
48. प्राथमिक स्तर की अच्छी EVS पाठ्यचर्या
में होना चाहिए               [CTET Feb 2014]
(1) पाठ के अन्त में अधिक अभ्यास प्रश्न
सम्मिलित करना
(2) अपने आस-पास को खोजने के अवसर प्रदान
करना
(3) संकल्पनाओं की विस्तृत व्याख्या पर अधिक
एकाग्रता
(4) पाठों की यथार्थ की परिभाषा पर अधिक बल
देना
49. प्राथमिक स्तर पर EVS की पढ़ाई का एक
प्रमुख उद्देश्य है                    [CTET Feb 2014]
(1) विषय की मूल संकल्पनाओं की गहन समझ
विकसित करना
(2) अगले स्तर पर अध्ययन के लिए विद्यार्थियों
को तैयार करना
(3) कक्षा की पढ़ाई को शिक्षार्थी के विद्यालय से
बाहर के जीवन से सम्बन्धित करने में सहायता
करना
(4) स्वतन्त्र रूप से हस्तसिद्ध क्रिया-कलापों को
करने का कौशल अर्जित करना
50. प्राथमिक स्तर की EVS पाठ्य-पुस्तकों में
कविताएँ और कहानियाँ सम्मिलित करने का
कारण है                               [CTET Feb 2014]
(1) विद्यार्थियों में साहित्यिक रुचि विकसित करना
(2) विषय के अधिगम में आमोद-प्रमोद करना
(3) मूल संकल्पनाओं के अधिगम में वृद्धि करना
(4) विषय-वस्तु को प्रस्तुत करने की नित्यचर्या और
एकरसता में परिवर्तन
51. ई वी एस संक्षेपण ……. अर्थ में प्रयुक्त
होता है।                   [CTET Sept 2014]
(1) एनवायरन्मेण्टल स्किल्स
(2) एनवायरन्मेण्टल साइन्स
(3) एनवायरन्मेण्टल सोर्सेज
(4) एनवायरन्मेण्टल स्टडीज
52. आँचल अपनी कक्षा V में पर्यावरण
अध्ययन की कक्षा में अक्सर गहन
जाँच-पड़ताल वाले और कल्पनापरक प्रश्न
पूछती है। उसके द्वारा इस प्रकार करने का
उद्देश्य …… सुधार करना है।
                                    [CTET Sept 2014]
(1) अवलोकन कौशलों में
(2) संवेगात्मक कौशलों को
(3) चिन्तन कौशलों में
(4) बोलने सम्बन्धी कौशलों में
53. हरप्रीत अपने शिक्षार्थियों को यह सुझाव देना
चाहती है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए
किस प्रकार एक व्यक्ति सबसे अच्छे
सम्भावित तरीके से अपना योगदान दे
सकता है। उनका सबसे बेहतर सुझाव हो
सकता है                     [CTET Sept 2014]
(1) आने-जाने के लिए सार्वजनिक साधनों का
प्रयोग करना
(2) कार, स्कूटर आदि जैसे व्यक्तिगत वाहन न
रखें
(3) घर से बाहर अकसर आने-जाने से बचना
(4) अपने व्यक्तिगत वाहन के इंजन की नियमित
जाँच
54. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के
शिक्षण में कहानियों और कविताओं का
प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
पर्यावरण अध्ययन में इनके उपयोग का
मुख्य उद्देश्य है                 [CTET Feb 2015]
(1) कक्षा की विविधता की पूर्ति
(2) सीखने के लिए सन्दर्भगत वातावरण प्रदान
करना
(3) पाठों को आनन्ददायक बनाना
(4) भाषिक कौशलों को बढ़ावा देना
55. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा (NCF), 2005
ने कक्षा I और II के लिए पर्यावरण अध्ययन
के किसी पाठ्यक्रम या पाठ्य-पुस्तकों की
संस्तुति नहीं की है। इसके लिए सबसे
उपयुक्त कारण है                 [CTET Feb 2015]
(1) पाठ्यक्रम का भार कम करने के लिए
(2) पर्यावरण अध्ययन केवल कक्षा 1 से आगे की
कक्षाओं के लिए है
(3) कक्षा । और ।। के शिक्षार्थी पदना-लिखना नहीं
जानते
(4) सन्दर्भयुक्त अधिगम परिवेश प्रदान करना
56. प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन के
लिए निम्नलिखित सभी सामान्य उपागमों का
अनुपालन किया जाना है, केवल इसे
छोड़कर                       [CTET Feb 2015]
A. मूर्त से अमूर्त
B. सरल से कठिन
C. स्थानीय से वैश्विक
D. अमूर्त से मूर्त
(1) केवल B
(2) केवल D
(3) A और B
(4) B और C
57. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण से उन प्रक्रिया
पर आधारित कौशलों को बढ़ावा दिया जाना
चाहिए जो पूछताछ आधारित प्रत्यक्ष
अनुभवों के केन्द्र बिन्दु है। निम्नलिखित में
से कौन-सा एक ऐसा कौशल नहीं है?
                                      [CTET Feb 2015]
(1) पूर्वानुमान
(2) निर्धारण
(3) निष्कर्ष निकालना
(4) अवलोकन
58. प्राथमिक कक्षाओं में पर्यावरण अध्ययन पढ़ाने
के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा उद्देश्य
सम्बन्धित नहीं है?                       [CTET Sept 2015]
(1) विज्ञान के आधारभूत प्रत्ययों और सिद्धान्तों को
रटकर याद कर लेना
(2) पर्यावरण को खोजने के अवसर प्रदान करना
(3) अवलोकन, मापन, भविष्य कथन और वर्गीकरण
जैसे कौशलों का विकास करना
(4) भौतिक और सामाजिक परिवेश के प्रति
संवेदनशीलता विकसित करना
59. पर्यावरण अध्ययन की प्रकृति निम्नलिखित
का समर्थन नहीं करती [CTET Sept 2015)
(1) बच्चे कम गलतियों करें
(2) बच्चों को करके सीखने का अवसर मिले
(3) बच्चे बहुत से प्रश्न पूछे
(4) बच्चों को खोज करने के लिए पर्याप्त स्थान मिले
60. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षाशास्त्र के सन्दर्भ
में, सिवाय………के, निम्नलिखित सभी
वांछनीय अध्यास हैं         [CTET Feb 2016]
(1) आलोचनात्मक चिन्तन और समस्या समाधान के
लिए क्षमता-संवर्द्धन करने
(2) बच्चे की अस्मिता (व्यक्तित्व) का पोषण करने
(3) वास्तविक अवलोकन के स्थान पर पाठ्य-पुस्तकीय
ज्ञान की श्रेष्ठता को स्वीकार करने
(4) पाठ्य-वस्तुओं और सन्दर्भो की बहुलता को
बढ़ावा देने
61. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा, वर्ष-2005
के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सी
एक पर्यावरण अध्ययन की विषय-वस्तु
(थीम) है?                    [CTET Feb 2016]
(1) भोजन
(2) सौरमण्डल
(3) मौसम
(4) ऊर्जा
62. पर्यावरण अध्ययन के पाठ्यक्रम, जिसे छह
उप-विषयों के चतुर्दिक निर्मित किया गया
है, में ‘पौधे’ और ‘पशु’ को जानबूझकर
‘परिवार और मित्र’ उप-विषय के अन्तर्गत
सम्मिलित किया गया है। इसके लिए
निम्नलिखित में से एक कारण को छोड़कर
शेष सभी कारण हो सकते हैं। वह एक
कारण कौन-सा है?           [CTET Sept 2016]
(1) विद्यार्थियों को विज्ञान में दृष्टिकोण से पौधों
और पशुओं को समझने में सक्षम बनाना
(2) सामाजिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ में पौधों
और पशुओं के स्थान निर्धारित करने में
विद्यार्थियों को सहायता करना
(3) इस बात को उभारना कि किस प्रकार मनुष्य
एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्धों का साझा
करते हैं।
(4) इस बात को को उभारना कि किस प्रकार कुछ
समुदायों के जीवन और आजीविकाएँ विशेष
पशुओं या पौधों से घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं
63. पर्यावरण अध्ययन की पाठ्य पुस्तक में
प्रयुक्त भाषाएँ                 [CTET Sept 2016]
(1) परिभाषाओं पर बल देते हुए औपचारिक बनाई
जानी चाहिए।
(2) तकनीकी और औपचारिक होनी चाहिए
(3) बच्चे की दिन-प्रतिदिन की भाषा से सम्बद्ध
होनी चाहिए
(4) रूखी और बच्चों के द्वारा समझने में कठिन
होनी चाहिए
                                              उत्तरमाला
1. (4) 2. (1) 3. (4) 4. (1) 5. (1) 6. (2) 7. (3) 8. (3) 9. (4) 10. (4)
11. (2) 12. (3) 13. (4) 14. (3) 15. (3) 16. (3) 17. (4) 18. (4)
19. (4) 20. (4) 21. (3) 22. (3) 23. (2) 24. (1) 25. (4) 26. (1)
27. (3) 28. (3) 29. (4) 30. (1) 31. (4) 32. (4) 33. (4) 34. (3)
35. (4) 36. (2) 37. (1) 38. (2) 39. (1) 40. (2) 41. (2) 42. (4)
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