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CTET Notes In Hindi | विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध एवं उनके क्षेत्र

CTET Notes In Hindi | विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध एवं उनके क्षेत्र

विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध एवं उनके क्षेत्र
Relation Between Science and Social Science and their Scope
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2014 में केवल
2 प्रश्न पूछे गए हैं।
3.1 विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध
वर्तमान समय विज्ञान का युग है और आज जिस समाज में मनुष्य अपना
जीवन व्यतीत कर रहा है, वह विज्ञान और तकनीकी का समाज है। अतः
मनुष्य को समाज के विभिन्न कार्य क्षेत्रों को समझने एवं उनके विकास में
सहयोगी भूमिका अदा करने के योग्य बनाने के लिए विज्ञान की शिक्षा देना
आवश्यक है।
विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हैं। चल-चित्र,
टेलीविजन, समाचार-पत्र आदि के आविष्कार एवं संचालन में विज्ञान का
अहम योगदान रहा है, जबकि इसके कार्य क्षेत्र सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत
आते है।
पर्यावरण अध्ययन का सम्बन्ध भी विज्ञान से है, जबकि समाज पर पर्यावरण
का प्रभाव सामाजिक विज्ञान का क्षेत्र है। इसी प्रकार, अन्य कई पहलुओं से
यह स्पष्ट होता है कि विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान आपस में सम्बन्धित हैं।
3.1.1 सामाजिक विज्ञान की अवधारणा
सामाजिक विज्ञान समाज की विविध परम्पराओं व गतिविधियों को समाविष्ट
करता है तथा इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र
आदि विषयों से सामग्रियाँ ग्रहण करता है।
• विभिन्न पाठ्यचर्या एवं रूपरेखाओं ने सामाजिक विज्ञान में विषय-वस्तु के
गठन के आधार पर अलग-अलग मत दिए हैं। यद्यपि वर्ष 1975 की पाठ्यचर्या
की रूपरेखा में कहा गया था, “प्रत्येक विषय की आवश्यक इकाइयों की
पहचान करके उन्हें एक समग्र पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए”,
फिर भी सामाजिक विज्ञान अलग-अलग विषयों के रूप में पढ़ाया जाता था
और एन.सी.ई.आर.टी. ने कक्षा 6 से 10 तक के लिए इतिहास, भूगोल और
नागरिकशास्त्र की तीन अलग-अलग पाठ्य-पुस्तके तैयार की, परन्तु परीक्षा के
उद्देश्य से ये तीनों विषय एक ही प्रश्न-पत्र में रखे गए थे, जिसे सामाजिक
विज्ञान कहा जाता था।
• वर्ष 1988 में पाठ्यचर्या के पुनरीक्षण ने उच्च प्राथमिक स्तर के पाठ्यक्रम
में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं किया है। यद्यपि इसमें स्पष्ट रूप से
कहा गया है, “सामाजिक विज्ञान की पाठ्यचर्या तैयार करते समय विशेष
सावधानी बरती जाए ताकि किसी भी केन्द्रीय घटक को अनदेखा नहीं
किया जाए।” माध्यमिक स्तर पर, इसके अन्तर्गत चार पुस्तकों को स्थान
दिया गया था। इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र की सूची में अर्थशास्त्र
को भी जोड़ दिया गया।
• विद्यालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF)-2000 में
सामाजिक विज्ञान के लिए बोधगम्य पाठ्यचर्या पर बल दिया गया ताकि
सूचनाओं के द्वारा इसे बोझिल न बनाया जाए। साथ ही यह विशिष्ट
विषय-वस्तुओं और मुद्दों के चयन द्वारा विचारों को अन्तर्सम्बन्धित किए जाने
की आवश्यकता को भी स्पष्ट करता है, “भूगोल, इतिहास, नागरिकशास्त्र,
अर्थशास्त्र एवं समाजशास्त्र से विषय-वस्तु ली जा सकती है, जिन्हें जटिल से
सरल तथा अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष की ओर उपयुक्त क्रम से रखा जाए।”
• नवीन ज्ञान पर आधारित सामाजिक अध्ययन अपनी विषय-वस्तु के आज के
जटिल विश्व को सरल एवं स्पष्ट बनाने के लिए शिक्षण का नवीन आधार
प्रदान करता है। एम.पी. मुफात के अनुसार, “सामाजिक अध्ययन ज्ञान का वह
क्षेत्र है, जो युवकों को आधुनिक सभ्यता के विकास को समझने में सहायता
देता है। ऐसा करने के लिए यह अपनी विषय-वस्तु को समाज, विज्ञानों तथा
समसामयिक जीवन से प्राप्त करता है।”
• सामाजिक तथा भौतिक वातावरण का अध्ययन-सामाजिक अध्ययन की
अवधारणा है, जो सामाजिक तथा भौतिक वातावरण की विवेचना करता है।
जॉन यू. माइकेलिस के अनुसार, “सामाजिक अध्ययन का कार्यक्रम मनुष्य
के अतीत, वर्तमान तथा विकसित होने वाले भविष्य के सामाजिक और
भौतिक पर्यावरणों के प्रति उनके द्वारा की गई पारस्परिक क्रिया का
अध्ययन है।”
• मनुष्य के व्यक्तित्व एवं पारस्परिक व सामूहिक सम्बन्ध भी सामाजिक
अध्ययन के अन्तर्गत ही आते हैं।
3.1.2 सामाजिक विज्ञान सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे
सामाजिक विज्ञान सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे निम्नलिखित है
1. विविधता और स्थानीय विषय-वस्तु (Diversity and Local
Theme) विविधतापूर्ण समाज में यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी क्षेत्र और
सामाजिक समुदाय पाठ्य-पुस्तकों से जुड़ सकें। पाठ्य-पुस्तक रचना
की केन्द्रीकृत प्रकृति को देखते हुए यह प्राय: असम्भव है, अतैव हमें
एक ऐसा विकल्प ढूँढना चाहिए और उसका संस्थानीकरण करने की
ओर प्रयास करना चाहिए जोकि विकेन्द्रीकृत पद्धति से कार्य करे और
अध्यापक, विद्यार्थी और स्थानीय समुदाय अपने अनुभवों को उसमें
शामिल कर गौरवान्वित हो सके। प्रासंगिक स्थानीय विषय-वस्तु,
पठन-पाठन की प्रक्रिया का अहम हिस्सा होना चाहिए, जिनका शिक्षण
स्थानीय पठन-पाठन स्रोतों की मदद से किया जाना चाहिए।
2. वैज्ञानिक दृढ़ता (Scientific Rigidity) प्राय: यह माना जाता है कि
मात्र प्राकृतिक और भौतिक तत्त्वों का ही वैज्ञानिक परीक्षण सम्भव है
और मानव विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान अर्थात् इतिहास, भूगोल,
अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र आदि की प्रकृति वैज्ञानिक नहीं है।
प्राकृतिक विज्ञानों को मिली वैधता और उच्चस्तर को देखते हुए
सामाजिक विज्ञान के कुछ कर्ता भी अपने सिद्धान्तों में भौतिक व
प्राकृतिक विज्ञान का अनुकरण करने का प्रयास करते है।
उपरोक्त आधार पर यह जान लेना आवश्यक है कि प्राकृतिक व
भौतिक विज्ञान की तरह सामाजिक विज्ञान भी वैज्ञानिक जाँच-पड़ताल
हेतु उपयुक्त है। साथ ही, यह इन सिद्धान्तों के लागू होने के तरीके
भले प्राकृतिक और भौतिक विज्ञान के सिद्धान्तों से भिन्न है, किन्तु
किसी भी अर्थ में कम नहीं।
3. मूल्य सम्बन्धी सरोकार (Value Related Concern) सामाजिक
विज्ञान स्वतन्त्रता, विश्वास, परस्पर सम्मान और विविधता जैसे
मानवीय मूल्यों के लिए एक जनाधार का निर्माण करने और उसका
विस्तार करने की सैद्धान्तिक जिम्मेदारी भी वहन करता है। यदि इसे
माना जाए, तो सामाजिक विज्ञान शिक्षण का ध्येय बच्चे में एक
आलोचनात्मक नैतिक और मानसिक ऊर्जा की स्थापना होनी चाहिए
जिससे वे उन सामाजिक बाध्यताओं से मुक्ति पा सके जो इन मूल्यों
को हानि पहुँचाते हैं। पर्यावरण, जाति/वर्ग असमानता और राज्य दमन
जैसी समस्याओं पर अन्तर्विषयक विधि से चर्चा करके पाठ्य-पुस्तको
से बच्चे की विचार प्रक्रिया और रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने
का प्रयास करना चाहिए।
4. विषयों के बीच अन्तर्सम्बन्ध (Inter-relationship between
Subjects) सामाजिक विज्ञान के विषय; जैसे-इतिहास, भूगोल,
राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र प्रायः सीमाओं को बनाए रखने को
न्यायोचित ठहराते है। इन विषयों की सीमाओं को खोले जाने की तथा
निर्दिष्ट सिद्धान्त को समझने के लिए कई प्रकार के दृष्टिकोणों को
अपनाने की आवश्यकता है। एक समर्थ पाठ्यचर्या में ऐसे प्रसंगों की
आवश्यकता है, जो अन्तर्विषयक विचारों को प्रेरित करें। ये प्रसंग
सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक होने चाहिए तथा अवधारणाओं को बच्चे
की आयु को ध्यान में रखते हुए सम्मिलित किया जाना चाहिए। ऐसी
विषय-वस्तुओं के चयन की आवश्यकता है, जिनके जरिए विभिन्न
विषयक अधिगम एक गहरी और बहुमुखी समझ बनाने में मदद कर
सके। अन्तर्विषयक सम्बन्ध हेतु कुछ उप-विषयों का चुनाव
सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए। साथ ही भिन्न-भिन्न विषयों के
पृथक् अध्याय होने चाहिए।
3.1.3 पर्यावरण अध्ययन का अन्य विषयों के साथ सम्बन्ध
पर्यावरण का अन्य विषयों के साथ प्रमुख सम्बन्ध निम्नलिखित है
1. पर्यावरण अध्ययन एवं भाषा (Environmental Studies and
Language) भाषा साहित्य का माध्यम है और साहित्य समाज का
प्रतिबिम्ब है। भाषा की पाठ्य-पुस्तकों में संकलित निबन्धों, कहानियों,
कविताओं आदि का प्रत्यक्ष सम्बन्ध हमारे पर्यावरण के विविध
पहलुओं से होता है। इस तरह पर्यावरण अध्ययन एवं भाषा
एक-दूसरे से सम्बन्धित है। पर्यावरण अध्ययन को प्रस्तुत करने के
लिए भी भाषा की आवश्यकता पड़ती है।
2. पर्यावरण अध्ययन एवं गणित (Environmental Studies and
Mathematics) पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत पढ़े जाने वाले
विषयों; जैसे-भूगोल, पर्यावरण, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, जीव
विज्ञान आदि के अध्ययन के लिए गणित का ज्ञान आवश्यक है।
उदाहरण के लिए, भूगोल के विविध पहलुओं की जानकारी के लिए
गणित का अध्ययन के लिए अनिवार्य माना जाता है। इस तरह
पर्यावरण अध्ययन गणित से अन्तर्सम्बन्धित है।
3. पर्यावरण अध्ययन एवं विज्ञान (Environmental Studies and
Science) पर्यावरण अध्ययन, आधुनिक युग का विज्ञान है एवं
रेडियो, फिल्म, कम्प्यूटर, टीवी, प्रेस आदि का सम्बन्ध हमारे दैनिक
जीवन से है। सामाजिक सन्दर्भ में ये हमारे जीवन को प्रभावित करते
हैं। इनका प्रभाव न केवल हमारे वर्तमान पर पड़ता है, बल्कि हमारा
भविष्य भी इससे प्रभावित होता है। इस तरह विज्ञान का सम्बन्ध
हमारे सामाजिक जीवन से प्रत्यक्ष जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि
विज्ञान के विविध पहलुओं का अध्ययन पर्यावरण अध्ययन के
अन्तर्गत किया जाता है एवं व्यापक दृष्टिकोण के साथ पर्यावरण
अध्ययन को पर्यावरण विज्ञान भी कहा जाता है।
4. पर्यावरण अध्ययन एवं कला (Environmental Studies and
Arts) यह कला मानवीय भावनाओं को मूर्त रूप प्रदान करने में
सक्षम है। विविध कालों के सामाजिक जीवन के अध्ययन के लिए
हम विविध कालों की विविध कलाओं; जैसे-स्थापत्य कला,
चित्रकला, मूर्तिकला आदि का अध्ययन करते हैं। इस तरह पर्यावरण
अध्ययन का कला से विशेष सम्बन्ध है।
3.1.4 पर्यावरण और सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध
पर्यावरण और सामाजिक विज्ञान के अन्तर्सम्बन्ध को हम निम्न रूप में देख
सकते हैं
1. पर्यावरण अध्ययन और इतिहास (Environmental Studies and
History) पर्यावरण अध्ययन और इतिहास के बीच के अन्तर्सम्बन्ध
को हम विभिन्न विद्वानों के विचारों द्वारा समझने का प्रयास करते हैं;
जैसे-
त्रिवेलियन के अनुसार, “इतिहास एक विषय ही नहीं, बल्कि एक
घर है, जिसमें सभी विषय निवास करते हैं।”
जिल्लर के अनुसार, “इतिहास एक केन्द्रित विषय है, जिसके चारों
ओर सभी विषय घूम सकते हैं।”
वाइवर के अनुसार, “इतिहास एक अध्ययन है जो सभी कलाओं को
या तो जन्म देता है या पालन-पोषण करता है, सभी का विकास
करता है तथा उन्हें उन्नति प्रदान करता है।”
2. पर्यावरण और भूगोल (Environmental Studies and
Geopraphy) भूगोल सामाजिक विज्ञान और पर्यावरणीय शिक्षा के
मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का विषय है। भूगोल में पर्यावरण अध्ययन
सम्बन्धी कई बड़ी विषय-वस्तु सम्मिलित होती है, जैसे-प्राकृतिक
परिवर्तन एवं समस्याएँ, जलवायु, आपदाएँ आदि। आधुनिक समय में
भूगोल भौतिक व सांस्कृतिक वातावरण के साथ-साथ मानवीय
क्रियाओं और उनका वातावरण के साथ पारस्परिक सम्बन्धों को भी
बताने का कार्य करता है।
3. पर्यावरण और नागरिकशास्त्र (Environmental Studies and
Civics) नागरिकशास्त्र सामाजिक विज्ञान का एक प्रमुख विषय है।
नागरिकशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य आदर्श नागरिक तैयार करना है।
आदर्श नागरिक का व्यक्तित्व सन्तुलित होता है, जो स्वस्थता एवं
स्वच्छता के प्रति जागरूक होता है। स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए
पर्यावरण संरक्षण जरूरी होता है। ऐसे में नागरिकशास्त्र द्वारा ही छात्रों
को स्वयं, घर, पड़ोस, ग्राम, नगर आदि की सफाई का महत्त्व बताया
जाता है।
4. पर्यावरण और अर्थशास्त्र (Environmental Studies and
Economics) अर्थशास्त्र के अन्तर्गत मानव की आर्थिक क्रियाओं;
जैसे-धन की उत्पत्ति, वितरण, विनिमय तथा उपयोग आदि का
समुचित अध्ययन किया जाता है। अर्थ यानि की धन किसी भी समाज
की उन्नति का मूल-आधार होता है। ऐसे में अर्थ प्रत्यक्ष रूप से
पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि जो समाज आर्थिक रूप
से जितना ही मजबूत होगा उसके प्राकृतिक पर्यावरण भी उतने ही
उन्नत होंगे। ऐसे में हम कह सकते है कि मानव की सभी क्रियाओं का
आधार आर्थिक ही होता है।
5. पर्यावरण और समाजशास्त्र (Environmental Studies and
Social Science) पर्यावरणीय स्थिति एवं परिस्थिति का सामाजिक
जीवन पर प्रभाव बहुत ही व्यापक होता है। लोगों की आवश्यकताओं
एवं जरूरतों को भी पर्यावरण प्रभावित करता है। किसी समाज के
लोग क्या खाएँगे, कैसे वस्त्र पहनेगे, उनका मकान कैसा होगा आदि
सभी पर्यावरण के द्वारा ही निर्धारित होते है?
पर्यावरणीय परिस्थिति के कारण ही भूमध्यरेखीय प्रदेश, शीत प्रदेश,
समशीतोष्ण प्रदेश व मरुस्थलीय प्रदेश में सामाजिक जीवन-शैली एवं
व्यवस्थाएँ भिन्न-भिन्न होती है। जिससे वहाँ के लोगों का भोजन,
वस्त्र, मकान तथा शिक्षा आदि में भिन्नताएँ पाई जाती है।
3.1.5 पर्यावरण अध्ययन और विज्ञान में सम्बन्ध
विज्ञान की विभिन्न शाखाओं; जैसे-भौतिक, रसायन, जीव-विज्ञान, स्वास्थ्य
विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र एवं कृषि विज्ञान के पर्यावरण से सम्बन्ध को हम
निम्नलिखित रूप से देख सकते हैं
1. पर्यावरण अध्ययन एवं भौतिकी (भौतिक विज्ञान)
(Environmental Studies and Physics) इसमें मुख्यतया
भौतिकशास्त्र का अध्ययन किया जाता है; जैसे-किसी प्रदेश की
मिट्टी के भौतिक गुणों, जल के भौतिक गुणों इनका सीधा सम्बन्ध
पर्यावरण से ही होता है। पर्यावरण में हम ऊर्जा एवं बल का अध्ययन
भी करते हैं, जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध भौतिक शास्त्र से होता है।
2. पर्यावरण अध्ययन एवं रसायन विज्ञान (Environmental
Studies and Chemistry) पर्यावरण अध्ययन के अन्तर्गत हम
विभिन्न चक्रो, जैसे भू-जैव रासायनिक चक्र, प्रदूषणों जैसे जल
प्रदूषण व मृदा प्रदूषण आदि का अध्ययन करते हैं, जो रसायन विज्ञान
का भाग है। विभिन्न प्रकार की रासायनिक क्रियाओं और पदार्थो का
प्रभाव भी पर्यावरण पर पड़ता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि रसायन
विज्ञान तथा पर्यावरणशास्त्र में समीपवर्ती सम्बन्ध होता है।
3. पर्यावरण अध्ययन एवं प्राणी विज्ञान (Environmental Studies
and Zoology) पर्यावरण यह निर्धारित करने में सक्षम होता है कि
किसी प्रदेश में कितने व कैसे प्राणी पाए जाते हैं। जैसे-घास के
मैदानों में शाकाहारी व मांसाहारी, मरुस्थलीय प्रदेशों में ऊँट जबकि
भू-मध्यरेखीय प्रदेशों में जैव विविधता अधिक पाई जाती है। यहाँ पाए
जाने वाले प्राणियों को शारीरिक संरचना एवं जैव क्षेत्र भिन्न-भिन्न
होते है। पर्यावरण में भिन्नता के आधार पर विश्व के सभी प्राणियों को
6 प्रमुख भौगोलिक प्रदेशों में विभाजित किया गया है; जैसे
(i) इथोपियन
(ii) ओरियण्टल
(iii) ऑस्ट्रेलियन
(iv) पैलिआर्कटिक
(v) नियोआर्कटिक
(vi) नियोट्रापीकल
4. पर्यावरण अध्ययन और स्वास्थ्य विज्ञान (Environmental
Studies and Health Science) पर्यावरण प्रत्यक्ष रूप से मानवीय
स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, अगर पर्यावरण शुद्ध व स्वच्छ होता है,
तो वहां के निवासियों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा इसके विपरीत
प्रदूषित पर्यावरण से मानवीय स्वास्थ्य खराब होता है तथा इसमें
औद्योगिक अवशिष्ट प्रमुख भूमिका निभाते है।
नगरीय आवासीय क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्ति शारीरिक व
सामाजिक दृष्टिकोण से ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वालों की अपेक्षा
कमजोर होते हैं ऐसा इसलिए होता है, क्योकि ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध
पर्यावरण पाया जाता है।
5. पर्यावरण अध्ययन एवं चिकित्साशास्त्र (Environmental
Studies and Medical Science) पर्यावरण हमें विभिन्न औषधीय
पेड़-पौधे प्रदान करता है जिसका सीधा उपयोग मानवीय उपचार में
किया जाता है। चिकित्सा विज्ञान में हम ऑक्सीजन व कार्बन
डाइ-ऑक्साइड गैसों की प्रमुखता से अध्ययन करते हैं, जो मुख्यत:
पर्यावरण अध्ययन के प्रमुख घटक हैं।
6. पर्यावरण अध्ययन एवं कृषि विज्ञान (Environmental Studies
and Agriculture Science) कृषि-क्रियाओं एवं कृषि उपजों पर वहाँ
के पर्यावरण का प्रभाव पड़ता है। अगर भारत का उदाहरण लें तो हम
पाएंगे कि यहाँ पर किसी क्षेत्र में चावल उत्पादन की अधिकता है, तो
कहीं गेहूँ और कहीं गन्ना की। ये इसलिए भिन्न स्वरूप प्रदर्शित करते
हैं, क्योंकि वहाँ के पर्यावरण व जलवायु उक्त फसल के लिए
लाभकारी होते हैं। इस प्रकार हम देखते है कि कृषि पर पर्यावरण का
प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसलिए निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है,
कृषि-कार्य पर्यावरण से अलग नहीं हो सकते हैं।
                             पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यचर्या
• प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण को भाषा
और गणित के अविभाज्य अंग के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए (जिसमें
जेण्डर-संवेदनशीलता को भी स्थान दिया जाए)।
• बच्चों को उन क्रियाओं में संलग्न किया जाना चाहिए, जो उनकी प्राकृतिक
और सामाजिक पर्यावरण सम्बन्धी समझदारी को बढ़ाने में मदद कर सकें।
इस स्तर पर निगमनात्मक विधि के आधार पर नहीं, बल्कि आगमनात्मक
विधि के आधार पर भी समझाया जाना चाहिए। जीवन के भौतिकीय,
जैविकीय, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं से सन्दर्भित सचित्र
उदाहरण देने की आवश्यकता होती है। बच्चों में अवलोकन, पहचानने और
वर्गीकरण करने के कौशलों के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है।
• 3 से 5 तक की कक्षाओं के लिए पर्यावरण अध्ययन को एक नए विषय के
रूप में शामिल किया जाएगा। बच्चों में प्राकृतिक और सामाजिक पर्यावरण
के सम्बन्धों की पहचान करने तथा उन्हें समझने की योग्यता का विकास
होना चाहिए। उन्हें प्राकृतिक विविधता और सामाजिक सांस्कृतिक विविधता
के बीच समानता की पहचान करना सीखना चाहिए। अवलोकन और
अनुभव के आधार पर सामाजिक विज्ञान शिक्षण बच्चों में ज्ञान आधारित
क्षमता का विकास किया जा सकता है।
                                              अभ्यास प्रश्न
1. विज्ञान से, सामाजिक विज्ञान के निम्नलिखित
में से किन विषयों का विशेष सह-सम्बन्ध
होता है?
(1) इतिहास एवं भूगोल
(2) नागरिक शास्त्र एवं अर्थशास्त्र
(3) नागरिक शास्त्र एवं इतिहास
(4) पर्यावरण अध्ययन एवं अर्थशास्त्र
2. बच्चों में विज्ञान विषय की समझ पैदा होने
से उनके स्वभाव में …” के साथ-साथ
उनके कार्य करने के तरीकों में भी स्पष्ट
बदलाव आता है।
(1) सामाजिक दृष्टिकोण
(2) वैज्ञानिक दृष्टिकोण
(3) संवेगात्मक दृष्टिकोण
(4) व्यावहारिक दृष्टिकोण
3. पर्यावरण अध्ययन के बारे में निम्नलिखित
में से कौन-सा कथन गलत है?
(1) पर्यावरण अध्ययन पर्यावरण के महत्व से अवगत
कराता है
(2) चूँकि पर्यावरण अध्ययन मनुष्यों से सम्बद्ध है,
इसलिए उसकी खोज की प्रकृति वैज्ञानिक नहीं है
(3) पर्यावरण अध्ययन विश्लेषणात्मक और
सृजनात्मक सोच के लिए नींव रखता है
(4) पर्यावरण अध्ययन में ऐतिहासिक, भौगोलिक,
आर्थिक और राजनीतिक आयामों से लेकर
समाज के विविध सरोकार शामिल होते हैं
4. पर्यावरण अध्ययन के विषय में निम्नलिखित
में से कौन-सा कथन गलत है?
(1) सामाजिक और भौतिक पर्यावरणों द्वारा की गई
पारस्परिक क्रिया का अध्ययन ही पर्यावरण
अध्ययन है
(2) पर्यावरण अध्ययन शिक्षा के आधुनिक
दृष्टिकोण के अनुरूप उपयुक्त नहीं है
(3) पर्यावरण आध्ययन, एक परम्परागत विषय न
होकर एक स्वतन्त्र विषय है
(4) पर्यावरण अध्ययन का सम्बन्ध प्रत्यक्ष रूप से
मानवीय सम्बन्धों से है
5. पर्यावरण अध्ययन का सम्बन्ध निम्नलिखित
में से किस विषय से है?
(1) भाषा
(2) विज्ञान
(3) सामाजिक विज्ञान
(4) ये सभी
6. “विचार पर्यावरण अध्ययन के
शिक्षण-अधिगम में भाषा की सार्थकता पर
अधिक बल देने की आवश्यकता ज्ञान है।”
निम्नलिखित में से कौन-सा उपरोक्त विचार
को सम्प्रेषित नहीं करता?
(1) पर्यावरण आगयन जैसे तथ्य-उन्मुखी विषय में
भाषा की सार्थकता सबसे कम होती है
(2) पर्यावरण की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के प्रति
केवल भाषा-शिक्षक ही न्याय कर सकते हैं
(3) यूँकि भाषा महत्वपूर्ण है। अतः पर्यावरण अध्ययन
के शिक्षक को इसकी परीक्षाओं में अयबोधन
व्याकरण के प्रश्न शामिल करने चाहिए।
(4) भाषा-प्रयोग और अर्थ की प्रभावी समन पर्यावरण
आययन अधिगम को संपादित करता है
7. पर्यावरण अध्ययन अपनी विषय-वस्तु
भूगोल व जीव विज्ञान के अतिरिक्त मुख्य
रूप से निम्न विषय से प्राप्त करता है
(1) राजनीति विज्ञान
(2) दर्शनशास्त्र
(3) विज्ञान
(4) चित्रकला
8. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. इतिहास एक केन्द्रित विषय है, जिसके
चारों ओर सभी विषय घूम सकते हैं।
B. इतिहास एक विषय ही नहीं, बल्कि एक
घर है, जिसमें सभी विषय निवास करते
हैं।
उपरोक्त में से कौन-सा कथन पर्यावरण
अध्ययन और इतिहास के सम्बन्ध को
बताता है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B
(4) न तो A और न ही B
9. निम्नलिखित में कौन-सा कथन सत्य है?
A. मानव की सभी क्रियाओं का आधार
आर्थिक ही होता है।
B. पर्यावरणीय स्थिति एवं परिस्थिति का
सामाजिक जीवन पर प्रभाव बहुत ही
व्यापक होता है।
C. लोगों का मकान कैसा होगा यह
पर्यावरण के द्वारा ही निर्धारित होता है।
(1) A और B
(2) A और C
(3) A और B
(4) A, B और C
10. बच्चों को जल की उपयोगिता के विषय में
बताने हेतु शिक्षक के लिए क्या करना
अधिक उपयुक्त होगा?
(1) बच्चों को जल की उपयोगिता के बारे में एक
निबन्ध लिखने के लिए कहना
(2) जल की उपयोगिता पर एक व्याख्यान देना
(3) जल के दैनिक उपयोग का उदाहरण देते हुए
इसके न होने की स्थिति में होने वाली
परेशानियों से बच्चों को अवगत कराना
(4) नदी, तालाब या समुद्र के चित्र बनाने के लिए
कहना
11. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन की
पाठ्यचर्या के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से
कौन-सा कथन सत्य है?
(1) प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्राकृतिक और
सामाजिक पर्यावरण को भाषा और गणित के
अविभाज्य अंग के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए
(2) इसमें जेण्डर-संवेदनशीलता को भी स्थान दिया
जाना चाहिए।
(3) बच्चों को उन क्रियाओं में संलग्न किया जाना
चाहिए जो उनकी प्राकृतिक और सामाजिक
पर्यावरण सम्बन्धी समझदारी को बढ़ाने में
मदद कर सकें
(4) उपरोक्त सभी
12. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. पर्यावरण में हम ऊर्जा एवं बल का
अध्ययन भी करते हैं, जिसका सीधा
सम्बन्ध भौतिक शास्त्र से होता है।
B. पर्यावरण यह निर्धारित करने में सक्षम
होता है कि किसी प्रदेश में कितने व
कैसे प्राणी पाए जाएंगे।
उपरोक्त में से कौन-से कथन पर्यावरण एवं
विज्ञान के सम्बन्ध में सही है/है?
(1) केवल A
(2) केवल B
(3) A और B दोनों
(4) न तो A और न ही B
13. पर्यावरण की भिन्नता के आधार पर विश्व
के सभी प्राणियों को 6 प्रमुख भौगोलिक
प्रदेशों में बाँटा जाता है; वो है
A. इथोपियन
B. ऑरियण्टल
C. आस्ट्रेलियन
D. पैलिआर्कटिक
E. नियोआर्कटिक
F. नियोट्रापीकल
(1) A,B,C व D
(2) A,C,D व E
(3) B, C, D, E व F
(4) A,B,C,D व E
                               विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
14. सामाजिक विज्ञान के सन्दर्भ में पर्यावरण
अध्ययन पढ़ने का निम्नलिखित में से
कौन-सा उद्देश्य नहीं है?
                                      [CTET Feb 2014]
(1) इसे बच्चों को मुख्य शब्दावली की सही
परिभाषा याद करने योग्य बनाना चाहिए
(2) इसे शिक्षार्थियों को विद्यमान विचारों और
अभ्यासों पर प्रश्न करने के योग्य बनाना
चाहिए
(3) इसे बच्चों को समाज के एक जिम्मेदार सदस्य
के रूप में बदने के योग्य बनाना चाहिए
(4) इसे बच्चों को संस्कृति अभ्यासों में विविधता
का सम्मान करने योग्य बनाना चाहिए
15. प्राथमिक स्तर की EVS की पाठ्यचर्या को
शुद्ध विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की
संकल्पनाओं को सम्मिलित करके विकसित
किया गया है। ऐसा करने का मुख्य
उद्देश्य है।                     [CTET Feb 2014]
(1) शिक्षार्थी को पर्यावरण को साकल्यवादी ढंग से
देखने योग्य बनाना
(2) पढ़ाई के विषयों की संख्या को कम करना
(3) विद्यार्थी के बस्ते का बोझ कम करना
(4) विषय आध्यापकों की आवश्यकता को कम
करना
                                        उत्तरमाला
1. (3) 2. (2) 3. (2) 4. (2) 5. (4) 6. (1) 7. (1) 8. (3) 9. (4) 10. (3)
11. (4) 12. (3) 13. (4) 14. (1) 15. (1)

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