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CTET Notes In Hindi | पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके

CTET Notes In Hindi | पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके
                       Methods of Teaching Environmental Studies
CTET परीक्षा के विगत वर्षों के प्रश्न-पत्रों का विश्लेषण करने
से यह ज्ञात होता है कि इस अध्याय से वर्ष 2011 में मात्र
1 प्रश्न, 2012 में 3 प्रश्न, 2013 में 3 प्रश्न, 2014 में 5 प्रश्न,
2015 में 3 प्रश्न तथा 2016 में 1 प्रश्न पूछे गए हैं। CTET
परीक्षा में पूछे गए प्रश्न मुख्यतया आगमन व निगमन विधि,
पर्यावरण अध्ययन के सन्दर्भ में समस्या निवारक विधि एवं भ्रमण
विधि तथा विज्ञान क्लब आदि प्रकरणों से सम्बन्धित हैं।
विभिन्न शिक्षण विधियों के माध्यम से शिक्षकों को अध्यापन के दौरान छात्रों
को पर्यावरण से सम्बन्धित जानकारी व्यावहारिक तौर पर देनी चाहिए तथा
इससे सम्बन्धित उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। विश्लेषण विधि, संश्लेषण
विधि, आगमन विधि, निगमन विधि तथा अन्वेषण की रिस्टिक विधि इत्यादि
के माध्यम से शिक्षकों को पर्यावरण अध्ययन पर बल देना चाहिए। यदि
शिक्षण का तरीका वैज्ञानिक, तर्क आधारित तथा व्यावहारिक होगा तो बच्चे
अध्ययन के प्रति संवेदनशील होगे, जो कुछ हद एक शिक्षण विधि पर निर्भर
करता है।
4.1 विश्लेषण एवं संश्लेषण विधि
विश्लेषण एवं संश्लेषण दोनों ही विधियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं। किसी भी
समस्या का विश्लेषण करने के पश्चात् उसका संश्लेषण करना भी आवश्यक
माना जाता है। अतः अध्यापक के लिए यह जरूरी है कि वह शिक्षण के
समय दोनों विधियों का उचित समन्वय कर उसका उपयोग करें।
4.1.1 विश्लेषण विधि
विश्लेषण एवं संश्लेषण विधि (Analysis and Synthesis Method)
एक-दूसरे की पूरक होती हैं। विश्लेषण विधि में अज्ञात से ज्ञात की ओर
चला जाता है, वहीं संश्लेषण विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर अध्ययन किया
जाता है।
• विश्लेषण विधि के द्वारा छात्र स्वयं सूक्ष्म अवलोकन के आधार पर इस
बात की खोज करते हैं कि किसी समस्या को हल करने के लिए किन
आवश्यक बातों की जानकारी होनी चाहिए। इस विधि में किसी भी समस्या
की गहराई तक पहुँचने के लिए समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभक्त
कर अज्ञात की ओर पहुँचने का प्रयास करते हैं।
• इस विधि में किसी तथ्य या समस्या को खण्डों (parts) में विभक्त कर
दिया जाता है तथा उनको मिलाने पर प्रारम्भिक स्वरूप प्राप्त हो जाता है।
उदाहरणस्वरूप यदि रेत, शक्कर एवं लोहे की छीलन का मिश्रण कर
दिया गया है, तो हम उन्हें कैसे अलग-अलग करेंगे। इस हेतु सर्वप्रथम यह
ज्ञात करेंगे कि मिश्रण में कौन-से पदार्थ मिले होते है। यह ज्ञात होने पर
कि मिश्रण में रेत, शक्कर एवं लोहे की छीलन आपस में मिली होती हैं,
हम उन पदार्थों पर चर्चा करके उनके गुणों की जानकारी प्राप्त करते हैं;
जैसे- छीलन का गुण चुम्बक से आकर्षित होता है शक्कर पानी में
घुलती है एवं रेत पर इनका कोई प्रभाव नहीं होता है। यह सब जानने के
पश्चात् ही मिश्रण को अलग करने का कार्य पूरा कर लिया जाता है।
• विश्लेषण विधि के निम्न लाभ है
-यह विधि खोज करने की सबसे प्रभावशाली विधि है।
-छात्रों को इस विधि में विचार करने का अवसर उपयुक्त एवं
मनोवैज्ञानिक ढंग से मिलता है।
-इसे एक क्रियाशील विधि माना जाता है।
-इसके द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान हमेशा स्थायी होता है।
• विश्लेषण विधि के निम्न दोष हैं
-इस विधि द्वारा अध्यापक को विषय-वस्तु सिखाने में अधिक समय
लगता है।
-इसका उपयोग प्राथमिक स्तर पर करना अत्यन्त कठिन है।
-कठिन विधि होने के कारण इससे नीरसता की भावना उत्पन्न होती है।
-इस विधि में छात्र धीरे-धीरे ज्ञानार्जन करते हैं।
4.1.2 संश्लेषण विधि
• इस विधि से ज्ञात से अज्ञात की ओर अध्ययन किया जाता है। इस विधि में
बहुत-से तत्त्वों के सम्बन्ध में जानकारी के आधार पर एक संयुक्त चित्रण
प्रस्तुत किया जाता है। दूसरे शब्दों में इस विधि से खण्डों में प्राप्त ज्ञान को
समग्र रूप से जोड़कर समझाया जाता है।
• विश्लेषण विधि में दिए गए मिश्रण को अलग करने के लिए विश्लेषण के
आधार पर मिश्रण में चुम्बक की सहायता से लोहे की छीलन को अलग
किया जाता है। उसके पश्चात् शक्कर और रेत के मिश्रण को पानी में
डालकर घोलेंगे। कुछ समय पश्चात् घोल को छानकर रेत अलग कर लेगे
तथा पानी को वाष्पीकृत करके शक्कर प्राप्त कर लेगे। उपरोक्त सम्पूर्ण
प्रक्रिया छात्रों की सहभागिता के साथ-साथ सम्पन्न की जाएगी।
• संश्लेषण विधि के निम्न गुण हैं
-यह काफी सरल विधि मानी जाती है, मन्द बुद्धि छात्रों के लिए यह
विशेष उपयोगी होती है।
-इस विधि को सिखाने में कम समय लगता है।
-यह सीखने की विशेष मनोवैज्ञानिक विधि है।
• संश्लेषण विधि के निम्न दोष है
-इस विधि से छात्रों में तर्क व निर्णय शक्ति का समुचित विकास नहीं
हो पाया है।
-इस विधि में छात्र स्वयं अपने प्रयास से ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते है।
-इस विधि में पदों का अनुकरण विशेष यान्त्रिक ढंग से किया जाता है।
4.2 आगमन एवं निगमन विधि
4.2.1 आगमन विधि
इस विधि में अनेक अवलोकनों के आधार पर एक सामान्य नियम पर पहुंचते
हैं। अवलोकनों, तथ्यो, गुणों की ओर ध्यान आकर्षित कराकर इस आधार पर
नियम का निर्माण किया जाना आगमन विधि (Inductive Method) की
विशेषता है।
लेण्डन महोदय के शब्दों में, जब कभी हम छात्रों के सम्मुख यहुत-से तथ्य
उदाहरण या वस्तुएँ प्रस्तुत करते है और फिर उनके स्वयं के निष्कर्ष
निकलवाने का प्रयत्न करते है, तब ऐसे में हम शिक्षण प्रणाली की आगमन
विधि का प्रयोग करते हैं। इस विधि का प्रयोग करते समय अध्यापक छात्रों को
नियमों, सिद्धान्तों, परिभाषाओं आदि को पहले से नहीं बताते है। इस विधि में
मुख्य तीन सूत्रों का प्रयोग किया जाता है
1. विशिष्ट से सामान्य की ओर।
2. ज्ञात से अज्ञात की ओर।
3. स्थूल से सूक्ष्म की ओर।
इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय छात्र अध्यापक के निम्न पदों का प्रयोग
करते हैं
(i) उदाहरण इस पद में छात्रों के सम्मुख एक ही प्रकार के विभिन्न
उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं।
(ii) निरीक्षण इसके अन्तर्गत छात्र उदाहरणों का निरीक्षण कर किसी
अन्तिम परिणाम पर पहुँचने का प्रयास करते हैं।
(iii) सामान्यीकरण इसमें छात्र प्रस्तुत उदाहरण का निरीक्षण करके किसी
सामान्य नियम को निर्धारित करते है।
(iv) सत्यापन सामान्यीकरण के पश्चात् छात्र अन्य उदाहरणों की सहायता से
नियम का स्वयं ही सत्यापन करते हैं।
आगमन विधि के गुण
आगमन विधि के निम्न गुण है।
• इस विधि के जरिए बालकों में आत्मविश्वास पैदा होता है।
• इस विधि से बालकों में रटने की प्रवृत्ति कम होने लगती है।
• यह विधि छोटी कक्षाओं के लिए विशेष उपयोगी व उचित है।
• वैज्ञानिक विधि होने के कारण यह छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित
करती है।
आगमन विधि के दोष
आगमन विधि के निम्न दोष है।
• इस विधि द्वारा सीखने में छात्रों को अधिक समय लगता है तथा परिश्रम भी
अधिक करना पड़ता है।
• उच्च कक्षाओं के लिए यह विधि अधिक उपयोगी नहीं है।
• यह विधि स्वयं में पूर्ण नहीं है, क्योकि नियम व सिद्धान्त निकालने के
पश्चात् ही कार्य समाप्त हो जाते हैं।
4.2.2 निगमन विधि
यह आगमन विधि की विपरीत प्रक्रिया है। इसमें सामान्य नियम के आधार पर
किसी विशेष परिस्थिति के लिए परिणाम निकाला जाता है इस प्रकार निगमन
आगमन का पूरक है। इस विधि में छात्रों को नियम बता दिए जाते है।
तत्पश्चात् उदाहरण प्रस्तुत किए जाते है।
लेण्डन के अनुसार, निगमन विधि (Deductive Method) द्वारा शिक्षण
क्षेत्र में सबसे पहले परिभाषा या नियम सिखाया जाता है एवं फिर
उसके अर्थ को स्पष्ट किया जाता है और अन्त में तथ्यों के प्रयोग
से उसे पूर्णतः स्पष्ट किया जाता है।
इस विधि द्वारा शिक्षण करते समय निम्न पदों का अनुसरण करते है
नियम या परिभाषा इस पद में अध्यापक छात्रों को नियम, या परिभाषा
पहले ही बता देते है।
प्रयोग का उदाहरण छात्रों को बताए गए नियम या परिभाषा के
सत्यापन के लिए प्रयोग कार्य करना या विशेष या संगत उदाहरण देना
आदि।
निष्कर्ष निकालना इसके अन्तर्गत उदाहरण या प्रयोग के माध्यम से
छात्र निष्कर्ष निकालते है।
सत्यापन इसके जरिए छात्र प्रयोग या उदाहरण की सहायता से सत्यता
का परीक्षण करते हैं।
निगमन विधि के गुण
निगमन विधि के निम्न गुण हैं।
• यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है।
• इस विधि का प्रयोग समस्त विषयों में आसानी से किया जा सकता है।
• इस विधि को सीखने में छात्रों को कम समय लगता है तथा परिश्रम भी
कम करना पड़ता है।
• इस विधि द्वारा अनेक छात्रों को एक समय ही शिक्षण दिया जाता है।
निगमन विधि के दोष
निगमन विधि के निम्न दोष हैं
• यह बालकों को रटने के लिए बाध्य करती है।
• यह विधि छात्रों में दूसरों पर निर्भर रहने की मानसिक भावना विकसित
करती है। इस विधि से छात्रों के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का उचित विकास
नहीं हो पाता है।
• यह विधि छात्रों में खोज की प्रवृत्ति व अन्वेषण की भावना को उत्साहित
नहीं करती।
                     आगमन एवं निगमन विधि एक-दूसरे की पूरक
आगमन विधि निगमन विधि से उन्नत एवं अधिक लाभप्रद है, लेकिन
वास्तविक रूप में दोनों विधियाँ एक-दूसरे की पूरक हैं। किसी भी नियम के
प्रयोग का सफल प्रतिपादन दोनों विधियों के संयुक्त रूप से प्रयोग करने से
ही सम्भव है। एक सामान्य नियम के अनुसार, दोनों विधियों में से सर्वप्रथम
आगमन विधि का प्रयोग करते हैं तत्पश्चात् निगमन विधि का प्रयोग करना
चाहिए।
4.3 अन्वेषण की ह्यूरिस्टिक विधि
इस विधि के जन्मदाता आर्मस्ट्रांग है। उन्होंने इसका आधार हर्बर्ट स्पेन्सर के
इस कथन पर रखा कि बालकों को जितना सम्भव हो बताया न जाए और
उनको जितना अधिक सम्भव हो खोजने को प्रोत्साहित किया जाए। इस
विधि का प्रमुख उद्देश्य बालकों में खोज की प्रवृत्ति का उदय कराना है।
बालकों के समक्ष इस प्रकार का वातावरण प्रस्तुत किया जाता है ताकि वे
स्वयं अपने प्रयास से नए तथ्य तथा नई खोज निकालते है।
इस विधि में बालक पर ज्ञान ऊपर से लादा नहीं जाता है, उन्हें स्वयं
सत्य की खोज के लिए प्रेरित किया जाता है। इसमें अध्यापक का
कर्तव्य है कि छात्र को अपनी तरफ से कम-से-कम बताएँ और उसे
अधिक खोजने का अवसर प्रदान करें।
4.3.1 ह्यूरिस्टिक विधि में अध्यापक की भूमिका
इस विधि में अध्यापक की भूमिका केवल एक मार्गदर्शक की होती है।
अध्यापक ही छात्रों के समक्ष समस्याएँ प्रस्तुत करता है, उसके हल के
लिए छात्रों को प्रोत्साहित करता है तथा आवश्यक सामग्री जुटाता है, उनके
प्रश्नों के उत्तर देते हैं। वह बालकों की शंकाओं का समाधान करता है, वह
अपनी ओर से छात्रों की किसी भी समस्याओं का केवल हल ही नहीं
बताता वरन हल खोजने का मार्ग भी प्रस्तुत करता है।
4.3.2 ह्यूरिस्टिक विधि के पद
ह्यूरिस्टिक विधि में निम्नलिखित पदों का प्रयोग होता है
• समस्या की उपस्थिति अध्यापक छात्रों के सामने किसी समस्या को
प्रस्तुत करता है।
• तथ्यों की खोज इसमें छात्रों को समस्या से सम्बन्धित तथ्यों
(जानकारी) को इकट्ठा करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
• परिकल्पनाओं का निर्माण इसमें छात्र तथ्यों के आधार पर समस्या
के हल का अनुमान लगाते हैं।
• छात्र परिकल्पनाओं का परीक्षण परीक्षा विभिन्न तथ्यों के आधार
पर छात्र परिकल्पनाओं (अनुमानो) का परीक्षण करते हैं।
• छात्र नियम का निर्धारण नियम निर्धारण सत्य एवं शुद्ध
परिकल्पनाओं को अपनाकर छात्र नियम निर्धारण करते हैं
ह्यूरिस्टिक विधि के गुण
ह्यूरिस्टिक विधि के गुण नीचे दिए गए है, जो निम्न हैं
• इस विधि में बालक जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त करता है, वह स्वयं अपने
प्रयास से ही प्राप्त करता है। अत: यह ज्ञान उसके मस्तिष्क में स्थायी
हो जाता है। यह एक वैज्ञानिक प्रणाली है। इसमें छात्र को निरीक्षण
स्वमूल्यांकन के पर्याप्त अवसर मिलते हैं।
• इस विधि में छात्र समस्त कार्य कक्षा में ही समाप्त कर लेते हैं। अत:
गृहकार्य की समस्या नहीं उठती।
• इस विधि में बालक की शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं में समन्वय
स्वाभाविक ढंग से सम्पन्न होता है।
• यह विधि छात्र को आत्मनिर्भर बनाने में सक्रिय भूमिका निभाती है।
• यह विधि पाठ्य-वस्तु को बोधगम्य तथा सरल बना देती है।
ह्यूरिस्टिक विधि के दोष
ह्यूरिस्टिक विधि के दोष नीचे दिए गए हैं, जो निम्न है
• यह विधि प्राथमिक स्तर के लिए अधिक उपयोगी नहीं है।
• यह विधि केवल उच्च कक्षाओं के लिए ही उपयुक्त मानी जाती है।
• यह विधि व्ययपूर्ण भी है, क्योकि इसके लिए सुसज्जित प्रयोगशाला
की आवश्यकता होती है।
• यह विधि व्यक्तिगत शिक्षण के लिए अधिक उपयुक्त है, सामूहिक शिक्षण के
लिए अधिक लाभकारी नहीं होती है। इस विधि द्वारा शिक्षण करने के लिए
विशेष प्रतिभा की आवश्यकता होती है।
• इस विधि में समय के अपव्यय होने की सम्भावना अधिक होती है।
4.4 भ्रमण विधि
प्राचीनकाल से ही शिक्षाशास्त्री भ्रमण को बालक की शिक्षा का एक प्रमुख साधन
मानते आए हैं। रूसो, इमील नामक विद्वान् बालक को भ्रमण द्वारा शिक्षा देना
चाहते थे। रूसो का कहना था कि बालक को घर में अथवा कक्षा में पुस्तक
पढ़वाकर बुनियादी शिक्षा नहीं दी जा सकती। बालक भ्रमण करके ही वस्तुओं का
स्वाभाविक ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
वाल्टर महोदय ने भी कहा है, कि पर्यावरण विषय के ज्ञान के लिए विद्यार्थियों को
वस्तुओं का स्वयं निरीक्षण करने तथा उनको अपने स्वाभाविक रूप में देखने के
लिए अवसर मिलना चाहिए। इसके लिए भ्रमण एक महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता
है।
भ्रमण (Excursion) केवल इसलिए नहीं कराया जाना चाहिए कि उसे कराना एक
दायित्व है, बल्कि इसमें औपचारिकता न होते हुए तथ्यात्मकता होनी चाहिए।
भ्रमण के लाभ
भ्रमण विधि के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है
• भ्रमण के द्वारा छात्रों को कक्षा में पढ़ी वस्तुओं, सिद्धान्तों तथा नियमों का बाह्य
जगत् में जाकर स्पष्टीकरण करने का व्यापक अवसर मिलता है।
• भ्रमण के द्वारा विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति विशेष रुचि उत्पन्न की जाती है।
इसके द्वारा विद्यार्थी एक-दूसरे के साथ सामूहिक रूप से मिल-जुलकर काम करना
सीखते हैं।
• भ्रमण के द्वारा ही वस्तुओं का स्वयं निरीक्षण करने का अवसर प्राप्त होता है,
जिससे उनके ज्ञान की वृद्धि होती है।
• भ्रमण के द्वारा ही विद्यार्थी विज्ञान सम्बन्धी सामग्री इकट्ठा करते हैं, जो उसे
विज्ञान विषय को समझने में सहायक सिद्ध होती है।
4.5 समस्या निवारक विधि
यह विधि पर्यावरण शिक्षण की एक उत्तम विधि मानी जाती है। यह विधि
आर्मस्ट्रांग की ह्यूरिस्टिक विधि के आधार पर ज्ञात की गई है। इस विधि के
अनुसार, कक्षा में विद्यार्थियों के सम्मुख समस्याएँ प्रस्तुत की जाती हैं। जिस कारण
वह उनका हल करने को तत्पर हो जाते हैं तथा समस्या निवारण करना उनके लिए
आवश्यक हो जाता है और समस्या का निवारण होने पर उनकी तृप्ति होती है।
• समस्या निवारक विधि (Problem Solving Method) को सफल बनाने के
लिए समस्या विद्यार्थी के स्तर की होनी चाहिए तथा उसकी आवश्यकता की पूर्ति
करनी चाहिए।
• समस्या को विद्यार्थियों के अनुभव पर आधारित होना चाहिए जिससे वे उसकी
निवारण करने की आवश्यकता का अनुभव करें।
• समस्या कठिनाइयों के क्रम में होनी चाहिए। एक मुख्य समस्या के अन्तर्गत
अनेक समस्याएँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।
• प्रत्येक समस्या को एक-दूसरे से सम्बन्धित होना चाहिए तथा उनका निवारण
विद्यार्थियों के अनुभवों के आधार पर ही होनी चाहिए।
• समस्या को वाद-विवाद पर आधारित होना चाहिए। थोपी गई समस्या के
निवारण में विद्यार्थी रुचि नहीं लेते हैं। विद्यार्थी समस्या में तभी रुचि लेंगे
जब समस्या उनके लिए रुचिकर एवं विद्यार्थियों की आवश्यकताओं पर
आधारित हो। समस्या निवारक विधि को आवश्यकतानुसार बदला भी जा
सकता है।
4.6 जाँच-पड़ताल विधि
पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करने में जाँच-पड़ताल एक प्रासंगिक विधि मानी
जाता है। साधारण रूप से जाँच-पड़ताल (Investigation) का अर्थ है
ध्यानपूर्वक परीक्षण करना है। अतः इस विधि को प्रयोग में लाते समय बालक
जिन वस्तुओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उन पर पूरी तरह ध्यान
देने की कोशिश करता है। इसके अलावा आवश्यकतानुसार उन्हें ठीक प्रकार
देखने, सुनने, सूंघने, चखने या स्पर्श करने का प्रयत्न करता है। वह जो कुछ
भी देखता और सुनता है उसे याद रखने तथा उस पर चिन्तन और मनन
करने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार उसका मस्तिष्क पूर्ण रूप से क्रियाशील
रहता है।
जाँच-पड़ताल के गुण
जाँच-पड़ताल विधि के गुण इस प्रकार हैं
• यह विधि ज्ञान प्राप्ति का प्रत्यक्ष साधन प्रदान करने में सहायक होती है।
इस विधि द्वारा बालकों में प्रयोगात्मक एवं व्यवहारात्मक ज्ञान प्राप्ति का
अवसर प्रदान होता है। यह पर्यावरण शिक्षण को रोचक और प्रभावपूर्ण
बनाने में विशेष सहायता प्रदान करता है।
• इस विधि में बालकों की मानसिक शक्तियों को विकसित होने का समुचित
अवसर मिलता है।
जाँच-पड़ताल के दोष
जाँच-पड़ताल विधि के दोष निम्न हैं
• इस विधि द्वारा व्यवस्थित एवं सुनियोजित ज्ञान की प्राप्ति सम्भव नहीं हो
पाती है। व्यक्तिगत ध्यान न देने के अभाव में इस विधि का सार्वभौमिक
प्रयोग सम्भव नहीं।
• इस विधि द्बारा पाठ्यक्रम समय पर समाप्त करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
4.7 विज्ञान क्लब
पाठ्य सहगामी क्रियाओं के अन्तर्गत विज्ञान एवं पर्यावरण विषयों में रुचि
उत्पन्न करने की दिशा में विज्ञान क्लब (Science Club) का एक महत्त्वपूर्ण
स्थान है।
• विज्ञान क्लब के माध्यम से स्थिर और गतिशील पदार्थ बनाकर अथवा
आकर्षक चित्र एवं चार्ट तैयार कर विभिन्न जटिल धारणाओं का आयोजन
विज्ञान वाटिका, विज्ञान प्रदर्शनी जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन विज्ञान
क्लब के अन्तर्गत करके विज्ञान विषयों के प्रति रूझान बढ़ाया जा सकता
है। विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर निबन्ध एवं तत्कालीन भाषण जैसी
प्रतिस्पर्धाएँ छात्रों में प्रभावशाली अभिव्यक्ति जागृत करने में उपयोगी सिद्ध
होती हैं।
• विज्ञान पहेली, गणित ऑलम्पियाड, विज्ञान प्रतिभा खोज जैसी
प्रतियोगिताओं के लिए शालेय विज्ञान क्लब द्वारा प्रभावी ढंग से कोचिंग दी
जाती है। छात्रों द्वारा मौसम-विज्ञान सम्बन्धी विभिन्न चार्ट एवं ग्राफ
(दैनिक तापक्रम, अधिकतम, न्यूनतम, तापक्रम वर्षा आदि) बनवाकर उनमें
विज्ञान के व्यावहारिक जीवन के महत्त्व को समझाया जा सकता है।
• विज्ञान क्लब की सहायता से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण
जैसी ज्वलन्त समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया जा सकता है।
पर्यावरणीय स्वच्छता एवं सन्तुलन का महत्त्व भी क्लब के माध्यम से छात्रों
को समझाया जा सकता है।
• वैज्ञानिक रुचि के स्थानों (नेहरू संग्रहालय मुम्बई, विज्ञान संग्रहालय
बंगलुरु, बिरला प्लेनेटोरियम कोलकाता आदि) पर शैक्षणिक भ्रमण का
आयोजन भी विज्ञान क्लब के माध्यम से किया जा सकता है।
• विज्ञान क्लब की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु शिक्षा विभाग के
द्वारा विद्यालयों में विज्ञान क्लब निधि स्थापित किए जाने के निर्देश दिए
गए हैं।
• इस निधि का उपयोग विज्ञान क्लब की विविध आर्थिक आवश्यकताओं की
पूर्ति के लिए किया जाता है।
                                           अभ्यास प्रश्न
1. पर्यावरण अध्ययन को पढ़ाने की कौन-कौन
सी विधियाँ प्रचलित है।
(1) निर्देशित खोज
(2) सहयोगात्मक अधिगम
(3) समस्या समाधान
(4) उपरोक्त सभी
2. निम्नलिखित कथनों में विश्लेषण विधि के
सन्दर्भ में कौन-सा एक कथन सही नहीं है।
(1) यह विधि अज्ञात से ज्ञात की ओर चलती है
(2) इस विधि द्वारा अध्यापक को विषय-वस्तु
सिखाने में कम समय लगता है
(3) यह अध्ययन की क्रियाशील विधि है
(4) इस विधि के द्वारा अर्जित किया गया ज्ञान
हमेशा स्थायी होता है
3. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण की
आगमन विधि का लाभ नहीं है?
(1) यह विधि शिक्षण की एक मनोवैज्ञानिक विधि है
(2) इस विधि द्वारा सीखने में शक्ति तथा समय
दोनों अधिक लगते हैं
(3) आगमन विधि में ज्ञान प्राप्त करते हुए बालक
को सीखने के प्रत्येक स्तर को पार करना
पड़ता है इससे शिक्षण प्रभावशाली बन
जाता है
(4) इस विधि में बालक उदाहरणों का विश्लेषण
करते हुए सामान्य नियम स्वयं निकाल लेते
हैं। इससे उनका मानसिक विकास
सरलतापूर्वक हो जाता है
4. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण की
आगमन विधि का दोष नहीं है?
(1) यह विधि छोटे बालकों के लिए उपयुक्त नहीं
है। इनका प्रयोग केवल बड़े और वह भी
बुद्धिमान बालक ही कर सकते हैं
(2) आगमन विधि द्वारा सीखते हुए यदि बालक
किसी अशुद्ध सामान्य नियम की ओर पहुँच
जाएँ तो उन्हें सत्य की ओर लाने में अनेक
कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है
(3) इस विधि द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान स्वयं
बालकों का खोजा हुआ ज्ञान होता है। अतः ऐसा
ज्ञान उनके मस्तिष्क का स्थायी अंग बन जाता है।
(4) आगमन विधि द्वारा केवल सामान्य नियमों की
खोज ही की जा सकती है। अतः इस विधि द्वारा
प्रत्येक विषय की शिक्षा नहीं दी जा सकती
5. शिक्षण की ……….उस विधि को कहते हैं
जिसमें सामान्य से विशिष्ट अथवा सामान्य नियम
से विशिष्ट उदाहरण की ओर बढ़ा जाता है।
(1) निगमन विधि
(2) आगमन विधि
(3) परियोजना विधि
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
6. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण की
निगमन विधि का दोष नहीं है?
(1) इस विधि में सामान्य से विशिष्ट की ओर,
अज्ञात से ज्ञात की ओर तथा अमूर्त से मूर्त
की ओर चलना पड़ता है। इस दृष्टि से यह
विधि शिक्षण की अमनोवैज्ञानिक विधि है
(2) इस विधि द्वारा कक्षा के सभी बालकों को एक
ही समय में पढ़ाया जा सकता है
(3) यह विधि नियमों अथवा सिद्धान्तों को बलपूर्वक
रटने के लिए बाध्य करती है। परिणामस्वरूप
बालक पाठ में कोई रुचि नहीं लेते
(4) इस विधि से बालकों को अपने निजी प्रयासों
द्वारा ज्ञान को खोजने का कोई अवसर नहीं
मिलता है। इससे उनमें मानसिक दासता
विकसित हो जाती है
7. अविनाश पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में
निरक्षरता, गरीबी और वर्ग-असमानता जैसे
सामाजिक मुद्दों पर अधिक बल देना
चाहता है। निम्नलिखित में से कौन-सा
अधिगम अनुभव इस उद्देश्य की प्राप्ति में
सबसे अधिक प्रभावी होगा?
(1) सम्बन्धित मुद्दों पर विशेष व्याख्यानों का
आयोजन करना
(2) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित सामाजिक मुद्दों पर
चार्ट तैयार करने के लिए कहना
(3) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित जानकारी एकत्र
करने और विश्लेषण करने के लिए सामूहिक
परियोजना लेने के लिए कहना
(4) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित मुद्दों पर स्लोगन
लिखने के लिए कहना
8. रितिका कक्षा V के विद्यार्थियों को
पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में पढ़ाते
समय ‘प्रदूषण’ पर अधिक बल देना चाहती
है। वांछित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्न
दिए गए क्रिया-कलापों में से कौन सबसे
अधिक प्रभावी एवं उपयुक्त होगा?
(1) विद्यार्थियों से विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से
सम्बन्धित समूह परियोजनाओं पर कार्य करने
के लिए कहना
(2) किसी विशेषज्ञ को नियन्त्रित करके वायु, जल
और ध्वनि प्रदूषण पर भाषण देना
(3) विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाकर
किसी प्रदूषित नदी को दिखाना
(4) विद्यार्थियों से विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के
चार्ट बनवाकर
9. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण की
निगमन विधि का गुण है?
(1) यह विधि प्रत्येक विषय को पढ़ाने के लिए
उपयुक्त है
(2) यह विधि छोटे बालकों के लिए अत्यन्त
लाभदायक है। इसके प्रयोग द्वारा बालक ज्ञान
का प्रयोग करना सफलतापूर्वक सीख जाते हैं
(3) निगमन विधि में बालकों को शिक्षक द्वारा
बनाया हुआ नियम अथवा दिया हुआ ज्ञान हर
हालत में स्वीकार करना पड़ता है
(4) निगमन विधि द्वारा बालक शुद्ध नियमों की
जानकारी प्राप्त करते हैं, उन्हें अशुद्ध-नियमों
को जानने का कोई अवसर नहीं मिलता है
10. समस्या विधि औपचारिक शिक्षण विधियों
से भिन्न है, क्योंकि इसमें
(1) विद्यार्थी का सक्रिय सहयोग तथा संलग्नता
रहती है
(2) विद्यार्थी का सक्रिय सहयोग तथा संलग्नता
नहीं रहती है
(3) विद्यार्थी को समस्याओं में उलझाकर रखा जा
सकता है
(4) उपरोक्त में से कोई नहीं
11. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक के पद के
लिए चार प्रत्याशियों को ‘वन काटने के
परिणाम’ पर एक-एक पाठ योजना बनाने
के लिए कहा गया। निम्नलिखित में से
कौन-सी पाठ योजना वैज्ञानिक उपागम
प्रदर्शित करती है?
(1) इस सम्प्रत्यय को समझाने हेतु अनेक प्रकार
के उदाहरण प्रस्तुत करती है
(2) ऐसे क्रिया-कलाप सम्मिलित करती है, जिन्हें
बच्चे समूहों में कर सकें और पावर प्वॉइण्ट
प्रस्तुति करके निष्कर्ष निकालें
(3) सम्प्रत्यय विद्यार्थियों को समझाने के लिए ICT
के प्रयोग की बात करती है
(4) वन काटने के परिणामों को विस्तार से
समझाती है
12. पर्यावरण अध्ययन के सन्दर्भ में
कथन-विधि का दोष है।
(1) छात्र निष्क्रिय हो जाता है
(2) अध्यापक आलसी हो जाता है
(3) विषय-वस्तु पर्याप्त नहीं होती
(4) अतिरिक्त ज्ञान मिल जाता है
13. राहुल कक्षा में पर्यावरण अध्ययन के विभिन्न
अवधारणाओं को स्पष्ट करने के लिए
कविताओं और कहानी-कथन का प्रयोग
करना क्यों उपयोगी होता है? बताइए?
(1) उचित दिशा में बच्चों की ऊर्जा को संकेन्द्रित
करता है
(2) पाठ को आनन्ददायक और रोचक बनाने में
मदद करता है
(3) बच्चों में विद्यमान भाषिक एवं सांस्कृतिक
विविधता को ध्यान में रखता है
(4) स्थानीय एवं विश्व स्तर पर संसार की प्रकृति को
खोजने और कल्पना करने की योग्यता का
विकास करने में मदद करता है
14. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
A. आगमन विधि स्वयं में पूर्ण नहीं है
B. यह विधि उच्च कक्षाओं के लिए अधिक
उपयोगी नहीं है
C. इस विधि को सीखने में अधिक समय
लगता है
उपरोक्त में से कौन-सा कथन सही है?
(1) A और B
(2) B और C
(3) A और C
(4) A, B और C
15. अन्वेषण की यूरिस्टिक विधि के जन्मदाता
कौन थे?
(1) हर्बर्ट स्पेन्सर
(2) आर्मस्ट्रांग
(3) इमील
(4) रूसो
16. कक्षा 1 से V के स्तर पर बच्चों को
पर्यावरण अध्ययन पढ़ाने के लिए
निम्नलिखित में से कौन-सा पहलू सबसे
अधिक महत्त्वपूर्ण होगा?
(1) सीखने वालों को प्राकृतिक और
सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से जोड़ना
(2) क्रिया-कलाप संचालित करना तथा कौशलों का
विकास करना
(3) विज्ञान की आधारभूत संकल्पनाओं
(अवधारणाओं) को समझाना
(4) आकलन में सफलता प्राप्त करना
17. कविता कक्षा III के शिक्षार्थियों को ‘जन्तु
हमारे दोस्त’ प्रकरण पढ़ाते समय नीचे
लिखी हुई पद्धति का प्रयोग करती है।
A. जन्तुओं पर आधारित वृत्त चित्र दिखाना।
B. शिक्षार्थियों को नजदीक के पार्क में ले
जाना और उनसे जन्तुओं को ध्यान से
देखने के लिए कहना।
C. विभिन्न जन्तुओं की तस्वीरों वाले चार्ट
का प्रयोग करना और संक्षिप्त में उनका
वर्णन करना।
कविता किस प्रयोजन के लिए सीखने के
विभिन्न उपागमों का प्रयोग कर रही है?
(1) शिक्षार्थियों में तर्कशक्ति का विकास करना
(2) अपनी पाठ योजना का पालन करना
(3) दूसरे शिक्षकों और अभिभावकों को प्रभावित
करना
(4) बहुबुद्धि वाले शिक्षार्थियों की विभिन्न
आवश्यकताओं को पूरा करना।
18. निम्नलिखित में से कौन-सा शिक्षण की
निगमन विधि का गुण है?
(1) इस विधि के प्रयोग से समय तथा शक्ति
दोनों की बचत होती है
(2) निगमन विधि द्वारा रटा हुआ ज्ञान बालकों के
मस्तिष्क का स्थायी अंग नहीं बनता
(3) । बालकों में रचनात्मक प्रवृत्ति होती है। अतः ये
वस्तुओं को बनाने, बिगाड़ने अथवा
तोड़ने-फोड़ने में रुचि लेते हैं. पर निगमन
विधि केवल अमूर्त चिन्तन पर ही बल देती है
(4) इससे बालकों की रचनात्मक शक्तियाँ
अविकसित ही रह जाती हैं
19. निम्नलिखित में से कौन-सा दत्त कार्य का
विशिष्ट उद्देश्य नहीं है?
(1) विद्यार्थियों को अभिप्रेरणा
सीखने की क्रियाओं की ओर उन्मुख करना
(2) विद्यार्थियों को उलझाए रखना, ताकि वे
शिक्षक को परेशान न करें
(3) निश्चित सीखने के अभ्यास तथा क्रियाओं को देना
(4) अध्ययन तथा दूसरी सीखने की क्रियाओं के
लिए निर्देश देना
                                विगत वर्षों में पूछे गए प्रश्न
20. पर्यावरण अध्ययन को कक्षा में
अवधारणाओं को स्पष्ट करने के लिए
कविताओं और कहानी कथन का प्रयोग
करना।                           [CTET June 2011]
(1) बच्चों में विद्यमान भाषिक एवं सांस्कृतिक
विविधता को ध्यान में रखता है
(2) उचित दिशा में बच्चों की ऊर्जा को संकेन्द्रित
करता है
(3) पाठ को आनन्ददायक और रोचक बनाने में
मदद करता है
(4) स्थानीय एवं विश्व स्तर पर संसार की प्रकृति
को खोजने और कल्पना करने की योग्यता
का विकास करने में मदद करता है
21. खाद्य श्रृंखला की संकल्पना को पढ़ाने में
विद्यार्थियों को अधिकतम भागीदारिता के
लिए निम्नलिखित में से कौन-सी शिक्षण
व्यूह-रचना सबसे प्रभावी होगी?
                                       [CTET Jan 2012]
(1) ए विद्यार्थियों को इण्टरनेट से सम्बन्धित
जानकारी एकत्रित करने के लिए कहना
(2) श्यामपट्ट पर लिखी विभिन्न खाद्य-शृंखलाओं
के सभी उदाहरणों को देखकर लिखने के
लिए विद्यार्थियों से कहना
(3) जीवों के प्ले-कार्ड्स बनाना और विद्यार्थियों के
समूह
को विभिन्न खारा-शृंखलाओं को सोचते
हुए उन्हें व्यवस्थित करने के लिए कहना
(4) विभिन्न आवासों में चलने वाली सम्भावित
खाय-शृंखलाओं की खोज करने के लिए
विद्यार्थियों को कहना
22. ‘वायु हर जगह है’ प्रकरण पर पढ़ाते समय
एक शिक्षक विद्यार्थियों से निम्नलिखित प्रश्न
पूछता है                           [CTET Jan 2012]
A. क्या मृदा में वायु है?
B. क्या पानी के अन्दर वायु है?
C. क्या हमारे शरीर में वायु है?
D. क्या हमारी हड्डियों में वायु है?
शिक्षक शिक्षार्थियों में निम्नलिखित में से
कौन-सा कौशल विकसित करने का प्रयास
कर रहा है?
(1) वर्गीकरण कौशल
(2) चिन्तन कौशल
(3) संवेगात्मक कौशल
(4) अवलोकन कौशल
23. ….. के अलावा निम्नलिखित पर्यावरण
अध्ययन पढ़ाने की विधियाँ है।
                               [CTET Nov 2012]
(1) सहयोगात्मक अधिगम
(2) निर्देशित खोज
(3) व्याख्यानों द्वारा स्पष्ट करने
(4) समस्या समाधान
24. कविता पर्यावरण अध्ययन की कक्षा में
गरीबी, निरक्षरता और वर्ग-असमानता जैसे
सामाजिक मुद्दों पर बल देना चाहती है।
निम्नलिखित में से कौन-सा अधिगम-
अनुभव इस उद्देश्य की प्राप्ति में अधिक
प्रभावी होगा?               [CTET July 2013]
(1) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित मुद्दों पर स्लोगन
लिखने के लिए कहना
(2) सम्बन्धित मुद्दों पर विशेष व्याख्यानों का
आयोजन करना
(3) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित सामाजिक मुद्दों पर
चार्ट तैयार करने लिए कहना
(4) शिक्षार्थियों को सम्बन्धित जानकारी एकत्र
करने और विश्लेषण करने लिए सामूहिक
परियोजना लेने के लिए कहना
25. प्रयोगशीलता, खोजना, जाँच-पड़ताल और
प्रश्न पूछना पर्यावरण अध्ययन के सक्रिय
अधिगम के अनिवार्य तत्त्वों का निर्माण
करते हैं। एक शिक्षक ‘खाना, जो हमें खाना
चाहिए’ की संकल्पना के बारे में बताने के
लिए निम्नलिखित गतिविधियों की व्यवस्था
करता हैI                  [CTET July 2013]
(1) प्रकरण पर एक वीडियो दिखाता है
(2) श्यामपट्ट पर उस प्रकार के सभी भोज्य
पदार्थों के चित्र बनाता है
(3) विभिन्न भोज्य पदार्थों के उदाहरण देता है,
प्रत्येक में अनिवार्य तत्त्व बताता है
(4) शिक्षार्थियों से कहता है कि सभी सम्भावित
स्रोतों से सम्बन्धित जानकारी एकत्र करें
उपरोक्त चार गतिविधियों में से कौन-सी
सक्रिय अधिगम को सन्तुष्ट करती है?
26. पर्यावरण अध्ययन के शिक्षक के रूप में
चिड़ियाघर के भ्रमण का आयोजन करने
का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए
                                 [CTET July 2013]
(1) शिक्षा की गुणवत्ता के विषय में अभिभावकों को
सन्तुष्ट करना
(2) शिक्षार्थियों को आनन्द और मजा उपलब्ध कराना
(3) नित्य शिक्षण कार्यक्रम की एकरसता को बदलना
(4) शिक्षार्थियों को सक्रिय अधिगम अनुभव
उपलब्ध कराना
27. कक्षा v के विद्यार्थियों को पर्यावरणीय
चिन्ताओं के बारे में पढ़ाते समय प्रीति
‘प्रदूषण’ पर अधिक बल देना चाहती है।
वांछित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए
नीचे दिए गए क्रिया-कलापों में से कौन
सर्वाधिक प्रभावी हो सकता है?
                               [CTET Feb 2014]
(1) विद्यार्थियों से विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को
चार्ट बनवाकर
(2) विद्यार्थियों को शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाकर
किसी प्रदूषित नदी को दिखाना
(3) विद्यार्थियों से विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से
सम्बन्धित समूह परियोजनाओं पर कार्य करने
के लिए कहना
(4) किसी विशेषज्ञ को निमन्त्रित करके वायु, जल
और ध्वनि प्रदूषण पर भाषण
28. EVS में किसी अच्छे गृहकार्य को मुख्यत:
किस पर केन्द्रित होना चाहिए?
                                [CTET Feb 2014]
(1) पुनरावृत्ति और प्रबलीकरण
(2) मास्टरी लर्निग
(3) विस्तारित अधिगम के लिए चुनौतियाँ और
उत्तेजना
(4) समय का सदुपयोग
29. EVS की पढ़ाई में कक्षा में प्रश्नोतर’
तकनीक का सबसे अच्छा उपयोग किसके
लिए किया जा सकता है?
                               [CTET Feb 2014]
(1) विद्यार्थियों का ध्यान आकर्षित करने के लिए
(2) शिक्षार्थियों में सीखने की जिज्ञासा उत्पन्न
करने के लिए
(3) प्रायोगिक कौशल को बढ़ावा देने के लिए
(4) कक्षा में अनुशासन बनाए रखने के लिए
30. कक्षा V के शिक्षार्थियों में जिज्ञासा जाग्रत
करने का निम्न में से सबसे प्रभावी
तरीका है।                      [CTET Sept 2014]
(1) अधिक हस्तपरक अनुभव प्रदान करना
(2) लिखित कार्य में उन्हें अधिक अभ्यास देना
(3) अकसर इकाई परीक्षणों का आयोजन करना
(4) गहन जाँच-परख और कल्पनापरक प्रश्न पूछना
31. कक्षा III के शिक्षार्थियों को ‘हमारे
दोस्त-पक्षी’ प्रकरण पढ़ाते समय नलिनी
नीचे दी गई पद्धति का प्रयोग करती है
A. पक्षियों पर आधारित वृत्त-चित्र दिखाना।
B. विभिन्न पक्षियों की तस्वीरों वाले चार्ट
का प्रयोग करना और संक्षेप में उनका
वर्णन करना।
C. शिक्षार्थियों को नजदीक के पार्क में ले
जाना और उनसे पक्षियों को ध्यान से
देखने के लिए कहना।
नलिनी किस प्रयोजन के लिए सीखने के
विभिन्न उपागमों का प्रयोग कर रही है?
                           [CTET Sept 2014]
(1) अपनी पाठ-योजना का पालन करना
(2) बहुबुद्धि वाले शिक्षार्थियों की विभिन्न
आवश्यकताओं को पूरा करना
(3) दूसरे शिक्षकों और अभिभावकों को प्रभावित करना
(4) शिक्षार्थियों में तर्कशक्ति का विकास करना
32. प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन पढ़ाने
के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा पहलू
सबसे महत्त्वपूर्ण होना चाहिए?
                                      [CTET Feb 2015]
(1) क्रियाकलाप संचालित करना तथा कौशलों का
विकास करना
(2) आकलन में सफलता प्राप्त करना
(3) विज्ञान की आधारभूत संकल्पनाओं को समझना
(4) सीखने वालों को प्राकृतिक और
सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से जोड़ना
33. प्राथमिक स्तर पर ‘मानचित्रांकन’ सिखाने से
शिक्षार्थियों में निम्नलिखित में से किस
कौशल को बढ़ावा मिलता है?
                                    [CTET Feb 2015]
(1) साफ-सुथरा रेखांकन
(2) गणनाएँ और अनुमान
(3) माप के अनुसार चित्रण करना
(4) सापेक्ष स्थिति और दिशा बोध की जानकारी
34. कविताएँ और कहानियाँ पर्यावरण अध्ययन
की अन्तर्वस्तु को पढ़ाने में प्रभावशाली हैं।
ऐसा इसीलिए है, क्योंकि कविताएँ और
कहानियाँ                      [CTET Sept 2015]
A. बच्चों के परिवेश का समृद्ध चित्रण कर
सकती हैं।
B. सन्दर्भित अधिगम परिवेश प्रदान कर
सकती हैं।
C. विभिन्न अमूर्त अवधारणाओं की
प्रभावशाली तरीके से व्याख्या कर
सकती हैं।
D. सृजनात्मकता एवं सौन्दर्यबोध का पोषण
कर सकती हैं।
(1) A, B और D
(2) केवल C
(3) केवल B
(4) A और B
35. पर्यावरण अध्ययन पाठ्य-पुस्तक की
विषय-वस्तु में            [CTET Feb 2016]
A. परिभाषाओं और व्याख्यानों को दूर रखा
जाना चाहिए
B. रटकर सीखने को हतोत्साहित करना
चाहिए
C. बच्चे को प्रश्न करने और खोजने का
मौका मिलना चाहिए
D. बच्चे को केवल लिखित जानकारी दी
जानी चाहिए
सही विकल्प को चुनिए
(1) A और D
(2) B और C
(3) केवल C
(4) A, B और C
                                           उत्तरमाला
1. (4) 2. (2) 3. (2) 4. (3) 5. (1) 6. (2) 7. (3) 8. (1) 9. (3) 10. (1)
11. (2) 12. (1) 13. (4) 14. (4) 15. (2) 16. (1) 17. (4) 18. (1)
19. (2) 20. (4) 21. (3) 22. (2) 23. (3) 24. (4) 25. (4) 26. (4)
27. (3) 28. (3) 29. (2) 30. (4) 31. (2) 32. (4) 33. (4) 34. (1)
35. (4)

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