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Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकम्पविभीषिका

HBSE 10th Class Sanskrit भूकम्पविभीषिका Textbook Questions and Answers

भूकम्पविभीषिका (भूकम्प की विभीषिका) Summary in Hindhi

भूकम्पविभीषिका पाठ-परिचय

प्राकृतिक आपदाएँ किस देश में कब आ जाएँ इसे कोई नहीं जानता। ऐसे प्राकृतिक उपद्रवों में बाढ़, भूस्खलन, भूकम्प, तुफान आदि उल्लेखनीय है। इन उपद्रवों से मानव जीवन बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाता है। चारों ओर विनाश लीला का क्रूर नृत्य होता है। ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं में भूकम्प भी एक आपदा है।
भूमि का कम्पन भूकम्प कहलाता है यह कम्पन इतना जबरदस्त होता है कि इसका प्रभाव अपने केन्द्र बिन्दु से सैंकड़ों मील दूर तक पहुँचता है और इसकी तरंगों से प्रभावित भू-क्षेत्र पर निर्मित बहुमंजिले भवन, सड़कें, बिजली के खंभे, बड़े-बड़े टावर आदि देखते ही देखते महाविनाश में बदल जाते हैं। हम इन प्राकृतिक आपदाओं को रोक तो नहीं सकते, इनसे होने वाली हानि को कम अवश्य ही कर सकते हैं।
प्रस्तुत पाठ ‘भूकम्पविभीषिका’ के माध्यम से भी यही बताया गया है कि किसी भी आपदा में बिना किसी घबराहट के, हिम्मत के साथ किस प्रकार हम अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकते हैं।

भूकम्पविभीषिका पाठस्य सारांश:
‘भूकम्पविभिषिका’ यह पाठ भूकम्प द्वारा होने वाले भयंकर विनाश को केन्द्रित करके रचा गया है। सन् 2001 में जब सम्पूर्ण भारत गणतन्त्रता दिवस की खुशियाँ मना रहा था तभी गुजरात राज्य अचानक भूकम्प की चपेट में आ गया।

और संपूर्ण राज्य का जनजीवन चीख पुकार में बदल गया। इस भूकम्प का केन्द्र कच्छ जनपद में भुजनगर था जिसका नाम भी शेष नहीं रहा। बहुमंजिले मकान धराशायी होकर मलबे का ढेर बन गए। बिजली के खम्भे और वृक्ष आदि उखड़

गए, धरती में दरार बन गई। हजारों प्राणी मारे गए। हजारों ध्वस्त मकानों के मलबे में फँस गए। ऐसे में भी ईश्वर की विचित्र लीला देखिए कि बहुत से बच्चे बिना कुछ खाए-पिए दो-तीन बाद भी मलबे में से जीवित मिले। 2005 में कश्मीर और पाकिस्तान में भी ऐसा ही भयंकर भूकम्प आया था जिसमें लाखों लोग मौत की नींद सो गए थे। भू वैज्ञानिक इस सम्बन्ध में कहते हैं कि धरती के अन्दर विद्यमान चट्टानें जब आपसी घर्षण से टूटती और खिसकती है तब भूकम्प आते है और उस धरती के ऊपरी तल पर रहने वाले जनजीवन को अस्त व्यस्त कर महाविनाश का दृश्य उत्पन्न करते हैं।

ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोट से भी भूकम्प पैदा होते हैं। पृथ्वी के गर्भ में विद्यमान अग्नि जब खनिज मिट्टी पत्थर आदि को 800 डिग्री से भी अधिक तापमान पर पिघलाती है तो वे लावा बनकर बाहर की और नदी वेग से बह निकलते हैं और विनाशलीला करते हैं। यद्यपि भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है इसका कोई स्थायी उपाय नहीं है। फिर भी इन्हें कम करने के कुछ प्रयत्न सुरक्षा की दृष्टि से अवश्य कर लेने चाहिए। भूकम्प वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती पर असन्तुलन न हो इसके लिए नदियों पर बहुत बड़े-बड़े बाँध नहीं बनाने चाहिए और न ही बहुमंजिलें भवन बनाने चाहिए ; क्योंकि इनमें असन्तुलन के कारण भूकम्प की संभावनाएँ कई गुणा बढ़ जाती हैं।

भूकम्पविभीषिका Class 10 HBSE Shemushi प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृतभाषा में लिखिए-)
(क) समस्तराष्ट्र कीदृक् उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
(ख) भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कः जनपदः आसीत् ?
(ग) पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते ?
(घ) समग्रो विश्वः कैः आतंकितः दृश्यते ?
(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते ?
(च) कीदृशानि भवनानि धराशायीनि जायन्ते ?
उत्तराणि
(क) समस्तराष्ट्रं नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नम् आसीत् ।
(ख) भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कच्छजनपदः आसीत्।।
(ग) पृथिव्याः स्खलनात् बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जायन्ते।
(घ) समग्रो विश्वः भूकम्पैः आतंकित: दृश्यते।
(ङ) ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते।
(च) बहुभूमिकानि भवनानि धराशायीनि जायन्ते।

भूकम्पविभीषिका HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 2.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं च कुरुत (सन्धि/सन्धिविच्छेद कीजिए-)
(अ) परसवर्णसन्धिनियमानुसारम् (परसवर्ण सन्धि के नियम के अनुसार-)
(क) किञ्च = ……………….. + च
(ख) ……… = नगरम् + तु
(ग) विपन्नञ्च = ……………….. + ………………..
(घ) ……………….. = किम् + नु
(ङ) भुजनगरन्तु = ……………….. + ………………..
(च) ……………….. = सम् + चयः।
उत्तराणि
(क) किञ्च = किम् + च
(ख) नगरन्तु = नगरम् + तु
(ग) विपन्नञ्च = विपन्नम् + च
(घ) किन्नु = किम् + नु
(ङ) भुजनगरन्तु = भुजनगरम् + तु
(च) सञ्चयः = सम् + चयः।

(आ) विसर्गसन्धिनियमानुसारम् (विसर्ग सन्धि के नियम के अनुसार-)
(क) शिशवस्तु = ……………….. + ………………..
(ख) ……………….. = विस्फोटैः + अपि
(ग) सहस्त्रशोऽन्ये = ……………….. + अन्ये
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + ………………..
(ङ) ……………….. = भूकम्पः + जायते
(च) वामनकल्प एव = ……………….. + ………………..
उत्तराणि
(क) शिशवस्तु = शिशवः + तु
(ख) विस्फोटैरपि = विस्फोटैः + अपि
(ग) सहस्रशोऽन्ये = सहस्त्रशः + अन्ये
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्
(ङ) भूकम्पो जायते = भूकम्पः + जायते
(च) वामनकल्प एव = वामनकल्पः + एव

Sanskrit 10th Class Chapter 10 HBSE Shemushi प्रश्न 3.
(अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं कुरुत
(‘क’ स्तम्भ में दिए गए पदों का ‘ख’ स्तम्भ में दिए गए विलोम पदों के साथ संयोग कीजिए-)
क – ख
सम्पन्नम् – प्रविशन्तीभिः
ध्वस्तभवनेषु – सुचिरेणैव
निस्सरन्तीभिः – विपन्नम्
निर्माय – नवनिर्मित-भवनेषु
क्षणेनैव – विनाश्य
उत्तराणि
पदम् – विलोमपदम्
क – ख
सम्पन्नम् – विपन्नम्
ध्वस्तभवनेषु – नवनिर्मित-भवनेषु
निस्सरन्तीभिः – प्रविशन्तीभिः
निर्माय – विनाश्य
क्षणेनैव – सुचिरेणैव।

(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे समानार्थकपदानि तयोः संयोगं कुरुत
(‘क’ स्तम्भ में दिए गए पदों का ‘ख’ स्तम्भ में दिए गए समानार्थक पदों के साथ संयोग कीजिए-)
क – ख
पर्याकुलम् – नष्टाः
विशीर्णाः – क्रोधयुक्ताम्
उगिरन्तः – संत्रोट्य
विदार्य – व्याकुलम्
प्रकुपिताम् – प्रकटयन्तः
उत्तराणि
पदम् – समानार्थकपदम्
क – ख
पर्याकुलम् – व्याकुलम्
विशीर्णाः – नष्टाः
उद्गिरन्तः – प्रकटयन्तः
विदार्य – संत्रोट्य
प्रकुपिताम् – क्रोधयुक्ताम्।

भूकम्पविभीषिका Answer In Sanskrit 10th Class Shemushi प्रश्न 4.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति-प्रत्यययोः विभागं कुरुत
(उदाहरण के अनुसार प्रकृति-प्रत्यय का विभाजन कीजिए-)
यथा-परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + डीप् (स्त्री)
धृतवान् – …………………… + ……………………
हसन् – …………………… + ……………………
विशीर्णाः – वि + शृ + क्त + ………..
प्रचलन्ती – …………………… + शतृ + डीप् (स्त्री)
हतः – …………………… + ……………………
उत्तराणि
परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + डीप् (स्त्री)
धृतवान् – धृ + क्तवतु
हसन् – हस् + शतृ
विशीर्णाः – वि + शृ + क्त + टाप
प्रचलन्ती – प्र + चल् + शतृ + ङीप् (स्त्री)
हतः – हन् + क्त।

(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत
महत् च तत् कम्पनं = …………………………..
दारुणा च सा विभीषिका = …………………………..
ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = …………………………..
प्राक्तने च तस्मिन् युगे = …………………………..
महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = …………………………..
उत्तराणि
विग्रहः – समस्तपदम्
महत् च तत् कम्पनं = महत्कम्पनम्
दारुणा च सा विभीषिका = दारुणविभीषिका
ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = ध्वस्तभवनेषु
प्राक्तने च तस्मिन् युगे = प्राक्तनयुगे
महत् च तत् राष्ट्रं तस्मिन् = महाराष्ट्रे।

Class 10th Sanskrit Chapter 10 HBSE Shemushi प्रश्न 5.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूलपदों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती।
(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(ग) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते।
(घ) एतादृशी भयावहघटना गढ़वालक्षेत्रे घटिता।
(ङ) तदिदानीम् भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती ?
(ख) के कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते ?
(ग) विवशाः प्राणिनः कुत्र पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते ?
(घ) कीदृशी भयावहघटना गढ़वालक्षेत्रे घटिता ?
(ङ) तदिदानीम् किं विचारणीयं तिष्ठति ?

प्रश्न 6.
‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत।
(‘भूकम्प’ विषय पर पाँच वाक्यों का एक अनुच्छेद लिखिए)
उत्तरम्
(i) भूमिकम्पनम् एव भूकम्पनं कथ्यते।
(ii) भूकम्पेन जनजीवनम् अस्त-व्यस्तं भवति, महाविनाशः च जायते।
(iii) भूमिगर्भे शिलासंघात-स्खलनात् भूकम्पः जायते-इति भूगर्भवैज्ञानिकाः कथयन्ति।
(iv) ज्वालामुखविस्फोटैः अपि भूकम्प: जायते।
(v) भूकम्पः प्राकृतिक-विपदा वर्तते अतः अस्याः निवारणाय न कोऽपि उपायः ।

प्रश्न 7.
कोष्ठकेषु दत्तेषु धातुषु निर्देशानुसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि पूरयत
(कोष्ठक में दी गई धातुओं में निर्देश के अनुसार परिवर्तन करके रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
(क) समग्रं भारतं उल्लासे मग्नः ……….. ( अस् + लट् लकारे)
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं ……. (कृ + क्तवतु + डीप्)
(ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीना: ….. (भू + लङ् प्र० पु०, बहु०)
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां ……… (भू + लट्, प्र० पु०, बहु०)
(ङ) मानवाः ……… यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयम् न वा ? (पृच्छ् + लट्, प्र० पु०, बहु०)
(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे ……. ( सम् + आ + विश् + विधिलिङ् प्र० पु०, बहु० )
उत्तराणि
(क) समग्रं भारतं उल्लासे मग्नः अस्ति।
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं कृतवती।
(ग) क्षणेनैव प्राणिनः गृहविहीनाः अभवन्।
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां भवन्ति।
(ङ) मानवाः पृच्छन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयम् न वा ?
(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे समाविशेयुः।

योग्यताविस्तारः
भूकम्प-परिचय- भूमि का कम्पन भूकम्प कहलाता है। वह बिन्दु भूकम्प का उद्गम केन्द्र कहा जाता है, जिस बिन्दु पर कम्पन की उत्पत्ति होती है। कम्पन तरंग के रूप में विविध दिशाओं में आगे चलता है। ये तरंगें सभी दिशाओं में उसी प्रकार फैलती हैं जैसे किसी शान्त तालाब में पत्थर के टुकड़ों को फेंकने से तरंगें उत्पन्न होती है।

धरातल पर कुछ स्थान ऐसे हैं जहाँ भूकम्प प्रायः आते ही रहते हैं। उदाहरण के अनुसार-प्रशान्त महासागर के चारों ओर के प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गङ्गा, ब्रह्मपुत्र का तटीय भाग इन क्षेत्रों में अनेक भूकम्प आए जिनमें से कुछ तो अत्यधिक भयावह और विनाशकारी थे। सुनामी भी एक प्रकार का भूकम्पन ही है जिसमें भूमि के भीतर अत्यन्त गहराई से तीव्र कम्पन उत्पन्न होता है। यही कम्पन समुद्र के जल को काफी ऊँचाई तक तीव्रता प्रदान करता है। फलस्वरूप तटीय क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। सुनामी का भीषण प्रकोप 26 दिसम्बर 2004 को हुआ। जिसकी चपेट में भारतीय प्रायद्वीप सहित अनेक देश आ गए। क्षिति, जलं, पावक, गगन और समीर इन पञ्चतत्वों में सन्तुलन बनाए रखकर प्राकृतिक आपदाओं से बचा जा सकता है। इसके विपरीत असन्तुलित पञ्चतत्त्वों से सृष्टि विनष्ट हो सकती है ?

भूकम्पविषये प्राचीनमतम् प्राचीनैः ऋषिभिः अपि स्वस्वग्रन्थेषु भूकम्पोल्लेखः कृतः येन स्पष्टं भवति यत् भूकम्पाः प्राचीनकालेऽपि आयान्ति स्म।

वराहसंहितायाम्
क्षितिकम्पमाहुरेके मह्यन्तर्जलनिवासिसत्त्वकृतम्
भूभारखिन्नदिग्गजनिःश्वास-समुद्भवं चान्ये।
अनिलोऽनिलेन निहितः क्षितौ पतन् सस्वनं करोत्यन्ये
केचित् त्वदृष्टकारितमिदमन्ये प्राहुराचार्याः॥

मयूरचित्रे
कदाचित् भूकम्पः श्रेयसेऽपि कल्पते। एतादृशाः अपि उल्लेखाः अस्माकं साहित्ये समुपलभ्यन्ते यथा वारुणमण्डलमौशनसे

प्रतीच्यां यदि कम्पेत वारुणे सप्तके गणे,
द्वितीययामे रात्रौ तु तृतीये वारुणं स्मृतम्।
अत्र वृष्टिश्च महती शस्यवृद्धिस्तथैव च,
प्रज्ञा धर्मरताश्चैव भयरोगविवर्जिताः॥
उल्काभूकम्पदिग्दाहसम्भवः शस्यवृद्धये।
क्षेमारोग्यसुभिक्षायै वृष्टये च सुखाय च।।
भूकम्पसमा एव अग्निकम्पः, वायुकम्पः, अम्बुकम्पः इत्येवमन्येऽपि भवन्ति।

भूकंपविभीषिका
भूकम्प के विषय में प्राचीन मत-प्राचीन ऋषियों ने भी अपने-अपने ग्रन्थों में भूकम्प का उल्लेख किया है। जिससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में भी भूकम्प आया करते थे। जैसे कि वराहसंहिता में (कहा गया है)

कुछ विद्वानों ने धरती के अन्दर जल में निवास करने वाले प्राणियों के द्वारा किया गया भूकम्प कहा है। कुछ दूसरे विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी के भार से खिन्न दिग्गजों के विश्वास से उत्पन्न भूकम्प कहा गया है। कुछ दूसरे विद्वानों का कहना है कि वायु का वायु के साथ जब टकराव होता है तो पृथ्वी पर दबाव डालते हुए वायु भयंकर शब्द करता है, जिससे भूकम्प पैदा होता है। कुछ दूसरे आचार्यों के अनुसार भूकम्प अज्ञात कारणों से होता है।

मयूर चित्र में कभी भूकम्प कल्याण के लिए भी होता है, ऐसे भी उल्लेख हमारे साहित्य में मिलते हैं। जैसे कि औशनस वारुणमण्डल में (कहा गया है)-यदि वरुण द्वारा अधिष्ठित पश्चिम दिशाओं सप्तम गण में रात्रि के द्वितीय और तृतीय प्रहर में भूकम्प होता है, तो उसे वारुण भूकम्प कहा गया है। इस भूकम्प के होने पर पर्याप्त वर्षा होती है, जिससे धन-धान्य की वृद्धि होती है। बुद्धि धर्मकार्यों में लगती है और सब लोग भय तथा रोग से मुक्त हो जाते हैं। उल्कापात, भूकम्प तथा दिग्दाह का होना धान्य-वृद्धि, क्षेत्र = अप्राप्त की प्राप्ति, आरोग्य, सुभिक्षा = समृद्धि, वर्षा तथा सुख के लिए माना गया है। भूकम्प के समान ही अग्निकम्प, वायुकम्प, जलकम्प तथा ऐसे ही दूसरे कम्पन भी होते हैं।

HBSE 10th Class Sanskrit भूकम्पविभीषिका Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां वाक्यानां/सूक्तीनां भावार्थं हिन्दीभाषायां लिखत
(अधोलिखित वाक्यों/सूक्तियों के भावार्थ हिन्दीभाषा में लिखिए-)

(क) दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम।
(भूकम्प एक दैवीय आपदा है) भावार्थ – प्रस्तुत वाक्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक शेमुषी भाग-2 के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें भूकम्प को दैवीय आपत् कहा गया है। विद्वानों ने विपत्तियों को आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक इन तीन श्रेणियों में बाँटा है। जीव-जन्तुओं के कारण आने वाली विपदाओं को आधिभौतिक, मानसिक चिन्ताओं को आध्यात्मिक और प्राकृतिक कारणों से आने वाली विपत्तियों को आधिदैविक या दैवीय आपदाएँ कहा जाता है। भूकम्प भी क्योंकि मानवीय सीमाओं से परे की बात है अतः इसे प्रकृति का प्रकोप माना जाता है। जिसका कोई स्थायी हल मानव के पास नहीं है। तथापि कतिपय सावधानियाँ रखने से भूकम्प से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है।

(ख) प्रकृतिसमक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्पः एव’।
(प्रकृति के समक्ष विज्ञान की खोजों से गर्वित मनुष्य आज भी अतीव तुच्छ है) भावार्थ -प्रस्तुत वाक्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक शेमुषी भाग-2 के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें विज्ञान के ज्ञान से गर्वित मनुष्य को प्रकृति के आगे बौना बताया गया है। मनुष्य ने अपने बुद्धिबल से आज अनेकानेक अद्भुत सुख-सुविधाएँ तैयार कर ली हैं। उसने घातक बीमारियों के उपचार ढूंढ निकाले हैं, ध्वनि की गति से भी तेज चलने वाले विमान तैयार कर लिए हैं, मोबाइल और कम्प्यूटर जैसे यन्त्र तैयार कर लिए हैं, चन्द्र और मंगल तक पहुँच बना ली है तथापि प्रकृति जब कभी मनुष्य बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट, आन्धी तूफान आदि के रूप में अपना भयानक स्वरूप प्रकट करती है तो मानव उसके आगे निःसहाय और बेचारा बनकर रह जाता है।

भाव यह है कि मानव सृष्टि की चेतनसत्ता का अंशमात्र है; उसे कतिपय अनुसन्धान करके पूर्ण होने का गर्व नहीं करना चाहिए। प्रकृति या दैवीय शक्तियों का पार पाना उसके लिए सम्भव नहीं है।

(ग) ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः।
(ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फाटों से भी भूकम्प पैदा होता है, ऐसा भूकम्प-विशेषज्ञ कहते हैं)

अथवा
(घ) ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।
(ज्वाला उगलते हुए ये ज्वालामुखी पर्वत भी भीषण भूकम्प को पैदा करते हैं)
भावार्थ – प्रस्तुत वाक्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक शेमुषी भाग-2 के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें बताया गया है कि ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोट के कारण भी भूकम्प पैदा होते हैं। भूकम्प-विशेषज्ञों का मत है कि ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फाटों से भी भूकम्प पैदा होता है। पृथ्वी के गर्भ में स्थित अग्नि जब खनिज, मिट्टी, चट्टान आदि के संचयों को उबालती है, तब वे सभी लावा बनकर न रोकी जा सकनेवाली गति से पृथ्वी अथवा पर्वत को फोड़कर बाहर निकलते हैं। तब धुंए और धूल से सारा आकाश ढक जाता है। ताप की मात्रा 800° सेल्सियस तक पहँचकर यह लावा नदी के वेग से बहता है, तब पास में स्थित गाँव अथवा नगर उसके पेट में क्षणभर में ही समा जाते हैं। विवश प्राणी मारे जाते हैं। इस प्रकार ज्वाला उगलते हुए ये ज्वालामुखी पर्वत भी भीषण भूकम्प पैदा करने में प्रमुख कारण बन जाते हैं।

(ङ) वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते।
(वास्तव में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँचों तत्त्व शान्त रहने पर ही भूतल के योग-क्षेम की रचना करते हैं)
भावार्थ – प्रस्तुत वाक्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक शेमुषी भाग-2 के ‘भूकम्पविभीषिका’ पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें बताया गया है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँचों तत्त्व शान्त रखकर ही धरती को भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाया जा सकता है। यद्यपि भूकम्प दैवी प्रकोप (प्राकृतिक आपदा) है। इसको रोकने का कोई भी स्थिर उपाय दिखाई नहीं पड़ता, प्रकृति के सामने आज भी विज्ञान-गर्वित मनुष्य बौना सा ही है, फिर भी भूकम्प के रहस्यों को जाननेवाले कहते हैं कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँचों तत्त्व शान्त रहने पर ही भूतल के योग-क्षेम की रचना होती है। भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं को कम करने के लिए इन पाँचों तत्त्वों का सन्तुलित होना अति आवश्यक है। इन पाँचों तत्त्वों के अशान्त होने पर निश्चय ही ये महाविनाश का कारण बनते हैं। अतः अपनी धरती को भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए हमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – इन पाँचों तत्त्वों में सन्तुलन बनाए रखने का सार्थक प्रयास करते रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूलपदों के आधार पर प्रश्ननिर्माण कीजिए-)
(क) फालद्वये विभक्ता भूमिः ।
(ख) लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः ।
(ग) पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः ।
(घ) धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्।
(ङ) अशान्तानि पञ्चतत्त्वानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
उत्तराणि-(प्रश्ननिर्माणम्)
(क) फालद्वये विभक्ता का?
(ख) लक्षपरिमिताः के अकालकालकवलिता:?
(ग) कस्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निः?
(घ) धूमभस्मावृतं जायते तदा किम्?
(ङ) अशान्तानि कानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति ?

प्रश्न 3.
अधोलिखित-प्रश्नानां प्रदत्तोत्तरविकल्पेषु शुद्धं विकल्पं विचित्य लिखत
(अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर के लिए दिए गए विकल्पों में से शुद्ध विकल्प चुनकर लिखिए-)
(क) ‘सञ्चयः’ पदस्य सन्धिविच्छेदोऽस्ति
(i) सम् + चयः
(ii) सम + चयः
(iii) सं + चयः
(iv) सत्र + चयः।
उत्तरम्:
(i) सम् + चयः

(ख) ‘शिशवः + तु’ अत्र सन्धियुक्तपदम्
(i) शिशवष्टु
(ii) शिशवष्तु
(iii) शिशवर्तु
(iv) शिशवस्तु।
उत्तरम्:
(iv) शिशवस्तु

(ग) ‘महत्कम्पनम्’ अस्मिन् पदे कः समासोऽस्ति ?
(i) बहुव्रीहिः
(ii) कर्मधारयः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) द्वन्द्वः ।
उत्तरम्:
(ii) कर्मधारयः

(घ) ‘दारुणविभीषिका’ इति पदस्य समास-विग्रहः
(i) दारुणस्य विभीषिका
(ii) दारुणायाः विभीषिका
(iii) दारुणा च सा विभीषिका
(iv) दारुण विभीषिका।
उत्तरम्:
(iii) दारुणा च सा विभीषिका

(ङ) ‘विभक्ता’ इति पदे कः प्रत्ययः ?
(i) त्व
(ii) तल्
(iii) क्त
(iv) क्ता।
उत्तरम्:
(ii) क्त

(च) निहन्यन्ते ………… विवशाः प्राणिनः ।
(रिक्तस्थानपूर्तिः अव्ययपदेन)
(i) पुरा
(ii) ह्यः
(iii) न
(iv) च।
उत्तरम्
(iv) च

(छ) ………. द्वाराणि केवलं छात्राणां गमनागमनकाले एव अनावृतानि भवन्ति।
(i) चत्वारि
(ii) एका
(iii) चतस्रः
(iv) चतुः।
उत्तरम्
(iv) चत्वारि

(ज) कीदृशः मानवः वामनकल्पः ?
(i) विज्ञानगर्वितः
(ii) धनिकः
(iii) वैज्ञानिक:
(iv) पशुतुल्यः ।
उत्तरम्:
(i) विज्ञानगर्वितः

(झ) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः न दृश्यते ?
(i) शत्रोः
(ii) शोकस्य
(iii) भूकम्पस्य
(iv) दुर्वचनस्य।
उत्तरम्:
(iii) भूकम्पस्य

(ञ) ‘विषये’ अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता ?
(i) प्रथमा
(ii) सप्तमी
(iii) तृतीया
(iv) चतुर्थी।
उत्तरम्:
(ii) सप्तमी

यथानिर्देशम् उत्तरत
(ट) ‘करणीयम्’ इति पदस्य प्रकृति-प्रत्ययौ लिखत।
(ठ) ‘धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्।’ (अत्र किम् अव्ययपदं प्रयुक्तम्)
(ड) सम्पीडिताः सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति’ (‘क्रन्दन्ति’ अत्र कः लकारः प्रयुक्तः ?)
(ढ) अधीक्षकेण सर्वकार्यं 3 लिपिकेषु विभक्तं कृतम्। (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(ण) प्रति अनुभागं 56 छात्राः सन्ति। .. (अङ्कस्थाने संस्कृतसंख्यावाचकविशेषणं लिखत)
(त) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते। (रेखाङ्कितपदेन प्रश्ननिर्माणं कुरुत)
उत्तराणि
(ट) ‘करणीयम्’ = कृ + अनीयर् ।
(ठ) ‘तदा’ इति अव्ययपदम्।
(ड) ‘क्रन्दन्ति’ अत्र लट् लकारः प्रयुक्तः ।
(ढ) अधीक्षकेण सर्वकार्यं त्रिषु लिपिकेषु विभक्तं कृतम्।
(ण) प्रति अनुभागं षट्पञ्चाशत् छात्राः सन्ति।
(त) विवशाः प्राणिनः कुत्र पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते ?

भूकम्पविभीषिका पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा एतदाधारितान् प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृत-पूर्णवाक्येन लिखत
(अधोलिखित गद्यांश को पढ़कर इन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्य में लिखिए-)
एकोत्तर-द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारतराष्ट्रं नृत्यगीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनिजातानि। उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपानमार्गाः। फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।सहस्रमिता: प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः।ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिता सहस्त्रशोऽन्ये सहायतार्थ करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्विवाणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) कस्मिन् पर्वणि भारतराष्ट्रम् उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
(ii) अकस्मादेव किं राज्यं पर्याकुलं जातम् ?
(ii) कस्य दारुणविभीषिका कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती ?
(iv) गुर्जर-राज्ये भूकम्पस्य केन्द्रभूतं किं नगरम् आसीत् ?
(v) फालद्वये का विभक्ता ?
उत्तराणि
(i) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि भारतराष्ट्रम् उल्लासे मग्नम् आसीत्।
(ii) अकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं जातम्।
(iii) भूकम्पस्य दारुणविभीषिका कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती।
(iv) गुर्जर-राज्ये भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरम् आसीत्।
(v) फालद्वये भूमिः विभक्ता।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत – (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) गुर्जरराज्ये भूकम्प-विभीषिका कदा जाता ?
(ii) भूकम्पेन भुजनगरं कीदृशं जातम् ?
(iii) काभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम् ?
(iv) भूकम्पेन क्षणेनैव कानि धराशायिनी जातानि ?
(v) ईश्वरकृपया किम् अभवत् ?
उत्तराणि
(i) गुर्जरराज्ये भूकम्प-विभीषिका एकोत्तर-द्विहसहस्रख्रीष्टाब्दे जाता।
(ii) भूकम्पेन भुजनगरं मृत्तिकाक्रीडनकामिव खण्डखण्डं जातम्।
(iii) भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार-जलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।
(iv) भूकम्पेन क्षणेनैव बहुभूमिकानि भवनानि धराशायिनी जातानि।
(v) ईश्वरकृपया क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवः द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘केन्द्रभूतं भुजनगरम्’ अत्र विशेषणपदं किम् ?
(ii) ‘सम्पन्नम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iii) ‘उपस्थितम्’-अत्र प्रकृति-प्रत्यय-निर्देशं कुरुत।
(iv) ‘क्षणेनैव’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘समग्रम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं समानार्थकं किम् ?
उत्तराणि:
(i) केन्द्रभूतम्।
(ii) विपन्नम्।
(iii) उप + √स्था + क्त।
(iv) क्षणेन + एव।
(v) समस्तम् ।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-समग्रमपि = (सम्पूर्णमपि) सम्पूर्ण भी। पर्याकुलम् = (परितः व्याकुलम्) चारों ओर से बेचैन। विपर्यस्तम् = (अस्तव्यस्तम्) अस्त-व्यस्त। विपन्नम् = (विपत्तियुक्तम्, विपत्तिग्रस्तम्) मुसीबत में। दारुणविभीषिका = (भयङ् करत्रासः) भयंकर भय। ध्वंसावशेषु = (नाशोपरान्तम् अवशिष्टेषु) विनाश के बाद बची हुई वस्तुओं में। मृत्तिकाक्रीडनकमिव = (मृत्तिकायाः क्रीडनकम् इव) मिट्टी के खिलौने के समान। बहुभूमिकानि भवनानि = (बह्वयः भूमिकाः येषु तानि भवनानि) बहुमंजिले मकान। उत्खाताः = (उत्पाटिताः) उखड़ गए। विशीर्णाः = (नष्टाः) बिखर गए। फालद्वये = (खण्डद्वये) दो खण्डों में। निस्सरन्तीभिः = (निर्गच्छन्तीभिः) निकलती हुई। दुर्वार = (दुःखेन निवारयितुं योग्यम्) जिनको हटाना कठिन है। महाप्लावनम् = (महत् प्लावनम्) विशाल बाढ़। सहस्त्रमिताः = (सहस्र परिमिताः) हजारों। ध्वस्तः = (नष्ट:) नष्ट। क्षुत्क्षामकण्ठाः = (क्षुधया क्षामः कण्ठाः येषाम् ते) भूख से दुर्बल कण्ठवाले।

प्रसंग:-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभिषिका’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में 2001 ई० में गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में आए भूकम्प से उत्पन्न भयंकर विनाश का कारुणिक वर्णन है।

सरलार्थ:-सन् 2001 ईस्वी वर्ष में गणतन्त्र दिवस के पर्व पर जब समस्त भारत देश नाचने-गाने, बजाने आदि के उल्लास में मग्न था, तब अकस्मात् ही गुजरात राज्य व्याकुल, अस्त-व्यस्त, क्रन्दन से व्याकुल और विपत्तिग्रस्त हो गया। भूकम्प की दारुण विभीषिका ने समस्त गुजरात क्षेत्र और विशेष रूप से कच्छ जिले को विनाश के अवशेषों में बदल
दिया। भूकम्प का केन्द्र बना भुजनगर तो मिट्टी के खिलौने की भाँति खण्ड-खण्ड हो गया। बहुमंजिले भवन क्षणभर में ही धराशायी हो गए। बिजली के खम्भे उखड़ गए। घर और सीढ़ियाँ बिखर गए। भूमि दो खण्डों में बँट गई अर्थात् दरारें पड़ गईं। भूमि के गर्भ से ऊपर निकलती अनियन्त्रित जलधाराओं से भयंकर बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों प्राणी क्षणभर में ही मारे गए। गिरे भवनों में फंसे हुए अन्य लोग सहायता के लिए अत्यन्त करुण क्रन्दन कर रहे थे। हाय दुर्भाग्य/भूख-प्यास से व्याकुल मृतप्रायः कुछ बच्चे तो ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिनों तक जीवित बचे रहे।

भावार्थ:-भाव यह है कि भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है जो सबसे अधिक विनाशकारी है। भूमि का कम्पन भूकम्प कहलाता है। कम्पन की उत्पत्ति का बिन्दु भूकम्प का उद्गम केन्द्र कहा जाता है। उद्गम केन्द्र से ही यह कम्पन तरंगों के रूप में विविध दिशाओं में बढ़ता है और महाविनाश करता है। ऐसा ही एक महाविनाशकारी भूकम्प 2001 ई० में गुजरात राज्य के कच्छ क्षेत्र में आया था। इस भूकम्प का उद्गम केन्द्र भुज नगर था। इस भूकम्प में भुज नगर का तो पूरी तरह विनाश हो गया था। इसने पूरे कच्छ जनपद को भी खण्डहर में बदल दिया था।

2. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छ-भूकम्पस्य। पञ्चोत्तर द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीर-प्रान्ते पाकिस्तान-देशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः । पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भे विद्यमानाः बृहत्यः पाषाणशिला यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धराया उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) कश्मीरप्रान्ते महत् कम्पनं कदा जातम् ?
(ii) भूकम्पेन कति जना: अकालकवलिताः ?
(iii) संघर्षणवशात् काः त्रुट्यन्ति ?
(iv) महाकम्पने किं समुत्पद्यते ?
(v) 2005 ईस्वीये वर्षे कस्मिन् देशे महत् कम्पनं जातम् ?
उत्तराणि
(i) कश्मीरप्रान्ते महत् कम्पनं पञ्चोत्तर-द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे जातम्।
(ii) भूकम्पेन लक्षपरिमिताः जनाः अकालकवलिताः ।
(iii) संघर्षणवशात् पाषाणशिलाः त्रुट्यन्ति।
(iv) महाकम्पने महाविनाशदृश्यम् समुत्पद्यते।
(v) 2005 ईस्वीये वर्षे पाकिस्तानदेशे महत् कम्पनं जातम्।

(ख) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘लक्षपरिमिताः जनाः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
(ii) ‘निर्माणम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम्।
(iii) ‘भीषणं संस्खलनम्’-अत्र विशेषणपदं किम् ?
(iv) ‘पृथिव्याः’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पर्यायपदं किमस्ति ?
(v) ‘विद्यमानाः’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
उत्तराणि:
(i) जनाः।
(ii) विनाशम्।
(iii) भीषणम्।
(iv) धरायाः।
(v) शानच्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-कालकवलिताः = (दिवंगताः) मृत्यु को प्राप्त हुए। संस्खलनम् = (विचलनम्) स्थान से हटना। स्खलनजन्यम् = (विचलनात् उत्पन्नम्) विचलन से उत्पन्न। जनयति = (उत्पन्नं करोति) उत्पन्न करती है।

प्रसंग:-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभिषिका’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में सन् 2005 में कश्मीर और पाकिस्तान में आए हुए भूकम्प और भूकम्प के वैज्ञानिक कारण का वर्णन किया गया है।

सरलार्थः- यह भीषण विभीषिका कच्छ भूकम्प की थी। दो हजार पाँच (2005 ई०) वर्ष में भी कश्मीर प्रान्त में और पाकिस्तान देश में बहुत बड़ा भूकम्प आया था, जिस कारण से लाखों लोग असमय ही मृत्यु का ग्रास बन गए थे। पृथ्वी किस कारण काँपती है, वैज्ञानिक इस विषय में कहते हैं कि पृथ्वी के भीतर विद्यमान बहुत बड़ी पत्थरशिलाएँ (चट्टानें) जब संघर्षवश टूटती हैं, तब भीषण स्खलन और स्खलन से उत्पन्न कम्पन होता है। वही भयंकर कम्पन धरती के ऊपरी तल पर आकर महाकम्पन पैदा करता है, जिससे महाविनाश का दृश्य उत्पन्न होता है।

भावार्थ:-भाव यह है कि कच्छ भूकम्प की की भाँति ही 2005 ई० में कश्मीर और पाकिस्तान में बहुत बड़ा भूकम्प आया था, जिसमें लाखों लोग मृत्यु का ग्रास बन गए थे। भूकम्प क्यों आते हैं ? इस सम्बन्ध में भूगर्भ वैज्ञानिकों की मान्यता है कि पृथ्वी के भीतर विद्यमान चट्टानों के खिसकने से कम्पन पैदा होता है। यह कम्पन ही धरती के ऊपरी तल पर आकर भूकम्प को जन्म देता है।

3. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिकाशिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारगत्या धरां पर्वतं वा विदार्य बहिर्निष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप-मात्राया अष्टशताङ्कतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि च तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति। निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः । ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर

(क) पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) केषां विस्फोटैः भूकम्पः जायते ?
(ii) अग्निः शिलादिसञ्चयं किं करोति ?
(iii) तदा गगनं कीदृशं जायते ?
(iv) विवशाः के निहन्यन्ते ?
(v) कीदृशः पर्वता: भीषणं भूकम्पं जनयन्ति ?
उत्तराणि
(i) ज्वालामुखपर्वतानाम् विस्फोटैः भूकम्पः जायते।
(ii) अग्निः शिलादिसञ्चयं क्वथयति।
(iii) तदा गगनं धूमभस्मावृतम् जायते।
(iv) विवशाः प्राणिनः निहन्यन्ते।
(v) ज्वालामुगिरन्तः पर्वताः भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।

(ख) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘विदार्य’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(ii) ‘उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यं यत्’ इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(iii) ‘तत्सर्वमेव’ अत्र ‘तत्’ इति सर्वनामपदे किं निर्दिष्टम् ?
(iv) ‘बहिनिष्क्रामति’ अत्र सन्धिच्छेदं करुत।
(v) ‘निर्वशाः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) ल्यप्।
(ii) खनिजम्।
(iii) खनिज-मृत्तिका-शिलादिसञ्चयम्।
(iv) बहिः + निष्क्रामति।
(v) विवशाः।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

शब्दार्थाः-भूकम्पविशेषज्ञाः = (भुवः कम्पनरहस्यस्य ज्ञातारः) भूमि के कम्पन्न के रहस्य को जाननेवाले। खनिजम् = (उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यम् ) भूमि को खोदने से प्राप्त वस्तु। क्वथयति = (उत्तप्तं करोति) उबालती है, तपाती है। विदार्य = (विदीर्णं कृत्वा, भित्वा) फाड़कर। पार्श्वस्थ-ग्रामाः = (निकटस्थ ग्रामाः) समीप के गाँव। उदरे = (कुक्षौ) पेट में। समाविशन्ति = (अन्तः गच्छन्ति) समा जाती हैं। उगिरन्तः = (प्रकटयन्तः) प्रकट करते हुए।

प्रसंग:-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभिषिका’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोट के कारण भी भूकम्प पैदा होते हैं। – सरलार्थः-ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फाटों से भी भूकम्प पैदा होता है, ऐसा भूकम्प-विशेषज्ञ कहते हैं। पृथ्वी के गर्भ में स्थित अग्नि जब खनिज, मिट्टी, चट्टान आदि के संचयों को उबालती है, तब वे सभी लावा बनकर न रोकी जा सकनेवाली गति से पृथ्वी अथवा पर्वत को फोड़कर बाहर निकलते हैं। तब धुंए और धूल से सारा आकाश ढक जाता है। ताप की मात्रा 800° सेल्सियस तक पहुँचकर यह लावा नदी के वेग से बहता है, तब पास में स्थित गाँव अथवा नगर उसके पेट में क्षणभर में ही समा जाते हैं। विवश प्राणी मारे जाते हैं। ज्वाला उगलते हुए ये पर्वत भी भीषण भूकम्प को पैदा करते हैं।

भावार्थ:-भाव यह है कि ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोट के कारण भी भूकम्प पैदा होते हैं। इन विस्फोटों के ताप की मात्रा 800° सेल्सियस तक पहुँचकर इनका लावा नदी के वेग से बहता है और आस-पास के सुदूर क्षेत्र को तबाह कर देता है।

4. यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृति-समक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्धं निर्माय बृहन्मानं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एव पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) अत्र दैवः प्रकोपः कः कथितः ?
(ii) कीदृशः मानवः वामनकल्पः ?
(iii) भूकम्परहस्यज्ञ-मतानुसारं कीदृशं निर्माणं न करणीयम् ?
(iv) पञ्चतत्त्वानि कानि सन्ति ?
(v) भूकम्पः कस्मात् सम्भवति ?
उत्तराणि
(i) अत्र दैवः प्रकोपः भूकम्पः कथितः।
(ii) विज्ञानगर्वितः मानवः वामनकल्पः ।
(iii) भूकम्परहस्यज्ञ-मतानुसारं बहुभूमिक-निर्माणं न करणीयम्।
(iv) पञ्चतत्त्वानि क्षिति-जल-पावक-समीर-गगनानि सन्ति।
(v) भूकम्पः असन्तुलनवशात् सम्भवति।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत- (पूर्ण वाक्य में उत्तर दीजिए)
(i) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपाय: न दृश्यते ?
(ii) प्रकृतिसमक्षम् अद्यापि कः वामनकल्पः अस्ति ?
(ii) एकस्मिन् स्थले किं न पुञ्जीकरणीयम् ?
(iv) कानिं अशान्तानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति ?
उत्तराणि
(i) भूकम्पस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः न दृश्यते।
(ii) प्रकृति-समक्षम् अद्यापि विज्ञानगर्वितः मानवः वामनकल्पः अस्ति।
(iii) तटबन्ध निर्माय बृहन्मानं नदीजलम् एकस्मिन् स्थले न पुञ्जीकरणीयम्।
(iv) क्षिति-जल-पावक-समीर-गगनानि-एतानि अशान्तानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘अशान्तानि’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(ii) ‘एकत्रीकरणीयम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम्।
(iii) ‘अशान्तानि खलु तान्येव’ अत्र ‘तानि’ इति सर्वनाम केभ्यः प्रयुक्तम् ?
(iv) ‘स्थिरोपायः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘दैवः प्रकोपः’ अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) शान्तानि ।
(ii) पुञ्जीकरणीयम्।
(iii) क्षितिजलपावकसमीरगगनेभ्यः ।
(iv) स्थिर + उपायः ।
(v) प्रकोपः।

हिन्दीभाषया पाठबोध:

शब्दार्था:-उपशमनस्य = (शान्ते:) शान्त करने का। वामनकल्पः = (वामनसदृशः). बौना। निर्माय = (निर्माणं कृत्वा) बनाकर। पुञ्जीकरणीयम् = (संग्रहणीयम्) इकट्ठा करना चाहिए। योगक्षेमाभ्याम् = (अप्राप्तस्य प्राप्तिः योगः प्राप्तस्य रक्षणं क्षेमः ताभ्याम्) अप्राप्त की प्राप्ति योग है, प्राप्त की रक्षा क्षेम है। कल्पन्ते = (रचयन्ति) रचना करते हैं।

प्रसंग:-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभिषिका’ नामक पाठ से लिया गया है। प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि भूकम्प की रोकथाम का कोई भी निश्चित उपाय नहीं है परन्तु इससे उत्पन्न महाविनाश को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है उसी के उपायों की चर्चा इस गद्यांश में की गई है।

सरलार्थः- यद्यपि भूकम्प दैवी प्रकोप (प्राकृतिक आपदा) है। उसको रोकने का कोई भी स्थिर उपाय दिखाई नहीं देता, प्रकृति के सामने आज भी विज्ञान-गर्वित मनुष्य बौना सा ही है, फिर भी भूकम्प के रहस्यों को जाननेवाले कहते हैं कि बहुमंजिले भवनों का निर्माण नहीं करना चाहिए। बाँध बनाकर बड़ी मात्रा में नदियों के जल को भी एक स्थान पर एकत्रित नहीं करना चाहिए, नहीं तो असन्तुलन के कारण भूकम्प आना सम्भव है। वास्तव में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ये पाँचों तत्त्व शान्त रहने पर ही भूतल के योग-क्षेम की रचना करते है। इन पाँचों तत्त्वों के अशान्त होने पर निश्चय ही ये महाविनाश को उपस्थित करते हैं।

भावार्थ:-भाव यह है कि भूकम्प एक दैवीय प्रकोप है जिसे रोकने का कोई स्थिर उपाय तो नहीं है परन्तु भूमिकम्पन की सम्भावना को बढ़ाने वाले कारणों पर यदि अंकुश लग जाए तो प्राकृतिक तौर पर होने वाले भूकम्प के विनाश को पर्याप्त सीमा तक कम किया जा सकता है। बहुमंजिले भवनों के निर्माण तथा नदियों पर बनाए जा रहे बाँधों से पृथ्वी का सन्तुलन बिगड़ता है और इस असन्तुलन से भूमिकम्पन की सम्भावनाएँ बढ़ती हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पञ्चमहाभूतों का सन्तुलन ही भूकम्प के विनाश को कम कर सकता है।

 

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