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Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

Haryana Board 10th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 4 शिशुलालनम्

HBSE 10th Class Sanskrit शिशुलालनम् Textbook Questions and Answers

शिशुलालनम् Summary in Hindi

शिशुलालनम् पाठ परिचय:
(बालक से लाड़-प्यार)
संस्कृत साहित्य के विकास में दक्षिण भारतीय विद्वानों का विशिष्ट योगदान रहा है। ऐसे ही एक विद्वान ‘दिङ्नाग’ संस्कृत में प्रसिद्ध नाटककार हुए हैं। ‘कुन्दमाला’ नामक नाटक दिङ्नाग की ही प्रसिद्ध रचना है। छ: अंकों के इस नाटक की कथा वाल्मीकीय रामायण पर आधारित है। इस नाटक में सीता के निर्वासन की करुण कथा वर्णित हुई है। सम्पूर्ण नाटक का घटनास्थल महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। राम गंगा में बहती हुई कुन्दपुष्पों की एक माला देखते हैं। यह माला सीता द्वारा गूंथी हुई थी। राम इस माला को देखकर सीता का स्मरण करते हैं और बीते दिनों की याद में खो जाते हैं। नाटक में राम अपने पुत्रों कुश और लव को पहचानते हुए कौतुहल वर्धक परिकल्पना करते हैं।
इस नाटक का मुख्य रस करुण है। राम कथा के करुण एवं दुःखपूर्ण उत्तरार्ध की नाटकीय संभावनाओं को दिङ्नाग ने अपने इस कुन्दमाला नाटक में रूपान्तरित किया है। प्रस्तुत पाठ ‘शिशुपालनम्’ संस्कृतवाङ्मय के इसी प्रसिद्ध नाटक ‘कुन्दमाला’ के पंचम अङ्क से सम्पादित किया गया है। इस नाटकांश में राम कुश और लव को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं किन्तु वे दोनों अतिशालीनतापूर्वक मना करते हैं। सिंहासनारूढ़ राम कुश और लव के सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उन्हें अपनी गोद में बैठा लेते हैं और आनन्दित होते हैं। पाठ में शिशु स्नेह का अत्यन्त मनोहारी वर्णन किया गया है।

शिशुलालनम् पाठस्य सारांशः
प्रस्तुत पाठ ‘शिशुलालनम्’ संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग द्वारा रचित कुन्दमाला नामक नाटक से लिया गया है। नाटक के इस अंश में शिशु स्नेह का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया गया है। पाठ का सारांश इस प्रकार हैं
राम सिंहासन पर विराजमान हैं, तपस्वी के रूप में कुश और लव का प्रवेश होता है। वे प्रणामपूर्वक राजा राम का कुशल पूछते हैं परन्तु दोनों बालक इतने भोले और मोहक आकृति वाले हैं कि राम उनके सौन्दर्य में खो जाते हैं।
उनका मन करता है कि इन दोनों को गले से लगा लूँ, इन्हें अपनी गोद में बिठाकर प्यार करूँ। इसलिए राम कहते हैं कि क्या कुशल ही पूछते रहेंगे, आकर गले नहीं मिलोगे ? राम उन्हें गले भी लगाते हैं, परन्तु उनका मन नहीं भरता इसलिए आधा आसन खाली छोड़ कर उन दोनों को उस पर बैठने के लिए कहते हैं। दोनों बालक जानते हैं कि राज सिंहासन पर बैठना अनुचित है। इसीलिए मना कर देते हैं। फिर राम कहते हैं कि यदि गोद में सिंहासन बनाकर बैठे जाओगे तो इससे शिष्टाचार का उल्लंघन नहीं होगा। दोनों बालक अनिच्छा के साथ गोद में बैठ जाते हैं। राम के पूछने पर वे अपने आपको सूर्यवंशी बताते हैं और यह भी प्रकट करते हैं कि वे दोनों जुड़वा भाई हैं। सूर्यवंशी सुनकर राम का कौतूहल और भी बढ़ जाता है क्योंकि राम सूर्यवंशी है।

राम के पुनः पूछने पर लव अपने गुरु का नाम वाल्मीकि बताता है। जिन्होंने उनका उपनयन संस्कार किया है। पिता का नाम पूछने पर लव तो अनभिज्ञता प्रकट करता है परन्तु बालसुलभ चंचलता वश कुश अपने पिता का नाम निर्दय बताता है। इस अपूर्व नाम को सुनकर राम और विदूषक एक दूसरे की ओर आश्चर्यपूर्वक देखते हैं। विदूषक उससे पूछता है कि तुम्हारे पिता के लिए निर्दय ऐसा सम्बोधन कौन करता है ? कुश कहता है कि जब हम दोनों ढिठाई करते हैं तो माँ हमें निर्दय कहकर डाँटती है। राम यह सब सुनकर मन ही मन पश्चात्ताप करते हैं ; क्योंकि वे विचारते हैं कि इन सब परिस्थितियों का कारण मैं हूँ।

राम के कहने पर जब विदूषक उन दोनों की माता का नाम पूछता है,तो लव बताता है कि तपोवन वासी मेरी माँ को ‘देवी’ कहकर बुलाते हैं, महर्षि वाल्मीकि ‘वधू’ कहकर पुकारते हैं। इस तरह मेरी माँ के दो नाम हैं। दोनों बालकों से परिचय पाकर राम विदूषक महर्षि वाल्मीकि से कहते हैं कि इनके परिवार का वृतान्त तो हमारे परिवार के वृतान्त से मिलता है। तभी पर्दे के पीछे से आवाज़ आती है कि रामायण के गान का समय हो गया है। अत: गुरु जी की आज्ञानुसार तुरन्त यह गायन करना चाहिए। राम भी इससे सहमत होते हैं और मंच से सब चले जाते हैं। इस प्रकार शिशु स्नेह के स्वाभाविक प्रदर्शन के साथ यह नाट्यांश समाप्त हो जाता है।

शिशुलालनम् HBSE 10th Class Shemushi  प्रश्न1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः कीदृशः आसीत् ?
(ख) रामः लवकुशौ कुत्र उपवेशयितुं कथयति ?
(ग) बालभावात् हिमकरः, कुत्र विराजते ?
(घ) कुशलवयोः वंशस्य कर्ता कः?
(ङ) केन सम्बन्धेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत् ?
(च) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः केन नाम्ना आह्वयति ?
उत्तराणि:
(क) रामाय कुशलवयोः कण्ठाश्लेषस्य स्पर्शः हृदयग्राही आसीत् ?
(ख) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयितुं कथयति ?
(ग) बालभावात् हिमकरः पशुपति-मस्तके विराजते ?
(घ) कुशल प्रयोः वंशस्य कर्ता सहस्रदीधितिः।
(ङ) उपनयनोपदेशेन वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः आसीत् ?
(च) कुशलवयोः मातरं वाल्मीकिः ‘वधू’ इति नाम्ना आह्वयति ?

Chapter 4 शिशुलालनम् HBSE 10th Class Shemushi प्रश्न 2.
रेखाङ्कितेषु पदेषु विभक्तिकारणं निर्दिशत
(क) राजन् ! अलम् अतिदाक्षिण्येन।
(ख) रामः लवकुशौ आसनार्धम् उपवेशयति।
(ग) धिङ्माम् एवंभूतम्।
(घ) अकव्यवहितम् अध्यास्यतां सिंहासनम्।
(ङ) अलम् अतिविस्तरेण।
उत्तराणि:
(क) ‘अलम्’ के योग में निषेधार्थ में ‘अतिदाक्षिण्येन’ में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है।
(ख) उप उपसर्गपूर्वक विश् धातु के योग में बैठाने के अर्थ में ‘आसनार्धम्’ में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है।
(ग) “धिक्’ के योग में ‘माम्’ में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है।
(घ) ‘अधि’ उपसर्गपूर्वक ‘आस्’ धातु के योग में बैठने के अर्थ में ‘सिंहासनम्’ में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है।
(ङ) ‘अलम्’ के योग में निषेधार्थ में ‘अतिविस्तरेण’ में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त हुई है।

शिशुलालनम् Chapter 4 Shemushi HBSE 10th Class प्रश्न 3.
मञ्जूषातः पर्यायद्वयं चित्वा पदानां समक्षं लिखतशिवः शिष्टाचारः शशिः चन्द्रशेखरः सुतः इदानीम् अधुना पुत्रः सूर्यः सदाचारः निशाकरः भानुः।
(क) हिमकरः – ……………………….. ………………………..
(ख) सम्प्रति – ……………………….. ………………………..
(ग) समुदाचारः – ……………………….. ………………………..
(घ) पशुपतिः – ……………………….. ………………………..
(ङ) तनयः – ……………………….. ………………………..
(च) सहस्रदीधितिः – ……………………….. ………………………..
उत्तराणि-(पर्यायवाचिनः)
(क) हिमकरः – शशिः – निशाकरः
(ख) सम्प्रति – इदानीम् – अधुना
(ग) समुदाचारः – शिष्टाचारः – सदाचारः
(घ) पशुपतिः – शिवः – चन्द्रशेखरः
(ङ) तनयः – सुतः – पुत्रः
(च) सहस्रदीधितिः – सर्यः – भानुः।

प्रश्न 4.
उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितेषु पदेषु प्रयुक्त-प्रकृति-प्रत्ययञ्च लिखतयथा-

उत्तराणि

प्रश्न 5.
विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत
यथा-विशेषण-पदानि विशेष्य-पदानि
श्लाघ्या – कथा
(1) उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः (ख) स्पर्शः
(3) समरूपः (ग) कुशलवयोः
(4) हृदयग्राही (घ) प्रवासः
(5) कुमारयोः (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
उत्तराणि
यथा-विशेषण – पदानि विशेष्य-पदानि
(1) उदात्तरम्यः (क) समुदाचारः
(2) अतिदीर्घः (घ) प्रवासः
(3) समरूप: (ङ) कुटुम्बवृत्तान्तः
(4) हृदयग्राही (ख) स्पर्शः
(5) कुमारयोः (ग) कुशलवयोः

प्रश्न 6.
अधोलिखितपदेषु सन्धिं कुरुत:
(क) द्वयोः + अपि – ………………………………..
(ख) द्वौ + अपि – ………………………………..
(ग) कः + अत्र – ………………………………..
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – ………………………………..
(ङ) इति + आत्मानम् – ………………………………..
उत्तराणि
सन्धिच्छेदम् सन्धिः
(क) द्वयोः + अपि – द्वयोरपि
(ख) द्वौ + अपि – द्वावपि
(ग) क: + अत्र – कोऽत्र
(घ) अनभिज्ञः + अहम् – अनभिज्ञोऽहम्
(ङ) इति + आत्मानम् – इत्यात्मानम्

(ख) अधोलिखितपदेषु विच्छेदं कुरुत-
(क) अहमप्येतयोः – ………………………………..
(ख) वयोऽनुरोधात् – ………………………………..
(ग) समानाभिजनौ – ………………………………..
(घ) खल्वेतत् – ………………………………..
उत्तराणि
सन्धिः – सन्धिच्छेदम्
(क) अहमप्येतयोः – अहम् + अपि + एतयोः।
(ख) वयोऽनुरोधात् . – वयः + अनुरोधात्।
(ग) समानाभिजनौ – समान + अभिजनौ।
(घ) खल्वेतत् – खलु + एतत्।

प्रश्न 7.
अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति
कः कम्
(क) सव्यवधानं न चारित्र्यलोपाय ………………. ……………….
(ख) किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ? ………………. ……………….
(ग) जानाम्यहं तस्य नामधेयम्। ………………. ……………….
(घ) तस्या द्वे नाम्नी। ………………. ……………….
उत्तराणि

योग्यताविस्तारः
नाट्य-प्रसङ्गः
कुन्दमाला के लेखक दिङ्नाग ने प्रस्तुत नाटक में रामकथा के करुण अवसाद भरे उत्तरार्ध की नाटकीय सम्भावनाओं को मौलिकता से साकार किया है। इसी कथानक पर प्रसिद्ध नाटककार भवभूति का उत्तररामचरित भी आश्रित है।
कुन्दमाला के छहों अड्कों का दृश्यविधान वाल्मीकि-तपोवन के परिसर में ही केन्द्रित है। प्रस्तुत नाटकांश पञ्चम अङ्क से सम्पादित कर सङ्कलित किया गया है। लव और कुश से मिलने पर राम के हृदय में उनसे आलिंगन की लालसा होती है। उनके स्पर्शमुख से अभिभूत हो राम, उन्हें अपने सिंहासन पर, अपनी गोद में बिठाकर लाड़ करते हैं। इसी भाव की पुष्टि से नाटक में यह श्लोक उद्धृत है

भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात्
पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्।।

अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र होने के कारण शिशु लालनीय ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही भगवान शंकर के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी के पुष्पों से निर्मित शिरोमणि की भाँति शोभायमान होता है। शिशुस्नेहसमभावश्लोकाः-(शिशु के प्रति स्नेह के समभाव को प्रकट करने वाले श्लोक)

अनेन कस्यापि कुलाकुरेण
स्पृष्टस्य गात्रेषु सुखं ममैवम्।
कां निर्वतिं चेतसि तस्य कुर्याद्
यस्यायमकात् कृतिनः प्ररूढः॥ (कालिदासस्य)

दुष्यन्त शकुन्तला से उत्पन्न अपने पुत्र भरत जिसको कि वह नहीं पहचानता है, उसका स्पर्श करते हुए श्लोक में वर्णित भाव के अनुसार आनन्द का अनुभव करता है। __यह किसके कुल में उत्पन्न हुआ बालक है जिसके अंगों का स्पर्श करने मात्र से मुझे इस प्रकार की सुख की अनुभूति हो रही है। वह बालक जिस सौभाग्यशाली की गोद से उत्पन्न हुआ, उसके मन को यह कितना आनन्दित करना होगा ?

अन्तःकरणतत्त्वस्य दम्पत्योः स्नेहससंश्रयात्।
आनन्दग्रन्थिरेकोऽयमपत्यमिति पठ्यते। (भवभूतेः)

पति और पत्नी के मन और चित्त के स्नेहवश मिल जाने से आनन्द के समूह के रूप में जो प्रकट होता है उसे ही अपत्य अर्थात् पुत्र कहा जाता है।

धूलीधूसरतनवः
क्रीडाराज्ये स्वके च रममाणाः।
कृतमुखवाद्यविकाराः
क्रीडन्ति सुनिर्भरं बालाः॥ (कस्यचित्)

अपने ही क्रीडाराज्य में रमण करने वाले, जिनके शरीर धूल से धूसरित हैं, जो अपने मुख से वाद्य की सी आवाजें निकाल रहे हैं, ऐसे ये बालक जी भरकर खेल रहे हैं।

अनियतरुदित-स्मित-विराजत्
कतिपयकोमलदन्तकुड्मलाग्रम्।
वदनकमलकं शिशोः स्मरामि ।
स्खलदसमञ्जस-मञ्जुजल्पितं ते।।

मैं तेरे पुत्र के उस मुख कमल का स्मरण कर रहा हूँ जो अनियमित रूप से कभी रो देने और कभी मुस्करा देने से सुशोभित होता है। जिसका कोई-कोई कोमल दाँत कली के अग्र भाग की भाँति प्रतीत होता है और तुतलाते हुए स्वर में कोई कोमल सा शब्द करता है।

HBSE 10th Class Sanskrit शिशुलालनम् Important Questions and Answers

शिशुलालनम्प पठित-अवबोधनम्

1. निर्देश:-अधोलिखितं नाट्यांशं पठित्वा तदाधारितान् प्रश्नान् उत्तरत
सिंहासनस्थः रामः । ततः प्रविशतः विदूषकेनोपदिश्यमानमार्गी तापसौ कुशलवी)
विदूषकः – इत इत आर्यो!
कुशलवी – (रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च) अपि कुशलं महाराजस्य?
रामः – युष्मदर्शनात् कुशलमिव। भवतोः किं वयमत्र कुशलप्रश्नस्य भाजनम् एव, न पुनरतिथिजनसमुचितस्य कण्ठाश्लेषस्य। (परिष्वज्य) अहो हृदयग्राही स्पर्शः। (आसनार्धमुपवेशयति)
उभौ – राजासनं खल्वेतत्, न युक्तमध्यासितुम्।।
रामः – सव्यवधानं न चारित्रलोपाय तस्मादक-व्यवहितमध्यास्यतां सिंहासनम्। (अङ्कमुपवेशयति) –
उभौ – (अनिच्छां नाटयतः) राजन्! अलमतिदाक्षिण्येन।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) सिंहासने कः तिष्ठति ?
(ii) द्वौ तापसौ कौ स्तः ?
(iii) कम् अध्यासितुं न युक्तम् ?
(iv) कीदृशं राजासनं चरित्रलोपाय न भवति ?
(v) कुशलवौ का नाटयतः ?
उत्तराणि:
(i) रामः ।
(ii) कुशलवौ।
(iii) राजासनम्।
(iv) सव्यवधानम्।
(v) अनिच्छाम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) केन उपदिश्यमानमार्गौ कुशलवौ प्रविशतः ?
(ii) कुशलवौ कथं रामस्य कुशलं पृच्छतः ?
(iii) रामः कयोः स्पर्श हृदयग्राही इति अनुभवति ?
(iv) रामः अड्कव्यवहितं सिंहासनं कौ उपवेशयति ?
उत्तराणि
(i) विदूषकेन उपदिश्यमानमार्गों कुशलवौ प्रविशतः ।
(ii) कुशलवौ रामस्य समीपम् उपसृत्य प्रणम्य च तस्य कुशलं पृच्छतः ।
(iii) रामः लवकुशयोः स्पर्श हृदयग्राही इति अनुभवति।
(iv) रामः अङ्कव्यवहितं सिंहासनं कुशलवौ उपवेशयति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) अलिङ्ग्य इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) स्पर्शः इति पदस्य प्रयुक्तं विशेषणं किम्?
(iii) ‘अध्यासितम्’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत?
(iv) ‘इच्छाम्’ इति पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(v) ‘अलम्’ इति पदस्य अत्र का विभक्तिः प्रयुक्ता?
उत्तराणि:
(i) परिष्वज्य।
(ii) ह्दयग्राही।
(iii) अधि + आस् + तुमुन्।
(iv) अनिच्छाम्।
(v) तृतीया विभिक्तिः (अतिदाक्षिण्येन)।

हिन्दीभाषया पाठबोधः

शब्दार्थाः-
सिंहासनस्थः = (सिंहासने स्थितः) सिंहासन पर बैठा हुआ। उपसृत्य = (उपगम्य, समीपम् आगत्य) समीप आकर। कण्ठाश्लेषस्य = (कण्ठे आश्लेषस्य) गले लगाने का। भाजनम् = (पात्रम्, स्थानम्) पात्र, योग्य। परिष्वज्य = (आलिङ्गनं कृत्वा) आलिङ्गन करके, गले लगाकर। उपवेशयति = (उपस्थापयति) पास बैठाता है। अध्यासितुम् = (उपवेष्टुम्) बैठने के लिए। सव्यवध्यानम् = (व्यवधानेन सहितम्) रुकावट सहित। अड्कम् = (क्रोडम्) गोद। अलमतिदाक्षिण्येन = (अलमितकौशलेन) अति चतुराई मत दिखाओ।

सन्दर्भः- प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत के प्रसिद्ध नाटककार दिङ्नाग द्वारा रचित ‘कुन्दमाला’ नामक नाटक के पंचम अंक से सम्पादित तथा हमारी पाठ्यपुस्तक ‘शेमुषी द्वितीयो भागः’ में संकलित ‘शिशुलालनम्’ नामक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग:- प्रस्तुत नाट्यांश में सिंहासन पर विराजमान राम लव और कुश को सिंहासन पर बैठाना चाहते हैं परन्तु वे अतिशालीनतापूर्वक मना कर देते हैं। इसी का वर्णन प्रस्तुत नाट्यांश में है।

हिन्दी अनुवाद: (राम सिंहासन पर विराजमान हैं। तभी विदूषक के द्वारा मार्ग दिखाए गए कुश-लव नामक दो तपस्वी प्रवेश करते हैं।)

विदूषक: इधर से, इधर से आर्य!

कुश और लव: (राम के समीप जाकर और प्रणाम करके) क्या महाराज कुशल से हैं?

राम: तुम्हारा दर्शन करने से कुशल-सा ही है। क्या यहाँ आप दोनों का हमसे केवल कुशल प्रश्न करना ही उचित है ? अतिथि जन के लिए उचित तुम्हारा गले लग जाना ठीक क्यों नहीं? (गले लगाकर) अरे! इनका स्पर्श तो हृदय को छू जाने वाला है।

(आधे आसन पर बैठाता है)
दोनों: यह तो राजासन है, इस पर बैठना उचित नहीं है।
राम: यदि व्यवधानपूर्वक बैठा जाए तो चरित्र हानि नहीं होगी, इसलिए गोद में सिंहासन बनाकर बैठ जाइए।

(गोद में बैठाता है।)
दोनों-(अनिच्छा का दिखावा करते हुए) हे राजन्! अधिक चतुराई मत दिखाइए।

2. रामः , – अलमतिशालीनतया।
भवति शिशुजनो वयोऽनुरोधाद्
गुणमहतामपि लालनीय एव।
व्रजति हिमकरोऽपि बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम्॥
एष भवतोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतूहलेन-क्षत्रियकुल-पितामहयोः सूर्यचन्द्रयोः को वा भवतोर्वंशस्य कर्ता?
लवः – भगवन् सहस्रदीधितिः।
रामः – कथमस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ ?
विदूषकः – किं द्वयोरप्येकमेव प्रतिवचनम?
लवः – भ्रातरावावां सोदीं।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत:
(i) गुणमहतामपि कः लालनीयः भवति?
(ii) पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं कः व्रजति?
(iii) लवकुशयोः वंशस्य कर्ता कः अस्ति ?
(iv) क्षत्रियकुल-पितामही को कथितौ?
(v) अत्र संवादे कति पात्राणि सन्ति ?
उत्तराणि:
(i) शिशुजनः ।
(ii) हिमकरः।
(iii) सहस्रदीधितिः ।
(iv) सूर्यचन्द्रौ।
(v) त्रीणि।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) शिशुजनः कस्मात् लालनीयः भवति?
(ii) हिमकरः बालभावात् कुत्र व्रजति ?
(iii) लवः स्व-कुलपितामहं कं निर्दिशति ?
(iv) रामः कुशलवी कीदृशेन कौतूहलेन पृच्छति?
उत्तराणि
(i) शिशुजनः वयोऽनुरोधात् लालनीयः भवति।
(ii) हिमकरः बालभावात् पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वं व्रजति।
(iii) लवः स्व-कुलपितामहं सहस्रदीधितिं कथयति।
(iv) रामः कुशलवौ तयोः सौन्दर्यावलोकजनितेन कौतुहलेन पृच्छति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) उत्तरम् इत्यर्थे अत्र प्रयुक्तं पदं किम्?
(ii) ‘द्वयोरप्येकमेव’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(iii) ‘चन्द्रः’ इत्यस्य अत्र कः पर्यायः?
(iv) ‘ताडनीयः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ? ।
(v) ‘अस्मत्समानाभिजनौ संवृत्तौ’ अत्र ‘अस्मत्’ इति सर्वनाम कस्मै प्रयुक्तम्।
उत्तराणि:
(i) प्रतिवचनम्।
(ii) द्वयोः + अपि + एकम् + एव।
(iii) हिमकरः।
(iv) लालनीयः ।
(v) रामाय।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
श्लोकान्वयः गुणमहताम् अपि वयोऽनुरोधात् शिशुजनः लालनीयः एव भवति। बालभावात् हि
हिमकरः अपि पशुपति-मस्तक-केतकच्छदत्वम् व्रजति।।

शब्दार्थाः- अलमतिशालीनतया = (अलमतिशष्टतया) अत्यधिक शिष्टता मत करें। दिनकरः = (चन्द्रः) चन्द्रमा। पशुपतिः = (शिवः) शिव। केतकच्छदत्वम् = (केतकस्य छदत्वम्) केतकी (केवड़े) के पुष्प से बना मस्तक का शेखर
(जूड़ा)। पितामहः = (पितुः पिता) दादा, आदिमूल । सहस्रदीधितिः = (सूर्यः) सूर्य। आत्मगतम् = (स्वगतम्) मन ही मन। समानाभिजनी = (समानकुलोत्पन्नौ) एक कुल में पैदा होने वाले। संवृत्तौ = (संजातौ) हो गए। प्रतिवचनम् = (उत्तरम्) उत्तर। सोद? = (सहोदरौ) सदोहर/सगे भाई।

सन्दर्भ:-पूर्ववत्। प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश में राम लव-कुश के सौन्दर्य से और उनके भोलेपन से आकृष्ट होकर उनका कुल परिचय पूछते हैं।

हिन्दी अनुवाद-राम-अधिक शालीन मत बनिए। अत्यधिक गुणवान लोगों के लिए भी शिशु छोटी आयु के कारण लालन करने योग्य ही होता है। चन्द्रमा भी इसी बालभाव के कारण भगवान शंकर के मस्तक का आभूषण बन कर केतकी पुष्पों से निर्मित चूडामणि की भाँति सुशोभित होता है।

यह मैं आप दोनों की सुन्दरता को देखने से उत्पन्न कौतुहल के कारण पूछ रहा हूँ-क्षत्रिय कुल के पितामह रूप सूर्य और चन्द्रमा में से आप दोनों के वंश का कर्ता कौन है?
लव-श्रीमान्! सूर्य। राम-अरे क्या! हमारे समान कुल में ही उत्पन्न हुए हो? विदूषक-क्या आप दोनों का एक ही उत्तर है? लव-हम दोनों सगे भाई हैं।

श्लोक-भावार्थः- अत्यधिक गुणी लोगों के लिए भी छोटी उम्र के कारण बालक लालनीय ही होता है। चन्द्रमा बालभाव के कारण ही शकर के मस्तक का आभूषण बनकर केतकी पुष्पों से निर्मित चूड़ा की भाँति शोभित होता है।

(3) रामः – समरूपः शरीरसन्निवेशः। वयसस्तु न किञ्चिदन्तरम्।
लवः – आवां यमलौ।
रामः – सम्प्रति युज्यते। किं नामधेयम् ?
लवः – आर्यस्य वन्दनायां लव इत्यात्मानं श्रावयामि (कुशं निर्दिश्य) आर्योऽपि गुरुचरणवन्दनायाम् ……………
कुशः – अहमपि कुश इत्यात्मानं श्रावयामि।
रामः – अहो! उदात्तरम्यः समुदाचारः। किं नामधेयो भवतोगुरुः?
लवः – ननु भगवान् वाल्मीकिः।
रामः – केन सम्बन्धेन?
लवः – उपनयनोपदेशेन।

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कुशलवी कीदृशौ भ्रातरौ स्तः ?
(ii) शरीरसन्निवेशः कीदृशः कथितः ?
(iii) यमलौ को स्तः?
(iv) समुदाचारः कीदृशः अस्ति?
(v) अत्र गुरुः कोऽस्ति?
उत्तराणि:
(i) सोदयौँ।
(ii) समरूपः ।
(iii) कुशलवौ।
(iv) उदात्तरम्यः ।
(v) वाल्मीकिः ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) किञ्चित् अन्तरं कुत्र नास्ति?
(ii) कुशं कः निर्दिशति?
(iii) वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरुः केन सम्बन्धेन अस्ति?
उत्तराणि
(i) कुशलवयोः वयसः किञ्चित् अन्तरं नास्ति।
(ii) कुशं लवः निर्दिशति।
(iii) वाल्मीकिः कुशलवयोः गुरु: उपनयनोपदेशेन सम्बन्धेन अस्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘भ्रातरावाम्’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(ii) ‘सहोदरौ’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम्?
(iii) ‘निर्दिश्य’ अत्र प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iv) ‘आवां यमलौ’-अत्र ‘आवाम्’ इति सर्वनामस्थाने संज्ञापदं लिखत।
(v) ‘समुदाचारः’ अत्र के उपसर्गाः प्रयुक्ताः ?
उत्तराणि:
(i) भ्रातरौ + आवाम्।
(ii) सोदयौँ ।
(iii) निर् + दिश् + ल्यप् ।
(iv) कुशलवौ।
(v) सम, उत्, आ – इति त्रयः उपसर्गाः प्रयुक्ताः ।

हिन्दीभाषया पाठबोध:
शब्दार्थाः- शरीरसन्निवेशः = (अङ्गरचनाविन्यासः) शरीर की बनावट। यमलौ = (युगलौ) जुड़वा। नामधेयम् = (नामा) नाम। उदात्तरम्यः = (अत्यन्तरमणीयः) अत्यधिक मनोहर। समुदाचारः = शिष्टाचारः) शिष्टाचार । उपनयनोपदेशेन = (उपनयनस्य उपदेशेन) उपनयन की दीक्षा के कारण। (उपनयन-संस्कारदीक्षया)

सन्दर्भ = पूर्ववत्। प्रसंगः-राम-समान आकृति वाले लव और कुश को देखकर उनका तथा उनके गुरु का नाम पूछते हैं। इसी का वर्णन प्रस्तुत नाट्यांश में है।
हिन्दी अनुवाद-राम-शरीर की बनावट भी एक समान है। आयु का भी कोई अन्तर नहीं है।
लव-हम दोनों जुड़वा भाई हैं।
राम-अब ठीक है। क्या नाम है?
लव-आर्य की वन्दना में लव इस नाम से अपने आपको सुनाता हूँ। (कुश की ओर (संकेत करके) आर्य भी गुरुचरण वन्दना में…….
कुश-मैं भी कुश इस नाम से अपने आपको सुनाता हूँ। राम-अरे! बड़ा ही उदात्त और रमणीय शिष्टाचार है। आप दोनों के गुरु का क्या नाम है? लव-भगवान् वाल्मीकि।
राम-किस संबन्ध से ?
लव-उपनयन संस्कार के सम्बन्ध से।

(4) रामः – अहमत्रभवतोः जनकं नामतो वेदितुमिच्छामि।
लवः – न हि जानाम्यस्य नामधेयम्। न कश्चिदस्मिन् तपोवने तस्य नाम व्यवहरति।
रामः – अहो माहात्म्यम्।
कुशः – जानाम्यहं तस्य नामधेयम्।
रामः – कथ्यताम्।
कुशः – निरनुक्रोशो नाम…..
रामः – वयस्य, अपूर्वं खलु नामधेयम्।
विदूषकः – (विचिन्त्य) एवं तावत् पृच्छामि निरनुक्रोश इति क एवं भणति ?
कुशः – अम्बा।
विदूषकः – किं कुपिता एवं भणति, उत प्रकृतिस्था ?
कुशः, – यद्यावयोर्बालभावजनितं किञ्चिदविनयं पश्यति तदा एवम् अधिक्षिपति-निरनुक्रोशस्य पुत्रौ, मा चापलम् इति।
विदूषकः – एतयोर्यदि पितुर्निरनुक्रोश इति नामधेयम् एतयोर्जननी तेनावमानिता निर्वासिता एतेन वचनेन दारको निर्भर्त्सयति।
रामः – (स्वगतम्) धिङ् मामेवंभूतम्। सा तपस्विनी मत्कृतेनापराधेन स्वापत्यमेवं मन्युगभैरक्षरैर्निर्भर्त्तयति।

(सवाष्पमवलोकयति)
पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कुशलवयोः जनकं नामतः कः वेदितुम् इच्छति ?
(ii) नामधेयं कः जानाति ?
(iii) अपूर्वं नामधेयं किमस्ति ?
(iv) दारकौ का निर्भर्त्सयति ?
(v) निरनुक्रोश इति क एवं भणति ? इति पृष्टे कुशः किम् उत्तरति।
उत्तराणि:
(i) रामः ।
(ii) कुशः।
(iii) निरनुक्रोशः ।
(iv) जननी।
(v) अम्बा।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) लवकुशयोः जनकस्य नाम कुत्र न कश्चिदपि व्यवहरति ?
(ii) तपस्विनी कीदृशैः अक्षरैः स्वापत्यं निर्भर्त्सयति ?
(iii) रामः कथम् अवलोकयति ?
(iv) लवकुशयोः कीदृशी जननी तौ निर्भर्त्सयति ?
उत्तराणि:
(i) लवकुशयोः जनकस्य नाम तपोवने न कश्चिदपि व्यवहरति।
(ii) तपस्विनी मन्युग|ः अक्षरैः स्वापत्यं निर्भर्त्सयति।
(iii) रामः सवाष्पम् अवलोकयति।
(iv) लवकुशयोः अवमानिता निर्वासिता च जननी तौ निर्भर्त्सयति ।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘सानुक्रोशः’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम ?
(ii) ‘प्रकृतिस्था’ इत्यस्य प्रयुक्तं विपरीतार्थकपदं किम् ?
(iii) ‘अवमानिता’ अत्र कः प्रत्ययः प्रयुक्तः ?
(iv) ‘यद्यावयोः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘बालभावजनितम्’ इति विशेषणस्य विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) निरनुक्रोशः ।
(ii) कुपिता।
(ii) क्त।
(iv) यदि + आवयोः ।
(v) अविनयम्।

हिन्दीभाषया पाठबोध:
शब्दार्थाः- निरनुक्रोशः = (निर्दयः) दया रहित। वयस्य = (मित्र) मित्र। भणति = (कथयति) कहता है। अम्बा = (जननी) माता। उत = (अथवा) अथवा। प्रकृतिस्था = (सामान्य-मनस्थितिः) स्वाभाविक रूप से। अधिक्षिपति = (अधिक्षेपं करोति) फटकारती है। चापलम् = (चपलताम्) चंचलता। अवमानिता = (तिरस्कृता) अपमानित । दारको = (पुत्रौ) पुत्र । निर्भर्त्सयति = (तर्जयति) धमकाती है। निःश्वस्य = (दीर्घ श्वासं गृहीत्वा) दीर्घ श्वास लेकर। स्वापत्यम् = (स्वसन्ततिम्) अपनी सन्तान की। सवाष्पम् = (अश्रुसहितम्) आँसुओं के साथ।

संदर्भ:-पूर्ववत्।। प्रसंग:-जब राम को लव-कुश से यह पता चलता है कि उनकी माता क्रोधवश उनके पिता के लिए ‘निर्दय’ विशेषण का प्रयोग करती है तो राम को स्वयं पर आत्मग्लानि होती है। इसी का वर्णन प्रस्तुत नाट्यांश में है।

हिन्दी अनुवाद
राम – मैं आप दोनों के पिता को नाम से जानना चाहता हूँ।
लव – इनका (पिता का) नाम तो मैं नहीं जानता हूँ। इस तपोवन में कोई भी उनका नाम नहीं लेता।
राम – अहो (आश्रम की) श्रेष्ठता।
कुश – मैं उनका नाम जानता हूँ।
राम – कहो।
कुश – निर्दय ……
राम – मित्र, विचित्र नाम है।
विदूषक – (विचारकर) तो इस प्रकार पूछता हूँ। ‘निर्दय’ ऐसा कौन कहता है ?
कुश – माता।
विदूषक – क्या इस प्रकार क्रोध में कहती है अथवा स्वाभाविक रूप से ?
कुश – यदि हम दोनों के बालभाव से उत्पन्न कोई अविनय देखती हैं, तब इस प्रकार फटकारती हैं ‘निर्दय के पुत्रो ! चञ्चलता मत करो।
विदूषक – इन दोनों के पिता का नाम यदि निर्दय है, तो इनकी माता उसके द्वारा अपमानित और घर से निकाली गई हैं ; इसीलिए ऐसे वचनों से दोनों पुत्रों को धमकाती है।
राम – (मन ही मन) ऐसे ही (निर्दय आचरण वाले) मुझको धिक्कार है। वह तपस्विनी मेरे द्वारा किए गए अपराध के कारण अपनी ही सन्तान को मन में दबे हुए क्रोध पूर्ण शब्दों से धमकाती है। (आँखों में आँसू भरकर देखता है।)

5. रामः – अतिदीर्घः प्रवासोऽयं दारुणश्च। (विदूषकमवलोक्य जनान्तिकम्) कुतूहलेनाविष्टो मातरमनयो मतो वेदितुमिच्छामि। न युक्तं च स्त्रीगतमनुयोक्तुम्, विशेषतस्तपोवने। तत् कोऽत्राभ्युपायः ?
विदूषकः – (जनान्तिकम्) अहं पुनः पृच्छामि। (प्रकाशम्) किं नामधेया युवयोर्जननी ?
लवः – तस्याः द्वे नामनी।
विदूषकः – कथमिव ?
लवः – तपोवनवासिनो देवीति नाम्नाह्वयन्ति, भगवान् वाल्मीकिर्वधूरिति। अपि च इतस्तावद् वयस्य !
विदूषकः – (उपसृत्य) आज्ञापयतु भवान्।
रामः – अपि कुमारयोरनयोरस्माकं च सर्वथा समरूपः कुटुम्बवृत्तान्तः ?

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर:
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) अतिदीर्घः दारुणश्च कः ?
(ii) कुशलवयोः मातरं नामतः कः वेदितुम् इच्छति ?
(ii) विदूषकः कम् उपसृत्य ‘आज्ञापयतु भवान्’ इति कथयति ?
(iv) ‘देवी’ इति के आह्वयन्ति ?
(v) कुशलवी कः त्वरयति ?
उत्तराणि:
(i) प्रवासः।
(ii) रामः ।
(iii) रामम्।
(iv) तपोवनवासिनः ।
(v) उपाध्यायदूतः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) किं युक्तं नास्ति ?
(ii) द्वे नामनी कस्याः स्त: ?
(iii) कुशलवयोः मातरं वधू’ इति नाम्ना कः आह्वयति ?
(iv) कुशलवयोः रामस्य च कुटुम्ब-वृत्तान्तः कीदृशः अस्ति ?
उत्तराणि
(i) स्त्रीगतमनुयोक्तुं युक्तं नास्ति।
(ii) द्वे नामनी कुशलवयोः मातुः स्तः ।
(iii) कुशलवयोः मातरं ‘वधू’ इति नाम्ना वाल्मीकिः आह्वयति।
(iv) कुशलवयोः रामस्य च कुटुम्ब-वृत्तान्तः सर्वथा समरूपः अस्ति।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘ज्ञातुम्’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) अति दारुणः कः ?
(iii) ‘आज्ञापयतु भवान्’ इति कः कथयति ?
(iv) ‘सामान्यतः’ इति पदस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(v) ‘कुमारनयोरस्माकम्’-अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
उत्तराणि:
(i) वेदितुम्।
(ii) प्रवासः।
(iii) विदूषकः।
(iv) विशेषतः ।
(v) कुमारयोः + अनयोः + अस्माकम्।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
शब्दार्थाः-दारुणः = (कठोरः) कठोर। जनान्तिकम् = (नाटके अन्योन्यम् आमन्त्रणं यत् स्यात् जनान्ते तत् जनान्तिकम्) नाटक में किसी पात्र का दूसरी ओर मुख करके इस प्रकार बात कहना कि रंगमंच पर उपस्थित दूसरा पात्र उसकी बात नहीं सुन रहा है। वेदितुम् = (ज्ञातुम्) जानने के लिए। स्त्रीगतम् = (स्त्रीविषयकम्) स्त्रियों से सम्बन्धित। अनुयोक्तुम् = (परीक्षितुम्, अन्ये विषये पृष्टाः प्रश्नाः) दूसरे के सम्बन्ध में की गई पूछताछ। अभ्युपायः = (उपायः, संसाधनम्) उपाय, संसाधन। आह्वयन्ति = (आकारयन्ति) पुकारते हैं। कुटुम्ब-वृत्तान्तः = (कुल-परिचयः) पारिवारिक वृत्तान्त।

संदर्भ:- पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत नाट्यांश में राम और विदूषक लव-कुश से उनकी माता का नाम जानना चाहते हैं।

हिन्दी अनुवाद: राम: – यह प्रवास बहुत लम्बा और कठोर है। (विदूषक को देखकर एक ओर मुँह करके) कुतूहल से घिरा मैं इनकी माता को नाम से जानना चाहता हूँ। स्त्रियों के विषय में पूछताछ उचित नहीं है, विशेष रूप से तपोवन में। तो यहाँ कौन-सा उपाय है ? ।
विदूषक – (एक ओर को मुँह करके) मैं फिर पूछता हूँ। (प्रकट रूप में) तुम दोनों की माता का क्या नाम है ?
लव – उसके दो नाम हैं। विदूषक कैसे ? लव तपोवन के निवासी ‘देवी’ इस नाम से पुकारते हैं, भगवान् वाल्मीकि ‘वधू’ इस नाम से।
राम – और भी तो मित्र ! इधर क्षण भर के लिए (आना)।
विदूषक – (पास आकर) आप आज्ञा कीजिए।
राम – क्या दोनों कुमारों का और हमारा कुटुम्ब वृत्तान्त सब प्रकार से एक समान है ? (अर्थात् अवश्य ही एक समान है।) (नेपथ्ये)

6. इयती वेला सञ्जाता रामायणगानस्य नियोगः किमर्थं न विधीयते ?
उभौ – राजन् ! उपाध्यायदूतोऽस्मान् त्वरयति।
रामः – मयापि सम्माननीय एव मुनिनियोगः। तथाहिभवन्तौ गायन्तौ कविरपि पुराणो व्रतनिधिर् गिरां सन्दर्भोऽयं प्रथममवतीर्णो वसुमतीम्। कथा चेयं श्लाघ्या सरसिरुहनाभस्य नियतं, पुनाति श्रोतारं रमयति च सोऽयं परिकरः॥ वयस्य ! अपूर्वोऽयं मानवानां सरस्वत्यवतारः, तदहं सुहृज्जनसाधारणं श्रोतुमिच्छामि। सन्निधीयन्तां सभासदः, प्रेष्यतामस्मदन्तिकं सौमित्रिः, अहमप्येतयोश्चिरासनपरिखेदं विहरणं कृत्वा अपनयामि। (इति निष्क्रान्ताः सर्वे)

पाठ्यांश-प्रश्नोत्तर
(क) एकपदेन उत्तरत
(i) कस्य नियोगः न विधीयते ?
(ii) रामेण माननीयः कः अस्ति ?
(iii) कथा कीदृशी अस्ति ?
(iv) अयं मानवानां सरस्वत्यवतारः कीदृशः ?
(v) रामस्य अन्तिकं कः प्रेष्यताम् ?
उत्तराणि:
(i) रासायणगानस्य।
(ii) मुनि-नियोगः।
(iii) श्लाघ्या।
(iv) अपूर्वः ।
(v) सौमित्रिः ।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत
(i) कः कुशलवयोः त्वरयति ?
(ii) रामायणस्य कविः कीदृशः अस्ति ?
(iii) इयं कथा कस्य अस्ति ?
(iv) अयं परिकरः श्रोतारं किं करोति ?
उत्तराणि:
(i) उपाध्यायदूतः कुशलवयोः त्वरयति।
(ii) रामायणस्य कविः पुराणः व्रतनिधिः अस्ति।
(iii) इयं कथा सरसिरुहनाभस्य अस्ति ?
(iv) अयं परिकरः श्रोतारं पुनाति रमयति च।

(ग) निर्देशानुसारम् उत्तरत
(i) ‘लक्ष्मणः’ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदं किम् ?
(ii) ‘अवतीर्णः’ इति पदे प्रकृति-प्रत्ययनिर्देशं कुरुत।
(iii) ‘दूरम्’ इत्यस्य प्रयुक्तं विलोमपदं किम् ?
(iv) ‘सरस्वत्यवतारः’ अत्र सन्धिच्छेदं कुरुत।
(v) ‘कविरपि पुराणो व्रतनिधिः’-अत्र विशेष्यपदं किम् ?
उत्तराणि:
(i) सौमित्रिः।
(ii) अव + तु + क्त।
(iii) अन्तिकम्।
(iv) सरस्वती + अवतारः।
(v) कविः ।

हिन्दीभाषया पाठबोधः
श्लोकान्वयः-भवन्तौ गायन्तौ, पुराणः व्रतनिधिः कविः अपि, वसुमतीम् प्रथम अवतीर्णः गिराम् अयं, सन्दर्भः सरसिरुहनाभस्य च इयं श्लाघ्या कथा, सः च अयं परिकरः नियतं श्रोतारं पुनाति रमयति च।

शब्दार्थाः-नियोगः = (कार्ये नियुक्तः) कार्य में लगाना। गिराम् = (वाणीम्) वाणी को। श्लाघ्या (प्रशंसनीया)
= प्रशंसा के योग्य। सरसिरुहनाभस्य = (सरसिरुहं कमलं नाभ्यां यस्य सः, तस्य) कमलनाभि, भगवान् विष्णु। परिकरः = (संयोगः) संयोग। पुनाति = (पवित्रं करोति) पवित्र करता है। अन्तिकम् = (समीपम्) पास में।

संदर्भ:-पूर्ववत्। प्रसंग:-प्रस्तुत नाट्यांश में लव-कुश द्वारा रामायण-गान किए जाने का वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद: (नेपथ्य में) यह रामायण-गान का समय हो गया है। फिर निर्धारित कार्य क्यों नहीं किया जा रहा है ?
दोनों – राजन् ! उपाध्याय का दूत इससे शीघ्रता करवा रहा है।
राम – मुनियों द्वारा निर्धारित कार्य मेरे लिए भी सम्माननीय है। क्योंकि

श्लोकार्थः- आप दोनों (कुश और लव) इस कथा का गान करने वाले हैं, तपोनिधि पुराण मुनि (वाल्मीकि) इस रचना के कवि हैं, धरती पर प्रथम बार अवतरित होने वाला स्फुट वाणी का यह काव्य है और इसकी कथा कमलनाभि विष्णु से सम्बद्ध है, इस प्रकार निश्चय ही यह संयोग श्रोताओं को पवित्र और आनन्दित करने वाला है।
मित्र ! मनुष्यों में यह सरस्वती का अवतार अद्भुत है। इसीलिए मित्रजनों के लिए सामान्य मनुष्य की भाँति इसे सुनना चाहता हूँ। सभासद् बैठ जाएँ, सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को हमारे पास भेज दिया जाए, मैं भी इन दोनों को देर तक गोद रूपी आसन पर बैठाए रखने की थकावट को घूम कर दूर करता हूँ।

(इस प्रकार सब निकल जाते हैं।)
श्लोक-भावार्थ:-भगवान् वाल्मीकि द्वारा निबद्ध पुराणपुरुष की कथा, कुश लव द्वारा श्री राम को सुनाई जानी थी, उसी की सूचना देते हुए नेपथ्य से कुश और लव को बिना समय नष्ट किए अपने कर्तव्य का पालन करने का निर्देश दिया जाता है। दोनों राम से आज्ञा लेकर जाना चाहते हैं, तब श्री राम उपर्युक्त श्लोक के माध्यम से उस रचना का सम्मान करते हैं।

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