Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
Haryana Board 10th Class Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
HBSE 10th Class Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
HBSE 10th Class Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers
अध्याय संबंधी महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ/शब्दावली
HBSE 10th Class Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन InText Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 303)
प्रश्न 1. पर्यावरण मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन से परिवर्तन ला सकते हैं ?
उत्तर- पर्यावरण मित्र बनने के लिए हमें तीन प्रकार के ‘R’ को अपनाना होगा। ये हैं-
(i) कम उपयोग (Reduce)
(ii) पुनः चक्रण (Recycle)
(iii) पुनः प्रयोग (Reuse)।
(i) कम उपयोग (Reduce)-इसका अर्थ है हमें कम से कम वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। हम बिजली के पंखे बंद करके बिजली बचा सकते हैं। व्यर्थ बहते हुए पानी की बचत कर सकते हैं। हमें भोजन भी नष्ट नहीं होने देना चाहिए।
(ii) पुनः चक्रण (Recycle)- इसका अर्थ है कि हमें प्लास्टिक, कागज, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थो का पुनः चक्रण करके उपयोगी वस्तुएँ बनानी चाहिए।
(iii) पुनः प्रयोग (Reuse)-पुनः उपयोग के तरीके में हम किसी वस्तु का बार-बार प्रयोग कर सकते हैं। लिफाफों को फेंकने की अपेक्षा हम इनको फिर से उपयोग में ला सकते हैं। प्लास्टिक की बोतलों तथा डिब्बों का उपयोग रसोईघर में वस्तुओं को रखने के लिए कर सकते हैं।
प्रश्न 2. संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं ?
उत्तर- प्राकृतिक संसाधनों जैसे पेट्रोलियम, जल, वन आदि के अत्यधिक उपयोग से केवल कुछ ही लोग लाभान्वित होंगे और संपूर्ण पर्यावरण असंतुलित हो जाएगा जिसके परिणाम लंबे समय तक रहेंगे। संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य की परियोजनाओं से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है लेकिन पर्यावरण की दृष्टि से ये योजनाएँ सफल नहीं होती हैं।
प्रश्न 3. कम अवधि की परियोजनाओं के लाभ, लम्बी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर-
1. कम अवधि के उद्देश्य से लाभ केवल व्यक्तिगत होता है परन्तु लम्बी अवधि के उद्देश्य का लाभ संपूर्ण समुदाय को होता है। उदाहरण के लिए अल्पावधि के लाभ में वृक्षों को काट दिया जाता है परन्तु दीर्घ अवधि में लाभ हेतु वहाँ वृक्षों की पुनः स्थापना की जाती है।
2. अल्पावधि के लाभ में वृक्षों को काटकर समतल भूमि प्राप्त की जा सकती है परन्तु दीर्घावधि में वन अपने अस्तित्व में बने रहकर और पर्यावरण में गैसीय संतुलन एवं वर्षा के स्रोत का कारण बनते हैं।
3. अल्पावधि के लाभ में वन की भूमि को आवासीय एवं औद्योगिक अथवा कृषि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है परंतु दीर्घावधि में वन भूमि की उर्वरा शक्ति नियमित रहती है तथा मृदा अपरदन नहीं होता।
प्रश्न 4.
क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए ? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर-
हमारा देश एक विकासशील देश है, इसमें संसाधनों का समान वितरण बहुत आवश्यक है। समान वितरण से हमारा अभिप्राय है कि प्राकृतिक संसाधनों का सभी के लिए समान लाभ हेतु वितरण, चाहे व्यक्ति गरीब हों या अमीर। सरकारी एजेंट तथा कुछ स्वार्थी तत्व संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कार्य करते हैं वे अपने अधिकतम लाभ के लिए ही प्रयास करते हैं। स्थानीय निवासियों की आवश्यकताओं को नजरंदाज किया जाता है।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 308)
प्रश्न 1. हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर- हमें वनों का संरक्षण निम्न कारणों से करना चाहिए-
- हमें वनों से इमारती लकड़ी एवं जलाने की लकड़ी प्राप्त होती है।
- वनों से हमें फल, मेवे, सब्जियाँ, औषधियाँ आदि प्राप्त होती हैं।
- अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति होती है, जैसे-कागज उद्योग।
- वन पर्यावरण में गैसीय संतुलन बनाने में सहायता करते हैं।
- वृक्षों के वायवीय भागों से पर्याप्त मात्रा में जल का वाष्पन होता है जो बादलों का निर्माण एवं आकर्षण करते हैं।
- ये मृदा अपरदन एवं बाढ़ नियंत्रण में सहायता करते
हमें वन्य जीवन का संरक्षण निम्न कारणों से करना चाहिए-
- वन्य प्राणी स्थलीय खाद्य श्रृंखला की निरंतरता के लिए उत्तरदायी हैं।
- वन्य प्राणियों से हमें अनेक बहुमूल्य पदार्थ जैसे-कस्तूरी, खाल, ऊन, सींग, फर, मधु, दाँत, वसा आदि प्राप्त होते हैं।
- वन्य प्राणी पर्यावरण संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 2. संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर- वनों एवं वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं
- वनों में अन्दर तथा वनों के समीप रहने वाले लोगों को वनों एवं वन्य प्राणियों की सुरक्षा के कार्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए और उन्हें, इनसे होने वाले लाभों एवं इनकी कमी से होने वाली हानियों के बारे में जाग्रत करना चाहिए।
- जहाँ से वनों को काटा जा चुका है वहाँ नये वनों का विकास करना चाहिए तथा उसमें विभिन्न वन्य जीवों को छोड़ना चाहिए।
- हमें वनों एवं वन्य उत्पादों के विकल्पों की खोज करनी चाहिए जिससे वनों पर कम से कम निर्भर रहना पड़े।
- वनों के काटे जाने तथा वन्य प्राणियों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
(पाठ्य-पुस्तक पृ. सं. 311)
प्रश्न 1. अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर- वर्षा के जल को एकत्रित करना “जल संग्रहण” कहलाता है, इसे जल प्रबन्धन के नाम से भी जाना जाता है। हमारे देश में विभिन्न राज्यों में जल संग्रहण के लिए अलग-अलग प्रणालियाँ अपनाई जाती हैं। इसमें से कुछ तो बहुत प्राचीन हैं। भूमि के अन्दर गड्ढे खोदकर वर्षा का जल एकत्र करना. कुएँ बनाकर. छत पर गिरे वर्षा जल को बड़े टैकों में एकत्र करके, तालाब बनाकर, चैकडैम बनाकर जल का संग्रहण किया जा सकता है।
प्रश्न 2. इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।
उत्तर- पर्वतीय क्षेत्रों में जल व्यवस्था मैदानी क्षेत्रों से भिन्न होती है। जैसे-हिमाचल प्रदेश की जल वितरण प्रणाली को कुल्ह कहते हैं। पहाड़ी नदियों में बहने वाले जल को मानव निर्मित छोटी-छोटी नालियों से पहाड़ी पर निचले इलाकों तक ले जाया जाता है। कुल्हों में बहने वाले पानी का प्रबन्धन गाँवों के निवासियों की आपसी सहमति से किया जाता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत कृषि के मौसम में जल सबसे दूरस्थ गाँवों को दिया जाता है फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित इलाके उस जल का प्रयोग करते हैं। मैदानी इलाकों में बड़ी-बड़ी नदियों से नहरें निकाल कर या तालाबों में संचित जल द्वारा या फिर नलकूपों द्वारा जल की व्यवस्था की जाती है।
प्रश्न 3. अपने क्षेत्र में जल के स्त्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्त्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है ?
उत्तर- हमारा क्षेत्र एक बड़ा नगर है, अतः यहाँ की जल प्रणाली के अनुसार जल का स्थानीय स्रोत बड़ी टंकी है जिसमें नदी से पंपिंग स्टेशन द्वारा पानी पाइप लाइन द्वारा संग्रहित किया जाता है। इस जल का वितरण पाइप लाइनों द्वारा सम्पूर्ण क्षेत्र को किया जाता है। इसी से सभी लोगों की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं।
HBSE 10th Class Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers
पाठ्य-पुस्तक के अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1. अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं ?
उत्तर- अपने आवास को पर्यानुकूलित या पर्यावरण मित्र बनाने के लिए हम निम्न परिवर्तन कर सकते हैं-
- हम अपने घर के आस-पास कूड़ा करकट, गंदगी, जल एकत्रण आदि न होने दें।
- बिजली से चलने वाले उपकणों का प्रयोग न करने की स्थिति में उनके स्विच ऑफ कर दें जिससे विद्युत अपव्यय रोका जा सके।
- हम अपने घर में नलों से टपकते पानी को बन्द करना चाहिए। व्यर्थ ही पानी को खर्च न करें।
- प्रयोग किये गए प्लास्टिक के डिब्बे, बोतलों एवं अन्य सामान को पुनः प्रयोग करें या उन्हें पुनः चक्रण के लिए भेज दें।
- आवासीय कूड़े एवं व्यर्थ पदार्थों को कूड़ादान में ही डालें।
- लकड़ी, कोयला के स्थान पर LPG का प्रयोग भोजन बनाने के लिए करें।
प्रश्न 2. क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके।
उत्तर- हम अपने विद्यालय में निम्नलिखित परिवर्तन करके इसे पर्यानुकूलित बना सकते हैं-
- अपने विद्यालय भवन को साफ-सुथरा रखें तथा इसके आस-पास कूड़ा-करकट व गन्दगी एकत्र न होने दें।
- इससे निकलने वाले कूड़े को कहीं दूर खाली भूमि में गड्ढा खोदकर उसमें दबा दें, जिससे इसका विघटन हो जाए।
- विद्यालय में बगीचे की स्थापना करें और इसमें उत्पन्न पत्तियाँ एवं कूड़े-करकट की खाद बनाकर पौधों के पोषण के लिए प्रयोग करें।
- हम अपने साथियों को पेड़-पौधों की रक्षा के लिए जाग्रत करें।
- शौचालय तथा मूत्रालय की नियमित सफाई कराएँ।
- अनावश्यक विद्युत खर्च न होने दें।
- पानी का अपव्यय न होने दें।
- विद्यालय भवन हवादार एवं प्रकाश आने योग्य हो जिससे पंखे एवं बल्बों की कम से कम आवश्यकता हो।
- विद्यालय प्रांगण में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएँ।
- पॉलीथीन का प्रयोग न करें।
प्रश्न 3. इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जन्तुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं ?
उत्तर- वन एक प्राकृतिक संसाधन हैं जो हमारे जीवन के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से अनिवार्य हैं। वन के प्रमुख चार दावेदार हैं-
1. वन के अन्दर तथा इनके आस-पास रहने वाले लोग जो वन तथा वन्य उत्पादों पर निर्भर रहते हैं। कुछ उत्पादों को वे प्रत्यक्ष रूप से जीवन यापन हेतु प्रयोग कर लेते हैं तथा कुछ उत्पादों को बेचकर अपनी जीवन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं |
2. उद्योगपति जो वन में उत्पन्न एक प्रकार के उत्पाद पर अपना प्रभुत्व एवं नियंत्रण रखते हैं वे इन उत्पादों को अपने नियंत्रण में चल रहे उद्योगों में कच्चे पदार्थों के रूप में प्रयोग करते हैं।
3. सरकारी वन विभाग वन की भूमि पर अपना अधिकार रखते हैं तथा वन तथा उसके उत्पादों पर अपना नियंत्रण रखते हैं। वनों में सभी उत्पाद उन्हीं के माध्यम से विक्रय किए जाते हैं जिनसे प्राप्त धनराशि सरकार के पास चली जाती है।
4. ऐसे व्यक्ति जो प्रकृति एवं वन्य प्राणियों से स्नेह रखते हैं, उसे उसी प्राकृतिक रूप में बनाए रखना चाहते हैं। उपर्युक्त सभी चारों प्रकार के दावेदारों (Stake holder) में से चौथे प्रकार के दावेदार जो प्रकृति के प्रेमी हैं और वे वन्य प्राणियों एवं प्राकृतिक वनस्पति को अपनी प्राकृतिक अवस्था में ही बनाए रखना चाहते हैं को ही प्रबन्धन एवं वन एवं उसके उत्पादों के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार देना चाहिए। दूसरे शब्दों में वे ही वास्तव में पृथ्वी पर जीवन को सुरक्षित रखने के अधिकारी हैं।
प्रश्न 4. अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबन्धन में क्या योगदान दे सकते हैं (a) वन एवं वन्य जन्तु, (b) जल संसाधन, (c) कोयला एवं पेट्रोलियम।
उत्तर-
(a) वन एवं वन्य जन्तु-मैं व्यक्तिगत रूप से वन एवं वन्य जन्तु प्रबंधन में स्थानीय नागरिकों की सहभागिता को सुनिश्चित करना चाहूँगा। उन्हें वन एवं वन्य जीवन के महत्व के बारे में अवगत कराना चाहूँगा। इसके साथ यह प्रबन्ध भी करूँगा कि वन सम्पदा को अनावश्यक क्षति न हो एवं इन संसाधनों का दरुपयोग न हो। स्थानीय नागरिकों की सहमति एवं सक्रिय भागीदारी से वन सम्पदा को समृद्ध करने का मेरा उद्देश्य है।
(b) जल संसाधन-हम अपनी दैनिक आवश्यकता से कहीं अधिक जल व्यय करते हैं। नलों से पानी का रिसाव होता रहता है, नलों को खुला छोड़ देते हैं। पाइप लाइनों के फट जाने से जल की बहुत बर्बादी होती है इस अपव्यय को बचाने के लिए मैं प्रयास करूंगा। मैं अपने घर में इस अपव्यय को रोकने का प्रयास करूँगा तथा लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करूँगा।
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम-ऊर्जा की बचत के लिए मैं निम्न प्रयास करूंगा-
- मैं अपनी मोटर बाइक के स्थान पर बस से यात्रा करूँगा।
- मैं यह चाहूँगा कि हम कई साथी पैदल विद्यालय तक जाएँ।
- घर में ऊर्जा की बचत के लिए बल्ब के स्थान पर ट्यूबलाइटें एवं CFL का प्रयोग करूँगा।
- मैं दिन के समय अधिकतर कार्य करूँगा जिससे रात में अधिक समय तक प्रकाश की आवश्यकता न हो।
- मैं लोगों को यह समझाऊँगा कि वे अपने वाहनों के इंजनों को लाल बत्ती होने पर चालू न रखें।
- मै अपने घर के जनरेटर को अनावश्यक रूप से नहीं चलाने दूँगा।
- ठंड के दिनों में सिगड़ी का प्रयोग न करके गर्म कपड़े पहनूँगा जिससे कोयले की खपत कम होगी।
प्रश्न 5. अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर- विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत को कम करने के लिए हम निम्नलिखित युक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं-
- हम अनावश्यक ऊर्जा खपत को रोकने के लिए बल्ब के स्थान पर CFL का प्रयोग कर सकते हैं, ठंड से बचने के लिए हीटर या कोयले की सिगड़ी के स्थान पर ऊनी कपड़ों का प्रयोग कर सकते हैं।
- जल की खपत कम करने के लिए इसके अपव्यय को रोक सकते हैं, हम पाइपों का रिसना बन्द कर सकते हैं।
- छोटी-छोटी दूरियाँ तय करने के लिए पैदल या साइकिल से जा सकते हैं।
- स्वचालित वाहनों का इंजन लाल बत्ती होने पर बन्द कर सकते हैं।
- लिफ्ट के स्थान पर सीढ़ियों द्वारा जा सकते हैं।
- सोलर उपकरणों का प्रयोग खाना पकाने, पानी गर्म करने आदि कार्यों के लिये सकते हैं।
- खाद्य पदार्थों के अपव्यय को रोक सकते हैं। .
- घरों में लकड़ी जलाने के स्थान पर LPG का प्रयोग कर सकते हैं।
प्रश्न 6. निम्न से सम्बन्धित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण,
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है
उत्तर-
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
- पानी के संरक्षण के लिए टपकने वाली नल की टोटियों को बदलवाया है तथा पाइपों की मरम्मत कराई है।
- अनावश्यक बल्ब एवं लाइटें बन्द करा दी हैं।
- अनेक कार्यों के लिए सोलर ऊर्जा का प्रयोग किया है।
- कई स्थानों तक पैदल गए हैं।
- हर लाल बत्ती पर बाइक का इंजन बन्द किया है।
(b) प्राकृतिक संसाधनों का अपव्यय
- कई रातों में बिजली जलाकर सो गया।
- सुबह-सुबह मार्निंग वाक पर न जाकर टी.वी. देखता रहा।
- टी.वी. चलाकर बाहर काफी देर तक बातें करता रहा।
- बस से जाने के बजाय दूसरे शहर अपनी बाइक से गया।
- मैंने कई जगह लाल बत्ती होने पर अपनी बाइक का इंजन बंद नही किया।
प्रश्न 7. इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर- संसाधनों के संपोषण के लिए हम तीन आर (3’R’) की संकल्पना का पालन करेंगे। 3 ‘R’ संकल्पना के पालन का अर्थ है
- कम उपयोग (Reduce)-किसी संसाधन का कम-से कम प्रयोग करेंगे।
- पुनः चक्रण (Recycle)-प्लास्टिक, कागज, धातु, काँच आदि को पुनः चक्रण के लिए भेजेंगे।
- पुनः उपयोग (Reuse)-कुछ वस्तुओं को कई बार कई कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-प्रयोग की गई बोतलें, डिब्बे आदि।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
अति लघुउत्तरीय प्रश्नोत्तर (Very Short Answer Type Questinos)
बहुविकल्पीय प्रश्न (Objective Type Questions)
1. मानव की आँत में कौन सा जीवाणु होता है जो गंगा जल को दूषित करता है ?
(A) राइजोबियम
(B) कोलीफॉर्म
(C) फीताकृमि
(D) प्लाज्मोडियम
उत्तर- (B) कोलीफॉर्म।
2. IUCN का अर्थ है-
(A) इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेस
(B) इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ कंट्री नेचर
(C) इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ कॉउन्सिल नेचुरल रिसॉर्सेस
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर- (A) इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एण्ड नेचुरल रिसोर्सेस।
3. प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होता है-
(A) भोजन
(B) सीमेण्ट
(C) पत्थर
(D) ये सभी।
उत्तर- (D) ये सभी।
4. गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा की कुल लंबाई है –
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
उत्तर – खेजरी ।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. हमें संसाधनों के प्रबन्धन की क्यों आवश्यकता
उत्तर- संसाधन सीमित होते हैं। हमें अनेक दैनिक वस्तुएँ प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होती हैं। यदि हम इन संसाधनों का उपयोग अल्प समय में कर लेंगे तो अपनी भावी पीढ़ी को इन संसाधनों से वंचित रहना पड़ेगा। इसीलिए हमें संसाधनों का प्रयोग विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए।
प्रश्न 2. संपोषणीय विकास से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- संपोषणीय विकास की संकल्पना मनुष्य की वर्तमान आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति एवं विकास को प्रोत्साहित तो करती ही है साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है। आर्थिक विकास पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित है अतः संपोषित विकास से जीवन के सभी आयाम में परिवर्तन निहित हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित में प्रत्येक के तीन लाभों की सूची बनाइए:
(i) कम अवधि के उद्देश्य से संसाधनों का दोहन, तथा
(ii) हमारे प्राकृतिक संसाधनों का लम्बी अवधि को ध्यान में रखते हुए प्रबंधन।
उत्तर-
(i) कम अवधि के उद्देश्य से संसाधनों के दोहन के लाभ –
(a) वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को शीघ्रता से पूरा करना।
(b) बिना किसी जवाबदेही के अधिक लाभ अर्जित करना।
(iii) आधुनिकीकरण व औद्योगिकरण को तीव्रता से बढ़ाना।
(ii) प्राकृतिक संसाधनों की लम्बी अवधि के प्रबंधन के लाभ
(a) वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों को बनाए रखना।
(b) इससे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन पर रोक लगेगी।
(c) पर्यावरण को भी कम-से-कम क्षति होगी।
प्रश्न 4. “वन जैव विविधता के तप्त स्थल (Hotspots) है” इस कथन को समझाइए।
उत्तर- जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या है। किसी स्थान विशेष पर पाए जाने वाले दुर्लभ प्राणिजात एवं पादपजात जैव विविधता के तप्तस्थल कहलाते हैं। ऐसे विशिष्ट स्थल केवल वनों में ही पाए जाते हैं। ये स्थल हमारी प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित करते हैं।
प्रश्न 5. (i) वन संरक्षण तथा
(ii) जंगली प्राणियों के संरक्षण में प्रत्येक के दो-दोलाभ लिखिए।
उत्तर-
(i) वन संरक्षण के लाभ
(a) वन संरक्षण से बाढ़ तथा भूमि कटाव को रोकने में सहायता मिलती है।
(b) वन संरक्षण से उस स्थान की ‘जैव विविधता’ भली प्रकार बनी रहती है।
(c) वन संरक्षण बाढ़ जैसी भयानक प्राकृतिक आपदा को भी रोकने में सहायक है।
(ii) जंगली प्राणियों के संरक्षण
(a) इनके संरक्षण से पर्यावरण में संतुलन बनाये रखने में सहायता मिलती है।
(b) जंगली प्राणियों के संरक्षण से खाद्य श्रृंखलाएँ तथा खाद्य जाल सुरक्षित रहते हैं।
प्रश्न 6. पर्यावरण संरक्षण में वनों की तीनभूमिकाओं की सूची बनाइए। वन किस प्रकार अपक्षयित (नष्ट) हो जाते हैं? वनोन्मूलन के पर्यावरण पर दो दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- पर्यावरण संरक्षण में वनों की भूमिका
- वन वर्षा लाने में सहायक होते हैं जिससे पर्यावरण में जल-चक्र संतुलित रहता है।
- वन वन्यजीवों तथा पक्षियों को वास-स्थान प्रदान करते हैं।
- वन मृदा की उर्वरता बनाये रखने में सहायक होते हैं तथा अधिक वर्षा के समय भूमि कटाव को भी रोकते हैं।
वनों के अपक्षयित होने के कारण-औद्योगीकरण तथा शहरीकरण के चलते वनों का धीरे-धीरे नाश हो रहा है। जनसंख्या बढ़ने के साथ उसके रहने के लिए अधिक स्थान की आवश्यकता पड़ती है और यह वनों के विनाश का मुख्य कारण बनती है। इसवेह अतिरिक्त जंगल में प्रतिवर्ष लगने वाली आग तथा अतिचारन के कारण भी वनों का प्रतिशत कम होता जा रहा है।
वनोन्मूलन के दुष्परिणाम-
- पेड़ों के अधिक कटने से मृदा अपरदन होता है तथा जल-चक्र भी प्रभावित होता है।
- वनोन्मूलन से वायुमण्डल में CO2, गैस की मात्रा बढ़ जाती है जिसके कारण अधिक हरितग्रह प्रभाव उत्पन्न होता है तथा वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ने लगता है।
प्रश्न 7. पारिस्थितिक विशेषज्ञों के अनुसार वनारोपण का क्या प्रभाव होगा?
उत्तर- वनारोपण के निम्नलिखित प्रभाव होंगे –
- वनों की वृद्धि से वायुप्रदूषण में कमी होगी।
- वनों की वृद्धि से मृदा अपरदन कम होता है तथा वर्षा अधिक होती है।
- कुछ वन वन भूमि की शुद्धता में वृद्धि करते हैं जिससे सल्फर तथा नाइट्रोजन के यौगिकों का ऑक्सीकरण होता है।
- अम्लीय आर्द्र भूमि चीड़ के वृक्षों द्वारा उत्पन्न की जाती है जो भूमि की अम्लीयता को बढ़ाती है।
प्रश्न 8. चिपको आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
अथवा
चिपको आन्दोलन क्या था?
उत्तर- गढ़वाल के रेनी नामक गाँव की महिलाओं ने वनों के ठेकेदार द्वारा काटे जाने का विरोध किया। उन्होंने पेड़ों से लिपटकर उनकी रक्षा की। उनके इस प्रयास से स्थानीय वन उजड़ने से बच गए। इस घटना को चिपको आन्दोलन नाम दिया गया।
प्रश्न 9. वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे ?
उत्तर-
- प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा करना।
- विलुप्त प्रजातियों को प्रजनन द्वारा बढ़ावा देना।
- शिकार पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाना।
- वृक्षों की कटाई को रोका जाना।
प्रश्न 10. भू-जल की उपलब्धता में काफी कमी क्यों आई है?
उत्तर- इसके निम्नलिखित कारण हैं-
- पेड़ों का काटा जाना।
- भू-जल का अत्यधिक मात्रा में दोहन।
- उद्योगों से पेय जल प्रदूषण।
- अपर्याप्त वर्षा |
प्रश्न 11. जल संग्रहण किसे कहते हैं? सामुदायिक स्तर पर जल संग्रहण से संबंधित दो प्रमुख लाभों की सूची बनाइए। भूजल की संपोषित उपलब्धता में असफलता के दो.कारण लिखिए।
उत्तर- जल संग्रहण से अभिप्राय है जल तथा जल के भूमिगत स्रोतों को मनुष्य की प्राप्ति के लिए बनाए रखना। वर्षा के जल को भूमिगत जलाशयों, गड्ढे खोद कर, झीलों का निर्माण करके व छत पर बनी टंकियों में एकत्रित करके किया जाना चाहिए ताकि उस जल का उपयोग गरमी तथा सूखे के दिनों में किया जा सके।
सामुदायिक स्तर पर जल संग्रहण के दो लाभ-
- सूखे के दिनों में एकत्रित जल को सभी लोगों में वितरित किया जा सकता है ताकि किसी के लिए जल का अभाव न हो।
- इस जल द्वारा भीषण गर्मीयों में फसलों को भी न्यूनतम मात्रा में जल से सिंचित किया जा सकता है।
भूजल की संपोषित उपलब्धता में असफलता के दो कारण-
- नलकूपों द्वारा अत्यधिक मात्रा में फसलों की सिंचाई के लिए भूजल का उपयोग।
- स्थानीय लोगों द्वारा जल संग्रहण के पुराने तरीकों को त्याग देने के कारण।
- सिंचाई के लिए अधिक माँग वाली फसलों का विषयांतर।
प्रश्न 12. बांध क्या होता है? हम बड़े बांध क्यों बनाना चाहते हैं? बड़े बांधों का निर्माण करते समय किन तीन समस्याओं का ध्यान रखना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों में शांति बनी रहे, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर- किसी नदी के जल को, ऊँचाई पर बहुत बड़े कुंड-रूपी संरचना में एकत्र करने की प्रक्रिया को बांध कहते हैं। बड़े बाँध द्वारा जल संग्रहण पर्याप्त मात्रा में किया जा सकता है जिसका प्रयोग न केवल सिंचाई वरन् विद्युत का अधिक मात्रा में उत्पादन करने के लिए भी किया जाता है।
बड़े बांधों के निर्माण करते समय हमें निम्नलिखित समस्याओं का ध्यान रखना चाहिए
- बांध बनाने के कारण विस्थापित हुए किसानों तथा आदिवासी लोगों को पुनः स्थापित करना।
- बांध के निर्माण के समय होने वाले खर्च पर नियंत्रण रखना।
- बांध बनने से पर्यावरण का नुकसान कम से कम होना चाहिए।
प्रश्न 13. ‘जल संरक्षण की खादिन संरचना’ का नामांकित चित्र बनाकर जल संरक्षण के कोई दो उपाय लिखिए।
उत्तर- अनुच्छेद 16.3.2. का अध्ययन करें।
प्रश्न 14. वर्षा जल संग्रहण के दो तरीके तथा दो लाभ बताइए।
उत्तर- वर्षा जल संग्रहण के उपाय
(i) खाली भूमि पर तालाब बनवाए जाएँ।
(ii) शहरों में भूमिगत टैंकों में छतों से आने वाला वर्षा जल संग्रहीत किया जाए।
वर्षा जल संग्रहण के लाभ –
(i) वर्ष भर पेय जल की उपलब्धता,
(ii) कृषि के लिए सिंचाई जल की प्राप्ति।
प्रश्न 15. गंगा प्रदूषण के स्रोत क्या हैं ?
उत्तर-
- कचरा एवं मल का प्रवाह-नगरों द्वारा उत्सर्जित कचरा एवं मल को नाले एवं नालियों द्वारा गंगा जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।
- उद्योग अपशिष्ट-विभिन्न नगरों में स्थित छापेखाने, कागज मिलों, कपड़ा मिलों से निकली गन्दगी गंगा में छोड़ दी जाती है।
प्रश्न 16. बड़े बाँधों के निर्माण के विरोध के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
- सामाजिक कारण-बड़ी संख्या में जनजीवन को विस्थापित करना एवं उनका पुर्नवास कराना।
- आर्थिक कारण-इन पर जनता का बहुत धन खर्च होता है।
- पर्यावरणीय कारण-इनके निर्माण के कारण बड़ी मात्रा में वन विनाश होता है तथा प्रदूषण उत्पन्न होता है।
प्रश्न 17. राजस्थान में कार्यान्वित वर्षा जल संग्रहण के खादिन तंत्र को समझाइए।
उत्तर- ‘खादिन’ का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण के खादिन तंत्र की विशेषता है कि यह ढालू खेत के निचले भाग में निर्मित काफी लम्बा (100 मी से 300 मी) मिट्टी का बना तटबंध होता है। अपवाह क्षेत्र में जल ढलानों पर नीचे की ओर बहता है और बंध द्वारा रुककर जलाशय बना लेता है। एकत्र जल की कुछ मात्रा को कुँयें बनाकर भूमि में प्रवेश करा दिया जाता है। इन जलाशयों के सूखने पर भी इनमें काफी नमी होती है, जहाँ फिर कृषि की जाती है।
प्रश्न 18. जल के भौम जल संग्रहण के क्या लाभ हैं ?
उत्तर- जल के भौम जल के रूप में संग्रहण के निम्नलिखित लाभ है-
- यह वाष्प बनकर उड़ता नहीं है।
- इसके लिए अधिक भूमि क्षेत्र की आवश्यकता नहीं व होती है।
- यह पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित होता है।
- इससे भूमि जल स्तर में वृद्धि होती है।
प्रश्न 19. जीवाश्मी ईंधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से करना चाहिए। क्यों ?
उत्तर-
- पृथ्वी पर जीवाश्मी ईंधनों के स्रोतों (कोयला एवं पेट्रोलियम) की मात्रा सीमित है।
- जीवाश्मी ईंधनों के जलाने से वायु प्रदूषण उत्पन्न होता है।
प्रश्न 20. कोयला तथा पेट्रोलियम के उपयोग को कम करने के दो उपाय बताइए।
उत्तर-
- कोयला द्वारा निर्मित विद्युत उत्पादन तथा । इसकी खपत को कम करना चाहिए।
- व्यक्तिगत वाहनों के स्थान पर सामूहिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 21. वायु में CO2, की मात्रा बढ़ने से क्या प्रभाव होते हैं?
उत्तर-
- फसल के पैदावार क्रम में परिवर्तन होता है।
- वैश्विक ऊष्मायन प्रभाव उत्पन्न होता है।
- ध्रुवीय बर्फ पिघलती है।
प्रश्न 22. ओजोन परत किस प्रकार बनती है? पृथ्वी पर सभी जीवन स्वरूपों के लिए इसके महत्त्व का उल्लेख कीजिए। 1980 के दशक में वायुमण्डल में ओज़ोन की मात्रा में तीव्रता से गिरावट क्यों आई?
उत्तर- आजोन परत का निर्माण-वायुमण्डल के ऊपरी भाग में सूर्य की पराबैंगनी विकिरणों के उपयोग से ऑक्सीजन गैस ओज़ोन में परिवर्तित होती है।
ओज़ोन परत का महत्त्व-पृथ्वी पर सभी जीवों को ओज़ोन परत सूर्य के प्रकाश की हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से बचाती है। इसलिए सभी जीव इन विकिरणों से होने वाले रोगों से बच जाते हैं।
ओजोन परत का ह्रास-मनुष्य द्वारा अत्यधिक मात्रा में क्लोरोफ्लुओरो कार्बन (CFCs) रसायनों के उपयोग करने के कारण 1980 के दशक में वायुमण्डल में आज़ोन की मात्रा में तीव्रता से गिरावट आई।
प्रश्न 23. CO2 में उत्सर्जन के विनियमन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानक का पता लगाइए।
उत्तर- क्योटो प्रोटोकाल में CO2 के उत्सर्जन विनियमन के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानकों में चर्चा की गई। इस समझौते के अनुसार औद्योगिक राष्ट्रों को अपने CO2 तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में 5.2% की कमी लाने के लिए कहा गया था। आस्ट्रेलिया एवं आइसलैंड के लिए यह मानक क्रमश: 8% तथा 10% निर्धारित किया गया है। क्योटो प्रोटोकाल समझौता जापान में क्योटो शहर में दिसम्बर 1997 में हुआ था। इसे 16 फरवरी, 2005 को लागू किया गया। दिसम्बर 2006 तक 169 देशों ने इस समझौते का अनुमोदन किया।
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
निबन्धात्मक प्रश्न [Essay Type Questions]
Haryana Board 10th Class Science Important Questions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
Haryana Board 10th Class Science Notes Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन
→ प्राकृतिक संसाधन (Natural Resources)-मानव के लिए उपयोगी प्राकृतिक पदार्थ जैसे- जल, वायु, वन, खनिज, पेट्रोलियम, मृदा आदि को प्राकृतिक संसाधन कहते हैं।
→ अक्षय प्राकृतिक संसाधन (Inexhaustible Resources)-ऐसे प्राकृतिक संसाधन जो मानव द्वारा प्रयोग करने पर समाप्त नही होते, अक्षय प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। जैसे-सूर्य का प्रकाश, समुद्र आदि।
→ क्षयशील संसाधन (Exhaustible Resources) ऐसे संसाधन जो मनुष्य के प्रयोग करने पर धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं, क्षयशील प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं। जैसे-खनिज, कोयला आदि।
→ नवीकरणीय स्रोत (Renewable Sources)-ऐसे प्राकृतिक स्रोत जिनका प्रकृति में पुनः चक्रण किया जा सकता है, नवीकरणीय स्त्रोत कहलाते हैं। जैसे-जल, वन आदि।
→ अनवीकरणीय स्रोत (Non-Renewable Sources)-ऐसे प्राकृतिक स्रोत जिनका प्रकृति में पुनः चक्रण नहीं किया जा सकता है, अनवीकरणीय स्रोत कहलाते हैं। जैसे-पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, कोयला आदि।
→ संरक्षण (Conservation) यह वह प्रक्रिया है जो मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से पर्यावरण को होने वाली हानि से रोकती है।
→ भूमिगत जल (Underground water)-भूमि के अन्दर उपस्थित जल भूमिगत जल कहलाता है।
→ पर्यावरण बचाने के लिए तीन आर (Three R’s)
- कम उपयोग (Reduce) – हम प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग कम करें।
- पुनः चक्रण (Recycle)-प्रयोग की गई वस्तुओं को पुनः चक्रण के लिए भेजना। जैसे प्लास्टिक, काँच, कागज धातुएँ आदि।
- पुनः प्रयोग (Reuse)-प्रयोग की गई वस्तुओं को पुन: उपयोग करना।
→ संसाधनों के सावधानीपूर्वक उपयोग की आवश्यकता-हमें अपने प्राकृतिक संसाधन जैसे-वन, जल, मृदा आदि का सावधानीपूर्वक प्रयोग करने की आवश्यकता है क्योंकि ये संसाधन असीमित नहीं हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार तथा कुछ अन्य कारणों से मानव जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। इस वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक दबाव बढ़ गया है। हमें प्राकृतिक संसाधनों पर इस दबाव को कम करने के लिए इनके दोहन को सीमित करने की आवश्यकता है ताकि हम आने वाली पीढ़ी को भी धरोहर के रूप में इनका कुछ अंश दे सकें।
→ स्टेकहोल्डर (Stakeholders)-वन्य संसाधनों के विभिन्न दावेदार स्टेक होल्डर कहलाते हैं जो निम्नलिखित हैं-
- वन के अन्दर एवं इनके निकट रहने वाले लोग जो अपनी अनेक आवश्यकताओं के लिए वन पर निर्भर करते हैं। |
- वन विभाग जिसके पास वनों का स्वामित्व है तथा जो वनों से प्राप्त संसाधनों पर नियंत्रण रखते हैं।
- उद्योगपति, जो कि वनों से विभिन्न उद्योगों के संचालन हेतु कच्ची सामग्री प्राप्त करते हैं जैसे-कागज उद्योग, बीड़ी उद्योग, फर्नीचर उद्योग आदि।
- वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी भी प्रकृति का संरक्षण इसकी आरम्भिक अवस्था में करना चाहते हैं।
→ चिपको आन्दोलन (The Chipko Andolan)-इस आन्दोलन का प्रारम्भ उत्तराखण्ड के गढ़वाल जिले के ‘रेनी’ गाँव में सन् 1970 के प्रारम्भिक दशक में एक घटना के रूप में हुआ। स्थानीय लोगों एवं ठेकेदार जिन्हें गाँव के समीप ! के वृक्षों को काटने का अधिकार दे दिया गया था, के बीच विवाद प्रारम्भ हुआ। एक दिन जब ठेकेदार के कर्मी वृक्ष | काटने वहाँ पहुँचे तो वहाँ की महिलाओं ने निडरतापूर्वक वृक्ष काटने का विरोध किया और वृक्षों से लिपट गईं, . फलस्वरूप कर्मियों को वृक्ष काटने का काम बंद करना पड़ा। इसे चिपको आन्दोलन कहते हैं। बाद में अनेक जगहों ! पर बहुत से लोगों ने इसी प्रकार के आन्दोलन चलाकर वृक्षों को काटने से बचाया।
→ जल संरक्षण (Water Conservation)-गिरते हुए भू-जल स्तर तथा पानी की कमी से बचने के लिए जल को बचाने के लिए किए गए प्रयास जल संरक्षण कहलाते हैं। विभिन्न राज्यों में जल संरक्षण एवं जल के सीमित दोहन के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास किये जा रहे हैं।
→ कुल्ह (Kulhs)-यह नहर द्वारा सिंचाई की एक स्थानीय विधि है जिसका प्रचलन हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में किया जाता है।
→ बाँध (Dams)-ये नदियों पर बनाई जाने वाली ऐसी संरचनाएँ हैं जो जल प्रवाह को रोकती हैं और जल का संचय तथा जलविद्युत उत्पादन कर सकती हैं।
→ नदियों पर बाँध बनाने के लाभ-
- बाँधों द्वारा एकत्र जल नहरों द्वारा दूर-दूर तक सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है। बाँध वर्ष भर खेतों के लिए जलापूर्ति निश्चित करने के साथ-साथ कृषि उपज बढ़ाने में सहायक होते हैं।
- बड़े बाँधों का जल उपचारित करने के बाद पेय जल सप्लाई के लिए नगरों में भेजा जाता है।
- तेज बहाव वाली नदियों पर बाँध बनाकर जल को ऊँचाई से गिराकर पन-विद्युत का उत्पादन किया जाता है।
- बाँधों द्वारा सूखा एवं बाढ़ से काफी हद तक बचाव होता है।
→ वर्षाजल संग्रहण (Water Harvesting)-वर्षा के जल को एकत्र करने, इसे पीने, सिंचाई या भू-जल स्तर में वृद्धि के लिए प्रयोग किया जाना वर्षा जल संग्रहण कहलाता है। इसके लिए बहुमंजिली इमारतों की छतों पर बने टैंक, भूमिगत टैंक, बड़े जलाशय, आदि प्रयोग किए जाते हैं। ऐसे जल को तुरन्त पीने हेतु प्रयोग किया जा सकता है।
→ कुछ प्रचलित जल संग्रहण तथा जल परिवहन प्रणालियों के उदाहरण निम्न प्रकार हैं –
- मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश में बंधिस (Bhandhis),
- बिहार में आहर तथा पाइन (Ahars and Pynes),
- राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी (Khadin, Tanks),
- महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल (Bandharas, Tals)
- हिमाचल में कुल्ह (Kulhs),
- कर्नाटक में कट्टा (Kattas),
- जम्मू में कादी क्षेत्र में तालाब (Ponds),
- केरल में सुरंगम (Surangams),
- तमिलनाडु में एरिस (Aris)।
→ कोयला एवं पेट्रोलियम (Coal and Petroleum)-कोयला एवं पेट्रोलियम जीवाश्मी ईंधन के उदाहरण हैं। इनका | निर्माण पृथ्वी के अन्दर लाखों वर्ष पूर्व दबी वनस्पतियों से अत्यधिक दाब एवं ताप के कारण हुआ है। इनके कुछ अंश प्राकृतिक गैस के रूप में पाए जाते हैं। जीवाश्मीय ईंधन अनवीकरणीय स्रोत है। इनकी खपत की वर्तमान दर के अनुसार हमारा ज्ञात पेट्रोलियम भंडार अगले 40 वर्षों में समाप्त हो जाएगा जबकि कोयला भंडार समाप्त होने में लगभग 200 वर्ष लगेंगे। जब कोयला एवं पेट्रोलियम जलाए जाते हैं तो CO2 , जल, SO2, तथा नाइट्रोजन के ऑक्साइड उत्पन्न होते हैं।
→ यदि इनका पूर्ण दहन नहीं होता तो जहरीले हाइड्रोकार्बन्स उत्पन्न होते हैं।
- SO2, फेफड़ों को प्रभावित करके ब्रोंकाइटिस तथा अन्य रोग उत्पन्न करती है। यह वर्षा जल के साथ मिलकर अम्ल वर्षा उत्पन्न करती है।
- नाइट्रोजन आक्साइड श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं तथा अम्ल वर्षा करते हैं।
- CO2 एक अत्यन्त विषैली गैस है। यह हमारे रुधिर में पहुँच कर ऑक्सीजन आपूर्ति को बाधित करती है।
- CO2, यद्यपि विषैली नहीं है किन्तु इसकी अत्यधिक मात्रा पृथ्वी के ऊष्मायन (Global Warming) में वृद्धि करती है।