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Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 3 गोदोहनम्

HBSE 9th Class Sanskrit गोदोहनम् Textbook Questions and Answers

गोदोहनम् (गाय का दूहना) पाठ-परिचय 

प्रस्तुत पाठ नाट्य विधा पर आधारित है। इस पाठ का सम्पादन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतु!हम्’ नामक नाटक से किया गया है। इस नाटक में ऐसे व्यक्ति की कथा का वर्णन है, जो धनवान् तथा सुखी होने की इच्छा से एक माह तक गाय का दूध दूहने से रुक जाता है, जिससे वह महीने के अन्त में गाय के शरीर में एकत्रित पर्याप्त दूध को एक बार में ही बेचकर सम्पत्ति इकट्ठा करने में समर्थ हो जाए।

परन्तु महीने के अन्त में जब वह गाय के पास दूध दूहने के लिए जाता है तो वह दूध की एक बूंद भी नहीं प्राप्त कर पाता। दूध पाने के बदले में वह गाय के प्रहार (मार) से खून से लथपथ हो जाता है। इसके बाद उसे समझ आता है कि प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य को यदि एक महीने के बाद एक साथ किया जाए तो लाभ के स्थान पर हानि ही होती है।

HBSE 9th Class Sanskrit गोदोहनम् Textbook Questions and Answers

I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) काशी विश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
(ख) कार्यमद्यतनीयं यत् तमद्यैव विधीयताम्।
(ग) क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबतितद्रसम।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति में भारतीय संस्कृति एवं पौराणिक आस्था के विषय में बताया गया है। जब मल्लिका तीर्थ यात्रा से वापस आती है तो चन्दन कहता है कि काशी विश्वनाथ की कृपा से मैं तुम्हें शुभ समाचार देना चाहता हूँ। यहाँ भगवान शिव की प्रशंसा की गई है। चन्दन का मानना है कि तीस लीटर दूध की जो माँग ग्राम प्रधान के द्वारा की गई है उनमें भगवान शिव की कृपा है। उनकी कृपा से मैं तीस लीटर दूध बेचकर भरपूर धन प्राप्त कर लूँगा।

(ख) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतु!हम्’ नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। इस सूक्ति में बताया गया है कि अपना कल्याण चाहने वाले व्यक्ति को प्रत्येक कार्य सोच-विचार कर करना चाहिए। व्यक्ति यदि बिना सोचे-विचारे कार्य करता है तो उसका वही हाल होता है जैसा कि चन्दन व मल्लिका का हुआ। कहा भी गया है कि बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए। यदि चन्दन यह सोचता कि यदि समय पर गाय का दूध नहीं निकाला जाएगा तो उसका दूध थन में सूख जाएगा तो उसकी ऐसी स्थिति ही होगी।

(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’नामक नाटक से संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ में से उद्धृत है। लेन-देन का कार्य हमेशा उचित समय पर करना चाहिए। यदि किए जाने वाले कार्य में शीघ्रता नहीं की जाएगी तो उस कार्य को करने का कोई भी फायदा नहीं है। क्योंकि इस सूक्ति में यह बताया गया है कि कार्य यदि शीघ्रता से न किया जाए तो समय उस कार्य के रस को पी जाता है। अर्थात् किए जाने वाले कार्य का लाभ कार्य करने वाले को नहीं होता।

II. अधोलिखितान् नाट्यांशान् पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित नाट्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
1. मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलायाः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत्, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।
चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव । अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि।। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
(क) मया सह तवागमनस्य किं नास्ति?
(ख) वयं कदा प्रत्यागमिष्यामः?
(ग) मल्लिका चन्दनं किम् आदिशति?
(घ) मल्लिका सह काः-काः गच्छन्ति?
(ङ) ‘अहं सर्वमपि’ अत्र अहं सर्वनाम पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तराणि:
(क) मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति।
(ख) वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः।
(ग) मल्लिका चन्दनं आदिशति यत् गृहं व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहन व्यवस्थाञ्च परिपालय।
(घ) मल्लिकया सह चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलाद्याः गच्छन्ति।
(ङ) ‘अहं’ सर्वनामपदं चन्दनाम प्रयुक्तम्।

2. चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धोदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः। मल्लिका – स्वामिन् ! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः।
(क) किं सुरक्षितं न तिष्ठति?
(ख) अत एव किं न क्रियते?
(ग) अधुना किं करिष्यावः?
(घ) अनेन मासान्ते किं प्राप्स्यावः?
(ङ) तिष्ठति’ क्रियापदे कः लकारः?
उत्तराणि:
(क) दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति।
(ख) अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते।
(ग) अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः।
(घ) अनेन मासान्ते अधिकाधिकं दुग्धं प्राप्स्यावः।
(ङ) ‘तिष्ठति’ क्रियापदे लट्लकारः अस्ति।

3. चन्दनः
(यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा, धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनच पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आशर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)
(क) धेनुः चन्दनं केन प्रहरति?
(ख) पात्रेण सह कः पतति?
(ग) नन्दिनी पादप्रहारेण चन्दनं कीदृशं करोति?
(घ) चीत्कारं कुर्वन कः पतति? ।
(ङ) ‘ताडयित्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः?
उत्तराणि:
(क) धेनुः चन्दनं पृष्ठपादेन प्रहरति।
(ख) पात्रेण सह चन्दनः पतति।
(ग) नन्दिनी पादप्रहारेण चन्दनं रक्तरअितं करोति।
(घ) चीत्कारं कुर्वन चन्दनः पतति।
(ङ) ‘ताडयित्वा’ इति पदे क्त्वा प्रत्ययः।

III. अधोलिखितानां अव्ययानां सहायतया रिक्तस्थानानि पूरयत
(निम्नलिखित अव्ययों की सहायता से रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए)
च, यथा, विना, अपि, प्रति
(क) मल्लिके! आगच्छ कुम्भकारं ……….. चलावः ।
(ख) दुग्धार्थं पात्र प्रबन्धः ………. करणीयः।
(ग) मूल्यं ………… तु एकमपि घटं न दास्यामि।
(घ) जीवनं भङ्गरं सर्वं ……. एष मृत्तिका घटः।
(ङ) आदानस्य प्रदानस्य कर्त्तव्यस्य ………… कर्मणः।
उत्तराणि:
(क) प्रति,
(ख) अपि,
(ग) विना,
(घ) यथा,
(ङ) च।

IV. विशेषणपदम्-विशेष्य पदम् च पृथक् कृत्वा लिखत
(विशेषण-विशेष्य पदों को पृथक् करके लिखिए)
(क) मन्दस्वरेण शिवस्तुति
(ख) महोत्सवः
(ग) त्रिंशत सेटकानि
(घ) अत्युत्तमः विचारः
(ङ) अधिकाधिकं दुग्धं
उत्तराणि:
विशेषण – विशेष्य
मन्दस्वरेण – शिवस्तुति
महा – उत्सवः
त्रिंशत् – सेटकानि
अत्युत्तमः – अत्युत्तमः
अधिकाधिकं – दुग्धम्

V. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुर्पु वैकल्पिक उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. मल्लिका सखीभिः सह कुत्र गच्छति?
(i) गृह यात्रां
(ii) मन्दिरयात्रां
(iii) तीर्थायात्रां
(iv) धर्मयात्रां
उत्तरम्:
(iv) धर्मयात्रां

2. घटान् कः रचयति?
(i) दुग्धकारः
(ii) दधिकारः
(iii) कुम्भकारः
(iv) घटकारः
उत्तरम्:
(iii) कुम्भकारः

3. नन्दन्याः पादप्रहारैः चन्दनः कीदृशः अभवत्?
(i) पङ्गः
(ii) खञ्जः
(iii)रुग्णः
(iv) रक्तरञ्जितः
उत्तरम्:
(iv) रक्तरञ्जितः

4. ते के शिवाः सन्तु?
(i) पन्थानः
(ii) यात्रा
(iii) धेनुः
(iv) दुग्धः
उत्तरम्:
(i) पन्थानः

5. सुविचार्य किं विधातव्यम् ?
(i) फलं
(ii) धनं
(iii) कार्य
(iv) जनं
उत्तरम्:
(iii) कार्य

6. ‘नास्ति’ पदस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(i) ना + स्ति
(ii) न + अस्ति
(iii) न + अस्ति
(iv) ना + अस्ति
उत्तरम्:
(ii) न + अस्ति

7. ‘सह’ इति उपपदयोगे का विभक्तिः ?
(i) पञ्चमी
(ii) चतुर्थी
(iii) द्वितीया
(iv) तृतीया
उत्तरम्
(iv) तृतीया

8. ‘प्रतिदिन’ इति पदे कः समासः?
(i) द्विगुः
(ii) तत्पुरुषः
(iii) अव्ययीभावः
(iv) बहुव्रीहिः
उत्तरम्:
(iii) अव्ययीभावः

9. ‘शोभनम्’ इति पदस्य विलोमपदं किम्?
(i) सुन्दरम्
(ii) अशोभनम्
(iii) अशान्तम्
(iv) नशान्तम्
उत्तरम्:
(ii) अशोभनम्

10. ‘क्षिप्रम्’ इति पदस्य पर्यायपदम् किम् ?
(i) शीघ्रम्
(ii) विलम्बम्
(iii) अशीघ्रम्
(iv) अक्षिप्रम्
उत्तरम्:
(i) शीघ्रम्

योग्यताविस्तारः

‘गोदोहनम्’ एकांकी में एक ऐसे व्यक्ति का कथानक है जो धनवान और सुखी बनने की इच्छा से अपनी गाय से एक महीने तक दूध निकालना बन्द कर देता है, ताकि महीने भर के दूध को एक साथ निकालकर बेचकर धनवान बन सके। इस प्रकार एक मास पश्चात् जब वह गाय को दुहने का प्रयास करता है तब अत्यधिक दूध का तो कहना ही क्या। उसे दूध की एक बूंद भी नहीं मिलती, एक साथ दूध के स्थान पर उसे मिलते हैं गाय के पैरों से प्रहार जिससे आहत और रक्तरञ्जित होने पर वह ज़मीन पर गिर पड़ता है। इस घटना से वहाँ उपस्थित सभी यह समझ जाते हैं कि यथासमय किया हुआ कार्य ही फलदायी होता है।

भाव-विस्तारः

उपायं चिन्तयेत् प्राज्ञस्तथापायं च चिन्तयेत् ।
पश्यतो बकमूर्खस्य नकुलेन हताः बकाः॥

बुद्धिमान व्यक्ति उपाय पर विचार करते हुए अपाय अर्थात् उपाय से होने वाली हानि के विषय में भी सोचे हानिरहित उपाय ही कार्य सिद्ध करता है। अपाय युक्त उपाय नहीं जैसे कि अपने बच्चों को साँप द्वारा खाए जाते हुए देखकर एक बगुले ने नेवले का प्रबन्ध साँप को खाने के लिए किया जो कि साँप को खाने के साथ-साथ सभी बगुलों को भी बच्चों सहित खा गया। अतः ऐसा , उपाय सदैव हानिकारक होता है, जिसके अपाय पर विचार न किया जाए।

“अविवेकः परमापदां पदम”
गोदोहनम्-एकांकी पढ़ाते समय आधुनिक परिवेश से जोड़ें तथा छात्रों को समझाएँ कि कोई भी कार्य यदि नियत समय पर न करके कई दिनों के पश्चात् एक साथ करने के लिए संगृहित किया जाता रहता है तो उससे होने वाला लाभ-हानि में परिवर्तित हो सकता है।

अतः हमें सदैव अपने सभी कार्य यथासमय करने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाठ की कथा नाटकीयता के साथ ही छात्रों को यह भी बताएँ कि इस नाटक से तात्कालिक समाज का परिचय भी मिलता है कि घर की व्यवस्था स्त्री-पुरुष मिलकर ही करते थे तथा स्त्री को स्वतन्त्र निर्णय लेने का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त था।

HBSE 9th Class Sanskrit गोदोहनम् Important Questions and Answers

कल्पतरूः  गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ
(प्रथमं दृश्यम्)
(मल्लिका मोदकानि रचयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्ततिं करोति)
(ततः प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दनः।)
1. चन्दनः – अहा! सुगन्धस्तु मनोहरः (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्नः भूत्वा) आस्वादयामि तावत्। (मोदकं गृहीतुमिच्छति)
मल्लिका – (सक्रोधम्) विरम। विरम। मा स्पृश! एतानि मोदकानि।
चन्दनः – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिवालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षमः अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्? ।
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति।
चन्दनः – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि।
मल्लिका – भो! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखिभिः सह श्वः प्रातः काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गमिष्यामि, तत्र गङ्गास्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्यामः।
चन्दनः – सखिभिः सह! न मया सह! (विषादं नाटयति)
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलायाः सर्वाः गच्छन्ति। अतः, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्यामः। तावत, गृह व्यवस्था, धेनोः दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय।

शब्दार्थ-गो = गाय। मन्दस्वरेण = धीमी आवाज़ में। सुगन्धः = खुशबू। मनोहरः = मनमोहक। मोदकानि = लड्डुओं को। विरम = रुको। क्रुध्यसि = नाराज हो रहे हो। जिवालोलुपतां = जीभ का लालच। अक्षमः = असमर्थ। सम्यग् = अच्छी प्रकार से। धर्मयात्रा = तीर्थयात्रा। विषादं = दुख का। दुग्धदोहनम् = दूध दूहना।।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-इस नाट्यांश में चन्दन तथा मल्लिका की आपसी बातचीत से पता चलता है कि मल्लिका तीर्थयात्रा पर जाना चाहती है तथा चन्दन घर पर रुकेगा।

(पहला दृश्य)

सरलार्थ-(मल्लिका लड्डुओं को बनाते हुए धीमी आवाज में शिवस्तुति कर रही है।) (इसके बाद लड्डू की खुशबू का अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन मञ्च पर प्रवेश करता है।)
चन्दन-अरे! खुशबू तो बहुत मनमोहक है (देखकर) अरे! क्या लड्डू बनाए जा रहे हैं। (प्रसन्न होकर) तो इनका स्वाद लेता हूँ। (लड्डु लेने की इच्छा करता है।) __

मल्लिका–(क्रोध के साथ) रुको! रुको! स्पर्श मत करो। ये लड्डू हैं।

चन्दन क्यों नाराज़ होती हो। तुम्हारे हाथों से बने हुए इन लड्डुओं को देखकर मैं जीभ के स्वाद को रोकने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती? ।

मल्लिका अच्छी प्रकार से जानती हूँ स्वामी! परन्तु ये लड्डु पूजा के लिए हैं।

चन्दन-तो शीघ्र ही पूजा सम्पन्न करो और प्रसाद दो।

मल्लिका-अरे! यहाँ पूजन नहीं होगा। मैं कल सुबह अपनी सखियों के साथ काशी विश्वनाथ मन्दिर जा रही हूँ, हम वहाँ गङ्गा स्नान व तीर्थयात्रा करेंगे।

चन्दन-सखियों के साथ। मेरे साथ नहीं (दुःखी होने का नाटक करता है।)

मल्लिका–हाँ। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी तथा कपिला आदि सभी जा रही हैं। इसलिए मेरे साथ तुम्हारे जाने का औचित्य नहीं है। हम लोग सप्ताह के अन्त में वापस आ जाएंगे। तब तुम घर की व्यवस्था तथा गाय के दूहने आदि की व्यवस्था करोगे।

भावार्थ-मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थ यात्रा पर जा रही है तथा चन्दन घर पर रुककर गाय के लिए चारा, पानी तथा दूध दूहने आदि का कार्य करेगा।

(द्वितीयं दृश्यम्)
2. चन्दनः – अस्तु। गच्छ। सखिभिः सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। शिवास्ते सन्तु पन्थानः।
चन्दनः – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। दुग्धदोहनं कृत्वा ततः स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। (स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्तः नन्दिन्याः समीपं गच्छति)
उमा – मातुलानि! मातुलानि!
चन्दनः – उमे! अहं तु मातुलः। तव मातुलानि तु गङ्गास्नानार्थ काशीं गता अस्ति। कथय! किं ते प्रियं करवाणि?
उमा – मातुल! पितामहः कथयति, मासानन्तरम् अस्मत् गृहे महोत्सवः भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अपेक्षते। एषा व्यवस्था भवद्भिः करणीया।
चन्दनः – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् ! शोभनम् । दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्।
उमा – धन्यवादः मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता)

शब्दार्थ-स्वप्रातराशस्य = अपने नाश्ते (सुबह) की। मातुलानि = मामी। मातुल = मामा। मासानन्तरम् = एक महीने के बाद। त्रिशत-सेटकमितं = तीस लीटर। याम्यधुना (यामि + अधुना) = अब जा रही हूँ। निर्गता = निकल जाती है। .

प्रसंगप्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर चली जाती है। उधर उमा चन्दन से तीस लीटर दूध की व्यवस्था करने के लिए कहती है।

(दूसरा दृश्य)

सरलार्थ-चन्दन ठीक है। तुम अपनी सखियों के साथ तीर्थयात्रा पर जाओ और खुश रहो। मैं सारा कुछ कर लूँगा। तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी हो। अर्थात् तुम्हारी यात्रा मंगलमय हो।

चन्दन-मल्लिका तो तीर्थयात्रा पर चली गई। तो अब मैं दूध दूहने के बाद सुबह के नाश्ते की व्यवस्था करूँगा। (स्त्री का वेश धारण करके, दूध का बर्तन हाथ में लेकर नन्दिनी (गाय) के पास जाता है।)

उमा-मामी! मामी!

चन्दन हे उमा! मैं तो मामा हूँ। तुम्हारी मामी तो गङ्गा स्नान करने के लिए काशी गई है। बताओ तुम्हारा क्या प्रिय कार्य करूँ? अर्थात् तुम्हारे लिए क्या करूँ।

उमा-मामा! दादा जी ने कहा है कि इस महीने के अन्त में मेरे घर महोत्सव होगा। उसमें तीस लीटर दूध की आवश्यकता है। यह व्यवस्था आपको करनी चाहिए।

चन्दन-(प्रसन्न मन से) तीस लीटर दूध। बहुत अच्छा। दूध की व्यवस्था हो जाएगी, ऐसा तुम अपने दादा जी से कह देना। उमा-धन्यवाद मामाजी। अब मैं जाती हूँ। (वह निकल जाती है।)

भावार्थ-उमा ने चन्दन (मामा) से बताया कि महीने के अन्त में उसके घर उत्सव होने वाला है जिसमें तीस लीटर दूध की व्यवस्था करनी है। दूध की व्यवस्था की बात सुनकर चन्दन को खुशी होती है।

(तृतीयं दृश्यम्)
3. चन्दनः – (प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गुलिषु गणयन्) अहो! सेटक-त्रिशतकानि पयांसि! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये (नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिकः भविष्यामि।
(प्रसन्नः सः धेनोः बहुसेवां करोति)
चन्दनः – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति। इदानीं किं करवाणि? भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि।
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति)
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन् ! प्रत्यागता अहम् । आस्वादय प्रसादम्।
(चन्दनः मोदकानि खादति वदति च)
चन्दनः – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि।
मल्लिका – (साश्चर्यम्) एवम् । धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम् ?

शब्दार्थ-अङ्गुलिषु = अङ्गुलियों पर। पयांसि = दूध । लप्स्ये = प्राप्त कर लूँगा। दोहनं = दूध दूहने का कार्य। करवाणि = करूँ। प्रत्यागच्छति (प्रति + आगच्छति) = वापस आ जाती है। साश्चर्यम् = आश्चर्य के साथ।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश तीस लीटर दूध प्राप्त करने के लिए चन्दन नन्दिनी की खूब सेवा करता है। एक सप्ताह के बाद मल्लिका वापस आती है। इसी प्रसंग का वर्णन करते हुए इस नाट्यांश में कहा गया है कि

(तीसरा दृश्य)

सरलार्थ चन्दन-(प्रसन्न होकर अङ्गुलियों पर गिनते हुए) अरे! तीस लीटर दूध! इससे तो मैं बहुत-सा धन प्राप्त करूँगा। (नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से मैं धनवान हो जाऊँगा। (खुश होकर वह नन्दिनी की खूब सेवा करता है।)

चन्दन-(सोचकर) महीने के अन्त में ही दूध की आवश्यकता होगी। यदि मैं प्रतिदिन दूध दूहूँगा तो दूध सुरक्षित नहीं रहेगा। इस समय क्या करूँ। ठीक है, महीने के अन्त में ही पूरी तरह से दूध दूहूँगा। अर्थात् रोज-रोज दूध दूहने से दूध रखने पर खराब हो जाएगा इसलिए महीने के अन्त में एक बार में सारा दूध दूह लूँगा।
(इस प्रकार से सात दिन बीत जाते हैं। सप्ताह के अन्त में मल्लिका वापस आ जाती है।)

मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं वापस आ गई हूँ। प्रसाद का स्वाद लीजिए। (चन्दन लड्डुओं को खाता है और बोलता है।)

चन्दन हे मल्लिका! तुम्हारी यात्रा पूरी तरह से सफल हो गई है? काशी विश्वनाथ (शिवजी) की कृपा से तुम्हें बता रहा हूँ।

मल्लिका-(आश्चर्य के साथ) ऐसा। तीर्थ यात्रा के अतिरिक्त और क्या प्रिय हो सकता है।

भावार्थ-चन्दन सोचता है कि यदि मैं रोज-रोज गाय का दूध दूहूँगा तो प्रतिदिन जो दूध होगा उसे कैसे रखूगा क्योंकि दूध तो खराब हो जाएगा। इसलिए उसने सोचा कि तीस दिन के बाद इकट्ठे गाय को दूहूँगा। इसलिए एक सप्ताह तक उसने गाय से दूध दूहा ही नहीं।

4. चन्दनः – ग्रामप्रमुखस्य गृहे महोत्सवः मासान्ते भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभिः दातव्यम् अस्ति।
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुतः प्राप्स्यामः।
चन्दनः – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयामः चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्यावः।
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतमः। अत्युत्तमः विचारः। अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्याः सेवाम् एव करिष्यावः। अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्यावः। (द्धावेव धेनोः सेवायां निरतौ भवतः। अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयतः। कदाचित विषाणयोः तैलं लेपयतः तिलकं धारयतः, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयतः)
चन्दनः – मल्लिके! आगच्छ। कुम्भकारं प्रति चलावः। दुग्धार्थं पात्रप्रबन्धोऽपि करणीयः। (दावेव निर्गतौ)

शब्दार्थ-दातव्यम् = देना है। प्राप्स्यामः = प्राप्त करेंगे। विचारय = विचार करो। धोक्ष्यावः = दुहेंगे। चतुरतमः = बहुत ही चतुर हो। अत्युत्तमः = बहुत ही उत्तम। विहाय = छोड़कर। दावेव (द्वौ + एव) = दोनों ही। निरतौ = जुट गए। घासादिकं = घास आदि को। विषाणयोः = दोनों सींगों पर। नीराजनेन = आरती के द्वारा। पात्र प्रबन्धः = बर्तन की व्यवस्था। निर्गतौ = निकल गए।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका भी चन्दन की सलाह मान लेती है। दोनों गाय की खूब सेवा करते हैं। अन्त में दोनों तीस लीटर दूध रखने के लिए बर्तन लेने कुम्हार के घर जाते हैं।

सरलार्थ-चन्दन-ग्राम प्रमुख (सरपंच) के घर महीने के अन्त में महोत्सव होगा। हमें वहाँ पर तीस लीटर दूध देना है।

मल्लिका-परन्तु इतनी अधिक मात्रा में दूध कहाँ से प्राप्त करेंगे।

चन्दन-मल्लिका विचार करो। यदि प्रतिदिन दूध दूहकर हम उसे रखते हैं तो सुरक्षित नहीं रहेगा इसलिए दूध दूहेंगे ही नहीं। उत्सव के दिन ही सारा दूध दूह लेंगे।

मल्लिका-स्वामी! आप तो बहुत ही चतुर हैं। आपका विचार बहुत ही उत्तम है। अब दूध दूहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। इससे महीने के अन्त में अधिक-से-अधिक दूध प्राप्त करेंगे।
(दोनों ही गाय की सेवा में जुट गए। इस क्रम में घास आदि तथा गुड़ आदि खिलाते हैं। कभी-कभी सींगों में तेल लगाकर तिलक लगाते हैं तथा आरती भी करते हुए गाय को प्रसन्न करते हैं।)

चन्दन हे मल्लिका! आओ। कुम्हार के पास चलें। दूध के लिए बर्तन का भी प्रबन्ध करना है। (दोनों निकल जाते हैं।)

भावार्थ-चन्दन तथा मल्लिका एक महीने के लिए नन्दिनी (गाय) की खूब सेवा करने लगे। वे उसके सींगों पर तेल लगाते थे तथा तिलक लगाकर उसकी आरती भी करते थे।

(चतुर्थ दृश्यम्)
5. कुम्भकारः- (घटरचनायां लीनः गायति)
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतोः रचयामि घटानहम् ।
जीवनं भङ्गुरं सर्वं यथैष मृत्तिकाघटः॥
चन्दनः – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि?
देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान। पञ्चशतोत्तर-रूप्यकाणि च देहि।
चन्दनः – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते।
देवेशः – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि।
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्।
देवेशः – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। नयतु यथाभिलषितान् घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु।
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि।

अन्वय-यथा एष मृत्तिकाघटः (तथा) सर्वं जीवनं भङ्गुरं ज्ञात्वाऽपि अहं जीविकाहेतोः घटान् रचयामि।

शब्दार्थ-जीविकाहेतोः = आजीविका के लिए। भङ्गरम् = टूटकर समाप्त होने वाला। पञ्चदश = पन्द्रह। विक्रयणाय = बेचने के लिए। पञ्चशतोत्तर = एक सौ पाँच (105)। क्षम्यताम् = क्षमा करो। स्वाभूषणम् = अपना आभूषण। आभूषण विहीना = आभूषण से रहित। यथाभिलषितान् = जितनी तुम्हारी इच्छा है। धन्योऽसि = आप धन्य हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-चन्दन तथा मल्लिका दोनों कुम्हार के पास से उधार में ही पन्द्रह घड़े लेकर आते हैं।

(चौथा दृश्य)
सरलार्थ कुम्हार-(घड़ा बनाने के कार्य में तल्लीन होकर गाता है) जैसे इस मिट्टी के घड़े का जीवन क्षण भङ्गुर है अर्थात् यह टूटकर समाप्त होने वाला है। इस बात को जानते हुए भी मैं इन घड़ों को बना रहा हूँ। वैसे मनुष्य का जीवन भी क्षणभङ्गर है।

चन्दन हे तात! नमस्कार करता हूँ। मैं पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। क्या दोगे?

देवेश-क्यों नहीं? ये सभी बेचने के लिए ही हैं। घड़ों को ले लो और एक सौ पाँच रुपए दे दो।

चन्दन-बहुत अच्छा। परन्तु मूल्य तो दूध बेचकर ही दे सकता हूँ।

देवेश-क्षमा करो पुत्र! मूल्य के बिना तो एक घड़ा भी नहीं दूंगा।

मल्लिका-(अपना आभूषण देना चाहती है) हे तात! यदि अभी मूल्य की आवश्यकता है तो इस आभूषण को ले लो।

देवेश हे पुत्री! मैं पाप कर्म नहीं करता हूँ। मैं तुम्हें किसी भी रूप में आभूषण से रहित नहीं करना चाहता। तुम्हें जितने घड़ों की इच्छा है उतने ले लो। दूध बेचकर ही घड़ों का मूल्य चुका देना।

दोनों हे तात! आप धन्य हैं, धन्य हैं।

भावार्थ मल्लिका व चन्दन के पास घड़े खरीदने के लिए रुपए नहीं हैं। इसलिए उधार में ही कुम्हार के यहाँ से घड़ा लेकर आते हैं। दूध बेचकर जो रकम मिलेगी उससे वे घड़ों का मूल्य चुकाएंगे।

(पञ्चमं दृश्यम्)
6. (मासानन्तरं सन्ध्याकालः। एकत्र रिक्ताः नूतनघटाः सन्ति। दुग्धक्रेतारः अन्ये च ग्रामवासिनः अपरत्र आसीनाः)
चन्दनः – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ।
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्।
चन्दनः – (यदा धेनोः समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनुः पृष्ठपादेन प्रहरति। चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। किं जातं ते? (पुनः प्रयासं करोति) (नन्दिनी च पुनः पुनः पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति) हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आश्चर्येण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति)
मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम् ? कथं त्वं रक्तरञ्जितः? ।
चन्दनः – धेनुः दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्।
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनुः दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।)

शब्दार्थ-रिक्ताः = खाली। नूतनघटाः = नए घड़े। अपरत्र = दूसरी तरफ। आसीनाः = बैठे हैं। मङ्गलाचरणं = किसी भी कार्य को करने से पहले किया जाने वाला पूजा-पाठ आदि शुभ काम। विधाय = करके। सत्वरम् = तेजी से। आरभस्व = आरंभ करें। पृष्ठपादेन = पिछले पैर से। जातं = हुआ हो गया। रक्तरञ्जितम् = खून से (लथपथ) सना। चीत्कारं = चिल्लाते। अन्योन्यं = आपस में एक-दूसरे को। झटिति = तुरंत। दोहनप्रक्रियाम् = दूहने की प्रक्रिया को। आरभमाणम् = आरंभ करते ही। वात्सल्येन = सन्तान को किए जाने वाले प्यार के भाव से। आकार्य = पुकारकर। दुग्धहीना एव = दूध से रहित ही।

प्रसंग प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्दूहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश-एक महीना पूरा होने पर चन्दन नन्दिनी की पूजा करके उसे दूध दूहने के लिए जाता है। परन्तु नन्दिनी उसे पैरों से मारकर घायल कर देती है।

(पाँचवां दृश्य)

सरलार्थ (एक महीने के बाद सन्ध्या का समय। एक तरफ खाली नए घड़े हैं। दूसरी तरफ दूध खरीदने वाले तथा अन्य गाँव के निवासी बैठे हैं।).

चन्दन-(गाय को प्रणाम करके मङ्गलाचरण करता है तथा मल्लिका को बुलाता है।) हे

मल्लिका! जल्दी आओ। मल्लिका-आती हूँ नाथ! तब तक आप गाय को दूहना शुरू करें।

चन्दन-(जब गाय के समीप जाकर दूध दूहना चाहता है, तभी गाय अपने पिछले पैर से प्रहार करती है और चन्दन बर्तन के साथ गिर जाता है।) वह कहता है हे नन्दिनी! दूध दो। तुम्हें क्या हो गया? (फिर से कोशिश करता है।) (नन्दिनी पुनः पुनः पैर से प्रहार करके चन्दन को खून से लथपथ कर देती है।) हाय! मैं मारा गया। (चिल्लाते हुए गिर जाता है।) (सभी आश्चर्य के साथ चन्दन तथा एक-दूसरे को देखते हैं।)

मल्लिका-(चिल्लाने की आवाज़ सुनकर तुरन्त प्रवेश करती है।) हे नाथ! क्या हो गया? तुम खून से लथपथ कैसे हो गए?

चन्दन-गाय दूध दूहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दूहने की प्रक्रिया को शुरू करने से पहले ही मुझे मार रही है। (मल्लिका गाय को स्नेह के साथ सन्तान के प्रति किए जाने वाले प्रेम भाव से बुलाती है तथा दूध दूहने की कोशिश करती है। किन्तु ग्राय दूध दिए बिना ही चली जाती है।)

भावार्थ-एक महीने के बाद पूजा करने के बाद चन्दन जब गाय को दूहने के लिए जाता है तो गाय चन्दन को अपने पैरों से प्रहार करके घायल कर देती है। क्योंकि एक महीने के बाद गाय ने दूध देना बन्द कर दिया था। प्रतिदिन न दूहे जाने के कारण उसके थनों से दूध सूख गया।

7. मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं कृतम्। सा पीडम् अनुभवति। अत एव ताडयति।
चन्दन – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभिः सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं
न कृतम् । अत एव, दुग्धं शुष्कं जातम् । सत्यमेव उक्तम्
कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्।
विपरीते गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम् ॥
मल्लिका – आम् भर्तः! सत्यमेव । मयापि पठितं यत्
सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाटिणा।
यः करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानवः ॥
किन्तु प्रत्यक्षतया अद्य एव अनुभूतम् एतत्।
सर्वे – दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम् । यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्।
(जवनिका पतनम्)
(सर्वे मिलित्वा गायन्ति।)
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः।
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम् ॥

अन्वय
(i) यत् अद्यतनीयं कार्यं तत् अद्य एव विधीयताम्। यस्य गतिः विपरीते सः ध्रुवं कष्टं लभते।।
(ii) कल्याण काङ्क्षिणा कार्यं सुविचार्य एव विधातव्यम् । यः मानवः एतत् अविचार्य करोति सः विषीदति।
(iii) क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च अकर्मणः तद्रसं कालः पिबति।

शब्दार्थ-पीडम् अनुभवति = पीड़ा का अनुभव करती है। शुष्कम् = सूखा। ध्रुवम् = निश्चित रूप से। मयापि = मैंने भी। कल्याण काक्षिणा = कल्याण चाहने वाले के द्वारा। विषीदति = दुखी होता है। प्रत्यक्षतया = प्रत्यक्ष रूप से। जवनिका = पर्दा। पतनम् = गिरता है। क्षिप्रम् = शीघ्रता से।

प्रसंग-प्रस्तुत नाट्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘गोदोहनम्’ से लिया गया है। इस पाठ का संकलन श्री कृष्णचन्द्र त्रिपाठी द्वारा रचित ‘चतुर्म्यहम्’ से किया गया है।

सन्दर्भ-निर्देश मल्लिका तथा चन्दन को अपने किए पर पछतावा होता है क्योंकि जो कार्य जिस समय करने योग्य हो उसी समय करना चाहिए। इसी बात को प्रस्तुत नाट्यांश में वर्णित किया गया है।

सरलार्थ-मल्लिका-(चन्दन के प्रति) हे स्वामी! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया है कि हमने एक महीने के बाद गाय को दूहा है, इससे वह कष्ट महसूस कर रही है। इसलिए वह मार रही है।

चन्दन हे देवी! मुझे भी पता चल गया कि हमने पूरी तरह अनुचित कार्य किया है। पूरे महीने तक हमने गाय को नहीं दूहा। इसलिए उसका दूध सूख गया। ठीक ही कहा गया है जो कार्य आज करने योग्य है उसे आज ही करना चाहिए जो इसके विपरीत करता है उसे निश्चित रूप से कष्ट.मिलता है अर्थात् जो कार्य जिस समय करने योग्य है उसे उसी समय करना चाहिए। विलम्ब से करने पर दुःख की प्राप्ति होती है।

मल्लिका-हाँ स्वामी! ठीक ही है। मैंने भी पढ़ा है कि जो मनुष्य अपना कल्याण चाहता है उसे हर कार्य को अच्छी तरह से सोच-विचार कर करना चाहिए। इसके विपरीत जो बिना विचार किए कार्य करता है उसे दुःख की प्राप्ति होती है। कहा भी गया है कि “बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए।”
आज ही इस बात की प्रत्यक्ष रूप से अनुभूति हो गई है। सर्वे दिन के कार्य को उसी दिन ही करना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चय ही कष्ट पाता है।
(पर्दा गिरता है)
(सभी मिलकर गाते हैं।)

लेने-देने के कार्य में शीघ्रता न करने वाले कामों के रस को समय पी जाता है। अर्थात् लेन-देन के विलम्ब से करने पर समय उस कार्य के महत्व को समाप्त कर देता है। विलम्ब से कार्य करने का कोई फायदा नहीं होता।

अभ्यासः

1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) मल्लिका पूजार्थं सखीभिः सह कुत्र गच्छति स्म?
(ख) उमायाः पितामहेन कति सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते स्म?
(ग) कुम्भकारः घटान् किमर्थं रचयति? ।
(घ) कानि चन्दनस्य जिह्वालोलपतां वर्धन्ते स्म?
(ङ) नन्दिन्याः पादप्रहारैः कः रक्तरअितः अभवत्?
उत्तराणि:
(क) धर्मयात्राम्,
(ख) त्रिशत्,
(ग) जीविकाहेतोः,
(घ) मोदकानि,
(ङ) चन्दनः।

2. पूर्णवाक्येन उत्तरं लिखत
(पूर्ण वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) मल्लिका चन्दनच मासपर्यन्तं धेनोः कथम् अकुरुताम्?
(ख) कालः कस्य रसं पिबति?
(ग) घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातुं प्रयतते तदा कुम्भकारः किं वदति?
(घ) मल्लिकया किं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविकं कारणं ज्ञातम्?
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य किं कारणमासीत्?
उत्तराणि:
(क) मल्लिका चन्दनश्च मासपर्यन्तं अत्यनुचितं अकुरुताम् यत् धेनोः दोहनं कृतम्।
(ख) कालः क्षिप्रम् अक्रियमाणस्य रसं पिबति।
(ग). घटमूल्यार्थं यदा मल्लिका स्वाभूषणं दातु प्रयतते तदा कुम्भकारः वदति यत्-पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्।
(घ) मल्लिकया मासपर्यन्तं धेनोः दोहनं दृष्ट्वा धेनोः ताडनस्य वास्तविक कारणं ज्ञातम्।
(ङ) मासपर्यन्तं धेनोः अदोहनस्य सम्पत्तिम् अर्जनंकारणम् अस्ति।

3. रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) मल्लिका सखीभिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म।
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव स्वप्रातराशस्य प्रबन्धम् अकरोत्।
(ग) मोदकानि पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्।
(घ) मल्लिका स्वपतिं चतुरतमं मन्यते।
(ङ) नन्दिनी पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति।
उत्तराणि:
(क). मल्लिका कानिः सह धर्मयात्रायै गच्छति स्म?
(ख) चन्दनः दुग्धदोहनं कृत्वा एव कस्य प्रबन्धम् अकरोत् ?
(ग) कानिः पूजानिमित्तानि रचितानि आसन्?
(घ) मल्लिका स्वपतिं कीदृशं मन्यते?
(ङ) कां पादाभ्यां ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्जितं करोति?

4. मझूषायाः सहायतया भावार्थे रिक्तस्थानानि पूरयत
(मञ्जूषा की सहायता से रिक्त स्थानों को भरें)
गृहव्यवस्थायै, उत्पादयेत्, समर्थकः, धर्मयात्रायाः, मङ्गलकामनाम्, कल्याणकारिणः
यदा चन्दनः स्वपल्या काशीविश्वनाथं प्रति … विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं …………. कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते ………… कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् ………… भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधाः तव कृते समस्यां न ………… । एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः …………… आसीत्। उत्तराणि-यदा चन्दनः स्वपल्या काशीविश्वनाथं प्रति धर्मयात्रायाः विषये जानाति तदा सः क्रोधितः न भवति यत् तस्याः पत्नी तं गृहव्यवस्थायै कथयित्वा सखीभिः सह भ्रमणाय गच्छति अपि तु तस्याः यात्रायाः कृते मङ्गलकामनाम् कुर्वन् कथयति यत् तव मार्गाः शिवाः अर्थात् कल्याणकारिणः भवन्तु। मार्गे काचिदपि बाधाः तव कृते समस्यां न उत्पादयेत्। एतेन सिध्यति यत् चन्दनः नारीस्वतन्त्रतायाः समर्थकः आसीत्।

5. घटनाक्रमानुसार लिखत
(घटनाक्रमानुसार लिखें)
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थं दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति।
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धुं प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रां समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
उत्तराणि:
(घ) मल्लिका पूजार्थं मोदकानि रचयति।
(क) सा सखीभिः सह तीर्थयात्रायै काशीविश्वनाथमन्दिरं प्रति गच्छति।
(ग) उमा मासान्ते उत्सवार्थ दुग्धस्य आवश्यकताविषये चन्दनं सूचयति।
(छ) चन्दनः उत्सवसमये अधिकं दुग्धं प्राप्तुं मासपर्यंन्तं दोहनं न करोति।
(ज) चन्दनस्य पत्नी तीर्थयात्रा समाप्य गृहं प्रत्यागच्छति।
(ख) उभौ नन्दिन्याः सर्वविधपरिचर्यां कुरुतः।
(ङ) उत्सवदिने यदा दोग्धु प्रयत्नं करोति तदा नन्दिनी पादेन प्रहरति।
(च) कार्याणि समये करणीयानि इति चन्दनः नन्दिन्याः पादप्रहारेण अवगच्छति।

6. अधोलिखितानि वाक्यानि कः कं प्रति कथयति इति प्रदत्तस्थाने लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को कौन किसे कहता है, दिए गए स्थानों में लिखिए)
उदाहरणम्                                                             कः/का                 कं/काम्
स्वामिन् ! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्।              मल्लिका              चन्दनं प्रति
(क) धन्यवाद मातुल! याम्यधुना।                                 …………………..       …………………..
(ख) त्रिसेटकमितं दुग्धम्। शोभनम् । व्यवस्था भविष्यति। …………………..        …………………..
(ग) मूल्यं तु दुग्धं विक्रीयैव दातुं शक्यते।                        …………………..      …………………..
(घ) पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि।                                 …………………..      …………………..
(ङ) देवि! मयापि ज्ञातं यदस्माभिः सर्वथानुचितं कृतम्।       …………………..       …………………..
उत्तराणि:

7. (अ) पाठस्य आधारेण प्रदत्तपदानां सन्धिं/सन्धिच्छेदं वा कुरुत
(पाठ के आधार पर दिए गए शब्दों की सन्धि अथवा सन्धिविच्छेद कीजिए)
(क) शिवास्ते = ……………………….. + ………………………….
(ख) मनः हरः = ……………………….. + ………………………….
(ग) सप्ताहान्ते = ……………………….. + ………………………….
(घ) नेच्छामि = ……………………….. + ………………………….
(ङ) अत्युत्तमः = ……………………….. + ………………………….
उत्तराणि:
(क) शिवास्ते = शिवः + ते
(ख) मनः हरः = मनोहरः ।
(ग) सप्ताहान्ते = सप्ताह + अन्ते
(घ) नेच्छामि = न + इच्छामि
(ङ) अत्युत्तमः = अति + उत्तमः

(आ) पाठाधारेण अधोलिखितपदानां प्रकृति-प्रत्ययं च संयोज्य/विभज्य वा लिखत
(पाठ के आधार पर निम्नलिखित प्रकृति-प्रत्यय को जोड़िए व विभाजित करके लिखिए)
(क) करणीयम् = ……………………….
(ख) वि + क्री + ल्यप् = ……………………….
(ग) पठितम् = ……………………….
(घ) ताडय् + क्त्वा = ……………………….
(ग) दोग्धुम् = ……………………….
उत्तर:
(क) करणीयम् = कृ + अनीयर
(ख) वि + क्री + ल्यप् = विक्रय
(ग) पठितम् = पठ् + क्त
(घ) ताडय् + क्त्वा = ताऽयित्वा
(ग) दोग्धुम् = दुह् + तुमुन्

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