Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला
Haryana Board 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला
HBSE 9th Class Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 8 लौहतुला
HBSE 9th Class Sanskrit लौहतुला Textbook Questions and Answers
लौहतुला (लोहे की तराजू) पाठ-परिचय
प्रस्तुत पाठ संस्कृत साहित्य के सर्वप्रमुख कथाग्रन्थ ‘पञ्चतन्त्र’ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र (अध्याय) से सङ्कलित है। ‘पञ्चतन्त्र’ महाकवि विष्णुशर्मा द्वारा रचित एक विशाल ग्रन्थ है। 200 ई० से 600 ई० के मध्य विद्वानों के समाज में विशेष रूप से प्रसिद्ध महाकवि पण्डित विष्णुशर्मा ने राजा अमरसिंह के पुत्रों को राजनीति में पारङ्गत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्र’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभक्त है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ के नाम से जाना जाता है। इन पाँच तन्त्रों के नाम क्रमशः-मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम् हैं। इन्हीं पाँचों के संग्रह को ‘पञ्चतन्त्र’ के नाम से जाना जाता है। इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघुकथाएँ दी गई हैं। उन कथाओं के माध्यम से लेखक ने नीति के गूढ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।
पाठ में वर्णित कथा के अनुसार जीर्णधन नामक व्यापारी अपने धन के समाप्त हो जाने पर पुनः धन कमाने की इच्छा से किसी देश में जाने के विषय में सोचने लगा। उसके घर में एक लोहे की तराजू थी। जीर्णधन अपनी उस लोहे की तराजू को किसी सेठ के घर में ‘धरोहर’ के रूप में रखकर विदेश चला गया। विदेश से लौटकर वह अपनी धरोहर (तराजू) को सेठ से माँगता है। सेठ ने कहा कि “तराजू चूहे खा गए”। ऐसा सुनकर जीर्णधन उसके पुत्र को स्नान के बहाने नदी तट पर ले जाकर गुफा में छिपा देता है। जब सेठ अपने पुत्र के विषय में जीर्णधन से पूछता है तो वह कहता है कि पुत्र को बाज उठाकर ले गया है। जीर्णधन के जवाब को सुनकर सेठ कहता है कि बाज बच्चे का हरण नहीं कर सकता। अतः मेरे पुत्र को मुझे दे दो। इस प्रकार विवाद करते हुए दोनों न्यायालय पहुँचते हैं जहाँ धर्माधिकारी उन्हें समुचित न्याय प्रदान करते हैं।
HBSE 9th Class Sanskrit लौहतुला Textbook Questions and Answers
I. अधोलिखितानां सूक्तिानां भावं हिन्दी भाषायां लिखत
(निम्नलिखित सूक्तियों के भाव हिन्दी भाषा में लिखिए)
(क) विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः।
(ख) त्वदीया तुला मूषकैक्षिता।
(ग) नदीतटात्स श्येनेन हृतः।
उत्तराणि:
(क) भावार्थ-प्रस्तुत सूक्ति महाकवि विष्णुशर्मा विरचित ‘पञ्चतन्त्र’ नामक कथा ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘लौहतुला’ में से उद्धृत है। इस संसार में धनहीन मनुष्य सबसे निम्न कोटि का मनुष्य माना जाता है, क्योंकि धन-ऐश्वर्य से हीन रहने वाला मनुष्य नीच पुरुष होता है। निर्धनता मनुष्य को बुरे-से-बुरा कर्म करने के लिए मजबूर कर देती है। विशेषकर उस व्यक्ति की स्थिति और भी चिन्तनीय हो जाती है जो अमीर होकर समय के चलते कुछ दिन बाद निर्धन हो जाता है। इस प्रकार के निर्धन व्यक्ति का यही प्रयास होता है कि वह किसी-न-किसी प्रकार से धन संग्रह करे। यही सोचकर जीर्णधन धन कमाने की इच्छा से किसी दूसरे देश में जाना चाहता है।
(ख) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि विष्णुशर्मा विरचित ‘पञ्चतन्त्र’ नामक कथा ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘लौहतुला’ में से उद्धृत है। जीर्णधन नामक वणिक् पुत्र अपनी लोहे की तराजू किसी सेठ के घर रख देता है। जब विदेश से धन संग्रह के बाद वापस आकर जीर्णधन सेठ से अपनी तराजू माँगता है तो सेठ कहता है कि तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए। सेठ की बातों से ही उसका झूठ पकड़ा जा रहा है, क्योंकि लोहे की वस्तु को चूहे खा ही नहीं सकते। वस्तुतः सेठ निर्धन को तराजू वापस देना ही नहीं। चाहता। इसलिए चूहों द्वारा तराजू के खाने की बात करता है।
(ग) भावार्थ प्रस्तुत सूक्ति महाकवि विष्णुशर्मा विरचित ‘पञ्चतन्त्र’ नामक कथा ग्रन्थ से संकलित पाठ ‘लौहतला’ में से उद्धृत है। जीर्णधन ने सेठ से बदला लेने के लिए उसके पुत्र को पर्वत की गुफा में छिपाकर गुफा के द्वार को एक बड़े पत्थर से बन्द कर दिया। जब सेठ ने अपने पुत्र के विषय में जीर्णधन से पूछा तो उसने कहा कि नदी के तट से उसे बाज उठाकर ले गया। जिस प्रकार लोहे की तराजू को चूहे नहीं खा सकते, उसी प्रकार शिशु को बाज उठाकर नहीं ले जा सकता। परन्तु यहाँ ‘जैसे को तैसा’ वाली कहावत सही प्रतीत होती है। जैसा जवाब जीर्णधन को सेठ ने दिया था, वैसा ही जवाब जीर्णधन ने सेठ को दिया।
II. अधोलिखितान गद्यांशान पठित्वा प्रदत्त प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतपूर्णवाक्येन लिखत
(निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर संस्कृत के पूर्ण वाक्यों में लिखिए)
(1) तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरम् आगत्य तं श्रेष्ठिनम् अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन् ! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति।
लौहतुला
(क) तस्य गृहे लौहघटिता का आसीत् ?
(ख) किम् कृत्वा सः देशान्तरं प्रस्थितः?
(ग) ‘खादिता’ इति क्रियापदस्य अत्र किं पर्यायपदं प्रयुक्तम्?
(घ) श्रेष्ठी जीर्णधन किम् उवाच?
(ङ) स्वपुरम् आगत्य कः श्रेष्ठिनम् उवाच?
उत्तराणि:
(क) तस्य गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत्।
(ख) सः लौहतुलां कस्यचित् श्रेष्ठिनः गृहेनिक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः।
(ग) ‘खादिता’ इति क्रियापदस्य पर्यायपदं अत्र ‘भक्षिता’ इति प्रयुक्तम्।
(ङ) स्वपुरम् आगत्य जीर्णधनः श्रेष्ठिनम् उवाच।
(घ) श्रेष्ठी जीर्णधन उवाच ‘भोः श्रेष्ठिन्! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।
(2) जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षितता। ईदृशः एव अयं संसारः।
न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशुं धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति।
(क) नास्ति ते दोषः इति कः आह?
(ख) नद्यां स्नानार्थं कः गमिष्यति?
(ग) ‘गुणः’ इति पदस्य अत्र किं विलोमपदं प्रयुक्तम्?
(घ) मया सह कं प्रेषय?
(ङ) धनदेवः कस्य पुत्रः अस्ति?
उत्तराणि:
(क) नास्ति ते दोषः इति जीर्णधनः आह।
(ख) नद्यां स्नानार्थं जीर्णधनः गमिष्यति।
(ग) ‘गुणः’ इति पदस्य अत्र ‘दोषः’ विलोमपदं प्रयुक्तम्।
(घ) मया सह शिशुं प्रेषय।
(ङ) धनदेवः श्रेष्ठिनः पुत्रः अस्ति।
(3) “भोः सत्यवादिन् ! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ । तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच-“भोः! वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम् ! अब्रह्मण्यम् ! अनेन चौरेण मम शिशः अपहृतः” इति।
(क) श्येनः कं न नयति?
(ख) लौहघटितां तुलां के न भक्षयन्ति?
(ग) ‘पुत्रेण’ इति पदस्य अत्र किं पर्यायपदं प्रयुक्तम् ?
(घ) श्रेष्ठी तारस्वरेण किं प्रोवाच?
(ङ) तौ द्वावपि कुत्र गतौ?
उत्तराणि:
(क) श्येनः बालं न नयति।
(ख) लौहघटितां तुलां मूषकाः न भक्षयन्ति।
(ग) ‘पुत्रेण’ इति पदस्य अत्र ‘दारकेण’ प्रयुक्तम्।
(घ) श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच-‘भोः! अब्रह्मण्यम्! अब्रह्मण्यम्! मम शिशुरनेन चौरेणापहृतः’ ।
(ङ) तौ द्वावपि राजकुलं गतौ।
III. स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) जीर्णधनस्य गृहे लौहघटिता तुलासीत्।
(ख) त्वदीया तुला मूषकैर्भक्षिता।
(ग) इदृक् एव अयं संसारः।
(घ) वणिक् पुत्रः अभ्यागतेन सह प्रस्थितः ।
(ङ) श्येनः बालं न नयति।
उत्तराणि:
(क) कस्य गृहे लौहघटिता तुलासीत् ?
(ख) त्वदीया का मूषकै क्षिता?
(ग) इदृक् एव अयं कः?
(घ) वणिक् पुत्रः केन सह प्रस्थितः?
(ङ) श्येनः कं न नयति?
IV. अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारं पुनः लिखत
(निम्नलिखित वाक्यों को घटनाक्रम के अनुसार दोबारा लिखिए)
(अ) (क) ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति।
(ख) ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरम् आगत्य।
(ग) आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः।
(घ) श्रेष्ठिनो आह–“भोः श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैर्भक्षितेति।”
(ङ) ‘जीर्णधनो गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत् ।
उत्तराणि:
(ग) आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः।
(ङ) जीर्णधनो गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुलासीत्।
(ख) ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरम् आगत्य।
(घ) श्रेष्ठिनो आह–“भोः श्रेष्ठिन् ! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैक्षितेति।”
(क) ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति।
(ब)
(क). अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन्-“भोः! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुतः” ।
(ख) एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ।
(ग) तेन वणिजा पृष्ट–“भोः! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नदीं गतः” ?
(घ) तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच-“भोः! अब्रह्मण्यम्! अब्रह्मण्यम् ! मम शिशुरनेन चौरेणापहृतः” इति।
(ङ) यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति।
उत्तराणि:
(ग) तेन वणिजा पृष्ट-“भोः! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नदीं गतः” ?
(ङ) यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति।
(ख) एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ।
(घ) तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच-“भोः! अब्रह्मण्यम्! अब्रह्मण्यम्! मम शिशुरनेन चौरेणापहृतः” इति।
(क) अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन् – “भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”।
V. अधोलिखित प्रश्नानाम् चतुषु वैकल्पिक-उत्तरेषु उचितमुत्तरं चित्वा लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के दिए गए चार विकल्पों में से उचित उत्तर का चयन कीजिए)
1. वणिक् पुत्रस्य नाम किम् आसीत् ?
(i) जीर्णधनः
(ii) धनदेवः
(iii) अजीर्णधनः
(iv) अधनदेव
उत्तरम्:
(i) जीर्णधनः
2. मूषकैः का भक्षिता?
(i) अन्नैः
(ii) तुला
(iii) फलानि
(iv) आम्राणि
उत्तरम्:
(ii) तुला
3. वणिक शिशुः केन सह प्रस्थितः?
(i) बालकेन
(ii) अभ्यागतेन
(iii) पितृणा
(iv) जनन
उत्तरम्:
(ii) अभ्यागतेन
4. विवदमानौ तौ कुत्र गतौ?
(i) देवालयं
(ii) न्यायालयं
(iii) राजकुलं
(iv) धर्मालय
उत्तरम्:
(iii) राजकुलं
5. जीर्णधनः गिरिगुहा द्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः?
(i) बृहच्छिलया
(ii) लौहतुलया
(iii) श्येनेन
(iv) वृक्षकाष्ठेन
उत्तरम्:
(i) बृहच्छिलया
6. ‘द्वौ + अपि’ अत्र सन्धियुक्तपदम् अस्ति
(i) द्वौऽपि
(ii) द्वयोपि
(iii) द्वावपि
(iv) द्वयोऽपि
उत्तरम्:
(iii) द्वावपि
7. ‘तुलासीत्’ इति पदस्य सन्धिविच्छेदम् अस्ति
(i) तुलां + आसीत्
(ii) तुला + ऽसीत्
(iii) तुलाः + आसीत्
(iv) तुला + आसीत्
उत्तरम्:
(iv) तुला + आसीत्
8. ‘भ्रान्त्वा’ इति पदे कः प्रत्ययः अस्ति?
(i) क्त्वा
(ii) तुमुन्
(iii) शत
(iv) क्तवतु
उत्तरम्:
(i) क्त्वा
9. ‘शिशुः’ इति पदस्य किं पर्यायपदम् ?
(i) बालिका
(ii) जनकः
(iii) बालकः
(iv) पितरः
उत्तरम्:
(iii) बालकः.
10. “पृष्ट च तेन वणिजा” इति वाक्ये अव्ययपदम् अस्ति
(i) तेन
(ii) पृष्टः
(iii) च
(iv) वणिजा
उत्तरम्:
(ii) च
योग्यताविस्तारः
यह पाठ विष्णुशर्मा द्वारा रचित ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक कथाग्रन्थ से ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से सङ्कलित है। इसमें विदेश से लौटकर जीर्णधन नामक व्यापारी अपनी धरोहर (तराजू) को सेठ से माँगता है। ‘तराजू चूहे खा गये हैं ऐसा सुनकर जीर्णधन उसके पुत्र को स्नान के बहाने नदी तट पर ले जाकर गुफा में छिपा देता है। सेठ द्वारा अपने पुत्र के विषय में पूछने पर जीर्णधन कहता है कि ‘पुत्र को बाज उठा ले गया है। इस प्रकार विवाद करते हुए दोनों न्यायालय पहुँचते हैं जहाँ धर्माधिकारी उन्हें समुचित न्याय प्रदान करते हैं।
ग्रन्थ परिचय-महाकवि विष्णुशर्मा (200 ई० से 600 ई० के मध्य) ने राजा अमरसिंह के पुत्रों को राजनीति में पारंगत करने के उद्देश्य से ‘पञ्चतन्त्रम्’ नामक सुप्रसिद्ध कथाग्रन्थ की रचना की थी। यह ग्रन्थ पाँच भागों में विभाजित है। इन्हीं भागों को ‘तन्त्र’ कहा गया है। पञ्चतन्त्र के पाँच तन्त्र हैं-मित्रभेदः, मित्रसंप्राप्तिः, काकोलूकीयम्, लब्धप्रणाशः और अपरीक्षितकारकम्। इस ग्रन्थ में अत्यन्त सरल शब्दों में लघुकथाएँ दी गई हैं। इनके माध्यम से ही लेखक ने नीति के गूढ़ तत्त्वों का प्रतिपादन किया है।
भावविस्तारः
‘लौहतुला’ नामक कथा में दी गई शिक्षा के सन्दर्भ में इन सूक्तियों को भी देखा जाना चाहिए।
1. न कश्चित् कस्यचिन्मित्रं न कश्चित् कस्यचिद् रिपुः।
व्यवहारेण जायन्ते. मित्राणि रिपवस्तथा ॥
उत्तराणि:
अर्थात् न तो कोई किसी का मित्र होता है और न ही कोई किसी का शत्रु होता है। शत्रु अथवा मित्र तो व्यवहार से ही उत्पन्न होते हैं।
2. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
उत्तराणि:
अपनी आत्मा के प्रतिकूल दूसरों के साथ आचरण नहीं करना चाहिए।
भाषिकविस्तारः
1. तसिल प्रत्यय-पञ्चमी विभक्ति के अर्थ में तसिल प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
यथा- ग्रामात् ~ ग्रामतः (ग्राम + तसिल्)
आदेः – आदितः (आदि + तसिल)
यथा – छात्रः विद्यालयात् आगच्छति।
छात्रः विद्यालयतः आगच्छति।
इसी प्रकार – गृह + तसिल – गृहतः – गृहात्।
तन्त्र + तसिल् – तन्त्रतः – तन्त्रात्।
प्रथम + तसिल् – प्रथमतः – प्रथमात्।
आरम्भ + तसिल् – आरम्भतः – आरम्भात् ।
2. अभितः, परितः, उभयतः, सर्वतः, समया, निकषा, हा और प्रति के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है।
यथा- 1. गृहम् अभितः वृक्षाः सन्ति।
2. विद्यालयम् परितः द्रुमाः सन्ति।
3. ग्रामम् उभयतः नद्यौ प्रवहतः।
4. हा दुराचारिणम्।
5. क्रीडाक्षेत्रम् निकषा तरणतालम् अस्ति।
6. बालकः विद्यालयम् प्रति गच्छति।
7. नगरम् समया औषधालयः विद्यते।
8. ग्रामम् सर्वतः गोचारणभूमिः अस्ति।
HBSE 9th Class Sanskrit लौहतुला Important Questions and Answers
लौहतुला गद्यांशों के सप्रसंग हिन्दी सरलार्थ एवं भावार्थ
1. आसीत् कस्मिंश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्रः। स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ताः स्ववीर्यतः।
तस्मिन विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः ॥
तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थितः। ततः सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुनः स्वपुरम् आगत्य तं श्रेष्ठिनम् अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन् ! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।” सोऽवदत्-“भोः! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति।
जीर्णधनः अवदत्-“भोः श्रेष्ठिन् ! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकैः भक्षिता। ईदृशः एव अयं संसारः। न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशुं धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति। स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-“वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ” इति। अथासौ श्रेष्ठिपुत्रः धनदेवः स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमनाः तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। तथानुष्ठिते स वणिक् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत् शिलया आच्छाद्य सत्त्वरं गृहमागतः।
अन्वय-यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् सः अधमः पुरुषः।
शब्दार्थ-अधिष्ठाने = स्थान पर नगर में। वणिक्पुत्रः = बनिए का पुत्र। विभवक्षयात् = धन की कमी के कारण। गन्तुमिच्छन् (गन्तुम् + इच्छन्) = जाने की इच्छा से। व्यचिन्तयत् (वि + अचिन्तयत्) = सोचने लगा। स्ववीर्यतः = अपने पराक्रम के द्वारा। विभवहीनो = धन-ऐश्वर्य से हीन। पुरुषाधमः = नीच पुरुष । लौहघटिता = लोहे से बनी हुई। पूर्वपुरुषोपार्जिता = पूर्वजों के द्वारा खरीदी गई। तुला आसीत् = तराजू थी। श्रेष्ठिनो = सेठ। निक्षेपभूतां = जमा-राशि/धरोहर के रूप में। सूचिरं कालं = बहुत समय तक। भ्रान्त्वा = घूमकर। शाश्वतम् = सदा रहने वाला। स्नानोपकरणहस्तं = नहाने का सामान हाथ में लिए हुए। प्रेषय = भेज दो। पितृव्योऽयं = चाचा, ताऊ। यास्यति = वह जाएगा। अनेन साकं = उसके साथ। प्रहृष्टमनाः = प्रसन्न मन वाला। अभ्यागतेन = अतिथि। गिरिगुहायां = पर्वत की गुफा में। बृहत् शिलया = विशाल शिला से। आच्छाद्य = ढककर। सत्त्वरं = शीघ्र। गृहमागतः (गृहम् + आगतः) = घर आ गया।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘लौहतुला’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि विष्णुशर्मा द्वारा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से किया गया है।
सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि सेठ के पास धरोहर के रूप में रखी गई अपनी लोहे की तुला के न मिलने पर जीर्णधन ने नदी में स्नान कराने के बहाने सेठ के पुत्र को गुफा में छुपा दिया।
सरलार्थ-किसी स्थान पर जीर्णधन नामक बनिए का पुत्र रहता था। धन की कमी के कारण विदेश जाने की इच्छा से उसने सोचा-जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम के द्वारा भोगों का भोग किया, वहाँ धन-ऐश्वर्य से हीन होकर जो निवास करता है, वह मनुष्य सबसे नीच होता है।
भाव यह है कि जिस स्थान पर मनुष्य अपने पराक्रम से एकत्रित सम्पत्ति ऐश्वर्य से आराम करता है, वहीं यदि वह निर्धन हो जाता है तो उसे नीच पुरुष माना जाता है।
उसके घर पर उसके पूर्वजों द्वारा खरीदी गई लोहे से बनी एक तराजू थी। उसे किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश को चला गया। इसके बाद दीर्घकाल तक इच्छानुसार दूसरे देश में घूमकर पुनः अपने नगर को वापस आकर उसने सेठ से कहा-“हे सेठ! धरोहर के रूप में रखी मेरी वह तराजू दे दो।” उसने कहा-“अरे! वह तो नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए।”
जीर्णधन ने कहा-“हे सेठ! यदि चूहे खा गए तो इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। यह संसार ही ऐसा है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। परंतु मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। इसलिए तुम अपने धनदेव नामक इस पुत्र को स्नान की वस्तुएँ हाथ में देकर मेरे साथ भेज दो।” . वह सेठ अपने पुत्र से बोला-“बेटा! ये तुम्हारे चाचा हैं, स्नान के लिए जा रहे हैं, तुम इनके साथ जाओ।”
इस प्रकार वह बनिए का पुत्र स्नान की वस्तुएँ हाथ में लेकर प्रसन्न मन से उस अतिथि के साथ चला गया। तब वह बनिया-पुत्र वहाँ पहुँचकर और स्नान करके उस शिशु को पर्वत की गुफा में रखकर द्वार को एक बड़े पत्थर से ढक कर शीघ्र घर आ गया।।
भावार्थ-संस्कृत में एक कहावत है-“शठे शाढ्यं समाचरेत्।” अर्थात् धूर्त के साथ धूर्त ही बनना चाहिए। सेठ ने जीर्णधन के · साथ धूर्तता का आचरण किया। उसका जवाब देने के लिए उसने सेठ के पुत्र को पर्वत की गुफा में छुपा दिया।
2. सः श्रेष्ठी पृष्टवान्–“भोः! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशुः यः त्वया सह नदीं गतः”? इति।
स अवदत्-“तव पुत्रः नदीतटात् श्येनेन हृतः” इति। श्रेष्ठी अवदत्-“मिथ्यावादिन! किं क्वचित् श्येनो बालं
हर्तुं शक्नोति? तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।” इति।
सोऽकथयत्-“भोः सत्यवादिन् ! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति।
तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।” इति।
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण प्रोवाच“भोः! वञ्चितोऽहम् ! वञ्चितोऽहम् !
अब्रह्मण्यम् ! अनेन चौरेण मम शिशुः अपहृतः” इति।
अथ धर्माधिकारिणः तम् अवदन्-“भोः! समर्म्यतां श्रेष्ठिसुतः”।
शब्दार्थ-पृष्ठवान् = और पूछा। कप्यतां = बताओ। कुत्र = कहाँ। श्येनेन = बाज के द्वारा। हृतः = ले जाया गया। मिथ्यावादिन = झूठ बोलने वाले। समर्पय = लौटा दो। अन्यथा = नहीं तो। विवदमानौ = झगड़ा करते हुए। तारस्वरेण = जोर से। अब्रह्मण्यम् = घोर अन्याय, अनुचित । अपहृतः = चुरा लिया गया है।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘लौहतुला’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि विष्णुशर्मा द्वारा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से किया गया है।
सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि सेठ तथा जीर्णधन दोनों आपस में झगड़ते हुए राजकुल में जाते हैं।
सरलार्थ-उस व्यापारी (सेठ) द्वारा पूछा गया-“हे अतिथि! बताइए मेरा पुत्र कहाँ है जो तुम्हारे साथ नदी पर गया था?” उसने (जीर्णधन) कहा-“नदी के तट से उसे बाज उठाकर ले गया।” सेठ ने कहा-“हे झूठे! क्या कहीं बाज बालक को ले जा सकता है? तो मेरा पुत्र लौटा दो अन्यथा मैं राजकुल में शिकायत करूँगा।”
उसने कहा-“अरे सच बोलने वाले! जैसे बाज बालक को नहीं ले जाता, वैसे ही चूहे भी लोहे से निर्मित तराजू नहीं खाते। यदि पुत्र को वापस चाहते हो तो मेरी तराजू लौटा दो।”
इस प्रकार झगड़ते हुए वे दोनों राजकुल चले गए। वहाँ सेठ ने जोर से कहा-“अरे! अनुचित हो गया! अनुचित! मेरे पुत्र को इस चोर ने चुरा लिया है।” तब न्यायकर्ताओं ने उससे (जीर्णधन) कहा-“अरे! सेठ का पुत्र लौटा दो।” ।
भावार्थ-जिस प्रकार जीर्णधन को पता था कि तराजू सेठ के पास है, उसी प्रकार सेठ को भी पता था कि उसका पुत्र जीर्णधन के पास ही है। आपस में फैसला न होने के कारण वे न्यायाधीश के पास जाते हैं।
3. सोऽवदत्-“किं करोमि? पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशुः अपहृतः” । इति।
तच्छ्रुत्वा ते अवदन्-भोः! भवता सत्यं नाभिहितम्-किं श्येनः शिशुं हर्तुं समर्थो भवति?
सोऽवदत्-भोः भोः! श्रूयतां मद्वचः
तुलां लौहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषकाः।
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो नात्र संशयः॥
ते अपृच्छन्-“कथमेतत्”।
ततः स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदितः सर्वं वृत्तान्तं न्यवेदयत्। ततः न्यायाधिकारिणः विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य
तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्तः।
अन्वय-राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य मूषकाः खादन्ति तत्र श्येनः बालकं हरेत, अत्र संशयः न।
शब्दार्थ-पश्यतो मे = मेरे देखते हुए। नदीतटात् = नदी के तट से। नाभिहितम् = कहा गया है। हरेत् = चुरा सकता है। ले जा सकता है। संशयः = सन्देह । सभ्यानामग्रे = सभासदों के सम्मुख। आदितः = आरम्भ से। सर्वं वृत्तान्तं = सारी घटना। विहस्य = हँसकर। सम्बोध्य = समझा-बुझाकर। तोषितवन्तः = सन्तुष्ट किए गए।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत विषय की पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी प्रथमो भागः’ में संकलित पाठ ‘लौहतुला’ में से उद्धृत है। इस पाठ का संकलन महाकवि विष्णुशर्मा द्वारा रचित ‘पञ्चतन्त्र’ के ‘मित्रभेद’ नामक तन्त्र से किया गया है।
सन्दर्भ-निर्देश-इस गद्यांश में बताया गया है कि सेठ तथा जीर्णधन फैसले के लिए राजकुल में गए, जहाँ पर न्यायाधीश ने फैसला सुनाया।
सरलार्थ-उसने (जीर्णधन) कहा–“क्या करूँ? मेरे देखते-देखते बालक को बाज नदी के तट से ले गया।” यह सुनकर वे सब बोले-अरे! आपने सच नहीं कहा-क्या बाज बालक को उठा ले जाने में समर्थ होता है? उसने (जीर्णधन) कहा-अरे-अरे! मेरी बात सुनिए
हे राजन्! जहाँ लोहे से निर्मित तराजू को चूहे खा सकते हैं, वहाँ बाज बालक को उठा ले जा सकता है, इसमें कोई सन्देह नहीं।
उन्होंने कहा-“यह कैसे हो सकता है?”
इससे उस सेठ ने सभासदों के सामने आरम्भ से सारा वृत्तान्त कह सुनाया। तब हँसकर उन्होंने उन दोनों को समझा-बुझाकर तराजू और बालक का आदान-प्रदान करके उन दोनों को सन्तुष्ट किया।
भावार्थ-इस गद्यांश में न्याय के महत्त्व को बताया गया है। वादी-प्रतिवादी दोनों को पता होता है कि दोषी कौन है, परन्तु दोष निर्धारण के लिए न्यायाधीश का फैसला सर्वमान्य होता है। सेठ तथा जीर्णधन को न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले को मानना पड़ा।
अभ्यासः
1. एकपदेन उत्तरं लिखत
(एक पद में उत्तर लिखिए)
(क) वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत्?
(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत् ?
(ग) तुला कीदृशी आसीत्?
(घ) पुत्रः केन हृतः इति जीर्णधनः वदति?
(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ?
उत्तराणि:
(क) जीर्णधनः,
(ख) मूषकैः,
(ग) लौहघटिता,
(घ) श्येनेन,
(ङ) राजकुलं ।
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए)
(क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत् ?
(ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत् ?
(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः?
(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् अवदत् ?
(ङ) धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं तोषितवन्तः?
उत्तराणि:
(क) देशान्तरं गन्तुम् इच्छन् वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत्-यत्र स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् स्थाने यः विभवहीनः वसेत् सः पुरुषाधमः।
(ख) स्वतुलां याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी अकथयत्-भोः! त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता।
(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बृहच्छिलया आच्छाद्य गृहमागतः।
(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं अवदत्-“नदी तटात् सः बालः श्येनेन हृतः” इति।
(ङ) धर्माधिकारिणिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन तोषितवन्तः।
3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(स्थूल पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए)
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्।
(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः ।
(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्।
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ।
उत्तराणि:
(क) कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ?
(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः?
(ग) वणिक् गिरिगुहां कस्मात् आच्छादितवान्?
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य केन सन्तोषितौ?
4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः पाठमाधृत्य तं पूरयत
(निम्नलिखित श्लोकों का अपूर्ण अन्वय दिया गया है। पाठ के आधार पर उसे पूर्ण कीजिए)
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने ……… भोगाः भुक्ता …….. विभवहीनः यः ……… स पुरुषाधमः।
(ख) राजन् ! यत्र लौहसहस्रस्य ……… मूषकाः ……… तत्र श्येनः ……… हरेत् अत्र संशयः न।
उत्तराणि
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता तस्मिन् विभवहीनः यः वसेत् स पुरुषाधमः।
(ख) राजन्! यत्र लौहसहस्रस्य तुलाम् मूषकाः खादन्ति तत्र श्येनः बालकम् हरेत् अत्र संशयः न।
5. तत्पदं रेखाङ्कित कुरुत यत्र
(उस शब्द को रेखांकित कीजिए, यहाँ)
(क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति
विहस्य, लौहसहस्रस्य, संबोध्य, आदाय।
(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्त्वरम्, कार्यकारणम्।
(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति
पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम् ।
उत्तराणि:
(क) लौहसहस्रस्य,
(ख) सत्त्वरम्,
(ग) स्ववीर्यतः
6. सन्धिना सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत
(सन्धि अथवा सन्धिविच्छेद के द्वारा रिक्त स्थान पूरे कीजिए)
(क) श्रेष्ठ्याह = …….. + आह
(ख) …………….. = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + …………….
(घ) …………….. = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = ……………. + उपकरणम्
(च) ……………. = स्नान + अर्थम्
उत्तराणि:
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्
7. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत
(समस्तपद अथवा विग्रह लिखिए)
विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् = ………………….
(ख) …………………., …………………. = गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी = ………………….
(घ) …………………., …………………. = विभवहीनाः
उत्तराणि:
विग्रहः – समस्तपदम्
(क) स्नानस्य उपकरणम् – स्नानोपकरणम्
(ख) गिरेः गुहायाम् – गिरिगुहायाम्
(ग) धर्मस्य अधिकारी – धर्माधिकारी
(घ) विभवेन हीनाः – विभवहीनाः
(अ) यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायता “लौहतुला” इति कथायाः सारांश संस्कृतभाषया लिखत
(निम्नलिखित शब्दों की सहायता से ‘लौहतुला’ कथा का सारांश संस्कृत भाषा में लिखिए)
वणिक्पुत्रः | स्नानार्थम् | लौहतुला | अयाचत् | वृत्तान्तं |
ज्ञात्वा | श्रेष्ठिनं | प्रत्यागतः | गतः | प्रदानम् |
उत्तराणि-संस्कृत भाषा-एकदा जीर्णधन नाम वणिक् पुत्रः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुम् अचिन्तयत्। तस्य गृहे एका लौहतुला आसीत् । तां कस्यचित् श्रेष्ठिनः गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा सः देशान्तरं प्रस्थितः। सुचिरं कालं देशान्तरं भ्रान्त्वा स्वनगरम् प्रत्यागत्य सः तुलाम् अयाचत्। सः श्रेष्ठी प्रत्युवाच-“तुलां तु मूषकैः भक्षिता।” ।
ततः जीर्णधनः श्रेष्ठिनः पुत्रेण सह स्नानार्थं गतः। स्नात्वा सः श्रेष्ठिपुत्रं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहच्छिलयाच्छाद्य गृहम् आगतः। ततः सः वणिक् श्रेष्ठिनं स्वपुत्रविषये अपृच्छत् । वणिक् उवाच-‘नदी तटात् सः श्येनेन हृतः।” इति। सः शीघ्रमाह-‘श्येनः बालं हर्तुं न शक्नोति। अतः समर्पय मे सुतम्।’ एवं विवदमानौ तौ राजकुलं गतौ । सर्वं वृत्तान्तं ज्ञात्वा धर्माधिकारिभिः तुला-शिशु-प्रदानेन तौ द्वौ सन्तोषितौ।