होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyu Manaya Jata Hai
होली क्यों मनाई जाती है | Holi Kyu Manaya Jata Hai
रंगों का त्यौहार Holi कब और क्यों मनाते हैं?
आप सभी रंगों का त्यौहार होली को धूम धाम से मानते होंगे. रंगों के त्यौहार के तौर पर मशहूर होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। तेज संगीत और ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी से भी जुड़ी है।
होली एक प्राचीन त्यौहार है
होली प्राचीन हिंदू त्यौहारों में से एक है और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमिमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है।प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हैं। ऐसा ही 16वीं सदी का एक मंदिर विजयनगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे पर रंग लगा रहे हैं। कई मध्ययुगीन चित्र, जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र, मेवाड़ पेंटिंग, बूंदी के लघु चित्र, सब में अलग अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है।
होली रंग का हिस्सा कैसे बने?
यह भगवान कृष्ण (भगवान विष्णु के पुनर्जन्म) की अवधि के लिए है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों के साथ होली मनाते थे और इसलिए वे लोकप्रिय थे। वह वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों के साथ होली खेलते थे। गाँव भर में प्रैंक किया और इस तरह इसे एक सामुदायिक कार्यक्रम बना दिया। यही वजह है कि आज तक वृंदावन में होली का उत्सव बेजोड़ है। होली एक वसंत त्योहार है जो सर्दियों को अलविदा कहता है। कुछ हिस्सों में उत्सव वसंत फसल के साथ भी जुड़े हुए हैं। नई फसल से भरे हुए अपने भंडार को देखने के बाद किसान होली को अपनी खुशी के एक हिस्से के रूप में मनाते हैं। इस वजह से, होली को ‘वसंत महोत्सव’ और ‘काम महोत्सव’ के रूप में भी जाना जाता है।
होली महोत्सव का इतिहास
क्या है होली का महत्व? होली का त्यौहार अपनी सांस्कृतिक और पारंपरिक मान्यताओं की वजह से बहुत प्राचीन समय से मनाया जा रहा है. इसका उल्लेख भारत की बहुत से पवित्र पौराणिक पुस्तकों,जैसे पुराण, दसकुमार चरित, संस्कृत नाटक, रत्नावली में किया गया है. होली के इस अनुष्ठान पर लोग सड़कों, पार्कों, सामुदायिक केंद्र, और मंदिरों के आस-पास के क्षेत्रों में होलिका दहन की रस्म के लिए लकड़ी और अन्य ज्वलनशील सामग्री के ढेर बनाने शुरू कर देते है. बहुत से लोग घर पर साफ- सफाई भी करते हैं. इसके साथ अलग अलग प्रकार के व्यनजन भी बनाते हैं जैसे की गुझिया, मिठाई, मठ्ठी, मालपुआ, चिप्स आदि.
होली पूरे भारत में हिंदुओं के लिए एक बहुत बड़ा त्यौहार है, जो ईसा मसीह से भी पहले कई सदियों से मौजूद है. अगर इससे पहले की होली की बात करें तब यह त्यौहार विवाहित महिलाओं द्वारा पूर्णिमा की पूजा द्वारा उनके परिवार के अच्छे के लिये मनाया जाता था. प्राचीन भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्यौहार का जश्न मनाने के पीछे कई किंवदंतियों रही हैं.
होली हिंदुओं के लिए एक सांस्कृतिक, धार्मिक और पारंपरिक त्यौहार है. होली शब्द “होलिका” से उत्पन्न है. होली का त्यौहार विशेष रूप से भारत (आर्याव्रत) के लोगों द्वारा मनाया जाता है जिसके पीछे बड़ा कारण है. एक बड़ा कारण यह है की यह त्यौहार केवल रंगों का नहीं बल्कि भाईचारे का भी है. जैसे हम त्यौहार के दोरान सभी रंगों का इस्तमाल करते हैं ठीक वैसे ही हमें आपस में भाईचारे की भावना से रहना चाहिए और एक दुसरे के साथ मिल्झुलकर सभी त्यौहारओं को पालना चाहिए.
होली एक ऐसा त्यौहार है जिसे देश का हर प्रान्त बड़ी धूमधाम से मनाता है. अलग अलग प्रान्तों में उनके सांस्कृति के अनुसार इसे रीती निति से मनाया जाता है. यह त्यौहार हमें जीवन में सबके साथ मिलझूलकर रहने की प्रेरणा देता है.
होलिका दहन की कहानी (Holi Kyu Manaya Jata Hai)
हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।
होली का महत्व
जीवन की अनेक कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने में ही होली का महत्व है। अगर हम सही हैं तो ईश्वर हमारे साथ होते हैं और हमारी सहायता करते हैं। जैसा कि उन्होंने भक्त प्रह्लाद की मदद की थी। रंगों का उपयोग केवल खुशी के प्रतीक के रूप में किया जाता है।
होली समारोह
होली एक दिन का त्यौहार नहीं है। कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है।
दिन 1 – पूर्णिमा के दिन एक थाली में रंगों को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बाकी सदस्यों पर रंग छिड़कता है।
दिन 2 – इसे पूनो भी कहते हैं। इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। अग्नि देवता के आशीर्वाद के लिए मांएं अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पांच चक्कर लगाती हैं।
दिन 3 – इस दिन को ‘पर्व’ कहते हैं और यह होली उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है। भगवान कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी पूजा की जाती है।
होली का त्यौहार मनाने के पीछे कुछ अन्य मान्यताएं हैं. आइये अध्ययन करते हैं:
1. शिव पुराण के अनुसार, शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे और हिमालय की पुत्री पार्वती भी शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं. शिव-पार्वती के विवाह से इंद्र का स्वार्थ छिपा था क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा होना था. इसी कारण इंद्र ने शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा परन्तु शिव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया था. लेकिन शिव जी की तपस्या भंग हो गई थी और फिर बाद में देवताओं ने शिव जी को पार्वती से विवाह के लिए राजी कर लिया था. इस कथा के आधार पर होली को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
2. वसुदेव और देवकी के विवाह के पश्चात कंस जब देवकी को विदा कर रहा था तब आकाशवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा. तभी कंस ने उन दोनों को कारागार में डाल दिया. देवकी के छ: पुत्रों को कंस ने मार दिया था और सातवें पुत्र जो कि शेष नाग के अवतार बलराम थे. उनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था. फिर श्रीकृष्ण का अवतार आठवें पुत्र के रूप में हुआ. उसी समय वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए. परन्तु कंस उस कन्या का वध नहीं कर सका और फिर से आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है. इस कारण कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा दिया था. वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया. उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी. अत: बुराई का अंत हुआ और इस खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा.
3. राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा है रंगों वाला होली का त्यौहार. श्रीकृष्ण लीला का एक अंग बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना भी माना गया है. इसलिए मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है. बरसाने और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है.
4. एक पृथु राजा था, उसके समय में एक ढुंढी नाम की राक्षसी थी. वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी क्योंकि उसको वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र उसे नहीं मार सकेगा. इसी कारण रजा की प्रजा बहुत परेशान थी. और तो और ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा. तभी राजा के राजपुरोहित ने एक मार्ग बताया उस राक्षसी को खत्म करने के लिए. फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और गर्मी, क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखेंगे और जलाएंगे, मंत्र पढ़ेंगे और अग्रि की परिक्रमा करेंगे तो राक्षसी मर जाएगी. इतने बच्चों को राक्षसी ढुंढी एक साथ देखकर उनके नजदीक आ गई और उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया. तब से भी होली का त्यौहार मनाया जाने लगा.
तो ये थी होली के त्यौहार से जुड़ी विभिन्न कथाएँ, जो ये दर्शाती हैं कि होली का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं.