MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय
MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय
MP Board Class 9th Hindi Navneet कवि परिचय
1. मीराबाई
जीवन-परिचय-मीराबाई का जन्म राजस्थान में मेड़ता (जोधपुर) के निकट चौकड़ी गांव में सन् 1498 ई. में हुआ था। इनके पिता रत्नसिंह राजवंश से सम्बन्धित थे। मीरा का पालन-पोषण उनके पितामह राव दूदा जी ने किया। वे कृष्णभक्त थे। अतः मीरा पर भी कृष्ण की भक्ति का प्रभाव पड़ा। उनका विवाह उदयपुर के राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोजराज के साथ हुआ। विवाह के थोड़े ही समय बाद उनके पति की मृत्यु हो गई। मीरा अब अपने आपको अनाथ समझ रही थी और संसार से विरक्त महसूस करने लगी। भगवान कृष्ण की भक्ति में उसने अपना ध्यान लगा दिया। भगवान कृष्ण को ही उसने अपना पति मान लिया और अपना जीवन भक्ति में ही लगा दिया। अन्तिम समय में द्वारिका पहुँचकर “मीरा प्रभु, हरो तुम जनकी पीर’ भजन को गाते-गाते रणछोर जी की मूर्ति में समा गई। यह घटना सन् 1546 ई. की बताई जाती है।
रचनाएँ- मीरा ने राग गोविन्द, गीत गोविन्द की टीका, राग सोरठा के पद तथा नरसीजी को माहेरो आदि की रचनाएँ की।
काव्यगत विशेषताएँ-
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-मीरा ने भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति एवं स्वामी मानकर अपनी भक्ति के भावों को अभिव्यक्ति दी है। द्रष्टव्य है
‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई, जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।’ मीरा की भक्ति भावना अनन्य भाव की है। उनका जीवन और उनका काव्य कृष्णमय है। साथ ही उनके काव्य में माधुर्य भाव की प्रधानता है। विरह की मार्मिक तीव्रता ने उन्हें भाव विह्वल बना दिया। इस तरह उनके काव्य में श्रृंगार और शान्त दोनों रसों की धारा प्रवाहित हो रही है।
(ख) कलापक्ष (भाषा शैली)-मीरा के काव्य में राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। उनके काव्य में ‘अनगढ़’ कलात्मकता बिखरी पड़ी है। मीरा ने प्रमुख रूप से पद शैली अपनाई है। – साहित्य में स्थान–मीरा भक्त कवयित्री थीं। वे भक्ति के उपवन की साक्षात् शकुन्तला थी और मरुस्थल की मन्दाकिनी थीं। हिन्दी काव्य जगत् में उनका स्थान अति महत्त्वपूर्ण है।
2. रसखान
जीवन-परिचय-रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहीम था। इनका जन्म संवत् 1615 वि. में हुआ था। रसखान कृष्ण के अनन्य भक्त थे। इन्होंने गोस्वामी विट्ठलनाथ (दास) से दीक्षा ली और वैष्णव मत में दीक्षित होकर रात-दिन कृष्णभक्ति में लीन रहने लगे। ये गोवर्द्धन में जाकर रहने लगे। इनकी मृत्यु संवत् 1685 विक्रमी में हो गई।
रचनाएँ-
(1) सुजान रसखान,
(2) प्रेम वाटिका।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-रसखान की कविता में सच्चे प्रेम का प्रत्यक्षीकरण एवं प्रेममग्न हृदय के भावोद्रेक का छलकता स्वरूप विद्यमान है। इनके काव्य में प्रेम और अनुभूति की तीव्रता और कथन की सहजता और सरलता विद्यमान है। अनुभूति की कोमलता द्रष्टव्य है।
(ख) कलापक्ष (भाषा-शैली)-रसखान ने अपनी कविता में ब्रजभाषा के प्रौढ़ परिष्कृत स्वरूप के प्रयोग किए हैं। उनकी भाषा में सहजता, सरलता एवं एक प्रवाह विद्यमान है। अनुप्रास, यमक, उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
ब्रज क्षेत्र के प्रचलित मुहावरों का प्रयोग भाषा को सजीवता देता है। फुटकर पद शैली में सौन्दर्य निरूपण इनका अप्रतिम कला वैभव है।
साहित्य में स्थान-काव्य एवं पिंगल साहित्य के मर्मज्ञ रसखान का स्थान कृष्णभक्त कवियों में सर्वश्रेष्ठ है। वे अपनी भावुकता, सहृदयता और प्रेम परिपूर्ण व्यवहार के लिए सम्मान प्राप्त कवि हैं।
3. रहीम
जीवन-परिचय-रहीम नाम से प्रसिद्ध अब्दुर्रहीम खानखाना का जन्म सन् 1556 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम सरदार बैरमखाँ खानखाना था। बैरमखाँ अकबर के अभिभावक थे। रहीम अकबर के मनसबदार और दरबार के नवरत्नों में प्रमुख थे। इन्होंने अनेक युद्ध लड़े और जीत पाई। बड़े-बड़े सूबे और किले इन्हें जागीर में दिए गए। अकबर की मृत्यु के बाद जहाँगीर ने इन्हें राजद्रोही ठहराया, बन्दी बनाया, जेल में डाल दिया। इनकी जागीरें जब्त कर ली गईं। सन् 1626 ई. में इनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ-रहीम की प्रमुख कृतियों में रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन इत्यादि शामिल हैं।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-रहीम मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे। शृंगार, भक्ति और नीति के लोकप्रिय कवि रहीम कोमल भावनाओं और सहज प्रेम के पक्षधर कवि हैं। कृष्ण के उपासक रहीम के काव्य में जीवन के गहरे अनुभव मिलते हैं। संवेदनशील हृदय में नीति, शृंगार और प्रेम का अनूठा समन्वय व्याप्त है।
(ख) कलापक्ष (भाषा तथा विचार)-रहीम के काव्य में ब्रज और अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है। दोहा, बरवै, कवित्त, सवैया, सोरठा, पद आदि सभी प्रचलित छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत की हैं। छन्द विधान में निपुण रहीम अलंकारों के सहज प्रयोग के पक्षधर थे। शैली की सरलता है। . साहित्य में स्थान-हिन्दी के नीतिकार कवियों में रहीम का स्थान सर्वोपरि है।
4. मैथिलीशरण गुप्त
जीवन-परिचय-मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई. में चिरगाँव, जिला-झाँसी के सेठ रामचरण गुप्त के घर हुआ था। कक्षा नौ तक शिक्षा प्राप्त मैथिलीशरण ने स्वाध्याय से ज्ञानार्जन किया। महावीर प्रसाद द्विवेदी के सानिध्य में आने पर इनकी प्रतिभा चमक उठी। भारतीय संस्कृति और राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण आत्मा वाले मैथिलीशरण गुप्त गाँधीजी के प्रभाव से भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हुए और जेल यात्राएँ की। स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रपति ने इन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया। सन् 1948 ई. में आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट् की उपाधि से विभूषित किया। ‘साकेत’ के लिए इन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ। सन् 1964 ई. में इनका निधन हो गया।
रचनाएँ-
- जयभारत,
- पंचवटी,
- भारत-भारती,
- यशोधरा,
- जयद्रथ वध,
- सिद्धराज,
- द्वापर,
- अनघ,
- झंकार आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-इनकी कविताओं ने राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरणा दी, सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाया गया। छुआछूत, विधवा विवाह, अनमेल विवाह आदि समस्याओं पर इन कविताओं में प्रकाश डाला है। लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था का समर्थन किया है। गुप्तजी का प्रकृति चित्रण अनुपम है। वे वैष्णव भक्ति में आस्था रखते थे। उन्होंने चारित्रिक विकास पर बल दिया। मानवता को देवत्व की जननी बताया। इनके काव्य में विभिन्न रसों की उद्भावना हुई है।
(ख) कलापक्ष (भाषा शैली)-इनके काव्य में उत्कृष्ट संवाद योजना का संक्षिप्त रूप, पात्र एवं भाव मिलते हैं। इनकी भाषा परिष्कृत खड़ी बोली है। प्रबन्ध, मुक्तक, गीति, नाट्य आदि शैलियों का प्रयोग प्रशंसनीय है। कहीं-कही उपदेशपरक छायावादी शैली मिलती है। अलंकारों की योजना सहज ही हुई है। सभी प्रचलित अलंकारों का प्रयोग हुआ है। गुप्तजी ने तुकान्त, अतुकान्त और गीति छन्दों का प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान-भारतीय संस्कृति और जीवन शैली के प्रतिनिधि कवि मैथिलीशरण युगों-युगों तक हिन्दी काव्य जगत् में सम्मान पाते रहेंगे।
5. सुमित्रानन्दन पन्त
जीवन-परिचय-सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म सन् 1900 ई. में कौसानी नामक ग्राम, जिला अल्मोड़ा (कूर्मांचल प्रदेश) में हुआ था। इनकी माँ इन्हें जन्म देने के कुछ ही समय बाद इस दुनिया से चल बसीं। मातृहीन बालक ने प्रकृति माँ की एकान्त ‘गोद में बैठकर घण्टों तक चिन्तन करना सीख लिया। विचार विकसित हुए। अल्मोड़ा के राजकीय विद्यालय से प्रारम्भिक शिक्षा लेकर काशी से मैट्रिक पास की। एफ. ए. में पढ़ाई करते हुए ही गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन में सन् 1921 ई. में शामिल हो गए। स्वाध्याय से बंगला, अंग्रेजी एवं संस्कृत का अध्ययन किया। इनका बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। अपनी चिर साधना से प्रतिष्ठित कवियों में नाम जुड़ गया। कालाकांकर के नरेश के सहयोगी रहे। ‘रूपाभ’ पत्र का सम्पादन किया। आकाशवाणी में अधिकारी बने। अविवाहित पन्त ने साहित्य साधना में अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत सरकार ने पद्यभूषण से अलंकृत किया। 29 सितम्बर, सन् 1977 ई. में भारती के अमर सपूत ने चिरनिद्रा में आँखें बन्द कर ली।
रचनाएँ-
- वीणा,
- पल्लव,
- गुंजन,
- युगान्त,
- युगवाणी,
- ग्राम्या,
- स्वर्ण-किरण,
- स्वर्ण-धूलि,
- युगपथ,
- उत्तरा,
- अतिमा,
- रजत रश्मि,
- शिल्पी,
- कला और बूढ़ा चाँद,
- चिदम्बरा,
- रश्मि बन्द। ये सभी काव्य संग्रह हैं।
- लोकायतन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने दस हजार रुपये का पुरस्कार दिया।
‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए साहित्य अकादमी से पाँच हजार रुपये का पुरस्कार मिला। चिदम्बरा के लिए एक लाख रुपये का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव और विचार)-पन्तजी कोमल और सुकुमार स्वभाव के व्यक्ति थे। उनमें भावात्मक तल्लीनता का गुण था। प्रकृति में पन्त ने आलम्बन, उद्दीपन, मानवीकरण एवं एक उपदेशिका का रूप देखा है। प्रकृति के मध्य बैठकर लीन अवस्था में उनका भाव चित्रण अनोखा है।
पंत ने सूक्ष्म भावों को काव्य में चित्रित किया है। संयोग और वियोग की अवस्थाओं का तथा अनुभूतियों का चित्रण बहुत ही भावग्राह्य है। मानवतावादी दृष्टि को अपनाकर नारी के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है। कार्ल मार्क्स का प्रभाव उन पर परिलक्षित है। ईश्वर, आत्मा, जगत् पर पंत ने अपनी कविता में अपने दार्शनिकतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त किया है।
(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-पन्त की भाषा कोमलकान्त पदावली से युक्त है, सहज है, सुकुमार है। भाषा में लालित्य, चित्रोपमा, ध्वन्यात्मकता विद्यमान है। भाव के अनुसार भाषा भयानकता में भी बदल जाती है। छायावादी लाक्षणिक शैली में प्रतीकात्मकता और बिम्ब विधान द्रष्टव्य है। सहज भाव से ही अलंकार प्रयुक्त हुए हैं। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, श्लेष, यमक, रूपकातिशयोक्ति अन्योक्ति का प्रयोग मौलिक है। छन्द योजना भी पन्त द्वारा व्यवहारात्मक रूप में तैयार की गई है। तुकान्त और अतुकान्त छन्दों में संगीतात्मकता भी विद्यमान है।
साहित्य में स्थान-आधुनिक शीर्षस्थ कवियों में पंतजी चिरस्मरणीय हैं।
6. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
जीवन-परिचय-बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का जन्म सन् 1897 ई. में शाजापुर जिले के भुजालपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता पं. यमुनादास साधारण स्थिति के ब्राह्मण थे। ‘नवीन’ अत्यन्त अध्यवसायी थे। आपने भिन्न-भिन्न विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की। राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लेने के कारण इन्होंने जेल यात्राएँ भी की। गणेशशंकर विद्यार्थी के सम्पर्क में आकर ‘प्रताप’ के सहयोगी सम्पादक रहे। ‘प्रभा’ का भी सम्पादन किया। भारतीय संविधान परिषद् एवं भारतीय संसद के सदस्य भी रहे । सन् 1960 ई. में इनका देहावसान हो गया।
रचनाएँ-
- उर्मिला (महाकाव्य),
- प्राणार्पण (खण्डकाव्य),
- कुंकुम,
- रश्मिरेखा,
- अपलक
- क्वासि,
- विनोवा स्तवन,
- नवीन दोहावली,
- हम विषपायी जनम के,
- प्रलयंकर,
- मृत्युधाम आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-‘नवीन’ जी में सहयता, सहिष्णुता, भाषण पटुता एवं मधुरगायकी के गुण विद्यमान थे। उनके काव्य में राष्ट्रीय जागरण और ओजस्वी भाव भरे हैं। उन्होंने काव्य के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम, देश-प्रेम एवं मानव-सौन्दर्य का चित्रण किया है। विरह संवेदनाओं को उभारा है। प्रकृति के विविध स्वरूपों का चित्रण किया है। उनके गीतों में क्रान्ति और विद्रोह के स्वर सुनाई देते हैं। उनके काव्य में संगीतात्मकता और माधुर्य विद्यमान है। वीर, रौद्र, श्रृंगार रस का प्रयोग उत्कृष्ट है।
(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-भाषा सरल, खड़ी बोली है। उसमें माधुर्य और ओज भरा है। तत्सम शब्दों की अधिकता है। भाषा भाव को व्यक्त करने में सक्षम है। कवि ने नये छन्दों का प्रयोग किया है। ओजपूर्ण शैली अपनायी है। मुक्तक गीति शैली भी स्तुत्य है। अनुप्रास, उपमा, रूपक, मानवीकरण का प्रयोग आकर्षक है।
साहित्य में स्थान-राष्ट्रीय काव्यधारा के प्रधान कवियों में ‘नवीन’ जी सदा स्मरण किए जायेंगे।
7. नरोत्तमदास
जीवन-परिचय-नरोत्तमदास का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बाड़ी ग्राम में सन् 1493 ई. के लगभग हुआ था। ये जाति के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। खेद का विषय है कि इनके विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। लेकिन शिवसिंह सरोज के अनुसार ये सवत् 1602 वि. में विद्यमान थे। इसी आधार पर इनकी मृत्यु सन् 1584 ई. में मानी जाती है। पं. रामनरेश त्रिपाठी ने ‘सुदामा चरित’ का रचनाकाल संवत् 1582 विक्रमी माना है। इनके अनुसार इनका जन्म सन् 1493 ई. में और मृत्यु सन् 1548 ई. में मानी गई है।
रचनाएँ-इनकी उपलब्ध रचना ‘सुदामा चरित’ ही है जो ब्रजभाषा में लिखित प्रथम खण्डकाव्य है।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-कृष्णभक्त कवि नरोत्तमदास की भक्ति कहीं सेवक भाव की तो कहीं सखा भाव से प्रकट हुई है। कवि नरोत्तमदास मानवीय संवेदनाओं के सफल पारखी थे। ‘सुदामा चरित’ के माध्यम से दरिद्रता से जूझते हुए संघर्षशील स्वाभिमानी पुरुष तथा अभावों से ग्रसित भारतीय नारी की सन्तोष प्रधान वृत्ति का वर्णन किया है। साथ ही सुदामा चरित की कथावस्तु आदर्श मैत्री का कीर्तिमान है।
हृदयगत भावों की व्यंजना के साथ-साथ पात्रों के चरित्र चित्रण में यथार्थता और सजीवता का अंकन किया गया है। एक मनोवैज्ञानिक की भाँति कवि ने मानव-मन के रहस्यों का प्रकाशन, विशेष परख के बाद किया है। सुदामा चरित में शान्त, हास्य, करूण और अद्भुत रसों की निष्पत्ति हुई है।
(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-कवि ने अपने चरित काव्य में ब्रजभाषा में साहित्यिक रूप का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं वैसवाड़ी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। नरोत्तमदास ने प्रबन्ध काव्य शैली को अपनाया है। इसमें कथोपकथन शैली प्रशंसनीय है। लाक्षणिकता का प्रयोग सफल हुआ है। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से उनका काव्य प्रभावशाली बन गया है। अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है। कवित्त, दोहा, सवैया छन्दों का प्रयोग हुआ है। विभावना, रूपक, प्रतीप, यमक व अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग मिलता है।
साहित्य में स्थान-नरोत्तमदास ने सुदामा चरित में भारतीय सामाजिक जीवन का सम्यक् चित्र उभारा है। इसके लिए हिन्दी के साहित्यिक क्षेत्र में इन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।
8. तुलसीदास
जीवन-परिचय-गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 वि. (सन् 1497 ई.) में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ लोग इनके जन्म का स्थान सोरों | (जिला-एटा, उत्तर प्रदेश) मानते हैं। इनकी माता हुलसी और पिता आत्माराम दुबे थे। इनका पालन-पोषण नरहरिदास ने किया और गुरुमन्त्र भी दिया, रामकथा सुनाई। इन्होंने संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। भारतीय सद्ग्रन्थों का अध्ययन किया। दीनबन्धु पाठक की कन्या रत्नावली से विवाह किया। बाद में तुलसी में वैराग्यवृत्ति उत्पन्न हो गई। तुलसी ने राम के चरित का गायन किया। तुलसी ने रामभक्ति में स्वयं को समर्पित कर दिया। संवत् 1680 वि. (सन् 1623 ई.) में इनका देहावसान हो गया।
रचनाएँ-
- रामचरितमानस,
- विनय पत्रिका,
- कवितावली,
- गीतावली,
- बरवै रामायण,
- रामलला, नहछू,
- रामाज्ञा प्रश्नावली,
- वैराग्य संदीपनी,
- दोहावली,
- जानकी मंगल,
- पार्वती मंगल,
- हनुमान बाहुक,
- कृष्ण गीतावली।।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-तुलसी ने अपने काव्य कौशल से विभिन्न मतों, सम्प्रदायों और सिद्धान्तों की कटुता को समन्वयवादी दृष्टिकोण से दूर करके उनमें समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया है। सामाजिक समरसता, समन्वय की भावना एवं लोक मंगल की भावना तुलसी के साहित्य में भरी पड़ी है। तुलसी ने मानव प्रकृति, जीवन जगत् की सूक्ष्म दृष्टि एवं विस्तृत गहन अनुभव से जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित किया है। तुलसी के काव्य में शृंगार, शान्त तथा वीर रसों की निष्पत्ति हुई है। संयोग और वियोग के हृदयग्राही वर्णन प्रभावशाली हैं। रौद्र, करुण और अद्भुत रसों का सजीव चित्रण किया गया है। ‘विनय पत्रिका’ में भक्ति और विनय का उत्कृष्ट स्वरूप मिलता है।
(ख) कलापक्ष (भाषा और शैली)-तुलसीदास ने अपनी काव्यकृतियों में अवधी और ब्रज भाषाओं का प्रयोग किया है। संस्कृत, फारसी और अरबी शब्दावली का प्रयोग भी उत्कृष्ट कोटि का है। शैली की विविधता द्रष्टव्य है।
भाषा और छन्द के विषय में तुलसी ने समन्वयवादी प्रवृत्ति का परिचय दिया है। उन्होंने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि सभी छन्दों का प्रयोग किया है। साहित्य में स्थान-तुलसीदास ने लोकहित और लोकजीवन को सुखी बनाने के लिए माता-पिता, गुरु-शिष्य, पुत्र-सेवक, राजा-प्रजा के आदर्श रूप प्रस्तुत किए हैं। इस समग्र साहित्यिक सेवा के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
9. गिरिजाकुमार माथुर
जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1919 ई. में अशोक नगर, गुना (मध्य प्रदेश) में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा-झाँसी, ग्वालियर, लखनऊ से ग्रहण की। आकाशवाणी से कार्य आरम्भ किया और बाद में दूरदर्शन से अवकाश प्राप्त किया।
रचनाएँ-
- मंजरी,
- नाश और निर्माण,
- धूप के धान,
- शिला पंख चमकीले,
- भीतरी नदी की यात्रा,
- जो बंध नहीं सका,
- जनम कैद (नाटक),
- नई कविता,
- सीमा और सम्भावनाएँ (आलोचना)।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-इनके गीतों पर छायावाद का प्रभाव है। सामाजिक समस्याओं को उद्घाटित करके समाधान की दिशा निर्दिष्ट की है। कवि ने अपनी कविता में आनन्द, रोमांस और सन्ताप की तरलता की अनुभूति की है। प्राचीनता को तोड़ा है, नवीनता की भावभूमि को अपनाया गया है।
(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-इनकी भाषा शुद्ध परिमार्जित तथा चित्र खींचने की क्षमता से युक्त खड़ी बोली हिन्दी है। नये-नये भावों को नई शैली में और नए छन्द विधान द्वारा अभिव्यक्ति दी है। शब्द चयन में तुक, तान और अनुतान की काव्यात्मक झलक ध्वनित होती है। इनकी रचनाओं में मालवा की समृद्ध प्रकृति का स्वरूप अंकित है। आंचलिक शब्दों के प्रयोग की मिठास भी इनकी कविता की श्रीवृद्धि करती है।
साहित्य में स्थान-हिन्दी काव्य के आधुनिक कवियों में इनका विशिष्ट स्थान है।
10. भवानीप्रसाद मिश्र
जीवन-परिचय-भवानीप्रसाद मिश्र का जन्म 23 मार्च, 1913 ई. में होशंगाबाद के पास टिकरिया नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने स्नातक स्तर की शिक्षा नरसिंहपुर, होशंगाबाद और जबलपुर से प्राप्त की। सन् 1942 ई. में भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया और सन् 1945 ई. तक नागपुर के कारागार में बन्दी रहे। सन् 1949 ई. तक महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित महिला आश्रम, वर्धा में शिक्षण कार्य किया। सन् 1950 में हैदराबाद (आन्ध्र) से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘कल्पना’ के सम्पादक रहे। सन् 1952 से 1954 ई. तक हिन्दी फिल्मों के गीत लेखन का कार्य किया। सन् 1954 से 1958 तक आकाशवाणी के मुम्बई और दिल्ली केन्द्रों में हिन्दी कार्यक्रम के निदेशक रहे। सन् 1959 से 1972 ई. तक ‘सम्पूर्ण गाँधी वाङ्मय’ के प्रकाशन कार्य से सम्बद्ध रहे। सन् 1972 ई. में उन्होंने गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के प्रकाशन विभाग में कार्य प्रारम्भ किया। गगनांचल और गाँधी मार्ग के सम्पादक रहे। – भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया। मध्य प्रदेश सरकार ने अपने सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार ‘शिखर सम्मान’ से सम्मानित किया। 20 फरवरी, सन् 1985 ई. में नरसिंहपुर में हृदयाघात से आपका निधन हो गया।
रचनाएँ-
- गीतफरोश,
- चकित है दुःख,
- गाँधी पंचशती,
- अंधेरी कविताएँ,
- बुनी हुई रस्सी,
- व्यक्तिगत,
- खुशबू के शिलालेख,
- परिवर्तन जिए,
- त्रिकाल संध्या,
- अनाम तुम आते हो,
- इदम् न मम्,
- शरीर कविता,
- फसलें और फूल,
- मानसरोवर दिन,
- सम्प्रति,
- नीली रेखा के पास तक,
- कालजयी (महाकाव्य),
- तुकों के खेल (बाल साहित्य)।
‘बुनी हुई रस्सी’ के लिए सन् 1972 ई. में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत।
काव्यगत विशेषताएँ
(क) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-गाँधी विचारधारा से प्रभावित होने के कारण इन्हें कविता का गाँधी’ कहा जाता है। प्रेमानुभूति, प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण, जन-जन की मंगल कामना निहित इनका काव्य प्रशंसनीय है।
(ख) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-मिश्रजी जन कवि हैं अतः इनकी भाषा जनता की बोलचाल की भाषा है। शब्द चयन फूलों की भाँति भाव-सुगन्ध बिखेरते हैं। तुक और लय प्रधान छन्द मुक्तक शैली पर लिखे गए हैं।
साहित्य में स्थान-प्रयोगवादी कविता के प्रथम कवि यथार्थ चित्रण में कुशल भवानीप्रसाद मिश्र की समानता हिन्दी का अन्य कोई कवि नहीं कर सकता।
महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
रिक्त स्थान पूर्ति-
1. मीराबाई का जन्म हुआ था सन्………………में। (1498 ई./1518 ई.)
2. रसखान का जन्म संवत्…………..में हुआ था। (1620 वि./1615 वि.)
3. मैथिलीशरण गुप्त के पिताजी का नाम………………था। (रामशरण गुप्त/रामचरण गुप्त)
4. सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म……………….में हुआ था। (कौसानी (अल्मोड़ा)/नैनीताल)
5. बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ ने………………..आन्दोलनों में भाग लिया। (राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय)
उत्तर-
1. 1498 ई.,
2. 1615 वि.,
3. रामचरण गुप्त,
4. कौसानी (अल्मोड़ा),
5. राष्ट्रीय।
सही विकल्प चुनिए-
1. रहीम मध्ययुगीन प्रतिनिधि कवि थे
(क) दरबारी संस्कृति के
(ख) स्वतन्त्र प्रकृति के
(ग) पराधीन वातावरण के
(घ) नीति-रीति के।
उत्तर-
(क) दरबारी संस्कृति के
2. पंत गाँधीजी के आन्दोलन में शामिल हो गए
(क) सहयोग
(ख) असहयोग
(ग) राष्ट्रीय
(घ) क्षेत्रीय।
उत्तर-
(ख) असहयोग
3. पंतजी स्वभाव के कवि थे
(क) कोमल
(ख) सुकुमार
(ग) कोमल और सुकुमार
(घ) रहस्य प्रधान।
उत्तर-
(ग) कोमल और सुकुमार
4. नरोत्तमदास की रचना का नाम है
(क) सुदामाचरित
(ख) कृष्णचरित
(ग) रामचरित
(घ) बुद्धचरित।
उत्तर-
(क) सुदामाचरित
5. तुलसीदास महान् कवि थे
(क) आदिकाल के
(ख) रीतिकाल के
(ग) भक्तिकाल के
(घ) आधुनिक काल के।
उत्तर-
(ग) भक्तिकाल के
सही जोड़ी मिलाइए-
उत्तर-
(i) → (ख),
(ii) → (क),
(iii) → (ङ),
(iv) → (ग),
(v) → (घ)।
सत्य/असत्य-
1. ‘नवीन’ जी भारतीय संविधान परिषद् एवं भारतीय संसद के सदस्य रहे।
2. पंत की भाषा कोमल पदावली से रहित श्रुति कटु है।
3. मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रपति ने राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया।
4. रहीम के पिता का नाम सरदार बैरमखाँ खानखाना था।
5. रसखान की कविता निश्चय ही रस की खान है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर-
1. मीराबाई का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
मेड़ता के समीप चौकड़ी गाँव में।
2. रसखान किसकी भक्ति में दिन रात लीन हो गए ?
उत्तर-
भगवान श्रीकृष्ण की।
3. नीति, शृंगार और प्रेम किसकी कविता के विषय हैं ?
उत्तर-
रहीम।
4. कक्षा नौ तक शिक्षा प्राप्त करके ही कवि बनने का गौरव किसे प्राप्त है ?
उत्तर-
मैथिलीशरण गुप्त।
5. पन्त की कविता में कौन-सा दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर-
दार्शनिकतावादी।