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MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 7 मेरे बचपन के दिन

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 7 मेरे बचपन के दिन ( महादेवी वर्मा )

लेखक – परिचय

जीवन परिचय – महादेवी वर्मा को ‘आधुनिक युग की मीरा’ कहा जाता है। प्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका महादेवी वर्मा का जन्म 1907 में उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इन्दौर (म.प्र.) में हुई थी। उन्होंने प्रयाम विश्वविद्यालय में संस्कृत में एम. ए. किया। इसके बाद प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या के पद को सुशोभित किया। बाद में वहीं कुलपति बनीं। विक्रम, कुमायूँ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि से अलंकृत किया। भारत सरकार ने उनकी साहित्य साधना के लिए उन्हें पद्मविभूषण तथा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफी प्रयास किया।
सन् 1929 में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं किंतु गाँधी जी की प्रेरणा से वे समाज सेवा में लग गई। उन्होंने शिक्षा तथा साहित्य क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया। उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखते हुए उन्हें उ.प्र. की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1987 में इस यशस्विनी लेखिका का देहांत हो गया।
रचनाएँ – महादेवी वर्मा जी की गद्य रचनाएँ है- स्मृति की रेखाएँ, अतीत के चलचित्र, पथ के साथी, मेरा परिवार, श्रंखला की कड़ियाँ आदि। पद्य रचनाएँ हैं- रश्मि, नीहार, सांध्यगीत, नीरजा, यामा, दीप शिखा आदि।
साहित्यिक रचनाएँ-महादेवी वरुणा करुणा और मानवतावाद के भावों को प्रकट करने वाली लेखिका हैं। उन्होंने जहाँ दीन-हीन मानवता का मार्मिक चित्रण किया है, वहीं निरीह पशु-पक्षियों का भी हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। उन्होंने हिंदी गद्य साहित्य में संस्मरण एवं रेखाचित्र को बुलंदियों तक पहुँचाया। उनके गद्य में यत्र-तत्र विचारों की गहराई और कविता जैसी मधुरता बिखरी हुई है।
भाषा-शैली – महादेवी जी की गद्य भाषा अनूठी है। हिन्दी के लेखों में महादेवी जी के गद्य अलग से पहचान लिए जाते है। उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा-शैली सरल और स्पष्ट है। उनका शब्द चयन प्रभावपूर्ण है। उनको वाक्यों में मधुरता, तरलता, मार्मिकता का रूप देखने को मिलता है। उनका एक-एक शब्द अनुभूति के रस में निमग्न जान पड़ता है।
पाठ का सार
‘मेरे बचपन के दिन’ महादेवी वर्मा द्वारा रचित संस्मरण है। इसमें उन्होंने अपने बचपन की कुछ यादें प्रस्तुत की हैं।
महादेवी वर्मा के खानदान में लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। लगभग दो सौ वर्षों बाद लेखिका के बाबा द्वारा दुर्गा जी की पूजा के उपरांत, माँ के आशीर्वाद से लेखिका का जन्म हुआ। अतः महादेवी वर्मा का बचपन खूब खुशहाल रहा। उन्हें उर्दू, फारसी, अंग्रेजी तथा संस्कृत पढ़ने की सुविधा दी गई। उनकी माता ने उन्हें हिंदी पढ़ने के लिए प्रेरित किया। लेखिका को ‘क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज’ में पाँचवी कक्षा में प्रवेश दिलाया गया। यहाँ विभिन्न धर्मों की लड़कियाँ थीं। सभी एक साथ मेस में खाना खाती थीं।
लेखिका का छात्रावास के कमरे में चार लड़कियों के साथ रहा पड़ा जिनमें उनकी अप्रतिम सहेली सुभद्रा कुमारी चौहान थीं, जो उनसे दो साल बड़ी थीं। संयोग से दोनों ही कविताएँ लिखती थीं। एक दिन सुभद्रा कुमारी चौहान को लगा कि महादेवी जी भी छिप-छिपकर कविताएँ लिखती है, जिसे उन्होंने उजागर कर दिया। अब दोनों में गहरी मित्रता हो गई।
सन् 1917 की बात है। उन्हीं दिनों कवि-सम्मेलन होने लगे। हिंदी के प्रचार का युग था। महादेवी जी भी सम्मेलन में जाने लगीं। वहाँ अध्यक्ष के पद पर हरिऔध, श्रीधर पाठक और रत्नाकर जी जैसे महान कवित होते थे। वे अपना नाम सुनने को बेचैन रहती थीं। उन्हें प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था।
एक कवि सम्मेलन में महादेवी जी को नक्काशीदार चाँदी का कटोर भेंट स्वरूप मिला। उन्हीं दिनों गांधी जी स्वतंत्रता आन्दोलन का केन्द्र ‘आनंदभवन’ आए। सभी छात्राएँ अपने जेब खर्च में से कुछ राशि देश-हित के लिए अर्पित करती थीं। महादेवी जी ने बापू को वह कटोरा दिखाया। गांधी जी ने उनसे कविता तो नहीं सुनी बल्कि कटोरा जरूर रख लिया। इस पर महादेवीय को अति प्रसन्नता हुई।
छात्रावास में जेबुन नाम की एक मराठी कन्या महादेवी जी की साफ-सफाई का कार्य करती थी। वह मिली-जुली हिंदी और मराठी भाषा बोलती थी। वहीं पर उस्तानी बेगम को उसकी मराठी भाषा पर एतराज रहता था। परंतु जेबुन कहती थी- ‘हम मराठी हैं तो मराठी ही बोलेंगे।’ सांप्रदायिकता तो कहीं रंगमात्र भी नहीं थी। सभी एक ही प्रार्थना करते थे। कहीं कोई विवाद न था।
जब महादेवी जी विद्यापीठ आईं तब भी उनमें बचपन के संस्कार उसी तरह बने रहे। जिस कम्पाउंड में महादेवी रहती थीं, उसी में जवारा के पुराने नवाब भी रहते थे। उनकी बेगम आग्रह करती थीं कि महादेवी उन्हें ‘ताई जी’ कहें। बेगम के बच्चे महादेवी को माँ को ‘चचीजान’ कहा कहा करते थे। बच्चों के जन्म दिन एक-दूसरे के यहाँ मनाए जाते थे। बेगम साहिबा राखी पर अपने बच्चों को पानी तब तक नहीं देती थीं जब तक महादेवी उनकी कलाई पर राखी न बाँध देती। मुहर्रम पर सभी के लिए एक साथ वस्त्र बनते थे।
महादेवी वर्मा का जब छोटा भाई जन्मा तो बेगम साहिबा ने कहकर नेग लिया और ताई बनकर वस्त्र आदि भेंट किए। बेगम साहिबा ने ही उसका नाम ‘मनमोहक’ रखा। वही मनमोहन बाद में जम्मू और गोरखपुर यूनीवर्सिटी के वाइसचांसलर बने। बेगम साहिबा के घर में अवधी बोली जाती थी। परंतु हिंदी और उर्दू भी चलती थी। पहले वातावरण में जितनी निकटता थी. वह अब सपना हो गई है। यह सपना सच हो जाता तो भारत कुछ और ही हो गया होता।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है।’ इस कथन के आलोक में आप यह पता लगाएँ कि –
(क) उस समय लड़कियों की दशा कैसी थी?
उत्तर-लेखिका के जन्म के समय अर्थात् 1900 के आसपास समाज में स्त्रियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी। पितृवंशीय व्यवस्था होने के कारण पुत्रों की अत्यधिक पूछ थी। उस समय अनेक ऐसे क्षेत्र थे, जहाँ लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। लड़कियों के लिए शिक्षा व्यवस्था नहीं के बराबर थी। समाज में बालविवाह, सती प्रथा आदि कुरीतियों ने महिलाओं की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया था।
(ख) लड़कियों के जन्म के सम्बन्ध में आज कैसी परिस्थितियाँ हैं?
उत्तर- आज की परिस्थितियाँ अतीत से काफी अच्छी है। लड़कियों के विकास के लिए कई सरकारी – गैर सरकारी योजनाएँ चल रही हैं। लड़कियों की हत्या और भ्रूण हत्या से घिटते लिंगानुपात ने सबको सचेत कर दिया है। अब लोग लड़कियों को लड़कों जैसा समझने लगे।
प्रश्न 2. लेखिका उर्दू-फारसी क्यों नहीं सीख पाईं? ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर-लेखिका को उर्दू-फारसी सीखने की जिज्ञासा नहीं थी। उनके मन में बैठ गया था कि ये भाषाएँ सीखना मेरे बस की बात नहीं है। उर्दू सिखाने वाले मौलवी के आने पर स्वयं को चारपाई के नीचे छिपा लेती थीं।
प्रश्न 3. लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर-लेखिका ने ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ में अपनी माँ की अनेक विशेषताओं का वर्णन किया है, जिनमें प्रमुख निम्नानुसार हैं
(i) धार्मिक प्रवृत्ति लेखिका की माँ धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। वे पूजा-पाठ बहुत करती थीं।
(ii) संस्कारी एवं सुसंस्कृत लेखिका की माँ अत्यन्त संस्कारी एवं सुसंस्कृत थीं। गीता में उनकी विशेष रुचि थी। लेखिका को उन्होंने पंचतंत्र पढ़ना सिखाया। घर में हिन्दी का माहौल बनाया। जिसका लेखिका पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
(iii) विभिन्न भाषाओं एवं लेखन कला में दक्ष-लेखिका की माँ को हिन्दी, संस्कृत एवं ब्रजभाषा का ज्ञान था। वे बचपन में लिखा भी करती थी।
(iv) धार्मिक सहिष्णुता – वे सभी धर्मों को समान समझती थीं। जवारा के नवाब के परिवार से उनके मधुर सम्बन्ध थे।
प्रश्न 4. जवारा के नवाब के साथ अपने पारिवारिक सम्बन्धों को लेखिका ने आज के सन्दर्भ में स्वप्न जैसा क्यों कहा है ?
उत्तर-लेखिका के समय में हिन्दू मुस्लिम मिलजुलकर रहते थे। दोनों एक-दूसरे के त्योहारों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। सांप्रदायिक वैमनस्यता नहीं थी। आज ऐसी स्थिति नहीं है। वह स्थिति स्वप्न हो गई है।
प्रश्न 5 महादेवी वर्मा के घर का वातावरण धार्मिक था। ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-महादेवी वर्मा के घर का माहौल धार्मिक था। स्वयं लेखिका की माँ सुबह प्रभाती तथा शाम को मीरा का कोई पद गाती थीं। उनके घर में नित्य सुबह ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ के बोल गूँजा करते थे। वे पूजा-पाठ बहुत करती थीं। यहीं नहीं, कई पीढ़ियों से परिवार में लड़की नहीं होने पर लेखिका के बाबा ने बहुत दुर्गापूजा की जिस घर की कुल देवी/देवता हों, उस घर का माहौल धार्मिक होना स्वभाविक है।
प्रश्न 6. महादेवी के जन्म लेने पर उनकी बहुत खातिर हुई; जबकि उस समय लड़कियों को सामाजिक बोझ समझा जाता था। क्यों?
उत्तर-लेखिका के घर में पिछले दो सौ वर्षों में एक भी लड़की नहीं हुई थी। वो बोझ समझी जाती थी। देवी दुर्गा की आराधना पर लेखिका को उनसे माँगा था। अतः महादेवी के जन्म लेने पर उनकी बहुत खातिर हुई।
प्रश्न 7. लेखन कार्य के लिए महादेवी वर्मा को प्रारम्भिक प्रेरणा किससे मिली?
उत्तर-महादेवी वर्मा को लेखन कार्य के लिए प्रारम्भिक प्रेरणा अपनी माँ से मिली। उनकी माँ भी बचपन में लिखती थीं। मीरा से उन्हें विशेष लगाव था। वे मीरा के पद अकसर गाती थीं। उन्हें सुनकर महादेवी वर्मा ने ब्रजभाषा में लिखना आरम्भ किया। परन्तु सुभद्रा कुमारी के सम्पर्क में आने के बाद वे हिन्दी खड़ी बोली में लिखने को प्रेरित हुईं। उनकी लेखनी में दिन-प्रतिदिन निखार आता गया। एक दिन वे एक महान कवयित्री बन गई।
प्रश्न 8. सुभद्रा कुमारी ने महादेवी वर्मा के लेखन पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर- महादेवी वर्मा अपनी माँ से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में लिखा करती थीं। परन्तु जब स्कूल के छात्रावास में उन्हें कमरे में सुभद्रा कुमारी जैसी कवयित्री मिलीं, तो उन्होंने देखा कि सुभद्रा कुमारी खड़ी बोली में लिख रही हैं। उनसे प्रभावित होकर वे ब्रजभाषा त्यागकर खड़ी बोली में अपनी कविताएँ लिखने लगी।
प्रश्न 9. क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज ‘राष्ट्रीय एकता और अखंडता’ का एक जीवंत उदाहरण था। कैसे? ‘मेरे बचपन के दिन’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज का वातावरण बहुत अच्छा था। वहाँ हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई आदि सभी धर्मों की एक साथ रहती थीं साथ खेलते और साथ ही सोते थे। वे आपस में सद्भावनापूर्वक रहते थे। सभी के लिए एक मेस था, जिसमें प्याज भी वर्जित था। सभी भले ही अलग-अलग प्रांतों से सम्बन्ध रखती और अपनी भाषा बोलती थी, परन्तु सबको हिन्दी तथा उर्दू पढ़ना अनिवार्य था। सभी एक साथ प्रार्थना करती थीं उनमें सांप्रदायिक भावना नाममात्र भी नहीं थी। इन तथ्यों के आधार पर कह सकते हैं कि क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता का एक जीवंत उदाहरण था।’
प्रश्न 10. महादेवी वर्मा ने किस इच्छा से गाँधीजी को कटोरा दिखाया ? गाँधीजी की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर- महादेवी वर्मा ने कटोरा दिखाते हुए गाँधीजी से आशा कि थी कि वे कविता, जिस पर पुरस्कार मिला, उसके बारे में जरूर. पूछेंगे परन्तु गाँधीजी ने उन्हें निराश किया। उन्होंने कविता के बारे में लेखिका से कोई प्रश्न नहीं किया। उन्होंने कविता सुनाने को लेखिका से नहीं कहा, जिसकी लेखिकी को उम्मीद थी। गाँधीजी कटोरा हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे’ । कवयित्री ने नि:संकोच वह कटोरा गाँधीजी को भेंट कर दिया।
प्रश्न 11. मिशन स्कूल का वातावरण कैसा था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मिशन स्कूल का वातावरण लेखिका के अनुकूल नहीं था। महादेवी ने बचपन से संस्कृत पढ़ी थी और मिशन स्कूल का वातावरण अंग्रेजों के अनुकूल था। वहाँ की बोलचाल, वेषभूषा, प्रार्थना सभी कुछ अलग थी महादेवी वर्मा को यह रास नहीं आया। उन्होंने मिशन स्कूल नहीं जाने का निर्णय लिया।
प्रश्न 12. महादेवी वर्मा के साहित्यकार बनने में सहायक तत्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- महादेवी वर्मा को साहित्यकार बनाने में परिवारिक परिवेश तथा छात्रावास के वातावरण का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। उनके परिवार का प्रत्येक सदस्य सुशिक्षित था। उनके बाबा उर्दू-फारसी के ज्ञाता थे। पिताजी अंग्रेजी जानते थे तथा माता हिन्दी और संस्कृत जानती थीं, वे बचपन में लिखती भी थीं। परिवार से ही महादेवी को तुकबंदी की आदत पड़ी। क्रास्थवेट कॉलेज जाने पर उन्हें सुभद्रा कुमारी जैसा सहयोगी मिली सुभद्रा कुमारी ने महादेवी की बहुत सहायता की। स्त्री दर्पण पत्रिका, अध्यापिका का मार्ग दर्शन तथा बापू का आशीर्वाद अन्य ऐसे तत्व हैं, जिन्होंने महादेवी वर्मा को एक श्रेष्ठ साहित्यकार बना दिया।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) महात्मा गाँधी को लेखिका ने ………. दिखाया। (कविता संग्रह / कटोरा)
(ii) आनन्द भवन का सम्बन्ध …………. से था। (स्वतंत्रता संघर्ष / निवास)
(iii) जेबुनिस्सा ………… की रहने वाली थी । (पूना / कोल्हापुर)
(iv) नवाब साहिबा लेखिका की माँ को ………  कहती थी। (रानी / दुल्हन)
(v) जवारा के नवाब ………… में रहते थे।  (कोठी/बंगले)
उत्तर- (1) कटोरा, (ii) स्वतंत्रता संघर्ष (iii) कोल्हापुर, (iv) दुल्हन, (v) बंगले ।
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –
(i) मनमोहन वर्मा लेखिका के छोटे भाई थे।
(ii) ‘स्त्री-दर्पण’ एक पत्रिका का नाम है।
(iii) क्रास्थवेट एक राजभवन है।
(iv) लेखिका ने कटोरा नेहरूजी को दिखाया।
(v) लेखिका के बाबा ने लड़की पैदा हो इसके लिए हनुमान जी की पूजा की थी ।
उत्तर- (i) सत्य, (ii) सत्य, (iii) असत्य, (iv) असत्य, (v) असत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
(i) परमधाम भेजने का क्या अर्थ है ?
(ii) लेखिका की माता कहाँ की थी ?
(iii) छात्रावास में लेखिका की साथिन कौन थी?
(iv) जब सब खेलते थे, तब लेखिका का क्या करती थी ?
(v) ‘स्त्री – दर्पण’ क्या है ?
उत्तर- (i) परम धाम भेजने का अर्थ मार डालना है।
(ii) लेखिका की माता जबलपुर (म.प्र.) की थी।
(iii) छात्रावास में लेखिका की साथिन सुभद्रा कुमारी चौहान थी।
(iv) जब सब खेलते थे, तब लेखिका कविता लिखती थी।
(v) ‘स्त्री-दर्पण’ एक पत्रिका का नाम है?
महत्वपूर्ण गद्यांश एवं सम्बन्धित प्रश्नोत्तर
गद्यांश 1. “बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र – सा में आकर्षण होता है। कभी-कभी लगता है, जैसे सपने में सब देखा होगा। परिस्थितियाँ बहुत बदल जाती हैं। अपने परिवार में मैं कई पीढ़ियों के बाद उत्पन्न हुई। मेरे परिवार में प्रायः दो सौ वर्ष तक कोई लड़की थी ही नहीं सुना है, उसके पहले लड़कियों को पैदा होते ही परमधाम भेज देते थे। फिर मेरे बाबा ने बहुत दुर्गा पूजा की। हमारी कुल देवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई और मुझे वह सब नहीं सहना पड़ा, जो अन्य लड़कियों को सहना पड़ता है। परिवार में बाबा फारसी और उर्दू जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी | हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था। “
प्रश्न 1. बचपन की स्मृतियों का क्या असर रहता है?
उत्तर- जब भी बचपन की याद आती है, मन प्रसन्नता से भर जाता है। बुझे अनबुझे प्रश्न दिमाग में आने लगते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि बचपन क्यों चला गया। क्या वह पुनः आ सकता है।
प्रश्न 2. ‘परमधाम भेज देते थे’ यहाँ परमधाम से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- परमधाम भेजने से तात्पर्य मृत्युलोक भेजना है, अर्थात् मार देना । लेखिका के पूर्वज लड़कियों को पैदा होते ही मार देते थे। अतः दो सो वर्षों तक उनके कुल में लड़कियाँ नहीं हुईं।
प्रश्न 3. लड़की पैदा हो, इसके लिए लेखिका के बाबा ने क्या किया?
उत्तर- अपने परिवार को शापमुक्त करने तथा घर में लड़की पैदा होने के लिए लेखिका के बाबा ने देवी दुर्गा की बहुत पूजा अर्चना की।
गद्यांश 2. “मेरी माता जबलपुर से आईं तब वे अपने साथ हिन्दी लाईं। वे पूजा-पाठ भी बहुत करती थीं। पहलेपहले उन्होंने मुझको ‘पंचतंत्र’ पढ़ना सिखाया। बाबा कहते थे, इसको हम विदुषी बनाएँगे। मेरे सम्बन्ध में उनका विचार बहुत ऊँचा रहा। इसलिए ‘पंचतंत्र’ भी पढ़ा मैंने, संस्कृत भी पढ़ी। ये अवश्य चाहते थे कि मैं उर्दू-फारसी सीख लूँ, लेकिन वह मेरे वश की नहीं थी। मैंने जब एक दिन मौलवी साहब को देखा तो बस, दूसरे दिन मैं चारपाई के नीचे जा छिपी। तब पंडित जी आए संस्कृत पढ़ाने । माँ थोड़ी संस्कृत जानती थी। गीता में उन्हें विशेष रुचि थी। पूजा-पाठ के समय मैं भी बैठ जाती थी और संस्कृत सुनती थी। उसके उपरांत उन्होंने मिशन स्कूल में रख दिया मुझको। मिशन स्कूल में वातावरण दूसरा था, प्रार्थना दूसरी थी। मेरा मन नहीं लगा। वहाँ जाना बंद कर दिया। जाने में रोने-धोने लगी। तब उन्होंने मुझको क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज में भेजा, जहाँ मैं पाँचवें दर्जे में भर्ती हुई। यहाँ का वातावरण बहुत अच्छा था। उस समय हिन्दू लड़कियाँ भी थीं, ईसाई लड़कियाँ भी थीं। हम लोगों का एक ही मेस था। उस मेस में प्याज तक नहीं बनता था।”
प्रश्न 1. लेखिका की माता कहाँ की थीं? उनके व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-लेखिका की माता जबलपुर मध्यप्रदेश की रहने वाली थीं। उनका व्यक्तित्व शालीन, सीधा-साधा, ईश्वर में विश्वास करने वाली, धार्मिक तथा शिक्षित महिला थी। उनका विचार अत्यन्त शुद्ध एवं ऊँचा था। उन्हें घर के सभी सदस्य हृदय से चाहते थे।
प्रश्न 2. लेखिका के वश में क्या नहीं था?
उत्तर-लेखिका की माँ ने लेखिका को पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ायी। वे चाहती थीं कि लेखिका उर्दू-फारसी भी पढ़ ले। इसके लिए उन्होंने एक शिक्षक (मौलवी) भी रखा। परन्तु उर्दू-फारसी सीखना लेखिका के वश में नहीं था ।
प्रश्न 3. लेखिका के मेस की क्या विशेषता थी?
उत्तर-लेखिका के क्रस्थवेट गर्ल्स स्कूल की मेस में विशेषता यह थी कि यहाँ सभी धर्मों के अनुयायी एक साथ खाते थे। मेस में प्याज तक नहीं बनता था। मेस शुद्ध शाकाहारी तथा साम्प्रदायिक एकता का जीता जागता उदाहरण था।
गद्यांश 3. वहाँ छात्रावास के हर एक कमरे में हम चार छात्राएँ रहती थीं। उनमें पहली ही साथिन सुभद्रा कुमारी मिलीं। सातवें दर्जे में वे मुझसे दो साल सीनियर थीं। वे कविता लिखती थीं और मैं भी बचपन से तुक मिलाती आई थी। बचपन में माँ लिखती थीं, पद भी गाती थीं। मीरा के पद विशेष रूप से गाती थीं। सवेरे ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ यही सुना जाता था। प्रभाती गाती थीं। शाम को मीरा का कोई पद गाती थीं। सुन-सुनकर मैंने भी ब्रजभाषा में लिखना आरम्भ किया यहाँ आकर देखा कि सुभद्रा कुमारी जी खड़ी बोली में लिखती थीं। मैं भी वैसा ही लिखने लगी। लेकिन सुभद्रा जी बड़ी थीं, प्रतिष्ठित हो चुकी थीं। उनसे छिपा-छिपाकर लिखती थी मैं । “
प्रश्न 1. लेखिका के वश में क्या नहीं था ?
उत्तर-लेखिका की माँ ने लेखिका को पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ायी वे चाहती थीं कि लेखिका उर्दू-फारसी भी पढ़ ले। इसके लिए उन्होंने एक शिक्षक (मौलवी) भी रखा। परन्तु उर्दू-फारसी सीखना लेखिका के वश में नहीं था।
प्रश्न 2. लेखिका के मेस की क्या विशेषता थी?
उत्तर-लेखिका के क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल की मेस में विशेषता यह थी कि यहाँ सभी धर्मों के अनुयायी एक साथ खाते थे। मेस में प्याज तक नहीं बनता था। मेस शुद्ध शाकाहारी तथा सांप्रदायिक एकता का जीता जागता उदाहरण था।
गद्यांश 4. वहाँ छात्रावास के हर एक कमरे में हम चार छात्राएँ रहती थीं। उनमें पहली ही साथिन सुभद्रा कुमारी मिलीं। सातवें दर्जे में वे मुझसे दो साल सीनियर थीं। वे कविता लिखती थीं और मैं भी बचपन से तुक मिलाती आई थी। बचपन में माँ लिखती थीं, पद भी गाती थीं। मीरा के पद विशेष रूप से गाती थीं। सवेरे ‘जागिए कृपानिधान पंछी बन बोले’ यही सुना जाता था। प्रभाती गाती थीं। शाम को मीरा का कोई पद गाती थीं। सुनसुनकर मैंने भी ब्रजभाषा में लिखना आरम्भ किया। यहाँ आकर देखा कि सुभद्रा कुमारी जी खड़ी बोली में लिखती थीं। मैं भी वैसा ही लिखने लगी। लेकिन सुभद्रा जी बड़ी थीं, प्रतिष्ठित हो चुकी थीं। उनसे छिपा-छिपाकर लिखती थी मैं।”
प्रश्न 1. लेखिका के स्कूल के छात्रावास में एक कमरे में कितनी छात्राएँ रहती थीं?
उत्तर-लेखिका के स्कूल के चार लड़कियाँ रहती थीं। छात्रावास में एक कमरे में
प्रश्न 2. छात्रावास में लेखिका की पहली साथिन कौन थीं?
उत्तर-छात्रावास में लेखिका की पहली साथिन सुभद्राकुमारी चौहान थीं, जो आगे चलकर एक प्रसिद्ध कवयित्री हुईं।
प्रश्न 3. “जागिए कृपा निधान पंछी बन बोले’ किसकी पंक्ति हैं?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति भक्तिकाल की प्रसिद्ध कवयित्री मीराबाई की है।
प्रश्न 4. महादेवी किससे छिपा-छिपाकर कविता लिखती थीं?
उत्तर- महादेवी अपनी कविताएँ सुभद्राकुमारी चौहान से छिपा-छिपाकर लिखती थीं।
गद्यांश 5. एक दिन उन्होंने कहा, ‘महादेवी, तुम कविता लिखती हो?’ तो मैंने डर के मारे कहा, ‘नहीं।’ अंत में उन्होंने मेरी किताबों की तलाशी ली और बहुत-सा निकल पड़ा उसमें से। तब जैसे किसी अपराधी को पकड़ते हैं, ऐसे उन्होंने एक हाथ में कागज लिए और एक हाथ से मुझको पकड़ा और पूरे होस्टल में दिखा आईं कि ये कविता लिखती है। फिर हम दोनों की मित्रता हो गई। क्रास्थवेट में एक पेड़ की डाल नीची थी। उस डाल पर हम लोग बैठ जाते थे। और लड़कियाँ खेलती थीं तब हम लोग तुक मिलाते थे।”
प्रश्न 1. महादेवी ने सुभद्रा से झूठ क्यों बोला?
उत्तर- सुभद्रा, महादेवी से बड़ी थीं तथा उस समय प्रसिद्ध हो चुकी थी। महादेवी वर्मा उनका बहुत सम्मान करती थीं। महादेवी ने उनसे झूठ बोला कि उन्हें डर था कि कविता लिखते देखकर सुभद्रा बहुत गुस्सा होंगी तथा मुझे डाँट लगाएँगी।
प्रश्न 2. क्रास्थवेट क्या है? उसकी क्या विशेषता थी? उत्तर-क्रास्थवेट एक स्कूल का नाम हैं जिसमें महादेवी वर्मा तथा सुभद्रा कुमारी चौहान ने एक साथ एक कमरे में रहकर शिक्षा ग्रहण की। इस स्कूल में सभी धर्मों के अनुयायी पढ़ते थे। परन्तु इस स्कूल के मेस में प्याज तक नहीं बनता था। मेस शुद्ध शाकाहारी था।
प्रश्न 3. जब सब खेलते थे, उस समय लेखिका क्या करती थीं?
उत्तर-जब सभी सहपाठी खेलते थे, उस समय महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ पेड़ की डाल पर बैठकर कविताओं का तुक मिलाती थी।
गद्यांश 6. उस समय एक पत्रिका निकलती थी- स्त्री दर्पण’-उसी में भेज देते थे। अपनी तुकबंदी छप भी जाती थी। फिर यहाँ कवि सम्मेलन होने लगे तो हम लोग भी उनमें जाने लगे। हिन्दी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917 में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गाँधीजी का सत्याग्रह आरम्भ हो गया और ‘आनंद भवन’ स्वतंत्रता के संघर्ष का केन्द्र हो गया। जहाँ-तहाँ हिन्दी का भी प्रचार चलता था। कवि सम्मेलन होते थे तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष होते थे, कभी श्रीधर पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था। सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें।”
प्रश्न 1. ‘स्त्री-दर्पण’ क्या है?
उत्तर- ‘स्त्री- दर्पण’ एक पत्रिका का नाम है।
प्रश्न 2. 1917 में कौन-सी घटना घटी?
उत्तर- 1917 में गाँधीजी ने सत्याग्रह शुरु किया था और आनन्द भवन स्वतंत्रता संघर्ष का केन्द्र था।
प्रश्न 3. मैडम लेखिका को लेकर कहाँ जाती थीं?
उत्तर- मैडम लेखिका को लेकर कवि-सम्मेलनों में जाती थी।
प्रश्न 4. ‘आनन्द भवन’ किससे सम्बन्धित था?
उत्तर – ‘आनन्द भवन’ पण्डित नेहरू से सम्बन्धित था। यह उन दिनों स्वतंत्रता संघर्ष का केन्द्र था।
गद्यांश 7. “उसी बीच आनन्द भवन में बापू आए। हम लोग तब अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने देश के लिए बचाते थे और जब बापू आते थे तो वह पैसा उन्हें दे देते थे। उस दिन जब बापू के पास मैं गई तो अपना कटोरी भी लेती गई। मैंने निकालकर बापू को दिखाया। मैंने कहा, ‘कविता सुनाने पर मुझको यह कटोरा मिला है।’ कहने लगे, ‘अच्छा, दिखा तो मुझको।’ मैंने कटोरा उनकी ओर बढ़ा दिया तो उसे हाथ में लेकर बोले, ‘तू देती है इसे?’ अब मैं क्या कहती? मैंने दे दिया और लौट आई। दुख यह हुआ कि कटोरा लेकर कहते, कविता क्या है? पर कविता सुनाने को उन्होंने नहीं कहा, लौटकर अब मैंने सुभद्रा जी से कहा कि कटोरा तो चला गया। सुभद्रा जी ने कहा, ‘और जाओ दिखाने!’ फिर बोलीं, ‘देखो भाई, खीर तो तुमको बनानी होगी। अब तुम चाहे पीतल की कटोरी में खिलाओ, चाहे फूल के कटोरे में- फिर भी मुझे मन ही मन प्रसन्नता हो रही थी कि पुरस्कार में मिला अपना कटोरा मैंने बापू को दे दिया।
प्रश्न 1. लेखिका ने बापू को क्या दिखाया?
उत्तर-लेखिका महादेवी वर्मा ने बापू को कविता गायन में मिला चाँदी का कटोरा दिखाया।
प्रश्न 2. लेखिका ने पुरस्कार में मिला कटोरा किसे दिया?
उत्तर-लेखिका ने पुरस्कार में मिला कटोरा बापू के आग्रह पर उन्हें दे दिया।
प्रश्न 3. लेखिका देश के लिए पैसे कैसे जुटाती थीं?
उत्तर-लेखिका देश के लिए पैसे अपने जेब खर्च में से हमेशा एक-एक, दो-दो आने बचाकर जुटाती थीं।
प्रश्न 4. लेखिका गाँधीजी से दुखी क्यों हुई?
उत्तर-लेखिका गांधीजी के व्यवहार से इसलिए दुखी हुई उन्होंने कविता गायन में पुरस्कार स्वरूप मिला कटोरा तो ले लिया, परन्तु उन्होंने ये नहीं पूछा कि कविता क्या है या वह कविता मुझे सुनाओ।
प्रश्न 5. ‘फूल के कटोरे’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-फूल के कटोरे से अभिप्राय कांसे से बना कटोरा है।
गद्यांश 8. “सुभद्रा जी छात्रावास छोड़कर चली गईं। तब उनकी जगह एक मराठी लड़की जेबुन्निसा हमारे कमरे में आकर रही। वह कोल्हापुर से आई थी। जेबुन मेरा बहुतसा काम कर देती थी। वह मेरी डेस्क साफ कर देती थी, किताबें ठीक से रख देती थी और इस तरह मुझे कविता के लिए कुछ और अवकाश मिल जाता था। जेबुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिन्दी बोलती थी। मैं भी उससे कुछकुछ मराठी सीखने लगी थी। वहाँ एक उस्तानी जी थींजीनत बेगम। जेबुन जब ‘इकड़े-तिकड़े’ या ‘लोकर-लोकर’ जैसे मराठी शब्दों को मिलाकर कुछ कहती तो उस्तानी जी से टोके बिना न रहा जाता था-‘वाह! देसी कौवा, मराठी बोली!’ जेबुन कहती थी, ‘नहीं उस्तानी जी, यह मराठी कौवा मराठी बोलता है।’ जेबुन मराठी महिलाओं की तरह किनारीदार साड़ी और वैसा ही ब्लाउज पहनती थी। कहती थी, ‘हम मराठी हैं तो मराठी बोलेंगे।’ “
प्रश्न 1. सुभद्रा के जाने के बाद लेखिका के साथ रहने आई लड़की का क्या नाम था? वह महादेवी का सहयोग कैसे करती थी?
उत्तर- सुभद्रा के जाने के बाद लेखिका के साथ रहने आई लड़की का नाम जेबुन्निसा था। वह महादेवी वर्मा का डेस्क साफ कर देती; किताबें ठीक से रख देती तथा अन्य छोटेमोटे कार्य कर उनका सहयोग करती थीं।
प्रश्न 2. जेबुन्निसा कहाँ की रहने वाली थी? वह कौनसी भाषा बोलती थी?
उत्तर- जेबुन्निसा कोल्हापुर की रहने वाली थी। वह मराठी शब्दों से मिली-जुलीं हिन्दी बोलती थी।
प्रश्न 3. मराठी कौन बोलता था? मराठी बोलने पर किसे एतराज था?
उत्तर – मराठी भाषा जेबुन्निसा बोलती थी। जब वह मराठी बोलती तो समझ में नहीं आने के कारण उस्तानी जी जीनत बेगम को उसके बोलने पर एतराज होता था। वह उसे टोके बिना नहीं रहती थीं।
गद्यांश 9. मैं जब विद्यापीठ आई, तब तक मेरे बचपन का वही क्रम चला जो आज तक चलता आ रहा है। कभीकभी बचपन के संस्कार ऐसे होते हैं कि हम बड़े हो जाते हैं, जब तक चलते हैं। बचपन का एक और भी संस्कार था कि हम जहाँ रहते थे वहाँ जवारा के नवाब रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। वे बेचारे एक बँगले में रहते थे। उसी कंपाउंड में हम लोग रहते थे। बेगम साहिबा कहती थीं’हमको ताई कहो!’ हम लोग उनको ‘ताई साहिबा’ कहते थे। उनके बच्चे हमारी माँ को चाची जान कहते थे। हमारे जन्मदिन वहाँ मनाए जाते थे। उनके जन्मदिन हमारे यहाँ मनाए जाते थे।”
प्रश्न 1. बचपन के संस्कार से क्या आशय है?
उत्तर- बचपन के संस्कार से तात्पर्य उन संस्कारों से है, जो हमें बचपन में अपने घर-परिवार से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न 2. जवारा के नवाब कहाँ रहते थे? उनसे लेखिका के साथ कैसा सम्बन्ध था?
उत्तर-जवारा के नवाब एक बंगले में रहते थे। उनकी नवाबी छिन गई थी। उसी कम्पाउण्ड में लेखिका का परिवार भी रहता था। लेखिका के परिवार का नवाब साहब के परिवार से बहुत अच्छा सम्बन्ध था। वे आपस में घुलमिल कर रहते थे।
प्रश्न 3. गद्यांश के आधार पर तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- गद्यांश पढ़कर ऐसा लगता है कि तत्कालीन भारत में सांप्रदायिकता जैसी कोई चीज नहीं थी। एक कम्पाउण्ड में रहना एक-दूसरे के घर आना-जाना, नवाब की पत्नी को ताई कहकर बुलाना, लेखिका के परिवार के सदस्यों का जन्मदिन नवाब साहब के यहाँ; और उनके बच्चों का जन्मदिन लेखिका के यहाँ मनाया जाता था। तत्कालीन सामाजिक परिस्थिति अत्यन्त शांत, समृद्ध सांप्रदायिक तनाव से दूर तथा सद्भावना से ओत-प्रोत थी।
गद्यांश 10. उनका एक लड़का था। उसको राखी बाँधने के लिए वे कहती थीं। बहनों को राखी बाँधनी चाहिए। राखी के दिन सवेरे से उसको पानी भी नहीं देती थीं। कहती थीं, राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए। बार-बार कहलाती थीं- ‘भाई भूखा बैठा है, राखी बँधवाने के लिए।’ फिर हम लोग जाते थे। हमको लहरिए या कुछ मिलते थे। इसी तरह मुहर्रम में हरे कपड़े उनके बनते थे तो हमारे भी बनते ते। फिर एक हमारा छोटा भाई हुआ वहाँ, तो ताई साहिबा ने पिताजी से कहा, ‘देवर साहब से कहो, वो मेरा नेग ठीक करके रखें। मैं शाम को आऊँगी।’ वे कपड़े-वपड़े लेकर आईं। हमारी माँ को वे दुलहन कहती थीं। कहने लगीं, ‘दुल्हन, जिनके ताई-चाची नहीं होती हैं, वो अपनी माँ के कपड़े पहनते हैं, नहीं तो छह महीने तक चाची-ताई पहनाती हैं। मैं इस बच्चे के लिए कपड़े लाई हूँ। यह बड़ा सुंदर है। मैं अपनी तरफ से इसका नाम ‘मनमोहन’ रखती हूँ।”
प्रश्न 1. नवाब साहिबा के अनुसार राखी के दिन राखी बँधवाने तक भाई को कैसे रहना चाहिए?
उत्तर- नवाब साहिबा के अनुसार राखी के दिन राखी बँधवाने तक भाई को निराहार रहना चाहिए।
प्रश्न 2. नवाब साहिबा लेखिका को बार-बार क्या कहलाती थीं?
उत्तर- नवाब साहिबा लेखिका को बार-बार कहलाती थी “भाई भूखा बैठा है राखी बँधवाने के लिए।”
प्रश्न 3. नवाब साहिबा दुलहन किसे कहती थीं?
उत्तर- नवाब साहिबा लेखिका की माँ को दुल्हन कहती थीं।
प्रश्न 4. इस्लाम में मुहर्रम में किस रंग के कपड़े बनवाए जाते हैं?
उत्तर- इस्लाम में मुहर्रम में हरे रंग के कपड़े बनवाए जाते हैं।
प्रश्न 5. नवाब साहब की पत्नी ने लेखिका के छोटे भाई का नाम क्या रखा?
उत्तर- नवाब साहब की पत्नी ने लेखिका के छोटे भाई का नाम ‘मनमोहन’ रखा था।
गद्यांश 11. “वही प्रोफेसर मनमोहन वर्मा आगे चलकर जम्मू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर रहे, गोरखपुरी यूनिवर्सिटी के भी रहे। कहने का तात्पर्य यह कि मेरे छोटे भाई का नाम वहीं चला जो ताई साहिबा ने दिया। उनके यहाँ भी हिन्दी चलती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में वे अवधी बोलते थे। वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे। आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था आज वह सपना खो गया। शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और होती।”
प्रश्न 1. मनमोहन वर्मा कौन था?
उत्तर- मनमोहन वर्मा लेखिका महादेवी वर्मा के छोटे भाई थे। वे आगे चलकर जम्मू तथा गोरखपुर विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने थे।
प्रश्न 2. नवाब साहब के घर में कौन-सी भाषा बोली जाती थी?
उत्तर- नवाब साहब वैसे तो इस्लाम धर्म के अनुयायी थे। उनके यहाँ हिन्दी, उर्दू भी चलती थी। परन्तु अपने घर में वे अवधी बोलते थे।
प्रश्न 3. आज की स्थिति देखकर लेखिका को क्या लगता है?
उत्तर- आज की स्थिति देखकर लेखिका को यह लगता है, जैसे-तत्कालीन परिस्थितियाँ सपना हों। आज इस कलुषित माहौल में उस शांत और सौहार्द्रपूर्ण वातावरण का दम घुट गया। तत्कालीन समय की सामाजिक परिस्थिति आज होती तो भारत की स्थिति कुछ और ही होती।

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