MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण धातु और क्रिया
MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण धातु और क्रिया
MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण धातु और क्रिया
संस्कृत में क्रिया या कार्य को प्रकट करने वाले शब्द धातु कहे जाते हैं। इसमें प्रत्यय जोड़कर क्रियाएँ बनाई जाती हैं। क्रियाओं को प्रकट करने के लिए तीन काल होते हैं। संस्कृत में क्रिया की अवस्था को प्रकट करने के लिए दश लकार हैं।
- लटू-वर्तमान काल
- लिट्-परोक्षभूत
- लटू-सामान्य भविष्यत्
- लुट्-अनद्यन भविष्यत् काल
- लेट्-वेद में प्रयुक्त
- लोट-आज्ञार्थक
- लङ्-अनद्यतनभूत
- (8-अ) विधिलिङ-प्रार्थना, अनुग्रह
- (8-ब) आशीलिँङ-शुभकामनाद्योतक
- लुङ्-सामान्यभूत
- लृङ्-हेतुहेतुमद्धृत
रूपों की दृष्टि से सारी धातुएँ दस गणों में विभक्त हैं-
- भ्वादिगण,
- अदादि गण,
- जुहोत्यादि गण,
- दिवादि गण,
- स्वादि गण,
- बुदादि गण,
- रुधादि गण,
- तनादि गण,
- क्रियादि गण,
- चुरादि गण।
ये रूप की दृष्टि से परस्मैपदी, आत्मनेपदी और उभयपदी हैं। परस्मैपद में लट् लकार में धातु के आगे निम्नलिखित प्रत्यय जोड़े जाते हैं-

आत्मनेपद में-

प्रत्येक गण में धातु और इन प्रत्ययों के बीच अ, उ, नु, ना आदि भी जोड़े जाते हैं, तो विकरण कहलाते हैं। जैसे-भू-भू + अ + ति-भवति । कृ-कृ + अ +
ति = करोति । सु-सु + नु + ति = सुनोति। क्री-क्री + ना + ति = क्रीणाति । चुर्-चुर् . + णिच् + ति = चोरयति।
भ्वादिगण भू (होना)

गम् धातु (जाना)


दृश् (देखना)

स्था (रुकना)


जि (जीतना)

श्रु (सुनना)

वस् (रहना)


दा (देना)


शक् (सकना)


इष् (चाहना)


मुच् (छोड़ना)

विशेष-मुच् धातू उभयपदी है। यहाँ परस्मैपद के रूप दिए गए हैं। आत्मनेपद में ‘सेव्’ के तुल्य रूप होंगे।
चुरादिगण चुर् (चुराना) लट् लकार (वर्तमान काल)


कथ् (कहना)

आत्मनेपदी धातुएँ
सेव (सेवा करना)

लभ पाना


द्वि-जुआ खेलना



इसी प्रकार विद्-होना जन जानना, अपना होना के रूप बनते हैं।
