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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 19 उपायैः सर्वं शक्यम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 19 उपायैः सर्वं शक्यम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 19 उपायैः सर्वं शक्यम् (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 19 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) हस्ती कुन निपतितः? (हाथी कहाँ गिर गया?)
उत्तर:
पङ्के। (कीचड़ में)

(ख) प्रथमं कं विन्देत्? (पहले किसकी वंदना करनी चाहिए?)
उत्तर:
राजानम्। (राजा की)

(ग) हस्तेः नाम किमासीत्? (हाथी का क्या नाम था?)
उत्तर:
कर्पूरतिलकः। (कर्पूर तिलक था।)

(घ) राजा विना किं न युक्तम्? (राजा के बिना क्या उपयुक्त नहीं है?)
उत्तर:
अवस्थातुं।अवस्थातुं। (आवास करना।)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) वृद्धशृगालेन किं प्रतिज्ञातम्? (बूढ़े सियार ने क्या प्रतिज्ञा की?)
उत्तर:
वृद्ध शृगालेन प्रतिज्ञातम्-यथा बुद्धिप्रभावस्य हस्ति मरणं साधयितव्यम्। (बूढ़े सियार ने प्रतिज्ञा किया कि-मेरी बुद्धि के प्रभाव से हाथी का मरण संभव है।)

(ख) शृगालेन रिहस्य किमुक्तम्? (शृगाल ने हँसकर क्या बोला?)
उत्तर:
शृगालेन विहस्त उक्तम्-देव! मम पुच्छकावलम्बनं कृत्वा उत्तिष्ठ। (शृगाल हँसकर बोला कि-हे देव! मेरी पूँछ पकड़कर के उठो।)

(ग) केन ना आस्थातुं न युक्तम्? (किसके विना निवास करना उपयुक्त नहीं है:)
उत्तर:
राजा विना अवस्थातुं न युक्तम्। (राजा के बिना निवास करना उपयुक्त नहीं है।)

(घ) शृगालैः कः भक्षितः? (शृगालों ने किसका भोजन किया?)
उत्तर:
शृगालैः हस्ती भक्षितः। (शृंगालों ने हाथी का भोजन किया।)

(ङ) कर्पूतिलकः केन लोभेन धावति? (कर्पूरतिलक किरा लोभ से दौड़ता है?)
उत्तर:
कर्पूरलिलकः राज्यं लोभेन धावति। (कर्पूरतिलक राज्य के लोभ से दौड़ता है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) भुवि कीदृशः स्वामी युज्यते? (पृथ्वी में किस तरह (गुण वाले) राजा की स्थापना की जाती है?)
उत्तर:
भुवि अतिशुद्धः, प्रतापवानः, धार्मिकः, नीति कुशलः कुलाभिजना स स्वामी युज्यते। (पृथ्वी में अतिशुद्ध, कुलीन, प्रतापवान, धार्मिक और नीतिकुशल स्वामी की नियुक्ति की जाती है।)

(ख) पङ्केनिमग्नः हस्ती शृगालेन किमुक्तम्? (कीचड़ में गिरा हुआ हाथी सियार से क्या बोला?)
उत्तर:
पङ्के निमग्नः हस्ती शृगालेन उक्तम्-सखे शृगाल! किमधुना विधेयम्? पड़े निपतितोऽहं म्रिये। परावृत्य पश्य। (कीचड़ में गिरा हुआ हाधी सियार से बोला कि-मित्र सियार! अब क्या होगा? मैं कीचड़ में गिर गया हूँ और मरने वाला हूँ। लौटकर देखो।)

प्रश्न 4.
उचितैः शब्दैः रिस्त स्थानानि पूरयत-
(पशुभिर्मिलित्वा, त्रिये, प्रथम, लोकेऽस्मिन्, यच्छक्य)
(क) पते निपतितोऽहं म्रिये।
(ख) सर्वैः वनवासिभिः पशुभिर्मिलित्वा भवत्सकाशं प्रस्थापितः
(ग) राजन्यसति लोकेऽस्मिन् कुतो भार्या कुतो धनम्।
(घ) उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः।
(ङ) राजानं प्रथमा विन्देत्।

प्रश्न 5.
उचितमेलनं कुरुत-

प्रश्न 6.
निम्नलिखितशब्दानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
उदारहणं यथा :
शृगालैभक्षितः- शृगालः+भक्षितः। = विसर्गसन्धिः।।
(क) चोक्तम् – च+उक्तं = गुणस्वर संधिः।
(ख) ततस्तेन – ततः+तेन = विसर्गः।
(ग) सर्वैर्वनवासिभिः – सर्वैः+वनवासिभि = विसर्ग सन्धिः।
(घ) तत्रैकेन – तत्र+एकेन = वृद्धिस्वर सन्धिः।
(ङ) ततोऽसौ – ततः+असो = पूर्वरूप सन्धिः
(च) यद्ययम् – यदि +अयम् = यण सन्धिः

प्रश्न 7.
क्रियापदानां धातुं लकारं वचनं पुरुषं च लिखत-

प्रश्न 8.
अधोलिखितशब्दानां विभक्ति वचनञ्च लिखत-
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प्रश्न 9.
अधोलिखितैः अव्ययैः वाक्यनिर्माणं करुत-
(क) विना – रामेण विना दशरथः न जिवेत्।
(ख) कुतः – भवान् कुतः निवससि!
(ग) इति – अयं वंश नाम्ना गौतम इति ख्यात् आसीत्।
(घ) न – अहं दुग्धं पिवामि चायं न पिवामि।
(ङ) ततः – कर्पूरतिलकोः महापङ्के निमग्नतः।

प्रश्न 10.
अधोलिखितशब्दानां धातुं प्रत्ययञ्च पृथक् कुरुत
(क) भक्षितः -भक्ष् + क्तः।
(ख) कृतः – कृ + क्तः।
(ग) कृत्वा – कृ + क्त्वा।
(घ) प्रणम्य – प्र + नम् + ल्यप्।
(ङ) गत्वा – गम् + क्त्वा।

उपायैः सर्वं शक्यम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

संस्कृत साहित्य में कथा साहित्य का विपुल भंडार है। उसमें पंचतंत्र, कथा सरित् सागर बेताल पंचविंशितिः, विक्रमादित्य कथा; वृहत्कथा मञ्जरी, हितोपदेश इत्यादि प्रसिद्ध कथा ग्रन्थ हैं। उसमें पंचतंत्र की नीति कथाएं पशु-पक्षियों के माध्यम से प्रस्तुत की गई हैं। प्रस्तुत पाठ में कहानी के पात्र हाथी, सियार हैं जो-उपायों के द्वारा सब संभव है-नीति को मनुष्य के लिए सूचित करते हैं।

उपायैः सर्वं शक्यम् पाठ का हिन्दी अर्थ

अस्ति ब्रह्मारण्ये कर्पूरतिलको नाम हस्ती। तमवलोक्य सर्वे शृगालश्चिन्तयन्ति स्म’यद्ययं केनाप्युपायेन म्रियतेतदा अस्माकम् एतद्देहेन मासचतुष्टयस्य भोजनं भविष्यति’। तत्रैकेन वृद्धशृगालेन प्रतिज्ञातम्-‘मया बुद्धिप्रभावादस्य मरणं साधयितव्यम्।’ अनन्तरं स वञ्चकः कर्पूरतिलकसमीपं गत्वा साष्टाङ्गपातं प्रणम्य उवाच-‘देव! दृष्टिप्रसादं कुरु।’ हस्ती ब्रूते-‘कस्त्वम्, कुतः समायातः?’ सोऽवदत्-‘जम्बुकोऽहम्। सर्वैर्वनवासिभिः पशुभिर्मिलित्वा भवत्सकाशं प्रस्थापितः।’ यद्विना राज्ञा अवस्थातुं न युक्तम्, तदात्राटवीराज्येऽभिषेक्तुं भवान् सर्वस्वामिगुणोपेतो निरूपितः।

यतः :
यः कुलाभिजनाचारैरतिशुद्धः प्रतापवान्।
धार्मिको नीतिकुशलः स स्वामी युज्यते भुवि॥

अपरञ्च पश्य :
राजानं प्रथमं विन्देततो भायां ततो धनम्।
राजन्यसति लोकऽस्मिन्कुतो भार्या कुतो धनम्॥

शब्दार्थ :
अस्ति-है-is; कर्पूरतिलको-कर्पूरतिलक नाम का -Namely Karpoor Tilak; तमवलोक्य-उसे देखकर-seeing him; सद्ययं-आज मैं-today I; तत्रकेन-इनमें से एक-one among them; साधयितव्यम्-साधना चाहिए-should meditate; वञ्चकः-धूर्त/कपटी-wicked; सोऽवदत्-वह बोला-he spoke; दृष्टिप्रसादं-दृष्टि की कृपा-blessing; नीतिकुशलः-नीति में कुशल-skill in policy, good moral; युज्यते-जोड़ता है-joins कृतः -किया-did; लोकस्मिन-इस संसार में-in this world.

हिन्दी अर्थ :
ब्रह्मारण्य में कर्पूरतिलक नामक हाथी रहता था। उसे देख सभी सियारों ने विचार किया कि यदि यह किसी प्रकार मर जाए तो इसके शरीर की चार महीने की खाद्य सामग्री हो जाएगी। तब एक वृद्ध सियार ने कहा-मैं अपनी बुद्धि चातुर्य से इस हाथी को मार सकता हूँ। तब वह सियारकर्पूर तिलक (हाथी) के पास पहुँच उसे साष्टांग प्रणाम करके बोला-हे भगवान्! मुझ पर दया करो। हाथी बोला-तुम कोन हो? कहाँ से आए हो? तब वह (बूढ़ा) सियार बोला-मैं सियार हूं। वन के सभी पशु-पक्षियों ने मिलकर मुझे आपके पास भेजा है। कारण कि बिना राजा के कहीं पर भी रहना ठीक नहीं है और इस जंगल के राज्य में आपसे अच्छा अभिषेक करने योग्य दूसरा कोई नहीं है। आप में राजा के गुण विद्यमान हैं।

जैसे-इस पृथ्वी पर वही राजा हो सकता है जो कुलीन हो, आचार-विचार से शुद्ध हो, प्रतापी हो, धार्मिक हो साथ ही नीति कुशल भी हो।

और भी-सर्वप्रथम राजा को प्राप्त करना चाहिए, उसके बाद पत्नी और धन को प्राप्त करना चाहिए। यदि राजा ही प्राप्त नहीं हुआ तो कहाँ पत्नी और कहाँ धन प्राप्त हो सकता है।

2. तद्यथा लग्नवेला न विचलति तथा कृत्वा सत्वरमागम्यतां देवेन। इत्युक्त्वोत्थाय चलितः। ततोऽसौ राज्यलोभाकृष्टः कर्पूरतिलकः शृगालवर्त्मना धावन्महापङ्के निमग्नः। ततस्तेन हस्तिनोक्तम्-‘सखे शृगाल! किाधुना विधेयम्? पङ्के निपतितोऽहं म्रिये। परावृत्य पश्य।’ शृगालेन विहस्योक्तम्-‘देव! मम पुच्छकावलम्बनं कृत्वा उत्तिष्ठ। यन्मद्विधस्य वचसि त्वया प्रत्ययः कृतस्तदनुभूयताम् अशरणं दुःखम्।’

तथा चोक्तम् :
यदाऽसत्सङ्गरहितो भविष्यसि भविष्यसि।
यदाऽसज्जनगोष्ठीषु पतिष्यसि पतिष्यसि॥

ततो महापङ्के हस्ती शृगालैर्भक्षितः। अतोऽहम् ब्रवीसि-
उपायेन हि यच्छक्यं न तच्छक्यं पराक्रमैः।
शृगालेन हतो हस्ती गच्छता पङ्कवर्मना॥

शब्दार्थ :
प्रणम्य-प्रणाम करके-saluting; प्रतिज्ञातम्-प्रतिज्ञा की-promised; वञ्चकः-धृत/कपटी-wicked person; प्रस्थापित-भेजा गया-send; अटवी-जङ्गल-forest, jungal; युज्यते-उचित होता है।-Satisfied; भुवि-पृथ्वी पर-on earth; विन्देत्-प्राप्त करें-receive; महापङ्के-दलदल में-in mud; निपतितः-गिरा हुआ-fallen; परावृत्य-लौटकर-returning; विहस्य-हँसकर-laughing.

हिन्दी अर्थ :
इसलिए अभिषेक का शुभ मुहूर्त न निकल जाए, ऐसा विचार कर शीघ्रता से आप मेरे साथ चलें। ऐसा कह वह जल्दी से उठा और चल दिया। यह सुन राज्य के लोभ से आकर्षित हो कर्पूरतिलक सियार के पीछे-पीछे चला और दौड़ते हुए भयंकर कीचड़ के दल-दल में फँसकर डूबने लगा, तब उसने सियार से कहा-मित्र सियार! अब क्या करना चाहिए! मैं कीचड़ में फँस मरने वाला हूँ, लौट कर देखो। सियार ने हँसते हुए कहा-हे देव! मेरी पूँछ का सहारा लेकर तुम बाहर आ जाओ। मुझ जैसे के वचन पर तुमने भरोसा किया तो उसका परिणाम दुख ही है। उसे भोगो।

वैसे कहा भी है-जब कोई सत्संगै से रहित हाकर दुर्जनों की संगति में जाएगा। तो उसका पतन ही होगा, उसफा पतन ही होगा।

तब दलदल में फँसे हाथी को सियारों ने खा लिया। इसलिए मैं कहता हूँ-उपाय से जो सम्भव है, वह पराक्रम से नहीं हो सकता। जैसे कि शृगाल द्वारा दलदल भाग पर ले जाने के कारण हाथी मारा गया।

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