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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 नीतिश्लोकाः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 10 नीतिश्लोकाः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 10 नीतिश्लोकाः (पद्यम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 10 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपेदन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) जनपदस्यार्थे कं त्यजत्? (जनपद के लिए किसका त्याग कर देना चाहिए?)
उत्तर:
ग्राम। (ग्राम का)।

(ख) विपदि किम् आवश्यकम्? (विपत्ति में क्या आवश्यक है?)
उत्तर:
धैर्यं। (धैर्य का)।

(ग) मित्राणि रिपवः च कथं जायन्ते? (मित्र और शत्रु किससे उत्पन्न होते हैं?)
उत्तर:
व्यवहारेण। (व्यवहार द्वारा)।

(घ) सतसङ्गतिः पापं किं करोति? (अच्छी संगति पाप को क्या करती है?)
उत्तर:
अपाकरम्। (दूर करती है)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) कस्यार्थे एकं त्यजेत्? (किसके लिए एक का त्याग कर देना चाहिए?)
उत्तर:
कुलस्यार्थे एकं त्येजत्। (कुल के लिए एक का त्याग कर देना चाहिए।)

(ख) सदसि किम् अपेक्षते? (सभा में क्या अच्छा लगता है?)
उत्तर:
सदसि वाक्पटुता अपेक्षते। (सभा में वाणी या चातुर्य अच्छा लगता है।)

(ग) पापात् कः निवारयति? (पाप से निवारण कौन करता है?)
उत्तर:
पापात् सन्मित्रः निवारयति। (पाप से अच्छा मित्र निवारण करता है।)

(घ) धियः जाड्यं का हरतिः? (बुद्धि की जड़ता को कौन दूर करते हैं?)
उत्तर:
धियः जाड्य सतसंगति हरतिः। (बुद्धि की जड़ता अच्छी संगति से दूर होती है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) महात्मनां किं किं प्रकृतिसिद्धं भवति? (महात्मा जन कौन-कौन से कार्यों में सिद्ध होते हैं?)
उत्तर:
महात्मनां विपदि धैर्यम्, अभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता आदयः प्रकृतिसिद्धं भवति। (महात्माजन विपत्ति में धैर्य, अभ्युदय में क्षमा, सभा में वाक्पटुता आदि कार्यों के लिए सिद्ध होते हैं।)

(ख) बान्धवः कः अस्ति? (बान्धव कौन हैं?)
उत्तर:
उत्सवे व्यसने, दुर्भिक्षे, राष्ट्रविप्लवे, राजद्वारे, श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः अस्ति। (उत्सव में, आपत्ति में, दुर्भिक्ष में, राष्ट्र में विद्रोह होने पर, राज-दरबार और श्मशान में जो साथ देता है वही बन्धु है।)

(ग) सन्मित्रलक्षणं किम्? (अच्छे मित्र का क्या लक्षण है?)
उत्तर:
सन्मित्रलक्षणं पापात् निवारयति, हिताय योजयति, गुह्यं निगृहति, गुणान प्रकटी करोति च। (अच्छा मित्र पाप से रोकता है हित में लगाता है, गुप्त बात को छुपाता है और गुणों को प्रकट करता है।)

(घ) सत्सङ्गतिः पुंसां किं करोति? (अच्छी संगति पुरुष का क्या करती है?)
उत्तर:
सत्सङ्गतिः पुंसां धियः जाड्यं हरति, वाचि सत्यं सिञ्चयति, भावोन्नति दिशति आदयः करोति। (अच्छी संगति पुरुष की जड़ता को दूर करती है, वाणी को सत्य से सींचती है, भावों में उन्नति देती है, इस तरह से अनेक कार्य करती है।)

प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) व्यवहारेण हि मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा।
(ख) आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्
(ग) गुह्यं निगृहति गुणान्प्रकटी करोति।
(घ) दिक्षु तनोति कीर्तिम्।।
(ङ) राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति सः बान्धवः।

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत-

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत-
यथा अभ्यागतः सर्वस्य गुरुः भवति। – (आम्)
दीर्घसूत्रता उत्तमः गुणः – (न)
(क) यत्र सम्मानः न भवति तत्र गन्तव्यम्।
(ख) आलस्यं परिवर्जनीयम्।
(ग) दुर्जने विश्वासः करणीय।
(घ) सत्सङ्गतिः मानोन्नतिं दिशति।
(ङ) सन्मित्रं गुणन्प्रकटीकरोति।
उत्तर:
(क) (न)
(ख) (आम्)
(ग) (न)
(घ) (आम्)
(ङ) (आम्)

प्रश्न 7.
श्लोकपूर्तिं कुरुत-
(क) षडदोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रांतन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।
(ख) उत्सवे व्यसने चैव, दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥

प्रश्न 8.
सन्धिविच्छेदं कुरुत-
उदाहरणं यथा-
सर्वस्याभ्यागतः सर्वस्य + अभ्यागतः
विद्यागमः विद्या + आगमः
पतिरेकः पतिः + एकः
सन्मित्रम् सत् + मित्रम्
कश्चित् कः + चित्
पापान्निवारयति पापात् + निवारयति।

प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत

प्रश्न 10.
निम्नलिखित वाक्यानि शुद्धं कुरुत(क) ते पठति।
(ख) सः गच्छसि।
(ग) त्वं खेलामि।
(घ) यूयं लिखन्ति।
(ङ) अहं वदति।
(च) वयं चलामि।
उत्तर:
(क) ते पठन्ति।
(ख) सः गच्छति।
(ग) त्वं खेलसि।
(घ) यूयं लिखथ।
(ङ) अहं वदामि।
(च) वयं चलामः।

प्रश्न 11.
निम्नलिखितक्रियापदानि भूतकाले परिवर्तयत
उदाहरणम् :
करोति – अकरोत्।
तनोति – अतनोत्।
जहाति – अजहत्।
ददाति – अददत्।
सिञ्चति – असिञ्चत्।
दिशति – अदिशत्।
तिष्ठति – अतिष्ठत्।

नीतिश्लोकाः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य :

सव्यवहार की शिक्षा ही नीति है। विद्वानों ने श्लोक के माध्यम से नियम अनुशासन, सदाचार, स्वास्थ्य-रक्षण, समाज-रक्षण, देश-रक्षण की शिक्षा प्रदान किया है। ऐसे श्लोक ही नीति श्लोक कहे जाते हैं। विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए ही यहाँ नीति श्लोक प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

नीतिश्लोकाः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. यस्मिन्देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवः।
न च विद्यागमः कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत्॥

शब्दार्थ :
बान्धव-कुटुम्बी जन-Family person; यस्मिन्देशे-जिस देश में-In that country.

हिन्दी अर्थ :
जिस देश में सम्मान न हो, आजीविका का साधन न हो, जहाँ स्वजन न हों और न ही विद्यार्जन की व्यवस्था हो, ऐसे देश का परित्याग कर देना चाहिए।

2. षड्दोषाः पुरुषेणेह हातव्य भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता॥

शब्दार्य :
षड्दोषा-छह प्रकार के दोष-six types of default; हातव्या-छोड़ देना चाहिए-Should leave; दीर्घसूत्रता-दीर्घसूत्रता-Long theory.

हिन्दी अर्थ :
पुरुष के अपने कल्याण के लिए इस छः दोषों को छोड़ देना चाहिए-निद्रा, अर्धनिद्रा भय, क्रोध, आलस्य एवं किसी भी कार्य को देर से करना।

3. त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥

शब्दार्थ :
कुलस्यार्थे-वंश के लिए-Family race; आत्मार्थे-परम तत्त्व के लिए-for great element.

हिन्दी अर्थ :
कुल (खानदान) के लिए एक व्यक्ति का त्याग कर देना चाहिए। गाँव के लिए कुल को त्याग देना चाहिए, जनपद के लिए ग्राम का त्याग कर देना चाहिए। परम तत्त्व की प्राप्ति के लिए संसार का त्याग कर देना चाहिए।

4. विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा,
सदसि बाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशास चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ,
प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्।।

शब्दार्थ:
विपदि-आपत्ति में-In object; अभ्युदये-उन्नति में-In progress; वाक्पटुता-वाणी की चतुरता-Clever of voice; श्रुतौ-वेद शास्त्र-Medical books.

हिन्दी अर्थ :
विपत्ति में धैर्य रखना, अभ्युदय में क्षमा भाव, किसी सभा आदि में वाक्पटुता, युद्ध के समय वीरता, यश में रुचि, वेद-शास्त्र के अध्ययन का व्यसनमहात्माओं की सहज प्रवृत्ति होती है।

5. न कश्चित्कस्यचिन्मित्रं न कश्चित्कस्यचिद्रिपुः।
व्यवहारेण हि मित्राणि जायन्ते रिपवस्तथा॥

शब्दार्थ :
कस्यचित्-किसी का-any other; जायन्ते-हो जाते हैं-to become.

हिन्दी अर्थ :
न कोई किसी का मित्र होता है और न ही कोई किसी का शत्रु। व्यवहार करने पर ही शत्रु एवं मित्र की पहचान हो पाती है।

6. उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः॥

शब्दार्थ :
राष्ट्रविप्लवे-राष्ट्र में विद्रोह होने पर-On the time of civil war; व्यसने-आपत्ति में-in objective; दुर्भिक्ष-अकाल में-in bad time.

हिन्दी अर्थ :
उत्सव में, व्यसन में, अकाल में, राष्ट्र में विद्रोह होने पर राजा के दरबार में और श्मशान यात्रा में जो साथी होता है, वही बंधु कहा जाता है।

7. दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्वासकारणम्।
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदि हालाहलं विषम्॥

शब्दार्थ :
प्रियवादी-प्रिय बोलने वाला-Sweet tongue; जिह्वाग्रे-जिवा के अन्त भाग में-tip of tounge; तिष्ठति-रहता है-Lives; हालाहलं-विष-Position.

हिन्दी अर्थ :
दुर्जन व्यक्ति का प्रिय बोलना विश्वास का कारण नहीं हो सकता क्योंकि ऐसे लोगों की जिहा के अग्रभाग पर मधु होता है किन्तु हृदय में हलाहल विष भरा होता है।

8. पापान्निवारयति योजयते हिताय,
गुहयं निगृहति गुणान्प्रकटी करोति।
आपदगतं च न जहाति ददाति काले,
सन्मित्र लक्षणमिदं प्रवदन्तिं सन्तः।।

शब्दार्थ :
निवारयति-दूर करता है-far always; हिताय-हित के लिए-for benefit; योजयते-जोड़ता है-to connect; निगृहति-छिपाता है-Hidden; प्रकटी करोति-प्रकट करता है-Appears; आपद्गतं-विपत्ति काल में-In bad time; ददाति-देता है-gives; इदं-इस तरह-this types; सन्मित्रलक्षण-अच्छे मित्र के द्वारा-for good friends; प्रवदन्ति-कहते हैं-Says.

हिन्दी अर्थ :
संतों ने सुहृद (अच्छे मित्र) के लक्षण इस प्रकार कहे हैं-जो पापों का निवारण करने वाला हो, जो सर्वदा हित करने वाला हो, गोपनीयता को नष्ट नहीं करता, सदैव सद्गुणों को ही प्रकट करता है, आपत्ति-विपत्ति में साथ नहीं छोड़ता-वही सच्चा मित्र होता है।

9. जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यम्
मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिम्।
सत्सङ्गतिः कथय किन्न करोति पुंसाम्॥

शब्दार्थ :
धियः जाड्यं-बुद्धि की जड़ता को-rust of wisdom; अपाकरोति-दूर करती है-for always; प्रसादयति-प्रसन्न करती है-to happy; सिंचति-सींचती है-to waters; मानोन्नति-मान और उन्नति-honour and development; दिशति-देती है-gives; तनोति-चलाती है-runs; कथन-कहिए-Say; सत्सङ्गति-अच्छी संगति-good company; किं न-क्या नहीं-what is not; करोति-करती है-does.

हिन्दी अर्थ :
सद् संगति मस्तिष्क की जड़ता को दूर करती है, वाणी सत्य का अनुसरण करती है जिससे सम्मान यश मिलता है, उन्नति होती है, पाप नष्ट होता है, मन (सदैव) प्रसन्न रहता है और दिग्-दिगंत तक कीर्ति फैलती है। इस तरह सत्संगति मनुष्य को सब कुछ प्रदान करती है।

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