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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 5 सर्वदमनः भरतः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 5 सर्वदमनः भरतः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 5 सर्वदमनः भरतः (नाट्यांशः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 5 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिख-(एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) ऋषि जनेन बालस्य नाम किं कृतम्? (ऋषिगणों के द्वारा बालक का नाम क्या रखा गया?)
उत्तर:
सर्वदमनः। (सर्वदमन)

(ख) उटजे कस्य मृत्तिकामयूरः तिष्ठति? (कुटिया में किसका मिट्टी का मयूर था?)
उत्तर:
मार्कण्डेयस्य ऋषिकुमारस्य वर्णचित्रितो। (कुटिया में मार्कण्डेय का मिट्टी का मयूर था।)

(ग) राजा बालस्य हस्ते के लक्षणम् अपश्यत्? (राजा बालक के हाथ में क्या लक्षण देखता है?)
उत्तर:
चक्रवर्ती। (चक्रवर्ती)।

(घ) रक्षा करण्डकं केन दत्तम्? (रक्षा ताबीज किसके द्वारा दिया गया?)
उत्तर:
भगवता मरीचेन् (ऋषि मरीच के द्वारा ताबीज दिया गया।)

(ङ) एकां वेणी का धृतवती? (एक चोटी किसने धारण की थी?)
उत्तर:
शकुन्तला। (शकुन्तला)

प्रश्न 2.
एक वाक्येन उत्तर लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) बालः सिंहशावकं किम् उक्तवान? (बालक ने सिंह के बच्चे से क्याकहा?)
उत्तर:
जिम्भस्व दंताम् ते गणिष्यामि। (बालक सिंह के बच्चे से बोला रे सिंह जभाई ले, मैं तेरे दांत गिनूंगा।)

(ख) द्वितीया तापसी सवर्दमनं किमर्थ क्रीडनकं दातुमिच्छति? (दूसरी तापसी सर्वदमन को किसलिए खिलौना देने की इच्छा करती है?)
उत्तर:
सिंहशावकम् त्यक्तुम्। (सिंह के बच्चे को छोड़ने के लिए दूसरा खिलौना देना चाहती है)

(ग) तापसी किमर्थम् आश्चर्ये निमग्नाना? (तापसी किसलिए आश्चर्यचकित हो गई?)
उत्तर:
रक्षाकरण्डकम्। (ताबीज के कारण तापसी आश्चर्य-चकित हो गई।)

(घ) राजा स्मृतिः कथम् उपलब्धा? (राजा की मृति किस प्रकार वापस आई।)
उत्तर:
अभिज्ञान दर्शनन (राजा की स्मृति विशेष चिह्न को देखकर आई)।

प्रश्न 3.
अधोलिखत प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत(क) औषधेः विषये तापसी राजानं किं कथयति? (औषधि के संबंध में तापसी को क्या कहती है?)
उत्तर:
पितरौ परित्यज्य सर्पिणी भूत्वा दशति (माता-पिता को छोड़कर यह औषधि सांप बनकर डंसती है।)

(ख) राजा बालस्य स्पर्श कृत्वा कीदृशमऽनुभवति? (राजा पुत्र का स्पर्श करके किस तरह का अनुभव किया?)
उत्तर:
स्वपुत्र मेवा। (राजा बालक का स्पर्श करके अपने पुत्र के समान खुशी का अनुभव किया।)

(ग) शकुन्तला वीक्ष्य राजा किम् अवोचत्? (शकुन्तला को देखकर राजा ने क्या कहा?)
उत्तर:
मम्-स्मृतिरूपलब्धा शकुन्तलां वीक्ष्य राजा अवोचत्। (शकुन्तला को देखकर राजा ने बस स्मृति की रूपवती मुझे सब कुछ याद आ गया ऐसा कहा।)

प्रश्न 4.
उचितेः शब्दैः रिक्तस्थान पूर्तिं कुरुत
(क) रे सिंहशावक जृम्भस्व दन्तान् ते गणयिष्याभि। (नखान्/दन्ताम्)
(ख) वत्स! मुञ्च बालमृगेन्द्रकम्। (बालमृगेन्द्रकम/क्रीडनकम्)
(ग) रक्षाकरण्डकमस्य मणिबंधे न दृश्यते। (अनुबन्धे/मणिबन्धे)
(घ) कोऽपि पुरुषः मां पुत्रइति आलिङ्गति। (भ्राताइति/पुत्रइति)
(ङ) आर्यपुत्र इदं ते अङ्गलीयकम्। (अङ्गुलीयकम्/वस्त्रम्)

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत?

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम “आम” अशुद्धवाक्यानां समक्ष ‘न’ इति लिखत
यथा :
तेजसः बीजं बालः प्रतिभाति। – (आम्)
बाले चक्रवर्ति लक्षणं नास्ति। – (न)
(क) बालः सिंहशावकेन सह क्रीडति।
(ख) राजा बालं न लालयति।।
(ग) राज्ञः बालस्य च आकृतिः समाना वर्तते।
(घ) अपराजिता औषधिः भगवता कण्वेन दत्ता।
उत्तर:
(क) (आम्)
(ख) (न)
(ग) (न)
(घ) (आम्)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
उदाहरण, यथा

प्रश्न 8.
निम्नलिखित शिगपदानां धातु पुरुषं वचनं लकारं च लिखत
उदाहरणः यथा

प्रश्न 9.
निम्नलिखितानां प्रकृति प्रत्ययं च पृथक कुरुत
उदाहरण, यथा

सर्वदमनः भरतः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

कालिदास सर्वश्रेष्ठ कवि कहे जाते हैं। इनकी उपमा सर्वोत्तम कही जाती है। इनके रघुवंशम् और कुमारसंभवम् दो महाकाव्य, ऋतुसंहार एवं मेघदूत दो खंडकाव्य, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्नि मित्रम् और अभिज्ञानशाकुन्तलम् नामक इनकी तीन नाटक कृतियाँ हैं। उसमें अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक सबसे अच्छा है। उसी नाटक से प्रस्तुत पाठ उद्धृत है।

सर्वदमनः भरतः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. (ततः प्रविशति तापसीभ्यः सह बालः)
बालः :
जृम्भस्व रे सिंहशावकः! जृम्भस्व, दन्तान् ते गणयिष्यामि।

प्रथमाः :
अविनीत! किं नु अपत्यनिर्विशेषाणि सत्त्वानि विप्रकरोषि। हन्त! वर्धत इव ते संरम्भः। स्थाने खलु ऋषिजनेन ‘सर्वदमन’ इति कृतनामधेयोऽसि ।

राजाः :
किं नु खलु बालेऽस्मिन्नौरस इव पुत्रे स्निह्यति मे हृदयम्। (विचिन्त्य) नूनमनपत्यता मां वत्सलयति।

द्वितीयाः :
एषा त्वां केशरिणी लङ्घयिष्यति, यद्यस्याः पुत्रकं न मोक्ष्यसि।

बालः :
(सस्मितम्) अहो! बलीयः खलु भीतोऽस्मि। (इत्यधरं दर्शयति)

राजाः :
(सविस्मयम्)
महतस्तेजसो बीजं बालोऽयं प्रतिभाति मे।
स्फुलिङ्गावस्थया वह्निरेधापेक्ष इव स्थितः॥

प्रथमा-वत्स! मुञ्च बालमृगेन्द्रकम्, अपरं ते क्रीडनकं दास्यामि।

शब्दार्थ :
जृम्भस्व-जंभाई ले-yawn; गणयिष्यामि-गिनूंगा-will count;जम्भव-जॅम्हाई लो-take yawn; अविनीत-उद्दण्ड-undiciple; संभव-उद्वेग, वेग प्रयास-forcely; उटजे-कुटिया में-in hut; स्निहयति-स्नेह करता है-loves; वत्सलयति-स्नेह पैदा करती है-growing the love; केशरिणी-सिंहनी-lioness; लपयिष्यति-आक्रमण कर देगी-will attack; यद्यस्याः -यदि तु इसके-ifyouit; न मोक्ष्यसि-नहीं छोड़ेगा-not left; भीतोऽस्मि-मैं डर गया हूँ-I am affraid of; महतस्तेजसो-महान व्यक्ति का तेज-Great persons ardour; प्रतिभाति-दिखाई देता है-looks; अपरं-दूसरा-other.

हिन्दी अर्थ :
(फिर दो तपस्विनियों के साथ बालक प्रवेश करता है।)

बालक :
जम्भाई ले, अरे सिंहशावक जम्माई ले। मैं तेरे दाँत गिनूँगा।

पहली तपस्विनी :
हे धृष्ट! हमारे द्वारा पुत्रों सदृश पालित इन जीवों को इस तरह क्यों परेशान करता है? हाय! तुम्हारी उद्दण्डता तो दिन-प्रतिदिन बढ़ती-सी जा रही है। ऋषि लोगों ने तुम्हारा नाम ‘सर्वदमन’ ठीक ही रखा है। तू तो किसी से भी भयभीत नहीं होता।

राजा :
(स्वगत) न जाने क्यों मेरे हृदय में इस बालक के प्रति पुत्रवत स्नेह हो रहा है। ठीक ही है, मेरा निःसन्तान होना ही मुझे दूसरे बच्चों में स्नेह उत्पन्न कर रहा है।

दूसरी तपस्विनी :
(बालक से) देख, यदि तू इस सिंह शावक को नहीं छोड़ेगा तो सिंहिनी तुम्हारे ऊपर आक्रमण कर देगी।

बालक :
(मुस्कुराता हुआ) (व्यंग्य रूप से) अहो! तुम्हारे कहने से तो मैं बहुत डर गया हूँ। मुँह बनाता हुआ हँसता है।

राजा :
(विस्मयपूर्वक) यह बालक तो मुझे किसी महान तेजस्वी पुरुष का अंश प्रतीत होता है। यह तो उसी प्रकार है जैसे चिनगारी के रूप में अग्नि। (जिस प्रकार एक चिनगारी काष्ठ के सान्निध्य में आते ही प्रचण्ड रूप धर लेती है, उसी प्रकार यह बालक भी समय पाकर प्रतापी, तेजस्वी एवं महान वीर होगा-ऐसा प्रतीत होता है।)

पहली तापसी :
हे बेटा! तुम सिंह शावक को छोड़ दो। मैं तुम्हें दूसरा खिलौना दूंगा।

2. बालः :
कुत्र! देहिंतत्। (इति हस्तं प्रसारयति)

राजा :
(बालस्य हस्तं दृष्ट्वा) कथं चक्रवर्तिलक्षणमप्यनेन धार्यते?

द्वितीया :
सुव्रते! मुञ्चैननैष शक्यो वाङ्मात्रेण शमयितुम्। तद् गच्छ मदीये उटजे सङ्कोचनस्य ऋषिकुमारस्य वर्णचित्रितो मृत्तिकामयूरतिष्ठति, तमस्योपहर।

प्रथमा :
तथा। (इति निष्क्रान्ता)

बाल :
तावदनेवैव क्रीडिष्यामि। (इति तापसी लोक्य हसति)

राजा :
स्पृह्यामि खलु दुर्ललितायास्मै। (निःश्वस्य)-
आलक्ष्यदन्तमुकुलाननिमित्तहासै
रव्यक्तवर्णरमणीयवचः प्रवृत्तीन।
अङ्काश्रयप्रणयिनस्तनयान् वहन्तो
धन्यास्तदङ्गरजसा कलुषी भवन्ति।।

तापसी-(साङ्गलितर्जनम्) भोः! न मां गणयसिः (पार्श्वमवलोक्य) कोऽत्र ऋषिकुमाराणाम (राजानं दृष्ट्वा) भद्रमुख! एहि तावन्मोचय अनेन दुर्मोक्षहस्तग्रहेण डिम्भकेन बाध्यमानं बालमृगेन्द्रम्।।

राजा :
तथा (इत्युपगम्य सस्मितम्)
अनेन कस्यापि कलाङ्करेण स्पृष्टस्य गात्रे सुखिता ममैवम्।
कां निवृतिं चेतसि तस्य कुर्याद् यस्यायमङ्गात् कृतिनः प्रसूतः॥
तापसी-(उभौं निर्वय) आश्चर्यमाश्चर्यम्।

शब्दार्थ :
कुत्र-कहां-where; हस्तं-हाथ को-to hand; दृष्ट्वा -देखकर-to look; धार्यते-धारण करता है-put on; सुव्रते-सुव्रत-Subrath namely; मुञ्चै नैष-इसे छोड़ दो-left it; वाङ्मात्रेण-वाणि मात्र से-only by tongue/voice; तमस्योपहर-इसे लेकर दे दो-come with that thing; निष्क्रान्ता-निकल जाते हैं-go out; विलोक्य-देखकर-to look;खलु-निश्चित ही-certainly; दुर्ललितायास्मै-प्यार करने के लिए ललक-for loving; कीडिष्यामि-खेलूंगा-will play; स्पृह्यामि-छूता हूँ-to tuch; प्रवृत्तीन्-प्रवृत्ति-Habit; आलक्ष्य-बिना कारण-without reason; गणयसि-गिनते हो-do count; कोऽत्र-यहां कौन है-who is here?

हिन्दी अर्थ :
बालक :
कहाँ है, मुझे दो-(ऐसा कहकर हाथ फैलाता है)।

राजा :
(बालक के हाथ को देखकर) क्या यह चक्रवर्ती के लक्षणों से युक्त है?

दूसरी तापसी :
सुव्रते! इसे छोड़ दो। यह देखने मात्र से मानने वाला नहीं है। इसलिए मेरी कुटी में रखा हुआ ऋषि कुमार मार्कण्डेय द्वारा बनाया गया मिट्टी का जो मोर है वही लाकर इसे दे दो।
प्रथम तापसी-अच्छा! लाती हूँ। (यह कहकर वह चली जाती है) बालक-तब तक मैं इसी से खेलूँगा। (तापसी की ओर देखकर हँसता है)

राजा :
इस हठीले बालक को देख इससे प्यार करने को मन ललचा रहा है। (निःश्वास लेकर) अकारण ही हँसने से जिसकी दंत पंक्तियाँ दिखाई पड़ रही हैं, तोतली बातें मन को मोह ले रही हैं, जिसे अपने अंक में ले लेने के लिए मन लालायित हो रहा है ऐसे प्राणी भाग्यवान व पुण्यात्मा ही होते हैं जिनके गाद में धूल-धूसरित एवं मलिन ऐसा बालक आकर उनकी गोद को धूत धूसरित करते हैं। (अर्थात् मिट्टी-धूल में खेलते हुए बालक भाग्यवानों की ही गोद में जाकर बैठते हैं और उन्हें भी धूल धूसरित करते हैं।)

तापसी :
(अपनी अंगुलियों से धमकाते हुए) अच्छा! यह मुझे कुछ भी नहीं समझ रहा है। (पीछे की ओर देखकर) यहाँ कौन ऋषि कुमार है? (राजा को देखकर) हे महानुभाव! अपनी बाल-क्रीड़ा द्वारा परेशान किए जाते हुए इस सिंह शावक को इस बालक से छुड़ा दीजिए। मेरे द्वारा यह नहीं छुड़ाया जा सकता क्यों कि इसने शावक को जोर से पकड़ रखा है।

राजा :
अच्छा (ऐसा कहकर हँसते हुए जाते हैं) अन्य किसी के भी कुल का यह अंकुर (दीपक) स्पर्श करने मात्र से जब मेरे हृदय में सुख का संचार करता है तब यह अपने माता-पिता को (जिसने इसे पाला-पोसा है) कितना सुख प्रदान करता होगा? तापसी-(दोनों अवाक् होकर) आश्चर्य है, आश्चर्य है।

3. राजा-आर्ये किमिव।
राजा-आर्ये किमिव।

तापसी :
अस्य बालकस्य असम्बद्धेऽपि भद्रमुखे संवादिनी आकृतिरिति विस्मितास्मि। अपि च धामशीलोऽपि भूत्वा अपरिचितस्यापि ते वचनेन प्रकृतिस्थः संवृत्त।

राजा :
(बालकमुपलालयन्) आर्य! न चेन्मुनिकुमारोऽयम् तत् कोऽस्य व्यपदेशः?

तापसी :
पौरव इति।

राजा :
(स्वगतम्) कथमेकान्वयोऽयमस्माकम्।

तापसी :
(प्रविश्य मयूरहस्ता) सर्वदमन शकुन्तलावण्यं प्रेक्षस्व।

बालः :
(सदृष्टिक्षेपम्) कुत्र वा मम माता?

उभे :
नामसादृश्येन वञ्चितो मातृवत्सलः।

द्वितीया :
वत्स अस्य मृत्तिकामयूरस्य रम्यत्वम् पश्येति भणितोऽसि।

राजा :
(आत्मगतम्) किंवा शकुन्तलेत्यस्य मातुराख्या। सन्ति पुनर्नामधेयसादृश्यानि।

बालः :
मातः रोचते में एष भद्रमयूरः। (इति क्रीडनकमादत्ते)

प्रथमा :
(विलोक्य सोद्वेगम) अहो रक्षाकरण्डकमस्य मणिबन्धे न दृश्यते।

शब्दार्थ :
आर्ये-आदरणीया-respected; भद्रमुखे-अच्छे मुख वाली-beautiful; आकृतिरिति-ऐसी आकृति-this type of shape; भूत्वा-होकर-done; संवृत्तः-होये-happened; अस्य-इसका-its; कोस्य-यह कौन है-who is this? मयूर हस्ता-हाथ में मोर-peacock in hand;शकुन्तलावण्यं-पक्षी का सुदूर-bird’s beautiful; कुत्र-कहाँ-where; रोचते-अच्छा लगता है-to seems good.

हिन्दी अर्थ :
राजा :
आर्ये! कैसा आश्चर्य!

तापसी :
इस बालक का आप से संबंध न होने पर भी इसका चेहरा आप से बहुत मिलता-जुलता है इसलिए मैं आश्चर्यचकित हो रही हूँ। और भी, यह हठी बालक आप से अपरिचित होने पर भी आपको देख शान्त हो गया।

राजा :
(उस बालक को प्यार करते हैं) यदि यह मुनिकुमार नहीं है तो यह किस कुल-गोत्र का है?

तापसी :
पौरव वंश। राजा-(अपने मन ही मन) क्या यह मेरे वंश का है?

तापसी :
(हाथ में मिट्टी के बने मोर के साथ प्रवेश) सर्वदमन! इस शकुन्त के लावण्य को देख।

बालक :
(इधर-उधर देखकर) मेरी माता कहाँ है?

दोनों :
नाम एक समान होने के कारण बेचारा ठगा गया।

दूसरी तापसी :
पुत्र! इस मिट्टी से बने शकुन्त (मोर) पक्षी की सुंदरता देखो।

राजा :
(मन-ही-मन) क्या इसकी माँ का नाम शकुन्तला है? किन्तु नाम की समानता तो बहुत मिलती है।

बालक :
माँ! यह मोर मुझे अच्छा लग रहा है (ऐसा कह खिलौने को हाथ में ले लेता है।)

पहली तापसी :
(देखते ही उद्वेगपूर्वक) इसके मणिबन्ध में रक्षा-सूत्र नहीं दिखाई दे रहा है? (आर्ये!)

4. राजाः :
अलमलमावेगने। नन्विदमस्य सिंहशावविमर्दात्परिभ्रष्टम्। (इत्यादातुमिच्छति)

प्रथमाः :
शृणोतु महाराजः एषाऽपराजिता नामौषधिरस्य जातकर्मसमये भगवता मारीचेन दत्ता। एतां किल मातापितरावात्मानं च वर्जयित्वापरो भूमिपतितां न गृह्णाति।

राजाः :
अथ गृह्णाति।

प्रथमाः :
ततस्तं सर्पो भूत्वा दशति।

राजाः :
(सहर्षम् आत्मगतम्) कथमिव सम्पूर्णमपि मे मनोरथंनाभिनन्दामि। (इति। बालं परिष्वजते)

(ततः प्रविशत्येकवेणीधरा शकुन्तला)
राजाः-(शकुन्तलां विलोक्य) अये सेयमत्रभवती शकुन्तला।

बालः :
(मातरमुपेत्य) मातः एष कोऽपि पुरुषो मां पुत्र इत्यालिङ्गति।

राजाः :
प्रिये क्रौर्यमपि मे त्वयि प्रयुक्तमनुकूलपरिणामं संवृत्तम् यदहमिदानीं त्वया प्रत्यभिज्ञातमात्मानं पश्यामि।

शकुन्तलाः :
(नाममुद्रां दृष्ट्वा) आर्यपुत्रं इदं तेऽङ्गलीयकम्।।

राजाः :
अस्मादङ्गलीयोपलम्भात्खलु स्मृतिरूपलब्धा।
(इति निष्क्रान्तः)

शब्दार्थ :
दातुमिच्छति-देने की इच्छा करता है-wish to give;जातकर्मसमये-जात कर्म के समय-ceremonyperformed at the birthofachild; दाता-दिया गया है-given; वर्जयितापरो-छोड़कर दूसरा-expect other; भूमिपतिता-भूमि पर गिरे हुए को-to fallen on the ground; न ग्रहणाति-ग्रहण नहीं करता-does not take; ततस्तं-तब उसे-then it; भूत्वा-होकर -across; सहर्षम्-हर्ष के साथ-with cheer; आत्मगतम्-मन में-in mind; विलोक्य-देखकर-looking; इत्यालिङ्गति-ऐसा आलिंगन करता है-armes; पश्यामि-देखता हूँ-look; त्वया-तुझसे-your.

हिन्दी अर्थ :
राजा :
घबराएं नहीं, सिंह शावक के साथ खेलते समय रगड़ से हाथ में बंधा रक्षा-सूत्र नीचे गिर गया (यह कह राजा उसे उठाना चाहता है।)

पहली तपस्विनी :
महाराज! सुनिए। यह अपराजिता नामक दिव्य औषधि (ताबीज) इस बालक के जात कर्म के समय पूज्य कश्यप ऋषि ने इसके हाथ में बाँध दी थी। इसके भूमि पर गिर जाने पर इस बालक के माता-पिता के अलावा किसी दूसरे द्वारा उठाया जाना वर्जित है (अर्थात् इसके माता-पिता के सिवा कोई दूसरा नहीं उठा सकता)।

राजा :
यदि कोई दूसरा उठा ले तो?

पहली तपस्विनी :
तो साँप बनकर यह डस लेता है।

राजा :
(मन में प्रसन्न होते हुए) तब तो मेरा मनोरथ पूर्ण हुआ (बालक को छाती से लगाता है) (तब एक वेणी धारण किए शकुन्तला प्रवेश करती है)।

राजा :
(शकुन्तला को देखकर) अरे, यह तो शकुन्तला ही है।

बालक :
(अपनी माँ के पास जाकर) माँ! ये कौन है जो मुझे बड़े स्नेह से पुत्र कहते हुए गले लगा रहे हैं।

राजा :
प्रिये! मैंने तुम्हारे साथ जो भी प्रतिकूल व्यवहार किया था, उसका परिणाम है कि अब तुम भी मुझे नहीं पहचान रही हो।

शकुन्तला :
आर्य पुत्र! क्या यह वही अंगूठी है?

राजा:
यह वही अँगूठी है जिससे हम स्मृति को उपलब्ध हुए हैं। (ऐसा कह निकल जाते हैं)।

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