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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 7 सुविज्ञातमेव विश्वसेत्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 7 सुविज्ञातमेव विश्वसेत्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 7 सुविज्ञातमेव विश्वसेत् (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 7 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत् (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) पर्कटीवृक्षः कुत्र अस्ति? (पाकर का वृक्ष कहां पर है?)
उत्तर:
पर्कटीवृक्षः गृध्रकूटनामि अस्ति। (गृध्रकूट नामक स्थान में)

(ख) पक्षिशावकं भक्षितुं कः आगतः? (पक्षी के बच्चे को खाने के लिए कौन आया?)
उत्तर:
पक्षिशावकं भक्षितुं मार्जारः आगतः। (बिल्ली)

(ग) विश्वासस्य मार्जारः कुत्र स्थितः? (विश्वास की बिल्ली कहां थी?)
उत्तर:
विश्वासस्य मार्जारः तस्फूटते स्थितः। (उसके कोटर में)

(घ) पक्षिशावकान् खादित्वा मार्जारः कुत्र गतः? (पक्षी के बच्चे को खाकर बिलाव कहां गया?)
उत्तर:
पक्षिशावकान् खादित्वा मार्जारः कोटरान्नि सृत्य बहिः प्रलायतिः। (कोटर से बाहर चला गया।)

(ङ) गृध्रः केः हतः? (गिद्ध ने किनको मारा?)
उत्तर:
गृधः पक्षिभि हतः। (पक्षियों को)

(च) कस्यदोषेण गृध्रः हतः? (किसके दोष के कारण गिद्ध मारा गया?)
उत्तर:
मार्जारस्य हि दोषेण। (बिल्ली के दोष के कारण)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) जरद्गवनामा गृध्रः कुत्र वसति? (जदर्गव नाम का गिद्ध कहां रहता था?)
उत्तर:
जरद्गवनामा गृध्रः पर्कटीवृक्षः वसति। (जरद्गव नाम का गिद्ध पाकर के वृक्ष में रहता था।)

(ख) जनः वध्यः पूज्यः वा कथं भवति? (लोगों का वध व पूजा कैसे होती थी?)
उत्तर:
जनः वध्यः पूज्यः वा कर्मणा भवति। (लोगों का वध व पूजा कर्म से होती थी।)।

(ग) कस्मै वासो न देयः? (किसको निवास करने नहीं देना चाहिए?)
उत्तर:
आज्ञात् कुलशीलस्य वासो न देयः। (अज्ञात और जिसके कुल का ज्ञान न हो ऐसे लोगों को निवास नहीं देना चाहिए।)

(घ) पञ्चतन्त्रस्य रचनाकारः कः? (पञ्चतन्त्र के रचनाकार कौन हैं?)
उत्तर:
पञ्चतन्त्रस्य रचनाकार विष्णु शर्मा आसीत। (पंचतन्त्र के रचयिता विष्णु शर्मा थे।)

प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) पंचतन्त्र कानि पञ्चतन्त्राणि? (पंचतन्त्र में कौन-कौन से पांच तंत्र हैं?)
उत्तर:
पञ्चतंत्रे लब्धप्राणभः, मित्रभेद, मित्रलाभः, काकोलकी अपरिक्षित कारक इति पंचतन्त्राणि। (पंचतंत्र में लब्ध प्राणसा, मित्र-भेद, मित्र-प्राप्ति, काकोलुकीयम अपरिक्षित कारक नाम के पांच तंत्र हैं, (पुस्तकें हैं)

(ख) मार्जारः गृधं कथं विश्वासस्य तरुकोटरे स्थितः? (बिल्ली ने गिद्ध को किस विश्वास के साथ वृक्ष के कोटर में रहने दिया?)
उत्तर:
मार्जारः गृधं अहिंसा परमो धर्मः विश्वासस्य तरु कोटरे स्थितः। (बिल्ली ने गिद्ध को अहिंसा परम धर्म है-इस विश्वास के साथ रहने दिया।)

(ग) कोटरे निवसन मार्जारः किं करोति स्म? (कोटर में निवास करते हुए बिल्ली क्या करती थी?)
उत्तर:
कोटरे पक्षीशावकामअभक्षयत करोति स्म? (कोटरे में निवास करते हुए बिल्ली पक्षियों के बच्चों को खाती थी।)

(घ) अस्या कथायाः सारः कः? (इस कथा का सार क्या है?)
उत्तर:
अस्या कथायाः सारः अस्ति-अज्ञात् कुलशीलस्य वासो न देयः। (इस कथा का सार है-अज्ञात एवं जिनके कुल का ज्ञान न हो ऐसे व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए।)

प्रश्न 4.
प्रदत्तैः शब्देः रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) गृध्रकूटनाम्नि पर्वते पर्कटीवृक्षः अस्ति। (पर्वते/गृहे)
(ख) वृक्षस्य कोटरे जरद्गवनामा गृध्रः प्रतिवसित। (सिद्धः/गृध्रः)
(ग) मार्जारः प्रतिदिनम् पक्षिशावकम् खादति। (पशुशावकम् पक्षिशावकम्)
(घ) गृध्रः पक्षिशावकान् रक्षति। (रक्षति/भक्षति)
(ङ) पक्षिभिः गृध्रः हतः। (मार्जारः/गृध्रः)

प्रश्न 5.
युग्मेलनं कुरुत-

प्रश्न 6.
कोष्ठकात् उचितपदं चित्वा रेखाङ्गितपदै प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(कैः, कस्य, के, कम्, केन)
उदाहरणं यथा :
अज्ञातः अविश्वसनीयः भवति।
कः अविश्वसनीयः भवति?
(अ) मार्जारस्य दोषेण गृध्रः हतः।
उत्तर:
कस्य दोषेण गृध्रः हतः?

(ब) पक्षिभिः जरद्गवः हतः।
उत्तर:
कैः जरद्गवः हतः?

(स) व्यवहारेण जनः पूज्यः भवति।
उत्तर:
केन जनः पूज्यः भवति?

(द) गृध्रः मार्जारम् उक्तवान्।
उत्तर:
गृध्रः कम् उक्तवान्?

(ङ) पक्षिणः दुःखेन विलापं कृतवन्तः।
उत्तर:
के दुःखेन विलापं कृतवन्तः?

प्रश्न 7.
विपरीतार्थशब्दानां मेलनं कुरुत

प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं धातुं प्रत्ययं च पृथक कुरुत
उदाहरण-
दृष्ट्वा – दृश + क्त्वा
(क) हन्तव्यः
(ख) हतः
(ग) भक्षितुम्
(स) परिज्ञाय
(द) श्रोतुम्
(ङ) श्रुत्वा
उत्तर:
(क) हन्तव्यः – हन् + तव्यत्
(ख) हतः – हन् + क्त
(ग) भक्षितुम् – भक्ष् + तुमुन्
(स) परिज्ञाय – परि + ज्ञा + ल्यप्
(द) श्रोतुम् – श्रु + तुमुन्
(ङ) श्रुत्वा – श्रु + क्त्वा

प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं वर्तमानकालिक क्रियापदानां कालपरिवर्तनं कुरुत
उत्तर:

प्रश्न 10.
निम्नलिखितानि अव्ययानि प्रयुज्य वाक्यानि स्वयत
यदि-यदि पुस्तकम् अस्ति तर्हि पठतु।
उत्तर:
सदा – सदा भूपेन्द्र पटेलः पठति तदा दुर्गेशः लिखति।
कदा – त्वम् कदा विद्यालयं गच्छसि।
अथ – अथ राम कथा श्रावयामि।
एव – अहम् एव गच्छामि।
इति – इति सः भोपालुपरम् अगच्छत्।
अपि – अहम् अपि छात्रः अस्मि।
अत्र – अत्र उत्कृष्ट विद्यालयः अस्ति।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित शब्दानां द्विवचन बहुवचनं च लिखत
उदाहरणं यथा

सुविज्ञातमेव विश्वसेत् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

कथाएँ प्रायः उपदेशपरक होती हैं। इनमें सरल, रोचक एवं विनोदप्रिय शैली में जीवनोपयोगी विचार व्यक्त किए गए हैं। संस्कृत साहित्य में कथा साहित्य की बहुत दीर्घ परंपरा रही है। संस्कृत कथाकारों में मूर्धन्य नारायण पंडित ने बालकों को शिक्षा के उद्देश्य से हितोपदेश की रचना की। प्रस्तुत पाठ भी हितोपदेश से ही संकलित किया गया है।

सुविज्ञातमेव विश्वसेत् पाठ का हिन्दी अर्थ

1. अस्ति भागीरथीतीरे गृध्रकूटनाम्नि पर्वते महान पर्कटीवृक्षः। तस्य कोटरे दैवदुर्विपाकाद्गलितनस्व-नयने जरद्गवनामा गृध्रः प्रतिवसति। अथ कृपया तज्जीवनाय तवृक्षवासिनः पक्षिणः स्वाहारात् किञ्चित्-किञ्चिदुद्धृत्य ददति। तेन असौ जीवति। अथ कदाचिद् दीर्घकर्णनामा मार्जारः पक्षिशावकान्भक्षितुं तत्रागतः। ततस्तमायान्तं दृष्ट्रवा पक्षिशावकैर्भयार्तेः कोलाहलः कृतः। तच्छ्रुत्वा जरद्गवेनोक्तम्-कोऽयमायाति! दीर्घकर्णो गृध्रमवलोक्य सभयमाह-“हा हतोऽस्मि’ अधुनास्य सन्निधाने पलायितुमक्षमः।

तद्यथा भवितव्यं तद्भवतु। तावविश्वासमुत्पाद्यास्य समीपं गच्छामि। इत्यालोच्योपसृत्याब्रवीत-आर्य! त्वामभिवन्दे। गृध्रोऽवदत्-कस्त्वम्? सोऽवदत्-मार्जारोऽहम्। गृध्रो ब्रूते-दूरमपसर। नो चेत् हन्तव्योऽसि मया। मार्जारोऽवदत्-श्रूयतां तावद्स्मद्वचनम्। ततो यद्यहं व ध्यस्तदा हन्तव्यः यतः

जातिमात्रेण किं कश्चित् हन्यते पूज्यते क्वचित्।
व्यवहारं परिज्ञाय वध्यः पूज्योऽथवा भवेत् ॥

शब्दार्थ :
पर्कटीवृक्षः-पाकड़ का वृक्ष-Tree of Pakar; दैवदुर्विपाकात्-दुर्भाग्य से-Unfortunatly; किञ्चिदुधृत्य-थोड़ा-थोड़ा निकालकर-To take out of few; निरामिषाशी-मांस का भक्षण न करने वाला-Vegitarian; विद्यावयोवृद्धभ्यो-विद्या और अवस्था में बड़ी से-Knowledge and age an old; वीतरागेणेदम्-विषय वासना को छोड़ने के बाद-After living enjoyment of object of sense; चान्द्रायणव्रतम्-एक प्रकार का व्रत-The fast of karvachouth; कोलाहलः-कलरव-Noise; श्रूयतां-सुनिए-Hello; हन्तव्य-मारना चाहिए-Should kill; निते-गानना चाहिए-Should agree; परिज्ञाय-जानकार-Knowledge.

हिन्दी का अर्थ :
भागीरथी नदी के तट पर स्थित गृद्धकूट नामक पर्वत पर एक विशाल पाकड़ का वृक्ष है। उस (वृक्ष) के कोटर में जरद्गव नामक एक गृद्ध रहता था जिसके दैव गति से नख आदि गल गए थे और आँखों से अंधा था। अतः उसके जीवन के रक्षार्थ उस वृक्ष पर रहने वाले पशु-पक्षी दया वश अपने आहार से थोड़ा-थोड़ा बचाकर उसे भी दे देते थे जिससे वह जीवित था। एक बार दीर्घकर्णनामक बिलाव पक्षियों के भक्षण के उद्देश्य से वहाँ आया। उस बिलाव को वहां आया देख पक्षि-शावकों ने भयभीत होकर कोलाहल किया। उसे सुन जरद्गव बोला-यह कौन आ रहा है? दीर्घकर्ण गद्ध को देख भयभीत होकर बोला-हा!

अब तो मैं मारा गया? अब तो इसके सामने से भागने में भी अक्षम हूँ। तब भी जो होगा देखा जाएगा-ऐसा विश्वास मन में भरकर उसके समीप गया और बोला-आर्य! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। गृद्ध ने कहा-तुम कौन हो? वह बोला-में बिलाव हूँ। गिद्ध बोला-दूर हटो अन्यथा तुम मेरे द्वारा मारे जाओगे। बिलाव बोला-मेरी दो बातें सुन लीजिए। उसके बाद यदि मैं मारने योग्य हूँ तो मार डालिए क्योंकि जाति मात्र से ही कोई मारने या पूजने योग्य नहीं हो जाता बल्कि व्यवहार के कारण मारने या पूजने योग्य होता है।

2. गृध्रो ब्रूते-ब्रूहि किमर्थमागतोऽसि? सोऽवदत्-अहमत्र गङ्गतीरे नित्यस्नायी निरामिषाशी ब्रह्मचारी चान्द्रायण व्रतमाचरंस्तिष्ठामि। “यूयं धर्मज्ञानरता विश्वासभूमयः” इति पक्षिणः सर्वे सर्वदा ममाग्रे प्रस्तुवन्ति। अतो भवद्भ्यो विद्यावयोवृद्धेभ्यो धर्म श्रोतुमिहागतः। भवन्तश्चैतादृशा धर्मज्ञा यन्मामतिथि हन्तुमुद्यताः। गृहस्थ धर्मश्चैषःयदि वा धजं नास्ति तदा प्रीतिवचसात्यतिथिः पूज्य एव।

शब्दार्थ :
किमर्थं-किस लिए-For what; अहम् अत्र-मैं यहाँ-I here; तिष्ठामि-करूँगा-Will do; हन्तुमुद्यताः-मारने के लिए तैयार-Ready to kill.

हिन्दी अर्थ :
गृद्ध बोला-बोलो, किस अर्थ से यहाँ आए हो? तब वह बोला-यहाँ मैं गंगा के तट पर आकर नित्य स्नान करता हूँ, निरामिष हूँ और ब्रह्मचर्य धारण किए हुए चान्द्रायण व्रत का अनुष्ठान करता हूँ। आप धर्म के ज्ञान से परिपूर्ण हो और विश्वास करने योग्य हो-ऐसा सभी पक्षी मेरे समक्ष आकर बोलते हैं। आप विद्या में पारंगत एवं आयु में भी बड़े हैं, धर्म-चर्चा सुनने आपके यहाँ आया हूँ। किन्तु इतना धर्म मर्मज्ञ होने पर भी मुझे मार डालने के लिए उद्यत हैं। गृहस्थ धर्म तो यह है कि अतिथि सेवा करने के लिए धन न होने पर प्रेम पूर्ण वचन से भी अतिथि की सेवा होती है।

3. गृध्रोऽवदत्-“मार्जारो हि मांसरुचिः।” पक्षिशावकाश्चात्र निवसन्ति तेनाहत्मेवं ब्रवीमि। तत्छ्रुत्वा मार्जारो भूमिं स्पृष्ट्वा कर्णौ स्पृशति ब्रूते च-मया धर्मशास्त्रं श्रुत्वा वीतरागेणेदं दुष्करं व्रतं चान्द्रायणमध्यवसितम्। परस्परं विवदमानानामपि धर्मशास्त्राणाम् “अहिंसा परमो धर्मः!” इत्यत्रैकमत्यम्।

शब्दार्थ :
अवदत्-बोले-Spoke; तेनाहमेवं-इससे मैं इस प्रकार-I am for this, that; वीतरागेणेदं-राग आदि चले गए हों-Attachtment and aversion has gone; चान्द्रायणमध्यवसितम्-चन्द्रायण व्रत का अनुष्ठान-worship of Chandrayan fast; इत्यत्रैकमत्यम्-एक मत है-For one aim.

हिन्दी अर्थ :
तब गृद्ध बोला-बिलाव की रुचि मांस में होती है और यहाँ पक्षियों के बच्चे रहते हैं इसलिए मैंने ऐसा कहा। यह सुनकर बिलाव पृथ्वी का स्पर्श कर कानों को पकड़ता हुआ बोला-मैं धर्मशास्त्र का श्रवण करते हुए वीतराग होकर इस दुष्कर चान्द्रायण व्रत का अनुष्ठान कर रहा हूँ। परस्पर विवाद मानने वालों में भी धर्मशास्त्र कहते हैं-अहिंसा ही परम धर्म है।

4. एवं विश्वास्य स मार्जारस्तरुकोटरे स्थितः। ततो दिनेषु गच्छत्सु पक्षिशावकानाक्रम्य कोटरमानीय प्रत्यहं खादति। येषामपत्यानि खादितानि तैः शोकातैर्विलपद्भिरितस्ततो जिज्ञासा समारब्धा। तत्परिज्ञाय मार्जारः कोटरान्निः सृत्य बहिः पलायितः। पश्चात्पक्षिभिरितस्ततो निरूपयद्भिः तत्र तरु कोतरे शावकास्थीति प्राप्तानि। अनन्तरं ते ऊचुः-“अनेनैव जरद्गवेनास्माकं शावकाः खादिताः” इति सर्वैः पक्षिभिनिश्चित्य गृध्रो व्यापादितः अतोऽहं ब्रीवीमि –
अज्ञातकुलशीलस्य वासो देयो न कस्यचित्।
मार्जारस्य हि दोषेण हतो गृध्रो जरद्गवः॥

शब्दार्थ :
मार्जारस्तकोटरे-विलाव वृक्ष की कोटर में-Cat in the hole of tree; गच्छसु-जाने लगा-To going; निसृत्य-बाहर निकलकर-After get out; पलायितः-भागा-Run; प्राप्तानि-प्राप्त किया-Received; अनेनैव-एक तरह-Like that; व्यापादितः-मर गए-Death; अज्ञातकुलशीलस्य-जिसका कुल व शील ज्ञात नहीं-Who has no knowledge of family & nature; जरद्गवः-जरद्गव ने-Jaradgavaney.

हिन्दी अर्थ :
इस तरह गृद्ध को विश्वास में लेकर वह बिलाव वृक्ष के कोटर में रहने लगा। फिर कुछ दिन बीतने पर पक्षि शावकों को बिलाव खा गया था वे पक्षी शोक के कारण विलाप करते हुए अपने बच्चों को ढूँढ़ने लगे। यह जान बिलाव कोटर से निकलकर भाग गया। पक्षियों द्वारा इधर-उधर अच्छी तरह ढूँढ़े जाने पर उस वृक्ष के कोटर में शावकों की अस्थियां मिलीं तब वे बोले-इस गृद्ध ने ही हमारे बच्चों को खाया-ऐसा निश्चय कर सभी पक्षियों ने गृद्ध को मार डाला। इसीलिए मैं कहता

जिसके चरित्र एवं कुल की जानकारी न हो, उसे कभी भी अपने पास नहीं रखना चाहिए क्योंकि इसी भूल के कारण बिलाव के कर्मों का फल जरद्गव को भोगना पड़ा।

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