जीवन-परिचय – हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार एवं ‘उपन्यास सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई सन् 1880 ई. में वाराणसी के पास ‘लमही’ नामक गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनंदी देवी और पिता का नाम अजायब राय था। मुंशी प्रेमचंद जी के बचपन का नाम ‘धनपत राय’ था। बचपन में ही पिता की मृत्यु के उपरांत परिवार का सारा दायित्व अपने कंधों पर लियां। दसवीं कक्षा पास करने के बाद वे प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हुए। नौकरी के दौरान ही बी.ए. पास करके ‘शिक्षा विभाग में सब – डिप्टी-इंस्पेक्टर- ऑफ़-स्कूल’ के पद को सुशोभित किया। कुछ समय बाद ‘महात्मा गाँधी जी’ के आन्दोलन से प्रभावित होकर नौकरी से त्याग-पत्र देकर सन् 1920 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया। तत्पश्चात् लेखन कार्य के प्रति समर्पित होकर ‘हंस’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया। सन् 1936 ई. में इस महान उपन्यासकार ने अपने भौतिक शरीर का परित्याग कर संसार से विदा ली।
रचनाएँ – हिन्दी साहित्य जगत के मूर्धन्य मूर्धन्य मनीषी कहानीकार ने 350 कहानियाँ और 11 उपन्यास लिखे। इनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संकलित हैं। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानियाँ – प्रेरणा, प्रेम-प्रसून, प्रेम-पच्चीसी, कफन, नवनिधि, सप्त सरोज, समर यात्रा, अग्नि-समाधि, प्रेम-गंगा. मनमोहक और सप्त-सुमन अनेकों रोचक कहानियाँ हैं। उपन्यास – गोदान, निर्मला, कर्मभूमि, गबन, कायाकल्प, वरदान, प्रतिज्ञा, सेवासदन, प्रेमाश्रम और रंगभूमि अनूठे उपन्यास हैं।
नाटक- प्रेम की वेदी, संग्राम, रूठी रानी और कर्बला सुप्रसिद्ध नाटक हैं।
निबंध – मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित निबंध ‘विविध प्रसंग’ और ‘कुछ विचार’ नामक संकलनों में संकलित हैं।
संपादन कार्य- जागरण, माधुरी और हंस आदि पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
साहित्यिक विशेषताएँ – राष्ट्रीय जागरण और समाज सुधार प्रेमचंद जी के साहित्य का प्रमुख विषय है। देशभक्ति के प्रबल स्वर के कारण उनके कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। दीन-हीन किसानों, ग्रामीणों और शोषितों की दलित अवस्था का मार्मिक चित्रण मुंशी प्रेमचंद का मुख्य विषय रहा। कफन, पूस की रात, गोदान आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध मूक विद्रोह की आवाज उठाती हैं। उन्होंने दहेज, अनमेल विवाह, नशाखोरी, शोषण, बहु-विवाह, छुआछूत, ऊँच-नीच आदि सामाजिक बुराइयों पर भी प्रभावशाली साहित्य लिखा।
प्रेमचंद ने मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं को भी सहानुभूति प्रदान की। ‘दो बैलों की कथा’ के दोनों बैल मानो परतंत्र भारतीय नागरिक हैं, जो स्वदेश हित के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।
भाषा-शैली – मुंशी प्रेमचंद की भाषा सरल, मुर्हावरेदार है। उन्होंने लोकभाषा को साहित्यिक भाषा बनाया। उनकी भाषा आम जनता के बहुत निकट है। वे शब्दों का चुनाव अपने पात्रों की मनोदशा और वातावरण के अनुसार करते हैं। वे सरल भाषा में ही बड़ी बात को कहने में प्रवीण हैं । उर्दू, अरबी, फारसी के शब्दों के प्रयोग से भाषा में सजीवता आ गई है।
पाठ का सार
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित अनेकानेक कहानियों में ‘दो बैलों की कथा’ एक अनूठी कहानी है जिसके पात्र हीरा और मोती नामक दो बैल सीधे, सरल स्वभाव के भारतीय जनमानस का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रस्तुत कहानी के माध्यम से लेखक ने कृषक समाज का पशुओं के प्रति भावात्मक संबंध का वर्णन किया है। लेखक ने ‘दो बैलों की कथा ‘ के माध्यम से भारतीय समाज की परतंत्रता का दर्शन कराया है, साथ ही यह भी दिखाया है कि अगर हम परतंत्रता के विरुद्ध सतत संघर्ष करते हैं तो अंततः स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है। पाठ का सार इस प्रकार है –
पशुओं में गधे को सबसे बुद्धिहीन प्राणी कहने के पीछे उसकी सहज सहनशीलता और सीधापन है। वह धूप-छाँव, सुख-दुःख में समभाव रखने वाला समान रूप से सहन करने वाला प्राणी है। इसी श्रेणी में गधे का एक अनुज है – बैल। कभी-कभी अड़ जाने या अक्खड़ स्वभाव होने के कारण इसका स्थान गधे से कुछ निम्न है।
झूरी काछी के पास होरा और मोती नामक सुंदर डील-डौल वाले तथा कार्य में निपुण दो बैल थे। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी। एक-दूसरे को चाटकर अपना प्रेम-प्रदर्शित करते थे। दिन भर काम करने के बाद शाम को एक साथ नाँद में मुँह डालकर चारा खाते थे।
संयोग से दोनों बैलों को एक बार झूरी के ससुराल जाना पड़ा। अपने स्वामी से अलग होकर दूसरी जगह जाने में वे रास्ते भर विरोध करते रहे लेकिन झूरी की ससुराल में पहुँच जाने के बाद हीरा और मोती मजबूत रस्सी को तोड़कर सुबह अपने मालिक के घर आ गए। झूरी ने जब बैलों को दयनीय दशा में चरनी पर खड़े देखा तो झूरी के मन प्रेम उमड़ आया और वह बैलों के गले लग गया। घर वाले और गाँव के लड़कों ने हीरा-मोती को चोकर, रोटी, गुड़, हरा चारा खाने को देकर स्वागत किया।
अगले दिन झूरी का साला गया, बैलों को ले जाने आया। इस बार गया उन्हें गाड़ी में जोतकर अपने घर ले गया। उन्हें मोटी रस्सियों में बाँधकर सूखा भूसा खाने को डाल दिया। दोनों बैलों ने इसे अपना अपमान समझा। अगले दिन गया ने उन्हें हल में जोता। दोनों को खूब पीटा। हीरा की नाक पर डंडे बरसाए। यह देख मोती आग बबूला हो गया और हल, रस्सी तोड़ ताड़कर भाग खड़े हुए। बड़ी | रस्सियाँ गले में पड़ी होने से वे दोनों पकड़े गए और दो आदमी पकड़कर हीरा-मोती को घर लें आए। रात में उन्हें सूखा चारा खाने को दिया गया। दोनों दिनभर जोते जाते, उन पर डंडे बरसाए जाते। एक लड़की चुपके से दो रोटियाँ उन्हें खाने को दे जाती थी। पशु होते हुए भी वे जान चुके थे कि यह लड़की भी समय की मारी है। एक दिन दयावश उस छोटी लड़की ने उन्हें भाग जाने के लिए उनकी रस्सियाँ खोल दीं लेकिन स्नेहवश बैल वहीं खड़े रहे तो लड़की ने चिल्लाना शुरू कर दिया बैल भागे जा रहे हैं, फिर क्या, दोनों बैल जी-जान लगाकर भागे। गाँव वाले और गया उनके पीछे-पीछे भागे। नए गाँव में पहुँच कर एक खेत में खूब मटर खाई और आपस में सींग मिलाकर प्रसन्नता जाहिर की। अचानक उन्हें सामने एक साँड़ दिखाई पड़ा। दोनों बैल और साँड़ आपस में लड़ाई करने लगे। अंततः साँड़ को घायल कर हीरा-मोती बच निकले। आगे बढ़कर मटर के खेत में घुसकर मटर खाने लगे तभी खेत के रखवाले द्वारा दोनों पकड़ लिए गए और कांजीहौस में बंद कर दिए गए।
कांजीहौस में हीरा-मोती को दिन भर कुछ भी खाने को न मिला। वहाँ पहले से ही कुछ गायें, भैंस, घोड़े-घोड़ियाँ और बकरियाँ भूखे-प्यासे मुर्दे की तरह पड़े थे। भूख से व्याकुल होकर हीरा – मोती दीवार की मिट्टी चाटते ।
हीरा और मोती एक सप्ताह तक कांजीहौस में भूखे पड़े रहे। एक दिन एक कसाई ने उन्हें खरीद लिया। उनकी कोख में कसाई ने गोदकर देखा तो हीरा-मोती डर से काँप गए। नीलाम होकर हीरा-मोती उस दढ़ियल कसाई के साथ चले। अपने-अपने भाग्य को कोस रहे थे। रास्ते में उन्हें गाय-बैलों का जत्था नजर आया। वे खूब उछल-कूद रहे थे। हीरा-मोती सोच रहे थे कि इन स्वार्थी लोगों को मेरी मुसीबत की जरा भी चिंता नहीं है। –
रास्ते में चलते-चलते हीरा-मोती को लगा कि ये रास्ते, ये खेत, कुछ जाने-पहचाने लगते हैं। उनकी जान में जान सी आ गई। वे तेजी से भागे और अपने स्वामी झूरी के घर चरनी पर खड़े हो गए।
झूरी अपने दोनों प्यारे बैलों को देखकर उनके गले लग गया। हीरा और मोती भी झूरी का हाथ चाटने लगे। इतने में कसाई ने बैलों की रस्सियाँ पकड़ ली और कहा, ‘इन्हें मैं नीलामी से लाया हूँ। झूरी ने कहा, ‘ये बैल मेरे हैं।’ लेकिन जब दढ़ियल कसाई उन्हें लेकर चलने लगा तो दोनों बैलों ने सींग से कसाई पर प्रहार कर उसे गाँव से भगा दिया।
कुछ देर बाद झूरी ने दोनों बैलों को नाँद में भूसा, खली, चोकर आदि डालकर खाने को दिया। दोनों बैल प्रेम से खाने लगे। गाँव में चारों ओर खुशी छा गई। मालकिन ने भी दोनों के माथे चूम लिए ।
‘दो बैलों की कथा’ मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी है। इसके प्रमुख पात्र दो बैल हैं। हीरा और मोती नाम के ये बैल सीधे-सादे भारतीय लोगों के प्रतीक हैं। ये शक्तिशाली, कमाऊ और सीधे-सादे होते हुए भी मनमाने अत्याचार सहते हैं। कहानीकार इनके माध्यम से भारतीय लोगों की परतंत्रता दिखाना चाहता है।
संयोग से झूरी ने एक बार दोनों बैलों को अपनी ससुराल भेज दिया। बेचारे बैल समझे कि मालिक ने हमें बेच दिया है। अतः वे अड़ गए। झूरी का साला उन्हें आगे धकेलता तो वे पीछे जोर लगाते । मुश्किल से वे साँझ को नए स्थान पर पहुँचे। वहाँ भी उनका मन न लगा। उन्होंने चारे में मुँह न डाला। नया घर उन्हें बेगाना-सा लगा।
रात को दोनों बैलों ने कनखियों से एक-दूसरे को देखा। चुपचाप सलाह की और पगहे तोड़कर झूरी के घर चल पड़े। झूरी ने सुबह अपने बैलों को चरनी पर खड़ा देखा तो गद्गद हो गया। बैलों की आँखों में विद्रोह-भरा स्नेह था घर और गाँव के बच्चे तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत करने लगे। हाँ, पत्नी जरूर क्रुद्ध हुई। वह उन्हें नमक हराम कहने लगी। गुस्से के कारण उसने बैलों को सूखा चारा डाला। बैल चारा खाएँ तो कैसे? झूरी ने नौकर को चारे में खली डालने को कहा, किंतु मालकिन के डर से रह गया।
हीरा – मोती एक सप्ताह तक वहीं बँधे रहे। उन्हें खाने को कुछ न मिला। दोनों की ठठरियाँ निकल आई। एक दिन उनकी नीलामी होने लगी। कोई भी खरीददार उन्हें न खरीदता । अंत में एक कसाई ने उन्हें खरीद लिया। वह जिस तरह कूल्हे में उँगली गोदकर देख रहा था, उससे हीरा-मोती काँप गए।
नीलाम होकर दोनों दढ़ियल कसाई के साथ चले। वे अपने भाग्य को कोसने लगे। रास्ते में उन्हें गाय-बैलों का रेवड़ नजर आया। वे सभी प्रसन्न होकर उछल-कूद कर रहे थे। हीरा-मोती सोचने लगे- ये कितने स्वार्थी हैं कि इन्हें हमारी विपत्ति की कुछ भी चिंता नहीं है।
सहसा हीरा-मोती को लगा कि वे रास्ते उनके जाने-पहचाने हैं। अब उनके दुर्बल शरीर में जान आने लगी। जल्दी ही झूरी का घर नजदीक आ गया। वे तेजी से भागने लगे और थान पर खड़े हो गए।
झूरी ने उन्हें देखा तो दौड़ा और उन्हें गले लगाने लगा। बैल भी झूरी का हाथ चाटने लगे। दढ़ियल कसाई ने बैल की रस्सियाँ पकड़ लीं। झूरी ने कहा- ये बैल मेरे हैं। कसाई बोला- मैं इन्हें नीलामी से लाया हूँ। वह बैलों को जबरदस्ती ले जाने लगा। मोती ने उस पर सींग चलाया। दढ़ियल भागा। मोती ने उसे और भगाया तथा गाँव से दूर कर दिया ।
झूरी ने निहाल होकर नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया। दोनों मित्र खाने लगे। गाँव में उत्साह छा गया। मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए ।
पाठ्यपुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर- कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी कैद पशुओं की संख्या, उनकी विभिन्न आवश्यकताओं की पड़ताल, जिससे उनके खाने-पीने का इंतजाम उसके अनुसार किया जा सके, पशुओं के व्यवहार का आकलन तथा सभी कैद पशुओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ली जाती होगी।
प्रश्न 2. छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया?
उत्तर- छोटी बच्ची की माँ नहीं थी और सौतेली माँ उसे अत्यधिक सताती थी। गया, झूरी के बैलों पर अत्याचार कर रहा था। बच्ची उत्पीड़न का दर्द, प्रेम का महत्त्व, अपनों से बिछड़ने का गम तथा उपेक्षा के दर्द को भली-भाँति समझती थी। उसने हीरा-मोती के दुःख एवं कष्ट को भी भली-भाँति समझा। उसका निश्छल मन गया द्वारा हीरा मोती पर किए जा रहे अत्याचार से द्रवित हो उठा। अतः उनके प्रति उसके दिल में अगाध प्रेम उमड़ आया।
प्रश्न 3. “दो बैलों की कथा” कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं?
उत्तर- “दो बैलों की कथा” कहानी के माध्यम से प्रेमचंद ने अनेक नीति विषयक मूल्य समाज के सामने प्रस्तुत किए हैं। इनमें प्रमुख हैं- सच्ची मित्रता, स्वतंत्रता, नि:स्वार्थ परोपकार, नारियों का सम्मान, धर्मपरायणता, समस्याओं से जूझने की हिम्मत, सफलता का मूल मंत्र – हिम्मत नहीं हारना आदि।
प्रश्न 4. प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ ‘मूर्ख’ का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है?
उत्तर- प्रेमचंद ने अपनी कहानी ‘दो बैलों की कथा’ में गधे के लिए सदियों से प्रचलित रूढ़ अर्थ मूर्ख के विपरीत उसकी स्वाभाविक विशेषताओं, जैसे- सीधेपन, निरापद सहिष्णुता, सुख-दुख, हानि-लाभ किसी भी दशा में एक-सा भाव रखने के आधार पर उसकी तुलना संसार में अत्यधिक बुद्धिमान माने जाने वाले ऋषियों-मुनियों से कर अत्यधिक बुद्धिमान होने की ओर संकेत किया है।
प्रश्न 5. किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी?
उत्तर- ‘दो बैलों की कथा’ का कथा विन्यास लेखक प्रेमचंद ने इस तरह किया है कि दोनों बैलों की गहरी दोस्ती पग-पग पर उजागर होती है। चाहे वह हल में जोते जाने पर दोनों द्वारा ज्यादा से ज्यादा भार अपने कंधों पर रखने की कोशिश हो या गया द्वारा हीरा की पिटाई पर मोती द्वारा हल लेकर भागना हो, साँड के साथ संगठित युद्ध हो या खेत में मटर खाते मोती के पकड़े जाने पर हीरा का भी वहाँ आ जाना हो, अथवा कांजीहौस की दीवार गिराने के प्रयास में हीरा को मजबूत बंधन में बंधे छोड़ मोती को जाने की स्वतंत्रता के बावजूद वहाँ से नहीं जाना- ये सभी घटनाएँ उनकी गहरी मित्रता की कहानी कहते हैं।
प्रश्न 6. “लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो। ” – हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- हीरा के उपर्युक्त कथन के माध्यम से लेखक प्रेमचंद ने तत्कालीन समाज की नारी का चित्र अंकित किया है। तत्कालीन समाज में नारी सम्मानीय तो थी, परंतु उसे अबला समझा जाता था। कदम-कदम पर उसकी सुरक्षा के इंतजाम विषयक कानून प्रचलित थे। उपर्युक्त कथन यह सिद्ध करता है कि प्रेमचंद का नारियों के प्रति दृष्टिकोण भी तत्कालीन समय में नारियों के लिए प्रचलित संज्ञा ‘अबला’ से प्रभावित था।
प्रश्न 7. किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
उत्तर- आदिकाल से पशु और मानव का परस्पर संबंध रहा है। मनुष्य अपनी विभिन्न आवश्यकताओं के लिए जिस तरह पशुओं पर निर्भर है, ठीक उसी तरह पशु भी अपनी आवश्यकताओं के लिए मनुष्य का मुँह देखते हैं। ‘दो बैलों की कथा’ में प्रेमचंद ने इन्हीं संबंधों को गहराई से चित्रित किया है। कहानी में एक तरफ झूरी का अपने बैलों के प्रति प्यार तथा समर्पण की भावना को उतारा गया है, तो दूसरी तरफ हीरा-मोती का अपने मालिक के प्रति प्रेम और समर्पण को चित्रित किया गया है। यह पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को व्यक्त करता है।
प्रश्न 8. “इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई वे सब तो आशीर्वाद देंगे।” मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- ‘दो बैलों की कथा’ के एक बैल मोती के उपर्युक्त कथन से उसकी परोपकारिता, सहृदयता तथा दयालुता की झलक मिलती है। स्वयं कष्ट उठाकर नौ-दस प्राणियों की जान बचा लेने की खुशी से मोती की उपर्युक्त विशेषताएँ पूर्ण रूप में सत्य सिद्ध होती हैं। कहानी में मोती को उग्र स्वभाव का दिखाया गया है। उग्रता के मध्य परोपकारिता का उदय प्रशंसनीय है।
प्रश्न 9. आशय स्पष्ट कीजिए
कथन – (क) “अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। “
स्पष्टीकरण- प्रेमचंद द्वारा रचित ‘दो बैलों की कथा’ से उद्धृत इस कथन से हीरा और मोती की मित्रता की गहराई स्पष्ट होती है। हीरा और मोती एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए थे कि एक-दूसरे के मनोभावों को पढ़ना उनके लिए अत्यंत सरल था। लेखक कहता है कि इन दोनों में अवश्य ऐसी कोई शक्ति है, जो प्राणी श्रेष्ठ मानव के पास नहीं है ।
कथन – (ख) “उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया । “
उत्तर- इस कथन के माध्यम से लेखक ने प्रेम भावना को चित्रित किया है। गया के घर हीरा-मोती को अथक परिश्रम के पश्चात् खाने को रूखा-सूखा मिलता था । बैलों पर हो रहे इस अत्याचार को देख उसी के घर की छोटी-सी लड़की का हृदय द्रवित हो गया। वह नित्य बैलों को सबसे छिपाकर दो रोटी खिलाती थी। यद्यपि इससे हीरा-मोती की भूख शांत नहीं होती थी, तथापि लड़की के प्रेम और त्याग की भावना से उनमें एक उत्साह और शक्ति का संचार होता था, जिससे वे स्वयं को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखे हुए थे।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(1) गधे के छोटे भाई का नाम …… है। (कुत्ता/बैल)
(2) ऋषि-मुनियों के गुण …….. में पहुँच गए हैं। (घोड़े/गधे)
(3) अड़ियल का अर्थ है ………… । (अड़ना/हठी)
(4) झूरी के बैल ……. जाति के थे। (पछाई/जर्सी)
(5) झूरी ने दोनों बैलों को अपनी …………भेजा। (मायके/ससुराल)
उत्तर- (1) बैल, (2) गधे, (3) हठी, (4) पछाई, (5) ससुराल ।
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए-
(1) झूरी के बैल मुराई जाति के थे।
(2) ईश्वर ने बैलों को वाणी नहीं दी।
(3) भैरों की लड़की बैलों को घास खिलाती थी।
(4) हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी ।
(5) हीरा और मोती गया के यहाँ जाकर विद्रोही हो गए।
उत्तर- (1) असत्य, (2) सत्य, (3) असत्य, (4) सत्य, (5) सत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
(1) जानवरों में किसे सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है ?
(2) झुरी के दोनों बैलों के नाम क्या थे ?
(3) गराँव किसे कहते हैं ?
(4) मित्रता की पहचान कब होती है ?
(5) झूरी ने दोनों बैलों को कहाँ भेजा ?
उत्तर- (1) जानवरों में गधे को सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है ।
(2) झूरी के बैलों के नाम हीरा और मोती थे।
(3) फँदेदार रस्सी, जो पशुओं के गले में पहनाई जाती है, उसे गाँव कहते हैं।
(4) मित्रता की पहचान मुसीबत में होती है।
(5) झूरी ने दोनों बैलों को अपनी ससुराल भेजा।
महत्वपूर्ण गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
गद्यांश 1. “जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दरजे का बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो;’ पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है । “
प्रश्न 1. जानवरों में किसे सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है? हम किसी को ‘गधे’ की संज्ञा कब देते हैं?
उत्तर- जानवरों में गधे को सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है। हम किसी को मूर्ख बताने के लिए उसे ‘गधे’ की संज्ञा देते हैं।
प्रश्न 2. गधे की कौन-सी विशेषता उसे अन्य पशुओं से अलग करती है? गधे के चेहरे पर खुशी कब आती है?
उत्तर- गधे की अत्यधिक सहिष्णुता उसे अन्य पशुओं से अलग करती है। गधे के चेहरे पर वैशाख के महीने में खुशी आती है।
प्रश्न 3. ‘निरापद सहिष्णुता’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘निरापद सहिष्णुता’ का अर्थ है अत्यंत सीधापन।
गद्यांश 2. “ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं, फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते, तो शायद सभ्य कहलाने लगते । जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।”
प्रश्न 1. ऋषियों-मुनियों के गुण किसमें पराकाष्ठा पर पहुँच गए हैं? लेखक के अनुसार क्या संसार के लिए उपयुक्त प्रतीत नहीं होता?
उत्तर- ऋषियों-मुनियों के गुण गधे में परकाष्ठा पर पहुँच गए हैं। लेखक के अनुसार बेवकूफ गधा संसार के लिए उपयुक्त प्रतीत नहीं होता।
प्रश्न 2. ‘पराकाष्ठा’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- पराकाष्ठा का अर्थ है- चरम सीमा।
प्रश्न 3. कैसे लोग जीवन के आदर्श को नीचा करने वाले कहे जाते हैं? उन्हें सभ्य कहलाने के लिए क्या करना होगा ?
उत्तर- वे लोग, जो लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, जो जीतोड़ मेहनत करते हैं, जो चार बातें सुनकर भी गम खा लेते हैं, वे लोग जीवन के आदर्श को नीचा करने वाले कहे जाते हैं। अगर वे ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाएँगे, तो वे सभ्य कहलाने लगेंगे।
गद्यांश 3. “लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे : मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभीकभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है। “
प्रश्न 1. गधे का छोटा भाई किसे बताया गया है तथा ‘बछिया के ताऊ’ संज्ञा का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
उत्तर- गधे का छोटा भाई बैल को बताया गया है। ‘बछिया के ताऊ’ संज्ञा का प्रयोग भी बैल के लिए किया गया है।
प्रश्न 2. बैल का स्थान गधे से नीचा क्यों है? हम गधे का प्रयोग किस अर्थ में करते हैं?
उत्तर- बैल का स्थान गधे से नीचा हैं, क्योंकि वह विभिन्न रीतियों से अपना विरोध प्रकट करता है। हम गधे का प्रयोग मूर्ख के अर्थ में करते हैं।
प्रश्न 3. ‘अड़ियल’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘अड़ियल’ का अर्थ है- हठी ।
गद्यांश 4. “झुरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाई जाति के थे- देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों तक साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आसपास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक भाषा में विचार विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाते थे, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे- विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।”
प्रश्न 1. सूरी के दोनों बैलों के नाम क्या थे? वे कौनसी जाति के थे?
उत्तर- झूरी के बैलों के नाम हीरा तथा मोती थे। वे पछाई जाति के थे।
प्रश्न 2. दोनों बैलों में कैसा संबंध था? वे अपने सींग क्यों मिला लिया करते थे?
उत्तर- दोनों बैलों में भाईचारा था। वे अपने सींग घनिष्ठता तथा आपसी प्रेमवश मिला लिया करते थे।
प्रश्न 3. विग्रह से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- विग्रह का तात्पर्य है- अलग होना।
गद्यांश 5. “संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोईं ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता, तो दोनों पीछे को जोर लगाते । मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते- तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। इतनी मेहनत से काम न चलता था, तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया ?”
प्रश्न 1. झूरी ने दोनों बैलों को कहाँ भेजा था ? बैलों को वहाँ जाना कैसा लगा?
उत्तर- झूरी ने दोनों बैलों को खेती के कार्य के लिए अपने ससुराल भेजा था। बैलों को झूरी के ससुराल जाना अच्छा नहीं लगा। कारण, वे अपने मालिक झूरी से बहुत प्यार करते थे।
प्रश्न 2. ‘जालिम’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर- जालिम का अर्थ अत्याचारी है।
प्रश्न 3. लेखक के अनुसार ईश्वर ने बैलों को क्या नहीं दिया था? अगर उनके पास वाणी होती तो वे क्या करते?
उत्तर- लेखक के अनुसार ईश्वर ने बैलों को वाणी नहीं दी थी। अगर उनके पास वाणी होती, तो वे झूरी से पूछते कि तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो । ?
गद्यांश 6. “संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नाँद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिन भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अफना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों से लगते थे। दोनों ने अपनी मूक-भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ चले। पगहे बहुत मजबूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गई। “
प्रश्न 1. बैलों के लिए नया स्थान कौन-सा था? उन्होंने वहाँ नाँद में मुँह क्यों नहीं डाला?
उत्तर- दोनों बैलों के लिए झूरी के साले गया का घर नया स्थान था। उन्होंने वहाँ नाँद में मुँह इसलिए नहीं डाला, क्योंकि वे अपना घर छोड़ने से दु:खी थे तथा नाँद में रुचिकर भोजन नहीं था।
प्रश्न 2. ‘दिल भारी होना’ मुहावरे का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘दिल भारी होना’ मुहावरे का अर्थ है- दुःखी होना।
प्रश्न 3. गाँव में सोता पड़ने पर बैलों ने क्या किया तथा क्यों?
उत्तर- गाँव में सोता पड़ने पर बैल पगहा तुड़ाकर घर की तरफ भागे। क्योंकि बैलों को अपने मालिक झूरी के पास जाना था। उन्हें नया घर, नया गाँव तथा नए आदमी बेगाने लगते थे।