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MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 2 ल्हासा की ओर

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 1 ल्हासा की ओर

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 2 ल्हासा की ओर ( राहुल संकृत्यायन )

लेखक – परिचय

जीवन परिचय – हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समालोचक राहुल सांकृत्यायन का जन्म सन् 1893 में जिला आजमगढ़ ( उ.प्र.) के पंदहा गाँव में हुआ था। इनका मूल नाम केदार पांडेय था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में तथा मिडिल शिक्षा आजमगढ़ में हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा काशी, आगरा और लाहौर से प्राप्त की। सन् 1930 में श्रीलंका जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। इसके बाद ये राहुल सांकृत्यायन नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हें चीनी, जापानी, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश, रूसी आदि अनेकों भाषाओं का अपार ज्ञान प्राप्त था। इसी कारण वे ‘महापंडितं’ कहलाए। इनकी प्रवृत्ति घुमक्कड़ थी। इन्होंने देश-विदेश का भ्रमण किया। सन् 1963 में इस महापंडित का देहावसान हो गया।
रचनाएँ- बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अपने पांडित्य के कारण इन्होंने कहानी, यात्रा वृत्तांत, आत्मकथा, उपन्यास, शोध आलोचना एवं जीवनी आदि विधाओं में सहित्य सृजन कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। राहुल जी ने अनेक ग्रंथों का अनुवाद भी किया। राहुल जी ने इतिहास, विज्ञान, धर्म, और दर्शन जैसे विषयों में भी लेखन कार्य किया। राहुल जी द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या लगभग 150 है। राहुल जी की रचनाएँ दो भागों में विभक्त हैं –
यात्रा साहित्य – मेरी जीवन यात्रा (छह भाग), घुमक्कड़, शास्त्र किन्नर के देश में राहुल यात्रावली, हिमालय परिचय आदि।
अन्य साहित्य – बाइसवीं सदी दर्शन-दिग्दर्शन, भागो नहीं दुनिया को बदलो दिमागी गुलामी, बोल्गा से गंगा आदि।
साहित्यिक विशेषताएँ – राहुल सांकृत्यायन के साहित्य में जिंदादिली और साहस के दर्शन होते हैं। उनका ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ यायावरों का प्रेरणा -ग्रंथ है। उन्होंने न केवल स्वयं जीवन-भर देश-विदेश की यात्राएँ कीं, अपितु अपने साहित्य में भी उन यात्राओं का सजीव वर्णन किया। उनकी यात्रा पिकनिक या मनोरंजन का शगुलमेला नहीं होती, बल्कि कठोर साधना होती है। इस साधना के दर्शन ‘ल्हासा की ओर’ नामक यात्रा – वृत्त को पढ़कर किए जा सकते हैं।
भाषा-शैली – महापंडित राहुल जी की भाषा पर घुमक्कड़ी का पूरा-पूरा प्रभाव देखा जा सकता है। वे जहाँ की यात्रा करते हैं, वहाँ के स्थानीय शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग करते हैं। डाँड़ा थोङ्ला, छङ जैसे तिब्बती शब्दों का प्रयोग दर्शनीय है। सामान्य रूप से वे अपने यात्रा – वृत्तांतों में सहज-स्वाभाविक भाषा का व्यवहार करते हैं।
पाठ का सार
‘ल्हासा की ओर’ एक यात्रा-वृत्तांत है। यह पाठ लेखक की प्रथम तिब्बत यात्रा का अंश है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने 1929-30 में नेपाल से तिब्बत के दुर्गम रास्तों का बड़ा ही रोमांचक व मार्मिक वर्णन किया है। इस पाठ से तिब्बती समाज की जानकारी मिलती है।
भारत के एक व्यापारिक मार्ग फरी-कलिङ्पाङ के न खुले होने के कारण लेखक ने तिब्बत की अपनी यात्रा का श्रीगणेश नेपाल-तिब्बत मार्ग से की थी। यह एक सैनिक मार्ग भी था जहाँ आज भी अनेकों किले और चौकियाँ बनी हैं। कुछ किलों में किसानों ने अपना निवास बना लिया है। तिब्बत में जाति-पाँति का भेदभाव नहीं है, न ही छुआ-छूत का । तिब्बत के जीवन में आराम और कठिनाइयों का सम्मिश्रण है। भिखमंगों के अलावा कोई भी अपरिचित व्यक्ति घर के अंदर तक प्रवेश कर सकता है।
जब लेखक ने परित्यक्त चीनी किले से गमन किया तो एक आदमी उससे राहदारी माँगने आया। लेखक ने अपनी और अपने साथी सुमति की चिटें उसे दे दीं। सुमति के जान पहचान के कारण ही लेखक को थोङ्ला के आखिरी गाँव में ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गई। पिछली बार, जब वे घोड़ों पर सवार होकर वहाँ आए थे, तो उन्हें एक गरीब झोंपड़े में ठहरना पड़ा था। इस बार वे भिखमंगों के वेश में यात्रा पर थे ।
सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित डाँड़े तिब्बत के खतरनाक स्थल है। इसलिए उनके दोनों तरफ मीलों तक गाँव नहीं हैं। नदियों के मोड़ों और पहाड़ों के कारण ये डाकुओं के लिए सबसे सुरक्षित स्थल हैं। यहाँ सरकार पुलिस पर भी खर्च नहीं करती। इसलिए यहाँ खून आसानी से हो जाते हैं। डाकू पहले आदमी को मार डालते हैं, फिर माल लूटते हैं।
लेखक और सुमति भिखमंगों के वेश में यात्रा कर रहे हैं। इसलिए उन्हें डाकुओं से खतरा नहीं है। वे जहाँ भी खतरनाक स्थिति देखते हैं, टोपी उतारकर भीख माँगने लगते हैं।
अगले दिन उन्हें 16-17 मील की ऊँचाई चढ़कर लङ्कोर पहुँचना था। दोपहर के समय वे डाँड़े पर पहुँचे। 17-18 हजार फुट की ऊँचाई थी। दाहिनी तरफ हिमालय की हजारों बर्फीली चोटियाँ थीं। सर्वोच्च स्थान पर डाँड़े के देवता का स्थान था, जिसे पत्थरों, सींगों तथा रंग-बिरंगी झंडियों से सजाया गया था।
अब उतराई आ गई थी। आगे दो रास्ते जाते थे। लेखक बाएँ रास्ते पर चल पड़ा। डेढ़ मील चलने के बाद पता चला कि वह रास्ता भटक गया है। वह फिर से वापस आया। शाम के चार-पाँच बज गए। सुमति उसका इंतजार कर रहा था। गुस्से से लाल मुँह करके बोला- “मैंने दो टोकरी कंडे फूँक डाले, तीन-तीन बार चाय को गर्म किया। ” लेखक ने अपनी मज़बूरी बताई तो वह शांत हो गया। लंङ्कोर में वे एक अच्छी जगह ठहरे। उन्हें चाय-सत्तू और गरमागरम थुक्पा खाने को मिला।
अब वे तिङ्री के विशाल मैदान में थे। विशाल मैदान के भीतर भी एक पहाड़ी थी जिसका नाम है-तिङ्ी-समाधि-गिरि। सुमति सब जगह जाना चाहते थे ताकि उन्हें गंडे पहुँचा सकें । लेखक ने सुमति को दूर-दूर के गाँवों में न जाने के लिए राजी कर लिया।
अगले दिन लेखक और सुमति सुबह 10 – 11 बजे चले। धूप बहुत कड़ी थी । तिब्बत की ज़मीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का काफी हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। हर जागीरदार बेगार मजदूरों से खेती कराता है। खेती का प्रबंध करने के लिए कोई भिक्षु आता है जिसे राजा के समान आदर मिलता है।
लेखक और सुमति शेकर विहार पहुँचे। उसका मुखिया भिक्षु नम्से भद्र पुरुष था। यद्यपि लेखक का वेश भिखमंगों-सा था, फिर भी वे उन्हें बड़े प्रेम से मिले। यहाँ एक बौद्ध मंदिर था जिसमें कन्जुर (बुद्धवचन – अनुवाद) की 103 हस्तलिखित पोथियाँ रखी हुई थीं। लेखक उन पुस्तकों में रम गया। सुमति ने यजमानों के पास जाने के बारे में पूछा । लेखक ने उसे अनुमति दे दी। अगले दिन वे भिक्षु नम्से से विदाई लेकर चल दिए।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला, जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?
उत्तर- उस समय लेखक के साथ सुमति नहीं था। सुमति की स्थानीय लोगों से अच्छी पहचान थी। इससे अधिक महत्वपूर्ण कारण था उस विशिष्ट समय में लोगों की मनोवृत्ति। वहाँ के सभी लोग शाम के समय छड़ पीकर अपना होश – हवास खो बैठते थे। इस स्थिति में किसी की भी पहचान मुश्किल थी। लेखक उस स्थान पर शाम को ही पहुँचा था। उस समय कोई भी अपने होश-हवास में नहीं था। अतः लेखक को भद्र वेश में होने पर भी उचित स्थान नहीं मिला था।
प्रश्न 2. उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?
उत्तर- उस समय तिब्बत में हथियार का कानून नहीं था। अतः सभी लोग पिस्तौल, बंदूक आदि लाठियों की तरह रखते थे। अतः यात्रियों को खून का डर हमेशा बना रहता था। वहाँ अनेक निर्जन स्थान थे, जहाँ डाकुओं का साम्राज्य था। उन्हें किसी से कोई डर नहीं होता था। सरकार की ओर से ऐसे स्थानों पर पुलिस व्यवस्था भी नहीं थी। ऐसे में वे यात्रियों की पहले हत्या करते, तत्पश्चात् उनका सामान लूट लेते थे।
प्रश्न 3. लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
उत्तर- लेखक के लङ्कोर के मार्ग में अपने अन्य साथियों से पिछड़ने के कई कारण थे।
जैसे- (1) लेखक के घोड़े का सुस्त होकर धीरे-धीरे चलना। (2) मार्ग भटककर किसी दूसरे रास्ते पर डेढ़ दो मील तक चले जाना तथा वापस आना ।
प्रश्न 4. लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उनके यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
उत्तर- शेकर विहार में सुमति गंडा बाँटना चाहता था, जिसमें अधिक समय लगने की संभावना थी और लेखक को लक्ष्य तक पहुँचने की जल्दी थी। अतः उन्होंने उसे अपने यजमानों के पास जाने से रोका, परंतु दूसरी बार लेखक को शेकर विहार के एक अत्यंत रमणीय मंदिर में पुस्तकों का खजाना मिल गया। इसे पढ़ने एवं समझने के लिए लेखक को स्वयं समय की जरूरत थी । वे किताबों में इतने रम गए थे कि उन्हें अब किसी चीज़ की कोई आवश्यकता नहीं थी। अतः उन्होंने सुमति को रोकने का प्रयास नहीं किया।
प्रश्न 5. अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर- लेखक को अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जैसे- (1) लेखक को पूरी यात्रा के दौरान डाकुओं के भय के साये में रहना पड़ा। ( 2 ) ऊँचे-नीचे पहाड़ी रास्ते तथा तेज धूप में काफी पैदल चलना पड़ा। (3) अपनी जान बचाने के लिए भीख भी माँगनी पड़ी। (4) साथियों से बिछुड़ कर अनजान मार्ग पर अकेले यात्रा करनी पड़ी। (5) भद्र रूप छिपाकर भिखारियों के रूप में रहना पड़ा।
प्रश्न 6. प्रस्तुत यात्रा-वृत्तांत के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
उत्तर प्रस्तुत यात्रा वृत्तान्त के आधार पर कहा जा सकता है कि तत्कालीन तिब्बती समाज अत्यंत खुला था। वहाँ संकीर्णता का नामो-निशान नहीं था। लोग जाति-पांति, छुआछूत, ऊँच-नीच के भेदभाव से दूर थे। महिलाओं में पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी। वे सभी से घुलमिल कर बातचीत करती थीं। अनजान व्यक्तियों को भी चाय-पानी बनाकर देने में उन्हें कोई हिचक नहीं थी छ अर्थात् मदिरापान उनकी दिनचर्या में शामिल था। लोग अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे गंडे के नाम पर साधारण गाँठ लगे कपड़े को भी अत्यंत श्रद्धा के साथ स्वीकारते थे। समाज में बुद्ध तथा उनके वचनों के संग्रह कन्जुर को विशेष स्थान प्राप्त था।
प्रश्न 7. सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर- सुमति के यजमान और उनके परिचित हर गाँव में लेखक को मिले। इससे सुमति के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताएँ प्रकट होती है। जैसे- सुमति मिलनसार एवं हँसमुख व्यक्ति था। वह लोगों के बीच धर्मगुरु के समान था, जो उन्हें बोधगया से लाए गंडे दिया करता था। सुमति समय का पाबंद था। वह समय पर लेखक के न पहुँचने पर नाराज हो जाता है। सुमति लालची स्वभाव का था। सुमति बौद्ध धर्म में आस्था रखता था। वह तिब्बत का अच्छा भौगोलिक ज्ञान रखता था। वह आतिथ्य सत्कार में कुशल था।
प्रश्न 8. हमारा आचार-व्यवहार, वेशभूषा के आधार पर तय होता है। पाठ में आई पंक्ति “हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी ख्याल करना चाहिए था।” उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ में यह उचित है अथवा अनुचित विचार व्यक्त करें।
उत्तर- साधारणत: लोग व्यक्ति की स्थिति का आकलन उसकी वेशभूषा से ही करते हैं। लोग व्यक्ति की वेशभूषा को देखकर यह धारणा बना लेते हैं कि यह कैसा होगा और उसी के अनुरूप उसके साथ व्यवहार करते हैं। बिना बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान के मनुष्य की स्थिति के आकलन का सबसे सरल तरीका उसकी वेशभूषा है। परंतु प्रश्नोक्त पंक्ति में लेखक भी वेशभूषा पर आधारित आकलन के पक्षधर प्रतीत होते हैं, क्योंकि लेखक का कथन है कि मेरी वेशभूषा ऐसी नहीं थी कि उन्हें कुछ भी ख्याल रखना चाहिए था। मेरे विचार से व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन वेशभूषा के आधार पर होना कतई उचित नहीं है। कारण, अच्छे कपड़े पहनने वाला व्यक्ति जरूरी नहीं कि वह अच्छा इंसान भी हो।
प्रश्न 9. राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित इस यात्रा वृत्तांत के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द  चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य शहर से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर- भारत के उत्तर में स्थित तिब्बत नेपाल का पड़ोसी देश है। इसकी सीमा भारत और चीन से लगती है। यह समुद्रतल से सत्रह-अठारह हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पहुँचने का मार्ग दुर्गम हैं। बीच-बीच में कई ऐसी जगह हैं, जो निर्जन हैं। यहाँ एक ओर हिमालय है, तो दूसरी ओर निर्जन पहाड़। यहाँ की जलवायु अत्यंत मनोरम है। जहाँ धूप होती है, वहाँ तेज गर्मी तथा छाया वाले भाग पर खूब ठंडक होती है। थोङ्ला एक दुर्मग डाँडा है, तो तिी एक विशाल मैदान, जिसके चारों ओर पहाड़ व पहाड़ियाँ हैं। मेरा शहर मैदानी क्षेत्र में होने के कारण उसकी भौगोलिक स्थिति बिलकुल भिन्न है। मेरे शहर में परिवहन के साधन, संचार के साधन तथा अन्य सभी आधुनिक सुविधाएँ सहज सुलभ हैं।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सही शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) तिब्बत में …….. कानून नहीं था। (हथियार/न्याय)
(ii) तिब्बत में जागीरों का अधिकार ……. के पास था।  (मठों/भिक्षुकों)
(iii) तिब्बत में खेती की व्यवस्था ……… देखते हैं।  (मंठ का भिक्षुक/सरपंच)
(iv) डाँडा थोङ्लां ……… के लिए उपयुक्त है। (व्यापारियों/डाकुओं)
(v) कंजुर खजूर का ……….. रूप है। (विकसित / संकुचित)
उत्तर-(i) हथियार, (ii) मठों, (iii) मठ का भिक्षुक, (iv) डाकुओं, (v) विकसित।
प्रश्न 2. सत्य/असत्य बताइए-
(i) डाँडा थोङ्ला व्यापारियों के लिए उपयुक्त हैं।
(ii) तिब्बत में बन्दूक का लाठी के रूप में उपयोग होता था।
(iii) लेखक का आसन विश्राम गृह में लगा था।
(iv) व्यक्ति का व्यवहार वेशभूषा के आधार पर निश्चित होता है।
(v) तिब्बत में अतिथि का उचित सम्मान होता था।
उत्तर-(i) असत्य, (ii) सत्य, (iii) असत्य, (iv) असत्य, (v) सत्य।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए –
1. सुमति कौन था?
उत्तर- सुमति लेखक का सहयात्री तथा एक बौद्ध भिक्षुक था।
2. अपनी यात्रा के दौरान लेखक चाय पीने कहाँ ठहरा था?
उत्तर- अपनी यात्रा के दौरान लेखक चाय पीने के लिए परित्यक्त किले में ठहरा था।
3. तिब्बतियों का देवता स्थल कहा था?
उत्तर- तिब्बतियों का देवता-स्थल डाँडे के सर्वोच्च शिखर पर था।
4. डाँडे की ऊँचाई कितनी थी?
उत्तर- तिब्बत के डाँडे की ऊँचाई सोलह हजार फीट से अधिक थी।
5. परित्यक्त चीनी किलों की क्या विशेषता थी?
उत्तर- परित्यक्त चीनी किले भव्य तथा विशाल थे, परन्तु लेखक ने उन्हें जीर्ण-शीर्ण स्थिति में देखा था, जिन पर किसानों ने अपने डेरे डाल रखे थे।
महत्वपूर्ण गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर
गद्यांश 1. “परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया। हमने वह दोनों चिटें उसे दे दीं। शायद उसी दिन हम थोङ्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गए। यहाँ भी सुमति के जान-पहचान के आदमी थे और भिखमंगे होते हुए भी ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली। पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लौटे थे और भिखमंगे नहीं, एक भद्र यात्री के वेश में घोड़ों पर सवार होकर आए थे; किंतु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के एक सबसे गरीब झोपड़े में ठहरे थे। बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मनोवृत्ति पर ही निर्भर है, खासकर शाम के वक्त छड् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरस्त रखते हैं।”
प्रश्न 1. परित्यक्त चीनी किले से चलते वक्त एक आदमी क्या माँगने आया?
उत्तर- परित्यक्त चीनी किले से चलते वक्त एक आदमी राहदारी माँगने आया।
प्रश्न 2. लेखक कितने साल बाद लौटा था?
उत्तर- लेखक पाँच साल बाद लौटा था।
प्रश्न 3. लौटते समय लेखक को ठहरने की अच्छी जगह क्यों नहीं मिली?
उत्तर- लौटते समय लेखक को ठहरने की अच्छी जगह इसलिए नहीं मिली क्योंकि सभी स्थानीय लोग ‘छड्’ पीकर होश-हवास में नहीं थे।
गद्यांश 2. “अब हमें सबसे विकट डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं।”
प्रश्न 1. लेखक एवं उनके साथियों की सबसे विकट समस्या क्या थी? डाँडा थोङ्ला सबसे अधिक किसके लिए उपयुक्त है?
उत्तर- लेखक और उनके साथियों की सबसे विकट समस्या डाँडा थोङ्ला पार करना था। डाँडा थोङ्ला डकैतों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है।
प्रश्न 2. डाँडा थोङ्ला की ऊँचाई कितनी है?
उत्तर- डाँडा थोङ्ला की ऊँचाई सोलह-सत्रह हजार फीट है।
प्रश्न 3. डकैत आदमी के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? यहाँ ये बेखौफ क्यों रहते हैं?
उत्तर- डकैत लोग आदमी को पहले मार डालते हैं और बाद में उसे लूट लेते हैं। यहाँ ये बेखौफ इसलिए रहते हैं कि इस क्षेत्र में सरकार, खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती। फलस्वरूप वहाँ की कानून व्यवस्था ठीक नहीं है ।
गद्यांश 3. “हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोग पिस्तौल, बंदूक लिए फिरते हैं। डाकू यदि जान से न मारे तो खुद उसे अपने प्राणों का खतरा है। गाँव में हमें मालूम हुआ कि पिछले ही साल थोङ्ला के पास खून हो गया। शायद खून की हम उतनी परवाह नहीं करते, क्योंकि हम भिखमंगे थे और जहाँ-कहीं वैसी सूरत देखते, टोपी उतार जीभ निकाल, “कुची-कुची (दया-दया) एक पैसा” कहते भीख माँगने लगते। लेकिन पहाड़ों की ऊँची चढ़ाई थी, पीठ पर सामान लादकर कैसे चलते? और अगला पड़ाव 16-17 मील से कम नहीं था। मैंने सुमति से कहा कि यहाँ से लङ्कोर तक के लिए दो घोड़े कर लो, सामान भी रख लेंगे और चढ़े चलेंगे। “
प्रश्न 1. तिब्बत में लाठी की तरह लोग हथियार लेकर क्यों घूमते थे?
उत्तर- तिब्बत में लाठी की तरह लोग हथियार लेकर घूमते थे क्योंकि वहाँ हथियार सम्बन्धी कानून नहीं था।
प्रश्न 2. लेखक को खून होने की चिंता क्यों नहीं थी?
उत्तर- लेखक को खून होने की चिंता इसलिए नही थी क्योंकि वह भिखमंगे के वेश में था।
गद्यांश 4. “दूसरे दिन हम घोड़ों पर सवार होकर ऊपर की ओर चले। डाँडे से पहिले एक जगह चाय पी और दोपहर के वक्त डाँडे ऊपर जा पहुँचे। हम समुद्रतल से 17-18 हजार फीट ऊँचे थे। हमारी दक्खिन तरफ पूरब से पच्छिम की ओर हिमालय के हजारों श्वेत शिखर चले गए थे। भीटे की ओर दिखने वाले पहाड़ बिलकुल नंगे थे, न वहाँ बरफ की सफेदी थी, न किसी तरह की हरियाली । उत्तर की तरफ बहुत कम बरफ वाली चोटियाँ दिखाई पड़ती थीं। सर्वोच्च स्थान पर डाँडे के देवता का स्थान था, जो पत्थरों के ढेर, जानवरों के सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था। अब हमें बराबर उतराई पर चलना था। चढ़ाई तो कुछ दूर थोड़ी मुश्किल थी, लेकिन उतराई बिलकुल नहीं। शायद दो- एक और सवार साथी हमारे साथ चल रहे थे। मेरा घोड़ा कुछ धीमे चलने लगा। मैंने समझा की चढ़ाई की थकावट के कारण ऐसा कर रहा है, और उसे मारना नहीं चाहता था।”
प्रश्न 1. लेखक घोड़े पर सवार होकर कहाँ जा रहा था? समुद्रतल से डाँडे की ऊँचाई कितनी थी?
उत्तर- लेखक घोड़े पर सवार होकर डाँडे की ओर जा रहा था। समुद्रतल से डाँडे की ऊँचाई 17-18 हजार फीट थी।
प्रश्न 2. डाँडे के देवता का स्थान कहाँ था? उसे कैसे सजाया गया था?
उत्तर- देवता का स्थान डाँडे के सर्वोच् शिखर पर था। उसे पत्थरों के ढेर, जानवरों के सींगों तथा रंग-बिरंगे कपड़े की झंडियों से सजाया गया था।
प्रश्न 3. लेखक घोड़े को क्यों नहीं मारना चाहता था?
उत्तर- लेखक सोच रहा था कि घोड़ा चढ़ाई की थकान से धीमा है, इसलिए वह उसे नहीं मारना चाहता था।
गद्यांश 5. “तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का इंतजाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता। शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु (नम्से) बड़े भद्र पुरुष थे। वह बहुत प्रेम से मिले, हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी ख्याल करना चाहिए था। यहाँ एक अच्छा मंदिर था; जिसमें कन्जुर (बुद्धवचन- अनुवाद) की हस्तलिखित 103 पोथियाँ रखी हुई थीं मेरा आसन भी वहीं लगा। वह बड़े मोटे कागज पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं, एकएक पोथी 15-15 सेर से कम नहीं रही होगी। सुमति ने फिर आसपास अपने यजमानों के पास जाने के बारे में पूछा, मैं अब पुस्तकों के भीतर था, इसलिए मैंने उन्हें जाने के लिए कह दिया।”
प्रश्न 1. तिब्बत में जागीरों का अधिकतर भाग किसके पास है ?
उत्तर- तिब्बत में जागीरों का अधिकतर भाग मठों के पास है।
प्रश्न 2. तिब्बत में खेती की व्यवस्था कौन देखता है?
उत्तर- तिब्बत में खेती की व्यवस्था मठ का भिक्षु देखता है।
प्रश्न 3. ‘पुस्तकों के भीतर होना’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- ‘पुस्तकों के भीतर होना’ का अभिप्राय है- पुस्तक पढ़ने में रम जाना।
प्रश्न 4. कन्जुर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- कन्जुर खजूर का विकसित रूप है।
प्रश्न 5. लेखक का आसन कहाँ लगाया गया ?
उत्तर- लेखक का आसन मंदिर में रखी पोथियों के पास लगाया गया।

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