MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 11 सवैये
MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 11 सवैये ( रसखान )
कवि – परिचय
जीवन-परिचय – हिन्दी सहित्य के कृष्ण-भक्त कवि रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहिम बताया जाता है। इनका जन्म 1548 ई. के आस-पास राजवंश से संबंधित एक सम्पन्न पठान परिवार में दिल्ली में हुआ था मुसलमान होते हुए भी जीवन भर कृष्ण – भक्ति में लीन रहे । इनकी भगवद्भक्ति को देखकर गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। बचपन से ही इनका स्वभाव बड़ा प्रेमी था। बाद में यही प्रेमी स्वभाव ईश्वरीय प्रेम में बदल गया। कहा जाता है कि उन्हें श्रीनाथ के मंदिर में कृष्ण के साक्षात् दर्शन हुए। तभी से वे ब्रजभूमि में रहने लगे, फिर आजीवन वहीं रहे। सन् 1628 ई. के आस-पास इनका देहावसान हो गया। रचनाएँ – कृष्ण भक्त रसखान की दो रचनाएँ हैं- (i) सुजान रसखान (ii) प्रेमवाटिका सुजान रसखान में कृष्णप्रेम पर आधारित सवैये हैं तथा ‘प्रेम वाटिका’ में प्रेम विषयक दोहे हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ – कृष्ण भक्त रसखान की काम रचना का विषय है-कृष्णभक्ति वे कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। कृष्ण की हर वस्तु पर वे मुग्ध हैं। कृष्ण की बाललीलाएँ, रूप सौंदर्य, वेशभूषा, मुरली उनकी अभिव्यक्ति का आधार है। रसखान उसी का जीवन सफल मानते हैं जो कृष्णभक्ति में लीन हो । कृष्ण के प्रति उनका प्रेम अत्यंत पवित्र, निश्छल और निवेदन प्रधान है। उनकी तन्मयता, भक्ति भावुकता और लीनता देखते ही बनती है।
भाषा-शैली – रसखान अपनी सुमधुर, सरस और सरल भाषा के लिए विख्यात हैं। उनकी भाषा आडंबरों से रहित है। अलंकारों का प्रयोग बहुतायत नहीं है, मुहावरे के प्रयोग से उनकी वाणी मधुर हो गई है। रसखान के काव्य में जैसी गतिशीलता है, वैसी अन्यत्र नहीं । दोहा, सवैया और कविता तीनों पर इनका अधिकार है। निश्चय ही रसखान रस की खान हैं। क्योंकि सवैयों में तो उन्होंने रस ही घोल दिया है।
कविता का सार
रसखान द्वारा रचित हले सवैये में रसखान ब्रजभूमि पर मोहित हैं। ब्रजभूमि, वृंदावन की प्रत्येक वस्तु के प्रति उनका अजीब लगाव है। वे अगले जन्म में भी ब्रजभूमि में रहना चाहते है। चाहे वे कदंब का पेड़ बनें, चाहे नंद की गाय बनें, चाहे पेड़ पर रहने वाला पक्षी बनें। वे हर तरीके से ब्रजभूमि में रहना चाहते हैं।
दूसरे सवैये में वे कृष्ण की हर वस्तु पर मुग्ध हैं। वे कृष्ण की लकुटिया और कंबल पाने के लिए तीनों लोकों का सुख त्यागने के तैयार हैं। वे ब्रज के वन, उपवनों और सरोवरों के सामने स्वर्ण-निर्मित करोड़ों भवनों के त्यागने के लिए तैयार हैं।
तीसरे सवैये में गोपी को बंशी के प्रति ईर्ष्या प्रकट हुई है। गोपी कृष्ण को हर सम्भव तरीके से पाना चाहती है। पीतांबर, मोर मुकुट, लकुटिया सब कुछ धारण करने को तैयार है, बस उसे कृष्ण मिल जाएँ। गोपी का कहना है कि इसी बंसी के कारण मेरा कान्हा मुझसे दूर हुआ है।
चौथे सवैये में कृष्ण की बंसी की धुन और मोहिनी मुस्कान पर मुग्ध एक गोपी की मस्ती परिलक्षित होती है। वह कृष्ण-दर्शन के आनंद को सँभाल नहीं पाती है।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ब्रजभूमि के प्रति कवि रसखान का प्रेम किनकिन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है?
उत्तर कवि ने ब्रजभूमि के प्रति अपने प्रेम को विभिन्न रूपों से व्यक्त किया है। उन्होंने लिखा है- हे प्रभु! अगर मैं मनुष्य रूप में जन्म लूँ, तो मुझे ब्रज में ग्वालों के बीच बसाना । अगर मैं पशु रूप में जन्म लूँ, तो मुझे नंदबाबा की गायों के साथ रखना। यदि मैं पक्षी बनूँ तो उसी कदंब के पेड़ पर मेरा बसेरा बनाना, जहाँ श्रीकृष्ण रासलीला रचाते थे। अगर मैं पत्थर बनूँ, तो उसी गोवर्धन का हिस्सा बनाना, जिसे कृष्ण ने अपनी अंगुली पर उठाया था। कवि किसी न किसी रूप में ब्रज से जुड़ा रहना चाहता है और वहाँ के विन, बाग, तालाब आदि के सौंदर्य को देखते रहना चाहता है।
प्रश्न 2. कवि रसखान का ब्रज के वन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण है?
उत्तर- कवि रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं, वे श्रीकृष्ण से संबंधित प्रत्येक वस्तु से अगाध प्रेम करते हैं। अपने लीलाकाल में श्रीकृष्ण जहाँ कहीं भी गए थे, जिस वस्तु को उन्होंने छुआ था, वे सब रसखान को अत्यंत प्रिय हैं। कवि उन चीजों को देखकर साक्षात कृष्ण का दर्शन उनमें पाते हैं। वे श्रीकृष्ण की लीला भूमि दूर नहीं होना चाहते वे उसे निहारते रहना चाहते हैं।
प्रश्न 3. एक लकुटी और कामरिया पर कवि रसखान सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार हैं?
उत्तर- कवि रसखान कृष्ण-भक्त हैं। वे कृष्ण से जुड़ी प्रत्येक वस्तु से अगाध प्रेम करते हैं। जिस लकुटी और कामरिया को श्रीकृष्ण का स्पर्श प्राप्त हो, उस पर रसखान क्यों न फिदा हों। वे उस लकुटी और कामरिया पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं, क्योंकि उनके लिए श्रीकृष्ण की प्रत्येक वस्तु अनमोल है।
प्रश्न 4. सखी ने गोपी से कृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर- सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण के उस रूप को धारण करने को कहा था, जिसमें श्रीकृष्ण सिर पर मोर मुकुट, गले में कुंजों की माला, तन पर पीले वस्त्र तथा हाथ में लाठी लेकर वन-वन गायों को चराते फिरते थे। परंतु गोपी उनकी मुरली को अपने होंठों से लगाने को मना कर देती है, क्योंकि वह मुरली को ही कृष्ण से वियोग का कारण मानती है।
प्रश्न 5. आपके विचार से कवि रसखान पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी श्री कृष्ण का सान्निध्य क्यों प्राप्त करना चाहते हैं?
उत्तर- मेरे विचार से कवि रसखान प्रत्येक परिस्थिति में श्रीकृष्ण का सानिध्य प्राप्त करना चाहते हैं। वे अपने पुनर्जन्म के किसी भी रूप में कृष्ण से अलग नहीं होना चाहते। रसखान ब्रजभूमि के प्रत्येक कण में श्री कृष्ण का निवास देखते हैं। वे अपने प्रत्येक जन्म को सार्थक बनाने के लिए किसी भी रूप में वहीं बने रहना चाहते हैं, जहाँ का समस्त वातावरण कृष्णमय हो।
प्रश्न 6. काननि दै अँगुरी रहिबो ……. न जैहे, न जैहे, न जैहे ।।
उपर्युक्त चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको क्यों विवश पाती हैं?
उत्तर- उपर्युक्त सवैये के माध्यम से गोपियाँ कहती हैंश्रीकृष्ण की मुरली की धुन अत्यंत मधुर एवं मादक हैं, हम उसके बिना रह लेंगी। ऊँची अट्टालिकाओं पर चढ़कर श्रीकृष्ण मुरली की धुन में गाते हैं, उससे भी हम अप्रभावित रह सकती हैं। परंतु कुछ भी हो जाए, श्रीकृष्ण की एक मुसकान से हम अपने वश में नहीं रह पातीं। हम उस मुसकान के आगे विवश हैं।
प्रश्न 7. “कोटिक ए कलधौत के घाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में कवि रसखान ने श्रीकृष्ण से जुड़ी वस्तुओं के माध्यम से उनके प्रति अपना अनन्य अनुराग प्रकट किया है। श्रीकृष्ण गोपियों के साथ इन करील कुंजों की छाँव में रासलीला रचाया करते थे। कवि के लिए इन कुंजों का महत्त्व अत्यधिक है। अत: वे इन कुंजों पर करोड़ों स्वर्ण भवन न्योछावर करने को तैयार हैं।
प्रश्न 8. “माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जहै, न जैहै।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने गोपियों की उस दशा का वर्णन किया है, जब वे श्रीकृष्ण की मुसकान से अत्यंत मोहित होती हैं। उन्हें श्रीकृष्ण की मुसकान इतनी अच्छी लगती है कि उसे देखकर वे अपना होश-हवास खो बैठती हैं। वे स्वयं को संभाल नहीं पातीं। आँखे स्वयं को कृष्ण को समर्पित कर देती हैं।
प्रश्न 9. “कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौनसा अलंकार है?
उत्तर- ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण काव्यांश में अनुप्रास अलंकार है ।
प्रश्न 10. “या मुरली मुरलीधर की अधरान घरी अधरा न धरौंगी।” काव्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति का भाव यह है कि गोपी अपनी सखी के आग्रह पर श्रीकृष्ण के समान वस्त्राभूषण पहनकर श्रीकृष्ण का रूप धारण कर लेगी, परंतु वह उनकी मुरली को अपने होठों से नहीं लगाएगी, क्योंकि वह उस मुरली को ही कृष्ण-वियोग का कारण मानती है। इस पंक्ति में गोपी का मुरली के प्रति ईर्ष्याभाव प्रकट हुआ है। सवैया छंद में रचित इस काव्यांश में ब्रजभाषा की मधुरता है। ‘घ’ ‘र’ वर्ण की आवृत्ति में अनुप्रास तथा अधरान (होंठों पर) अधरा न (होंटों पर नहीं) में यमक अलंकार का सफल प्रयोग हुआ है। काव्यांश में माधुर्य एवं गेयता का गुण विद्यमान है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. रिक्त स्थानों की सही शब्द द्वारा पूर्ति कीजिए
(i) रसखान ……… कवि हैं। (कृष्ण-भक्त/राम-भक्त)
(ii) रसखान का मूल नाम ………. हैं। (इब्राहिम/ सैयद इब्राहिम)
(iii) सिधियाँ ………. है। (नौ/आठ)
(iv) रसखान ने ……… छन्द में रचनाएँ लिखी है। (सवैया/सोरठा)
उत्तर- (i) कृष्ण-भक्त, (ii) सैयद इब्राहिम, (iii) आठ (iv) सवैया।
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –
(i) रसखान पर्वत रूप में गोवर्धन पर रहना चाहते हैं।
(ii) रसखान का प्रिय छन्द कवित्र है ।
(iii) निधियाँ नौ हैं।
उत्तर- (i) सत्य, (ii) असत्य, (iii) सत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
(i) श्रीकृष्ण गोधन कहाँ गाया करते थे ?
(ii) कवि की दृष्टि में रसखान कौन हैं।
(iii) रसखान ने किस भाषा में काव्य-रचना की है। उत्तर- (i) श्रीकृष्ण अट्टालिका पर गोधन गाया करते थे।
(ii) कवि रसखान की दृष्टि में श्रीकृष्ण ‘रसखान’ हैं।
(iii) रसखान ने ब्रजभाषा में काव्य रचना की है।
काव्यांश पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
सवैया – 1
“मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ।।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरिछत्र पुरंदर धारन ।
जौ खग हाँ तो बरसेरो करौ मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन । । “
प्रश्न 1. रसखान मनुष्य का जन्म दुबारा मिलने पर कहाँ रहना चाहते हैं?
उत्तर- रसखान मनुष्य का जन्म दुबारा मिलने पर ब्रजमंडल के गोकुल ग्राम के ग्वालों के साथ रहना चाहते हैं।
प्रश्न 2. रसखान पशु रूप में नंदबाबा की गायों के साथ क्यों रहना चाहते हैं?
उत्तर- रसखान व नंदबाबा की गायों के माध्यम से अपने आराध्य श्रीकृष्ण के साथ रहना चाहते हैं।
प्रश्न 3. रसखान पत्थर रूप में किसका अंश बनना चाहते हैं?
उत्तर- रसखान पत्थर रूप में गोवर्धन पर्वत का अंश बनना चाहते हैं।
प्रश्न 4. रसखान किस नदी के किनारे किस वृक्ष पर रहना चाहते हैं और क्यों?
उत्तर – रसखान कवि यमुना नदी के किनारे कदंब के वृक्ष पर रहना चाहते हैं, क्योंकि वहाँ पर श्रीकृष्ण रास रचाया करते थे।
प्रश्न 5. उक्त काव्यांश किस छंद में रचित है?
उत्तर- सवैया छंद में।
सवैया – 2
“या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को ताज डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं ।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौ।।”
प्रश्न 1. कवि तीन लोकों का राज्य किस पर न्योछावर कर देना चाहता है?
उत्तर- कवि तीनों लोकों का राज्य कृष्ण की लकुटी (लाठी) और कामरिया (कंबल) पर न्योछावर कर देना चाहता है।
प्रश्न 2. कवि ने काव्यांश में कितनी सिद्धियों और निधियों की चर्चा की है?
उत्तर- कवि ने काव्यांश में आठ सिद्धियों एवं नौ निधियों की चर्चा की है।
प्रश्न 3. करील के कुंजों पर कवि क्या न्योछावर करने को तैयार है ?
उत्तर- करील के कुजों पर कवि करोड़ों सोने के महलों को न्योछावर करने को तैयार है।
प्रश्न 4. ‘करील के कुंजन’ में कौन-सा अलंकार निहित है?
उत्तर- अनुप्रास अलंकार।
प्रश्न 5. ‘तड़ाग’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- तालाब।
सवैया – 3
“मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितंबर लै लकुटी बन गोधन ग्वालिन संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग कराँगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान घरी अधरा न धरौगी।।”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश का भावार्थ लिखिए –
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कृष्ण के सौंदर्य पर मुग्ध गोपियों का वर्णन है, जिसमें एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है हे सखी! मैं कृष्ण की तरह ही अपने सिर पर मोर के पंखों का मुकुट तथा गले में गुंजे की माला पहनूँगी। पीले वस्त्र धारण करूंगी तथा उन्हीं की तरह गायों के पीछे लाठी लेकर वनवन घूमूँगी मेरे कृष्ण को जो भी अच्छा लगता है, वो मैं सब कुछ करने को तैयार हूँ। पर हे सखी! कृष्ण की उस मुरली को मैं कभी अपने होठों पर नहीं रखूँगी, क्योंकि उसी मुरली ने श्रीकृष्ण को हमसे दूर किया है।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि ने श्रीकृष्ण के सौंदर्य से मोहित गोपियों की उस मुग्धता का चित्रण किया है, जिसमें वे स्वयं कृष्ण का रूप धारण कर लेना चाहती हैं। काव्यांश में ब्रजभाषा का प्रयोग है। लयात्मकता तथा संगीतात्मकता है। सवैया छंद में रचित इस काव्यांश में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
प्रश्न 3. ‘भावतो वोहि मेरो रसखानि सों’ काव्यांश में ‘रसखानि’ किसे कहा गया है?
उत्तर- भगवान श्रीकृष्ण को कहा गया है।
सवैया – 4
‘ काननि दै अँगुरी रहिबो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै ।
मोहनी तानन सों रसखानि अट चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै ।।
टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुझहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।”
प्रश्न 1. गोपियाँ श्रीकृष्ण की मुरली की धुन क्यों नहीं सुनना चाहतीं?
उत्तर- गोपियाँ श्रीकृष्ण के वियोग से दुःखी हैं। इसलिए वे श्रीकृष्ण की धुन को नहीं सुनना चाहती हैं।
प्रश्न 2. श्रीकृष्ण मुरली की धुन में कहाँ गाया करते थे?
उत्तर- कोठे, अट्टालिका, या अटारी पर गाया करते थे।
प्रश्न 3. गोपियाँ अपनी बातें किससे कहना चाहती हैं?
उत्तर- गोपियाँ अपनी बातें ब्रजवासियों से कहना चाहती हैं।
प्रश्न 4 गोपियाँ कृष्ण की किस अदा पर स्वयं को रोक नहीं सकेंगी?
उत्तर- श्रीकृष्ण की सुमधुर मुसकान पर गोपियाँ स्वयं को रोक नहीं सकेंगी।
प्रश्न 5. ‘टेरि’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर- पुकारकर बुलाना शाब्दिक अर्थ है।