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MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 9 साखियाँ एवं सबद

MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 9 साखियाँ एवं सबद ( कबीर )

कवि – परिचय

जीवन-परिचय – भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के कवियों में प्रमुख स्थान रखने वाले एवं बाह्रय आडंबरों एवं सामाजिक बुराइयों पर करारा प्रहार करने वाले कबीर जी का जन्म काशी में सन् 1398 ई. में हुआ। ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ। ब्राह्मणी ने लोकलाज के भय से बचने के लिए बालक कबीर को लहरतारा नामक तालाब के किनारे रख दिया। उसी स्थान से गुजरने वाले निःसन्तान दम्पति नीरू और नीमा नामक जुलाहे ने बालक को पड़ा हुआ देखा और उसे उठाकर अपने घर लाकर लालन-पालन किया। कबीर अनपढ़ थे। उन्होंने संतों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया। रामानंद नामक गुरु से कबीर जी ने निर्गुण भक्ति की दीक्षा ली। कबीर जी की पत्नी का नाम लोई था। उनके कमाल और कमाली नाम की दो सन्तानें थीं। वे सन् 1518 ई. के आस पास 120 वर्ष की दीर्घायु में मगहर में परलोक सिधार गए ।
रचनाएँ-कबीर की सभी रचनाएँ ‘कबीर ग्रंथावली’ में संकलित हैं। कबीर पदों की रचना करते, गाते। इन्हीं पदों को उनके शिष्यों ने संकलित किया। ‘बीजक’ ‘रमैनी’ और ‘सबद’ नाम के उनके तीन काव्य संग्रह हैं। सिख धर्म के ‘गुरु ग्रंथ साहब’ में भी उनकी वाणी को स्थान मिला है।
काव्यगत विशेषताएँ – कबीर मूलतः संत थे। उन्होंने निराकार ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति प्रकट की। उनका विश्वास था कि सच्चे प्रेम और ज्ञान से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए नाम-स्मरण और गुरु – शरण दोनों आवश्यक हैं। उन्होंने गुरु को ईश्वर से उच्च स्थान प्रदान किया है। कबीर के काव्य में गुरु भक्ति, गुरु महिमा, साधु महिमा, आत्मबोध, तथा ईश्वर के प्रति अगाध प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। उन्होंने सामाजिक बुराइयों- मूर्तिपूजा, छुआछूत, ऊँच-नीच की भावना आदि पर करारा प्रहार किया है। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता तथा विभिन्न धर्मो के बीच समन्वय स्थापित किया। उन्होंने दोनों को सच्चे मन से प्रभु भक्ति का संदेश दिया। उन्होंने नारी और माया दोनों का प्रबल विरोध किया। ये दोनों साधक को उसके पथ से हटाते हैं।
भाषा-शैली – कबीर की भाषा अनमेल खिचड़ी है। कबीर ने अपने काव्य में ब्रज, अवधी, पंजाबी, राजस्थानी, अरबी-फारसी आदि शब्दों का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में अक्खड़पन है। साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें भाषा का डिक्टेटर कहा है। उनके दोहों तथा पदों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, अनुप्रास, विरोधाभास आि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
कविता का सार
साखियाँ
कबीर जी कहते हैं- जिस प्रकार हंस जल से भरे मानसरोवर को त्यागकर अन्यत्र नहीं जाते. उसी प्रकार संतजन भी भक्ति का आनंद पाकर उसी में लीन रहते हैं। वे भक्ति के सुख को कदापि नहीं त्यागते । प्रभु भक्त दूसरे भक्त से मिलकर आनंदमय हो जाता है। यह संसार प्रभु-भक्ति में लीन रहने वालों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता | सच्चा ज्ञानी संत वही है जो तर्क-वितर्क और वैर-विरोध के झगड़े में न पड़कर निष्पक्ष होकर भगवान का भजन करता. है। सच्चा मनुष्य वही है जो राम-रहीम, हिन्दू मुस्लिम के भेदभाव से दूर रहता है। यदि हिंदू और मुस्लिम धर्म की कटता को त्याग दें वो काबा और काशी तथा राम-रहीम में कोई अंतर नहीं दिखता। दोनों की उपासना एक साथ की जा सकती है। मनुष्य की महानता उसके ऊँचे कुल में जन्म लेने के कारण नहीं वरन् उसके श्रेष्ठ कर्मों के कारण मानी जाती है।
सबद ( पद )
कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर का निवास न तो केवल मंदिर में है न मस्जिद में, वह तो सर्वत्र विराजमान है। हर साँस में समाया है। उसे तो पलभर की तलाश में पाया जा सकता है। जब ज्ञान की आंधी आती है तो सभी प्रकार के भ्रम टूट जाते हैं, माया के बंधन छूट जाते हैं। मोह, माया, तृष्णा, कुबुद्धि, दुविधा आदि सब नष्ट हो जाते हैं। ईश्वर का बोध होने पर अंतर्मन प्रेम से भर जाता है और सब प्रकार का अज्ञान नष्ट हो जाता है।
पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 
प्रश्न 1. ‘मानसरोवर’ से कवि का क्या आशय है? उत्तर- मानसरोवर से कवि का आशय मन रूपी पवित्र सरोवर से है, जिसमें मनुष्य के मन में स्वच्छ विचार रूपी जल के भरा हुआ है।
प्रश्न 2. कवि ने सच्चे प्रेमी की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर- सच्चे प्रेमी की कसौटी बताते हुए कवि ने लिखा है कि सच्चा प्रेमी अर्थात् भक्त वही है, जो सच्चे मन से भक्ति करते हुए ईश्वर प्राप्ति का प्रयास करता है। उसे ईश्वर के अतिरिक्त और किसी भी वस्तु में रुचि नहीं रहती। वह संसार के बंधनों लोभ, मोह, माया, जाति-पाँति, छल-कपट से मुक्त होता है।
प्रश्न 3. “हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।।” उक्त दोहे में कवि ने किस प्रकार के ज्ञान को महत्त्व दिया है?
उत्तर- उपर्युक्त दोहे में कवि ने उस ज्ञान को महत्व दिया है, जिसमें साधक दुनिया के लोगों की निंदा की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता जाता है और सफलता पाता है। संसार निरुद्देश्य कुत्ते की तरह भौकता रह जाता है; व्यर्थ में आलोचना करता रहता है।
प्रश्न 4. इस संसार में सच्चा संत कौन कहलाता है?
उत्तर- कबीर ने संसार में सच्चा संत उसे कहा है, जो लोभ, मोह-माया, अपने-पराए, जाति-पाँति के बंधन से ऊपर उठकर भक्ति करते हैं। उनका एकमात्र लक्ष्य प्रभु की प्राप्ति होता है।
प्रश्न 5. काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम ।
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम।।
ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ।
सुबरन कलस सुरा भरो, साधू निंदा सोई ।।
अंतिम दो दोहों के माध्यम से कबीर ने किस तरह की संकीर्णताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर- उपर्युक्त अंतिम दोहों के माध्यम से कबीर ने समाज में व्याप्त धार्मिक भेदभाव, दुर्भावना, स्व की भावना तथा जाति आधारित वर्ण व्यवस्था जैसी कुरीतियों की ओर संकेत किया है। कबीर के अनुसार राम-रहीम दोनों एक हैं। अतः उनमें भेदभाव करना ठीक नहीं है। वैसे ही ऊँचे कुल में जन्ममात्र से कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता है। श्रेष्ठ होने के लिए अच्छे कर्म की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 6. किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से होती है, या उसके कर्मों से? तर्क सहित उत्तर दीजिए। उत्तर- किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कुल से न होकर उसके कर्मों से होती है। अच्छे कुल में जन्म ले लेने से कोई महान् नहीं बन जाता। महान्, बनने के लिए अच्छे कर्मों की आवश्यकता होती है। अच्छे कुल में जन्म लेकर अगर कोई नीच कार्य करता है, तो वह किसी भी परिस्थिति में श्रेष्ठ नहीं हो सकता। अगर निम्न कुल में जन्मा कोई व्यक्ति श्रेष्ठ कार्य करता है, तो वह नि:संदेह श्रेष्ठ हो जाता है।
प्रश्न 7. “हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि। स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि ।। काव्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में ज्ञान के महत्व को प्रतिपादित करते हुए कबीर लिखते हैं कि मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी अत्यंत सहजता से करनी चाहिए। ऐसा करते हुए यदि कुत्ते रूपी संसार निंदा भी करता है, तो भी साधक को चाहिए कि वह निंदा की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की तरफ निरंतर बढ़ता रहे। काव्यांश में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है। तत्सम शब्दों यथा- हस्ती, स्वान, ज्ञान आदि का प्रयोग है। तुकांत रचना है। शांत रस की प्रधानता है।
प्रश्न 8. कबीर के पद में हंस किसका प्रतीकार्थ है? उत्तर- कबीर के पद –
“मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं।
मुक्ताफल मुकता चुगेँ, अब उड़ि अनत न जाहिं।।”
इसमें हंस ‘जीव’ का प्रतीकार्थ है, जो मन रूपी स्वच्छ सरोवर जल में तैरता रहता है और आनंद रूपी मोती स्वच्छंद रूप से चुनता रहता है।
प्रश्न 9. “प्रेमी का प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ ।’ काव्यांश में विष और अमृत किसके प्रतीक हैं?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में विष मनुष्य के मन में निहित विभिन्न व्यभिचारों; जैसे- लोभ, मोह-माया का प्रतीक है, वहीं अमृत सच्चे मन से प्रभु की भक्ति मिलने वाले आनंद, पुण्य, सद्गुण का प्रतीक है।
प्रश्न 10. कबीर ने संसार को स्वान (कुत्ता) क्यों कहा है?
उत्तर- संसार के वे लोग, जो अकारण किसी की निंदा करते रहते हैं, उन्हें कबीर ने कुत्ता (स्वान) कहकर संबोधित किया है। जिस तरह अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हाथी को देखकर कुत्ता बिना कारण भौकना शुरु कर देता है और हाथी उसे देखे बिना आगे बढ़ता रहता है। ठीक उसी प्रकार प्रभु भक्ति में लीन लोगों को देखकर संसार के लोग उन्हें मार्ग से विरत करने के लिए उनकी निंदा शुरू कर देते हैं। उनकी इसी प्रवृत्ति के कारण कबीर ने अपने पद में इन्हें कुत्ता (स्वान) कहा है।
प्रश्न 11. “निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान’  के माध्यम से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से कवि ने मानव मात्र से, मत, धर्म संप्रदाय की सीमा से ऊपर उठकर प्रभु भक्ति करने की सीख दी है। कवि ने कहा है कि सच्चा संत वही है, जो मत, पंथ, धर्म, संप्रदाय से दूर रहकर प्रभु की उपासना करता है। मत, संप्रदाय, धर्म आदि मनुष्य को आपस में बाँटते हैं। वास्तव में प्रभु एक है, जिसके विभिन्न नाम हैं। विभिन्न के चक्कर में न पड़कर निष्पक्ष भाव से प्रभु का भजन ही सच्ची भक्ति है। कवि ने उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से यह संदेश दिया है कि संपूर्ण भेदभाव मिटाकर एक हो जाओ उसी में भलाई है।
प्रश्न 12. कबीर एक सच्चे समाज सुधारक थे। कैसे ? साखियों के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- कबीर एक सच्चे समाज सुधारक थे। इसका प्रमाण साखियों में अनेक स्थानों पर उपलब्ध होता है। उन्होंने अपनी साखियों के माध्यम से समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों पर कुठाराघात किया है। कबीर ने हिंदू-मुसलमानों के बीच भेदभाव को मिटाकर एकता स्थापित करने, सांप्रदायिकता को समाप्त करने, व्यर्थ आडंबरों के समाप्त करने इत्यादि के विशेष प्रयास किए हैं।
प्रश्न 13. “हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ ।” कहकर समाज में व्याप्त किस पद्धति पर व्यंग्य किया है?
उत्तर- कबीर ने उपर्युक्त पंक्ति के माध्यम से हिन्दू तथा मुसलमानों की उपासना पद्धति पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि हिन्दू आजीवन राम-राम की रट लगाकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, वहीं मुसलमान खुदा की रट लगाकर मृत्यु को वरण करते हैं। वे कट्टरता के कारण कोई भी सामाजिक कार्य नहीं कर पाते और व्यर्थ जीवन व्यतीत कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 14. कबीर द्वारा रचित पदों का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – संत कवि कबीर ने अपने पदों में समाज में व्याप्त कुरीतियों पर अपना आक्रोश व्यक्त किया है। उन्होंने ईश्वर को पाने के लिए किए जाने वाले बाह्याडंबरों का घोर विरोध किया है। कबीर कहते हैं ईश्वर, काबा, काशी और कैलाश में नहीं, अपितु हमारे मन में है। उन्होंने लोभ, मोह, माया में फँसे मनुष्यों को उन बंधनों से बाहर निकलकर निष्पक्ष भाव से ईश्वर भक्ति करने की सीख दी है। अच्छे कर्म करने को प्रेरित करते हुए उन्होंने कहा है कि श्रेष्ठ बनने के लिए श्रेष्ठ कार्य करना आवश्यक है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(i) कबीर एक ………. कवि थे। (भक्त / सन्त)
(ii) कबीर ने इस, संसार को ………  कहा है । (कुत्ता/सर्प)
(iii) कबीर ने ……….. भाषा का प्रयोग किया है। (संस्कृत/सधुक्कड़ी)
(iv) कबीर के अनुसार ‘हंस’ का अर्थ ……….. है। (जीवात्मा / पक्षी विशेष)
(v) कबीर ………. परम्परा के सन्त थे । (निर्गुण / सगुण)
उत्तर- (i) सन्त, (ii) कुत्ता, (iii) सधुक्कड़ी, (iv) जीवात्मा, (v) निर्गुण ।
प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –
(i) कबीर एक अच्छे समाज सुधारक भी थे।
(ii) कबीर समाज सुधारक पहले कवि बाद में थे।
(iii) कबीर ने सच्चे भक्त को जीवित माना है।
(iv) सुजान का अर्थ चालाक है।
(v) ऊँचे कुल में जन्म लेने वाला ही महान् व्यक्ति है।
उत्तर – (i) सत्य, (ii) सत्य, (iii) सत्य, (iv) असत्य, (v) असत्य।
प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –
(i) ‘पक्षापक्षी’ का क्या अर्थ है ?
(ii) काबा क्या है ?
(iii) कबीर ने किसे श्रेष्ठ माना है?
(iv) कबीर ने भक्त को किस पर सवार होने को कहा है ?
(v) कबीर के अनुसार ‘बूठा’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर- (i) ‘पखापक्षी’ का अर्थ है- पक्ष-विपक्ष ।
(ii) काबा इस्लाम धर्म का सबसे प्रसिद्ध एवं पवित्र तीर्थस्थल है।
(iii) कबीर ने अच्छे कर्म करने वाले को श्रेष्ठ माना है।
(iv) कबीर ने भक्त को ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होने को कहा है।
(v) कबीर के अनुसार ‘बूठा’ शब्द का अर्थ है – बरसा।
काव्यांश पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 
साखियाँ
साखी – 1
“मानसरोवर सुभर जल, हंसा केलि कराहिं । मुकताफल मुकता चुगै, अब उड़ि अनत न जाहिं।। “
प्रश्न 1. काव्यांश में मानसरोवर से क्या आशय है?
उत्तर- प्रस्तुत काव्यांश में मानसरोवर का आशय मनुष्य के मन रूपी सरोवर से है।
प्रश्न 2. ‘मुक्ता फल’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘मुक्ता फल’ का शाब्दिक अर्थ होता है – मोती।
प्रश्न 3. मानसरोवर में कितना जल भरा हुआ है?
उत्तर- मानसरोवर पूरी तरह जल से भरा हुआ है।
प्रश्न 4. काव्यांश में हंस किसका प्रतीक है?
उत्तर- काव्यांश में हंस प्राणी का प्रतीक है।
प्रश्न 5. उपर्युक्त पंक्तियों में यमक अलंकार युक्त शब्द कौन-सा है?
उत्तर- ‘मुक्ता फल मुक्ता चुग में यमक अलंकार है।
साखी – 2
“प्रेमी ढूँढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई।
प्रेमी का प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ ।।”
प्रश्न 1. काव्यांश में ‘मैं’ का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
उत्तर- काव्यांश में ‘मैं’ का प्रयोग प्रभु भक्त, अर्थात् कबीर के लिए हुआ है।
प्रश्न 2. उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में कवि कहता है कि मैं सच्चे प्रभु-भक्त, अर्थात् प्रेमी को ढूँढ़ता फिर रहा था। परंतु अहंकार वश मुझे एक भी सच्चा प्रेमी अर्थात् भक्त नहीं मिला। जब दो सच्चे प्रभु प्रेमी आपस में मिल जाते हैं, तो मन में व्याप्त समस्त बुराइयाँ स्वतः ही नष्ट हो जाती हैं और मन अमृतमय या आनंदित हो जाता है।
प्रश्न 3. उपर्युक्त काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में दोहा छंद है। इसकी भाषा सधुक्कड़ी है। विष बुराई तथा अमृत सद्गुण का प्रतीक है। ‘मैं’ (भक्त, अहंकार) तथा प्रेमी ( प्रभु, भक्त, ईश्वर) में श्लेष अलंकार है।
साखी – 3
“हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि ।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि ।।”
प्रश्न 1. कवि भक्त को किस पर सवार होने को कह रहा है?
उत्तर- कवि भक्त को ज्ञान रूपी हाथी पर सवार होने को कह रहा है।
प्रश्न 2. कवि ने किसे श्वान अर्थात् कुत्ते के समान बताया है?
उत्तर कवि ने संसार को कुत्ते के समान बताया है, जो अनुद्देश्य भौंकता रहता है।
प्रश्न 3. ‘भूँकन दे झख मारि’ का क्या आशय है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में कवि का यह आशय है कि साधकों को लोगों की निंदा की चिंता नहीं करनी चाहिए।
प्रश्न 4. काव्यांश में कौन-सी भाषा प्रयुक्त है?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में सधुक्कड़ी भाषा प्रयुक्त है।
साखी – 4
“पखापखी के कारने, सब जग रहा भुलान।
निरपख होइ के हरि, भजै सोइ संत सुजान।।”
प्रश्न 1. ‘पखापखी’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- उपर्युक्त पंक्तियों में ‘पखापखी’ का अर्थ पक्षविपक्ष है।
प्रश्न 2. कवि के अनुसार समूचा संसार किसे भूला हुआ है?
उत्तर कवि के अनुसार समूचा संसार प्रभु को भूला हुआ है।
प्रश्न 3. “निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान” के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- कवि कहना चाहता है कि निष्पक्ष होकर जो प्रभु को याद करता है, वही सच्चा ज्ञानी है।
प्रश्न 4. ‘सोई संत सुजान’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- ‘स’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 5. सुजान का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर- चतुर या ज्ञानी ।
साखी – 5
“हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ ।।”
प्रश्न 1. उपर्युक्त काव्यांश में ‘मूआ’ का क्या अर्थ है?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में ‘मूआ’ का अर्थ मरना या मौत है।
प्रश्न 2. हिंदू किसकी भक्ति करते हैं?
उत्तर- कबीर के अनुसार हिंदू रामभक्ति करते हैं।
प्रश्न 3. उपर्युक्त काव्यांश के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ?
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश के माध्यम से कवि हिंदू-मुस्लिम के बीच का भेदभाव मिटाना चाहता है।
प्रश्न 4. कबीर किसे जीवित मानते हैं?
उत्तर- जो धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर सच्चे मन से प्रभु का स्मरण करते हैं, कबीर उसे जीवित मानते हैं।
प्रश्न 5. ‘कहै कबीर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- ‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
साखी – 6
“काबा फिरि कासी भया, रामहिं भया रहीम |
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम। “
प्रश्न 1. कवि के अनुसार काबा कब काशी हो जाता है?
उत्तर- जब हम धार्मिक भेदभाव की भावनाओं से ऊपर उठ जाते हैं, तब काबा काशी हो जाता है।
प्रश्न 2. ‘रामहिं भया रहीम’ का क्या आशय है?
उत्तर- ‘रामहिं भया रहीम’ से कवि का आशय धार्मिक कट्टरता के मिटने से है।
प्रश्न 3. इन पंक्तियों के माध्मय से कवि ने क्या संदेश दिया है?
उत्तर- इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने धार्मिक भेदभावों से ऊपर उठकर भक्ति करने का संदेश दिया है।
प्रश्न 4. ‘काबा’ क्या है?
उत्तर- ‘काबा’ इस्लाम धर्म का सर्वाधिक पवित्र एवं प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
प्रश्न 5. काव्यांश में मैदा किसका प्रतीक है? उत्तर- काव्यांश में मैदा धर्म की सर्वमान्य बातों का प्रतीक है।
साखी – 7
“ऊँचे कुल का जनमिया, जे करनी ऊँच न होइ । सुबरन कलस सुरा भरा, साधू निंदा सोइ । । “
प्रश्न 1. कबीर ने किसे श्रेष्ठ माना है?
उत्तर- अच्छे कर्म करने वाले को कबीर ने श्रेष्ठ माना है।
प्रश्न 2. उपर्युक्त काव्यांश का आशय स्पष्ट कीजिए |
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में कवि ने जन्म की अपेक्षा कर्म को अत्यधिक महत्त्व देते हुए कहा है कि ऊँचे कुल में जन्म लेने मात्र से कोई ऊँचा नहीं हो जाता। ऊँचा होने के लिए अच्छे कर्मों की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 3. काव्यांश के शिल्प सौंदर्य को बताइए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में दोहा छंद का प्रयोग हुआ है। भाषा सधुक्कड़ी है, जिसमें विभिन्न प्रतीकों का प्रयोग है। उच्च कुल में जन्मे तथा नीच कर्म करने वाले की तुलना सोने के पात्र में भरी शराब से करने के कारण दृष्टांत अलंकार है।
सबद (पद)
सबद – 1 
“मोकों कहाँ ढूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में ।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुने भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में ।। “
प्रश्न 1. उक्त काव्यांश में ‘मोकों’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर- उक्त काव्यांश में ‘मोकों’ ईश्वर के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 2. काव्यांश का शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- उपर्युक्त काव्यांश में तुकांत युक्त रचना है । ‘तो तेरे’, ‘मैं मस्जिद’, ‘काबे कैलास’, ‘कौने क्रिया – कर्म’, ‘तौ तुरतै’, ‘स्वाँसों की स्वाँस’ इत्यादि में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है। भाषा सधुक्कड़ी है।
प्रश्न 3. काव्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर- मनुष्य ईश्वर प्राप्ति के लिए विभिन्न क्रियाएँ करता है, पर उसे प्रभु के दर्शन नहीं हो पाते। अतः निराकर ब्रह्म स्वयं मनुष्य से कहते हैं कि हे मनुष्य! तुम मुझे कहाँ खोज रहे हो ? मैं तो तुम्हारे पास हूँ। मैं किसी मंदिर, मस्जिद या तीर्थ स्थान में नहीं रहता। मैं आडंबरपूर्ण भक्ति की क्रियाओं के माध्यम से भी नहीं मिल पाता। जो भक्त मुझे सच्चे मन से कहीं भी याद करता है, उसे मैं पलभर में ही मिल जाता हूँ, क्योंकि मैं प्राणी की साँस में मौजूद हूँ।
सबद- 2
“संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे ।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी ।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा ।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा । । जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी ।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।।
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीनाँ ।।”
प्रश्न 1. ज्ञान की आँधी का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर- ज्ञान की आँधी से मनुष्य की काया से कपट, लोभ, मोह, माया, छल आदि की भावना की समाप्ति हो गई और उनका शरीर अत्यंत निर्मल हो गया।
प्रश्न 2. ज्ञान की आँधी आने के बाद क्या हुआ?
उत्तर- ज्ञान की आँधी आने के बाद भक्ति रूपी शीतल एवं निर्मल जल की वर्षा हुई और इस वर्षा में सभी हरि-भक्त सराबोर हो गए।
प्रश्न 3. ज्ञान की आँधी से पूर्व मनुष्य की मनः स्थिति कैसी थी?
उत्तर- ज्ञान की आँधी से पूर्व मनुष्य मोह, माया, लोभ, छल आदि दुर्भावनाओं से युक्त था।
प्रश्न 4. काव्यांश में आए शब्द ‘बूठा’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- काव्यांश में ‘बूठा’ का अर्थ ‘बरसा’ क्रिया के रूप में व्यक्त हुआ है।
प्रश्न 5. उपर्युक्त काव्यांश में ‘जोग जुगति’ में कौनसा अलंकार है?
उत्तर- उक्त काव्यांश में ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है।

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