MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्
MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 पर्यावरणम्
MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 11 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न
गद्यांशों के हिन्दी में अनुवाद
पाठ परिचय – प्रस्तुतोऽयं पाठ्यांश: “पर्यावरणम्” पर्यावरणविषयकः लघुनिबन्धोऽस्ति । अत्याधुनिकजीवनशैल्यां प्रदूषणं प्राणिनां पुरतः अभिशापरूपेण समायातम् । नदीनां वारि मलिनं सञ्जातम् । शनैः शनैः धरा निर्वनं जायमाना अस्ति। यन्त्रेभ्यो निःसरितवायुना वातावरणं विषाक्तं रुजाकारकं च भवति । वृक्षाभावात् प्रदूषणकारणाच्च बहूनां पशुपक्षिणां जीवनमेव सङ्कटापन्नं दृश्यते । वनस्पतीनाम् अभावदशायां न केवलं वन्यप्राणिनाम् अपितु अस्माकं समेषामेव जीवनं स्थातुं नैव शक्यते । पादपाः अस्मभ्यं न केवलं वन्यप्राणिनाम् अपितु अस्माकं समेषामेव जीवनं स्थातुं नैव शक्यते । पादपाः अस्मभ्यं न केवलं शुद्धवायुमेव यच्छन्ति अपितु ते अस्माकं कृते जीवने उपयोगाय पत्राणि पुष्पाणि फलानि काष्ठानि औषधीन् छायां च वितरन्ति । अस्माद् हेतोः अस्माकं कर्तव्यम् अस्ति यद् वयं वृक्षारोपणं तेषां संरक्षणम्, जलशुचिताकरणम्, ऊर्जायाः संरक्षणम्, उद्यान-तडागादीनाम् शुचितापूर्वकं पर्यावरणसंरक्षणार्थं प्रयत्नं कुर्याम । अनेनैव अस्माकं सर्वेषां जीवनम् अनामयं सुखावहञ्च भविष्यति ।
अनुवाद- यह पाठ्यांश ‘पर्यावरण’ विषय से संबंधित एक लघु निबन्ध है। अति आधुनिक जीवन शैली में प्रदूषण प्राणियों के सामने एक अभिशाप के रूप में आया है। नदियों का पानी गंदा हो गया है। धीरे-धीरे पृथ्वी वन रहित हो गई है। मशीनों से निकलने वाली वायु से वातावरण जहरीला और रोगजन्य हो चला है। वृक्षों के अभाव से और प्रदूषण के कारण अनेक पशुओं और पक्षियों का जीवन ही संकटमय दिखाई देता है। वनस्पतियों की कमी की स्थिति में न केवल जंगल के प्राणियों का, अपितु हमारा सब का जीवन कायम नहीं रह सकता। पेड़-पौधे हमें न केवल शुद्ध वायु प्रदान करते हैं, अपितु वे हमारे लिए जीवन में उपयोग के लिए पत्ते, फूल, फल, लकड़ियाँ, औषधियाँ और छाया देते हैं। इसलिए हमारा कर्त्तव्य है कि हम वृक्षारोपण, उनका संरक्षण, जल का शुद्धिकरण, ऊर्जा का संरक्षण, उद्यान, तालाब आदि का शुद्धिकरण और पर्यावरण के संरक्षण का प्रयत्न करें। इसी से हम सबका जीवन नीरोग और सुखकारी बनेगा।
गद्यांश 1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते । इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः सुखसाधनैः च तर्पयति । पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि । तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आव्रियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ । परिष्कृतं प्रदूषणरहित च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति । प्रकृतिकोपैः आतङ्कितो जनः किं कर्तुं प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्यातक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम् ?
अनुवाद- प्रकृति समस्त प्राणियों के संरक्षण के लिए प्रयत्न करती है। यह सब को विविध प्रकार से पुष्ट करती है और सुख सुविधाओं से सन्तुष्ट करती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्व हैं। वे ही मिलकर अलग से या हमारे पर्यावरण की रचना करते हैं। चारों ओर सामने लोक जिससे ढँका है, पर्यावरण है। जैसे अजन्मा शिशु माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी प्रकार मानव पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)। परिष्कृत और प्रदूषणरहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का सुख, अच्छे विचार, सत्यसंकल्प और मंगलकारी सामग्री प्रदान करता है। प्रकृति के क्रोध से आतंकित व्यक्ति क्या कर सकता है? जलप्लावन, अग्निभयों, भूकम्पों, बवण्डरों, उल्कापात आदि से सन्तप्त मानव का कब मंगल होता है।
गद्यांश 2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया । तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म । यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म । तत्र विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति ।
अनुवाद- इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उससे पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। प्राचीन काल में लोक मंगल की कामना से ऋषिगण जंगलों में रहते थे। क्योंकि वन में सुरक्षित पर्यावरण उपलब्ध रहता था। वहाँ विविध पक्षीगण का कलरव कान को आनंदित करता था।
गद्यांश 3. सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति । शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति ।
अनुवाद – नदियाँ, पर्वत और झरने अमृत के समान स्वादिष्ट और निर्मल जल देते हैं। वृक्ष और लताएँ फल, फूल और ईंधन की लकड़ी जैसे पर्याप्त उपहार देते हैं। शीतल मन्द, सुगन्धित वनों से बहने वाली पवन, औषधि और प्राणवायु देती है।
गद्यांश 4. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति । स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति । तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति । नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते । मानवाः व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति । तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति । शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते । एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकत्रीं भवति । विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगा: भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति । तत्सर्वमिदानीं चिन्तनीयं प्रतिभाति ।
अनुवाद – परन्तु स्वार्थ में अन्धा मानव उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। लोग मशीनों (कल कारखानों) का जहरीला जल नदियों में डाल रहे हैं। इससे मछलियों आदि और जलचरों का क्षणभर में नाश हो जाता है। नदियों का जल भी सर्वथा अपेय हो जाता है। मानव, व्यापार बढ़ाने के लिए जंगलों के पेड़-पौधों को बिना विवेक रखे काट रहे हैं। इससे अवृष्टि बढ़ती है, और वन्य पशु शरण रहित होकर गाँवों में उपद्रव करते हैं। पेड़ों को काटने से शुद्ध वायु का संकट उत्पन्न हो जाता है। इसी प्रकार स्वार्थ में अन्धे मनुष्यों के द्वारा विकृत की गई प्रकृति ही सबका विनाश करने वाली सिद्ध होती है। पर्यावरण विकृत होने पर विविध रोग और भयंकर समसयाएँ उत्पन्न हो जाती है। यह सब चिन्तनीय (विषय) लगता है।
गद्यांश 5. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम् । पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः । अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतनविश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्त्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर – सूकर- सर्प – नकुलादि-स्थलचराः, मत्स्य-कच्छपमकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः यतः ते स्थलमलानाम् अपनोदिन: जलमलानाम् अपहारिणश्च । प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः ।
अनुवाद – धर्मग्रन्थों का वचन ( उपदेश) है- धर्म की रक्षा करने वाला सुरक्षित रहता है। ऋषियों ने बताया है कि पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है। इसलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि का निर्माण, मन्दिर, विश्राम गृह आदि बनवाना धर्म सिद्धि के स्रोत के रूप में माने गए हैं। कुत्ते, सुअर, साँप, नेवले आदि स्थल – चर जीव और मछली, कछुए, मगर आदि जलचर जीव भी रक्षा करने योग्य है, क्योंकि ये स्थल के मल को दूर करने वाले और जल के मल को दूर करने वाले हैं। इसमें कोई संशय नहीं है कि प्रकृति की रक्षा से ही लोक की रक्षा सम्भव है।
अभ्यासस्य प्रश्नोत्तराणि
प्रश्न 1. एकपदेन उत्तरं लिखत- (एक पद में उत्तर लिखिए ) –
(क) मानव: कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?
(मानव कहाँ सुरक्षित रहता है ? )
(ख) सुरक्षितं पर्यावरणं कुत्र उपलभ्यते स्म?
(सुरक्षित पर्यावरण कहाँ उपलब्ध था ? )
(ग) आर्षवचनं किंमस्ति?
( धर्मशास्त्र का वचन क्या है ? )
(घ) पर्यावरणमपि कस्य अङ्गमिति ऋषयः
(प्रतिपादितवन्तः ? बताया है ? )
( पर्यावरण भी किसका अंग ऋषियों ने
(ङ) लोकरक्षा कथा सम्भवति?
(लोक की रक्षा किससे सम्भव है?)
(च) अजातशिशुः कुत्र सुरक्षितः तिष्ठति ?
( अजन्मा शिशु कहाँ सुरक्षित रहता है?)
(छ) प्रकृतिः केषां संरक्षणाय यतते ?
(प्रकृति किसकी सुरक्षा का प्रयत्न करती है?)
उत्तर- (क) पर्यावरणकुक्षौ, (ख) वने, (ग) धर्मो रक्षति रक्षितः, (घ) धर्मस्य, (ङ) प्रकृति रक्षया, (च) मातृगर्भे, (छ) प्राणिनाम्।
प्रश्न 2. अधोलिखित प्रश्नानामुत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखिए।)
( क ) प्रकृतेः प्रमुखतत्वानि कानि सन्ति ?
(प्रकृति के प्रमुख तत्व कौन से है?)
उत्तर- प्रकृतेः प्रमुख तत्तवानि सन्ति पृथिवी, जलम्, तेजः, वायुः आकाश: च।
(प्रकृति के प्रमुख तत्व हैं- पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश।)
(ख) स्वार्थान्धः मानवः किं करोति?
( स्वार्थ में अन्धा मानव क्या करता है? )
उत्तर- स्वार्थान्धः मानवः पर्यावरणम् नाशयति ।
(स्वार्थ में अन्धा मानव पर्यावरण का नाश करता है।)
(ग) पर्यावरणे विकृते जाते किं भवति?
( पर्यावरण के विकृत होने पर क्या होता है? )
उत्तर- पर्यावरणे विकृते जाते प्रकृतिः सर्वेषां विनाशकर्त्री भवति।
(पर्यावरण के विकृत होने पर प्रकृति सब का विनाश करने वाली बन जाती है। )
(घ) अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा कथं करणीया?
( हमें पर्यावरण की रक्षा कैसे करनी चाहिए? )
उत्तर- अस्माभिः पर्यावरणस्य रक्षा वृक्षारोपणेन तेषां संरक्षणेन ऊर्जा संरक्षणेन च करणीया।
(हमें पर्यावरण की रक्षा वृक्षारोपण, उनके संरक्षण और ऊर्जा के संरक्षण से करनी चाहिए।)
(ङ) लोकरक्षा कथं संभवति?
(लोकरक्षा कैसे संभव होती है? )
उत्तर- लोकरक्षा प्रकृतिरक्षया सम्भवति।
(लोकरक्षा प्रकृति की रक्षा से संभव होती है।)
(च) परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं किं किं ददाति ?
(परिष्कृत पर्यावरण हमें क्या-क्या देता है? )
उत्तर- परिष्कृतं पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकं जीवन सुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं, माङ्गलिक सामग्रीं चा ददाति।
(परिष्कृत पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन का सुख, सद्विचार, सत्य संकल्प और मांगलिक सामग्री देता है।)
प्रश्न 3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्न निर्माणं कुरुत- ( मोटे पदों के आधार पर प्रश्न वाचक बनाइए ) –
(क) वनवृक्षाः निर्विवेकं छिद्यन्ते ।
(ख) वृक्षकर्तनात् शुद्धवायुः न प्राप्यते ।
(ग) प्रकृति: जीवन सुखं प्रददाति ।
(घ) अजातश्शिशु: मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति ।
(ङ) पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम् अस्ति।
उत्तर-
(क) काः निर्विवेक छिद्यन्ते?
(ख) कस्मात् शुद्धवायुः न प्राप्यते?
(ग) प्रकृतिः किं प्रददाति ?
(घ) आजातश्शिशुः कस्मिन् सुरक्षितः तिष्ठति ?
(ङ) पर्यावरण रक्षणं कस्य अङ्गम् अस्ति?
प्रश्न 4. उदाहरणमनुसृत्य पदरचनां कुरुत( उदाहरण के अनुसार पद रचना कीजिए ) –
( क ) यथा- जले चरन्ति इति – जलचराः ।
(i) स्थले चरन्ति इति – ………….
(ii) निशायां चरन्ति इति -………
(iii) व्योम्नि चरन्ति इति -………
(iv) गिरौ चरन्ति इति -……….
(v) भूमौ चरन्ति इति -………..
उत्तर- (i) स्थलचरा:, (ii) निशाचरा:, (iii) व्योमचराः, (iv) गिरिचरा:, (v) भूमिचरा: ।
( ख ) यथा – न पेयम् इति – अपेयम्
(i) न वृष्टिः इति -………….
(ii) न सुखम् इति -……….
(iii) न भाव: इति -………..
(iv) न पूर्ण: इति -………….
उत्तर- (i) आवृष्टिः, (ii) असुखम्, (iii) अभाव:, (iv) अपूर्णः ।
प्रश्न 5. उदाहरणमनुसृत्य पद निर्माणं कुरुत- ( उदाहरण के अनुसार पद बनाइए ) –
यथा- वि + कृ + क्तिन् = विकृतिः ।
(क) प्र + गम + क्तिन = …………..
(ख) दृश् + क्तिन् = ……………….
(ग) गम् + क्तिन् =…………………
(घ) मन् + क्तिन् =………………..
(ङ) शम् + क्तिन् =……………….
(च) भी + क्तिन् =………………..
(छ) जन् + क्तिन् =……………..
(ज) भज् + क्तिन् =………………
(झ) नी + क्तिन् =…………………
उत्तर- (क) प्रगतिः, (ख) दृष्टिः, (ग) गति:, (घ) मति;, (ङ) शतिः, (च) भीति:, (छ) जाति:, (ज) भक्तिः, (झ) नीतिः ।
प्रश्न 6. निर्देशानुसारं परिवर्तयत- (निर्देशों के अनुसार परिवर्तन कीजिए) –
यथा- स्वार्थान्धो मानवः अद्य पर्यावरणं नाशयति (बहुवचने) स्वार्थान्धाः मानवाः अद्य पर्यावरणं नाशयन्ति ।
(क) सन्तप्तस्य मानवस्य मङ्गलः कुतः ? (बहुवचने)
(ख) मानवा: पर्यावरण कुक्षौ सुरक्षिताः भवन्ति । (एकवचने)
(ग) वनवृक्षा: निर्विवेक छिद्यन्ते । (एकवचने)
(घ) गिरिनिर्झरा: निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। (द्विवचने)
(ङ) सरित् निर्मलं जलं प्रयच्छति। (बहुवचने)
उत्तर- (क) सन्तप्तानां मानवानां मङ्गलः कुतः ?
(ख) मानव: पर्यावरण कुक्षौ सुरक्षितः भवति ।
(ग) वनवृक्षः निर्विवेक छिद्यते।
(घ) गिरिनिझरौ निर्मलं जलं प्रयच्छतः।
(ङ) सरितः निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति ।
(अ) पर्यावरण रक्षणाय भवन्तः किं करिष्यन्ति इति विषये पञ्च वाक्यानि लिखत- ( पर्यावरण की रक्षा के लिए आप क्या करेंगे? उक्त विषय पर पाँच वाक्य लिखिए ) –
यथा- अहं विषाक्तम् अवकरं नदीषु न पातयिष्यामि |
उत्तर- (i) वृक्षारोपणं करिष्यामि।
(ii) वृक्षच्छेदनं रोद्धव्यम् ।
(iii) जल संरक्षणम् कर्त्तव्यम् ।
(iv) जन जागरणं कर्त्तव्यम्।
(v) स्वच्छता पालनं कर्त्तव्यम् ।
प्रश्न 7. (क) उदाहरणमनुसृत्य उपसर्गान् पृथक्कृत्वा लिखत( उदाहरण के अनुसार उपसर्ग अलग करके लिखिए ) –
यथा – संरक्षणाय सम्
उत्तर- (i) प्रभवति – प्र
(ii) उपलभ्यते – उप
(iii) निवसन्ति – नि
(iv) समुपहरन्ति – सम्
(v) प्रयच्छन्ति – प्र
(vi) उपगता – उप
(vii) प्रतिभाति – प्रति
(ख) उदाहरणमनुसृत्य अधोलिखितानां समस्त पदानां विग्रहं लिखत- ( उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित समस्त पदों के विग्रह लिखिए ) –
यथा- तेजोवायुः – तेज: वायुः च
गिरिनिर्झराः – गिरयः निर्झराः च
(i) पत्रपुष्पे – ………….
(ii) लतावृक्षौ – ………….
(iii) पशुपक्षी – ………….
(iv) कीटपतङ्गौ – ………….
उत्तर- (i) पत्रम्: च पुष्पम् च। (ii) लताः च वृक्षः च । (iii) पशु: च पक्षिः च । (iv) कीट: च पतङ्गः च।
योग्यताविस्तार:
यह पाठ पर्यावरण को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबन्ध है। वर्तमान युग में प्रदूषित वातावरण मानव-जीवन के लिए भयङ्कर अभिशाप बन गया है। नदियों का जल कलुषित हो रहा है, वन वृक्षों से रहित हो रहे हैं, मिट्टी का कटाव बढ़ने से बाढ़ की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं। कल-कारखानों और वाहनों के धुएँ से वायु विषैली हो रही है। वन्य प्राणियों की जातियाँ भी नष्ट हो रही हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार वृक्षों एवं वनस्पतियों के अभाव में मनुष्यों के लिए जीवित रहना असम्भव प्रतीत होता है। पत्र, पुष्प, फल, काष्ठ, छाया एवं औषधि प्रदान करने वाले पादपों एवं वृक्षों की उपयोगिता वर्तमान समय में पूर्वापेक्षया अधिक है।
(क) निम्नलिखित शब्दयुग्मों के भेद देखने योग्य हैं –
सङ्कल्प – सत्सङ्कल्पः
आचार: – सदाचार:
जन: – सज्जनः
सङ्गतिः – सत्सङ्गतिः
मतिः – सन्मतिः
(ख) आर्षवचन- ऋषि के द्वारा कहा गया वचन ‘आर्षवचन’ कहलाता है।
(ग) पञ्चतत्त्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इन पाँच तत्त्वों से ही यह शरीर बनता है।