प्राचीन भारत

प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य ऐतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य ऐतिहासिक काल

प्रागितिहास (Prehistory) इतिहास के उस काल को कहा जाता है जब मानव तो अस्तित्व में थे लेकिन जब लिखाई का आविष्कार न होने से उस काल का कोई लिखित वर्णन नहीं है।  मानव प्रागितिहास, पत्थर के उपकरण का उपयोग 3.3 मिलियन साल पहले होमिनिन्स और लेखन प्रणालियों के आविष्कार के बीच की अवधि है। सबसे पहले लेखन प्रणाली 5,300 साल पहले दिखाई दी थी, लेकिन लेखन को व्यापक रूप से अपनाया जाने में हजारों साल लग गए, और 19 वीं शताब्दी तक या वर्तमान तक भी कुछ मानव संस्कृतियों में इसका उपयोग नहीं किया गया था। मेसोपोटामिया में सुमेर, सिंधु घाटी सभ्यता और प्राचीन मिस्र अपनी खुद की लिपियों को विकसित करने और ऐतिहासिक रिकॉर्ड रखने वाली पहली सभ्यताएं थीं; यह शुरुआती कांस्य युग के दौरान पहले से ही था। इस काल में मानव-इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई जिनमें हिमयुग, मानवों का अफ़्रीका से निकलकर अन्य स्थानों में विस्तार, आग पर स्वामित्व पाना, कृषि का आविष्कार, कुत्तों व अन्य जानवरों का पालतू बनना इत्यादि शामिल हैं। ऐसी चीज़ों के केवल चिह्न ही मिलते हैं, जैसे कि पत्थरों के प्राचीन औज़ार, पुराने मानव पड़ावों का अवशेष और गुफाओं की कला। पहिये का आविष्कार भी इस काल में हो चुका था जो प्रथम वैज्ञानिक आविष्कार था

इतिहासकार प्रागैतिहास को कई श्रेणियों में बांटते हैं। एक ऐसी विभाजन प्रणाली में तीन युग बताए जाते हैं:

  • पाषाण युग – जब औज़ार व हथियार केवल पत्थर के ही बनते थे।
  • कांस्य युग – जब औज़ार व हथियार कांसे (ब्रॉन्ज़​) के बनाने लगे।
  • लौह युग – जब औज़ारो व हथियारों में लोहे का इस्तेमाल शुरू हो गया।

प्रागैतिहासिक काल

इस काल में लिखित विवरण नहीं है, इस काल के विषय की जानकारी पाषाण के उपकरणों तथा मिट्टी के बर्तनों व खिलौनों से प्राप्त होती है । इस काल के बारे में  जानकारी  केवल पुरातात्तविक स्रोतों से मिलती है।

आद्य इतिहास

इस काल में  लेखक कला के  प्रचलन  के बाद भी  लेख पढे नहीं जा सके । इस काल के संबंध में जानकारी पुरातत्तव पर ही निर्भर है।

पृथ्वी की उत्पति 4 अरब वर्ष प्राचीन मानी जाती है जीवों की उत्पती बहुत बाद में मानी गई है तथा   मानव की उत्पती इस पृथ्वी पर लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व मानी जाती है।  ज्ञानी मानव  ( होमोसैपियंस ) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग 30 या 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ ।

आदि काल ( प्रागैतिहासिक काल ) को वैज्ञानिक शब्दावली में प्लाइस्टोसीन ( अभिनूतन युग ) कहा गया है।

पूर्व पाषाण काल में मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था ।

मानव सभ्यता के विकास में पाषाणों का बहुत महत्व रहा है। पाषाण से मानव ने भोजन संग्रहित किया , आवास बनाया , कला सीखी , आविष्कार किए, प्राचीनतम कलाकृतियां पाषाणों पर उत्कीर्ण की गई , पाषाणों से ही आविष्कारों की ऊर्जा अग्नि प्राप्त की । समस्त औजार , हथियार , आश्रय मानव ने पाषाणों से ही प्राप्त किए , इसी से आरंभिक मानव के इतिहास को पाषाण युग के नाम से जाना जाता है।

पाषाण युग में शनै-शनै क्रमिक रूप से मानव का जीवन अधिक व्यवस्थित होने लगा , इस आधार पर पाषाण युग को तीन भागों में विभाजित किया गया है –

  • पुरापाषाण काल (5 लाख – 10 हजार ई. पू. )
  • मध्य  पाषाण काल (10,000 हजार ई. पू. –  7000 हजार ई. पू. )
  • नवपाषाण काल ( 7000/6000 ई. पू. – 3000ई. पू. )

प्रागैतिहासिक काल एवं आद्य इतिहासकाल से संबंधित तथ्य

ज्ञानी मानव (होमोसैपियंस)का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग तीस या चालीस हजार वर्ष पूर्व हुआ।

पूर्व-पाषाण युग में मानव की जीविका का मुख्य आधार शिकार था।

आग का आविष्कार पुरा-पाषाणकाल में हुआ।

पहिले का आविष्कार नव-पाषाणकाल में हुआ।

मनुष्य में स्थायी निवास की प्रवृत्ति नव-पाषाणकाल में जाग्रत हुई तथा उसने सबसे पहले कुत्ते को पालतू बनाया।

मनुष्य ने सर्वप्रथम ताँबा धातु का प्रयोग किया तथा उसके द्वारा बनाया जाने वाला प्रथम औजार कुल्हाङी (प्राप्ति स्थल – अतिरम्पक्कम) था।

कृषि का आविष्कार नव-पाषाणकाल में हुआ।

कृषि के लिये अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल गेहूँ (पहली फसल) एवं जौ थी।

कृषि का प्रथम उदाहरण मेहरगढ से प्राप्त हुआ है।

कोल्डिहवा का संबंध चावल के प्राचीनतम साक्ष्य से है।

पल्लावरम् नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषाण संस्कृति की खोज हुई थी।

भारत में मनुष्य संबंधी सबसे पहला प्रमाण नर्मदा घाटी में मिला है।

भारत में शिवालिक की पहाङी से जीवाश्म का प्रमाण मिला है।

इनामगाँव ताम्रपाषाम युग की एक बङी बस्ती थी। इसका संबंध जोर्वे संस्कृति से है।

भारत में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औजार स्फटिक (पत्थर) के बने थे।

रॉबर्ट ब्रुस फुट पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 1863 ई. में भारत में पुरापाषाण कालीन औजारों की खोज की।

भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदङो था, सिंधी भाषा में जिसका अर्थ मृतकों का टीला।

असम का श्वेतभ्रू गिबन भारत में पाया जाने वाला एकमात्र मानवाभ कपि है।

पाषाण

पाषाण युग को भी हम चाहे तो तीन भागों मे बाँट सकते है

  • पुरापाषाण काल
  • मध्यपाषाण काल
  • नवपाषाण काल

कांस्य युग

मूल लेख: कांस्य युग
  • पूर्व कांस्य युग
  • मध्य कांस्य युग
  • उत्तर कांस्य युग

लौह युग

मूल लेख: लौह युग
  • पूर्व लौह युग
  • मध्य लौह युग
  • उत्तर लौह युग

प्रागैतिहासिक काल में मानवों का वातावरण बहुत भिन्न था। अक्सर मानव छोटे क़बीलों में रहते थे और उन्हें जंगली जानवरों से जूझते हुए शिकारी-फ़रमर जीवन व्यतीत करना पड़ता था। विश्व की अधिकतर जगहें अपनी प्राकृतिक स्थिति में थीं। ऐसे कई जानवर थे जो आधुनिक दुनिया में नहीं मिलते, जैसे कि मैमथ और बालदार गैंडा। विश्व के कुछ हिस्सों में आधुनिक मानवों से अलग भी कुछ मानव जातियाँ थीं जो अब विलुप्त हो चुकी हैं, जैसे कि यूरोप और मध्य एशिया में रहने वाले निअंडरथल मानव। अनुवांशिकी अनुसन्धान से पता चला है कि भारतीयों-समेत सभी ग़ैर-अफ़्रीकी मानव कुछ हद तक इन्ही निअंडरथलों की संतान हैं, यानि आधुनिक मानवों और निअंडरथलों ने आपस में बच्चे पैदा किये थे।

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