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PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ PSEB 9th Class Home Science

  • साबुन चर्बी तथा खार के मिश्रण हैं।
  • साबुन दो विधियों से तैयार किया जा सकता है-ठण्डी विधि तथा गर्म विधि।
  • साबुन कई तरह के मिलते हैं-साबुन की चक्की, साबुन का चूरा, साबुन का पाऊडर, साबुन की लेस।
  • साबुन रहित सफाईकारी पदार्थ हैं-रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ।
  • सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरेक्स, एसिटिक एसिड, ऑम्जैलिक एसिड।
  • रंग काट दो तरह के होते हैं-ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच।
  • नील, टीनोपाल आदि का प्रयोग कपड़ों को सफ़ेद रखने के लिए किया जाता है।
  • नील दो तरह के होते हैं-घुलनशील तथा अघुलनशील पदार्थ।
  • कपड़ों में ऐंठन अथवा अकड़न लाने वाले पदार्थ हैं-मैदा अथवा अरारोट, चावलों का पानी, आलू , गोंद, बोरैक्स।

Home Science Guide for Class 9 PSEB सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. साबुन वसा तथा …………………. के मिश्रण से बनता है।
  2. ………………. के बाहरी छिलके के रस में वस्त्रों को साफ़ करने की शक्ति होती है।
  3. अच्छा साबुन जीभ पर लगाने से ……………….. स्वाद देता है।
  4. सोडियम हाइपोक्लोराइट को …………………. पानी कहते हैं।
  5. सोडियम परबोरेट …………….. काट पदार्थ है।

उत्तर-

  1. क्षार,
  2. रीठों,
  3. ठीक,
  4. जैवले,
  5. आक्सीडाइजिंग।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक रिडयूसिंग काट पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
सोडियम बाइसल्फाइट।

प्रश्न 2.
पानी में अघुलनशील नील का नाम लिखें।
उत्तर-
इण्डिगो।

प्रश्न 3.
गोंद का प्रयोग किस कपड़े में कड़ापन लाने के लिए किया जा सकता
उत्तर-
वायल के वस्त्रों में।

प्रश्न 4.
रासायनिक साबुन रहित सफाईकारी पदार्थों में से कोई एक नाम बताएं।
उत्तर-
शिकाकाई।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. साबुन बनाने की दो विधियां हैं-गर्म तथा ठण्डी।
  2. हाइड्रोजन पराक्साइड, रिड्यूसिंग ब्लीच है।
  3. साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा क्षार आवश्यक पदार्थ हैं।
  4. कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं – मैदा, अरारोट, चावलों का पानी आदि।
  5. सफेद कपड़ों को धुलने के बाद नील दिया जाता है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ है
(A) रीठा
(B) शिकाकाई
(C) दोनों ठीक
(D) दोनों ग़लत।
उत्तर-
(C) दोनों ठीक

प्रश्न 2.
पानी में घुलनशील नील नहीं है
(A) इंडीगो
(B) अल्ट्रामैरीन
(C) परशियन नील
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 3.
कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं
(A) चावलों का पानी
(B) गोंद
(C) मैदा
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 4.
पानी में घुलनशील नील है
(A) एनीलीन
(B) इंडीगो
(C) अल्ट्रामैरीन
(D) परशियन नील।
उत्तर-
(A) एनीलीन

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन बनाने की गर्म विधि के बारे बताओ।
उत्तर-
तेल को गर्म करके धीरे-धीरे इसमें कास्टिक सोडा डाला जाता है। इस मिश्रण को गर्म किया जाता है। इस तरह चर्बी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल जाती है। फिर उसमें नमक डाला जाता है, इससे साबुन ऊपर आ जाता है तथा ग्लिसरीन, अतिरिक्त खार तथा नमक नीचे चले जाते हैं । साबुन में सुगन्ध तथा रंग ठण्डा होने पर मिलाये जाते हैं तथा चक्कियां काट ली जाती हैं।

प्रश्न 2.
कपड़ों को नील कैसे दिया जाता है?
उत्तर-
नील देते समय वस्त्र को धोकर साफ़ पानी से निकाल लेना चाहिए। नील को किसी पतले वस्त्र में पोटली बनाकर पानी में खंगालना चाहिए। वस्त्र को अच्छी तरह निचोड़कर तथा बिखेरकर नील वाले पानी में डालो तथा बाद में वस्त्र को धूप में सुखाओ।

प्रश्न 3.
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया जाता है? नाम बताओ।
उत्तर-
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है साबुन, रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ (जैसे निरमा, रिन, लिसापोल आदि), कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्ज़ैलिक एसिड, ब्लीच, नील, रानीपॉल आदि।

प्रश्न 4.
ठण्डी विधि से साबुन बनाने का लाभ लिखें।
उत्तर-
ठण्डी विधि के लाभ

  1. इसमें मेहनत अधिक नहीं लगती।
  2. साबुन भी जल्दी बन जाता है।
  3. यह एक सस्ती विधि है।

PSEB 9th Class Home Science Guide सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक सहायक सफाईकारक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
कपड़े धोने वाला सोडा।

प्रश्न 2.
साबुन बनाने के लिए जरूरी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा खार आवश्यक पदार्थ हैं। नारियल, महुए, सरसों, जैतून का तेल, सूअर की चर्बी आदि चर्बी के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। जबकि खार कास्टिक सोडा अथवा पोटाश से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 3.
साबुन बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने की दो विधियाँ हैं-(i) गर्म तथा (ii) ठण्डी विधि।

प्रश्न 4.
वस्त्रों में कड़ापन क्यों लाया जाता है?
उत्तर-

  1. वस्त्रों में ऐंठन लाने से यह मुलायम हो जाते हैं तथा इनमें चमक आ जाती है।
  2. मैल भी वस्त्र के ऊपर ही रह जाती है जिस कारण कपड़े को धोना आसान हो जाता
  3. वस्त्र में जान पड़ जाती है। देखने में मज़बूत लगता है।

प्रश्न 5.
वस्त्रों से दाग उतारने वाले पदार्थों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-इससे ऑक्सीजन निकलकर धब्बे को रंग रहित कर देती है। हाइड्रोजन पराऑक्साइड, सोडियम परबोरेट आदि ऐसे पदार्थ हैं।
  2. रिड्यूसिंग एजेंट-यह पदार्थ धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर उसे रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट तथा सोडियम हाइड्रोसल्फेट ऐसे पदार्थ हैं।

प्रश्न 6.
साबुन और साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ में क्या अन्तर है?
उत्तर-

साबुन साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ
(1) साबुन प्राकृतिक तेलों जैसे नारियल, जैतून, सरसों आदि अथवा चर्बी जैसे सूभर की चर्बी आदि से बनता है। (1) साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ शोधक रासायनिक पदार्थों से बनता है।
(2) साबुन का प्रयोग भारी पानी में नहीं किया जा सकता। (2) इनका प्रयोग भारी पानी में भी किया जा सकता है।
(3) साबुन को जब कपड़े पर रगड़ा जाता है तो सफ़ेद-सी झाग बनती है। (3) इनमें कई बार सफ़ेद झाग नहीं बनती।

प्रश्न 7.
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ हैं-नील तथा टीनोपॉल अथवा रानीपॉल।
नील-नील दो प्रकार के होते हैं-

  1. पानी में घुलनशील तथा
  2. पानी में अघुलनशील नील। इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील पहली प्रकार के नील हैं। यह पानी के नीचे बैठ जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह से मलना पड़ता है।
    एनीलिन दूसरी तरह के नील हैं। यह पानी में घुल जाते हैं।
    टीनोपॉल-यह भी सफ़ेद वस्त्रों को और सफ़ेद तथा चमकदार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
ठण्डी विधि द्वारा कौन-कौन सी वस्तुओं से साबुन कैसे तैयार किया जा सकता है? इसकी क्या हानियां हैं?
उत्तर-
ठण्डी विधि द्वारा साबुन तैयार करने के लिए निम्नलिखित सामान लोकास्टिक सोडा अथवा पोटाश-250 ग्राम महुआ अथवा नारियल तेल-1 लीटर पानी- 3/4 किलोग्राम मैदा- 250 ग्राम।
किसी मिट्टी के बर्तन में कास्टिक सोडा तथा पानी को मिलाकर 2 घण्डे तक रख दो। तेल तथा मैदे को अच्छी तरह घोल लो तथा फिर इसमें सोडे का घोल धीरे-धीरे डालो तथा मिलाते रहो। पैदा हुई गर्मी से साबुन तैयार हो जाएगा। इसको किसी सांचे में डालकर सुखा लो तथा चक्कियां काट लो।
हानियां-साबुन में अतिरिक्त खार तथा तेल और ग्लिसरॉल आदि साबुन में रह जाते हैं। अधिक खार वाले साबुन कपड़ों को हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 9.
साबुन किन-किन किस्मों में मिलता है?
उत्तर-
साबुन निम्नलिखित किस्मों में मिलता है

  1. साबुन की चक्की-साबुन चक्की के रूप में प्रायः मिल जाता है। चक्की को गीले वस्त्र पर रगड़कर इसका प्रयोग किया जाता है।
  2. साबुन का पाऊडर-यह साबुन तथा सोडियम कार्बोनेट का बना होता है। इसको गर्म पानी में घोलकर कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद सूती वस्त्रों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है।
  3. साबुन का चूरा-यह बन्द पैकटों में मिलता है। इसको पानी में उबालकर सूती वस्त्र कुछ देर भिगो कर रखने के पश्चात् इसमें धोया जाता है। रोगियों के वस्त्रों को भी । कीटाणु रहित करने के लिए साबुन के उबलते घोल का प्रयोग किया जाता है।
  4. साबुन की लेस-एक हिस्सा साबुन का चूरा लेकर पाँच हिस्से पानी डालकर तब तक उबालो जब तक लेस-सी तैयार न हो जाये। इसको ठण्डा होने पर बोतलों में डालकर रख लो तथा ज़रूरत पड़ने पर पानी डालकर धोने के लिए इसे प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
अच्छे साबुन की पहचान क्या है?
उत्तर-

  1. साबुन हल्के पीले रंग का होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में मिलावट भी हो सकती है।
  2. साबुन हाथ लगाने पर थोड़ा कठोर होना चाहिए। अधिक नर्म साबुन में ज़रूरत से अधिक पानी हो सकता है जो केवल भार बढ़ाने के लिए ही होता है।
  3. हाथ लगाने पर अधिक कठोर तथा सूखा नहीं होना चाहिए। कुछ घटिया किस्म के साबुनों में भार बढ़ाने वाले पाऊडर डाले होते हैं जो वस्त्र धोने में सहायक नहीं होते।
  4. अच्छा साबुन स्टोर करने पर, पहले की तरह रहता है, जबकि घटिया साबुनों पर स्टोर करने पर सफ़ेद पाऊडर-सा बन जाता है। इनमें आवश्यकता से अधिक खार होती है जोकि वस्त्र को खराब भी कर सकती है।
  5. अच्छा साबुन जुबान पर लगाने से ठीक स्वाद देता है जबकि मिलावट वाला साबुन जुबान पर लगाने से तीखा तथा कड़वा स्वाद देता है।

प्रश्न 11.
साबुन रहित प्राकृतिक सफ़ाईकारी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे तथा शिकाकाई। इनकी फलियों को सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है।

  1. रीठा-रीठों की बाहरी छील के रस में वस्त्र साफ़ करने की शक्ति होती है। रीठों की छील उतारकर पीस लो तथा 250 ग्राम छील को कुछ घण्टे के लिए एक लिटर पानी में भिगो कर रखो तथा फिर इन्हें उबालो वस्त्र तथा ठण्डा करके छानकर बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। इसके प्रयोग से ऊनी, रेशमी वस्त्र ही नहीं अपितु सोने, चांदी के आभूषण भी साफ़ किये जा सकते हैं।
  2. शिकाकाई-इसका भी रीठों की तरह घोल बना लिया जाता है। इससे कपड़े निखरते ही नहीं अपितु उनमें चमक भी आ जाती है। इससे सिर भी धोया जा सकता है।

प्रश्न 12.
साबुन रहित रासायनिक सफ़ाईकारी पदार्थों से आप क्या समझते हो ? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर-
साबुन प्राकृतिक तेल अथवा चर्बी से बनते हैं जबकि रासायनिक सफ़ाईकारी शोधक रासायनिक पदार्थों से बनते हैं। यह चक्की, पाऊडर तथा तरल के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं।
लाभ-

  1. इनका प्रयोग हर तरह के सूती, रेशमी, ऊनी तथा बनावटी रेशों के लिए किया जा सकता है।
  2. इनका प्रयोग गर्म, ठण्डे, हल्के अथवा भारी सभी प्रकार के पानी में किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
साबुन और अन्य साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थों के अतिरिक्त वस्त्रों की । धुलाई के लिए कौन-से सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ निम्नलिखित हैं

  1. वस्त्र धोने वाला सोडा-इसको सफ़ेद सूती वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। परन्तु रंगदार सूती वस्त्रों का रंग हल्का पड़ जाता है तथा रेशे कमजोर हो जाते हैं।
    यह रवेदार होता है तथा उबलते पानी में तुरन्त घुल जाता है। इससे सफ़ाई की प्रक्रिया में वृद्धि होती है। इसका प्रयोग भारी पानी को हल्का करने के लिए, चिकनाहट साफ़ करने तथा दाग़ उतारने के लिए किया जाता है।
  2. बोरैक्स (सुहागा)-इसका प्रयोग सफ़ेद सूती वस्त्रों के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा चाय, कॉफी, फल, सब्जियों आदि के दाग उतारने के लिए किया जाता है। इसके हल्के घोल में मैले वस्त्र भिगोकर रखने पर उनकी मैल उगल आती है। इससे वस्त्रों में ऐंठन भी लाई जाती है।
  3. अमोनिया- इसका प्रयोग रेशमी तथा ऊनी कपड़ों से चिकनाहट के दाग दूर करने के लिए किया जाता है।
  4. एसिटिक एसिड-रेशमी वस्त्र को इसके घोल में खंगालने से इनमें चमक आ जाती है। इसका प्रयोग वस्त्रों से अतिरिक्त नील का प्रभाव कम करने के लिए भी किया जाता है। रेशमी, ऊनी वस्त्र की रंगाई के समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  5. ऑग्जैलिक एसिड-इसका प्रयोग छार की बनी चटाइयों, टोकरियों तथा टोपियों आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है। स्याही, जंग, दवाई आदि के दाग उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 14.
वस्त्रों से दागों का रंगकाट करने के लिए क्या प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
कपड़ों से दागों का रंगकाट करने के लिए ब्लीचों का प्रयोग होता है। ये दो प्रकार के होते हैं।

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है, इसकी ऑक्सीजन धब्बे से क्रिया करके इसको रंग रहित कर देती है तथा दाग उतर जाता है। प्राकृतिक धूप, हवा तथा नमी, पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन पराक्साइड, सोडियम परबोरेट, हाइपोक्लोराइड आदि ऐसे रंग काट हैं।
  2. रिड्यूसिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है तो यह धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर इसको रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट, सोडियम हाइड्रोसल्फाइट ऐसे ही रंग काट हैं। ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों पर इनका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
    परन्तु तेज़ रंग काट से वस्त्र खराब भी हो जाते हैं।

प्रश्न 15.
वस्त्रों को नील क्यों दिया जाता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों पर बार-बार धोने से पीलापन-सा आ जाता है। इसको दूर करने के लिए वस्त्रों को नील दिया जाता है तथा वस्त्र की सफ़ेदी बनी रहती है।

प्रश्न 16.
नील की मुख्य कौन-कौन सी किस्में हैं?
उत्तर-
नील मुख्यतः दो प्रकार का होता है

  1. पानी मैं अघुलनशील नील-इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील ऐसे नील हैं। इसके कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं, इसलिए वस्त्रों को देने से पहले नील वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना पड़ता है।
  2. पानी में घुलनशील नील-इनको पानी में थोड़ी मात्रा में घोलना पड़ता है तथा इससे वस्त्र पर थोड़ा नीला रंग आ जाता है। इस तरह वस्त्र का पीलापन दूर हो जाता है। एनीलिन नील ऐसा ही नील है।

प्रश्न 17.
नील देते समय ध्यान में रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर-

  1. नील सफ़ेद वस्त्रों को देना चाहिए रंगीन कपड़ों को नहीं।
  2. यदि नील पानी में अघुलनशील हो तो पानी को हिलाते रहना चाहिए नहीं तो वस्त्रों पर नील के धब्बे से पड़ जाएंगे।
  3. नील के धब्बे दूर करने के लिए वस्त्र को सिरके वाले पानी में खंगाल लेना चाहिए। (4) नील दिए वस्त्रों को धूप में सुखाने पर उनमें और भी सफ़ेदी आ जाती है।

प्रश्न 18.
नील देते समय धब्बे क्यों पड़ जाते हैं? यदि धब्बे पड़ जायें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अघुलनशील नील के कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं तथा इस तरह वस्त्रों को नील देने से वस्त्रों पर कई बार नील के धब्बे पड़ जाते हैं। जब नील के धब्बे पड़ जाएं तो वस्त्र को सिरके के घोल में खंगाल लेना चाहिए।

प्रश्न 19.
वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए किन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 20.
वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाए जा सकते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 21.
किस प्रकार के वस्त्रों को सफ़ेद करने की आवश्यकता पड़ती है? वस्त्रों में कड़ापन किन पदार्थों के द्वारा लाया जा सकता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों को बार-बार धोने पर इन पर पीलापन सा आ जाता है। इनका यह पीलापन दूर करने के लिए नील देना पड़ता है।

वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

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