RB 8 Sanskrit

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम्

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम्

Rajasthan Board RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम्

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मौखिक प्रश्न:
 प्रश्न 1.
शब्दानाम् उच्चारणं कुरुत
मृदपि,
सिद्धवनम्,
देवीस्वरूपाः,
दीपनुतिः,
भाग्यविधायि,
निजार्जितकर्म,
श्रियम् शंसति,
स्वदेहविमोहः,
कृषकः,
जीवनसाफल्यम्,
युद्धरतानाम् धनपदवी
उत्तरम्:
नोट-उपर्युक्त शब्दों का शुद्ध उच्चारण अपने अध्यापकजी की सहायता से कीजिए।]

प्रश्न 2.
प्रश्नानाम् उत्तराणि वदत
(क) मृदपि कीदृशम् अस्ति?
उत्तरम्:
चन्दनम्

(ख) सर्वे बालाः कस्य रूपे सन्ति?
उत्तरम्:
श्रीरामस्य

(ग) कविवाणी केषां गाथां गायति?
उत्तरम्:
त्यागधनानां तपोनिधीनां

(घ) प्रातः कस्य गुणगानं भवति?
उत्तरम्:
शिवस्य

(ङ) गङ्गाजलं कीदृशं वर्तते?
उत्तरम्:
निर्मलम्

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 लिखितप्रश्नाः
प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत
(क) सिद्धवनं किम् अस्ति?
उत्तरम्:
प्रत्येक ग्रामः

(ख) देवीस्वरूपाः काः सन्ति?
उत्तरम्:
बालाः

(ग) कस्य विमोहः नास्ति?
उत्तरम्:
स्वदेहस्य

(घ) यतिवाणी किं करोति?
उत्तरम्:
ज्ञानं शंसति

(ङ) जीवनलक्ष्यं किम् अस्ति?
उत्तरम्:
शिवपदसेवा

प्रश्न 2.
रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम्:
(क) हरिमन्दिरम् अखिल शरीरम्
(ख) यत्र च क्रीडायै वनराजः
(ग) दीपनुतिः खलु शत्रुपरा
(घ) यत्र हि कृषकः कार्यरतः सन्
(ङ) यत्र श्रमः श्रियम् अर्जयति

प्रश्न 3.
उदाहरणम् अनुसृत्य शब्द, धातुरूपम् अव्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत(अपि, ग्रामः, धेनुः, गायति, कृषकः, यत्र, शंसति, च, ने, हि, वनराजः, प्रातः, खलु, अर्जयति, नित्यम्, इव)
उत्तरम्:

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम् - 1
प्रश्न 4.
निम्नांकितशब्दानां सन्धि-विच्छेदं कुरुत
उत्तरम्:
शब्दः सन्धि-विच्छेद
नैव – न + एव
धेनुर्माता – धेनुः + माता
निजार्जित – निज + अर्जित

प्रश्न 5.
अर्ज, गी एवं शंस् धातूनाम् रूपाणि लट्लकारे लिखतु
उत्तरम्:

RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम् - 2
RBSE Solutions for Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 मृदपि च चन्दनम् - 3

योग्यता-विस्तारः
समान भाव के अन्य गीत
यथा
(1) चन्दन है इस देश की माटी
तपो भूमि हर ग्राम है। हर बाला देवी की प्रतिमा
बच्चा बच्चा राम है

(2) आओ बच्चों तुम्हें दिखायें झाँकी हिन्दुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की वन्दे मातरम्…..

(गीतम्)
नैव क्लिष्टा न च कठिना सरस सुबोधा विश्व मनोज्ञा ललिता हृद्या रमणीया॥
अमृतवाणी संस्कृत भाषा नैव क्लिष्टा न च कठिना

कविकोकिल-वाल्मीकि-विरचिता रामायणरमणीयकथा
अतीव-सरला मधुरमञ्जला नैव क्लिष्टा न च कठिना॥
सुरस……….॥.
व्यासविरचिता गणेशलिखिता महाभारते पुण्यकथा
कौरव-पाण्डव-सङ्गरमथिता नैव क्लिष्टा न च कठिना॥
सुरस………..॥
कुरूक्षेत्र-समराङ्गण-गीता विश्ववन्दिता भगवद्गीता
अमृतमधुरा कर्मदीपिका नैव क्लिष्टा न च कठिना॥
सुरस………..॥
कविकुलगुरु-नव रसोन्मेषजा ऋतु-रघु-कुमार-कविता
विक्रम-शाकुन्तल-मालविको नैव क्लिष्टा न च कठिना॥
सुरसे………….॥

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः

1. ‘मृदपि च चन्दनम्’ पाठस्य क्रमः अस्ति
(क) पञ्चमः
(ख) नवमः
(ग) अष्टमः
(घ) दशमः।

2. ‘धनशक्ती जनसेवायै ‘–रे खाङ्कितपदे विभक्ति : अस्ति
(क) चतुर्थी
(ख) तृतीया
(ग) पंचमी
(घ) सप्तमी

3. ‘दीपनुतिः खलु शत्रुपरा’–अत्र अव्ययपदम् अस्ति
(क) शत्रु
(ख) दीप
(ग) नुतिः
(घ) खलु

4. ‘गङ्गाजलमिव नित्यं निर्मलं’-रेखांकितपदे उपसर्ग: अस्ति
(क) नि
(ख) निर्
(ग) अम्
(घ) आ

5. देवी स्वरूपाः काः सन्ति?
(क) सैनिकाः
(ख) बालाः
(ग) पुत्राः
(घ) शिक्षकाः

6.अस्मिन् देशे मृदपि किम् अस्ति?
(क) धनम्
(ख) वस्त्रम्
(ग) चन्दनम्
(घ) कज्जलम्

7. अत्र क्रीडायै कः अस्ति?
(क) वनराजः
(ख) गजराजः
(ग) भल्लूकः
(घ) बलिवर्दः

8. अत्र नित्यं यतिवाणी किं शंसति?
(क) धनम्
(ख) युद्धम्
(ग) बलम्
(घ) ज्ञानम्
उत्तराणि:
1. (ग)
2. (क)
3. (घ)
4. (ख)
5. (ख)
6. (ग)
7. (क)
8. (घ)

मञ्जूषात् उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
प्रातः यत्र, सर्वे, गायति, श्रमः
1.बालाः …………श्रीरामाः
2.नित्यं……….:-शिवगुणगानम्
3.गाथा ……..कविवाणी
4. ……..:च पर शिवपदसेवा
5. यत्र ………… श्रियमर्जयति
उत्तराणि
1. सर्वे,
2. प्रातः,
3. गायति,
4. यत्र,
5. श्रमः

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मकप्रश्ना:

(एकपदेन उत्तरत)
प्रश्न 1.
धनशक्ती किमर्थं स्तः?
उत्तरम्:
जनसेवायै

प्रश्न 2.
अत्र क्रीडायै कः अस्ति?
उत्तरम्:
वनराजः

प्रश्न 3.
ज्ञानं का शंसति?
उत्तरम्:
यतिवाणी

प्रश्न 4.
अत्र जीवनलक्ष्यं किं नास्ति?
उत्तरम्:
धनपदवी

RBSE Class 8 Sanskrit रञ्जिनी Chapter 8 लघूत्तरात्मकप्रश्नाः

(पूर्णवाक्येन उत्तरत)
प्रश्न 1.
अत्र नित्यं प्रातः कस्य गुणगानं भवति?
उत्तरम्:
अत्र नित्यं प्रातः शिवस्य गुणगानं भवति

प्रश्न 2.
अस्मिन् देशे मृदपि किमस्ति?
उत्तरम्:
अस्मिन् देशे मदृपि चन्दनमस्ति

प्रश्न 3.
इदमखिलशरीरं किमस्ति?
उत्तरम्:
इदमखिलशरीरं हरिमन्दिरमस्ति

प्रश्न 4.
जीवनसाफल्यं कीदृशः कृषकः पश्यति?
उत्तरम्:
कार्यरतः सन् कृषकः जीवनसाफल्यं पश्यति

प्रश्न 5.
रेखांकितपदानां स्थाने कोष्ठके लिखितान् पदान् चित्वा प्रश्न निर्माणं कुरुत
(i) अस्मिन् देशे मृदपि चन्दनं वर्तते (कम्/किम्)
(ii) अत्र बाला देवीस्वरूपा अस्ति। (का/के)
(iii) अत्र सर्वे बाला: श्रीरामाः सन्ति। (कानि/के)
(iv) भारते धनशक्ती जनसेवायै स्तः। (किमर्थं/कस्मात्) त्र,
(v) अत्र नित्यं प्रातः शिवगुणगानं भवति। (कः/किम्)
(vi) अत्र यतिवाणी ज्ञानं शंसति। (किम्/केन)
(vii) अत्र श्रमः श्रियमर्जयति। (कौ/कः)
उत्तरम्:
प्रश्न-निर्माणम्
(i) अस्मिन् देशे मृदपि किम् वर्तते?
(ii) अत्र का देवीस्वरूपा अस्ति?
(iii) अत्र सर्वे बालाः के सन्ति?
(iv) भारते धनशक्ती किमर्थं स्त:?
(v) अत्र नित्यं प्रातः किं भवति?
(vi) अत्र यतिवाणी किं शंसति?
(vii) अत्र कः श्रियमर्जयति?

प्रश्न 6.
समानार्थकानि पदानि मेलयत
(i) मृदपि         –    प्रसारयति
(ii) सिद्धवनम्   –    रमणाय
(iii) क्रीडायै      –    मृत्तिका अपि
(iv) खलु          –    मुनिवाक्
(v) शंसति        –    निश्चयेन
(vi) यतिवाणी    –    तपस्थानम्
उत्तरम्:
(i) मृदपि          –      मृत्तिका अपि
(ii) सिद्धवनम्    –     तपस्थानम्
(iii) क्रीडायै       –     रमणाय
(iv) खलु           –       निश्चयेन।
(v) शंसतिप      –       प्रसारयति
(vi) यतिवाणी    –      मुनिवाक्

पाठ-परिचय

[प्रस्तुत पाठ श्री जनार्दन हेगड़े द्वारा लिखित संस्कृत-गीत है। जिसमें यहाँ की मिट्टी को भी चन्दन तुल्य बतलाते हुए इस देश की महिमा का वर्णन किया गया है।]

पाठ के कठिन

शब्दार्थ-मृदपि (मृत्तिका अपि) = मिट्टी भी। सिद्धवनम्॥ (तपस्थानम्) तपोभूमि। जनसेवायै (लोकसेवायै) लोगों की सेवा। क्रीडायै नमः (रमणाय) = खेलने के लिए। खलु (निश्चयेन)। निश्चय से। दीपनुतिः (दीपाय नमस्कार:) = दीप को नमस्कार। शत्रुपरा (शत्रुहितसम्बन्धः) शत्रु के हित सम्बन्धी। भाग्यविधायि (भाग्यस्य विधाता) = भाग्य का विधाता। निजार्जितकर्म (स्थ उपार्जितकर्म)= स्वयं द्वारा अर्जित कर्म। श्रियमर्जयति (धनमर्जयति) = धन कमाता है। शंसति (प्रसारयति) फैलाता है। यतिबाणी। (मुनिवाक्) मुनियों की वाणी। स्वदेहविमोहः (स्वशरीरस्य विशेषमोह:) शरीर का विशेष मोह। युद्धरतानां (युद्धे संलग्नान) युद्ध में लगे हुए का। जीवनसाफल्यम्(जीवनस्य समृद्धिः) = जीवन की सफलता। परशिवपदसेवा = (परं लक्ष्य शिवपादार्चनम्) = जीवन का परम लक्ष्य शिव के चरणों की सेवा। धनपदवी = धनं पदं च = धन और पद।

पाठ का हिन्दी-भावार्थ
(1)
मृदपि च चन्दनमस्मिन् देशे, ग्रामो ग्रामः सिद्धवनम्।
यत्र च बाला देवीस्वरूपा, बालाः सर्वे श्रीरामाः॥
हरिमन्दिरमिदमखिलशरीरम्
धनशक्ती जनसेवायै
यत्र च क्रीड़ायै वनराजः,
धेनुर्माता परमशिवा॥
नित्यं प्रातः शिवगुणगानं।
दीपनुतिः खलु शत्रुपरा॥

हिन्दी-भावार्थ-प्रस्तुत पद्य में भारत-देश की महिमा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि इस देश में मिट्टी भी चन्दन के समान शोभायमान है और प्रत्येक गाँव तपोभूमि है। और जहाँ (भारत में) सभी बालिकाएँ देवी स्वरूप हैं तथा सभी बालक श्रीराम के स्वरूप हैं।

यह सम्पूर्ण शरीर भगवान् का मन्दिर है। यहाँ धन एवं ताकत दोनों ही लोगों की सेवा के लिए है। और यहाँ। सिंह खेलने के लिए तथा गाय परम कल्याणकारी माता है। यहाँ नित्य प्रात:काल भगवान् शिव का गुणगान होता है। निश्चय ही शत्रुओं का हित-सम्बन्धी इस दीप को नमस्कार है।

(2)
भाग्यविधायी निजार्जितकर्म।
यत्रश्रमः श्रियमर्जयति।
त्यागधनानां तपोनिधीनां
गाथां गायति कविवाणी।
गङ्गाजलमिव नित्यं निर्मल
ज्ञानं शंसति यतिवाणी॥

हिन्दी-भावार्थ-प्रस्तुत पद्य में भारत-देश की महिमा का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि इस देश में स्वयं। द्वारा अर्जित कर्म ही भाग्य का विधाता है। यहाँ परिश्रम ही धन कमाता है। यहाँ कवियों की वाणी त्याग रूपी धन वाले तपस्वियों की गाथा (कथा) का गान करती है। यहाँ मुनियों की वाणी हमेशा गंगाजल के समान निर्मल ज्ञान का प्रसार करती है।

(3)
यत्र हि नैव स्वदेहविमोहः।
युदधरतानां वीराणाम्।
यत्र हि कृषकः कार्यरतः सन्
पश्यति जीवनसाफल्यम्
जीवनलक्ष्यं न हि धनपदवी
यत्र च पर शिवपदसेवा॥

हिन्दी-भावार्थ-जहाँ भारत देश में युद्ध में लगे हुए वीरों को अपने शरीर से विशेष मोह नहीं होता है। जहाँ। किसान निरन्तर कार्य में लगा रहता हुआ ही अपने जीवन की सफलता देखता (मानता) है। और जिस देश में जीवन का लक्ष्य धन और पद प्राप्त करना नहीं है, अपितु जीवन का परम लक्ष्य शिव के चरणों की सेवा करना है।

The Complete Educational Website

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *