RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 शश-गजराज कथा
RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 शश-गजराज कथा
Rajasthan Board RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 शश-गजराज कथा
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 पाठ्य-पुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 वस्तुनिष्ठप्रश्नाः
प्रश्न 1.
हस्तिराजः नातिदूरं गत्वा किं दृष्टवान्?
(क) नदीम्
(ख) समुद्रम्
(ग) मलयुतं ह्रदम्
(घ) निर्मलं ह्रदम्।
उत्तराणि:
(घ) निर्मलं ह्रदम्।
प्रश्न 2.
शशकस्य किं नामासीत्?
(क) शिलीमुखः
(ख) क्षुद्रः
(ग) देवबुद्धिः
(घ) चिन्तकः
उत्तराणि:
(क) शिलीमुखः
प्रश्न 3.
हितोपदेशस्य कति परिच्छेदाः?
(क) चत्वारः
(ख) त्रयः
(ग) पञ्च
(घ) सप्त।
उत्तराणि:
(क) चत्वारः
प्रश्न 4.
शश-गजराजकथा कस्माद् उद्धृता?
(क) मित्रलाभात्
(ख) सुहृदभेदात्।
(ग) विग्रहात्
(घ) सन्धेः
उत्तराणि:
(ग) विग्रहात्
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 लघूत्तरात्मकप्रश्नाः
(क) चन्द्रसरसः रक्षकाः के आसन्?
उत्तरम्:
चन्द्रसरस: रक्षका: शशकाः आसन्।
(ख) शिलीमुखो नाम शशकः किं चिन्तयामास?
उत्तरम्:
शिलीमुखः अचिन्तयत् यद् अनेन गजयूथेन पिपासाकुलितेन प्रत्यहमत्रागन्तव्यम्। अतः विनश्यति अस्मत्कुलम्।
(ग) वृद्धः शशकः किमवदत्?
उत्तरम्:
मा विषीदत। मया प्रतीकारः कर्तव्यः।
(घ) विजयः इति कस्य नामासीत्?
उत्तरम्:
विजयः एकः वृद्धः शशकः आसीत्।
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 निबन्धात्मक प्रश्नाः
(क) वृद्ध शशकेन किमालोचितम्?
उत्तरम्:
सोऽचिन्तयत् यत् कथं गजयूथसमीपे स्थित्वा वक्तव्यम्। अतोऽहं पर्वतशिखरम् आरुह्य यूथनाथं संवादयामि।
(ख) गजयूथः यूथपतिं किमुक्तवान्?
उत्तरम्:
नाथ! कोऽभ्युपायोऽस्माकं जीवनाय?
(ग) कथासारम् लिखत।
उत्तरम्:
तृषार्तं गंजयूथं यूथपतिः एकं सरोवरम् अदर्शयत्। तत्र शशकाः आसन्। हस्तिपादाघातै: ते विनष्टाः। अतः ते चिन्तिताः अभवन्। वृद्धशशक: पर्वतशिखरम् आरुह्य यूथपतिम् अवदत् – एषः चन्द्रसरोवरः अस्ति। सः सरोवरस्य जले चन्द्रम् अदर्शयत्। सरोवरस्य रक्षका: युस्माभिः हताः। अतः भावान् चन्द्रः प्रकुपितः युष्मान् नाशयिष्यति। भीत: गजयूथपतिः जले कम्पमानं चन्द्रं प्रणम्य प्रसन्नं च कृत्वा तत: प्रस्थितः।
अधोलिखितानां गद्यानां हिन्दीभाषायाम् अनुवादान कुरुत –
उत्तरम्:
(क) वयं च निमज्जन”:”प्रत्यहमत्रागन्तव्यम्।
हिन्दी-अनुवाद – और हम स्नान के लिए स्थान के अभाव के कारण मरे हुए के समान हैं। क्या करें? कहाँ जायें? तब गजराज ने पास ही जाकर निर्मल तालाब दिखाया। तब दिन बीतने पर उसके किनारे पर रहने वाले खरगोश हाथियों के पैरों के आघातों से कुचल दिये गये। इसके बाद शिलीमुख नाम के खरगोश ने सोचाइस प्यास से व्याकुल हाथी के समूह को रो प्रत्येक दिन यहाँ आना है। अत: हमारा कुल तो नष्ट हो रहा है।
(ख) ते शशकाश्चिरमस्माकं…………………. प्रणामं कारितः।
हिन्दी-अनुवाद – वे खरगोश बहुत दिन से हमारे द्वारा रक्षित हैं। अत: मैं शशांक नाम से प्रसिद्ध हूँ। दूत के ऐसा कहने पर यूथपति ने भयभीत होकर कहा–क्षमा कीजिए। अनजाने में कर दिया। फिर ऐसा नहीं किया जाएगा। दूत बोला – यदि ऐसी बात है तो यहाँ तालाब में क्रोध के मारे काँपते हुए भगवान् चन्द्रमा को प्रणाम करके (और) प्रसन्न करके जाओ। तब रात में यूथपति को ले जाकर जल में हिलते चन्द्रमा की छाया दिखाकर यूथपति से प्रणाम करवाया था।
(ग) तदहं तदाज्ञया ……………………. प्रणिधेहि।
हिन्दी-अनुवाद – उस (सन्देश) को मैं उसकी आज्ञा से कहता हूँ। सुनो, जो ये चन्द्र सरोवर के रक्षक खरगोश तुम्हारे द्वारा निकाल दिए गये हैं, यह अनुचित किया गया है। वे खरगोश बहुत समय से हमारे द्वारा रक्षित हैं, अतः मेरा शशाक (नाम) प्रसिद्ध है। दूत के ऐसा कहने पर समूह के नायक ने भय के कारण ऐसा कहा-क्षमा कीजिए।
अधोलिखितानां पदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेर्नामपि लिखत –
उत्तरम्:
अधोलिखितेषु धातु-लकार-पुरुष-वचनानां निर्देशं कुरुत –
उत्तरम्:
अधोलिखितानां पदानां पर्यायपदं लिखत-
उत्तरम्:
अधोलिखित पदेषु प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कुरुत
उत्तरम्:
रेखांकितपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –
(क) हस्तिराजो नातिदर गत्वा निर्मलं हृदं दर्शितवान्।
(ख) विजयो नाम १३ शशकोऽवदत्।
(ग) रात्रौ यूथपतिं नीत्वा जले चंचलं चन्द्रबिम्ब दर्शयित्वा प्रणामं कारितः।
(घ) चन्द्रसरोवर – रक्षकाः शशकाः।
उत्तरम्:
(क) हस्तिराज: नातिदूरं गत्वा किं दर्शितवान्?
(ख) किं नाम वृद्धशशकोऽवदत्?
(ग) रात्रौ यूथपतिं नीत्वा जले के दर्शयित्वा प्रणामं कारित:?
(घ) चन्द्रसरोवर-रक्षकी: के?
RBSE Class 9 Sanskrit सरसा Chapter 5 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन उत्तरत –
प्रश्न 1.
शश-गजराज कथा कस्मात् कथाग्रन्थात् सङ्कलिता?
उत्तरम्:
शश-गजराज कथा हितोपदेशात् कथाग्रन्थात् सङ्कलिता।
प्रश्न 2.
हितोपदेशस्य लेखकः कः वर्तते?
उत्तरम्:
हितोपदेशस्य लेखकः श्रीनारायण शर्मा वर्तते।
प्रश्न 3.
वृष्टे: अभावात् तृषात गजयूथो यूथपतिं किमाह?
उत्तरम्:
वृष्टेः अभावात् तृषात गजयूथः यूथपतिमाह-नाथ! कोऽभ्युपायोऽस्माकं जीवनाय?
प्रश्न 4.
हस्तिराजः नातिदूरे किम् दर्शितवान्?
उत्तरम्:
हस्तिराज: नातिदूरे गत्वा निर्मलं हृदम् दर्शितवान्।
प्रश्न 5.
‘मा विषीदत, मयान्न प्रतीकारः कर्तव्यः’ इति कोऽवदत्?
उत्तरम्:
‘मा विषीदत, मयान्न प्रतीकारः कर्तव्यः’ इति विजयो नाम वृद्धः शशकोऽवदत्।
प्रश्न 6.
यूथनाथः विजयं किमपृच्छत्?
उत्तरम्:
यूथनाथः विजयमपृच्छत्-‘कस्त्वम्? कृतः समायातः?
प्रश्न 7.
विजय: गजपतिं स्वपरिचयं कथं दत्तवान्?
उत्तरम्:
स ब्रूते-शशकोऽहम्। भगवता चन्द्रेण भवदन्तिकं प्रेषितः।
प्रश्न 8.
दूते उक्तवति चन्द्र सन्देशं यूथपतिः किमाह?
उत्तरम्:
यूथपति भयात् इदम् आह-‘प्रणिधेहि’ इदम् अज्ञानतः कृतम् पुनर्न कर्त्तव्यम्।
प्रश्न 9.
दूतः भीतं यूथपतिं कि अवदत्?
उत्तरम्:
यूथपतिम् अवदत – ‘यद्येव तदन्त्र सरसि क्रोधात् कम्पमानं भगवन्तं शशाङ्क प्रणम्य प्रसाद्य गच्छ।’
प्रश्न 10.
यूथपतिः चन्द्रं कथं निवेदितवान्?
उत्तरम्:
देव! अज्ञानादनेनापराधः कृतः क्षम्यताम्। नैवं वारान्तरं विधास्यते।
स्थूल पदानाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
प्रश्न 1.
गजयूथो यूथपतिमाह।
उत्तरम्:
गजयूथ: कम् आह?
प्रश्न 2.
नास्ति क्षुद्रजन्तूनां निमज्जनस्थानम्।
उत्तरम्:
नास्ति केषां निमज्जनस्थानम्?
प्रश्न 3.
हस्तिराजः नातिदूरं गत्वा निर्मलं ह्रदं दर्शितवान्।
उत्तरम्:
हस्तिराज: नातिदूरं गत्वा कीदृशं ह्रदं दर्शितवान्?
प्रश्न 4.
तत्तीरावस्थिताः क्षुद्रशशका: गजपादाहतिभिः चूर्णिताः।
उत्तरम्:
तत्तीरावस्थिता क्षुद्रशशकाः कथं चूर्णिता:?
प्रश्न 5.
अनन्तरं शिलीमुखो नाम शशकश्चिन्तयामास।
उत्तरम्:
अनन्तरं कः चिन्तयामास?
पाठ परिचय
संस्कृत साहित्य में बालसाहित्य की विशेषत: बालकथाओं की एक लम्बी परम्परा है। उन कथाग्रन्थों में पं० विष्णु शर्मा द्वारा लिखा हुआ पञ्चतन्त्र और नारायण पंडित का हितोपदेश प्रमुख हैं। कथा हितोपदेश के विग्रह परिच्छेद से ली गई है। इस कथा में खरगोश की बुद्धिमत्ता का कथानक मन को हरण करने वाला और शिक्षाप्रद है। यथास्थान यहाँ सूक्तियाँ भी दी गई हैं।
शब्दार्थ एवं हिन्दी-अनुवाद
1. कदाचिदपि वर्षासु …………………………… विनश्यत्यस्मत्कुलम्।
शब्दार्थाः-कदाचिदपि = कभी। वर्षासु = वर्षाकाल में। वृष्टेः = वर्षा के। अभावात् = अभाव या कमी होने के कारण। तृषार्ता = प्यास से पीड़ित। गजयूथो = हाथियों का झुंड। यूथपतिमाह = झुंड के स्वामी से बोला। निमज्जनस्थानम् = स्नान करने का स्थान। मृताह इव = मरे हुए के समान। किं कुर्मः = क्या करें। क्व यामः = कहाँ जाये। हृदं = तालाब को। तत् तीरावस्थिताः = उस तट पर रहने वाले। गजपादाहतिभिः = हाथियों के पैरों के आघातों से। चूर्णिताः = कुचले गए। पिपासाकुलितेन = प्यास से पीड़ित ने। प्रत्यहम् = प्रत्येक दिन यहाँ। अतः विनश्यत्यस्मत्कुलम् = अत: हमारा कुल नष्ट हो रहा है।
हिन्दी-अनुवाद-कभी वर्षा काल में वर्षा के अभाव (कमी) के कारण प्यास से पीड़ित हाथियों का दल (अपने) दलपति मे बोला-स्वामी! हमारे जीवित रहने का क्या उपाय है? छोटे-छोटे जन्तुओं (प्राणियों) को स्नान करने के लिए भी स्थान नहीं है और हम (तो) स्नान के लिए स्थान के अभाव में मरे हुए के समान हैं। क्या करें? कहाँ जाएँ? तब हाथियों के नायक ने अधिक दूर न जाकर अर्थात् समीप ही एक स्वच्छ तालाब दिखाया। तब दिन बीतने पर उसके किनारे पर रहने वाले हाथियों के पैरों से (आघातों से) छोटे-छोटे खरगोश कुचल गये। तत्पश्चात् शिलीमुख नामक खरगोश सोचने लगा-“इस प्यास से व्याकुल (पीड़ित) हाथियों के समूह को तो प्रत्येक दिन (रोजाना) यहाँ आना है। अतः हमारा कुल नष्ट हो रहा है।
2. ततो विजयो नाम …………………………… हि वाचकः॥
शब्दार्थाः-अवदत् = बोला। मा = मत। विषीदत = दुखी है। मया अत्र प्रतीकारः कर्त्तव्यः = मुझे यहाँ उपाय करना चाहिए। चलितः = चला गया। गच्छता तेनालोचितम् = जाते हुए उसने विचार किया। स्थित्वा = ठहरकर। कथं = किस तरह। वक्तव्यम् = बोलना चाहिए। आरुह्य = चढ़कर। अनुष्ठिते = करने पर। समायातः = आये हुए हो। भवदन्तिकम् = आपके पास। उद्यतेष्वपि = मारने पर भी। अवध्यभावेन = न मारने योग्य होने से, मृत्यु का डर न होने के कारण।
हिन्दी-अनुवाद-तब विजय नाम का बुड्डा खरगोश बोला-दु:खी मत हो। मुझे इसका उपचार (उपाय) करना है। तब वह प्रतिज्ञा करके चला गया। जाते हुए उसने सोचा–हाथियों के समूह के पास ठहरकर कैसे बात की जाये। अतः मैं पहाड़ की चोटी पर चढ़कर दलपति से बात करता हूँ। तब (वैसा ही) करने पर दलनायक बोला–तुम कौन हो? कहाँ से आये हो? वह बोला-मैं खरगोश हूँ। भगवान् चन्द्रमा ने आपके पास (मुझे) भेजा है। दलनायक ने कहा-कार्य बोल (बता)। विजय बोला–शस्त्रों से मारे जाने पर भी दूत कभी झूठ नहीं बोलता है। सदा मृत्युभय न होने के कारण सत्य वक्ता ही होता है अर्थात् सत्य ही बोलता है।
3. तदहं तदाज्ञया …………………………… सिद्धिः स्याद् इति।।
शब्दार्था:-तदाज्ञया = उसकी आज्ञा से। ब्रवीमि = कह रहा हूँ। शृणु = सुनो। निःसारिताः = निकाल दिए गये। रक्षिताः = रक्षित हैं। एवमुक्तवति दूते = दूत के इस प्रकार कहने पर। भयात् इदमाह = डरने के कारण ऐसे बोला। प्रणिधेहि = स्वीकार करो, क्षमा करो। इदमज्ञानतः = यह अनजाने में कर दिया गया। सरसि = तालाब में। कोपात् = नाराजगी के कारण। कम्पमानम् = हिलते, काँपते हुए। प्रसाद्य = प्रसन्न करके। कारितः = कहलवाया। उक्तं च तेन = और वह बोला। वारान्तरम् = बार-बार। विधास्यते = किए जायेंगे। प्रस्थापितः = प्रस्थान किया। व्यपदेशेऽपि = छल करने में भी।
हिन्दी-अनुवाद-तो मैं उनकी आज्ञा से कहता हूँ। सुनो, कि ये चन्द्रसरोवर के रक्षक खरगोश जो तुमने निकाल दिए हैं वह अनुचित किया है। वे खरगोश बहुत समय से हमारे द्वारा रक्षित हैं, इसलिये मेरी प्रसिद्धि ‘शशांक’ नाम से है। दूत के ऐसे कहने पर दलपति ने भय के कारण यह कहा–क्षमा करो। यह अनजाने में कर दिया। फिर नहीं होना चाहिए अर्थात् कि ऐसा नहीं होगा। दूत बोला-यदि ऐसी बात है तो यहाँ तालाब में क्रोध के कारण हिलते हुए भगवान् शशांक (चन्द्रमा) को प्रणाम कर प्रसन्न करके जाओ। तब रात में दलपति को ले जाकर जल में चंचल (हिलते) चन्द्रमा की परछाईं को दिखाकर दलपति से प्रणाम करवाया और उसने कहा-देव! अनजाने में हमने अपराध किया है क्षमा कीजिए। ऐसा पुनः नहीं होगा। ऐसा कहकर प्रस्थान कर गया। अतः मैं कहता हूँ-छल करने पर भी सफलता प्राप्त होनी चाहिए।