RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकाणि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकाणि
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् कारकाणि
कारक की परिभाषा – क्रिया को जो करता है अथवा क्रिया के साथ जिसका सीधा अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है, वह ‘कारक’ कहा जाता है। क्रिया के साथ कारकों का साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध किस प्रकार होता है, यह समझाने के लिए यहाँ एक वाक्य प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे –
“हे मनुष्याः! नरदेवस्य पुत्रः जयदेवः स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः ग्रामे धनं ददाति।” (हे मनुष्यो! नरदेव का पुत्र जयदेव अपने हाथ से खजाने से निर्धनों को गाँव में धन देता है।)
यहाँ क्रिया के साथ कारकों का सम्बन्ध इस प्रकार प्रश्नोत्तर से जानना चाहिए –
इस प्रकार यहाँ ‘जयदेव’ इस कर्ता कारक का तो क्रिया से साक्षात् सम्बन्ध है और अन्य कारकों का परम्परा से सम्बन्ध है। इसलिए ये सभी कारक कहे जाते हैं। किन्तु इसी वाक्य के ‘हे मनुष्याः’ और ‘नरदेवस्य’ इन दो पदों का ‘ददाति’ क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध नहीं है। इसलिए ये दो पद कारक नहीं हैं। सम्बन्ध कारक तो नहीं है परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है।
कारकाणां संख्या-इस प्रकार कारकों की संख्या छः होती है। जैसे –
कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट्॥
(कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण-ये छ: कारक कहे गये हैं।)
यहाँ कारकों और विभक्तियों का सामान्य-परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है –
प्रथमा विभक्तिः
- जो क्रिया के करने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता कहा जाता है ‘स्वतन्त्रः कर्ता’। उक्त कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति आती है। जैसे –
रामः पठति।
अत्र पठनक्रियायाः स्वतन्त्ररूपेण सम्पादकः रामः अस्ति। अतः अयम् एव कर्ता अस्ति। कर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति। - कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे –
मयां ग्रन्थः पठ्यते। - सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है (सम्बोधने च)। जैसे –
हे बालकाः! यूयं कुत्र गच्छथ? - किसी संज्ञा आदि शब्द का अर्थ, लिंग, परिमाण और वचन प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि विभक्ति के प्रयोग बिना कोई भी शब्द अपना अर्थ देने में समर्थ नहीं है। इसलिए इस . विषय में प्रसिद्ध कथन है-अपद (बिना विभक्ति के शब्द) का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उदाहरणार्थम् –
बलदेवः, पुरुषः, लघुः, लता। - ‘इति’ शब्द के योग में प्रथमा विभक्ति होती है। यथा –
वयम् इमं जयन्तः इति नाम्ना जानीमः।
द्वितीया विभक्तिः
कर्ता क्रियया यं सर्वाधिकम् इच्छति तस्य कर्मसंज्ञा भवति। (कर्तृरीप्सिततमं कर्म।) कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति। (कर्मणि द्वितीया) यथा
(कर्ता क्रिया के द्वारा जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसकी कर्म संज्ञा होती है तथा कर्म में द्वितीया विभक्ति आती है। जैसे-)
- रामः ग्रामं गच्छति। .
- बालकाः वेदं पठन्ति।
- वयं नाटकं द्रक्ष्यामः।
- साधुः तपस्याम् अकरोत्।
- सन्दीपः सत्यं वदेत्।
निम्नलिखित शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे –
- अभितः/उभयतः (दोनों ओर) – राजमार्गम् अभितः वृक्षाः सन्ति।
- परितः/सर्वतः (चारों ओर) – ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति।
- समया/निकषा (समीप में) – विद्यालयं निकषा देवालयः अस्ति।
- अन्तरेण/विना (बिना) – प्रदीपः पुस्तकं विना पठति।
- अन्तरा (बीच में) – रामं श्यामं च अन्तरा देवदत्तः अस्ति।
- धिक् (धिक्कार) – दुष्टं धिक्।
- हा (हाय) – हा दुर्जनम्!
- प्रति (ओर) – छात्राः विद्यालयं प्रति गच्छन्ति।
- अनु (पीछे) – राजपुरुष: चौरम् अनु धावति।
- यावत् (तक) – गणेशः वनं यावत् गच्छति।
- अधोऽधः (सबसे नीचे) – भूमिम् अधोऽधः जलम् अस्ति।
- अध्यधि (अन्दर-अन्दर) – लोकम् अध्यधि हरिः अस्ति।
- उपर्युपरि (ऊपर-ऊपर) – लोकम् उपर्युपरि सूर्यः अस्ति।
अधिशीस्थासां कर्म-अधि उपसर्गपूर्वक शीङ्, स्था तथा आस् धातुओं के योग में इनके आधार की कर्मसंज्ञा होती है तथा कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयक्त होती है।
उदाहरणार्थम् –
- अधिशेते (सोता है)। – सुरेशः शय्याम् अधिशेते।
- अधितिष्ठति (बैठता है) – अध्यापकः आसन्दिकाम् अधितिष्ठति।
- अध्यास्ते (बैठता है) – नृपः सिंहासनम् अध्यास्ते।
उपान्वध्याङवसः-उप. अन, अधि, आ उपसर्गपर्वक वस धात के योग में इनके आधार की कर्म संज्ञा होती है एवं कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
- उपवसति (पास में रहता है) – श्यामः नगरम् उपवसति।
- अनुवसति (पीछे रहता है) – कुलदीपः गृहम् अनुवसति।
- अधिवसति (में रहता है) – सुरेशः जयपुरम् अधिवसति।
- आवसति (रहता है) – हरिः वैकुण्ठम् आवसति।
अभिनिविशश्च – ‘अभि नि’ इन दो उपसर्गों के साथ विश् धातु का प्रयोग होने पर इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है एवं कर्म में द्वितीया विभक्ति आती है।
अभिनिविशते (प्रवेश करता है) – दिनेशः ग्रामम् अभिनिविशते।
(दिनेश गाँव में प्रवेश करता है।)
अकथितं च-अपादान आदि कारकों की जहाँ विवक्षा नहीं होती है, वहाँ उसकी कर्मसंज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। संस्कृत भाषा में इस प्रकार की 16 धातुएँ हैं, जिनके प्रयोग में एक तो मुख्य कर्म होता है और दूसरा अपादानादि कारकों से अविवक्षित गौण कर्म होता है। इस गौण कर्म में ही द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। ये धातुएँ ही द्विकर्मक धातुएँ कही जाती हैं। इनका प्रयोग यहाँ किया जा रहा है –
दुह् (दुहना) – गोपालः गां दुग्धं दोग्धि।
(गोपाल गाय से दूध दुहता है।)
याच् (माँगना) – सुरेशः महेशं पुस्तकं याचते।
(सुरेश महेश से पुस्तक माँगता है।)
पच् (पकाना) – पाचकः तण्डुलान् ओदनं पचति।
(पाचक चावलों से भात पकाता है)
दण्ड् (दण्ड देना) – राजा गर्गान शतं दण्डयति।
(राजा गर्गो को सौ रुपए का दण्ड देता है।)
प्रच्छ (पूछना) – सः माणवकं पन्थानं पृच्छति।
(वह बालक से मार्ग पूछता है।)
रुध् (रोकना) – ग्वालः गां व्रजम् अवरुणद्धि।
(ग्वाला गाय को व्रज में रोकता है।)
चि (चुनना) – मालाकारः लतां पुष्पं चिनोति।
(माली लता से पुष्प चुनता है।)
जि (जीतना) – नृपः शत्रु राज्यं जयति।
(राजा शत्रु से राज्य को जीतता है।)
ब्रु (बोलना)/शास् (कहना) – गुरु शिष्यं धर्मं ब्रूते/शास्ति।
(गुरु शिष्य से धर्म कहता है।)
मथ् (मथना) – सः क्षीरनिधिं सुधां मथ्नाति।
(वह क्षीरसागर से अमृत मथता है।)
मुष् (चुराना) – चौरः देवदत्तं धनं मुष्णाति।
(चोर देवदत्त का धन चुराता है।)
नी (ले जाना) – सः अजां ग्रामं नयति।
(वह बकरी को गाँव ले जाता है।)
ह (हरण करना) – सः कृपणं धनं हरति।
(वह कंजूस के धन का हरण करता है।)
सः ग्रामं धनं हरति।
(वह गाँव में धन को ले जाता है)
वह (ले जाना)
कृषक: ग्रामं भारं वहति।
(किसान गाँव में बोझा ले जाता है।)
कृष् (खींचना)
कृषकः क्षेत्रं महिषीं कर्षति। (किसान खेत में भैंस को खींचता है।)
कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे – कालवाचक और मार्गवाचक शब्द में अत्यन्त संयोग होने पर गम्यमान में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
सुरेशः अत्र पञ्चदिनानि पठति।
(सुरेश यहाँ लगातार पाँच दिन से पढ़ रहा है।)
मोहन: मासम् अधीते।
(मोहन लगातार महीने भर से पढ़ता है।)
नदी क्रोशं कुटिला अस्ति।
(नदी कोस भर तक लगातार टेढ़ी है।)
प्रदीपः योजनं पठति।
(प्रदीप लगातार एक योजन तक पढ़ता है।)
तृतीया विभक्तिः
(क) (साधकतमं करणम्) “कर्तृकरणयोस्तृतीया” क्रिया की सिद्धि में जो सर्वाधिक सहायक होता है, उस कारक की करण संज्ञा होती है और उसमें तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
- जागृतिः कलमेन लिखति।
- वैशाली: जलेन मुखं प्रक्षालयति।
- रामः दुग्धेन रोटिकां खादति।
- सुरेन्द्रः पादाभ्यां चलति।
(ख) कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य के अनुक्तकर्ता में भी तृतीया विभक्ति होती है। जैसे –
- रामेण लेख: लिख्यते। (कर्मवाच्ये)
- मया जलं पीयते। (कर्मवाच्ये)
- तेन हस्यते। (भाववाच्ये)
सहयुक्तेऽप्रधाने – सह, साकम्, समम्, सार्धम् (साथ) शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
- जनकः पुत्रेण सह गच्छति।
- सीता गीतया साकं पठति।
- ते स्वमित्रैः सार्धं क्रीडन्ति।
- त्वं गुरुणा समं वेदपाठं करोषि।
येनाविकारः-जिस विकारयुक्त अंग से शरीर में विकार दिखलाई देता है, उस विकृत अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा
- सः नेत्रेण काणः अस्ति।
- बालकः कर्णेन बधिरः वर्तते।
- साधुः पादेन खञ्जः अस्ति।
- श्रेष्ठी शिरसा खल्वाटः विद्यते।
- सूरदासः नेत्राभ्याम् अन्धः आसीत्।
इत्थंभूतलक्षणे – जिस चिह्न से किसी की पहचान होती है, उस चिह्न वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
सः जटाभिः तापसः प्रतीयते। (वह जटाओं से तपस्वी लगता है।)
स: बालकः पुस्तकैः छात्रः प्रतीयते। (वह बालक पुस्तकों से छात्र लगता है।)
हेतौ-हेतु’ वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
- पुण्येन.हरिः दृष्टः।
- सः अध्ययनेन वसति।
- विद्यया यशः वर्धते।
- विद्या विनयेन शोभते।
“प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्।” प्रकृति (स्वभाव) आदि क्रिया विशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
- सः प्रकृत्या साधु अस्ति।
- गणेशः सुखेन जीवति।
- प्रियंका सरलतया लिखति।
- मूर्खः दुःखेन जीवति।
निषेधार्थक-‘अलम्’ शब्द के योग में तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
अलं हसितेन। अलं विवादेन।
चतुर्थी विभक्तिः
दानस्य कर्मणा कर्ता यं सन्तुष्टं कर्तुम् इच्छति सः सम्प्रदानम् इति कथ्यते (कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्।) सम्प्रदाने च (‘चतुर्थी समप्रदाने’) चतुर्थी विभक्तिः भवति। (दान कर्म के द्वारा कर्ता जिसको सन्तुष्ट करना चाहता है वह सम्प्रदान कहा जाता है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
यथा –
नृपः निर्धनाय धनं यच्छति।
बालकः स्वमित्राय पुस्तकं ददाति।
रुच्यर्थानां प्रीयमाण:-रुचि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जो प्रसन्ना होने वाला होता है उसकी होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती हैं। यथा भक्ताय रामायणं रोचते। (भक्त को रामायण अच्छी लगती है।) बालकाय मोदकाः रोचन्ते। (बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं।) गणेशाय दुग्धं स्वदते। (गणेश को दूध पसन्द है।)
क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रति कोप:-क्रुद्ध आदि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति आती है।
यथा –
- क्रुध् (क्रोध करना) – पिता पुत्राय क्रुध्यति।
- द्रुह् (द्रोह करना) – किंकरः नृपाय द्रुह्यति।
- ईर्ष्या (ईर्ष्या करना) – दुर्जनः सज्जनाय ईर्ण्यति।
- असूय् (निन्दा करना) – सुरेशः महेशाय असूयति।
स्पृहेरीप्सितः – ‘स्पृह’ धातु के प्रयोग में जो इच्छित हो उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।
यथा – (i) स्पृह (इच्छा करना) – बालकः पुष्पाय स्पृह्यति।
(बालक पुष्प की इच्छा करता है।)
नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च – नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् और वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।
यथा –
- नमः (नमस्कार) – रामाय नमः।
- स्वस्ति (कल्याण) – गणेशाय स्वस्ति।
- स्वाहा (आहुति) – प्रजापतये स्वाहा।
- स्वधा (हवि का दान) – पितृभ्यः स्वधा।
- वषट् (हवि का दान) – सूर्याय वषट्।
- अलम् (समर्थ) – दैत्येभ्यः हरिः अलम्।
धारेरुत्तमर्णः – धृञ् (धारण करना) धातु के प्रयोग में जो कर्ज देने वाला होता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
देवदत्तः यज्ञदत्ताय शतं धारयति। (देवदत्त यज्ञदत्त का सौ रुपये का ऋणी है)
तादर्थ्य चतुर्थी वाच्या – जिस प्रयोजन के लिए जो क्रिया की जाती है उस प्रयोजन वाचक शब्द में चतुर्थी विभक्ति होती है। यथा
सः मोक्षाय हरि भजति। बालकः दुग्धाय क्रन्दति।
निम्नलिखित धातुओं के योग में प्राय: चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
- कथय् (कहना) – रामः स्वमित्राय कथयति।
- निवेदय् (निवेदन करना) – शिष्यः गुरवे निवेदयति।
- उपदिश् (उपदेश देना) – साधुः सज्जनाय उपदिशति।
पंचमी विभक्तिः
ध्रुवमपायेऽपादानम् अपादाने पञ्चमी-पृथक् होने पर जो स्थिर है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
नृपः ग्रामात् आगच्छति। (राजा गाँव से आता है।)
भीत्रार्थानां भयहेतुः-भय और रक्षा अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में भय का जो कारण है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा
बालकः सिंहात् विभेति। (बालक सिंह से डरता है।)
नृपः दुष्टात् रक्षति/त्रायते। (राजा दुष्ट से रक्षा करता है।)
आख्यातोपयोगे-जिससे नियमपूर्वक विद्याग्रहण की जाती है उस शिक्षक. आदि मनुष्य की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
शिष्यः उपाध्यायात् अधीते।
छात्रः शिक्षकात् पठति।
जुगुप्साविरामप्रमादार्थानामुपसंख्यानम्-जुगुप्सा, विराम, प्रमाद अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिससे घृणा आदि की जाती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।
यथा –
- महेशः पापात् जुगुप्सते।
- कुलदीपः अधर्मात् विरमति।
- मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति।
भुवः प्रभवः – भू धातु के कर्ता का जो उत्पत्ति स्थान है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। यथा –
गंगा हिमालयात प्रभवति।
कश्मीरेभ्यः वितस्तानदी प्रभवति।
जनिकर्तुः प्रकृतिः – ‘जन्’ धातु का जो कर्ता है, उसका जो कारण है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
गोमयात् वृश्चिकः जायते।
कामात् क्रोधः जायते।
अन्तधौं येनादर्शनमिच्छति – जब कर्ता जिससे अदर्शन (छिपना) चाहता है तब उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।
बालक: मातुः निलीयते। (बालक माता से छिपता है।)
महेशः जनकात् निलीयते। (महेश पिता से छिपता है।)
वारणार्थानामीप्सितः – वारणार्थक (दूर करना) धातुओं के प्रयोग में जो इच्छित अर्थ होता है, उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है। यथा –
कृषक: यवेभ्यः गां वारयति। [किसान यवों (जौ) से गाय को हटाता है।]
पञ्चमी विभक्तेः – जब दो पदार्थों में से किसी एक पदार्थ की विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ईयसुन् अथवा तरप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है उसमें पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यथा –
रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति।
माता भूमेः गुरुतरा अस्ति।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी।
निम्नलिखित शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
- ऋते (बिना) – ज्ञानात् ऋते. मुक्तिः न भवति।
- प्रभृति (से लेकर) – सः बाल्यकालात् प्रभृति अद्यावधि अत्रैव पठति।
- बहिः (बाहर) – छात्राः विद्यालयात् बहिः गच्छन्ति।
- पूर्वम् (पहले) – विद्यालयगमनात् पूर्वं गृहकार्यं कुरु।
- प्राक् (पूर्व) – ग्रामात् प्राक् आश्रमः अस्ति।
- अन्य (दूसरा) – रामात् अन्यः अयं कः अस्ति।
- अनन्तरम् (बाद) – यशवन्तः पठनात् अनन्तरं क्रीडाक्षेत्रं गच्छति।
- पृथक् (अलग) – नगरात् पृथक् आश्रमः अस्ति।
- परम् (बाद) – रामात् परम् श्यामः अस्ति।
षष्ठी विभक्तिः
षष्ठी शेषे-सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त होती है। यथा –
रमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति। (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।)
यतश्च निर्धारणम्-जब बहुत में से किसी एक की जाति, गुण, क्रिया के द्वारा विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ इष्ठन् अथवा तमप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यथा –
कवीनां (कविषु वा) कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।
छात्राणां (छात्रेषु वा) सुरेशः पटुतमः अस्ति।
निम्नलिखित शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है। यथा –
- अधः (नीचे) – वृक्षस्य अधः बालकः शेते।
- उपरि (ऊपर) – भवनस्य उपरि खगाः सन्ति।
- पुरः (सामने) – विद्यालयस्य पुरः मन्दिरम् अस्ति।
- समक्षम् (सामने) – अध्यापकस्य समक्षं शिष्यः अस्ति।
- समीपम् (समीप) – नगरस्य समीपं ग्रामः अस्ति।
- मध्य (बीच में) – पशूनां मध्ये ग्वालः अस्ति।
- कृते (लिए) – बालकस्य कृते दुग्धम् आनय।।
- अन्तः (अन्दर) – गृहस्य अन्तः माता विद्यते।
तुल्याई रैतुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्-तुल्यवाची शब्दों के योग में षष्ठी अथवा तृतीया विभक्ति होती है। यथा –
सुरेशः महेशस्य (महेशेन वा) तुल्यः अस्ति।
सीता गीतायाः (गीतया वा) तुल्या विद्यते।
सप्तमी विभक्तिः
आधारोऽधिकरणम् सप्तम्यधिकरणे च-क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है, उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
नृपः सिंहासने तिष्ठति।
वयं ग्रामे निवसामः।
तिलेषु तैलं विद्यते।
जिसमें स्नेह किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यथा पिता पुत्रे स्निह्यति।
संलग्नार्थक और चतुरार्थक शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। यथा –
बलदेवः स्वकार्ये संलग्नः अस्ति। जयदेवः संस्कृते चतुरः अस्ति।
निम्नलिखित शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
- श्रद्धा – बालकस्य पितरि श्रद्धा अस्ति।
- विश्वासः – महेशस्य स्वमित्रे विश्वासः अस्ति।
यस्य च भावेन भावलक्षणम्-जब एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होती है तब पूर्व क्रिया में और उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है। यथा –
रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत्।
(राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राणों को त्याग दिया।)
सूर्ये अस्तं गते सर्वे बालकाः गृहम् आगच्छन्।
(सूर्य के अस्त होने पर सभी बालक घर चले गए।)
अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तराणि
बहुविकल्पात्मकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
‘अभितः’ शब्दस्य योगे विभक्तिः भवति
(अ) चतुर्थी
(ब) पंचमी
(स) द्वितीया
(द) तृतीया
उत्तरम् :
(स) द्वितीया
प्रश्न 2.
‘सह’ शब्दस्य योगे विभक्तिः भवति
(अ) तृतीया
(ब) चतुर्थी
(स) पंचमी
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(अ) तृतीया
प्रश्न 3.
अंगविकारे विभक्तिः भवति
(अ) प्रथमा
(ब) द्वितीया
(स) तृतीया
(द) सप्तमी
उत्तरम् :
(स) तृतीया
प्रश्न 4.
अधस्तनेषु चतुर्थी विभक्तेः कारणम् अस्ति
(अ) नमः
(ब) सह
(स) अभितः
(द) प्रति
उत्तरम् :
(अ) नमः
प्रश्न 5.
अधस्तनेषु पंचमीविभक्तेः कारणाम् अस्ति
(अ) नमः
(ब) अनन्तरम्
(स) अधोऽधः
(द) खल्वाटः
उत्तरम् :
(ब) अनन्तरम्
प्रश्न 6.
अपादाने विभक्तिः भवति
(अ) द्वितीया
(ब) तृतीया
(स) पंचमी
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(स) पंचमी
प्रश्न 7.
रक्षार्थकधातूनां योगे विभक्तिः भवति –
(अ) षष्ठी
(ब) सप्तमी
(स) पंचमी
(द) तृतीया
उत्तरम् :
(स) पंचमी
प्रश्न 8.
कारकाणां संख्यां अस्ति
(अ) सप्त
(ब) अष्ट
(स) षट्
(द) नव
उत्तरम् :
(स) षट्
प्रश्न 9.
सम्बोधने विभक्तिः भवति
(अ) द्वितीया
(ब) प्रथमा
(स) तृतीया
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(ब) प्रथमा
लघूत्तरात्मकप्रश्नाः –
प्रश्न 1.
अधस्तनेषु रेखाङ्कितशब्देषु विभक्तेः कारणं लिखत।
(निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित शब्दों में विभक्ति का कारण लिखिए।)
- ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति।
- कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
- हरये रोचते भक्तिः।
- हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते।
- कृषकः ग्रामम् अजां नयति।
- साधुः कर्णाभ्यां बधिरः अस्ति।
- हिमालयात् गंगा प्रभवति।
- रामः श्यामाय शतं धारयति।
- हनुमते नमः।
उत्तरम् :
- ‘परितः’ शब्दस्य योगे ‘ग्राम’ शब्दे द्वितीया विभक्तिः वर्तते।
- बहष एकस्य विशेषता प्रदर्शनात् ‘कविष’ पदे सप्तमी विभक्तिः अस्ति।
- ‘रुच्’ धातोः योगे ‘हरये’ पदे चतुर्थी विभक्तिः वर्तते।
- ‘अधि’ उपसर्गपूर्वकं ‘शीङ्’ धातोः योगे ‘वैकुण्ठम्’ पदे द्वितीया विभक्तिः वर्तते।
- ‘नी’ द्विकर्मकधातोः योगे ‘ग्राम’ पदे द्वितीया विभक्तिः वर्तते।
- विकृतांगवाचकशब्दस्य कारणात् ‘कर्णाभ्याम्’ पदे तृतीया विभक्तिः वर्तते।
- ‘भू’ धातोः योगे ‘हिमालयात्’ पदे पंचमी विभक्तिः वर्तते।
- ‘धृ’ (धारणार्थे) धातोः योगे ऋणदातुः ‘श्यामाय’ पदे चतुर्थी विभक्तिः वर्तते।
- ‘नमः’ योगे ‘हनुमते’ पदे चतुर्थी विभक्तिः वर्तते।
प्रश्न 2.
कोष्ठकग़तशब्देषु उचितविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत।
- नास्ति …… समः शत्रुः। (क्रोधः)
- माता ……….. स्निह्यति। (शिशु)
- …… भीत: बालक: क्रन्दति। (चौर)
- अलम् ……… (विवाद)
- …… परित: जलम् अस्ति। (नदी)
- ………. रामायणं रोचते। (भक्त)
- …… बहिः छात्राः कोलाहलं कुर्वन्ति। (कक्षा)
- भिक्षुकः ………. भिक्षां याचते। (नृप)
- जनकः ……….. क्रुध्यति। (पुत्र)
उत्तरम् :
- क्रोधेन
- शिशौ
- चौरात्
- विवादेन
- नदी
- भक्ताय
- कक्षायाः
- नृपम्
- पुत्राय।
प्रश्न 3.
कोष्ठकेभ्यः शुद्धम् उत्तरं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
- ……… सह सीता वनम् अगच्छत्। (रामस्य/रामेण)
- सुरेशः …….. पुस्तकं यच्छति। (रामम्/रामाय)
- ……. नमः। (रामम्/रामाय)
- माता ……… क्रुध्यति। (पुत्रे/पुत्राय)
- पिता ….. स्निह्यति। (पुत्रे/पुत्रात्)
- ……. अभितः क्षेत्राणि सन्ति। (ग्रामस्य/ग्रामम्)
- ……… मोदकाः रोचन्ते। (बालकाय/बालकम्)
- बालकः ……… अधिशेते। (पर्यङ्के/पर्यङ्कम्)
उत्तरम् :
- रामेण
- रामाय
- रामाय
- पुत्राय
- पुत्रे
- ग्रामम्
- बालकाय
- पर्यङ्कम्।
प्रश्न 4.
अधोलिखितशब्देषु उचित विभक्तिप्रयोगं कृत्वा वाक्यरचनां कुरुत।
उत्तरम् –
शब्दः – वाक्य-रचना
1. विना – कृष्णः सुरेशं विना गृहं न गमिष्यति।
2. धिक् – दुर्जनम् धिक्।
3. बहिः – ग्रामात् बहिः उपवनं वर्तते।
4. बिभेति – बालकः चौरात् बिभेति।
5. काणः – सः जनः नेत्रेण काणः अस्ति।
6. अन्तरा – गङ्गां यमुनां च अन्तरा प्रयागः अस्ति।
7. पटुतरः – गोपालः मोहनात् पटुतरः अस्ति।
8. पटुतमः – अभ्युत्कर्षः सर्वेषु बालकेषु पटुतमः अस्ति।
9. स्वाहा – अग्नये स्वाहा।
10. उपवसति – कृषक: ग्रामम् उपवसति।
11. अधः – भूमेः अधः जलम् अस्ति।
12. कुशलः – कृष्णः पठने कुशलः अस्ति।
प्रश्न 5.
अधोलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि।
- राजपुरुषः चौरस्य अनुधावति।
- ग्रामस्य परितः जलम् अस्ति।
- साधुः दुर्जनेन जुगुप्सते।
- अहं रेलयानात् ग्रामं गमिष्यामि।
- ईश्वरं नमः।
- अध्यापकः आसनम् तिष्ठति।
- माम् मिष्ठान्नं रोचते।
- अलं विवादम्।
उत्तरम् :
संशोधितवाक्यानि –
- राजपुरुषः चौरम् अनुधावति।
- ग्रामं परितः जलम् अस्ति।
- साधुः दुर्जनाय जुगुप्सते।
- अहं रेलयानेन ग्रामं गमिष्यामि।
- ईश्वराय नमः।
- अध्यापकः आसने तिष्ठति।
- मह्यम् मिष्ठान्न रोचते।
- अलं विवादेन।
प्रश्न 6.
क खण्डं ख खण्डेन सह योजयत –
‘क खण्डः’ | ‘ख खण्डः’ |
1. दाधातुयोगे | 1. षष्ठी |
2. रुचधातुयोगे | 2. तृतीया |
3. अङ्गविकारे | 3. चतुर्थी |
4. सम्बन्धे | 4. चतुर्थी |
5. अधितिष्ठतिधातुयोगे | 5. सप्तमी |
6. श्रद्धायोगे | 6. द्वितीया |
7. प्रमाद्यति धातुयोगे | 7. प्रथमा |
8. कर्मवाच्यस्य कर्मणि | 8. पंचमी |
उत्तरम् :
‘क खण्डः’ | ‘ख खण्डः’ |
1. दाधातुयोगे | चतुर्थी |
2. रुचधातुयोगे | चतुर्थी |
3. अङ्गविकारे | तृतीया |
4. सम्बन्धे | षष्ठी |
5. अधितिष्ठतिधातुयोगे | द्वितीया |
6. श्रद्धायोगे | सप्तमी |
7. प्रमाद्यति धातुयोगे | पंचमी |
8. कर्मवाच्यस्य कर्मणि | प्रथमा |
प्रश्न 7.
अधोलिखित रेखाङ्कित पदेषु विभक्तिं तत् कारणञ्च लिखत
(i) उदयपुरं परितः जलम् अस्ति।
(ii) छात्रः विद्यालयात् बहिः गच्छति।
(iii) दैत्येभ्यः हरिः अलम्!
उत्तरम् :
(i) द्वितीया विभक्तिः, ‘परितः’ योगे।
(ii) पञ्चमी विभक्तिः, ‘बहिः’ योगे।
(iii) चतुर्थी विभक्ति, ‘अलम्’ योगे।
प्रश्न 8.
अधोलिखित रेखाङ्कित पदेषु विभक्तिं तत् कारणञ्च लिखत।
(i) जलं विना जीवनं नास्ति।
(ii) पार्वती “नमः शिवाय” इति जपम् अकरोत्।
(iii) मन्दिरम् उपर्युपरि ध्वजः विद्यते।
उत्तरम् :
(i) द्वितीया विभक्तिः, ‘विना’ योगे।
(ii) चतुर्थी विभक्तिः, ‘नमः’ योगे।
(iii) द्वितीया विभक्तिः, ‘उपर्युपरि’ योगे।
प्रश्न 9.
अधोलिखित रेखाङ्कितपदेषु विभक्तिं तत् कारणं च लिखत।
(i) ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति।
(ii) सीता गीतया सह पठति।
(iii) नगरात् पृथक् आश्रमः अस्ति।
उत्तरम् :
(i) द्वितीया विभक्तिः, ‘परितः’ योगे।
(ii) तृतीया विभक्तिः, ‘सह’ योगे।
(iii) पञ्चमी विभक्तिः, ‘पृथक्’ योगे।
प्रश्न 10.
अधोलिखितरेखांकित पदेषु विभक्तिं तत् कारणं च लिखत –
1. राजमार्गम् अभितः वृक्षा सन्ति।
2. रामः लक्ष्मणेन सह वनं गच्छति।
3. पिता पुत्राय क्रुध्यति।
उत्तरम् :
1. द्वितीया, ‘अभितः’ योगे।
2. तृतीया, ‘सह’ योगे।
3. चतुर्थी, ‘क्रुध्’ योगे।
प्रश्न 11.
रेखाङ्कितयोः पदयोः प्रयुक्तविभक्तिं तत् कारणं च लिखत –
(i) बालकाय मोदकं रोचते।
(ii) ग्रामं परितः क्षेत्राणि सन्ति।
उत्तरम् :
(i) चतुर्थी विभक्तिः, ‘रुच्’ धातु योगे।
(ii) द्वितीया विभक्तिः, ‘परितः’ योगे।
प्रश्न 12.
रेखाङ्कितपदयोः प्रयुक्तविभक्तिः तत्कारणं च लिखत –
(i) हरिः वैकुण्ठम् अध्यास्ते।
(ii) नृपः ब्राह्मणाय गां ददाति।
उत्तरम् :
(i) द्वितीया विभक्तिः, ‘अधि’ उपसर्गपूर्वकं आस् धातुयोगे।
(ii) चतुर्थी विभक्तिः, ‘दा’ धातयोगे।
प्रश्न 13.
रेखाङ्कितपदयोः प्रयुक्तविभक्तिः तत् कारणं च लिखत –
(i) छात्रां विद्यालयं प्रति गच्छन्ति।
(ii) पिता पुत्राय क्रुध्यति।
उत्तरम् :
(i) द्वितीया विभक्तिः, ‘प्रति’ योगे।
(ii) चतुर्थी विभक्तिः, ‘क्रुध्’ धातुयोगे।
प्रश्न 14.
निम्नलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदेषु प्रयुक्तविभक्तिं तत् कारणं च लिखत –
- अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
- यया विना न पश्यन्ति राष्ट्र स्वनिकटस्थितम्।
- ततः प्रविशति तपस्विनीभ्यां सह बालः।
- अपरं ते क्रीडनकं दास्यामि।
- मया सहैव मातरमभिनन्दिष्यसि।
- मृगात् सिंहः पलायते।
- सः प्रतापं निकषा गत्वा उवाच।
- अकबरस्य सेनया सह प्रतापस्य युद्धम् अभवत्।
- प्रतापस्य सेना पर्वतीययुद्धेषु कुशला आसीत्।
- क्षीरात् संजायते विषम्।
- वयं तु भवता सह एव निवत्स्यामः।
- यद् रोचते भवद्भ्यः।
- दुष्टं धिक्।
- महेशः पापात् जुगुप्सते।
- वृक्षस्य उपरि खगाः सन्ति।
उत्तरम् :
- चतुर्थी – विभक्तिः, ‘रुच्’ धातुयोगे।
- तृतीया – विभक्तिः, ‘विना’ योगे।
- तृतीया – विभक्तिः, ‘सह’ योगे।
- चतुर्थी – विभक्तिः, ‘दा’ (दानार्थे) धातुयोगे।
- तृतीया – विभक्तिः, ‘सह’ योगे।
- पञ्चमी – विभक्तिः, ‘पृथक् ‘ योगे।
- द्वितीया – विभक्तिः, ‘निकषा’ योगे।
- तृतीया – विभक्तिः, ‘सह’ योगे।
- सप्तमी – विभक्तिः, ‘कुशलपदयोगे’।
- पंचमी – विभक्तिः, ‘जन्’ धातुयोगे।
- तृतीया – विभक्तिः, ‘सह’ योगे।
- चतुर्थी – विभक्तिः, ‘रुच्’ धातुयोगे।
- द्वितीया – विभक्तिः, ‘धिक’ योगे।
- पंचमी – विभक्तिः, ‘जुगुप्सा’ पदयोगे।
- षष्ठी – विभक्तिः, ‘उपरि’ पदयोगे।
प्रश्न 15.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) अर्चितः
(ii) स्वस्तिः
(iii) महत्तमः
(iv) जायते।
उत्तरम् :
पदम् वाक्य-प्रयोगः
(i) अर्चितः – तेन रामः विधिपूर्वकम् अर्चितः।
(ii) स्वस्तिः – बालकेभ्यः स्वस्तिः भवतु।
(iii) महत्तमः – भारतदेशः सर्वेषु देशेषु महत्तमः।
(iv) जायते – गंगा हिमालयात् जायते।
प्रश्न 16.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) प्रति
(ii) नमः
(iii) पटुतमा
(iv) सह।
उत्तरम् :
(i) प्रति – बालकः विद्यालयं प्रति गच्छति।
(ii) नमः – गुरवे नमः।
(iii) पटुतमा – रमा सर्वासु बालिकासु पटुतमा वर्तते।
(iv) सह – बालकाः मित्रैः सह क्रीडन्ति।
प्रश्न 17.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) धिक्
(ii) प्रशस्यतमः
(iii) रोचते
(iv) परितः।
उत्तरम् :
(i) धिक् – तान् दुर्जनान् धिक्।
(ii) प्रशस्यतमः – अस्य त्यागः समाजे प्रशस्यतमः वर्तते।
(iii) रोचते – मह्यम् पठनं रोचते।
(iv) परितः – विद्यालयं परितः वृक्षाः सन्ति।
प्रश्न 18.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) निकषा
(ii) पटुतरः
(iii) ददाति।
उत्तरम् :
(i) निकषा – ग्रामं निकषा वनम् अस्ति।
(ii) पटुतरः – सोहनः मोहनात् पटुतरः।
(iii) ददाति – नृपः भिक्षुकाय धनं ददाति।
प्रश्न 19.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) निपुणः
(ii) कुप्यति
(iii) धिक्।
उत्तरम् :
(i) निपुण: – गोपालः चित्रकलायां निपुणः।
(ii) कुप्यति – नृपः चौराय कुप्यति।
(iii) धिक् – धिक् पिशुनम्।
प्रश्न 20.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत
(i) पृच्छति
(ii) प्रभवति
(iii) कृते।
उत्तरम् :
(i) पृच्छति – पथिकः तम् जनं मागं पृच्छति।
(ii) प्रभवति – गंगा हिमालयात् प्रभवति।
(iii) कृते – इदं फलं बालकस्य कृते अस्ति।
प्रश्न 21.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) परितः
(ii) रोचते
(iii) पटुतरः।
उत्तरम् :
(i) परितः – ग्रामं परितः उद्यानं अस्ति।
(ii) रोचते – बालकाय मोदकं रोचते।
(iii) पटुतरः – रामः- मोहनातः पटुतरः।
प्रश्न 22.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत –
(i) धिक्
(ii) श्रेष्ठः
(iii) ऋते।
उत्तरम् :
(i) धिक् – धिक् कृष्णाभक्तम्।
(ii) श्रेष्ठ: – कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
(iii) ऋते – धनं ऋते सुखं न।
प्रश्न 23.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत।
उत्तरम् :
(i) निकषा – ग्रामं निकषा उद्यानं वर्तते।
(ii) सह – बालिका स्वमात्रा सह गच्छति।
(iii) निपुणा: – ते स्वकर्मणि नुिपणाः।
प्रश्न 24.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानसारेण वाक्यप्रयोगं करुत।
उत्तरम् :
- मम – अयं मम विद्यालयः।
- पटुतर: – रामः सोहनात् पटुतरः।
- कुशल: – सः कर्मणि कुशलः।
- अधितिष्ठति – हरिः वैकुण्ठमधितिष्ठति।
- उद्भवति – गङ्गा हिमालयात् उद्भवति।
प्रश्न 25.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत।.
उत्तरम् :
- गम् (गच्छ्) धातु – मोहनः गृहं गच्छति।
- स्वस्ति – स्वस्ति ते अस्तु।
- अनन्तरम् – भोजनमनन्तरं गोपालः भ्रमणार्थं गच्छति।
- उभयतः – ग्रामम् उभयतः नदी प्रवहति।
- याचते – भिक्षुकः नृपं धनं याचते।
प्रश्न 26.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत।
उत्तरम् :
- हा – हा कृष्णा भक्तम्।
- दा (धातु) – स: विप्रायः धनं ददाति।
- बहिः – ग्रामाद् बहि: विद्यालयः वर्तते।
- अग्रे – गुरोः अग्रे सः मौनं तिष्ठति।
- निपुण: – सः वीणावादने निपुणः।
प्रश्न 27.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत।
उत्तरम् :
- प्रति – सः गुरुं प्रति विनम्रः वर्तते।
- अनु – रक्षकः चौरं अनु धावति।
- विना – ज्ञानं विना सुखं न।
- समया – ग्रामं समया उद्यानं वर्तते।
- अन्तरा – रमेशं सुरेशं चान्तरा मोहनः अस्ति।
प्रश्न 28.
निम्नलिखितपदानां कारकनियमानुसारेण वाक्यप्रयोगं कुरुत।
उत्तरम् :
- साकम् – रामेण साकं मोहनः गच्छति।
- खल्वाट: – सः शिरसा खल्वाटः वर्तते।
- किम् – मूर्खेण पुत्रेण किम्।
- नमः – तस्मै श्री गुरवे नमः।
- स्वधा – पितृभ्यः स्वधा।
प्रश्न 29.
कारकनियमानुसारं निम्नलिखितवाक्यानि संशोधनीयानि –
- बालकं मोदकं रोचते।
- हिमालयेन गंगा प्रभवति।
- वृक्षे उपरि वानरः तिष्ठति।
- तुभ्यं मे हृदयं विश्वसिति।
- छात्रः पितुः सार्धम् उद्यानं गच्छति।
- पर्वतेभ्यः हिमालयः उच्चतमः अस्ति।
- नगरस्य परितः वृक्षाः सन्ति।
- माता गुरुतरा भूमिः।
उत्तरम् :
शुद्धवाक्यानि –
- बालकाय मोदकं रोचते।
- हिमालयात् गंगा प्रभवति।
- वृक्षस्य उपरि वानरः तिष्ठति।
- त्वयि मे हृदयं विश्वसिति।
- छात्रः पित्रा सार्धम् उद्यानं गच्छति।
- पर्वतेषु हिमालयः उच्चतमः अस्ति।
- नगरं परितः वृक्षाः सन्ति।
- माता गुरुतरा भूमेः।
प्रश्न 30.
अधोलिखितेषु अशुद्धवाक्येषु द्वे वाक्ये शुद्धं कृत्वा लिखत –
(i) वृक्षस्य परितः बालकाः सन्ति।
(ii) कविभिः कालिदासः श्रेष्ठः।
(iii) हरिं रोचते भक्तिः।
उत्तरम् :
शुद्ध वाक्य –
(i) वृक्षं परितः बालकाः सन्ति।
(ii) कविषु कालिदासः श्रेष्ठः।
(iii) हरये रोचते भक्तिः।
प्रश्न 31.
अधोलिखितेषु द्वयोः पदयोः संस्कृते वाक्यरचनां कुरुत –
(i) क्रुध्यति
(ii) काण:
(iii) विभेति।
उत्तरम् :
(i) पिता पुत्राय क्रुध्यति।
(ii) वृद्धः नेत्रेण काणः अस्ति।
(iii) सः सिंहात् विभेति।
प्रश्न 32.
अधोलिखितेषु रेखांकित-पदेषु प्रयुक्तविभक्त्याः विधायकं सूत्रं वार्तिकं वा लिखत।
(i) सः सन्मार्गम् अभिनिविशते।
(ii) जनन्या समं पुत्रः आपणं गच्छति।
(iii) ब्रह्मणः प्रजाः प्रजायन्ते।
उत्तरम् :
(i) ‘अभिनिविशश्च’ इति सूत्रेण द्वितीयाविभक्तिः।
(ii) ‘सहयुक्तेऽप्रधाने’ इति सूत्रेण तृतीयाविभक्तिः।
(iii) ‘जनिकर्तुः प्रकृतिः’ इति सूत्रेण पंचमीविभक्तिः।
प्रश्न 33.
अधोलिखितेषु अशुद्धवाक्येषु द्वे वाक्ये शुद्धं कृत्वा लिखत –
(i) वृक्षे उपरिकाकः तिष्ठति।
(ii) धनिकः भिक्षुकं वस्त्राणि यच्छति।
(iii) देवदत्तः नेत्रात् काणः।
उत्तरम् :
शुद्ध वाक्यानि –
(i) वृक्षस्य उपरि काकः तिष्ठति।
(ii) धनिकः भिक्षुकाय वस्त्राणि यच्छति।
(iii) देवदत्तः नेत्रेण काणः।
प्रश्न 34.
अधोलिखितेषु द्वयोः पदयोः संस्कृते वाक्यरचनां कुरुत –
(i) सार्धम्
(ii) त्रायते
(iii) स्पृह्यति।
उत्तरम् :
(i) पिता पुत्रेण सार्धं गच्छति।
(ii) नृपः चौरात् त्रायते।
(iii) बालिका पुष्येभ्यः स्पृह्यति।
प्रश्न 35.
अधोलिखितेषु कालांकितपदेषु प्रयुक्तविभक्त्याः विधायकं सूत्रं वार्तिकं वा लिखत –
(i) विद्यालय समया एव देवालयः वर्तते।
उत्तरम् :
“अभितः परितः समया निकषा हा प्रतियोगेऽपि” इति सूत्रेण द्वितीयाविभक्तिः।
(ii) अलं मल्लो मल्लाय।
उत्तरम् :
“नमः स्वस्तिस्वाहास्वधाऽलंवषड्योगाच्च” इति सूत्रेण चतुर्थीविभक्तिः।
(iii) मम पिता आजीविकायाः हेतोः कार्यशाला गच्छति।
उत्तरम् :
“षष्ठी हेतुप्रयोगे” इति सूत्रेण षष्ठीविभक्तिः।
प्रश्न 36.
अधोलिखितेषु अशुद्धवाक्येषु द्वे वाक्ये शुद्धं कृत्वा लिखत –
(i) मोहनः पर्यङ्के अधिशेते।
(ii) वृक्षैः फलानि पतन्ति।
(iii) वने पशवः सिंहेन बिभ्यन्ति।
उत्तरम् :
शुद्ध-वाक्यानि –
(i) मोहनः पर्यङ्कम् अधिशेते।
(ii) वृक्षेभ्यः फलानि पतन्ति।
(iii) वने पशवः सिंहात् बिभ्यन्ति।
प्रश्न 37.
अधोलिखितेषु द्वयोः पदयोः संस्कृते वाक्यरचनां कुरुत –
(i) बधिरः
(ii) स्वाहा
(iii) उद्भवति।
उत्तरम् :
(i) बधिरः-सः वृद्धः कर्णाभ्यां बधिरः।
(ii) स्वाहा-अग्नये स्वाहा।
(iii) उद्भवति-गङ्गा हिमालयात् उद्भवति।
प्रश्न 38.
निम्नलिखितवाक्यानि कारकनियमानुसारेण संशोधनीयानि –
(क) बालकः अध्यापकात् प्रश्नं पृच्छति।
(ख) महेशः प्रकृत्याः साधुः।
(ग) मां पुस्तकं पठ्यते।
(घ) धनिकः भिक्षुकं वस्त्राणि यच्छति।
(ङ) दुर्जनः सज्जने असूयति।
(च) जनः सिंहेन बिभेति
(छ) माता गुरुतरा भूमिः।
(ज) इदं फलं बालकं कृते वर्तते।
उत्तरम् :
शुद्धवाक्यानि –
(क) बालकः अध्यापकं प्रश्नं पृच्छति।
(ख) महेशः प्रकृत्या साधुः।
(ग) मया पुस्तकं पठ्यते।
(घ) धनिकः भिक्षुकाय वस्त्राणि यच्छति।
(ङ) दुर्जनः सज्जनाय असूयति।
(च) जनः सिंहात् बिभेति।
(छ) माता गुरुतरा भूमेः।
(ज) इदं फलं बालकस्य कृते वर्तते।
प्रश्न 39.
निम्नलिखितवाक्यानां कारकनियमानुसारेण संशोधनं कुरुत –
(क) सः नृपात् धनं याचते।
(ख) ग्रामस्य निकषा उपवनमस्ति।
(ग) सज्जनः सुखात् जीवति।
(घ) सः जटाभ्यः तापसः प्रतीयते।
(ङ) मां रुप्यकाणि देहि।
(च) दैत्येषु हरिः अलम्।
(छ) बालकः शिक्षकं निवेदयति।
(ज) नृपः चौराय त्रायते।
उत्तरम् :
शुद्धवाक्यानि –
(क) सः नृपं धनं याचते।
(ख) ग्रामं निकषा उपवनमस्ति।
(ग) सज्जनः सुखेन जीवति।
(घ) सः जटाभिः तापसः प्रतीयते।
(ङ) मह्यं रुप्यकाणि देहि।
(च) दैत्येभ्यः हरिः अलम्।
(छ) बालकः शिक्षकाय निवेदयति।
(ज) नृपः चौरात् त्रायते।
प्रश्न 40.
निम्नलिखितवाक्यानि कारकनियमानुसारेण संशोधनीयानि –
(क) वृक्षे उपरि काकः तिष्ठति।
(ख) सविता मातरं स्मरति।
(ग) भोजनेन कृते गच्छामि।
(घ) गृहस्य प्रति जनाः आगच्छन्ति।
(ङ) भोजेन राज्यं कविः दत्तम्।
उत्तरम् :
शुद्ध वाक्यानि –
(क) वृक्षस्य उपरि काकः तिष्ठति।
(ख) सविता मातुः स्मरति।
(ग) भोजनस्य कृते गच्छामि।
(घ) गृहं प्रति जनाः आगच्छन्ति।
(ङ) भोजेन राज्यं कवये दत्तम्।
प्रश्न 41.
निम्नलिखितवाक्यानि कारकनियमानुसारेण संशोधनीयानि –
(क) त्वम् राज्यस्य रक्षसि।
(ख) हरिः वैकुण्ठे अधिशेते।
(ग) विद्या विनयात् शोभते।
(घ) रामस्य समः कृष्ण।
(ङ) तव जनकं नमः।
उत्तरम् :
शुद्ध वाक्यानि –
(क) त्वम् राज्यं रक्षसि।
(ख) हरिः वैकुण्ठम् अधिशेते।
(ग) विद्या विनयेन शोभते।
(घ) रामेण समः कृष्णः।
(ङ) तव जनकाय नमः।