RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः
RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् समासः
समास : शाब्दिक अर्थ – ‘समसनं समासः’ अर्थात् बहुत से पदों को मिलाकर एक पद बन जाना समास कहलाता है। ‘सम्’ उपसर्गपूर्वक अस् (एक साथ रखना) धातु से ‘समास’ शब्द बना है।
जब अनेक पदों को एक साथ मिलाकर एक पद के समान बना लिया जाता है तो यह मिला हुआ पद समस्त (Compound) पद कहलाता है तथा यह पदों के मिलने की प्रक्रिया समसन या समास कहलाती है।
दूसरे शब्दों में, ‘दो’ या अधिक शब्दों को मिलाने या जोड़ने को समास कहते हैं।
समास शब्द की व्युत्पत्ति – सम् उपसर्गपूर्वक अस् धातु से घञ् प्रत्यय करने पर ‘समास’ शब्द निष्पन्न होता है। इसका अर्थ ‘संक्षिप्तीकरण’ है।
समास की परिभाषा – संक्षेप करना अथवा अनेक पदों का एक पद हो जाना समास कहलाता है। अर्थात् जब अनेक पद मिलकर एक पद हो जाते हैं तो उसे समास कहा जाता है। जैसे –
सीतायाः पतिः = सीतापतिः
यहाँ ‘सीतायाः’ और ‘पतिः’ ये दो पद मिलकर एक पद (सीतापतिः) हो गया है, इसलिए यही समास है। समास होने पर अर्थ में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है। जो अर्थ ‘सीतायाः पतिः’ (सीता का पति) इस विग्रह युक्त वाक्य का है, वही अर्थ ‘सीतापतिः’ इस समस्त शब्द का है।
पूर्वोत्तर विभक्ति का लोप – सीतायाः पतिः = सीतापतिः। इस विग्रह में ‘सीतायाः’ पद में षष्ठी विभक्ति है, ‘पतिः’ पद में प्रथमा विभक्ति सुनाई देती है। समास करने पर इन दोनों विभक्तियों का लोप हो जाता है। उसके बाद ‘सीतापति’ इस समस्त शब्द से पुनः प्रथमा विभक्ति की जाती है, इसी प्रकार सभी जगह जानना चाहिए।
समासयुक्त शब्द समस्त पद कहा जाता है। जैसे-सीतापतिः, राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः।
का अर्थ समझाने के लिए जिस वाक्य को कहा जाता है, वह वाक्य विग्रह कहलाता है। जैसे –
‘रमायाः पतिः’ यह वाक्य विग्रह है। विद्या एव धनं यस्य सः = विद्याधनः।
समास के भेद-समास पाँच प्रकार का होता है। यथा –
- केवलसमासः – विशेषसञ्ज्ञाविनिर्मुक्तः केवलसमासः प्रथमः।
- अव्ययीभावः – प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोव्ययीभावो द्वितीयः।
- तत्पुरुषः – प्रायेणोत्तरपदार्थप्रधानस्तत्पुरुषस्तृतीयः।
- बहुव्रीहिः – प्रायेणान्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहिश्चतुर्थः।
- द्वन्द्वः – प्रायेणोभयपदार्थप्रधानो द्वन्द्वः पञ्चमः।
समास में प्राय: दो पद होते हैं – पूर्वपद और उत्तरपद। पद का अर्थ पदार्थ होता है। जिस पदार्थ की प्रधानता होती है, उसी के अनुरूप ही समास की संज्ञा भी होती है। जैसे कि प्रायः पूर्वपदार्थ प्रधान अव्ययीभाव होता है। प्रायः उत्तरपदार्थ प्रधान तत्पुरुष होता है। तत्पुरुष का भेद कर्मधारय होता है। कर्मधारय का भेद द्विगु होता है। प्रायः अन्य पदार्थ प्रधान बहुव्रीहि होता है। प्राय: उभयपदार्थप्रधान द्वन्द्व होता है।
(i) अव्ययीभाव समास :
‘प्रायेण पूर्वपदार्थप्रधानोऽव्ययीभावो।’ जिसमें पूर्व पद का अर्थ प्रधान होता है वह अव्ययीभाव समास कहलाता है। इस समास में पहला शब्द अव्यय (उपसर्ग या निपात) होता है। बाद में आने वाला संज्ञा होता है। अव्ययीभाव समास वाले अधिकांश शब्द नपुं. एकवचन में रहते हैं। उनके रूप नहीं चलते। अव्ययी भाव समास के समस्त पद और विग्रह पद में अंतर होता है, क्योंकि किसी विशेष अर्थ से अव्यय शब्द आता है। उदाहरणार्थ ‘उपगङ्गं वाराणसी’-गंगा के समीप वाराणसी है। यहाँ ‘उप’ शब्द अव्यय है एवं पदार्थ है, अत: इसकी प्रधानता है।
अर्थात् जब विभक्ति आदि अर्थों में वर्तमान अव्यय पद का सुबन्त के साथ नित्य रूप से समास होता है, तब वह अव्ययीभाव समास होता है अथवा इसमें यह जानना चाहिए –
- इस समास का प्रथम शब्द अव्यय और द्वितीय संज्ञा शब्द होता है।
- अव्यय शब्द के अर्थ की अर्थात् पूर्व पदार्थ की प्रधानता होती है।
- समास के दोनों पद मिलकर अव्यय हो जाता है।
- अव्ययीभाव समास नपुंसकलिङ्ग के एकवचन में होता है। जैसे –
पाठ्यक्रम में निर्धारित अव्ययीभाव के उदाहरण इस प्रकार हैं
(i) ‘अनु’-अव्ययीभाव समास में ‘अनु’ उपसर्ग का प्रयोग ‘पश्चात्’ एवं योग्यता अर्थ में किया जाता है। यथा –
(iii) सह-अव्ययीभाव में ‘सह’ का प्रयोग ‘साथ’, ‘सहित’ अर्थ में होता है। यथा-
(v) ‘प्रति’-अव्ययीभाव में ‘प्रति’ उपसर्ग का प्रयोग वीप्सा ‘बार-बार’ अर्थ में होता है। यथा –
(ii) कर्मधारय समास :
समानाधिकरण तत्पुरुष की कर्मधारय संज्ञा होती है। दूसरे शब्दों में, विशेषण एवं विशेष्य का जो समास होता है, उसे कर्मधारय कहते हैं। इस समास में विशेषण का पहले प्रयोग होता है तथा बाद में विशेष्य का। दोनों पदों में एक ही विभक्ति रहती है।
उदाहरणार्थ –
1. (i) नीलोत्पलम्-नीलम् उत्पलम्। यहाँ नीलम् एवं उत्पलम् दोनों में समान विभक्ति है। नीलम् विशेषण है तथा उत्पलम् विशेष। (ii) कृष्णसर्पः-कृष्णः सर्पः। (iii) नीलकमलम्-नीलं कमलम्। (iv) सुन्दरबालकः सुन्दरः बालकः।
2. उपमानानि सामान्यवचनैः-उपमान वाचक सुबन्तों का समानधर्मवाचक शब्दों के साथ समास होता है और वह कर्मधारय समास कहलाता है। जैसे-घनश्यामः-घन इव श्यामः। शाकपार्थिवः-शाकप्रियः पार्थिवः। देव ब्राह्मण:-देव पूजकः ब्राह्मणः। पुरुष व्याघ्रः-पुरुषः व्याघ्रः इव। चन्द्रमुखम्-चन्द्र सदृशं मुखम्।
3. ‘एव’ (ही) के अर्थ में कर्मधारय समास होता है। जैसे-मुखकमलम्-मुखमेव कमलम्। चरणकमलम् चरणः एव कमलम्। इसी प्रकार मुखचन्द्रः। करकमलम्। नयनकमलम् आदि।
4. सुन्दर के अर्थ में ‘सु’ और कुत्सित के अर्थ में ‘कु’ लगता है। जैसे-सुपुरुषः-सुन्दर पुरुषः। कुपुरुषः-कुत्सितः पुरुषः। इसी प्रकार सुपुत्रः, कुनारी, कुदेशः आदि शब्द कर्मधारय के उदाहरण हैं।
अन्य उदाहरण –
(iii) द्विगु-समास :
संख्या पूर्वो द्विगुः – जब कर्मधारय समास में प्रथम शब्द संख्यावाचक हो तो द्विगु समास होता है। अधिकतर यह समाहार (एकत्रित या समूह) अर्थ में होता है। जैसे –
- त्रिलोकम् – त्रयाणां लोकानां समाहारः।
- चतुर्युगम् – चतुर्णा युगानां समाहारः।
- पंचपात्रम् – पंचानां पात्राणां समाहारः।
- त्रिभुवनम् – त्रयाणां भुवनानां समाहारः।
- पाण्मातुरः – षण्णां मातृणाम् अपत्यं पुमान्।
- पञ्चगवम् – पञ्चानां गवां समाहारः।
- सप्तग्रामम् – सप्तानां ग्रामाणां समाहारः।
- पञ्चकुमारि – पञ्चानां कुमारीणां समाहारः।
[नोट-समाहार अर्थ में समास में एकवचन ही रहता है, अन्य वचन नहीं। समास होने पर नपुंसकलिंग या स्त्रीलिंग बन जाते हैं। जैसे-त्रिलोकम्, त्रिलोकी, चतुर्युगम्, शताब्दी, दशाब्दी, पंचवटी।]
अन्य उदाहरण –
- सप्तानां दिनानां समाहारः = सप्तदिनम्
- पञ्चानां पात्राणां समाहारः = पञ्चपात्रम्
- त्रयाणां भुवनानां समाहारः = त्रिभुवनम्
- पञ्चानां रात्रीणां समाहारः = पञ्चरात्रम्
- चतुर्णा युगानां समाहारः = चतुर्युगम्
कभी-कभी द्विगु ईकरान्त स्त्रीलिङ्गी भी हो जाता है –
उदाहरण –
- त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
- पञ्चानां वटानां समाहारः = पञ्चवटी
- सप्तानां शतानां समाहारः = सप्तशती
- अष्टानां अध्यायानां समाहारः = अष्टाध्यायी
(iv) बहुव्रीहि समास :
‘अन्यपदार्थप्रधानो बहुव्रीहि’-जिस समास में अन्य पद के अर्थ की प्रधानता होती है, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जो भी पद समस्त हों, वे अपने अर्थ का बोध कराने के साथ साथ अन्य किसी व्यक्ति या वस्तु का बोध कराते हुए विशेषण की तरह काम करते होते हों तो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
बहुव्रीहि : भेद-इसके चार भेद हैं – (i) समानाधिकरण (ii) तुल्य योग (iii) व्यधिकरण (iv) व्यतिहार।
(i) समानाधिकरण बहुव्रीहि – जहाँ दोनों या सभी शब्दों की समान विभक्ति हो, उसे समानाधिकरण कहते हैं। इस समास में दोनों पदों में प्रायः प्रथमा विभक्ति ही रहती है। अन्य पदार्थ कर्ता को छोड़कर कर्म, करण आदि कोई भी हो सकता है, जैसे – (क) कर्म-प्राप्तम् उदकं यम् सः = प्राप्तोदकः। (ख) करण-हताः शत्रवः येन सः = हतशत्रुः। (ग) सम्प्रदान-दत्तं भोजनं यस्मै सः = दत्तभोजनः। (घ) अपादान-पतितं पर्णं यस्मात् सः = पतितपर्णः (वृक्ष)। (ङ) संबंध-पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (कृष्ण)।
इसी प्रकार दशाननः (रावण), चतुराननः (ब्रह्मा) चतुर्मुखः।
(च) अधिकरण-वीराः पुरुषाः यस्मिन् सः = वीरपुरुषः (ग्राम)।
(ii) तुल्ययोगः-इसमें ‘सह’ शब्द का तृतीयान्त पद से समास होता है। यथा-बान्धवैः सह = सबान्धवः, अनुजेन सह = सानुजः या सहानुजः। विनयेन सह = सविनयम्। इसी प्रकार-सुपुत्रः, सादरम्, सानुरोधम् आदि पद होते हैं।
(iii) व्यधिकरण-दोनों पदों में भिन्न-विभक्ति होने पर व्यधिकरण बहुव्रीहि होता है। जैसे-धनुष्पाणि: धनुः पाणौ यस्य सः। चक्रपाणि:-चक्रं पाणौ यस्य सः। चन्द्रशेखर:-चन्द्रः शेखरे यस्य सः। कुम्भजन्मा कुम्भात् जन्म यस्य सः।
(iv) व्यतिहार:-यह समास तृतीयान्त और सप्तम्यन्त शब्दों के साथ होता है और युद्ध का बोधक है। यथा केशेषु केशेषु गृहीत्वा इदं युद्धं प्रवृत्तम् = केशाकेशि। मुष्टिभिः मुष्टिभिः प्रात्येदं युद्धं प्रवृत्तम् = मुष्टामुष्टिः।
विशेष-समस्त पद का प्रथम शब्द यदि पुल्लिंग से बना हुआ स्त्रीलिंग हो तो समास होने पर पुल्लिंग रूप .. हो जाता है। यथा-रूपवती भार्या यस्य सः रूपवद्भार्यः।
अन्य उदाहरण –
- महान्तौ बाहु यस्य सः = महाबाहुः (विष्णुः)
- दश आननानि यस्य सः = दशाननः (रावणः)
- पीतम् अम्बरम् यस्य सः = पीताम्बरः (कृष्णः)
- चत्वारि मुखानि यस्य सः = चतुर्मुखः (बह्मा)
- चक्रं पाणौ यस्य सः = चक्रपाणिः (विष्णुः)
- शूलं पाणौ यस्य सः = शूलपाणिः (शिवः)
- चन्द्र इव मुखं यस्याः सा = चन्द्रमुखी. (नारी)
- पाषाणवत् हृदयं यस्य सः = पाषाणहृदयः (पुरुषः)
- कमलम् इव नेत्रे यस्य सः = कमलनेत्रः (सुन्दर आँखों वाला)
- चन्द्रः शेखरे यस्य सः = चन्द्रशेखरः (शिवः)
(v) द्वन्द्व समास :
‘उभयपदार्थ प्रधानो द्वन्द्वः’ – जहाँ समास में प्रायः दोनों पदों का अर्थ प्रधान होता है, वह द्वन्द्व समास कहलाता है।
चार्थे द्वन्द्वः – जहाँ पर दो या अधिक शब्दों का इस प्रकार समास हो कि उसमें च (और) अर्थ छिपा हो तो वह ‘द्वन्द्व’ समास होता है। द्वन्द्व-समास की पहचान है कि जहाँ अर्थ करने पर बीच में ‘और’ अर्थ निकले।
द्वन्द्व समास भेद
द्वन्द्व समास तीन प्रकार का होता है – (i) इतरेतर, (ii) समाहार, (iii) एकशेष।
1. इतरेतर द्वन्द्व-आपस में मिले हुए (इतर का इतर से योग) पदार्थों का एक में अन्वय होना इतरेतर योग कहलाता है। इसमें शब्दों की संख्या के अनुसार अंत में वचन होता है, अर्थात् दो वस्तुएँ हों तो द्विवचन, बहुत हों तो बहुवचन। प्रत्येक शब्द के बाद विग्रह ‘च’ लगता है। जैसे –
रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ (राम और कृष्ण)। इसी प्रकार सीतारामौ, उमाशंकरौ, रामलक्ष्मणौ, भीमार्जुनौ, पत्रं च पुष्पं च फलं च पत्रपुष्पफलानि। धर्मार्थों = धर्मश्च अर्थश्च। जननमरणौ = जननं च मरणं च। सूर्यचन्द्रौ = सूर्यः च चन्द्रः च। पार्वतीपरमेश्वरौ = पार्वती च परमेश्वरः च।
कुछ ध्यान.देने योग्य नियम –
(i) द्वन्द्वे घि-द्वन्द्व समास में घि संज्ञक पद का पूर्व प्रयोग होता है। जैसे-हरिहरौ-हरिश्च हरश्च। हरि (इकारान्त) की ‘घि’ संज्ञा होने से इसका पूर्व प्रयोग हुआ है।
(ii) अजाद्यदन्तम्-द्वन्द्व समास में अजादि और अदन्त पद का पूर्व प्रयोग होता है। जैसे-ईशकृष्णौ ईशश्च कृष्णश्च। यहाँ ‘ईश’ शब्द अजादि और अकारान्त है अत एव इसका प्रयोग हुआ है।
(iii) अल्पान्तरम्-‘अल्पाच्’ का अर्थ है-अल्प हैं अच् जिसमें। जिस शब्द में थोड़े स्वर होते हैं, उसका द्वन्द्व समास में पूर्व प्रयोग है। जैसे-शिवकेशवी-शिवश्व केशवश्च। इस विग्रह में ‘शिव’ अल्पान्तर है, अतः ‘शिव’ का पूर्व प्रयोग हुआ है।
अन्य उदाहरण –
- पार्वती च परमेश्वरश्च = पार्वतीपरमेश्वरौ
- रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
- धर्मश्च अर्थश्च कामश्च मोक्षश्च = धर्मार्थकाममोक्षाः
- सीता च रामश्च = सीतारामौ
- पुत्रश्च कन्या च = पुत्रकन्ये
- राधा च कृष्णश्च = राधाकृष्णौ
- धनञ्च जनञ्च यौवनञ्च = धनजनयौवनानि
2. समाहार-द्वन्द्व-इसमें अनेक पदों के समाहार (एकत्र उपस्थिति) का बोध होता है। इसमें समस्त. पद के अंत में प्रायः नपुंसकलिंग एकवचन होता है। जैसे-पाणी च पादौ च एषां समाहारः = पाणिपादम्, भेरी च पटहश्च अनयोः समाहारः = भेरीपटहम्। हस्तिनश्च अश्वाश्च एषां समाहारः = हस्त्यश्वम्। दधि च घृतं च अनयोः समाहारः दधिघृतम्। गौश्च महिषी च = गोमहिषम्। अहश्च दिवा च = अहर्दिवम्। सर्पश्च नकुलश्च = सर्पनकुलम्। अहश्च रात्रिश्च = अहोरात्रम्। वाक् च त्वक् च तयोः समाहारः = वाक्त्वचम्। त्वक् व स्त्रक् च तयोः समाहारः = त्वक्त्रजम्।
अन्य उदाहरण –
आहारश्च निद्रा च भयं च इति एतेषां समाहार = आहारनिद्राभयम्
पाणी च पादौ च = पाणिपादम्
यवाश्च चणकाश्च = यवचणकम्
पुत्रश्च पौत्रश्च = पुत्रपौत्रम्
3. एकशेष द्वन्द्व – एक विभक्ति वाले अनेक समस्त समानाकार पदों में जहाँ एक ही पद शेष रह जाये और अर्थ के अनुसार उसमें द्विवचन या बहुवचन हो वहाँ एकशेष समास होता है। जैसे-वृक्षश्च वृक्षश्च = वृक्षौ। हंसी च हंसश्च = हंसौ। पुत्रश्च दुहिता च = पुत्रौ। माता च पिता च = पितरौ।
विशेष-जहाँ एक पद शेष रह जाता है उन समासों को एकशेष कहते हैं। वास्तव में एकशेष कोई समास नहीं, अपितु ‘एकशेष वृत्ति’ नाम की भिन्न प्रकार की विधि है। एकशेष विधि में शेष रहने वाले पद चले जाने वाले पद के अर्थ को भी कहता है।
अभ्यासार्थ प्रश्नोत्तराणि
बहुविकल्पात्मकप्रश्नाः –
प्रश्न 1.
यथोचितं क्रियाताम् इति कथयित्वा सर्वे अगच्छन्।
(अ) उचितम् यथा
(ब) उचितम् यथम्
(स) चितम् अनतिक्रम्य
(द) उचितस्य अनतिक्रम्य
उत्तरम् :
(स) चितम् अनतिक्रम्य
प्रश्न 2.
मयूरः साट्टहासम् प्रविश्य वदति।
(अ) अट्टहासस्य सह
(ब) अट्टहासेन सहितं
(स) अट्टहासस्य सहितम्
(द) अट्टहासेन सहितम्
उत्तरम् :
(द) अट्टहासेन सहितम्
प्रश्न 3.
द्रौपदी सकरुणम् भीमम् अवदत्।
(अ) करुणया सहितया
(ब) करुणेन सहितम्
(स) सह च करुणा च
(द) करुणया सहितम्
उत्तरम् :
(द) करुणया सहितम्
प्रश्न 4.
सर्वे आगच्छन्तु इच्छाम् अनतिक्रम्य च भोजनं कुर्युः।
(अ) यथेच्छा
(ब) उपेच्छम्
(स) यथेच्छम्
(द) सेच्छम्
उत्तरम् :
(स) यथेच्छम्
प्रश्न 5.
उपगृहम् वृक्षाः सन्ति।
(अ) गृहात् निकटम्
(ब) गृहस्य समीपम्
(स) गृहस्य पश्चात्
(द) गृहे एव
उत्तरम् :
(ब) गृहस्य समीपम्
प्रश्न 6.
सः स्नेहेन सह अवदत्।
(अ) सहस्नेहः
(ब) सस्नेहम्
(स) स्नेहसहितम्
(द) सस्नेहः
उत्तरम् :
(ब) सस्नेहम्
प्रश्न 7.
एतत् निर्जनम् वनम् अस्ति।
(अ) निर्जनम्
(ब) जनानाम् अभावः
(स) नि जनम्
(द) अभावः जनम्
उत्तरम् :
(ब) जनानाम् अभावः
प्रश्न 8.
यथेच्छम् भोजनं कुरु।
(अ) इच्छाम् अनतिक्रम्य
(ब) इच्छामतिक्रम्य
(स) अनतिक्रम्य इच्छाम्
(द) इच्छाम् यथा
उत्तरम् :
(अ) इच्छाम् अनतिक्रम्य
प्रश्न 9.
प्रत्येकम् भिक्षुकाय अन्नं देहि।
(अ) एकम् प्रति
(ब) एकैकम्
(स) प्रति एकम्
(द) एकम् एकम् प्रति
उत्तरम् :
(द) एकम् एकम् प्रति
प्रश्न 10.
माता पुत्रं स्नेहेन सह वदति।
(अ) सस्नेहा
(ब) सस्नेहौ
(स) सस्नेहम्
(द) सस्नेहेन
उत्तरम् :
(स) सस्नेहम्
प्रश्न 11.
यमुनायाः समीपम् दिल्ली अस्ति।
(अ) यमुनासमीपम्
(ब) उपयमुनम्
(स) प्रतियमुनम्
(द) यमुनातरम्
उत्तरम् :
(ब) उपयमुनम्
प्रश्न 12.
प्रत्येकं पर्वणि समारोहः भवति।
(अ) प्रति एकम्
(ब) एकम् प्रति
(स) एकेकम्
(द) एकम् एकम् प्रति
उत्तरम् :
(द) एकम् एकम् प्रति
प्रश्न 13.
विधिम् अनतिक्रम्य प्रत्येकं कार्यं करणीयम्।
(अ) यथाविधिः
(ब) यथाविधिम्
(स) यथाविधि
(द) विध्यनतिक्रम्य
उत्तरम् :
(स) यथाविधि
प्रश्न 14.
ततः प्रविशन्ति श्रीकृष्णश्च युधिष्ठिरश्च अर्जुनश्च।
(अ) श्रीकृष्णयुधिष्ठिरार्जुनाः
(ब) श्रीकृष्णयुधिष्ठिरौ
(स) श्रीकृष्णयुधिष्ठिरर्जुनाः
(द) श्रीकृष्णार्जुनाः
उत्तरम् :
(अ) श्रीकृष्णयुधिष्ठिरार्जुनाः
प्रश्न 15.
प्रबुद्धौ दम्पती आश्चर्येण परस्परम् अवलोकयन्तौ अतिष्ठताम्।
(अ) पतिः च पत्नी च।
(ब) जाया च पतिश्च
(स) पति च पत्नी च तयोः समाहारः
(द) पतिम् च पत्नीम् च
उत्तरम् :
(ब) जाया च पतिश्च
प्रश्न 16.
कलहेन च विवादेन च समयं वृथा मा यापयेत।
(अ) कलहविवादाभ्याम्
(ब) कलहविवादे
(स) कलहविवादौ
(द) कलहविवादेन
उत्तरम् :
(अ) कलहविवादाभ्याम्
प्रश्न 17.
शुकपिको वदतः।
(अ) शुकः पिकस्य च
(ब) शुके च पिके च
(स) शुकाः पिकाः
(द) शुकः च पिकः च
उत्तरम् :
(द) शुकः च पिकः च
प्रश्न 18.
लवः च कुशः च सीतायाः पुत्रौ।
(अ) लवकुशौ
(ब) लवकुशम्
(स) लवकुशे
(द) लवकुशाः
उत्तरम् :
(अ) लवकुशौ
प्रश्न 19.
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।
(अ) पार्वती च परमेश्वरः च
(ब) पार्वती परमेश्वराः
(स) पार्वती च परमेश्वरौ च
(द) पार्वती च परमेश्वरम् च
उत्तरम् :
(अ) पार्वती च परमेश्वरः च
प्रश्न 20.
भीमार्जुनौ युद्ध गच्छतः।
(अ) भीमः च अर्जुनः च
(ब) भीमम् अर्जुनम् च
(स) भीमे अर्जुने
(द) अर्जुनेः
उत्तरम् :
(अ) भीमः च अर्जुनः च
प्रश्न 21.
भीमौ वयम् अहर्निशम् सेवामहे।
(अ) अहः च निशा च
(ब) अहन् च निशा च
(स) अहः निशः च
(द) अहनि च निशा च
उत्तरम् :
(अ) अहः च निशा च
प्रश्न 22.
पाणी च पादौ च प्रक्षाल्य भोक्तव्यम्।
(अ) पाणीपादौ
(ब) पाणिपादौ
(स) पाणिपादम्
(द) पणिपादाः
उत्तरम् :
(स) पाणिपादम्
प्रश्न 23.
श्रीकृष्णार्जुनौ प्रविशतः।
(अ) श्रीकृष्णः अर्जुनौ च
(ब) श्रीकृष्णम् अर्जुनम् च
(स) श्रीकृष्णः च अर्जुनः च
(द) श्रीकृष्णस्य अर्जुनः
उत्तरम् :
(स) श्रीकृष्णः च अर्जुनः च
प्रश्न 24.
कोकिलमयूरौ एकस्मिन् वृक्षे वसतः।
(अ) कोकिलौ च मयूरौ च
(ब) कोकिलः च मयूरौ च
(स) कोकिलः च मयूरः च
(द) कोकिला: च मयूराः च
उत्तरम् :
(स) कोकिलः च मयूरः च
प्रश्न 25.
माता च पिता च वार्तालापं कुरुतः।
(अ) मातरौ
(ब) पितरौ
(स) मातृपितृ
(द) मातरः
उत्तरम् :
(ब) पितरौ
प्रश्न 26.
कर्मपुरानाम्नि नगरे प्रच्छन्नं भाग्यं यस्य सः नाम कुमारः अवसत्।
(अ) प्रच्छन्नभाग्यम्
(ब) प्रच्छन्नभाग्यस्य
(स) प्रच्छन्नभाग्याः
(द) प्रच्छन्नभाग्यः
उत्तरम् :
(द) प्रच्छन्नभाग्यः
प्रश्न 27.
यदि अहं कृष्णवर्णः तर्हि श्रीरामस्य वर्णः कीदृशः?।
(अ) कृष्णः वर्णः
(ब) कृष्णं वर्णं यस्य तस्य
(स) कृष्णः वर्णः यस्य सः
(द) कृष्ण वर्ण यस्य सः
उत्तरम् :
(स) कृष्णः वर्णः यस्य सः
प्रश्न 28.
शान्तं चित्तं यस्य सः प्रच्छन्नभाग्यः हलकार्यं कर्तुं प्रारभत।
(अ) शान्तचित्तः
(ब) शान्तचित्तम्
(स) शान्तं चित्तम्
(द) सचित्तम्
उत्तरम् :
(अ) शान्तचित्तः
प्रश्न 29.
शीतलजले अहमेव स्थितप्रज्ञः इव तिष्ठामि।
(अ) स्थितः प्रज्ञः
(ब) स्थितम् प्रज्ञम्
(स) स्थिता प्रज्ञा यस्य सः
(द) स्थितः प्रज्ञः यस्याः सा
उत्तरम् :
(स) स्थिता प्रज्ञा यस्य सः
प्रश्न 30.
अयम् पीतानि अम्बराणि यस्य सः आगच्छति।
(अ) पीताम्बराणि
(ब) पीताम्बरम्
(स) पीताम्बरः
(द) पीताम्बराः
उत्तरम् :
(स) पीताम्बरः
प्रश्न 31.
नीलकण्ठः पर्वते वसति।
(अ) नीलः कण्ठः यस्मिन्
(ब) नीलः कण्ठः
(स) नीलं च कण्ठं च
(द) नीलं कण्ठं यस्य सः
उत्तरम् :
(द) नीलं कण्ठं यस्य सः
प्रश्न 32.
पापम् एव कर्म यस्य सः तेन द्रौणिना मे पुत्राः हताः।
(अ) पापकर्मण
(ब) पापकर्मणा
(स) पापकर्म
(द) पापकर्मी
उत्तरम् :
(ब) पापकर्मणा
प्रश्न 33.
दिने सहस्राः अंशवः यस्य सः भासते।
(अ) सहस्र अंशुः
(ब) सहस्रांशुः
(स) अंशुसहस्र
(द) सहस्राशंवः
उत्तरम् :
(ब) सहस्रांशुः
प्रश्न 34.
विमूढधीः कीदृशी वाणी वदति?
(अ) विमूढाधी:
(ब) विमूढा धीया यस्य सः
(स) विमूढा धीः यस्य सः
(द) विमूढैः धी यस्मिन् तत्.
उत्तरम् :
(स) विमूढा धीः यस्य सः
प्रश्न 35.
समुपजातविवेकः प्रच्छन्नभाग्यः स्वगृहमागच्छत्।
(अ) समुपजातः विवेकः येन सः
(ब) समुपजातम् विवेकः यस्य सः
(स) समुपजातः विवेकः यस्मिन् सः
(द) विवेकः उपजातः यस्य सः
उत्तरम् :
(स) समुपजातः विवेकः यस्मिन् सः
प्रश्न 36.
अव्ययीभावसमासस्य उदाहरणम् अस्ति –
(अ) पीताम्बरः
(ब) नीलकमलम्
(स) यथाशक्तिः
(द) त्रिलोकी
उत्तरम् :
(स) यथाशक्तिः
प्रश्न 37.
बहुव्रीहिसमासस्य उदाहरणम् अस्ति –
(अ) महापुरुषः
(ब) चतुर्युगम्
(स) उपकृष्णम्
(द) प्राप्तोदकः
उत्तरम् :
(द) प्राप्तोदकः
प्रश्न 38.
कर्मधारयसमासस्य उदाहरणम् अस्ति –
(अ) पीताम्बरम्
(ब) पीताम्बरः
(स) निर्मक्षिकम्
(द) पञ्चपात्रम्
उत्तरम् :
(अ) पीताम्बरम्
प्रश्न 39.
द्विगुसमासस्य उदाहरणम् अस्ति –
(अ) दशाननः
(ब) दशपात्रम्
(स) अनुरथम्
(द) महापुरुषः
उत्तरम् :
(ब) दशपात्रम्
अतिलघूत्तरात्मक/लघूत्तरात्मकप्रश्नाः –
प्रश्न 1.
उदाहरणमनुसृत्य रिक्तस्थानानां पूर्तिः कोष्ठकात् समुचितैः समस्तपदैः कुरुत –
उदाहरण – तौ लवकुशौ वाल्मीके: आश्रमे पठतः। (लवकुशे/लवकुशौ)
- ……………. जनः नित्यकर्म कृत्वा प्रातराशं करोति। (विशालवृक्षः/सुप्तोत्थितः)
- त्रयाणां लोकानां समाहारः …………….. इति कथ्यते। (त्रिलोकी/त्रिलोकम्)
- ऋषेः आश्रमः …………….. अस्ति। (प्रतिगृहम्/उपगङ्गम्)
- तव …………….. मलिनम् अस्ति। (पाणिपादाः/पाणिपदम्)
- सैनिकः व्रणयुक्तः जातः। (स्वर्गपतित:/अश्वपतितः)
- ……………. जीवनस्य उद्देश्याः सन्ति। (धर्मार्थकाममोक्ष/धर्मार्थकाममोक्षाः)
उत्तरम् :
- सुप्तोत्थितः।
- त्रिलोकम्।
- उपगङ्गम्।
- पाणिपादम्।
- अश्वपतितः।
- धर्मार्थकाममोक्षाः।
प्रश्न 2.
अधोलिखितवाक्येषुस्थूलपदानि आश्रित्यसमस्तपदंविग्रहंवालिखत –
यथा – भिक्षुकः प्रत्येकं गृहं गच्छति। एकम् एकम् इति
- शरणम् आगतः तु सदैव रक्षणीयः। …………………..
- विद्यया हीनः छात्रः न शोभते। …………………..
- असत्यं तु त्याज्यं भवति। …………………..
- रामः महाराजः आसीत्। …………………..
- सीता च रामः च वनम् अगच्छताम्। …………………..
- तडागः नीलोत्पलैः सुशोभते। …………………..
उत्तरम् :
- शरणागतः।
- विद्याहीनः।
- न सत्यम्।
- महान् च असौ राजा।
- सीतारामौ।
- नीलैः उत्पलैः।
प्रश्न 3.
उदाहरणानि पठित्वा तदनुसारं विग्रहं समासनामानि च लिखत।
उदाहरण –
पाणी च पादौ च तेषां समाहारः – पाणिपादम् (समाहार द्वन्द्व)
माता च पिता च इति – मातापितरौ (इतरेतर द्वन्द्व)
माता च पिता च इति – पितरौ (एकशेष)
उत्तरम् :
- ब्राह्मणी – ब्राह्मणी च ब्राह्मणश्च इति (एकशेष)
- सुखदुःखम् – सुखं च दुःखं च तयोः समाहारः (समाहार द्वन्द्व)
- शिरोग्रीवम् – शिरश्च ग्रीवा च तयोः समाहारः (समाहार द्वन्द्व)
- रामलक्ष्मणभरताः – रामश्च लक्ष्मणश्च भरतश्च इति (इतरेतर द्वन्द्व)
- अजौ – अजा च अजश्च इति (एकशेष)
- बालकाः – बालकश्च बालकश्च बालकश्च (एकशेष)
- विद्याधनम् – विद्या एव धनम् (कर्मधारय)
- नरसिंहः – नरः सिंह इव (कर्मधारय)
- प्रत्यक्षम् – अक्षम् अक्षम् प्रति (अव्ययीभाव)
- दशाननः – दश आननानि यस्य सः (बहुव्रीहि)
प्रश्न 4.
अधोलिखित रेखाङ्कित पदेषु समस्तपदानां विग्रहम् अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत
(i) कृष्णकाकः कोटरे वसति।
(ii) वने धेनुपन्नगौ विचरतः स्म।
(iii) तत् जनानाम् अभावः वनम् आसीत्।
उत्तरम् :
(i) कृष्णः काकः इति, कर्मधारयसमासः।
(ii) धेनुः च पन्नगश्च, द्वन्द्वसमासः।
(iii) निर्जनम्, अव्ययीभावसमासः।
प्रश्न 5.
अधोलिखित रेखाङ्कित पदेषु समस्तपदानां विग्रहम् अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत–
(i) अहो! इदं तु विशालभवनं विद्यते। .
(ii) भरतशत्रुघ्नौ भ्रातरौ आस्ताम्।
(iii) दिनं दिन प्रति योगाभ्यास: कर्तव्यः।
उत्तरम् :
(i) विशालम् भवनम् इति, कर्मधारयसमासः।
(ii) भरतश्च शत्रुघ्नश्च, द्वन्द्वसमासः।
(iii) प्रतिदिनम्, अव्ययीभावसमासः।
प्रश्न 6.
अधोलिखितरेखाङ्कित-पदेषु समस्तपदानां विग्रहम् अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत
(i) रमेशः प्रतिवारं प्रयासं करोति।
(ii) असौ महाराजः अस्ति।
(iii) माता च पिता च गच्छतः।
उत्तरम् :
(i) वारं वारं प्रति, अव्ययीभावसमासः।
(ii) महान् राजा इति, कर्मधारयसमासः।
(iii) मातापितरौ, द्वन्द्वसमासः।
प्रश्न 7.
अधोलिखितरेखांकित पदेषु समस्तपदानां विग्रहम् अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखतु
- गोविन्दः यथाशक्ति दानं ददाति।
- घनश्यामः नित्यं विद्यालयं गच्छति।
- राजेशः शिवं च केशवं च नमति।
उत्तरम् :
- शक्तिम् अनतिक्रम्य, अव्ययीभावसमासः।
- घन इव श्यामः, कर्मधारयसमासः।
- शिवकेशवौ, द्वन्द्वसमासः।
प्रश्न 8.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितसमस्तपदानां विग्रहम् अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामानि लिखत
(i) अहं पीताम्बरं धारयामि।
(ii) तत्र केशवः गोपालः च कन्दुकेन क्रीडतः।
(iii) मूर्खाः प्रतिकूलम् आचरन्ति।
उत्तरम् :
(i) पीतम् अम्बरम्, कर्मधारयसमासः।
(ii) केशवगोपालौ, द्वन्द्वसमासः।
(iii) कूलं कूलं प्रति, अव्ययीभावसमासः।
प्रश्न 9.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकित समस्तपदानां विग्रहं अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत
(i) श्रमिकः यथाशक्ति कार्यं करोति।
(ii) उद्याने कृष्णसर्पः निवसति।
(iii) अत्र शिवः केशवश्च स्तः।
उत्तरम् :
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्य, अव्ययीभावसमासः।
(ii) कृष्णः सर्पः, कर्मधारयसमासः।
(iii) शिवकेशवौ, द्वन्द्वसमासः।
प्रश्न 10.
अधोलिखित वाक्येषु रेखांकित समस्त पदानां विग्रहं अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत
(i) मम पुत्रस्य नाम घनश्यामः अस्ति।
(ii) अहं पार्वती च परमेश्वरं च वन्दे।
(iii) इदं स्थानं निर्जलम् अस्ति।
उत्तरम् :
(i) घन इव श्यामः, कर्मधारयसमासः।
(ii) पार्वतीपरमेश्वरौ, द्वन्द्वसमासः।
(iii) जलस्य अभावः, अव्ययीभावसमासः।
प्रश्न 11.
अधोलिखित समस्तपदानां विग्रहं अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत
(i) सचक्रम्।
(ii) मुखकमलम्।
(iii) वसन्तश्च ग्रीष्मश्च शिशिरश्च।
उत्तरम् :
(i) चक्रेण सह, अव्ययीभावसमासः।
(ii) मुखं कमलम् इच, कर्मधारयसमासः।
(iii) वसन्तग्रीष्मशिशिराः, द्वन्द्वसमासः।
प्रश्न 12.
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितसमस्तपदानां विग्रहं अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत –
(क) तया वृद्धदासी आलोकिता।
(ख) हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः।
(ग) सः चक्रेण सह गच्छति।
उत्तरम् :
(क) वृद्धा दासी (वृद्धा च असौ दासी), कर्मधारयसमासः।
(ख) हयनागाः, द्वन्द्वसमासः।
(ग) सचक्रम्, अव्ययीभावसमासः।
प्रश्न 13.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखाङ्कितपदानां समासं विग्रहं वा कृत्वा समासस्य नामापि लिखत –
(i) त्वमसि त्रिभुवनेषु धन्या।
(ii) कुत्रोऽत्र निर्जने वने तण्डुलानणं सम्भवः?
(iii) कपोतः सदर्पम् आह।
(iv) सर्वे कपोताः तत्रोपविष्टाः।
(v) अल्पानां वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका भवति।
(vi) स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः।
(vii) राष्ट्रस्य उत्थानपतने राष्ट्रियान् अवलम्ब्य भवतः।
(viii) विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये।
(ix) एनं बालमृगेन्द्र मुञ्च।
(x) रोचते मे एष भद्रमयूरः।
(xi) एतां किल मातापितरौ एव गृहीतुं शक्यते।
(xii) राजा सहर्ष मनसि विचारयति।
(xiii) त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।
(xiv) प्रतापः धीरनायकः आसीत्।
(xv) अहर्निशं जागरणीयम्।
(xvi) सः शक्तिम अनतिक्रम्य कार्यं करोति।
(xvii) अत्र जनानाम् अभावः वर्तते।
(xviii) जगतः पितरौ वन्दे।
(xix) अयं महापुरुषः वर्तते।
(xx) अस्य मीन इव नयनम्।
उत्तरम् :
(i) त्रयाणां भुवनानां समाहारः, तेषु, द्विगुसमासः।
(ii) निर्गतः जनः इति, तस्मिन्, अव्ययीभावः।
(iii) दर्पण सहितम्, कर्मधारयः।
(iv) सर्वकपोताः, कर्मधारयः।
(v) अल्पवस्तूनाम्, कर्मधारयः।
(vi) सर्वे मानवाः, कर्मधारयः।
(vii) उत्थानं च पतनं च, द्वन्द्वः।
(viii) शस्त्रशास्त्रे, द्वन्द्वः।
(ix) बालं मृगेन्द्रम्, कर्मधारयः।
(x) भद्रः मयूरः, कर्मधारयः।
(xi) माता च पिता च, द्वन्द्वः।
(xii) हर्षेण सहितम्, कर्मधारयः।
(xiii) शूलं पाणौ यस्य सः, बहुव्रीहिः।
(xiv) धीरः नायकः, कर्मधारयः
(xv) अहञ्च निशा च, द्वन्द्वः।
(xvi) यथाशक्तिः , अव्ययीभावः।
(xvii) निर्जनम्, अव्ययीभावः।
(xviii) माता च पिता च, द्वन्द्वः।
(xix) महान् च असौ पुरुषः, कर्मधारयः।
(xx) मीननयनम, कर्मधारयः।
प्रश्न 14.
अधोलिखितसमस्तपदानां विग्रहं अथवा विग्रहपदानां समासं कृत्वा समासस्य नामापि लिखत। .
उत्तरम् :
प्रश्न 15.
निम्नलिखितसमस्तपदानां संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नाम लिखत।
उत्तरम् :
प्रश्न 17.
निम्नलिखितयोः सामासिकपदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नाम लिखत
(i) देशभक्तः
(ii) त्रिलोकी।
उत्तरम् :
(i) देशस्य भक्तः, तत्पुरुषसमासः।
(ii) त्रयाणां लोकानां समाहारः इति, द्विगुसमासः।
प्रश्न 18.
निम्नलिखितयोः सामासिकपदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नाम लिखत
(i) उपकृष्णम्,
(ii) चन्द्रशेखरः।
उत्तरम् :
(i) कृष्णस्य समीपम्, अव्ययीभावसमासः।
(ii) चन्द्रः शेखरे यस्य सः, बहुव्रीहिसमासः।
प्रश्न 19.
निम्नलिखितयोः समासविग्रहयोः संस्कृते सामासिकपदं कृत्वा समासस्य नाम लिखत
(i) माता च पिता च
(ii) ग्रामं गतः।
उत्तरम् :
(i) मातापितरौ, द्वन्द्वसमासः।
(ii) ग्रामगतः, द्वितीयातत्पुरुषः।
प्रश्न 20.
निम्नलिखितपदयोः संस्कृते समासविग्रहं कृत्वा समासस्य नाम लिखत
(i) यथाशक्तिः
(ii) दुष्टहृदयः।
उत्तरम् :
(i) शक्तिम् अनतिक्रम्य, अव्ययीभावसमासः।
(ii) दुष्टं हृदयं यस्य सः, बहुव्रीहिसमासः।
प्रश्न 21.
निम्नलिखितपदयोः समस्तपदं निर्मित्वा समासस्य नामोल्लेखं कुरुत
(i) कुत्सितः पुरुषः
(ii) द्वयोः रात्र्योः समाहारः।
उत्तरम् :
(i) कुपुरुषः, कर्मधारयसमासः।
(ii) द्विरात्री, द्विगुसमासः।