RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः
RBSE Solutions for Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः
Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः
RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः अभ्यास-प्रश्नाः
RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः वस्तुनिष्ठ-प्रश्नाः
1. कस्तूरी कस्मात् जायते
(अ) मृगयातः
(आ) मार्गात्
(इ) मृगात्
(ई) मृगात् मार्गात् च
2. भोजनान्ते किं पेयम्
(अ) तक्रम्
(आ) नक्रम्
(इ) शक्रम्
(ई) वक्रम्
3. ‘भा’ कस्य सारम् अस्ति
(अ) रवेः
(आ) कवेः
(इ) समरस्य
(ई) रवेः, कवेः, समरस्य च
4. ‘सीमन्तिनीषु का शान्ता’-इत्यस्मिन् वाक्ये आद्यन्ताक्षरौ स्त
(अ) शान्ता
(आ) सीता
(इ) सीषुता
(ई) सीषुकाता
5. ‘त्वं दास्यसि’-इत्यस्य अर्थोऽस्ति
(अ) त्वं वितरिष्यसि
(आ) त्वं दासी असि
(इ) अ, आ इत्युभयमपि
(ई) कश्चिद् अन्यः एवार्थः
6. दासी + असि = दास्यसि-इत्यत्र सन्धिरस्ति
(अ) यण् सन्धिः
(आ) गुणसन्धि
(इ) अयादिसन्धिः
(ई) पूर्वरूपसन्धिः
7. नेच्छामि-इत्यस्य सन्धिविच्छेदः अस्ति
(अ) नेच्छा + मि.
(आ) ने + च्छामि
(इ) नच् + इच्छामि
(ई) न + इच्छामि
8. दृष्ट्वा-इत्यस्य व्याकरणं किमस्ति
(अ) दृश् + क्त्वा
(आ) दृक् + क्त्वा
(इ) दृश् + ट्वा
(ई) दृश् + इष्ट्वा
उत्तरम्:
1. (इ)
2. (अ)
3. (अ)
4. (आ)
5. (इ)
6. (अ)
7. (ई)
8. (अ)
RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः लघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
करिणां कुलं को हन्ति?
(हाथियों के कुल को कौन मारता है?)
उत्तरम्:
करिणां कुलं सिंहः हन्ति।
(हाथियों के कुल को शेर मारता है।)
प्रश्न 2.
कति ईतयः? ईतित्रयस्य नामोल्लेखं कुर्वन्तु।
(ईतियाँ कितनी होती हैं? तीन ईतियों के नाम लिखिए।)
उत्तरम्:
ईतयः तिस्स्रः। तासां नामानि सन्ति-अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभ मूषकादीनां जन्तूनां प्रकोपः।
(ईतियाँ तीन होती हैं। उनके नाम हैं-अधिक वर्षा होना, वर्षा न होना, टिड्डी, चूहे आदि का प्रकोप ।)
प्रश्न 3.
समरस्य सारं किमस्ति?
(युद्ध का सार क्या है?)
उत्तरम्:
समरस्य सारम् रथी अस्ति।
(युद्ध का सारे वीर होता है।)
प्रश्न 4.
पिबाम्यहम्-इत्यस्मिन् कः सन्धिः?
(‘पिबाम्यहम्’ इसमें कौन-सी सन्धि है?)
उत्तरम्:
पिबामि + अहम्
(यण् सन्धिः)।
प्रश्न 5.
द्रोणः हर्षमुपागतः-अत्र द्रोणशब्दस्य अर्थद्वयं किमस्ति?
(‘द्रोण: हर्षमुपागतः’ यहाँ द्रोण के दो अर्थ क्या हैं?)
उत्तरम्:
द्रोणः (1) कौरवपाण्डवानां गुरुः द्रोणाचार्यः, (2) काकः इति द्रोणस्य अर्थद्वयमस्ति।
((1) कौरव-पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य, (2) कौवा, ये द्रोण के दो अर्थ हैं।)
प्रश्न 6.
कं बलवन्तं न बाधते शीतम्?
(किस बलवान को शीत पीड़ा नहीं देता?)
उत्तरम्:
कम्बलवन्तं न बाधते शीतम्।
(कम्बल वाले की शीत पीड़ित नहीं करता।)
प्रश्न 7.
कं संजघान कृष्णः?
(कृष्ण ने किसको मारा?)
उत्तरम्:
कंसं जघान कृष्णः।
(कृष्ण ने कंस को मारा।)
प्रश्न 8.
संजघान-इत्यत्र कः उपसर्गः?
(‘संजघान’ में कौन-सा उपसर्ग है?)
उत्तरम्:
‘सम्’ इति अत्र उपसर्गः।
(यहाँ सम् उपसर्ग है।)
RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः निबन्धात्मक प्रश्ना:
प्रश्न 1.
“भोजनान्ते च ….. दुर्लभम् ॥” अस्याः प्रहेलिकाया: हिन्द्या विवरणं कुर्वन्तु।
(“भोजनान्ते च ….. दुर्लभम्।” इस पहेली का हिन्दी में विवरण लिखिए।)
उत्तरम्:
श्लोक सं. 2 की संस्कृत व्याख्या की हिन्दी देखिए।
प्रश्न 2.
“केशवं पतितं दृष्ट्वा ….. केशव केशव ॥” अस्याः प्रहेलिकायाः विवरणं संस्कृतेन क्रियताम्।
(“केशवपतितं ….. केशव” इस पहेली का विवरण संस्कृत में लिखिए।)
उत्तरम्:
श्लोक सं. 7 की संस्कृत व्याख्या देखिए।
RBSE Class 10 Sanskrit स्पन्दन Chapter 5 वाक्केलिः अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
अधोलिखित प्रश्नान् संस्कृत भाषाया पूर्णवाक्येन उत्तरत – (निम्नलिखित प्रश्नों को संस्कृत भाषा में पूर्णवाक्य में उत्तर दीजिए-)
प्रश्न 1.
कातरो युद्धे किं कुर्यात्?
(कायर युद्ध में क्या करता है?)
उत्तरम्:
कातरो युद्धे पलायते।
(कायर युद्ध में पलायन कर जाता है।)
प्रश्न 2.
जयन्तः कस्य सुतः आसीत्?
(जयन्त किसका पुत्र था?)
उत्तरम्:
जयन्तः इन्द्रस्य पुत्रः आसीत्।
(जयन्त इन्द्र का पुत्र था।)
प्रश्न 3.
विष्णुपदं कथं प्रोक्तम्?
(विष्णु का स्थान-गोलोक कैसा बताया गया है?)
उत्तरम्:
विष्णुपदं मानवाय दुर्लभं प्रोक्तम्।
(विष्णु का स्थान-गोलोक मानव के लिए दुर्लभ बताया गया है।)
प्रश्न 4.
रवेः किं सारम्?
(सूर्य का सारं क्या है?)
उत्तरम्:
रवेः सारं ‘भा’ अर्थात् प्रकाशः कान्तिः वा अस्ति।
(सूर्य का सार ‘भा’ अर्थात् प्रकाश या कान्ति है।)
प्रश्न 5.
गीः (वाणी) कस्य सारम् अस्ति?
(वाणी किसका सार है?)
उत्तरम्:
गीः (वाणी) कवेः सारम् अस्ति।
(वाणी कवि का सार है।)
प्रश्न 6.
रथी कस्य सारम्?
(रथी (वीर) किसका सार है?)
उत्तरम्:
रथी (वीरः) समरस्य सारं अस्ति।
(रथी या वीर समर का सार है।)
प्रश्न 7.
कृषेः भयं कस्मात्?
(कृषि का डर किससे है?)
उत्तरम्:
कृषे: भयं ईतिभ्यो भवति।
(कृषि का डर ईतियों से होता है।)
प्रश्न 8.
रसं के अदन्ति?
(रस को कौन पीते हैं?)
उत्तरम्:
रसं भ्रमरा: (भृङ्गाः) पिबन्ति।
(रस को भौरे पीते हैं।)
प्रश्न 9.
केषां सदा भयम्?
(किसको सदैव भय होता है?)
उत्तरम्:
अनाश्रितानां सदा भयम्।
(आश्रयहीन लोगों को सदा डर रहता है।)
प्रश्न 10.
केषां सदा अभयम्?
(किनको सदैव अभय होता है?)
उत्तरम्:
भागीरथीतीरसमाश्रितानाम् सदा अभयम् भवति।
(गंगा के किनारे आश्रित लोगों को सदैव अभय होता है?)
प्रश्न 11.
सीमन्तिनीषु का शान्ता?
(नारियों में शान्त कौन है?)
उत्तरम्:
सीता सीमन्तिनीषु शान्ती।
(सीता नारियों में शान्त है।)
प्रश्न 12.
रामः कीदृशः नृपः आसीत्?
(राम कैसे राजा थे?)
उत्तरम्:
रामः गुणोत्तमः आसीत्।
(राम अनेक गुणों वाले थे।)
प्रश्न 13.
कः राजा अभूत् गुणोत्तमः?
(कौन राजा उत्तम गुणों वाला हुआ?)
उत्तरम्:
रामः गुणोत्तमः राजा अभूत्।
(राम उत्तम गुणों वाले राजा हुए।)
प्रश्न 14.
विद्या कैः वन्द्या सदा?
(विद्या सदा किसकी वन्दनीया है?)
उत्तरम्:
विद्या विद्वभ्दिः सदा वन्दनीया।
(विद्या विद्वानों के द्वारा सदा वन्दनीया है।)
प्रश्न 15.
का शीतल वाहिनी गङ्गा?
(शीतल बहने वाली गंगा कौनसी है?)
उत्तरम्:
काशीतलवाहिनी गंगा।
(काशी के तल में बहने वाली नदी गंगा है।)
प्रश्न 16.
दारपोषणे रताः के सन्ति?
(पलियों का पोषण करने में रत कौन हैं?)
उत्तरम्:
केदार-पोषणे रताः दारपोषणे रताः सन्ति।
(कृषिकर्म करने वाले लोग पत्नियों का पोषण करने में रत हैं।)
प्रश्न 17.
कम्बलवन्तं किं न बाधते?
(कम्बल वाले को क्या पीड़ा नहीं देता?)
उत्तरम्:
कम्बलवन्तं शीतं न बाधते।
(कम्बल वाले को शीत पीड़ा नहीं देता।)
प्रश्न 18.
केशव पदस्य अर्थद्वयं लिखत।
(केशव पद के दो अर्थ लिखिए।)
उत्तरम्:
कृष्णः के (जले) शवः (मृतशरीर:) इति केशवपदस्य अर्थद्वयम्।
(कृष्ण, जल में लाश ये केशव पद के दो अर्थ हैं।)
प्रश्न 19.
जले शवं पतितं दृष्ट्वा द्रोणः (काकः) कस्मात् हर्षमुपागतः?
(जले में शंव के गिर जाने पर द्रोण (कौवा) क्यों प्रसन्न हुआ?)
उत्तरम्:
यत: तं शवं काकस्तु खादितुं शक्नोति न तु शृगालाः।
(क्योंकि उस लाश को कौवा तो खा सकता है न कि गीदड़।)
प्रश्न 20.
जले शवं पतितं दृष्ट्वा शृगालाः कस्मात् रुदन्ति?
(जल में गिरी हुई लाश देखकर गीदड़ क्यों रोते हैं?)
उत्तरम्:
यत: शृगाला: जले पतितं शवं न खादितुं शक्नुवन्ति।
(क्योंकि गीदड़ जल में गिरी लाश को नहीं खा सकते।)
प्रश्न 21.
अपदो अपि दूरे कः गच्छति?
(बिना पैर के दूर कौन जा सकता है?)
उत्तरम्:
पत्रम् अपदो अपि दूरं गन्तुं शक्नोति।
(पत्र बिना पैर के भी दूर जा सकता है।)
प्रश्न 22.
पत्रं साक्षरं कथं भवति?
(पत्र साक्षर कैसे होता है?)
उत्तरम्:
यतः पत्रं अक्षराणि भवन्ति।
(क्योंकि पत्र में अक्षर होते हैं।)
प्रश्न 23.
अमुखः अपि कः स्पष्टवक्ता?
(बिना मुख के भी कौन स्पष्ट बोलने वाला होता है?)
उत्तरम्:
पत्रं मुखेन बिना अपि स्पष्टं सन्देशं कथयति।
(पत्र बिना मुख के भी सन्देश को स्पष्ट सुना देता है।)
प्रश्न 24.
वृक्षस्य अग्रभागे कः वसति?
(वृक्ष के ऊपर कौन रहता है?)
उत्तरम्:
वृक्षस्य अग्रभागे नारिकेलफलं तिष्ठति।
(वृक्ष के ऊपर नारियल रहता है।)
प्रश्न 25.
गगने मेघान् अवलोक्य कः नन्दति?
(आकाश में मेघों को देखकर कौन आनन्दित होता है?)
उत्तरम्:
गगने मेघान् अक्लोक्य मयूरः नन्दति।
(आकाश में मेघों को देखकर मोर आनन्दित होता है।)
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्न-निर्माणं कुरुतः। – (मोटे अक्षर वाले पदों के आधार पर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
प्रश्न 1.
यो जानाति सः पण्डितः।
(जो जानता है वह पण्डित होता है।)
उत्तरम्:
यो जानाति सः कः?
(जो जानता है वह कौन है?)
प्रश्न 2.
विद्या विद्वभ्दिः सदा वन्द्या।
(विद्या विद्वानों द्वारा सदा वन्दनीया है।)
उत्तरम्:
विद्या कैः सदा वन्द्या?
(विद्या सदा किनके द्वारा वन्दनीया है।)
प्रश्न 3.
विष्णुपदं दुर्लभं प्रोक्तम्।
(विष्णुपद दुर्लभ कहा गया है?)
उत्तरम्:
विष्णुपदं कथं प्रोक्तम्?
(विष्णु पद कैसा कहा गया है।)
प्रश्न 4.
भोजनान्ते पिवेत् तक्रम।
(भोजन के बाद छाछ पीनी चाहिए?)
उत्तरम्:
भोजनान्ते किं पिवेत्?
(भोजन के बाद क्या पीना चाहिए?)
प्रश्न 5.
अनाश्रितानां सदैव भयम्।
(आश्रयहीन लोगों को सदा डर रहता है।)
उत्तरम्:
केषां सदा भयम्?
(सदा किसका भय होता है?)
प्रश्न 6.
पानीयं पातुम् इच्छति।
(पानी पीना चाहता है।)
उत्तरम्:
किं पातुमिच्छति।
(क्या पीना चाहता है?)
प्रश्न 7.
केशवं पतितं दृष्ट्वा द्रोण: हर्षमुपागतः।
(केशव को गिरा हुआ देखकर द्रोण प्रसन्न हो गया।)
उत्तरम्:
कम् पतितं दृष्ट्वा द्रोण: हर्षमुपागतः।
(किसको गिरा देखकर द्रोण प्रसन्न हुआ?)
प्रश्न 8.
नन्दामि मेघान् गगने विलोक्य।
(आकाश में मेघों को देखकर आनन्दित होता हूँ।)
उत्तरम्:
गगने कान् विलोक्य नन्दामि।
(आकाश में क्या देखकर आनन्दित होता हूँ।)
प्रश्न 9.
कस्तूरी मृगात् जायते।
(कस्तूरी हिरन से पैदा होती है।)
उत्तरम्:
कस्तूरी कस्मात् जायते।
(कस्तूरी किससे पैदा होती है?)
प्रश्न 10.
कौरवाः रुदन्ति। (कौरव रोते हैं।)
उत्तम्:
के रुदन्ति? (कौन रोते हैं?)
पाठ – परिचयः
पहेली को कौन नहीं जानता! मनोरंजन करने वाली पहेली किस व्यक्ति को आकर्षित नहीं करती। यह मनोरंजन की पुरानी विधा है। प्रहेलिका, प्रवलिका, उक्ति-वैचित्र्य, वाक्केलि इत्यादि (इसके) पर्यायवाची शब्द हैं। प्रायः संसार की सभी भाषाओं में पहेली प्रचलित हैं। अंग्रेजी भाषा में पहेली के लिए पजल, रिडिल आदि शब्दों का प्रयोग प्रसिद्ध है।
पहेली में प्रश्न होता है जिसका उत्तर श्रोता (सुनने वाले) को ढूँढ़ना होता है। पहेली दो प्रकार की होती है-स्वपदोत्तर पहेली (अपना ही पद जिसका उत्तर हो) तथा अस्वपदोत्तर पहेली (जिसका उत्तर पहेली में न हो) अस्वपदोत्तर पहेली का तो उत्तर बाहर ही होता है न कि पहेली के पदों में सम्मिलित होता है। पहेलियों में जो चमत्कार देखा जाता है वह कदाचित श्लेष-यमक आदि अलंकारों के माध्यम से कभी-कभी सन्धि-समास आदि के माध्यम से उत्पन्न किया जाता है।
पहेलियाँ न केवल मनोरंजन करने वाली होती हैं अपितु बुद्धि की कसरत की साधिका होती हैं। यह शाब्दिक खेल। (खिलवाड़) भी है। संस्कृत के कवियों ने पहेली की परम्परा का संवर्धन किया (बढ़ावा दिया)। इस पाठ में कुछ प्रसिद्ध पहेलियाँ विविध ग्रन्थों से लेकर प्रस्तुत की जा रही हैं। आइये, पढ़े और आनन्द लें।
[ मूलपाठ, अन्वय, शब्दार्थ, हिन्दी-अनुवाद तथा सप्रसंग संस्कृत व्याख्या ]
1. कस्तूरी जायते कस्मात्, को हन्ति करिणां कुलम्।
किं कुर्यात् कातरो युद्धे, मृगात् सिंहः पलायते ॥ 1 ॥
अन्वय:
कस्तूरी कस्मात् जायते? मृगात्। करिणां कुलं कः हन्ति? सिंहः। कातरः युद्धे किं कुर्यात्? पलायते।
शब्दार्था:
कस्तूरी = सुगन्धितः द्रव्यविशेषः (एक सुगन्धित वस्तु विशेष होती है जो कस्तूरी मृग (मृग विशेष) की नाभि से निकलती है)। कस्मात् = कुतः (किससे, कहाँ से)। जायते = उत्पद्यते (उत्पन्न होती है)। करिणा कुलम् = गजानां वंशम् (हाथियों का कुल)। कातरः = कापुरुषः (कायर, डरपोक)। पलायते = पलायनं करोति (भाग जाता है)।
हिन्दी-अनुवाद:
कस्तूरी किससे पैदा होती है? हिरन से। हाथियों के वंश को कौन मारता है? सिंह। कायर युद्ध में क्या करता है? पलायन।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
एषा प्रहेलिका अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। अत्र प्रहेलिकाकारः प्रश्नं पृच्छति।
(यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्कलि’ पाठ से ली गई है। यहाँ पहेली सुनने वाला प्रश्न पूछता है।)
व्याख्या:
कस्तूरी कस्मात् उत्पन्नं भवति? इति प्रश्नः। अत्र उत्तरम् अस्ति मृगात्। गजानां कुलम् कः अमारयत्? इति प्रश्नः। अत्रोत्तरस्ति व्याघ्रः। कापुरुषः युद्धे किम् करोति? अस्य प्रश्नस्य उत्तरमस्ति पलायन।
(कस्तूरी (एक सुगन्धित द्रव्य जो हिरन की नाभि से निकलती है। किससे उत्पन्न होती है? यह प्रश्न है। यहाँ उत्तर है हिरन से। हाथियों के वंश को कौन मारता है? यह प्रश्न है। यहाँ उत्तर है शेर। कायर पुरुष युद्ध में क्या करता है? इस प्रश्न का उत्तर है भाग जाना। अर्थात् कायर (डरपोक) मनुष्य युद्ध से भाग जाता है।)
व्याकरणिक बिन्दव:
करिणां कुलम् = गजानाम् कुलम् (ष. तत्पुरुष)। कुर्यात् = कृ (करना) विधिलिङ्ग लकार प्रथमपुरुषः एकवचनम्। युद्धे = युध् + क्त।
2. भोजनान्ते च किं पेयं, जयन्तः कस्य वै सुतः।
कथं विष्णुपदं प्रोतं, तक्रं शक्रस्य दुर्लभम् ॥ 2 ॥
अन्वय:
भोजनान्ते च किं पेयम् ? तक्र। जयन्तः कस्य वै सुतः? शक्रस्य। कथं विष्णुपदं प्रोक्तम्? दुर्लभम्।
शब्दार्था:
भोजनान्ते = भोजनस्य अन्ते (खाने के बाद)। पेयम् = पातव्यम् (पीना चाहिए)। सुतः = आत्मजः (पुत्र)। विष्णुपदम् = विष्णोः पदम् (स्वर्ग)। प्रोक्तम् = कथितम् (कहा गया है)। तक़म् = मन्थित-दधि (छाछ)। शक़स्य = इन्द्रस्य (इन्द्र का)। दुर्लभम् = दुष्प्राप्यंम् (मुश्किल से प्राप्त होने वाली)।
हिन्दी-अनुवाद:
भोजन के बाद क्या पीना चाहिए? छाछ। जयन्त किसका पुत्र है? इन्द्र का। विष्णु पद (स्वर्ग) कैसा कहा गया है? दुर्लभ (मुश्किल से प्राप्त होने वाला)।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
प्रहेलिका एषा अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। अत्र प्रहेलिकाकारः प्रश्नत्रयं पृच्छति तेषाम् उत्तरम् चापि श्लोकस्य अन्तिमैः त्रिभिः पदैः प्रस्तौति।
(यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से ली गई है। यहाँ पहेली बूझने वाला तीन प्रश्न पूछता है जिनका उत्तर श्लोक के अन्तिम तीन पदों में प्रस्तुत करता है।
व्याख्या:
भोजनस्य अन्ते कि पिवेत्? इति प्रश्नः। अत्र उत्तरम् अस्ति ‘तक्रम्’। जयन्तः कस्य पुत्रः आसीत्? इति प्रश्नः। अत्रोत्तरमस्ति-इन्द्रस्य। विष्णोः स्थानं गोलोक वा कीदृश कथ्यते ? अस्य प्रश्नस्य उत्तरमस्ति गोलोकस्य प्राप्ति मानवाय दुर्लभं भवति। भोजन के बाद क्या पीना चाहिए? यह एक प्रश्न है। इसका उत्तर है-‘छाछ’। जयन्त किसका पुत्र था? एक प्रश्न है। इसका उत्तर है-‘इन्द्र का’। विष्णु का पद अर्थात् स्वर्ग कैसा कहा जाता है? इस प्रश्न का उत्तर है ‘गोलोक की प्राप्ति मानव के लिए दुर्लभ है।’
व्याकरिणक बिन्दव:
भोजनान्ते-भोजनस्य अन्ते (ष. तत्पुरुष) भोजन + अन्ते (दीर्घ सन्धि) विष्णुपदम्-विष्णोः पदम् (ष. तत्पुरुष) दुर्लभम्-दुष्करेन कष्टेन लभ्यम् (तृतीया तत्पुरुषः)।
3. रवेः कवेः किं समरस्य सारं,
कृषेर्भयं किं किमदन्ति भृङ्गा।
सदा भयं चाप्यभयञ्च केषां,
भागीरथीतीरसमाश्रितानाम् ॥ 3 ॥
अन्वय:
रवेः कवेः समरस्य (च) सारं किम्? भा, गी, रथी च। कृषे: भयं किम्? ईतिः। भुंगा किम् अदन्ति? रसम्। केषां च सदा भयम्? आश्रितानाम्। अभयं च- भागीरथीतीरसमाश्रितानाम्।
शब्दार्था:
समरस्य = युद्धस्य (युद्ध का)। भुंगाः = भ्रमराः (भौंरे)। अदन्ति = खादन्ति (खाते हैं)। भा = प्रकाशः, गीः = वाणी, रथी = वीरः। ईतिः = अतिवृष्टि अनावृष्टि आदयः। (प्राकृतिक प्रकोप) रसम् = पुष्प रसम् (फूलों का रस) आश्रितोनामम् = पराश्रितानाम् (पराश्रितों का) भागीरथीतीरसमाश्रितानाम् = गंगा के किनारे निवास करने वालों को।
हिन्दी अनुवाद:
रवि, कवि और युद्ध का सार क्या है? उत्तर है-क्रमशः प्रकाश, वाणी तथा रथी (वीर)। कृषि का भय क्या है? उत्तर है-अतिवृष्टि आदि। ईतियाँ (प्राकृतिक प्रकोप)। भौरे क्या खाते हैं? रस। सदा भय किनका है? उत्तर है-पराश्रितों का। सदा अभय किन्हें होता है? उत्तर है-गंगा के किनारे का आश्रय लेने वालों को।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
प्रहेलिका एषा अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः सप्तप्रश्नान् प्रस्तुतत्य श्लोकस्य चतुर्थे चरणं तान् उत्तरति।
(यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलिः’ पाठ से ली गई है। इस श्लोक में कवि ने सात प्रश्न प्रस्तुत कर उनका उत्तर श्लोक के चौथे चरण में ही दे दिया है।)
व्याख्या:
सूर्यस्य सारं प्रकाशः कान्तिः वा। कवेः सार तस्य वाग्वैशिष्ट्यं युद्धस्य सारं वीरः। कृषि उद्योगे ईतिभीतिनां भीति अर्थात् अनावृष्टि अतिवृष्टि इत्यादीनां प्राकृतिकापदानामेव भयः वर्तते। भ्रमराः सदैव रसमेव पिबन्ति। ये जनाः निराश्रिताः सन्ति ते सदैव भयभीताः भवन्ति। परञ्च ये गंगायाः तीरे आश्रयं गृहीत्वा निवसन्ति ते भयमुक्ता भवन्ति।
(सूर्य का सार प्रकाश अथवा कान्ति है। कवि का सार उसकी वाणी की विशेषता, युद्ध का सार वीरपुरुष है। कृषि उद्योग में असमय वर्षा होना, अधिक वर्षा होना आदि प्राकृतिक आपदाओं का ही भय है। भौरे हमेशा रस ही पीते हैं। जो मनुष्य बेसहारी हैं वे सदैव भयभीत होते हैं। लेकिन जो गंगा के किनारे आश्रय ग्रहण करके रहते हैं वे भयमुक्त होते हैं। अर्थात् ‘निडर रहते हैं।
व्याकरणिक बिन्दव:
समरस्य सारम्-समरसारम् (ष. तत्पुरुष समास)। चाप्यभयञ्चे-च + अपि + अभयम् + च (दीर्घ, यण, हल् संधि) अभयम्-न भयम् (नञ् तत्पुरुष) समाश्रितानाम्-सम् + आ + श्रि + क्त (ष. वि. ब.व.)
4. सीमन्तिनीषु का शान्ता, राजा कोऽभूद्गुणोत्तमः।
विद्वभिः का सदा वन्द्या, अत्रैवोतं न बुध्यते ॥ 4 ॥
अन्वय:
सीमन्तिनीषु शान्ता का? गुणोत्तम: राजा कः अभूत्। विविद्भिः सदा का वन्द्या? (उत्तरम्) अत्र एव उक्तम् न बुध्यते।
शब्दार्था:
सीमन्तिनीषु = स्त्रीषु (औरतों में)। अभूत् = अभवत् (हुआ)। वन्द्या = वन्दनीया (वन्दना करने योग्य)। अत्रैवोक्ततम् = अस्मिन् एव श्लोके कथितम् (इसी श्लोक में कहा गया है)। न बुध्यते = न ज्ञायते (जाना नहीं जाता)। विद्वभिः = प्राज्ञैः (विद्वानों द्वारा)। अत्रैवोतं = इतः श्लोके एव कथितम् (यहाँ श्लोक में ही दिया हुआ है।)
हिन्दी अनुवाद:
औरतों में कौन शान्त (स्वभाववाली) है? गुणों में उत्तम राजा कौन हुआ? विद्वानों में सदा वन्दनीया कौन है? उत्तर यहाँ इस श्लोक में ही दिया हुआ है। जाना नहीं जा रहा। (प्रत्येक वाक्य में प्रथम व अन्तिम वर्ण को मिलाकर उत्तर जाना जा सकता है। क्रमश:-सीता, राम तथा विद्या।
संप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः प्रश्नत्रयं पृच्छति। प्रश्नस्य उत्तरम् प्रश्नस्य प्रथम-अन्तिमं च अक्षरं नियोज्य गृहीतुं शक्यते-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुग्तक के ‘वाक्केलि’ पाठं से लिया गया है। इस श्लोक में कवि तीन प्रश्न पूछता है। प्रश्न का उत्तर प्रश्न के प्रथम व अन्तिम वर्ण को जोड़कर ग्रहण किया जा सकता है।)
व्याख्या:
स्त्रीषु का शान्त स्वभावा? कः नृपः सद्गुणोपेतोऽजायत। प्राज्ञैः सदा का वन्दनीया भवति? एतस्य प्रश्नत्रस्य उत्तरं प्रश्नस्य आद्यन्त्यम् अक्षरं मेलयित्वा ज्ञातुं शक्यते। तत् यथा-सीमन्तिनीषु सीता शान्ता, गुणोत्तमः नृपः रामोऽजायत, विद्वद्भिदः विद्या वन्दनीया। (स्त्रियों में कौन शान्त है? कौन राजा सद्गुणों से उत्तम हुआ। विद्वानों द्वारा वन्दना करने योग्य कौन है। उत्तर प्रश्न के आदि और अन्त्य वर्ण को मिलाकर जाना जा सकता है। वह है-औरतों में सीता शान्त है, राजाओं में राम सद्गुणोपेत हुए तथा विद्या विद्वानों में वन्दनीया होती है।
व्याकरणिक बिन्दव:
शान्ता-शम् + क्त + टाप्। कोऽभूत्-कः + अभूत (विसर्ग एवं पूर्वरूप) गुणोत्तमः-गुण + उत्तमः (गुण संधि) गुणेषु उत्तमः (सः तत्पुरुषः) वन्द्या-वन्द् + ण्यत् + टाप्।
5. पानीयं – पातुमिच्छामि, त्वत्तः कमललोचने।
यदि दास्यसि नेच्छामि, न दास्यसि पिबाम्यहम् ॥ 5 ॥
अन्वय:
(हे) कमललोचने! त्वत्त: पानीयं पातुम् इच्छामि। यदि दास्यसि (वितरिष्यसि, दासी + असि), न इच्छामि। यदि ने दास्यसि (न वितरिष्यसि, न दासी + असि) अहं पिबामि।
शब्दार्था:
पानीयम् = जलम् (पानी)। पातुमिच्छामि = ग्रहीतुम् ईहे (पीने की इच्छा)। त्वत्तः = तव हस्तात् (तुम्हारे हाथ से)। दास्यसि = दा + लृट् (दोगी)। दासी + असि (दासी हो तो)। कमललोचने = पद्मनयने (कमल जैसे नेत्रों वाली)। पिबाम्यहम् = मैं पीता हूँ।
हिन्दी अनुवाद:
हे कमल जैसे नेत्रो वाली! तुम्हारे हाथ से पानी पीना चाहता हूँ। यदि आप दोगी तो नहीं चाहता, नहीं दोगी तो मैं पीऊँगा। (परिहारार्थ में) यदि तुम दासी हो तो नहीं पीना चाहता, यदि दासी नहीं हो तो पी लेता हूँ।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। अस्मिन श्लोके कविः नायिकायाः जलं पातुमिच्छति परन्तु श्लेषमाध्यमेन विरोधाभासं प्रदर्शयति। अत्र दास्यसि पदं द्वार्थकम्: दास्यसि (दा + लृट्) वितरिष्यति 2. दासी + असि इति। (यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि नायिका से पानी पीना चाहता है परन्तु श्लेष के माध्यम से विरोधाभास प्रदर्शित करता है। यहाँ दास्यसि पदद्वार्थक है-
- दास्यसि-दोगी।
- दासी + असि = दासी हो।)
व्याख्या:
हे कमलनयने! अहं तव हस्तात् जलं ग्रहीतुम् इच्छामि परं च यदि त्वम् वितरिष्यसि तदा न ग्रहीष्यामि न वितरिष्यसि तदा गृहणामि। निराकरणे-यदि त्वं दासी असि तदा तव हस्तात् अहं जलं न पातुम् इच्छामि यदि त्वं दासी न असि तदा अहं पिबामि। (हे’कमलनयने! मैं तुम्हारे हाथ से पानी पीना चाहता हूँ परन्तु यदि तुम दोगी तो मैं न ग्रहण करूगा यदि नहीं दोगी तो पी लेता हूँ।
(दूसरे अर्थ में-यदि तुम दासी हो तो मैं नहीं ग्रहण करूगा यदि तुम दासी नहीं हो तो मैं पी लेता हूँ।)
व्याकरणिक बिन्दव:
पातुम्-पा + तुमुन्। त्वत्त:-त्वत् + तसिल्। कमललोचने-कमलम् इव लोचने यस्याः सा (बहुव्रीहि)। दास्यसि-दासी + असि (यण सन्धि) पिबाम्यहम् = पिबामि + अहम् (यण् सन्धि) नेच्छामि-न + इच्छामि (गुण सन्धि)
6. कं संजघान कृष्णः,’ का शीतलवाहिनी गंगा।
के दारपोषणरताः, कं बलवन्तं न बाधते शीतम् ॥ 6 ॥
अन्वय:
कृष्णः कं संजघान? शीतलवाहिनी गंगा का (अस्ति)? दार-पोषण-रता: के (सन्ति)? कं बलवन्तं शीतं न बाधते?
शब्दार्था:
संजघान = हतवान् (मारा)। वाहिनी = नदी। दारपोषणरताः = दाराणां (पत्नी-बच्चों)। पोषणरता = पोषणे लग्नाः (पोषण करने में लगे हुए)। बलवन्तम् = बलशालिनम् (बलशाली को)। बाधते = पीडयति (पीड़ा देता है)।
हिन्दी अनुवाद:
कृष्ण ने किसको मारा? शीतल नदी गंगा कौन-सी है? पत्नियों के पोषण में कौन रत है? किस बलशाली को शीत पीड़ित नहीं करता? उत्तर के लिए अन्वय इस प्रकार होगा कंसं जधान कृष्णः। काशी-तल वाहिनी गंगा। केदार – पोषण रताः, कम्बल वन्तं शीतं न बाधते। (कृष्ण ने कंस को मारा। क़ाशी की तलहटी में बहने वाली गंगा शीतल है। सजल खेतों का पोषण करने वाले किसान, कम्बल वाले को शीत पीड़ित नहीं करता।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उदृधृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः प्रश्न चतुष्ट्यं पृच्छति। तेषां चतुर्णा प्रश्नानाम् उत्तराणि अपि प्रश्नस्य प्रथमौ द्वौ वर्णो मेलयित्वा ज्ञातुं शक्यन्ते।
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि चार प्रश्न पूछता है जिनके उत्तर प्रश्न के प्रथम दो वर्गों को मिलाकर जाने जा सकते हैं।)
व्याख्या:
कृष्णं कं संजघान? उत्तरम्-कृष्णः कसं जघान। का शीतल वाहिनी गंगा? उत्तरमू-काशी-तल वाहिनी गंगा। केदारपोषणं रताः? उत्तरम्-केदार पोषणं रताः कृषकाः। कं बलवन्तं ने बाधते शीतम् ? उत्तरम्-कम्बल वन्तं न बाधते शीतम्। इति प्रश्नोत्तराणि। (कृष्ण ने किसको मारा? उत्तर-कृष्ण ने कंस को मारा। शीतल बहने वाली गंगी कौन सी है.? उत्तर-काशी के तले या नीचे बहने वाली नदी गंगा है। कौन पत्नी के पोषण में रत है? उत्तर-सजल खेतों का पोषण करने वाला (किसान) । किस बलवान को शीत बाधा नहीं पहुँचाता ? उत्तरम्-कम्बल से युक्त को शीत पीड़ित नहीं करता? इस प्रकार से प्रश्नों में ही उत्तर हैं।
व्याकरणिक बिन्दव:
बलवन्तम्-बल + मतुप् (द्वितीया एकवचनम्) दारपोषणम्-दाराणां पोषणम् = पुष् + ल्युट्।
7. केशवं पतितं दृष्ट्वा, द्रोणः हर्षमुपागतः।
रुदन्ति कौरवाः सर्वे, हा! हा! केशव केशव ॥ 7 ॥
अन्वय:
केशवं पतितं दृष्ट्वा द्रोण: हर्षम् उपागतः। कौरवाः सर्वे रुदन्ति, हा केशव! हा केशव!
शब्दार्था:
केशवम् = वासुदेवम् अथवा के-जले, शवम् = मृत शरीरम् (जल में शव)। द्रोणः = द्रोणाचार्यः अथवा शवभक्षकः काकः (गुरु द्रोणाचार्य अथवा लाशों को खाने वाला कौवा)। हर्षम् उपागतः = हर्ष प्राप्त, (प्रसन्न हुआ)। रुदन्ति = रोदनं कुर्वन्ति, विलपन्ति (रुदन करते हैं)। कौरवाः = दुर्योधनः, दुश्शासन आदि अथवा शृगालाः (धृतराष्ट्र के पुत्र या गीदड़)। केशव = हे वासुदेव। अथवा के (जले) शव (लाश)।
हिन्दी अनुवाद:
कृष्ण को गिरा हुआ देखकर द्रोणाचार्य प्रसन्न हुआ। कौरव सभी रोने लगे-हे केशव! हे केशव! कूट अर्थ-केशव (के-जले) जल में शव (लाश) को गिरा हुआ देखकर (द्रोण:) कौवा प्रसन्न हुआ और सभी शृगाल रोने लगे-हाय जल में लाश गई, जल में लाश गई।)।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः कूटश्लोके श्लेषालंकार कारणार्थ द्वार्थकम् करोति-(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि ने कूटश्लोक में श्लेष अलंकार के कारण द्वार्थक बना दिया है।)
व्याख्या:
केशव्-श्रीकृष्णं जले मृत शरीरं वा अवलोक्य द्रोणः-द्रोणाचार्य. काको वा प्रसन्नः भवति। परं च कौरवाः शृगालाः वा क्रन्दन्ति हा जले मृत शरीरम्, जले मृतं शरीरं (के–जले)-शवः-मृतशरीरम् प्रवहति पतितम् वा। (केशव अर्थात् श्रीकृष्ण या जल में लाश को देखकर द्रोण (द्रोणाचार्य या कौवा) प्रसन्न हो गया परन्तु दुर्योधन आदि कौरव या शृगाल रोने लगे हाय जल में लाश गई, जल में लाश गई।
व्याकरणिक बिन्दव:
कौरवा:-कुरु + अण् = कौरव (प्र.वि. बहुवचनम्= कौरवाः)। दृष्ट्वा-दृश् + क्त्वा।
8. अपदो दूरगामी च, साक्षरो न च पण्डितः।
अमुखः स्फुटवक्ता च, यो जानाति सः पण्डितः ॥ 8 ॥
अन्वय:
अपदः दूरगामी च, साक्षरः ने च पण्डितः, अमुखः स्फुटवक्ता च, यः जानाति सः पण्डितः।
शब्दार्था:
अपदो = चरण रहित बिना पैर)। अमुखः = मुख रहित (बिना मुँह)। स्फुटवक्ता = स्पष्टवक्ता (साफ़ कहने वाला)।
हिन्दी अनुवाद:
बिना पैरों के दूर तक चला जाता है। (चले जाने वाला है) साक्षर अर्थात् अक्षरों से युक्त होते हुए भी वह विद्वान नहीं है। मुँह नहीं है परन्तु स्पष्ट बोलने वाला है। जो उसे जानता है वह विद्वान है। उत्तर-पत्रम्।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः पत्रस्य वैशिष्ट्यम् वर्णयति।
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि पत्र (चिठ्ठी) की विशेषताओं का वर्णन करता है।)
व्याख्या:
पादाभ्यां विना अपि दूरपर्यन्तं गच्छति। अक्षरैः सहितम् अपि विद्वान् नास्ति। तस्य मुखः नास्ति तथापि स्पष्टं कथयति यः इदं जानाति सः विद्वान अस्ति। कोऽयम्? पत्रम्। यतः तद् अपदं, अमुखं साक्षरं च तथापि दूरस्थाने गच्छति, सर्व वृत्तं लिखिते अक्षरैः कथयति। (पैरों से रहित भी दूर तक जाता है। अक्षरों से युक्त होते हुए भी विद्वान नहीं है। उसके मुँह नहीं है फिर भी स्पष्ट समाचार (सन्देश) कह देता है। जो इसे जानता है (पढ़ लेता है) वह विद्वान है। यह कौन है? पत्र। क्योंकि वह पगरहित, अमुख और अक्षरों से युक्त होता है।
व्याकरणिक बिन्दव:
अपद:-न पदौ यस्य सः (बहुव्रीहि)। दूरगामी-दूरं गच्छति यः सः (बहुव्रीहि) साक्षर:-अक्षरैः सहितम् (अव्ययीभाव)। अमुखः-ने मुखं यस्य सः (बहुव्रीहि)।
9. वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः।
त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी,
जलं च विभ्रन्न घटो न मेघः ॥ 9 ॥
अन्वय:
अहं वृक्षस्य अग्रवासी (अस्मि परं च) न च पक्षिराजः, त्रिनेत्रधारी (अस्मि) न च शूलपाणिः, त्वग्वस्त्रधारी (अस्मि परं च) न च सिद्धयोगी, जलं विभ्रन् न घटः न मेघः।
शब्दार्था:
त्रिनेत्रधारी = त्रयम्बकः (तीन आँखों वाला)। शूलपाणिः = त्रिशूली, शिवः। पक्षिराजः = गरुडः त्वग्वस्त्रधारी = वल्कल वस्त्रधारी (वल्कल वस्त्र पहनने वाला)। जलं विभ्रत् = जलं धारयन् (जल धारण करते हुए)। घटः = कलश: (घड़ा)। मेघाः = ज़लदाः (बादल)।
हिन्दी अनुवाद:
(मैं) वृक्ष के अग्रभाग (सबसे ऊपर) में निवास करने वाला हूँ लेकिन पक्षिराज गरुड़ नहीं हूँ। (मेरे) तीन आँखें हैं परन्तु शूलपाणि शिव नहीं हूँ। (मैं) बल्कलवस्त्र धारण करता हूँ परन्तु योगी नहीं हूँ। (मैं) जल को धारण करता हुआ भी न घड़ा हूँ और न बादल हूँ।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। अस्मिन् श्लोके कविः नारिकेलफलस्य वैशिष्ट्यम् वर्णयन् उत्तरम् इच्छति-(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि नारियल की विशेषताएँ बताते हुए उत्तर चाहता है।)
व्याख्या:
अहं वृक्षस्य अग्रभागे निवसामि परं च खगराजः गरुड़ः नास्मि। अहं त्र्यम्बकः सन् अपि शिवः नास्मि। अहं बल्कल वसनानि धारयामि परं च कोऽपिसिद्ध योगी नास्मि। अहं गर्भ जलं दधामि परं च घटः मेघः चापि नास्मि। तदा कथयत्-कोऽहम्। उत्तरम्-नारिकेलफलम्। (मैं वृक्ष के अग्रभाग पर रहता हूँ परन्तु पक्षिराज गरुड़ नहीं हूँ। मैं तीन नेत्रों वाला हूँ परन्तु शिव नहीं हूँ। मैं बल्कल वस्त्र (टाए) धारण करता हूँ परन्तु कोई सिद्ध योगी नहीं हूँ। मैं गर्भ में पानी धारण करता हूँ परन्तु न घड़ा हूँ और न बादल हूँ। तो बोलो मैं कौन हूँ। उत्तर-नारियल का फल।
व्याकरणिक बिन्दव:
विभ्रन्न-विभ्रत् + न (हल् सन्धि) शूलपाणि:-शूलं पाणौ यस्य सः शिवः (बहुव्रीहिसमास। सिद्धयोगी = सिद्धः च असौ योगी (कर्मधारय) पक्षिराज:-पक्षिणः राजा (पक्षियों का राजा-षष्ठी तत्पुरुष)
10. नन्दामि मेघान् गगनेऽवलोक्य,
नृत्यामि गायामि भवामि तुष्टः।
नाहं कृषिज्ञः पथिकोऽपि नाहं,
वदन्तु विज्ञाः मम नामधेयम् ॥ 10 ॥
अन्वय:
गगने मेघान् अवलोक्य (अहं) नन्दामि, नृत्यामि, गायामि तुष्टः (च) भवामि। न अहं कृषिज्ञः, अहं पथिकः। अपि ने। विज्ञा मम नामधेयं वदन्तु।
शब्दार्था:
अवलोक्य = दृष्ट्वा (देखकर)। गगने = आकाशे (आकाश में)। नृत्यामि = नृत्यं करोमि (नाचती हैं)। नन्दामि = आनन्दम् अनुभवामि। तुष्टः = सन्तुष्टः, प्रसन्न (प्रसन्नं)। कृषिज्ञः = कृषक: (किसान)। पथिकः = यात्री (राही)। विज्ञाः = ये जानन्ति (जानकार)। नामधेयम् = नाम।
हिन्दी अनुवाद:
आकाश में मेघों को देखकर मैं आनन्दित होता हैं, नाचता हूँ, प्रसन्न होता हूँ। न मैं किसान हूँ न राहगीर हूँ। बोलो जानने वालो मेरा नाम बताओ।
सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:
श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः मयूरस्य स्वभावं वर्णयित्वा उत्तरम् इच्छति-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इसमें कवि मयूर के स्वभाव का वर्णन करते हुए उत्तर चाहता है)
व्याख्या:
अहम् आकाशे वारिदान् दृष्ट्वा आनन्दितो भवामि, नृत्यं करोमि, गायामि प्रसन्नश्च भवामि। अहं कृषको नास्मि न चाहं पथिकोऽस्मि। ज्ञातार: मम अभिधानं कथयन्तु। कोऽहम्। उत्तरम्-मयूरः।
(मैं आकाश में बादल देखकर आनन्दित होता हूँ, नाचती हूँ, गाता हूँ और प्रसन्न होता हूँ। मैं किसान नहीं हूँ, राहगीर भी मैं नहीं हूँ तो विद्वान बताइये मेरा क्या नाम है। मयूर: (मोर)।
व्याकरणिक बिन्दव:
गगनेऽवलोक्य = गगने + अवलोक्य (पूर्वरूप संधि) अव + लोक् + ल्यप् = अवलोक्य। विज्ञा = विशिष्ट जानाति यः सः (ब.व्री.)
पठ-परिचयः
पहेली को कौन नहीं जानता ! मनोरंजन करने वाली पहेली किस व्यक्ति को आकर्षित नहीं करती। यह मनोरंजन की पुरानी विधा है। प्रहेलिका, प्रवलिका, उक्ति-वैचित्र्य, वाक्केलि इत्यादि (इसके) पर्यायवाची शब्द हैं। प्रायः संसार की सभी भाषाओं में पहेली प्रचलित हैं। अंग्रेजी भाषा में पहेली के लिए पजल, रिडिल आदि शब्दों का प्रयोग प्रसिद्ध है। पहेली में प्रश्न होता है जिसका उत्तर श्रोता (सुनने वाले) को ढूँढ़ना होता है। पहेली दो प्रकार की होती है-स्वपदोत्तर पहेली (अपना ही पद जिसका उत्तर हो) तथा अस्वपदोत्तर पहेली (जिसका उत्तर पहेली में न हो) अस्वपदोत्तर पहेली का तो उत्तर बाहर ही होता है न कि पहेली के पदों में सम्मिलित होता है। पहेलियों में जो चमत्कार देखा जाता है वह कदाचित श्लेष-यमक आदि अलंकारों के माध्यम से कभी-कभी सन्धि-समास आदि के माध्यम से उत्पन्न किया जाता है।
पहेलियाँ न केवल मनोरंजन करने वाली होती हैं अपितु बुद्धि की कसरत की साधिका होती हैं। यह शाब्दिक खेल (खिलवाड़) भी है। संस्कृत के कवियों ने पहेली की परम्परा का संवर्धन किया (बढ़ावा दिया)। इस पाठ में कुछ प्रसिद्ध पहेलियाँ विविध ग्रन्थों से लेकर प्रस्तुत की जा रही हैं। आइये, पढ़े और आनन्द लें।
मूलपाठ, अन्वय, शब्दार्थ, हिन्दी-अनुवाद तथा सप्रसंग संस्कृत व्याख्या
1. कस्तूरी जायते कस्मात्, को हन्ति करिणां कुलम्।।
किं कुर्यात् कातरो युद्धे, मृगात् सिंहः पलायते ॥1॥
अन्वयः-कस्तूरी कस्मात् जायते? मृगात्। करिणां कुलं कः हन्ति? सिंहः। कातरः युद्धे किं कुर्यात्? पलायते।
शब्दार्थाः-कस्तूरी = सुगन्धितः द्रव्यविशेषः (एक सुगन्धित वस्तु विशेष होती है जो केस्तूरी मृग (मृग विशेष) की नाभि से निकलती है)। कस्मात् = कुतः (किससे, कहाँ से)। जायते = उत्पद्यते (उत्पन्न होती है)। करिणां कुलम् = गजानां वंशम् (हाथियों का कुल)। कातरः = कापुरुषः (कायर, डरपोक)। पलायते = पलायनं करोति (भाग जाता है)।
हिन्दी-अनुवादः-कस्तूरी किससे पैदा होती है? हिरन से। हाथियों के वंश को कौन मारता है? सिंह। कायर युद्ध में क्या। करता है? पलायन।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंगः-एषा प्रहेलिका अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। अत्र प्रहेलिकाकारः प्रश्न पृच्छति। (यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से ली गई है। यहाँ घहेली सुनने वाला प्रश्न पूछता है।) व्याख्या:-कस्तूरी कस्मात् उत्पन्नं भवति? इति प्रश्नः। अत्र उत्तरम् अस्ति मृगात्। गजानां कुलम् कः अमारयत् ? इति प्रश्नः। अत्रोत्तरस्ति व्याघ्रः। कापुरुषः युद्धे किम् करोति? अस्य प्रश्नस्य उत्तरमस्ति पलायन। (कस्तूरी
(एक सुगन्धित द्रव्य जो हिरन की नाभि से निकलती है। किससे उत्पन्न होती है? यह प्रश्न है। यहाँ उत्तर है हिरन से। हाथियों के वंश को कौन मारता है? यह प्रश्न है। यहाँ उत्तर है शेर। कायर पुरुष युद्ध में क्या करता है? इस प्रश्न का उत्तर है भाग जाना। अर्थात् कायर (डरपोक) मनुष्य युद्ध से भाग जाता है।)
व्याकरणिक बिन्दवः-करिणां कुलम् = गजानाम् कुलम् (ष. तत्पुरुष)। कुर्यात् = कृ (करना) विधिलिङ्ग लकार प्रथमपुरुषः एकवचनम्। युद्धे = युध् + क्त।
2. भोजनान्ते च कि पेयं, जयन्तः कस्य वै सुतः।
कथं विष्णुपदं प्रोक्तं, तक्रं शक्रस्य दुर्लभम् ॥2॥
अन्वयः-भोजनान्ते च किं पेयम् ?” तक्रं। जयन्तः कस्य वै सुतः? शक्रस्य। कथं विष्णुपदं प्रोक्तम् ? दुर्लभम्।
शब्दार्थाः-भोजनान्ते = भोजनस्य अन्ते (खाने के बाद)। पेयम् = पातव्यम् (पीना चाहिए)। सुतः = आत्मजः (पुत्र)। विष्णुपदम् = विष्णोः पदम् (स्वर्ग)। प्रोक्तम् = कथितम् (कहा गया है)। तक्रम् = मन्थित-दधि (छाछ)। शक़स्य = इन्द्रस्य (इन्द्र का)। दुर्लभम् = दुष्प्राप्यंम् (मुश्किल से प्राप्त होने वाली)।
हिन्दी-अनुवादः- भोजन के बाद क्या पीना चाहिए? छाछ। जयन्त किसका पुत्र है? इन्द्र का। विष्णु पद (स्वर्ग) कैसा कहा गया है? दुर्लभ (मुश्किल से प्राप्त होने वाला)।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंगः-प्रहेलिका एषा अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। अत्र प्रहेलिकाकारः प्रश्नत्रयं पृच्छति तेषाम् उत्तरम् चापि श्लोकस्य अन्तिमैः त्रिभिः पदैः प्रस्तौति।
(यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से ली गई है। यहाँ पहेली बूझने वाला तीन प्रश्न पूछता है जिनका उत्तर श्लोक के अन्तिम तीन पदों में प्रस्तुत करता है।)
व्याख्याः- भोजनस्य अन्ते किं पिवेत् ? इति प्रश्नः। अत्र उत्तरम् अस्ति तक्रम्’। जयन्तः कस्य पुत्रः आसीत् ? इति प्रश्नः। अत्रोत्तरमस्ति-इन्द्रस्य। विष्णोः स्थानं ‘गोलोकं वा कीदृश कथ्यते ? अस्य प्रश्नस्य उत्तरमस्ति गोलोकस्य प्राप्ति मानवाय दुर्लभं भवति।
(भोजन के बाद क्या पीना चाहिए? यह एक प्रश्न है। इसका उत्तर है-‘छाछ’। जयन्त किसका पुत्र था? एक प्रश्न है। इसका उत्तर है-‘इन्द्र का’। विष्णु का पद अर्थात् स्वर्ग कैसा कहा जाता है? इस प्रश्न का उत्तर है‘गोलोक की प्राप्ति मानव के लिए दुर्लभ है।)
व्याकरणक बिन्दवः-भोजनान्ते- भोजनस्य अन्ते (ष. तत्पुरुष) भोजन + अन्ते (दीर्घ सन्धि) विष्णुपदम्-विष्णोः पदम् (ष. तत्पुरुष) दुर्लभम्-दुष्करेन कष्टेन लभ्यम् (तृतीया तत्पुरुषः)।
3. रवेः कवेः किं समरस्य सारं,
कृषेर्भयं कि किमदन्ति भृङ्गा।
सदा भयं चाप्यभयञ्च केषां,
भागीरथीतीरसमाश्रितानाम् ॥3॥
अन्वयः-रवेः कवेः समरस्य (च) सारं किम् ? भा, गी, रथी च। कृषेः भयं किम् ? ईतिः। भुंगा किम् अदन्ति ? रसम्। केषां च सदा भयम् ? आश्रितानाम्। अभयं च- भागीरथीतीरसमाश्रितानाम्।
शब्दार्थाः-समरस्य = युद्धस्य (युद्ध का)। भृगाः = भ्रमराः (भौंरे)। अदन्ति = खादन्ति (खाते हैं)। भा = प्रकाशः, गीः = वाणी, रथी = वीरः। ईतिः = अतिवृष्टि अनावृष्टि आदयः। (प्राकृतिक प्रकोप) रसम् = पुष्प रसम् (फूलों का रस) : आश्रितोनामम् = पराश्रितानाम् (पराश्रितों का) भागीरथीतीरसमाश्रितानाम् = गंगा के किनारे निवास करने वालों को।
हिन्दी अनुवादः
रवि, कवि और युद्ध का सार क्या है? उत्तर है-क्रमशः प्रकाश, वाणी तथा रथी (वीर)। कृषि का भय। क्या है? उत्तर है-अतिवृष्टि आदि। ईतियाँ (प्राकृतिक प्रकोप)। भरे क्या खाते हैं? रस। सदा भय किनका है? उत्तर है-पराश्रितों का। सदा अभय किन्हें होता है? उत्तर है-गंगा के किनारे का आश्रय लेने वालों को।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग:-प्रहेलिका एषा अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः सप्तप्रश्नान् प्रस्तुतत्य श्लोकस्य चतुर्थे चरणं तान् उत्तरति।
(यह पहेली हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि:’ पाठ से ली गई है। इस श्लोक में कवि ने सात प्रश्न प्रस्तुत कर उनका उत्तर श्लोक के चौथे चरण में ही दे दिया है।)
व्याख्याः-सूर्यस्य सारं प्रकाशः कान्तिः वा। कवेः सार तस्य वाग्वैशिष्ट्यं युद्धस्य सारं वीरः। कृषि उद्योगे ईतिभीतिना भीति अर्थात् अनावृष्टि अतिवृष्टि इत्यादीनां प्राकृतिकापदानामेव भयः वर्तते। भ्रमराः सदैव रसमेव पिबन्ति। ये जनाः निराश्रिताः सन्ति ते सदैव भयभीताः भवन्ति। परञ्च ये गंगायाः तीरे आश्रयं गृहीत्वा निवसन्ति ते भयमुक्ता भवन्ति।
(सूर्य का सार प्रकाश अथवा कान्ति है। कवि का सार उसकी वाणी की विशेषता, युद्ध का सार वीरपुरुष है। कृषि उद्योग में असमय वर्षा होना, अधिक वर्षा होना आदि प्राकृतिक आपदाओं का ही भय है। भौरे हमेशा रस ही पीते हैं। जो मनुष्य बेसहारा हैं वे सदैव भयभीत होते हैं। लेकिन जो गंगा के किनारे आश्रय ग्रहण करके रहते हैं वे भयमुक्त होते हैं। अर्थात् ‘निडर रहते हैं।)
व्याकरणिक बिन्दवः-समरस्य सारम्-समरसारम् (ष. तत्पुरुष समास)। चाप्यभयञ्च-च + अपि + अभयम् + च (दीर्घ, यण, हल् संधि) अभयम्-न भयम् (नञ् तत्पुरुष) समाश्रितानाम्-सम् + आ + श्रि + क्त (ष. वि. ब.व.)
4. सीमन्तिनीषु का शान्ता, राजा कोऽभूदगुणोत्तमः।
विद्वभिः का सदा वन्द्या, अत्रैवोतं न बुध्यते ॥4॥
अन्वयः-सीमन्तिनीषु शान्ता का? गुणोत्तमः राजा कः अभूत्। विविभिः सदा का वन्द्या? (उत्तरम्) अत्र एव उक्तम्। न बुध्यते शब्दार्थाः-सीमन्तिनीषु = स्त्रीषु (औरतों में)। अभूत् = अभवत् (हुआ)। वन्द्या = वन्दनीया (वन्दना करने योग्य)। अत्रैवोक्ततम् = अस्मिन् एव श्लोके कथितम् (इसी श्लोक में कहा गया है)। न बुध्यते = न ज्ञायते (जाना नहीं जाता)। विद्वदभिः = प्राज्ञैः (विद्वानों द्वारा)। अत्रैवोक्त = इतः श्लोके एव कथितम् (यहाँ श्लोक में ही दिया हुआ है।)
हिन्दी अनुवादः-औरतों में कौन शान्त (स्वभाववाली) है? गुणों में उत्तम राजा कौन हुआ? विद्वानों में सदा वन्दनीया कौन है? उत्तर यहाँ इस श्लोक में ही दिया हुआ है। जाना नहीं जा रहा। (प्रत्येक वाक्य में प्रथम व अन्तिम वर्ण को मिलाकर उत्तर जाना जा सकता है। क्रमश:-सीता, राम तथा विद्या।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या।
प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः प्रश्नत्रयं पृच्छति। प्रश्नस्य उत्तरम् प्रश्नस्य प्रथम-अन्तिमं च अक्षरं नियोज्य गृहीतुं शक्यते-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुग्तक के ‘वाक्केलि’ पाठे से लिया गया है। इस श्लोक में कवि तीन प्रश्न पूछता है। प्रश्न का उत्तर प्रश्न के प्रथम व अन्तिम वर्ण को जोड़कर ग्रहण किया जा सकता है।)
व्याख्याः-स्त्रीषु का शान्त स्वभावा? कः नृपः सद्गुणोपेतोऽजायत। प्राज्ञैः सदा का वन्दनीया भवति? एतस्य प्रश्नत्रस्य उत्तरं प्रश्नस्य आद्यन्त्यम् अक्षरं मेलयित्वा ज्ञातुं शक्यते। तत् यथा-सीमन्तिनीषु सीता शान्ता, गुणोत्तमः नृपः रामोऽजायत, विद्वद्भिदः विद्या वन्दनीया।
(स्त्रियों में कौन शान्त है? कौन राजा सद्गुणों से उत्तम हुआ। विद्वानों द्वारा वन्दना करने योग्य कौन है। उत्तर प्रश्न के आदि और अन्त्य वर्ण को मिलाकर जाना जा सकता है। वह है-औरतों में सीता शान्त है, राजाओं में राम सद्गुणोपेत हुए तथा विद्या विद्वानों में वन्दनीया होती है।)
व्याकरणिक बिन्दवः-शान्ता-शम् + क्त + टाप्। कोऽभूत्-कः + अभूत (विसर्ग एवं पूर्वरूप) गुणोत्तमः-गुण + उत्तमः (गुण संधि) गुणेषु उत्तमः (सः तत्पुरुषः) वन्द्या-वन्द् + ण्यत् + टाप्।
5. पानीयं – पातुमिच्छामि, त्वत्तः कमललोचने।
यदि दास्यसि नेच्छामि, न दास्यसि पिबाम्यहम्॥5॥!
अन्वयः-(हे) कमललोचने ! त्वत्त: पानीयं पातुम् इच्छामि। यदि दास्यसि (वितरिष्यसि, दासी + असि), न इच्छामि। यदि ने दास्यसि (न वितरिष्यसि, न दासी + असि) अहं पिबामि।।
शब्दार्थाः-पानीयम् = जलम् (पानी)। पातुमिच्छामि = ग्रहीतुम् ईहे (पीने की इच्छा)। त्वत्तः = तव हस्तात् (तुम्हारे हाथ से)। दास्यसि = दा + लृट् (दोगी)। दासी + असि (दासी हो तो)। कमललोचने = पद्मनयने (कमल जैसे नेत्रों वाली)। पिबाम्यहम् = मैं पीता हूँ।
हिन्दी अनुवादः-हे कमल जैसे नेत्रो वाली ! तुम्हारे हाथ से पानी पीना चाहता हूँ। यदि आप दोगी तो नहीं चाहता, नहीं दोगी तो मैं पीऊँगा। (परिहारार्थ में) यदि तुम दासी हो तो नहीं पीना चाहता, यदि दासी नहीं हो तो पी लेता हूँ।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उद्धृतः। अस्मिन श्लोके कविः नायिकायाः जलं पातुमिच्छति परन्तु श्लेषमाध्यमेन विरोधाभासं प्रदर्शयति। अत्र दास्यसि पदं द्वार्थकम्: दास्यसि (दा + लृट्) वितरिष्यति 2. दासी + असि इति।
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि नायिका से पानी पीना चाहता है परन्तु श्लेष के माध्यम से विरोधाभास प्रदर्शित करता है। यहाँ दास्यसि पदद्वार्थक है-1. दास्यसि-दोगी। 2. दासी + असि = दासी हो।)
व्याख्याः -हे कमलनयने! अहं तव हस्तात् जलं ग्रहीतुम् इच्छामि परं च यदि त्वम् वितरिष्यसि तदा ने ग्रहीष्यामि न। वितरिष्यसि तदा गृह्णामि। निराकरणे-यदि त्वं दासी असि तदा तव हस्तात् अहं जलं न पातुम् इच्छामि यदि त्वं दासी न असि। तदा अहं पिबामि।
(हे कमलनयने ! मैं तुम्हारे हाथ से पानी पीना चाहता हूँ परन्तु यदि तुम दोगी तो मैं न ग्रहण करूंगा यदि नहीं दोगी तो पी लेता हूँ। (दूसरे अर्थ में-यदि तुम दासी हो तो मैं नहीं ग्रहण करूगा यदि तुम दासी नहीं हो तो मैं पी लेता हूँ।)
व्याकरणिक बिन्दवः पातुम्–पा + तुमुन्। त्वत्त:-त्वत् + तसिल्। कमललोचने-कमलम् इव लोचने यस्याः सा (बहुव्रीहि)। दास्यसि-दासी + असि (यण सन्धि) पिबाम्यहम् = पिबामि + अहम् (यण् सन्धि) नेच्छामिन + इच्छामि (गुण सन्धि)
6. कं संजघान कृष्णः, का शीतलवाहिनी गंगा।
के दारपोषणरताः, कं बलवन्तं न बाधते शीतम् ॥6॥
अन्वयः-कृष्णः कं संजघान? शीतलवाहिनी गंगा का (अस्ति) ? दार-पोषण-रताः के (सन्ति) ? कं बलवन्तं शीतं न बाधते ?
शब्दार्थाः-संजघान = हतवान् (मारा)। वाहिनी = नदी। दारपोषणरताः = दाराणां (पत्नी-बच्चों)। पोषणरता = पोषणे लग्नाः (पोषण करने में लगे हुए)। बलवन्तम् = बलशालिनम् (बलशाली को)। बाधते = पीडयति (पीड़ा देता है)।
हिन्दी अनुवादः-कृष्ण ने किसको मारा? शीतल नदी गंगा कौन-सी है? पत्नियों के पोषण में कौन रत है? किस बलशाली को शीत पीड़ित नहीं करता ? उत्तर के लिए अन्वय इस प्रकार होगा कंसं जधान कृष्णः। काशी-तल वाहिनी गंगा। केदार–पोषण रताः, कम्बल वन्तं शीतं न बाधते। (कृष्ण ने कंस को मारा। क़ाशी की तलहटी में बहने वाली गंगा शीतल है। सजल खेतों का पोषण करने वाले किसान, कम्बल वाले को शीत पीड़ित नहीं करता।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलिः’ इति पाठात् उदृधृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः प्रश्न चतुष्ट्यं पृच्छति। तेषां चतुर्णा प्रश्नानाम् उत्तराणि अपि प्रश्नस्य प्रथमौ द्वौ वर्णो मेलयित्वा ज्ञातुं शक्यन्ते।
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि चार प्रश्न पूछता है जिनके उत्तर प्रश्न के प्रथम दो वर्गों को मिलाकर जाने जा सकते हैं।)
व्याख्याः -कृष्णं कं संजघान? उत्तरम्-कृष्णः कंसं जघान। का शीतल वाहिनी गंगा? उत्तरम्-काशी-तल वाहिनी गंगा। केदारपोषणं रतीः? उत्तरम्-केदार पोषणं रताः कृषकाः। कं बलवन्तं ने बाधते शीतम् ? उत्तरम्-कम्बल वन्तं ने बाधते शीतम्। इति प्रश्नोत्तराणि। (कृष्ण ने किसको मारा? उत्तर-कृष्ण ने कंस को मारा। शीतल बहने वाली गंगा कौन सी है.? उत्तर-काशी के तले या नीचे बहने वाली नदी गंगा है। कौन पत्नी के पोषण में रत है? उत्तर-सजल खेतों का पोषण करने वाला (किसान)। किस बलवान को शीत बाधा नहीं पहुँचाता ? उत्तरम्-कम्बल से युक्त को शीत पीड़ित नहीं करता? इस प्रकार से प्रश्नों में ही उत्तर हैं।
व्याकरणिक बिन्दवः–बलवन्तम्-बल + मतुप् (द्वितीया एकवचनम्) दारपोषणम्-दाराणां पोषणम् = पुष् + ल्युट्।
7. केशवं पतितं दृष्ट्वा, द्रोणः हर्षमुपागतः।।
रुदन्ति कौरवाः सर्वे, हा! हा! केशव केशव॥7॥
अन्वयः-केशवं पतितं दृष्ट्वा द्रोण: हर्षम् उपागतः। कौरवाः सर्वे रुदन्ति, हा केशव! हा केशव!
शब्दार्थाः-केशवम् = वासुदेवम् अथवा के–जले, शवम् = मृत शरीरम् (जल में शव)। द्रोणः = द्रोणाचार्यः अथवा शवभक्षकः काकः (गुरु द्रोणाचार्य अथवा लाशों को खाने वाला कौवा)। हर्षम् उपागतः = हर्ष प्राप्त, (प्रसन्न हुआ)। रुदन्ति = रोदनं कुर्वन्ति, विलपन्ति (रुदन करते हैं)। कौरवाः = दुर्योधनः, दुश्शासन आदि अथवा शृगालाः (धृतराष्ट्र के पुत्र या गीदड़)। केशव = हे वासुदेव। अथवा के (जले) शव (लाश)।।
हिन्दी अनुवादः-कृष्ण को गिरा हुआ देखकर द्रोणाचार्य प्रसन्न हुआ। कौरव सभी रोने लगे-हे केशव ! हे केशव!
कूट अर्थ-केशव (के–जले) जल में शव (लाश) को गिरा हुआ देखकर (द्रोण:) कौवा प्रसन्न हुआ और सभी शृगाल रोने लगे-हाय जल में लाश गई, जल में लाश गई।)
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः कूटश्लोके श्लेषालंकार कारणार्थ द्वार्थकम् करोति-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि ने कूटश्लोक में श्लेष अलंकार के कारण द्वार्थक बना दिया है।)
व्याख्याः-केशव्श्रीकृष्णं जले मृत शरीरं वा अवलोक्य द्रोण:-द्रोणाचार्य. काको वा प्रसन्नः भवति। परं च कौरवाः शृगालाः वा क्रन्दन्ति हा जले मृत शरीरम्, जले मृतं शरीरं (के–जले)-शवः-मृतशरीरम् प्रवहति पतितम् वा। (केशव अर्थात् श्रीकृष्ण या जल में लाश को देखकर द्रोण (द्रोणाचार्य या कौवा) प्रसन्न हो गया परन्तु दुर्योधन आदि कौरव या शृगाल रोने लगे हाय जल में लाश गई, जल में लाश गई।
व्याकरणिक बिन्दवः-कौरवाः-कुरु + अण् = कौरव (प्र.वि. बहुवचनम्= कौरवाः)। दृष्ट्वी-दृश् + क्त्वा।
8. अपदो दूरगामी च, साक्षरो न च पण्डितः।
अमुखः स्फुटवक्ता च, यो जानाति सः पण्डितः ॥8॥
अन्वयः- अपदः दूरगामी च, साक्षरः न च पण्डितः, अमुखः स्फुटवक्ता च, य: जानाति सः पण्डितः।
शब्दार्थाः-अपदो = चरण रहित (बिना पैर)। अमुखः = मुख रहित (बिना मुँह)। स्फुटवक्ता = स्पष्टवक्ता (साफ़ कहने वाला)।
हिन्दी अनुवाद-बिना पैरों के दूर तक चला जाता है। (चले जाने वाला है) साक्षर अर्थात् अक्षरों से युक्त होते हुए भी वह विद्वान नहीं है। मुँह नहीं है परन्तु स्पष्ट बोलने वाला है। जो उसे जानता है वह विद्वान है। उत्तर-पत्रम्।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या
प्रसंग-श्लोकोऽयम् अस्माकं स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य ‘वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः पत्रस्य वैशिष्ट्यम् वर्णयति।
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि पत्र (चिठ्ठी) की विशेषताओं का वर्णन करता है।)
व्याख्याः-पादाभ्यां विना अपि दूरपर्यन्तं गच्छति। अक्षरैः सहितम् अपि विद्वान् नास्ति। तस्य मुखः नास्ति तथापि स्पष्टं कथयति यः इदं जानाति सः विद्वान अस्ति। कोऽयम् ? पत्रम्। यतः तद् अपदं, अमुखं साक्षरं च तथापि दूरस्थाने गच्छति, सर्व वृत्तं लिखिते अक्षरैः कथयति।
(पैरों से रहित भी दूर तक जाता है। अक्षरों से युक्त होते हुए भी विद्वान नहीं है। उसके मुँह नहीं है फिर भी स्पष्ट समाचार (सन्देश) कह देता है। जो इसे जानता है (पढ़ लेता है) वह विद्वान है। यह कौन है? पत्र। क्योंकि वह पगरहित, अमुख और अक्षरों से युक्त होता है।)
व्याकरणिक बिन्दवः-अपद:-न पदौ यस्य सः (बहुव्रीहि)। दूरगामी-दूरं गच्छति यः सः (बहुव्रीहि) साक्षर:- अक्षरैः सहितम् (अव्ययीभाव)। अमुखः-ने मुखं यस्य सः (बहुव्रीहि)।
9. वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः।
त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी,
जलं च विभ्रन्न घटो न मेघः ॥9॥
अन्वयः-अहं वृक्षस्य अग्रवासी (अस्मि परं च) न च पक्षिराजः, त्रिनेत्रधारी (अस्मि) न च शूलपाणिः, त्वग्वस्त्रधारी (अस्मि परं च) न च सिद्धयोगी, जलं विभ्रन् न घटः न मेघः।।
शब्दार्थाः–त्रिनेत्रधारी = त्रयम्बकः (तीन आँखों वाला)। शूलपाणिः = त्रिशूली, शिवः। पक्षिराजः = गरुडः त्वग्वस्त्रधारी = वल्कले वस्त्रधारी (वल्कल वस्त्र पहनने वाला)। जलं विभ्रत् = जलं धारयन् (जल धारण करते हुए)। घटः = कलश: (घड़ा)। मेघाः = जलदाः (बादल)।
हिन्दी अनुवादः-(मैं) वृक्ष के अग्रभाग (सबसे ऊपर) में निवास करने वाला हूँ लेकिन पक्षिराज गरुड़ नहीं हूँ। (मेरे) तीन आँखें हैं परन्तु शूलपाणि शिव नहीं हूँ। (मैं) बल्कलवस्त्र धारण करता हूँ परन्तु योगी नहीं हूँ। (मैं) जल को धारण करता हुआ भी न घड़ा हूँ और न बादल हूँ।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्यारव्या प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्य-पुस्तकस्य ‘वाक्केलि’ इति पाठात् उद्धृतः। अस्मिन् श्लोके कविः नारिकेलफलस्य वैशिष्ट्यम् वर्णयन् उत्तरम् इच्छति-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्य-पुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इस श्लोक में कवि नारियल की विशेषताएँ बताते हुए उत्तर चाहता है।)
व्याख्याः-अहं वृक्षस्य अग्रभागे निवसामि परं च खगराजः गरुड़ः नास्मि। अहं त्र्यम्बकः सन् अपि शिवः नास्मि। अहं बल्कल वसनानि धारयामि परं च कोऽपिसिद्ध योगी नास्मि। अहं गर्भ जलं दधामि परं च घट: मेघः चापि नास्मि। तदा कथयत्-कोऽहम्। उत्तरम्-नारिकेलफलम्। (मैं वृक्ष के अग्रभाग पर रहता हूँ परन्तु पक्षिराज गरुड़ नहीं हूँ। मैं तीन नेत्रों वाला हूँ परन्तु शिव नहीं हूँ। मैं बल्कल वस्त्र (टाट) धारण करता हूँ परन्तु कोई सिद्ध योगी नहीं हूँ। मैं गर्भ में पानी धारण करता हूँ परन्तु न घड़ा हूँ और न बादल हूँ। तो बोलो मैं कौन हूँ। उत्तर-नारियल का फल। व्याकरणिक बिन्दवः-विभ्रन्न-विभ्रत् + न (हल् सन्धि) शूलपाणिः-शूलं पाणौ यस्य सः शिवः (बहुव्रीहिसमास। सिद्धयोगी = सिद्धः च असौ योगी (कर्मधारय) पक्षिराज:-पक्षिण: राजा (पक्षियों का राजा-षष्ठी तत्पुरुष)
10. नन्दामि मेघान् गगनेऽवलोक्य,
नृत्यामि गायामि भवामि तुष्टः।
नाहं कृषिज्ञः पथिकोऽपि नाहं,
वदन्तु विज्ञाः मम नामधेयम्॥10॥
अन्वयः-गगने मेघान् अवलोक्य (अहं) नन्दामि, नृत्यामि, गायामि तुष्टः (च) भवामि। न अहं कृषिज्ञः, अहं पथिकः अपि ने। विज्ञा मम नामधेयं वदन्तु। .
शब्दार्थाः-अवलोक्य = दृष्ट्वा (देखकर)। गगने = आकाशे (आकाश में)। नृत्यामि = नृत्यं करोमि (नाचता हूँ)। नन्दामि = आनन्दम् अनुभवामि। तुष्टः = सन्तुष्टः, प्रसन्न (प्रसन्नं)। कृषिज्ञः = कृषकः (किसान)। पथिकः = यात्री, (राही)। विज्ञाः = ये जानन्ति (जानकार)। नामधेयम् = नाम।
हिन्दी अनुवादः-आकाश में मेघों को देखकर मैं आनन्दित होता हैं, नाचता हूँ, प्रसन्न होता हूँ। न मैं किसान हूँ न राहगीर हूँ। बोलो जानने वालो मेरा नाम बताओ।
♦ सप्रसंग संस्कृत व्याख्या
प्रसंगः-श्लोकोऽयम् अस्माकं ‘स्पन्दना’ इति पाठ्यपुस्तकस्य वाक्केलि’ इति पठिात् उद्धृतः। श्लोकेऽस्मिन् कविः मयूरस्य स्वभावं वर्णयित्वा उत्तरम् इच्छति-
(यह श्लोक हमारी ‘स्पन्दना’ पाठ्यपुस्तक के ‘वाक्केलि’ पाठ से लिया गया है। इसमें कवि मयूर के स्वभाव का वर्णन करते हुए उत्तर चाहता है)
व्याख्याः- अहम् आकाशे वारिदान् दृष्ट्वा आनन्दितो भवामि, नृत्यं करोमि, गायामि प्रसन्नश्च भवामि। अहं कृषको नास्मि न चाहं पथिकोऽस्मि। ज्ञातारः मम अभिधानं कथयन्तु। कोऽहम्। उत्तरम्-मयूरः। (मैं आकाश में बादल देखकर आनन्दित होता हूँ, नाचता हूँ, गाता हूँ और प्रसन्न होता हूँ। मैं किसान नहीं हूँ, राहगीर भी मैं नहीं हूँ तो विद्वान बताइये मेरा क्या नाम है। मयूरः (मोर)।
व्याकरणिक बिन्दवः-गगनेऽवलोक्य = गगने + अवलोक्य (पूर्वरूप संधि) अव + लोक् + ल्यप् = अवलोक्य। विज्ञा = ‘विशिष्ट जानाति यः सः (ब.वी.)