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RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

RBSE Class 10 Sanskrit Solutions Shemushi Chapter 10 भूकंपविभीषिका

भूकंपविभीषिका Summary and Translation in Hindi

पाठ परिचय :

प्रस्तुत पाठ हमारे वातावरण में होने वाले प्रकोपों (आपदाओं) में सबसे प्रमुख भूकम्प की भयानकता को प्रकाशित करता है। प्रकृति में होने वाली आपदाएँ भयंकर प्रलय को उत्पन्न करके मानव-जीवन को अत्यन्त त्रस्त कर देती हैं, उनसे प्राणियों का सुखमय जीवन दुःखमय हो जाता है। इन आपदाओं में प्रमुख हैं-तूफान, भूकम्प, बाढ़, अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), शिला-स्खलन (चट्टानें खिसकना), भूमि का फटना, ज्वालामुखी के विस्फोट आदि हैं। इस पाठ में भूकम्प के विषय में चिन्तन किया गया है कि यदि आपदा के समय हम घबराहट को छोड़कर साहस के साथ प्रयत्न करें तो कठोर भयानकता से सुरक्षित हो सकते हैं। पाठ के गद्यांशों का सप्रसंग

हिन्दी अनुवाद :

1. एकोत्तर द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे (2001 ईस्वीये वर्षे) गणतन्त्र-दिवस-पर्वणि यदा समग्रमपि भारत राष्ट्र नृत्य-गीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत् तदाकस्मादेव गुर्जर-राज्यं पर्याकुलं, विपर्यस्तम्, क्रन्दनविकलं, विपन्नञ्च जातम्। भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका समस्तमपि गुर्जरक्षेत्रं विशेषेण च कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती। भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जोतम्। बहुभूमिकानि भवनानि क्षणेनैव धराशायीनि जातानि।

उत्खाता विद्युद्दीपस्तम्भाः। विशीर्णाः गृहसोपान-मार्गाः। फालद्वये विभक्ता भूमिः। भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वार जलधाराभि: महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्। सहस्रमिताः प्राणिनस्तु क्षणेनैव मृताः। ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिता सहस्रशोऽन्ये सहायतार्थं करुणकरुणं क्रन्दन्ति स्म। हा दैव! क्षुत्क्षामकण्ठाः मृतप्रायाः केचन शिशवस्तु ईश्वरकृपया एव द्वित्राणि दिनानि जीवनं धारितवन्तः।

कठिन शब्दार्थ :

  • पर्वणि = पर्व पर (उत्सवे)।
  • समग्रमपि = सम्पूर्ण भी (सम्पूर्णोऽपि)।
  • गुर्जरराज्यम् = गुजरात राज्य (गुजराताख्यं प्रान्तम्)।
  • पर्याकुलम् = चारों ओर से बेचैन (परितः व्याकुलम्)।
  • विपर्यस्तम् = अस्तव्यस्त (अस्तव्यस्तम्)।
  • क्रन्दनविकलम् = रोने (क्रन्दन) से व्याकुल (चीत्कारेण व्याकुलम्)।
  • विपन्नम् = विपत्तिग्रस्त (विपत्तिग्रस्तम्)।
  • जातम् = हो गया था (अभवत्)।
  • दारुण-विभीषिका = भयानकता से युक्त (भयङ्करः त्रासः)।
  • जनपदम् = जिला (जनपदम्)।
  • ध्वंसावशेषु = विनाश के बाद बची हुई वस्तुओं में (भग्नावशिष्टेषु)।
  • परिवर्तितवती = बदल गई थी (परिवर्तिता जाता)।
  • मृत्तिकाक्रीडनकमिव = मिट्टी के खिलौने के समान (मृत्तिकायाः क्रीडनकम् इव)।
  • बहुभूमिकानि भवनानि = बहुमंजिले मकान (अनेकतलगृहाणि)।
  • क्षणेनैव = क्षणभर में ही (अल्पसमयेनैव)।
  • उत्खाताः = उखड़ गये (उत्पाटिताः)।
  • विद्युद्दीपस्तम्भाः = बिजली के खम्भे (दामिनी पाः)।
  • विशीर्णाः = बिखर गये (नष्टाः)।
  • फालद्वये = दो खण्डों में (खण्डद्वये)।
  • निस्सरन्तीभिः = निकलती हुई (निर्गच्छन्तीभिः)।
  • दुर्वार = जिनको हटाना कठिन है (दुःखेन निवारयितुं योग्यम्)।
  • महाप्लावनम् = विशाल बाढ़ (महत्प्लावनम्)।
  • सहस्रमिताः = हजारों (सहस्रसंख्यकाः)।
  • क्षुत्क्षामकण्ठा = भूख से दुर्बल कण्ठ वाले (क्षुधाक्षामः कण्ठाः येषां ते, बुभुक्षया दुर्बलस्वरः)।
  • द्वित्राणि = दो-तीन (द्वे त्रीणि)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभीषिका’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें गुजरात प्रदेश में सन् 2001 में आये हुए भयंकर भूकम्प की भयानकता तथा उससे हुए विनाश का चित्रण किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – सन् 2001 ईसवी वर्ष में गणतन्त्र दिवस के पर्व पर जब सम्पूर्ण भारत देश नृत्य, गाने-बजाने के उल्लास में मग्न था, तभी अचानक ही गुजरात राज्य चारों ओर से बेचैन, अस्त-व्यस्त, क्रन्दन से व्याकुल और विपत्तिग्रस्त हो गया था। भूकम्प की कठोर भयानकता ने सम्पूर्ण गुजरात प्रदेश को और विशेष रूप से कच्छ जिले को विनाश के बाद शेष रही वस्तुओं (अवशेषों) में बदल दिया था।

भूकम्प का केन्द्रभूत भुज नगर तो मिट्टी के खिलौने के समान खण्ड खण्ड हो गया था। बहुमंजिले मकान क्षणभर में ही धराशायी हो गये। बिजली के खम्भे उखड़ गये। घरों की सीढ़ियाँ बिखर गईं। भूमि दो खण्डों में विभाजित हो गई। भूमि के अन्दर से (भूगर्भ से) निकलती हुई जिनको हटाना कठिन था, ऐसी जलधाराओं से विशाल बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों प्राणी तो क्षण-भर में ही मर गये।.ध्वस्त हुए भवनों में पीड़ित अन्य हजारों लोग सहायता के लिए अत्यधिक करुण-क्रन्दन कर रहे थे। हाय विधाता! भूख से दुर्बल कण्ठ वाले मृत के समान कुछ बालक तो ईश्वर की कृपा से ही दो-तीन दिन तक जीवित रह सके।

2. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य। पञ्चोत्तर- द्विसहस्रख्रीष्टाब्दे (2005 ईस्वीये वर्षे) अपि कश्मीरप्रान्ते पाकिस्तानदेशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्। यस्मात्कारणात् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः। पृथ्वी कस्मात्प्रकम्पते वैज्ञानिकाः इति विषये कथयन्ति यत् पृथिव्या अन्तर्गर्भ विद्यमानाः बृहत्यः पाषाण-शिला यदा संघर्षणवशात् त्रुट्यन्ति तदा जायते भीषणं संस्खलनम्, संस्खलनजन्यं कम्पनञ्च। तदैव भयावहकम्पनं धराया उपरितलमप्यागत्य महाकम्पनं जनयति येन महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते।

कठिन शब्दार्थ :

  • भैरवविभीषिका = भयंकर आपदा (भयानका आपदा)।
  • धरायाः = पृथ्वी का (भुव):।
  • महत्कम्पनम् = बहुत अधिक कम्पन (प्रभूतं दोलनम्)।
  • जातम् = हुआ (अभवत्)।
  • लक्षपरिमिताः = लाखों की तसहस्त्रसंख्यकाः)।
  • अकालकालकवलिताः = असमय ही मृत्यु को प्राप्त हए (असमये एव दिवंगताः)
  • प्रकम्पते = काँपती है/हिलती है (दोलायते)।
  • अन्तर्गर्भे = केन्द्र भाग में (आन्तरिकभागे)।
  • बृहत्यः = विशाल (विशालाः)।
  • पाषाणशिला = पत्थर की शिलाएँ (प्रस्तरपट्टिकाः)।
  • संघर्षणवशात् = परस्पर घर्षण होने से (परस्परघर्षणात्)।
  • त्रुट्यन्ति = टूट जाती हैं (भञ्जन्ति, खण्डखण्डं भवन्ति)।
  • संस्खलनम् = फिसलना, स्थान से हटना (विचलनम्)।
  • उपरितलमागत्य = ऊपर के तल पर आकर (बाह्यतलं प्राप्य)।
  • जनयति = उत्पन्न करता है (उत्पन्न करोति)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभीषिका’ शीर्षक पाठ से उद्धृत किया गया है। इसमें भूकम्प की भयानकता व विनाश का तथा उसके कारणों का वर्णन करते हुए आपदा के समय घबराहट को त्यागकर साहसपूर्वक प्रयत्न करने की प्रेरणा दी गई है। इस अंश में सन् 2005 में कश्मीर प्रान्त और पाकिस्तान देश में आये भूकम्प का वर्णन करते हुए उसके कारणों का भी वर्णन किया गया है।

हिन्दी अनुवाद – यह तो कच्छ भूकम्प की भीषण विभीषिका थी। सन् 2005 ई. वर्ष में भी कश्मीर प्रान्त में और पाकिस्तान देश में भूमि का महान् कम्पन (भूकम्प) हुआ था। जिस कारण लाखों की संख्या में लोग असमय ही मृत्यु को प्राप्त हुए थे। पृथ्वी किस कारण से काँपती है, इस विषय में वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी के अन्दर गर्भ में विद्यमान विशाल पत्थरों की शिलाएँ जब परस्पर में घर्षण के कारण टूट जाती हैं तब भीषण स्खलन (स्थान से हटना) होता है, और स्खलन से कम्पन उत्पन्न होता है। वही भयानक कम्पन पृथ्वी के ऊपरी तल (भूतल) पर आकर महान् कम्पन को उत्पन्न करता है जिससे महाविनाश का दृश्य उत्पन्न होता है।

3. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते इति कथयन्ति भूकम्पविशेषज्ञाः। पृथिव्याः गर्भे विद्यमानोऽग्निर्यदा खनिजमृत्तिका-शिलादिसञ्चयं क्वथयति तदा तत्सर्वमेव लावारसताम् उपेत्य दुर्वारगत्या धरा पर्वतं वा विदार्य बहिर्निष्क्रामति। धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्। सेल्सियश-ताप मात्राया अष्टशताङ्कतामुपगतोऽयं लावारसो यदा नदीवेगेन प्रवहति तदा पार्श्वस्थग्रामा नगराणि वा तदुदरे क्षणेनैव समाविशन्ति।
निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः। ज्वालामुगिरन्त एते पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।

कठिन शब्दार्थ :

  • ज्वालामुखपर्वतानाम् = ज्वालामुखी पर्वतों के (अग्निमुखपर्वतानाम् )।
  • भूकम्पो जायते = धरती में कम्पन होता है (धरादोलनं भवति)।
  • भूकम्पविशेषज्ञाः = भूमि के कम्पन के रहस्य को जानने वाले (भुवः कम्पनस्य रहस्यज्ञातारः)।
  • खनिज = भूमि को खोदने से प्राप्त वस्तु (उत्खननात् प्राप्तं द्रव्यम्)।
  • क्वथयति = उबालती है, तपाती है. (उत्तप्तं करोति)।
  • उपेत्य = प्राप्त करके (प्राप्य)।
  • दुर्वारगत्या = नहीं रोके जा सकने वाली गति से (अनियन्त्रितवेगेन)।
  • धराम् = भूमि को (भूमिम्)। विदार्य = फाड़कर (विदीर्णं कृत्वा)।
  • बहिनिष्क्रामति = बाहर निकलती है (उपरि आगच्छति)।
  • धूमभस्मावृतम् = धुआँ और राख से घिरा हुआ (धूमेन भस्मेन च आवृतम्)।
  • गगनम् = आकाश (आकाशः)।
  • पार्श्वस्थग्रामा = समीप के गाँव (समीपस्थग्रामाः)।
  • उदरे = पेट में (जठरे)।
  • समाविशन्ति = समा जाते हैं (समाविष्टाः भवन्ति)।
  • निहन्यन्ते = मारे जाते हैं (म्रियन्ते)।
  • उगिरन्तः = प्रकट करते हुए (प्रकटयन्तः)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभीषिका’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इसमें भूकम्प की भयानकता व विनाश का तथा उसके कारणों का वर्णन करते हुए आपदा के समय घबराहट को त्यागकर साहसपूर्वक प्रयत्न करने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनवाद – ज्वालामखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प उत्पन्न होता है, ऐसा भूकम्प के रहस्य को जानने वाले वैज्ञानिक कहते हैं। पृथ्वी के गर्भ में विद्यमान अग्नि जब खनिज पदार्थों मिट्टी, शिला आदि के समूह को उबालती है तब वह सब कुछ ही लावारस के रूप को प्राप्त करके न रोके जा सकने वाली तीव्र गति से पृथ्वी अथवा पर्वत को फाड़कर बाहर निकलता है।

तब आकाश धुआँ और राख से व्याप्त हो जाता है। 800 सेल्सियश तापमान तक पहुँचा हुआ यह लावारस जब नदी के वेग से बहता है तब समीप के गाँव अथवा नगर उसके पेट में क्षण-भर में ही समा जाते हैं। और इससे विवश प्राणी मारे जाते हैं। ज्वाला को प्रकट करते हुए ये पर्वत भी भीषण भूकम्प को उत्पन्न करते हैं।

4. यद्यपि दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम, तस्योपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते। प्रकृति समक्षमद्यापि विज्ञानगर्वितो मानवः वामनकल्प एव तथापि भूकम्परहस्यज्ञाः कथयन्ति यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं न करणीयम्। तटबन्धं निर्माय बृहन्मात्रं नदीजलमपि नैकस्मिन् स्थले पुञ्जीकरणीयम् अन्यथा असन्तुलनवशाद् भूकम्पस्सम्भवति। वस्तुतः शान्तानि एवं पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते। अशान्तानि खलु तान्येव महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।

कठिन शब्दार्थ :

  • दैवः = ईश्वरीय (ईश्वरीयः)।
  • प्रकोपः = अत्यधिक कोप (प्रकृष्टः कोपः)।
  • उपशमनस्य = शान्ति करने का (शान्तेः)।
  • अद्यापि = आज भी (अधुनापि)।
  • वामनकल्पः = बौना (ह्रस्वकायः सदृशः)।
  • भूकम्परहस्यज्ञाः = भूकम्प के रहस्य को जानने वाले (धरादोलनविदः)।
  • बहुभूमिकं = बहुमंजिलों वाले (अनेकतलोपेता)।
  • निर्माय = बनाकर (निर्माणं कृत्वा)।
  • पुञ्जीकरणीयम् = इकट्ठा करना चाहिए (संग्रहणीयम्)।
  • क्षितिः = पृथ्वी (पृथ्वीः)।
  • पावक = अग्नि (अग्निः)।
  • समीर = वायु (वायुः)।
  • योगक्षेमाभ्याम् = अप्राप्त की प्राप्ति योग है तथा प्राप्त की रक्षा क्षेम है (अप्राप्तस्य प्राप्तिः प्राप्तस्य च रक्षणम्)।
  • तान्येव = वे ही (अमूनि एव)।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘शेमुषी-द्वितीयो भागः’ के ‘भूकम्पविभीषिका’ शीर्षक पाठ से उद्धत किया गया है। इसमें भूकम्प की भयानकता व विनाश का तथा उसके कारणों का वर्णन करते हुए आपदा के समय घबराहट को त्यागकर साहसपूर्वक प्रयत्न करने की प्रेरणा दी गई है।

हिन्दी अनुवाद – यद्यपि भूकम्प ईश्वरीय प्रकोप है, उसे शान्त करने का कोई भी स्थिर उपाय दिखाई नहीं देता है। प्रकृति के सामने विज्ञान से गर्वयुक्त मानव आज भी बौना ही है, फिर भी भूकम्प के रहस्य को जानने वाले वैज्ञानिक कहते हैं कि बहुमंजिलों वाले भवनों का निर्माण नहीं करना चाहिए। तटबन्धों को बनाकर बहुत अधिक नदी के जल को भी एक ही स्थान पर इकट्ठा नहीं करना चाहिए, अन्यथा असन्तुलन होने के कारण भूकम्प सम्भव होता है। वास्तव में शान्त रहने पर ही पञ्च-तत्त्व पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पृथ्वी के योग-क्षेम के लिए ही कार्य करते हैं। अशान्त होने पर निश्चित रूप से वे ही पञ्च-तत्त्व महाविनाश उपस्थित करते हैं।

RBSE Class 10 Sanskrit भूकंपविभीषिका Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत
(क) कस्य दारुण-विभीषिका गुर्जरक्षेत्रं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती?
(ख) कीदृशानि भवनानि धाराशायीनि जातानि?
(ग) दुर्वार-जलधाराभिः किम् उपस्थितम्?
(घ) कस्य उपशमनस्य स्थिरोपायः नास्ति?
(ङ) कीदृशाः प्राणिनः भूकम्पेन निहन्यन्ते?
उत्तरम् :
(क) भूकम्पस्य
(ख) बहुभूमिकानि
(ग) महाप्लानदृश्यम्
(घ) भूकम्पस्य
(ङ) विवशाः

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत
(क) समस्तराष्ट्र कीदृक् उल्लासे मग्नम् आसीत् ?
उत्तरम् :
समस्त राष्ट्र गणतन्त्रदिवसपर्वणि नृत्यगीतवादित्राणाम् उल्लासे मग्नमासीत्।

(ख) भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कः जनपदः आसीत् ?
उत्तरम् :
भूकम्पस्य केन्द्रबिन्दुः कच्छजनपद: आसीत्।

(ग) पृथिव्याः स्खलनात् किं जायते?
उत्तरम् :
पृथिव्याः स्खलनात् भूकम्पनं तेन च महाविनाशं जायते।

(घ) समग्रो विश्वः कैः आतंकितः दृश्यते ?
उत्तरम् :
समग्रो विश्व: भूकम्पैः आतंकित: दृश्यते।

(ङ) केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते ?
उत्तरम् :
ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते।

प्रश्न 3.
स्थूलपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं ध्वंसावशेषेषु परिवर्तितवती।
(ख) वैज्ञानिकाः कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते।
(ग) विवशाः प्राणिनः आकाशे पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते।
(घ) एतादृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता।
(ङ) तदिदानीम् भूकम्पकारणं विचारणीयं तिष्ठति।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
(क) भूकम्पविभीषिका विशेषेण कच्छजनपदं केषु परिवर्तितवती?
(ख) के कथयन्ति यत् पृथिव्याः अन्तर्गर्भे, पाषाणशिलानां संघर्षणेन कम्पनं जायते?
(ग) विवशाः प्राणिनः कुत्र पिपीलिकाः इव निहन्यन्ते?
(घ) कीदृशी भयावहघटना गढवालक्षेत्रे घटिता?
(ङ) तदिदानीम् किम् विचारणीयं तिष्ठति?

प्रश्न 4.
‘भूकम्पविषये’ पञ्चवाक्यमितम् अनुच्छेदं लिखत।
उत्तरम् :
भूमेः कम्पनमेव भूकम्पः कथ्यते। भूकम्पात् महाविनाशदृश्यं समुत्पद्यते, ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते। विविधदेशेषु भीषणभूकम्पाद् लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः जाताः। प्रकृत्याम् असन्तुलनवशाद भूकम्पस्सम्भवति। यदा पञ्चतत्त्वानि क्षितिजलपावकसमीरगगनानि अशान्तानि भवन्ति तदा तानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति। अतः अस्माभिः प्रकृतेः शान्त्यर्थं प्रयास: करणीयः।

प्रश्न 5.
कोष्ठकेषु दत्तेषु धातुषु निर्देशानुसारं परिवर्तनं विधाय रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) समग्रं भारतं उल्लासे मग्न………. (अस् + लट् लकारे)
(ख) भूकम्पविभीषिका कच्छजनपदं विनष्टं………. (कृ + क्तवतु + ङीप्)
(ग) क्षणेनैव प्राणिन: गृहविहीना………… (भू + लङ्, प्रथमपुरुष बहुवचन)
(घ) शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्या ………… (भू + लट्, प्रथम पुरुष बहुवचन)
(ङ) मानवा ……….. यत् बहुभूमिकभवननिर्माणं करणीयम् न वा? (पृच्छ् + लट्, प्रथम पुरुष बहुवचन)
(च) नदीवेगेन ग्रामाः तदुदरे. ………… (सम् + आ + विश् + विधिलिङ्, प्रथम पुरुष एकवचन)।
उत्तरम् :
(क) अस्ति
(ख) कृतवती
(ग) अभवन
(घ) भवन्ति
(ङ) पृच्छन्ति
(च) समाविशेत्।

प्रश्न 6.
सन्धिं/सन्धिविच्छेदं च कुरुत
(अ) परसवर्णसन्धिनियमानुसारम्-
उत्तरम् :
(क) किञ्च = किम् + च
(ख) नगरन्तु = नगरम् + तु
(ग) विपन्नञ्च = विपन्नम् + च
(घ) किन्नु = किम् + नु
(ङ) भुजनगरन्तु = भुजनगरम् + तु
(च) सञ्चयः = सम् + चयः

(आ) विसर्गसन्धिनियमानुसारम्
उत्तरम् :
(क) शिशवस्तु = शिशवः + तु
(ख) विस्फोटैरपि = विस्फोटैः + अपि
(ग) सहस्रशोऽन्ये = सहस्रशः + अन्ये
(घ) विचित्रोऽयम् = विचित्रः + अयम्
(ङ) भूकम्पो जायते = भूकम्पः + जायते
(च) वामनकल्प एव = वामनकल्पः + एव

प्रश्न 7.
(अ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे विलोमपदानि, तयोः संयोगं कुरुत

(आ) ‘क’ स्तम्भे पदानि दत्तानि ‘ख’ स्तम्भे समानार्थकपदानि, तयोः संयोगं कुरुत –

प्रश्न 8.
(अ) उदाहरणमनुसृत्य प्रकृति-प्रत्यययोः विभागं कुरुत –
यथा – परिवर्तितवती – परि + वृत् + क्तवतु + ङीप् (स्त्री)
उत्तरम् :

  • धृतवान् – धृ + क्तवतु
  • हसन् – हस् + शतृ
  • विशीर्णा – वि + शृ + क्त + टाप् (स्त्री)
  • प्रचलन्ती – प्र + चल् + शतृ + ङीप् (स्त्री)
  • हतः – हन् + क्त

(आ) पाठात् विचित्य समस्तपदानि लिखत
उत्तरम् :

  • महत् च तत् कम्पनं = महत्कम्पनम्
  • दारुणा च सा विभीषिका = दारुणविभीषिका
  • ध्वस्तेषु च तेषु भवनेषु = ध्वस्तभवनेषु
  • प्राक्तने च तस्मिन् युगे = प्राक्युगे
  • महत् च तत् राष्ट्र तस्मिन् = महाराष्ट्र

RBSE Class 10 Sanskrit भूकंपविभीषिका Important Questions and Answers

संस्कृतमाध्यमेन प्रश्नोत्तराणि :

(अ) एकपदेन उत्तरत

प्रश्न 1.
गुर्जरक्षेत्रे भूकम्पस्य केन्द्रभूतं नगरं किम् आसीत् ?
उत्तरम् :
भुजनगरम्।

प्रश्न 2.
भूकम्पाद् का फालद्वये विभक्ताः?
उत्तरम् :
भूमिः।

प्रश्न 3.
कस्मिन् वर्षे कश्मीरप्रान्ते धराया: महत्कम्पनं जातम् ?
उत्तरम् :
2005 ईस्वीये वर्षे।

प्रश्न 4.
बृहत्य: पाषाण-शिलाः कस्याः अन्तर्गर्भे भवन्ति ?
उत्तरम् :
पृथिव्याः।

प्रश्न 5.
भयावहकम्पनं धराया उपरितलमागत्य किं जनयति ?
उत्तरम् :
महाकम्पनम्।

प्रश्न 6.
ज्वालामुखविस्फोटैः गगनं कीदृशं जायते ?
उत्तरम् :
धूमभस्मावृतम्।

प्रश्न 7.
कीदृशः प्रकोपो भूकम्पो नाम ?
उत्तरम् :
दैवः।

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत –

प्रश्न 1.
कदा गूर्जरराज्यं भूकम्पाद् पर्याकुलं विपन्नञ्चजातम् ?
उत्तरम् :
2001 ईस्वीये वर्षे गणतन्त्रदिवसपर्वणि गूर्जरराज्यं भूकम्पाद् पर्याकुलं विपन्नञ्च जातम्।

प्रश्न 2.
भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु कीदृशं जातम् ?
उत्तरम् :
भूकम्पस्य केन्द्रभूतं भुजनगरं तु मृत्तिकाक्रीडनकमिव खण्डखण्डम् जातम्।

प्रश्न 3.
कच्छजनपदे काभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम् ?
उत्तरम् :
कच्छजनषदे भूमिग दुपरि निस्सरन्तीभिः दुर्वारजलधाराभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्।

प्रश्न 4.
ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः सहस्रशः जनाः किं कुर्वन्ति स्म?
उत्तरम् :
ध्वस्तभवनेषु सम्पीडिताः सहस्रशः जनाः सहायतार्थं करुणक्रन्दनं कुर्वन्ति स्म।

प्रश्न 5.
2005 ईस्वीये वर्षे कुत्र धरायाः महत्कम्पनं जातम् ?
उत्तरम् :
2005 ईस्वीये वर्षे कश्मीरप्रान्ते पाकिस्तानदेशे च धरायाः महत्कम्पनं जातम्।

प्रश्न 6.
पृथिव्याः अन्तर्गर्भे पाषाणशिलानां संघर्षणवशात् किं जायते ?
उत्तरम् :
पृथिव्याः अन्तर्गर्भे पाषाणशिलानां संघर्षणवशात् भीषणं संस्खलनम्, तस्माच्च कम्पनं जायते।

प्रश्न 7.
कीदृशाः पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति?।
उत्तरम् :
ज्वालामुगिरन्तः पर्वता अपि भीषणं भूकम्पं जनयन्ति।

प्रश्न 8.
कस्य उपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते ?
उत्तरम् :
भूकम्पस्य उपशमनस्य न कोऽपि स्थिरोपायो दृश्यते।

प्रश्न 9.
प्रकृतिसमक्षमद्यापि मानवः कीदृशः वर्तते ?
उत्तरम् :
प्रकृतिसमक्षमद्यापि मानवः वामनकल्प एव वर्तते।

प्रश्न 10.
शान्तानि पञ्चतत्त्वानि कस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्से?
उत्तरम् :
शान्तानि पञ्चतत्त्वानि भूतलस्य योगक्षेमाभ्यां कल्पन्ते।

प्रश्न-निर्माणम् :

रेखाङ्कितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत –

1. गणतन्त्रदिवसपर्वणि भारतराष्ट्रम् उल्लासे मग्नमासीत्।
2. भूकम्पस्य दारुण-विभीषिका कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती।
3. भुजनगरं तु खण्डखण्डम् जातम्।
4. भूमिः फालद्वये विभक्ता।
5. जलधाराभिः महाप्लावनदश्यम उपस्थितम।
6. सहस्त्रमिताः प्राणिनः क्षणेनैव मृताः।
7. इयमासीत् भैरवविभीषिका कच्छभूकम्पस्य
8. लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः।
9. तदा जायते भीषणं संस्खलनम्।
10. ज्वालामुखपर्वतानां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते।
11. धूमभस्मावृतं जायते तदा गगनम्।
12. निहन्यन्ते च विवशाः प्राणिनः।
13. दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम।
14. बहुभूमिकभवनानां निर्माणं न करणीयम्।
15. अशान्तानि पञ्चतत्त्वानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति।
उत्तरम् :
प्रश्ननिर्माणम्
1. कदा भारतराष्ट्रम् उल्लासे मग्नमासीत्?।
2. कस्य दारुण-विभीषिका कच्छजनपदं ध्वंसावशेषु परिवर्तितवती?
3. भुजनगरं तु कीदृशं जातम् ?
4. का फालद्वये विभक्ता?
5. काभिः महाप्लावनदृश्यम् उपस्थितम्?
6. के क्षणेनैव मृताः?
7. इयमासीत् भैरवविभीषिका कस्य?
8. कति जनाः अकालकालकवलिताः?
9. तदा जायते कीदृशं संस्खलनम्?
10. केषां विस्फोटैरपि भूकम्पो जायते?
11. कीदृशं जायते तदा गगनम्?।
12. निहन्यन्ते च कीदृशाः प्राणिनः?
13. कीदृशः प्रकोपो भूकम्पो नाम?
14. केषां निर्माणं न करणीयम् ?
15. कानि महाविनाशम् उपस्थापयन्ति?

पाठ-सार-लेखनम् :

प्रश्न 1.
‘भूकम्पविभीषिका’ इति पाठस्य सारः हिन्दीभाषायां लिखत।
उत्तर :
पाठ-सार-‘भूकम्पविभीषिका’ नामक पाठ में भूकम्प की भयानकता का वर्णन करते हुए उसके कारण एवं निवारण हेतु प्रयत्न किये जाने का उल्लेख हुआ है। पाठानुसार 26 जनवरी, 2001 को गुजरात प्रदेश में आये भयंकर भूकम्प से जन-जीवन अस्त-व्यस्त, क्रन्दन से व्याकुल और विपत्तिग्रस्त हो गया था। भूकम्प का केन्द्रभूत कच्छ जिले का भुजनगर तो खण्ड-खण्ड हो गया था। बहुमंजिले मकान धराशायी हो गये। बिजली के खम्भे उखड़ गये। भूमि फट गई। भूगर्भ से निकली हुई जलधाराओं से बाढ़ का दृश्य उपस्थित हो गया। हजारों प्राणी क्षण-भर में ही मर गये। हजारों घायल लोग सहायता के लिए अत्यन्त करुण-क्रन्दन कर रहे थे।

इसी प्रकार सन् 2005 ई. में भी कश्मीर प्रान्त और पाकिस्तान देश में भयंकर भूकम्प आया था। जिस कारण लाखों लोगों की असमय ही मृत्यु हो गई थी। भूकम्प के विषय में वैज्ञानिक कहते हैं कि पृथ्वी के अन्दर शिलाओं के घर्षण से स्खलन होता है तथा उससे कम्पन उत्पन्न होता है जो पृथ्वी के ऊपर आकर महाविनाश कर देता है। ज्वालामुखी पर्वतों के विस्फोटों से भी भूकम्प उत्पन्न होता है। वस्तुतः भूकम्प ईश्वरीय प्रकोप है, उसे शान्त करने का कोई स्थिर उपाय नहीं है, फिर भी प्रकृति में सन्तुलन बनाये रखने का हमें प्रयत्न करना चाहिए। प्रकृति के पञ्च तत्त्व शान्त रहने पर ही मानव-कल्याण सम्भव है। उन पञ्च तत्त्वों के अशान्त होने पर महाविनाश उत्पन्न होता है।

शब्दार्थ-चयनम् :

अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां प्रसङ्गानुकूलम् उचितार्थं चित्वा लिखत –

प्रश्न 1.
अकस्मादेव गुर्जर-राज्यं विपर्यस्तं जातम्।
(क) अस्तव्यस्तम्
(ख) व्याकुलम्
(ग) भयानकम्
(घ) भग्नम्
उत्तरम् :
(क) अस्तव्यस्तम्

प्रश्न 2.
उत्खाताः विद्युद्दीपस्तम्भाः।
(क) उदण्डाः
(ख) अवनता
(ग) उत्पाटिताः
(घ) उपरि आगता
उत्तरम् :
(ग) उत्पाटिताः

प्रश्न 3.
विशीर्णाः गृहसोपानमार्गाः।
(क) विलुप्ताः
(ख) नष्टाः
(ग) विभाजिताः
(घ) विराजिताः
उत्तरम् :
(ख) नष्टाः

प्रश्न 4.
फालद्वये विभक्ता भूमिः।
(क) समानान्तरे
(ख) विपरीते
(ग) आयताकारे
(घ) खण्डद्वये
उत्तरम् :
(घ) खण्डद्वये

प्रश्न 5.
इयमासीत् भैरव-विभीषिका कच्छभूकम्पस्य।
(क) भयानका
(ख) बीभत्सा
(ग) भारवहन
(घ) बहुधा
उत्तरम् :
(क) भयानका

प्रश्न 6.
धरायाः महत्कम्पनं जातम्।
(क) गगनस्य
(ख) मेघस्य
(ग) भुवः
(घ) भवनस्य
उत्तरम् :
(ग) भुवः

प्रश्न 7.
लक्षपरिमिताः जनाः अकालकालकवलिताः।
(क) दशसहस्रसंख्यकाः
(ख) शतसहस्रसंख्यकाः
(ग) एककोटिसंख्यकाः
(घ) सहस्रसंख्यकाः
उत्तरम् :
(ख) शतसहस्रसंख्यकाः

प्रश्न 8.
बृहत्यः पाषाणशिलाः त्रुट्यन्ति।
(क) बहुधाः
(ख) लघुतमाः
(ग) बहुसंख्यकाः
(घ) विशाला:
उत्तरम् :
(घ) विशाला:

प्रश्न 9.
धूमभस्मावृतं जायते गगनम्।।
(क) आकाशम्
(ख) मेघम्
(ग) पृथ्वीतलम्
(घ) भवनम्
उत्तरम् :
(क) आकाशम्

प्रश्न 10.
दैवः प्रकोपो भूकम्पो नाम।
(क) दानवीयः
(ख) मानवीयः
(ग) ईश्वरीयः
(घ) किमपि न
उत्तरम् :
(ग) ईश्वरीयः।

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